Brhattar Bharat Ka Nirmata: Chandragupta Maurya by Dilip Kumar Lal

आज से लगभग 2300 वर्ष पहले मगध पर घनानंद नामक एक कुटिल और क्रूर शासक का राज्य था। वह बात-बात पर लोगों को फाँसी दे देता था। ऐसे निरंकुश शासक ने जब चाणक्य नाम के एक विद्वान् का अपमान किया तो उसने नंद को समूल नष्ट करने का प्रण ले लिया। बालक चंद्रगुप्त भी नंद का सताया हुआ था, वह भी येन-केन-प्रकारेण नंद से प्रतिशोध लेना चाहता था।
अनायास ही चाणक्य और चंद्रगुप्त की भेंट हो गई। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को कडे़ अनुशासन में रखकर अस्त्र-शस्त्र के ज्ञान के साथ राजनीति की शिक्षा भी दी। अनुकूल अवसर मिलते ही चंद्रगुप्त ने घनानंद पर हमला कर दिया और उसका समूल नाश करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य पूर्व में बंगाल की खाड़ी से पश्चिम में अरब सागर तक फैला था। उत्तर में चंद्रगुप्त के राज्य की सीमा दक्षिणी अफगानिस्तान और ईरान तक फैली थी। उसने वृहद् भारत पर एकच्छत्र अनुकरणीय राज्य किया।
जीवन के उत्तरार्ध में अपने पुत्र बिंदुसार को राज्य सौंपकर वह कर्नाटक में श्रवणबेलगोला चला गया और एक भिक्षुक के रूप में अपना जीवन बिताया। चंद्रगुप्त मौर्य का निर्लिप्त जीवन सचमुच अनुकरणीय है।

Language

Hindi

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