Books
Showing 70101–70150 of 123058 results
Samachar Lekhan by Pk Arya
आज का समाज समाचारों पर आश्रित है। सचेत व जागरूक समाज के लिए समाचार एक संजीवनी का काम करते हैं और आधुनिक जीवन की परम आवश्यकता भी हैं।
सामान्यत: हमारे आस-पास कहीं पर भी जब कुछ घटता है तो मानवीय स्वभाव उसे जानने की जिज्ञासा रखता है। इसी अपेक्षित माँग ने स्वाभाविक रूप से समाचारों की व्युत्पत्ति की। जानकारी को पा लेने की तीव्र आकांक्षा ही समाचार जगत् का प्राणतत्त्व है। दुनिया भर की जानकारी से रू-बरू होना समाचार-पत्रों द्वारा ही संभव है।
समाचार के मूल तत्त्व—सत्यता, नवीनता, सामयिकता, निकटता, मानवीयता, विशिष्टता, असाधारणता आदि हैं। समाचार किसी सामयिक घटना का तथ्यबद्ध, परिशुद्ध एवं निष्पक्ष विवरण है। अधिकाधिक लोगों की रुचियों को भानेवाला समाचार ही सर्वोत्तम होता है। समाचार सामयिक प्रकाशित संवाद भी है। यह समाचार-पत्र की आत्मा है।
वर्तमान में हिंदी जगत् में समाचार एवं फीचर लेखन पर पुस्तकों का नितांत अभाव है। इस पुस्तक में दी गई समस्त जानकारियाँ पाठकों को एक ओर जहाँ विषय की ‘थ्योरी’ का ज्ञान कराती हैं वहीं दूसरी ओर व्यावहारिक पक्ष को प्राथमिकता देने के कारण इसकी उपयोगिता और भी अधिक बढ़ गई है। पुस्तक को तैयार करने में विविध शोध संदर्भों, लेखों, विवरणों, पाठ्य सामग्रियों व अन्य जानकारियों को प्रयोग में लाया गया है।
पुस्तक को उपयोगी बनाने के लिए विविध प्रसंगों में उदाहरण-स्वरूप समाचारों के कुछ नमूने प्रस्तुत किए गए हैं, ताकि पाठकगण विषय-वस्तु को और भी बेहतर ढंग से समझ सकें। विश्वास है, यह पुस्तक पत्रकारिता के छात्रों के साथ-साथ अन्य पाठकों के लिए भी जानकारीपरक व उपयोगी सिद्ध होगी।
Samachar Patra Evam Patrkarita
“prastut pustak mein samaachaaron ke sankalan, sampreshan, samyak prastuteekaran tatha sampaadan kee jaanakaaree dee gaee hai. paathakon kee suvidha ke lie prastut pustak ko aath khandon mein baanta gaya hai. pratyek khand mein patrakaar, samaachaar patr aur samaachaar ke sampaadan se judee vidhaon par vistrt charcha kee gaee hai.
is pustak mein patrakaarita ke saath samaachaar patr prakaashan kee any vidhaon jaise kampojing, prosesing, printing tatha vigyaapan ke baare mein bhee charcha kee gaee hai. yah pustak maas meediya kors ke chhaatren tatha samaachaar patr mein ruchi rakhane vaale any paathakon ke lie upayogee hai.(This book is useful only for the participants and students, apart from this, it is also useful for teachers and writers as well.The book presented for the convenience of readers is divided into eight volumes. In each section,detailed discussion has been done on the topics related to the publication of journalists, newspapers and news.This book also discusses other topics of news publication, including composing, processing, printing and advertising, along with journalism.This book is useful for mass media course students and other readers interested in newspaper.It provides information regarding the compilation, editing, presenting and piblication of newspapers.The book presented for the convenience of readers is divided into eight volumes. In each section, detailed discussion has been done on the topics related to the publication of journalists, newspapers and news. In this book, along with journalism, other topics of news publication such as composing, processing, printing and advertising are also discussed.This book is useful for mass media course students and other readers interested in newspaper.)
