Kumarsambhav by Mool Chandra Pathak

प्रस्तुत कृति संस्कृत के अमर कवि कालिदास के ‘कुमारसंभव’ महाकाव्य के काव्यानुवाद का एक अभिनव प्रयास है।
‘कुमारसंभव’ का शाब्दिक अर्थ
है—‘कुमार का जन्म’। यहाँ ‘कुमार’ से आशय शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय से है। इस कृति के पीछे कवि का उद‍्देश्य
है—शिव-पार्वती की तपस्या, प्रेम, विवाह और उनके पुत्र कुमार कार्तिकेय के जन्म की पौराणिक कथा को एक महाकाव्य का रूप देना।
‘कुमारसंभव’ महाकाव्य में यों तो सत्रह सर्ग मिलते हैं, पर उनमें से प्रारंभिक आठ सर्ग ही कालिदास-रचित स्वीकार किए जाते हैं। अत: प्रस्तुत काव्यानुवाद में विद्वानों की लगभग निर्विवाद मान्यता को ध्यान में रखते हुए केवल प्रारंभिक आठ सर्गों को ही आधार बनाया गया है।
कवित्व व काव्य-कला के हर प्रतिमान की कसौटी पर ‘कुमारसंभव’ एक श्रेष्‍ठ महाकाव्य सिद्ध होता है। मानव-मन में कवि की विलक्षण पैठ हमें हर पृष्‍ठ पर दृष्‍टिगोचर होती है। पार्वती, शिव, ब्रह्मचारी आदि सभी पात्र मौलिक व्यक्‍तित्व व जीवंतता से संपन्न हैं। प्रकृति-चित्रण में कवि का असाधारण नैपुण्य दर्शनीय है। काम-दहन तथा कठोर तपस्या के फलस्वरूप पार्वती को शिव की प्राप्‍ति सांस्कृतिक महत्त्व के प्रसंग हैं। कवि ने दिव्य दंपती को साधारण मानव प्रेमी-प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत कर मानवीय प्रणय व गार्हस्थ्य जीवन को गरिमा-मंडित किया है।

Language

Hindi

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