Sanskrti Ek : Naam Roop Anek by Devendra Swaroop
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘पश्चिम के प्राण यदि पाउंड, शिलिंग, पेंस में बसते हैं तो भारत के प्राण धर्म में बसते हैं। भारत धर्म में जीता है। धर्म के लिए जीता है। धर्म ही भारत की आत्मा है।’ भारत का यह मूल तत्त्व उसकी सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह विभिन्न रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। आज भी बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, वैष्णो देवी और कैलास मानसरोवर तक की दुर्गम यात्रा-मार्ग पर भक्ति-गीत गाते युवाओं की टोली उस धर्म-युग का प्रकटीकरण ही तो है। ज्ञान-विज्ञान की आधुनिकता के साथ कुंभ मेले में करोड़ों जन का उमड़ आना भी यही दरशाता है। धर्म-अध्यात्म की कथा के वाचकों-उपदेशकों के आयोजनों में समृद्ध, संभ्रांत और शिक्षित वर्ग भी खिंचा चला आता है। स्वाध्याय परिवार, गायत्री परिवार, स्वामीनारायण संप्रदाय, राधास्वामी, निरंकारी समागम के समारोहों में लाखों की संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं। इसका कारण यह है कि हमने धर्म को सर्वोपरि माना, उपासना पद्धति की एकरूपता का आग्रह कभी नहीं रखा; उपासना की विविधता को शिरोधार्य किया। भारतीय समाज जीवन में कभी कोई एक मजहबी केंद्र या चर्च नहीं रहा। ऐसा वैविध्यपूर्ण समाज 1300 वर्ष तक इसलाम व ईसाइयत की एकरूपतावादी विचारधारा से जूझता रहा है। इसके बावजूद उसने अपना मूल चरित्र बनाए रखा है।
भारतीय संस्कृति का माहात्म्य स्थापित करनेवाली चिंतनपरक पुस्तक।
Language |
Hindi |
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