Samadhan Ki Ore by Prabhat Jha
भारत में आजादी के बाद देश की मूल समस्याओं की ओर शासकों ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ की मूल समस्याएँ नागरिकों से जुड़ी हैं, जो आज भी उतनी ही ज्वलंत हैं, जितनी पूर्व में रहीं। आजादी के बाद जो भी शासन में आए, उन्होंने आजादी को ही भारत की समस्याओं की जीत समझ लिया। आजाद क्या हुए, सबकुछ मिल गया। जबकि सच्चाई यह है कि आजादी मिलनेवाले दिन से हमें नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं और उनकी जीवन शैली के साथ भारत की प्रकृति के अनुसार उन समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए था। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए। हम आजादी के बाद सत्ता में रहते हुए सेवा के माध्यम से सेवा में कैसे आगे आएँ, की बजाय हम सत्ता के माध्यम से सत्ता में कैसे आएँ, इस दिशा में बढ़ते चले गए— यहीं से हमारी समस्याओं की जड़ें गहरी होती गईं।
इस पुस्तक में देश की ऐसे ही प्राथमिक और ज्वलंत समस्याओं के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। मातृभूमि की सेवा में, भारतमाता की आराधना में जो व्यक्तित्व सदैव अर्चना करते रहते हैं, हमने उनसे देश की ज्वलंत समस्याएँ रखीं और आग्रह किया कि देश में समस्याओं की तो चर्चा होती है, पर समाधान की नहीं। आप तो हमें समाधान दें। अपने भारत की प्रकृति को समझते हुए शब्दों के साधकों ने समाजकल्याण और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में कुछ ठोस ‘शब्दांजलि’ परोसने का प्रयास किया है। हमने इस पुस्तक में उन्हीं के भाव और निदान की दिशा में दिए गए मार्गदर्शन को लेखबद्ध कर राष्ट्रहित में संपादन कर प्रकाशित करने का प्रयास किया है।
Samaj Aur Rajya Bharatiya Vichar by Moti Singh
शोध ग्रंथ ‘समाज और राज्य : भारतीय विचार’ लंबे अंतराल के बाद पुनः प्रकाशित हो रहा है। इस विषय पर यह अकेला ग्रंथ है, जो मूल संस्कृत स्रोतों पर आधारित है। यहाँ लेखक ने अधिकांश आधुनिक विद्वानों की खंडनमंडन शैली का अनुकरण न करके भारतीय सामाजिक संस्थाओं और व्यवस्थाओं को प्रत्येक बात के लिए मूल ग्रंथों का संदर्भ देकर प्रस्तुत किया है।
समाजव्यवस्था का वर्णाश्रमव्यवस्था के साथ गहरा संबंध है। व्यक्तिगत उन्नति ही इसका उद्देश्य था। आदर्श जीवन की रचना ही इसीलिए की गई। इससे बहुत लाभ हुए। इसके द्वारा समाज में अधिकारविभाजन तथा शक्तिसंतुलन हुआ और संघर्षनिवारण भी। कर्तव्य, अधिकार, योग्यता, पात्रता पर ध्यान दिया गया और समाज पर कर्म का नियंत्रण रखा गया। वर्णव्यवस्था से एक लाभ यह भी था कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यवसाय मिलने में कठिनाई नहीं होती थी।
भारतीय संस्कृति के प्रेमियों को इस ग्रंथ पर गर्व होना चाहिए। यह प्राचीन विचारों, सिद्धांतों एवं परंपराओं का एक अद्भुत भंडार है, जिसमें हमें अपनी ज्ञानवृद्धि के लिए बहुत सी सामग्री मिलती है। लेखक ने अनेक ग्रंथों का पारायण कर हमारी समस्याओं पर गंभीर रूप से विचार किया है। इसके लिए भारतीय, विशेषकर हिंदू समाज उनका कृतज्ञ रहेगा।
Samaj Chintan by Avinash Rai Khanna
प्रसिद्ध समाजधर्मी अविनाश राय खन्ना विलक्षण व्यक्तित्व हैं। सक्रिय राजनीति में, सांसद रहते हुए भी वे सामाजिक विषयों पर लिखते रहे और इन मुद्दों को संसद् में भी उठाते रहे। इस पुस्तक में पाँच प्रतिशत लेख भी राजनीति पर आधारित नहीं हैं। समाज-चिंतन उनके सभी लेखों का मूल है। पुस्तक में उनके लेखों को विषयानुसार नौ अध्यायों में बाँटा गया है। समाज की बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान कैसे समाज मिलकर निकाल सकता है, जैसे—अनाथ बच्चों के प्रति समाज की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए, गुमशुदा बच्चों और उनके अपराधीकरण को कैसे रोका जाए आदि पर उन्होंने व्यावहारिक चर्चा की है। उन्होंने समाज से जुड़े ऐसे विषयों को चुना है, जिनका राजनीति और सरकारों से कोई संबंध नहीं होता, जैसे—टूटते परिवारों को टूटने से कैसे बचाया जा सकता है। इसका कारण वे संस्कारों की विखुमता को मानते हैं। अपने लेखन में उन्होंने इसकी भी चिंता की है कि बच्चों को कैसे संस्कारवान बनाया जाए। वे मूलतः पंजाब से हैं, जहाँ हाल ही के दो दशकों में पंजाब के युवाओं में नशे की आदत बढ़ी है, ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म ने इस समस्या को राष्ट्र के सामने रखा था। ‘नशे की आदत से कैसे छुटकारा प्राप्त किया जाए’ लेख में इसका भी समाधान प्रस्तुत किया गया है। शिक्षा और स्वास्थ्य लेखक के प्रिय विषय जान पड़ते हैं। शिक्षा के साथ सैन्य प्रशिक्षण को वे राष्ट्र-निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं। कुल मिलाकर समाज-चिंतन का एक गुलदस्ता आपके हाथ में है। उम्मीद है, यह पुस्तक सभी के लिए प्रेरणादायी साबित होगी।
Samaj Sudharak Raja Rammohan Roy by Mamta Jha
राजा राममोहन राय भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत और आधुनिक भारत में सामाजिक समरसता के जनक थे। वे ब्राह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषाई प्रेस के प्रवर्तक, जन-जागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नवजागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की।
हिंदी के प्रति उनका अगाध समर्पण था। वे रूढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे; लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र-गौरव उनकी थाती थे। उनका जन्म सन् 1774 में बंगाल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 15 वर्ष की उम्र तक उन्हें बँगला, संस्कृत, अरबी तथा फारसी भाषाओं का ज्ञान हो गया था। उन्होंने ब्राह्म समाज की स्थापना की तथा विदेश (इंग्लैंड व फ्रांस) भ्रमण भी किया। राममोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राष्ट्र-सेवा में जुट गए। बाल-विवाह, सती-प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, परदा-प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया और विधवा पुनर्विवाह पर जोर दिया। राजा राममोहन राय ने ‘ब्रह्ममैनिकल मैगजीन’, ‘संवाद कौमुदी’, ‘मिरात-उल-अखबार’, ‘बंगदूत’ जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया।
प्रखर चिंतक और दूरद्रष्टा राजा राममोहन राय की सांगोपांग प्रेरक जीवन-गाथा।