Zirahanama by Kanak Tiwari
आजादी के मूल्य युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ कुछ लोग गुलामों के नेता थे। उन्होंने शेर की माँद में घुसकर शेर को मारने के गुर सीखे थे। उन्हें विवेकानंद, गांधी, दयानंद सरस्वती, अरविंद, रवींद्रनाथ, तिलक, मौलाना आजाद, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष बोस, राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश, राजेंद्र प्रसाद वगैरह कहा जाता है। इनकी आँखों में उनके लिए आँसू के सपने थे, जिनके घरों के आस-पास मोरियाँ बजबजाती हैं; जिनकी बेटियाँ शोहदों द्वारा देश-विदेश में बेची जाती हैं; जिनकी देह में खून कम और पसीना ज्यादा झरता है; जो किसी सभ्य समाज की बैठक में शरीक होने के लायक नहीं समझे जाते; जो जंगलों में जानवरों की तरह व्यवस्था और विद्रोहियों—दोनों के द्वारा बोटी-बोटी काटे जाते हैं; जिन्हें आजादी ‘स्व-राज’ के अर्थ में मिलनी थी, उनमें ‘स्व’ ही नहीं बचा; जिन्हें विवेकानंद ‘सभ्य अजगर’ कहते थे, वे ही गांधी के अंतिम व्यक्ति को कीड़े-मकोड़े समझकर लील रहे हैं।
—इसी पुस्तक से
समाज की विद्रूपताओं के दंश को अपनी कलम से उकेरनेवाले वरिष्ठ कलमकार कनक तिवारी विगत पचास वर्षों से निरंतर लेखन में रत हैं। समाज, राजनीति, शिक्षा, प्रशासन, सरकार, संस्थान, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिस पर इन्होंने झकझोर देनेवाले विचार न व्यक्त किए हों। पाठक के अंतर्मन को स्पर्श करनेवाली पठनीय कृति।
Language |
Hindi |
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