Bapu Ke Kadamon Mein by Dr Rajendra Prasad
बापू के कदमों में
भारतवासियों का एक बड़ा कर्तव्य यह है कि महात्माजी के अधूरे काम को वे पूरा करें। इसीलिए महात्माजी ने ग्यारह व्रतों का प्रतिपादन किया था, जिन्हें प्रार्थना के समय वह बराबर दोहराया करते थे। वे व्रत हैं—अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, आत्मनिर्भरता, शरीर-श्रम, अस्वाद, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी, स्पर्श-भावना। ये सब वे ही धर्म और नियम हैं, जो हमारे शास्त्रों में बताए गए हैं।
बापू ने हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय स्वतंत्रता दिलाने का प्रयत्न किया। हमको सिखाया कि व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में कोई अंतर नहीं है। इसलिए जो कुछ व्यक्ति के लिए अहितकर है अथवा निषिद्ध है, वह समाज और राष्ट्र के लिए भी।
आज हम अपने जीवन को तभी सार्थक बना सकते हैं, जब अपने हृदय के हर कोने को टटोलकर देख लें कि उसमें कहीं गांधीजी की शिक्षा के विरुद्ध कोई छिपी हुई कुवृत्ति तो काम नहीं कर रही है!
जिन्होंने गांधीजी के आदर्शों और सिद्धांतों को सही मायने में आत्मसात् किया, ऐसे देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखित बापू के अमिट पदचिह्नों का अद्भुत वर्णन है बापू के कदमों में।
Language |
Hindi |
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