Devendra Satyarthi Ki Lokpriya Kahaniyan by Devendra Satyarthi

हिंदी के विलक्षण यायावर साहित्यकार देवेंद्र सत्यार्थी जितने बड़े लोकसाधक हैं, उतने ही बड़े और ऊँचे कद के कथाकार भी। पूरे बीस बरस तक लोकगीतों की तलाश में गाँवगाँव भटककर हिंदुस्तान के चप्पेचप्पे की धूल छान लेनेवाले सत्यार्थीजी के कथासाहित्य की खासी धूम रही है।
सत्यार्थीजी की कहानियों में जीवन की घुमक्कड़ी के इतने बीहड़, कठोर और दुस्साहसी अनुभव हैं कि मन उनके साथ बहता चला जाता है। उनकी कहानियों में लोकगीतों का आस्वाद और रसमाधुर्य ही नहीं, फसलों की लहलहाती गंध, खेतों की मिट्टी की खुशबू, गरीब किसानमजदूरों के लहू और पसीने की गंध, शोषण की आकुल पुकारें तथा दुःख और पीड़ाओं का सैलाब भी है। इसीलिए मंटो ने बड़ी हसरत के साथ उन्हें पत्र लिखा था—‘‘काश, मैं खुशिया होता और आपके साथसाथ यात्रा करता!’’
धरती और खानाबदोशी की गंध लिये ये स्वच्छंद कहानियाँ सिर्फ एक लोकयात्री की कहानियाँ ही हो सकती हैं, जिसने धरती को बड़ी शिद्दत से प्यार किया है और जिंदगी के नएनए रूपों की तरह अपनी कहानियों को भी नित नएनए रूपों में सामने आने के लिए खुला छोड़ दिया है। यही वजह है कि सत्यार्थीजी की कहानियाँ औरों से इतनी अलग हैं और वे बीसवीं शताब्दी के समूचे इतिहास तथा लोकजीवन को अपने आप में समोए, अपने समय के अनमोल दस्तावेज सरीखी हैं। बेशक सत्यार्थीजी की कहानियों को पढ़ना अपने समय और इतिहास की गूँजती आवाजों को सुनने की मानिंद है।
—प्रकाश मनु

Language

Hindi

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