Bihar Ke Male by Subodh Kumar Nandan

बिहार के मेले-सुबोध कुमार नंदन

बिहार को मेलों का राज्य कहें तो अचरज नहीं होना चाहिए। यहाँ के त्योहारों, पर्वों तथा मेलों की अनूठी सांस्कृतिक परंपरा का उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलता है। कहा जाता है कि बिहार को नजदीक से जानने-समझने के लिए मेले में आना सबसे अच्छा साधन है। यहाँ एक साथ सभी चीजों की झलक देखने को मिल जाती है।
सोनपुर, मधेपुरा, मधुबनी, गया, राजगीर, सीतामढ़ी, वैशाली, बक्सर, खगडिय़ा, पूर्णिया आदि स्थानों पर लगने वाले मेलों में स्थानीय संस्कृति की झाँकी दिखाई पड़ती है। इन मेलों से जीवन की नीरसता तो दूर होती ही है, रोजमर्रा की चक्की में पिसनेवाला इनसान मेला घूमकर आत्मिक सुकून भी पाता है। दूसरे शब्दों में, इन मेले में आकर जिंदगी खिल उठती है। साथ ही नई पीढ़ी अपनी संस्कृति से परिचित भी होती है।
बिहार में कुछ ऐसे मेले हैं, जो विश्‍व स्तर पर विख्यात हैं। सोनपुर-मेला, पितृपक्ष-मेला, पंचकोसी-मेला, मलमास-मेला, कल्पवास-मेला आदि को प्रमुख मेले ही नहीं, राष्‍ट्रीय व अतंरराष्‍ट्रीय स्तर पर विशेष मेलों की संज्ञा दी जाती है। सांस्कृतिक व व्यापारिक महत्त्व के साथ-साथ हर मेले का अपना एक इतिहास है, संस्कृति और परंपराएँ हैं।
बिहार को सम्यक् रूप में जानने-समझने के लिए ‘बिहार के मेले’ पुस्तक बहूपयोगी है।

Language

Hindi

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