Rashtragita by Ramji Giri ‘Vishwamitra’

वत्स, राष्ट्र की सिद्धावस्था में चलते, राष्ट्रीय पर्व मंथन के
टूट रही कड़ियों के हित, अभियान चलते ग्रंथन के
अहं के उठते नंगे शिखरों हित, भूकंप होते भ्रंशन के
अतिवादी घुटन बेचैनी में, फूटते स्रोत प्रभंजन के
राष्ट्रगीता : संरक्षा सर्ग

सांस्कृतिक विरासत से कट, सांस्कृतिक निरक्षरता बढ़ती
संस्कृति की सृजनात्मक ऊर्जा से, सभ्यता ढहने से बचती
अतीत से चिपका समाज, गतिशीलता संस्कृति की खो सकता
परिवर्तनीय आयामों का नवीकरण, जीवंतता उसको दे सकता

संस्कृति की संजीवनी, राष्ट्रीय अस्मिता को उसका राष्ट्रवाद देती
समय के निर्माण में, बहुस्तरीय बहुआयामी संवाद रचती
राष्ट्रीयता, महाभाव पाकर, महादीक्षा के कितने ही पर्व मनाती
महाछलांग की संभावनाओं को, नित नए पंख लगाती
राष्ट्रगीता : संस्कृति सर्ग

Language

Hindi

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