Kyunki Jeena Isi Ka Naam Hai by N. Raghuraman

मुंबई में एयरपोर्ट के पास भीख माँगने की इजाजत नहीं है। यदि कोई इस नियम को तोड़ता है, उसे पुलिस के डंडे की मार झेलनी पड़ती है। क्या हम ऐसे घुमक्कड़ लोगों की पहचान करके, उनकी क्षमताओं के अनुरूप प्रशिक्षण देकर उन्हें गली-गली में कला-प्रदर्शक के रूप में तैयार नहीं कर सकते? दुनिया भर के विरासत विशेषज्ञ तथा टाउन प्लानर इन बेघर लोगों को गलियों में वाद्ययंत्र बजाने या कला-प्रदर्शन करने में प्रशिक्षण दे चुके हैं।
अमेरिका में यात्री और पर्यटक अकसर ऐसे कलाकारों को पहचान सकते हैं। सब-वे, स्टेशन तथा सैदूल-पार्क जैसे गार्डन में ऐसे प्रदर्शन किए जा सकते हैं। एक प्राचीन चीनी कहावत है—‘बच्चे नकलची होते हैं, इसलिए उन्हें नकल करने के लिए कुछ भी विषय दिया जा सकता है।’ भारत के आई.टी. हब बेंगलुरु में भी केस स्टडी किए जा सकते हैं तथा यहाँ भी गलियों में कला-प्रदर्शन किए जा सकते हैं। जो बच्चे भीख माँगते हैं, वे आसानी से यह रोजगार अपना सकते हैं। इससे उनका आत्म-सम्मान बढ़ेगा। पूरे बेंगलुरु में नहीं तो कम-से-कम लालबाग व कब्बन पार्क में यह प्रयोग किया जा सकता है।
मोटिवेशन गुरु एन. रघुरामन की समाज को एक अनूठी दृष्टि से देखने की क्षमता का परिणाम है यह पुस्तक, जो जीवन को रूपांतरित करने का संदेश देती है।

Language

Hindi

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