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Urith by S. Baring-Gould

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“In the very heart of Dartmoor, far from human habitation, near two thousand feet above the level of the sea, but with no prospect in the clearest weather on any side upon cultivated land, stands at present, as stood two hundred years ago, and doubtless two thousand before that, a rude granite monolith, or upright stone, about fourteen feet high, having on it not a trace of sculpture, not the mark of any tool, even to the rectification of its rugged angles and rude shapelessness.” -an excerpt

Urmila Shirish Ki Lokpriya Kahaniyan by Urmila Shirish

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उर्मिला शिरीष की कहानियाँ चाहे वह ‘प्रार्थनाएँ’ हो या ‘राग-विराग’ या ‘उसका अपना रास्ता’ या ‘बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु!’ संबंधों की ऐसी मर्मगाथाएँ हैं, जो पाठकों को भीतर तक उद्वेलित और आंदोलित कर देती हैं। अपने आसपास के परिवेश, समाज, पर्यावरण तथा सरोकारों की तसवीर प्रस्तुत करती इन कहानियों में जीवन के बिंब सघनता के साथ उभरकर आते हैं। वर्चस्व और सामंतवादी सोच के प्रतिरोध में खड़े उनके पात्र संवेदना, मनुष्यता और करुणा की रसधार से मन-मस्तिष्क को आप्लावित कर देते हैं। आज जब कहानियाँ सायास विचार और फॉर्मूला के बोझ से आक्रांत बना दी जाती हैं, ऐसे में उर्मिला शिरीष की कहानियाँ जीवन की समग्रता को समेटे ‘कहानीपन’ पठनीयता और सहजता जैसे अद्भुत गुणों की बानगी प्रस्तुत करती हैं। उर्मिला शिरीष की कहानियाँ प्रेमचंद की परंपरा से आती हैं, जहाँ जीवन का यथार्थ है तो जीने की इच्छा को फलीभूत करता मार्ग भी। उनकी कहानियों में स्त्री जीवन के कई रूप हैं, तो बच्चों की, युवाओं की एकदम ईमानदार भावछवि भी। वे वृद्ध जीवन के ऐसे अनदेखे पक्ष उजागर करती हैं, जहाँ हम प्रायः अपनी दृष्टि को ठहरा देते हैं। प्रेम और घृणा, संघर्ष और जिजीविषा के, राग और द्वेष के बीच बहते जीवन को उनकी मनोवैज्ञानिक दृष्टि पाठकों के सामने ऐसे सहज ढंग से रख देती है कि वे चकित रह जाते हैं।
उर्मिला शिरीष के व्यापक रचना-संसार की कुछ लोकप्रिय कहानियों का संकलन।

UrRepublic

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Us Aangan Ka Akash by Smt. Mridula Sinha

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प्रकृति, पशु-पक्षी, रीति-रिवाज, जीवन-मूल्य, पर्व-त्योहार और नाते-रिश्तों से हमारा विविध रूप, रंग-रस व गंध का सरोकार रहता है। हमारी प्रकृति व संस्कृति परस्पर पूरक हैं। परस्पर निर्भरता ही इनका जीवन-सूत्र है। हम उनके साथ रिश्तों के सरोकार से विलग नहीं रह सकते। लेकिन बदलते दौर में यह ऊष्मा लगातार कम हो रही है। इन सरोकारों में आई कमी कहीं-न-कहीं हमारे मन को कचोटती है। प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए इन सरोकारों को बचाए रखना बहुत जरूरी है।
यह सच है कि प्रकृति के विभिन्न अवयवों, रूपों और मनोभावों के साथ समायोजन ही मानवीय जीवन है। इस समायोजन में जितनी कमी आएगी, हम इनसे जितना दूर जाएँगे, हमारा जीवन दूभर होता जाएगा। इन दिनों जिसे देखो, बेचैन है। हम अपनी बेचैनी के कारण ढूँढ़ रहे हैं, पर वे मिल नहीं रहे। धन के प्रभाव में कहाँ मिलेगा दुःख और उदासी का कारण। स्थिति हो गई है ‘कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूँढ़े वन माहिं।’
पुरानी पीढ़ी सब प्रकार के अभावों में भी आनंदित रहती थी। धन का अभाव था; किंतु पशु-पक्षी, नदी-पहाड़, खेत-खलिहान, रिश्ते-नातों का नहीं। प्रकृति के साथ अपनेपन का संबंध अभाव में भी आनंदित करता था। इस पुस्तक में आनंद के इन्हीं सूत्रों को ढूँढ़ने का प्रयास किया गया है।

Usha Kiran Khan Ki Lokpriya Kahaniyan by Ushakiran Khan

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प्रस्तुत संग्रह में वरिष्ठ कथाकार उषा किरण खान की छोटीबड़ी चौबीस कहानियों में नई और लोकप्रिय कथाएँ शामिल हैं। आत्मवंचना के युग में कई अच्छेभले शिक्षित युवक आतंकवाद की राह में फँसा दिए जाते हैं—‘अम्मा मेरे भइया को भेजो…’ ऐसी ही कहानी है। ‘किसी से न कहना’, ‘लौट आ ओ समय’ तथा ‘गए माघ उनतीस दिन बाकी’ एक कथासीरीज है। अपने समय से संवाद करती बाल सखियाँ उम्र के चौथेपन में मिलती हैं। एकदूसरे को अपने दिल की कहनेसुनने पर चाहकर भी सबकुछ बाँट नहीं पातीं, कि कहीं साथी इसके दुःख से अधिक दुःखी न हो जाएँ।
इनमें स्त्री विमर्श इसी प्रकार का है। लेखिका अपने गाँव, महानगरों में बसी गाँव की स्त्रियों के भूख की, सम्मान की, अस्मिता की तनी गरदनवाली स्त्री की कहानी कहती है। उनके सारे पात्र यथार्थ से उपजे हैं, कल्पना से नहीं। सामाजिक संवेदना और मर्म को छूती लोकप्रिय कहानियों का अनूठा संग्रह।