Ajneya : Swatantraya Ki Khoj by Krishan Dutt Paliwal

सप्रसिद्ध आलोचक प्रोफेसर कृष्णदत्त पालीवाल की यह पुस्तक अज्ञेय के रचनाकर्म का विभिन्न कोणों से विवेचन-विश्लेषण करते हुए स्थापित करती है कि अज्ञेय की दृष्टि में सर्वोपरि मूल्य है स्वातंत्र्य। उनके उपन्यास, डायरी, कविता और साहित्य-चिंतन की गहन जाँच-पड़ताल करते हुए प्रोफेसर पालीवाल ने पाया है कि भारतीयता, सामाजिकता और आधुनिकता तीनों को विलक्षण ढंग से साधनेवाले अज्ञेय पाठक की स्वाधीन चेतना और आत्म-बोध जगाने का निरंतर प्रयास करते हैं। उनके बहुलतावादी चिंतन-सृजन की केंद्रीय समस्या है—‘आत्म’ और ‘अन्य’ के रिश्ते की समस्या। मैं और वह, मम और ममेतर के बीच रिश्ते की समस्या, शब्द के सार्थक प्रयोग की समस्या ही अज्ञेय के संपूर्ण सृजनात्मक पुरुषार्थ की आत्मा है, जिसमें हर कोण से स्वाधीनता के न जाने कितने प्रश्न उठते हैं। उनके लिए स्वाधीन चिंतन अथवा स्वाधीन विवेक राजनीतिक स्वातंत्र्य से कहीं बड़ा है।
अज्ञेय पर लगे तमाम आक्षेपों और भर्त्सना के पीछे के सच को सामने लाकर यह पुस्तक ठोस प्रमाणों के आधार पर यह भी उजागर करती है कि उन पर लगाए गए आक्षेप कितने निराधार और पूर्वग्रह प्रेरित हैं। अज्ञेय के सृजन के अनेक ऐसे पक्षों को यह पुस्तक प्रकाश में लाती है, जिनकी हिंदी आलोचना में प्रायः अनदेखी होते रहने के कारण पाठक दिग्भ्रमित हुआ है।
अज्ञेय साहित्य के पाठकों के लिए एक पठनीय पुस्तक।

Language

Hindi

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