Loktantra Ki Kasauti by Anant Vijay
लेखक अनंत विजय का कहना है कि बिहार के कस्बाई शहर जमालपुर में स्कूल के दिनों से ही मुझे राजनीति में गहरी रुचि हो गई थी। पता नहीं कैसे और क्यों? राजन इकबाल सीरीज के उपन्यास पढ़ते-पढ़ते मैं कब ‘माया’, ‘रविवार’, ‘दिनमान’ के पन्ने पलटने लग गया, अब ठीक से याद नहीं। मुझे राजनीतिक रिपोर्ट्स और लेख पढ़ना अच्छा लगता था। जमालपुर के रेलवे स्टेशन पर पत्र-पत्रिकाओं की दुकान थी, उसका जो भी मालिक होता था, वह मेरा दोस्त हो जाता था। इससे फायदा यह होता था कि जो पत्रिकाएँ मैं खरीद नहीं पाता था, उसको वहीं खडे़ होकर पढ़ लेता था। बाद में जब ‘टीएनबी कॉलेज’, भागलपुर पहुँचा और हॉस्टल में रहने लगा तो छात्र राजनीति को नजदीक से देखने का मौका मिला। मैंने राजनीति तो कभी की नहीं, लेकिन राजनीतिक विषयों पर पढ़ना अच्छा लगता था। वैसे तो मैं इतिहास का विद्यार्थी था, लेकिन राजनीति की किताबें मुझे सदैव अपनी ओर खींचती रहीं।
बाद में जब मैं दिल्ली आया तो लेखन का आकाश खुला। अखबारों में टिप्पणियाँ लिखने लगा, फिर यह सिलसिला चल निकला। साहित्य में गहरी रुचि होने के कारण पहले तो मैंने जमकर साहित्यिक पत्रकारिता की, बाद में राजनीतिक लेखन की ओर मुड़ा। पिछले एक दशक में भारत की राजनीति में कई बदलाव आए, जिसको रेखांकित करना मुझे आवश्यक लगा और मैंने किया भी। प्रस्तुत पुस्तक में उन्हीं सब का लेखा-जोखा है, जो पाठकों को रुचिकर लगेगा।
Language |
Hindi |
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