Alvida Anna by Suryabala

‘अलविदा अन्ना…’ सूर्यबाला के विदेश-प्रवासों की एक अनूठी सौगात है। इन संस्मरणों में सूर्यबाला ने बाह्य स्थानों से कहीं ज्यादा अंतःप्रदेशों की यात्राएँ की हैं। चाहे वह कड़कड़ाती ठंड में अमेरिकी घर के बॉयलर फेल हो जाने से क्रमशः ठिठुरकर जम जानेवाली भयावह अनुभूति हो, चाहे ट्रेन में न्यूयॉर्क से बोस्टन तक अकेली यात्रा करनेवाली वह बच्ची, जो अपने पिता की मृत्यु की सूचना से सहमी लेखिका को यह कहकर ढाढ़स बँधाने की कोशिश करती है कि कोई बात नहीं, वह उसका सौतेला पिता था।
इनसे भी ज्यादा दिलचस्प और मार्मिक हैं विदेश में जनमी तथा बड़ी होती नन्ही अन्ना के बाल मन की खानाबदोश यात्राएँ। एक तरफ हर बात को तर्क के तराजू पर तौलती हठीली अन्ना तो दूसरी ओर भारतीय संस्कारों की मंजूषा से अन्ना को मालामाल करने की मंशावाली अति उत्साही दादी। दोनों अपनी-अपनी युक्‍तियाँ तलाशते होते हैं और इन्हीं युक्‍तियों के बीच से क्रमशः मोहबंधों का वह सेतु निर्मित होता जाता है, जिसके नीचे से पूर्व और पश्‍च‌िम की संस्कृतियों की युग्मधारा एक साथ प्रवहमान होने लगती है।
विचार, संवेदना और खिलंदड़ेपन से लबरेज यह स्मृति-कथा अन्ना के माध्यम से, विदेशों में ग्लोबल घालमेलों के बीच पल रहे भारतीय बच्चों के मन की अबूझ गहराइयों तक ले जाती है।

Language

Hindi

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