Dharmakshetre Kurukshetre by Vishwas Dandekar
महाभारत पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। यहाँ तक कि उसके पात्रों पर भी स्वतंत्र और विपुल लेखन उपलब्ध है। काव्य, महाकाव्य, उपन्यास, नाटक आदि विधाओं में रचित इन पुस्तकों में अभ्यासकों, टीकाकारों, साहित्यकारों ने अपने-अपने ढंग से पात्रों एवं घटनाओं को रेखांकित करने का प्रयास किया है, जिसे पढ़कर जन-मानस में श्रीकृष्ण इस ‘व्यक्तिरेखा’ के विषय में एक आम धारणा बनती है, जो अंततः उन्हें ‘पूर्णावतार’ के रूप में स्थापित करने में सहायक सिद्ध होती है। लेकिन वास्तव में कैसे रहे होंगे श्रीकृष्ण! क्यों जरूरी रही होगी उन्हें पांडवों के साथ मित्रता? चिंतन-मनन की कसौटी पर कितनी खरी उतरती है ‘विराट्-स्वरूप’ की अवधारणा! क्या केवल प्रेम-पत्र पढ़कर रुक्मिणी-हरण के लिए दौड़ पड़े होंगे कृष्ण द्वारका से विदर्भ के कुंडिणपुर या ‘गणतंत्र’ की सुरक्षा से संबंधित कोई राजनीतिक कारण भी रहा होगा? वे कौन से निर्णय, कार्य तथा पराक्रम थे, जिनके कारण वसुदेव देवकी-नंदन ‘कृष्ण’ कालचक्र के साथ गुरुतर होते हुए क्रमशः महापुरुष, महामानव, अवतारपुरुष और अंततः पूर्णावतार कहलाए!
‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’ में प्रस्तुत है श्रीकृष्ण के महिमामंडन, चमत्कार आदि को दरकिनार करके ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर खोजता, उनके व्यक्तित्व का तर्कसंगत विश्लेषण करता हुआ उपन्यास।
Language |
Hindi |
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