Jammu Kashmir Ke Jannayak Maharaja Hari Singh by Kuldeep Chand Agnihotri

जमू-कश्मीर के अंतिम शासक और उत्तर भारत की प्राकृतिक सीमाओं को पुनः स्थापित करने का सफल प्रयास करनेवाले महाराजा गुलाब सिंह के वंशज महाराजा हरि सिंह पर शायद यह अपनी प्रकार की पहली पुस्तक है, जिसमें उनका समग्र मूल्यांकन किया गया है। महाराजा हरि सिंह पर कुछ पक्ष यह आरोप लगाते हैं कि वे अपनी रियासत को आजाद रखना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने 15 अगस्त, 1947 से पहले रियासत को भारत की प्रस्तावित संघीय सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनने दिया; जबकि जमीनी सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। इस पुस्तक में पर्याप्त प्रमाण एकत्रित किए गए हैं कि महाराजा हरि सिंह काफी पहले से ही रियासत को भारत की सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाने का प्रयास करते रहे। पुस्तक में उन सभी उपलब्ध तथ्यों की नए सिरे से व्याख्या की गई है, ताकि महाराजा हरि सिंह की भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके। महाराजा हरि सिंह पर पूर्व धारणाओं से हटकर लिखी गई यह पहली पुस्तक है, जो जम्मू-कश्मीर के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है।

Language

Hindi

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