Bharatiya Sanskriti Ke Anvarat Upasak Dr. Shyam Bahadur Verma by Dharmendra Verma
डॉ. श्याम बहादुर वर्मा का जन्म 10 अप्रैल, 1932 को हुआ। 1945 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आने के बाद उनमें राष्ट्र-प्रेम की भावना अजस्र रूप से बहने लगी। 1948 में संघ पर प्रतिबंध के विरोध में आंदोलन कर जेल गए। तेजस्वी श्यामजी ने अपनी ओजस्वी भाषण शैली के माध्यम से सन् 1952 में बरेली कॉलेज, छात्र संघ के चुनाव में धनी एवं प्रभावी कांग्रेसी परिवार के युवक को हराया।
सन् 1953 में अपने धर्म-संस्कृति के प्रखर ज्ञान के तीव्र प्रहारों से नारायणनगर, अल्मोड़ा के मेले में ईसाई प्रचार में वर्षों से रत मिशनरी कैंप को उखाड़ फेंका। 200 मील लंबी पद यात्रा में नेपाल एवं तिब्बत भी गए। मार्ग में दैवीय कृपा भी मिली। संघ की अनेक शाखाओं को प्रारंभ किया और संघकार्य को ग्रामीण अंचलों तक पहुँचाया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के लोकप्रिय प्राध्यापक रहे। इस कालखंड में ‘बृहत् विश्व सूक्ति कोश’ (तीन खंडों में) तथा ‘बृहत् हिंदी शब्दकोश’ (दो खंड़ों में) जैसे अप्रतिम शब्दकोश की रचना कर हिंदी भाषा के अध्ययन एवं अध्यापन में अभूतपूर्व एवं अविस्मरणीय योगदान दिया। अनेक कालजयी रचनाओं से न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, अपितु समाज में राष्ट्रीय गौरव व देशप्रेम की अलख जगाने का सफल प्रयास किया।
हिंदी अकादमी, दिल्ली ने 28 अक्तूबर, 1998 को उन्हें ‘साहित्यकार सम्मान’ से सम्मानित किया।
सामाजिक स्तर पर ‘भारतीय अनुशीलन परिषद, बरेली’ के माध्यम से 40 वर्षों तक भारतीय धर्म, संस्कृति एवं इतिहास की अलख जगाकर हजारों बाल, युवा एवं प्रौढ़ों को संस्कारित किया।
Language |
Hindi |
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