Shanker Dayal Singh Ki Lokpriya Kahaniyan by Shanker Dayal Singh
वरिष्ठ साहित्यकार श्री शंकर दयाल सिंह की कहानियाँ पाठकों के अनुभव से मिलकर रसों का इस कदर साधारणीकरण कर देती हैं कि लगता ही नहीं कि आप कहानी पढ़ रहे हैं। यही तो है, उनकी कहानियों की सबसे बड़ी खासियत।
शैली का चमत्कार देखने की मंशा रखनेवालों को शंकर दयाल सिंह की कहानियाँ पढ़कर निराश होना पड़ सकता है। उन्होंने लेखन की विरासत तो अपने साहित्यकार पिता कामता प्रसाद सिंह काम से ली, पर शैली खुद अपनी विकसित की। किसी को हिंदी का कीट्स कहा गया, तो किसी को शैली, रामवृक्ष बेनीपुरी ने कामजी को हिंदी का चेस्टरटन कहा। उनकी लेखन-शैली में चेस्टरटन की लेखन-कला के वे सारे तत्त्व मौजूद हैं, जो पाठकों को चमत्कृत और झंकृत कर देते हैं। पर कामजी की शैली जितनी चमत्कारी है, शंकर दयाल सिंह का लेखन उतना ही सहज। इतना कि उसमें शैली का कहीं कोई भान ही नहीं होता और पाठक उसके कथ्य से सीधे-सीधे बँध जाता है।
घटनाएँ ही चामत्कारिक हों तो उन्हें चमत्कारपूर्वक प्रस्तुत करने की जरूरत भला क्यों हो? शंकर दयाल सिंह की ये कहानियाँ कुछ ऐसी ही हैं।
Language |
Hindi |
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