Telugu Ki Lokpriya Kahaniyan by Dr. Balshauri Reddy
तेलुगु-साहित्य में छोटी कहानियों का आरंभ 16वीं शतादी के उारार्द्ध में हुआ। परंतु सबसे पहली मौलिक तेलुगु-कहानी आंध्र के महाकवि श्री गुरजाड अप्पाराव ने सन् 1610 में लिखी थी। तेलुगु-साहित्य में छोटी कहानी का श्रीगणेश अप्पारावजी ने ही किया। उनकी कहानियों में व्यंग्य की प्रधानता है। ग्राम्य-जीवन का चित्रण यों तो कई कहानीकारों ने किया है, पर श्रीकविकोंडल वेंकटेश्वरराव की कहानियों में जो चित्रण मिलता है, वह अन्यत्र नहीं।
तेलुगु-कहानी-साहित्य में चलम् के प्रवेश ने या भाषा, या भाव, सब में क्रांति पैदा की है। चलम् ने सभी क्षेत्रों में विद्रोह का झंडा ऊँचा किया है। श्रीसुखरम् प्रताप रेड्डी ने यद्यपि बहुत कम कहानियाँ लिखी हैं, फिर भी कहानी-साहित्य में उन्हें उच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें तेलुगु-कहानी-साहित्य का गुलेरी कहें तो अतिशयोति न होगी। तेलुगु-कहानियों में हास्यरस का अभाव था। उसकी पूर्ति श्रीमुनिमाणियम् नरसिंहराव ने की। भवसागर को लोग दु:खमय मानते हैं, पर नरसिंहराव ने आनंदमय माना और अपनी रचनाओं से सिद्ध भी किया। इनको कुछ लोग ‘हास्य चक्रवर्ती’ मानते हैं। इनकी कहानियों में अधिकतर पारिवारिक समस्याएँ ही मिलेंगी।
तेलुगु-साहित्य में भावना-प्रधान तथा ऐतिहासिक प्रेम कहानियों के लिए श्री अडवि बापिराजु प्रसिद्ध हैं। इनकी कहानियों में संगीत, चित्रकला और अभिनय का वर्णन उल्लेखनीय है।
तेलुगु भाषा के श्रेष्ठ कथाकारों की लोकप्रिय कहानियों का संकलन।
Language |
Hindi |
---|
Kindly Register and Login to Lucknow Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Lucknow Digital Library.