Bargad Ke Saaye Mein by Acharya Janaki Vallabh Shastri

हिंदी गीत के शिखरपुरुष् आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री बडे़ गद्य-लेखक भी हैं। उनके द्वारा विरचित आलोचना, ललित निबंध, संस्मरण, नाटक, उपन्यास की कई पुस्तकें आईं और हिंदी-जगत् में ख्यात हुईं। रवींद्र, निराला, प्रसाद की श्रृँखला में एक विलक्षण गद्यकार के रूप में शास्त्रीजी को जो सम्मान ‌म‌िलना चाहिए, वह हद तक मलकर भी नहीं मिल पाया।
हिंदी समाज का बड़ा पाठक वर्ग जानकीवल्लभ शास्त्री के गद्य-लेखन का स्वाद लेता रहा है। उनके बीच कथा साहित्य की विशेष चर्चाएँ भी जमकर हुईं। शास्त्रीजी अपनी कथात्मक संघटना और काव्यात्मक संरचना में ऐसा गहरा तालमेल बनाते हैं, जिसमें कहानी भी नहीं छूटती है और शिल्प का नया कौशल सौंदर्य-आलोक से उद्दीप्‍त हो निखर उठता है।
कवि का भावावेश मर्मस्पर्शी दृश्यों से उभरता है, मगर समाज-संवेद्य चिंतक उसे व्यापकता देने में लिजलिजी संवेदना का नहीं, अपितु संयमित विचारों का संतुलित आधार प्रदान करता है। ‘बरगद के साये में’ जानकीवल्लभ शास्त्री के कहानी संग्रहों ‘कानन, अपर्णा, बाँसों का झुरमुट’ की कहानियों का एकत्र संग्रह है।
ये कहानियाँ परिवार, समाज और व्यक्‍त‌ि की त्रासद, संघर्षमयी तथा चारित्रिक विभिन्न मनोदशाओं को उद्‍घाटित करती हैं। निरंतर बिगड़ते और विघटित होते मूल्यों के बीच साहित्य के यथार्थ को प्रस्थापित करती, स्वाद का अनचखा बोध करानेवाली इन कहानियों में आज का समय प्रतिबिंबित है। बाँकपन और निजता के कारण इनकी अनुभूतियाँ सर्वथा अलग हैं।
—संजय पंकज

Language

Hindi

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