Andhkar Bela by Suchitra Bhattacharya

‘कहते हैं, सारा-का-सारा ऑपरेशन प्लान माफिक किया गया। कल दिन भर, रात भर चूँकि धरना पर बैठे लोगों को हिला नहीं पाए, इसलिए भोर-रात बेधड़क लाठियाँ चलाई गईं, बिलकुल अचानक! लोगों को कुत्ते-बिल्ली की तरह दौड़ाते रहने के बाद भी बाबू लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ। जमीन देने को अनिच्छुक लोग अपनी रीढ़ सीधी करके खड़े न हो पाएँ, इसके लिए उन लोगों ने चड़कडाँगा गाँव चुन लिया। पुलिस और गुंडों का गिरोह…हाँ, पुलिस के जत्थे में बाहर के गुंडे भी शामिल थे। उन लोगों ने अचानक ही गाँव पर हमला बोल दिया। घर-द्वार तहस-नहस कर दिया, बच्चे-बूढ़े-जवानों को निर्ममता से पीटा, बहू-बेटियों की इज्जत लूटी। कुछ भी नहीं छोड़ा।’
जया ने पूछा, ‘हाँ जी, एक बहुरिया को घसीटते-घसीटते यूँ लात चला रहे थे कि…’
—इसी उपन्यास से

जीवन के विविध रंगों—हर्ष, विषाद, उल्लास में रँगा—सामाजिकता की नींव पर मजबूती से खड़ा सशक्‍त उपन्यास।

Language

Hindi

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