Long March : Bapu Ki Ba – Ba Ke Bapu by Hemant

सत्याग्रह के बारे में गांधीजी की व्याख्या और टिप्पणियों के अनगिनत दस्तावेज हैं। उनकी कही कई-कई बातें हैं। कुछ बातें ऐसी हैं, जो बच्चों की निर्दोष मुस्कान जैसी सरल दिखती हैं, लेकिन बड़े-बड़ों तक को रहस्यमय लगती हैं। उनकी एक बात तो सौ साल बाद भी, बड़ेबुजुर्गों तक को चौंकाती है। वे कहते हैं-प्रकृति का नियम है कि कोई भी वस्तु उन्हीं साधनों से अक्षुण्ण रखी जा सकती है, जिनसे उसे प्राप्त किया गया है। हिंसा से प्राप्त वस्तु को सिर्फ हिंसापूर्वक ही बचाया जा सकता है। सत्य से प्राप्त की गई वस्तु को सत्य से ही अक्षुण्ण रखा जा सकता है। सत्याग्रह में ऐसा कोई चमत्कारी तत्त्व नहीं है कि सत्य द्वारा प्राप्त वस्तु को सत्य का साथ छोड़कर अक्षुण्ण रखा जा सके। यदि ऐसा संभव हो, तो भी ऐसा नहीं होना चाहिए। आखिर इसके क्या मायने हैं?
प्रस्तुत कथा ‘लॉन्ग मार्च’ (बापू की बा : बा के बापू) पढ़कर आपको शायद लगेगा कि गांधी के लिए सत्याग्रह की सीमा-संभावना से जुड़ी उक्त बात प्रयोगसिद्ध हुई, इसलिए अनुभव सिद्ध हुई।
लेकिन आज भी अधिसंय अनुभवी लोग इस बात से सहमत नहीं नजर आते । युवा पीढ़ी के कई लोग तो इसे हर समय और स्थिति के लिए प्रयोजनसिद्ध भी नहीं मानते।
-इसी पुस्तक से

Language

Hindi

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