Kab Aaoge Mahamana by Rita Shukla

कब आओगे महामना

‘हिंदुत्व’ का विराट् स्वर उनकी आत्मा की पोर-पोर में निनादित था। वह हिंदुत्व, जो केवल नीति नहीं, जीवन-सत्य है। वह हिंदुत्व, जो आवरण मात्र नहीं, विशुद्घ अध्यात्म है, सचेतन भारतीय-दर्शन है।
मन हिमवान हो, आत्मा समुन्नत कैलास-शिखर हो, अनुभूतियाँ क्षीर सागर सी तरंगायित हों तो मनुष्य अपने उदात्त अभियान से कभी नहीं डिग सकता। संगम की माटी महामना की शक्‍ति थी, भारत का तप अक्षय कोष था और काशी उन्हें बुला रही थी।
मनुष्यता के संरक्षण की पहली शर्त है—आत्मा की पवित्रता! आज जब भारत के अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों का कोना-कोना अनगिनत विकारों से धुँधला चुका है, अंग्रेजियत के झूठे मोह ने ग्राम-संस्कृति से नाता तोड़ लिया है, अत्यधिक फैशनपरस्ती के चक्रवात में तिनके सा बेबस घिरा जीवन त्रिशंकु हुआ जा रहा है, तब मन के किसी कोने में मेघ-मंद्र गांभीर्य में रचा-बसा एक स्वर जागता है—
नव-शती के द्वार पर आस्था ही चिर-वरेण्या होगी, प्रखर मेधा ही शुभ-कर्मों की संवाहिका होगी, तुलसी-दल सा समर्पण ही ज्ञान, योग और भक्‍ति के त्रित्व से प्राणों का कोष भरेगा, निरभिमान तप ही भारत की सच्ची पहचान बनेगा।
—इसी उपन्यास से

प्रसिद्ध लेखिका ऋता शुक्ल की सशक्‍त कलम से महामना पं. मदनमोहन मालवीय के प्रेरणाप्रद जीवन की विहंगम झाँकी… एक अनुभूति

Language

Hindi

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