Kavyanjali by Dr. Chhanda Benarjee
कुछ कहना है
हमारा समाज और उसका परिवेश समय के साथ-साथ तेजी से बदलते सामाजिक मूल्यों के विघटन का शिकार होता जा रहा है। जीवन की परिस्थितियाँ नित-नए समीकरणों में कसती चली जा रही हैं, आपस में दूरियाँ दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। आज अनेक सामाजिक विकृतियों के बीच प्रायः हम सभी नाना प्रकार के तनावों से गुजर रहे हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता। हमें इस सत्यता से पलायन कर इससे मुँह नहीं मोड़ लेना चाहिए, चाहे इसका परिणाम कितना भी भयानक क्यों न हो। उस परिणाम के स्वरूप को समझना होगा, उस पर सोचविचार कर न केवल उसे एक दिशा देनी होगी, बल्कि एक स्वस्थ, सुदृढ़ आकार देकर विशिष्ट भी बनाना होगा।
वास्तव में विशिष्टता के लिए कोई साँचा या परिमाप नहीं होता है। उसके लिए तो हमें जीवन की समग्रता में जीने के अर्थों पर पुनर्विचार करना होगा और इस सिद्धांत का बौद्धिक व तार्किक आकलन करने पर हमें अपने अंतर्मन में शाब्दिक अंतर्द्वद्वों का बोध हो सकेगा, जिससे देशकाल, समाज तथा अपने आस-पास के परिस्थितियों की यर्थाथता को हम महसूस कर पाएँगे।
ऐसे ही भावों को निरूपित करने का विनम्र प्रयास है ये कविताएँ।
-डॉ. छन्दा बैनर्जी
Language |
Hindi |
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