Aangan Ki Gauraiya by Mukti Shahdeo
आज बचपन के गलियारे में झाँकती हुई ठीक-ठीक जान पाती हूँ कि मार खाकर घंटों रोनेवाली वह लापरवाह लड़की हर वक्त जिस सपनीली दुनिया में जीती थी, वहाँ की एकमात्र सहचरी बहुत सालों तक घर-आँगन में फुदकने वाली गौरैया ही थी। जीवन की कठिन या क्रूरतम सच्चाइयाँ हमें तोड़ती-मरोड़ती हैं और बदल देती हैं। बाहर की दुनिया में हम सामान्य बने रहकर चलते रहते हैं। आज सोचती हूँ, ठीक इसी टूटन के समानांतर जीवन की ये सच्चाइयाँ हमें बहुत ही पुख्ता डोर से बाँधती, जोड़ती और बनाती भी रहती हैं, एकदम परिपक्व। अचानक ऐसी ही परिस्थितियों के बीच मैंने खुद को लापरवाही की दुनिया से अलग जिम्मेदारी से भरपूर सख्त जमीन पर खड़ा पाया। बाहर की यात्रा निस्संदेह बहुत कठिन थी, पर भीतर जो यात्रा चल रही थी, वह बहुत सुकून देने वाली थी। मनचाहे रंगों से सजाकर मैंने उस भीतरी यात्रा को भरपूर जीना, किशोरावस्था में ही सीख लिया था, जो आज भी कायम है। जब भी बाहर की ऊबड़-खाबड़ परिस्थितियों से कदम लड़खड़ाते, अंदर स्वतः प्रवहमान शब्द मेरी गलबहियाँ थामे रहते।
—इसी पुस्तक से
Language |
Hindi |
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