Sadho Ye Utsav Ka Gaon by Ratnakar Chaubey, Ajay Singh, Abhishek Upadhyay

काशी की यात्रा का अर्थ है, काशी को समझना, बूझना, थोड़ा गहरे उतरना और इसके परिचय के महासागर में अपने स्व के निर्झर का विसर्जन कर देना। सो कुछ बनारसी ठलुओं ने एक दिन अपनी अड़ी पर यही तय किया। व्यक्ति, समाज, धर्म, संस्कृति और काशी के अबूझ रहस्यों को जानने के लिए क्यों न पंचक्रोशी यात्रा की जाए? पंचकोशी यानी काशी की पौराणिक सीमा की परिक्रमा। सो ठलुओं ने परिधि से केंद्र की यह यात्रा शुरू कर दी।
यात्रा अनूठी रही। इस यात्रा में हमने खुद को ढूँढ़ा। जगत् को समझा। काशी की महान् विरासत को श्रद्धा और आश्चर्य की नजरों से देखा। अंतर्मन से समृद्ध हुए। जीवन को समृद्ध किया। दिनोदिन व्यक्तिपरक होती जा रही इस दुनिया में सामूहिकता के स्वर्ग तलाशे। कुछ विकल्प सोचे। कुछ संकल्प लिये। खँडहर होते अतीत के स्मारकों के नवनिर्माण की मुहिम छेड़ी। यात्रा के प्राप्य ने हमारी चेतना की जमीन उर्वर कर दी।
जब यात्रा पूरी हुई तो ठलुओं ने तय किया कि क्यों न इस यात्रा के अनुभव और वृत्तांत को मनुष्यता के हवाले कर दिया जाए! फिर आनन-फानन में इस पुस्तक की योजना बनी। यात्रा के दौरान दिमाग के पन्नों पर जो अनुभूतियाँ दर्ज हुईं, ठलुओं ने उन्हें इतिहास के सरकंडे से वर्तमान के कागज पर उतारा और यह किताब बन गई।
हमने पंचक्रोशी यात्रा में काशी को उसी तरह ढूँढ़ा, जिस तरह कभी वास्को डि गामा आज से करीब पाँच सौ साल पहले पुर्तगाल के इतिहास की धूल उड़ाती गलियों से निकलकर भारत को तलाशता हुआ कालीकट के तट पर पहुँचा था। वह जिस तरह से अबूझ भारत को बूझने के लिए बेचैन था, कुछ वैसे ही हम काशी को जानने-समझने की खातिर बेचैन थे। एक बड़ा विभाजनकारी फर्क भी था। वास्को डि गामा मुनाफे के लिए आया था, हम मुनाफा पीछे छोड़ आए थे। घर, गृहस्थी, कारोबार, भौतिक जीवन की तमाम चिंताएँ…सबकुछ। हमें अपने भौतिक जीवन के लिए कुछ हासिल नहीं करना था। हमें बस काशी को जानने-समझने के सनातन जुनून का हिस्सा बनना था। हम अपने जीवन को इस संतोष से ओत-प्रोत करना चाहते थे कि हमने इसका कुछ हिस्सा केवल और केवल काशी को दिया। काशी को समझा। काशी को जाना। एक महान् विरासत से जुड़े; एक महान् विरासत के हो गए।

Language

Hindi

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