Khatte-Meethe Se Riste by Garima Sanjay

खट्टे -मीठे से रिश्ते’ मसालेदार
घटनाओं की कहानी नहीं है, यह जिंदगी के उतार-चढ़ाव को, रिश्तों की खींचतान को कहानी का रूप देने की कोशिश है। कहानी है, रिश्तों में आनेवाले बदलावों की। रिश्तों के नाम बदलते ही उनके रूप भी बदल जाते हैं, अपेक्षाएँ बदल जाती हैं और उन अपेक्षाओं में बँधे लोगों के व्यवहार बदल जाते हैं, भावनाएँ बदल जाती हैं।
कहानी में केवल रिश्तों में होनेवाली खींचातानी को ही नहीं, बल्कि समाज की एक और खींचतान पर प्रकाश डालने का प्रयास भी किया है। वर्तमान में हम जात पाँत से तो कुछ-कुछ उबरने लगे हैं, लेकिन वर्ग-भेद अभी भी बहुत विचित्र रूप सेकायम है। कई तरह के वर्गभेदों में से एक है। नौकरी-पेशा और व्यापारी वर्ग के बीच का भेद। निष्पक्ष रूप से विचारें तो हम सभी जानते हैं कि समाज में इन दोनों ही वर्गों का योगदान महत्त्वपूर्ण है, लेकिन न जाने क्यों और कैसे अकसर इन दो वर्गों के बीच अहं का टकराव हो जाता है। कोई ऊँचे ओहदे पर गर्व करता है, तो कोई व्यापारिक साख पर।
आमतौर पर रिश्ते अचानक नहीं टूटते । वे बिखरने लगते हैं। त्रासदी यह है। । कि जिस समय इस बिखराव की शुरुआत होती है, उस समय अधिकतर लोग या तो अहं में चूर होते हैं या फिर इतने लापरवाह कि बिखराव की यह आवाज ही नहीं सुनते।
ऐसी ही भावनाओं और उनसे जनित संभावनाओं को एक कहानी के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है, यह ‘खट्टे-मीठे से रिश्ते’।

Language

Hindi

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