Sanskriti Ki Satta by Dr. Dayanidhi Misra

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न संस्कृति कोई भौतिक वस्तु है; न समाज; न इतिहास प्रदत्त। किसी विशिष्ट मानव समुदाय की सांस्कृतिक विशेषता उसके प्राणिक भौतिक रूप से अथवा व्यावहारिक संबंधों की रचना से निर्गलित होती है। वस्तुतः मानव समाज की रचना के सूत्र भी जिस विधि-विधान में संगृहीत होते हैं, उसका आधार मूल्यचेतना ही होती है। मूल्यचेतना निरपेक्षविधि यांत्रिक और अमानवीय होगी। इस मूल्यचेतना में ही संस्कृति का उत्स है। इस तरह संस्कृति अपने मूल रूप में ऐसी चेतना है, जो अनित्य व्यक्ति-सत्ता और ऐतिहासिक-सामाजिक सत्ता का अतिक्रमण करती है, किंतु जिसकी अभिदृष्टि से सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन मूल्यवान होते हैं। रचनानुभूति और अंतरंगसाधना से उच्छलित हो, संस्कृति एक संदेश के रूप में प्रवाहित होती है।
—इसी पुस्तक से

Sanskritik Rashtravaad by Prabhat Jha

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हमारे देश की एकता का मुख्य आधार हमारी संस्कृति है। यही कारण है कि हमारे देश के राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ही संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार शरीर बिना आत्मा के निरर्थक है, उसी प्रकार संस्कृति से रहित देश निष्प्राण हो जाता है। भारत देश मूलतः संस्कृति प्रधान देश है। हमारे यहाँ जीवन मूल्यों का महत्त्व है, हमारे राष्ट्र का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अजर-अमर है।
हमारे राष्ट्र की मूल अवधारणा का केंद्र-बिंदु ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। हमारी संस्कृति विश्व को जोड़ने का कार्य करती है। भारतीय आत्मा की सृजनात्मक अभिव्यक्ति सबसे पहले दर्शन, धर्म व संस्कृति के क्षेत्रों में हुई।
भारत को ‘भारतमाता’ कहना ही हमारे ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के संस्कार को दरशाता है। हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ही यह देन है कि हम अपने देश में पत्थर, नदियाँ, पहाड़, पेड़-पौधे, पक्षी और संस्कृति पोषक को सदैव पूजते हैं। हमारी उदारता, संवदेनशीलता, मानवता के साथ-साथ सहिष्णुता का मूल कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत ही है।
राष्ट्रवादी विचारधारा ने अपनी सैद्धांतिक निष्ठाओं में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ को महत्त्वपूर्ण क्यों माना है। किसी भी जीवंत राष्ट्र के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के क्या मायने? क्या संस्कृति से कटकर कोई राष्ट्र प्रगति कर सकता है? ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ का यह सही स्वरूप जन-जन तक पहुँचे, इसी दृष्टि से इस पुस्तक का संयोजन किया गया है। ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ विषय को राष्ट्रवादी विचारधारा के शीर्ष नेतृत्व एवं कुछ प्रसिद्ध लेखकों के विचारों और लेखों के माध्यम से रखने का प्रयत्न किया है।

Sanskritik Utthan Ka Marg by Ram Sahay

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आज समाज में जीवन-मूल्य, नैतिकता, पारस्परिकता, परोपकार आदि लुप्तप्राय हो रहे हैं। समसामयिक विषयों पर लिखे गए ये लेख-घटनाएँ-प्रसंग ज्ञानवर्धक हैं। यह सामग्री पाठकों को संस्कारित करेगी और उनमें समाज के प्रति कर्तव्यभाव जाग्रत् करेगी, ऐसा विश्वास है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का मूलमंत्र हृदयंगम कर अगर हर भारतीय अपना सकारात्मक योगदान करेगा तो निश्चित रूप से भारत पुनः शीर्ष पर पहुँच सकेगा, यह पुस्तक इसी संदेश को प्रसारित करने का उपक्रम है। समाज-जागृति की दिशा में यह सामग्री अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है और सामाजिक क्षेत्र में यह भावी पीढि़यों के लिए एक दर्पण का काम करेगी।
आज की प्रजातंत्रीय व्यवस्था में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परम आवश्यक है। ये लेख इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। इस पुस्तक में महापुरुषों के जीवन से जुड़ी जिन घटनाओं का उल्लेख है, वे पाठक के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। इसकी विषयवस्तु पाठकों में अध्ययन के प्रति उत्कंठा पैदा करेगी। इन लेखों का प्रकाशन लोगों में पठन के प्रति रुचि जाग्रत् करेगा और उन्हें सुसंस्कृत बनाएगा।

Sanskrti Ek : Naam Roop Anek by Devendra Swaroop

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स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘पश्चिम के प्राण यदि पाउंड, शिलिंग, पेंस में बसते हैं तो भारत के प्राण धर्म में बसते हैं। भारत धर्म में जीता है। धर्म के लिए जीता है। धर्म ही भारत की आत्मा है।’ भारत का यह मूल तत्त्व उसकी सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह विभिन्न रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। आज भी बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, वैष्णो देवी और कैलास मानसरोवर तक की दुर्गम यात्रा-मार्ग पर भक्ति-गीत गाते युवाओं की टोली उस धर्म-युग का प्रकटीकरण ही तो है। ज्ञान-विज्ञान की आधुनिकता के साथ कुंभ मेले में करोड़ों जन का उमड़ आना भी यही दरशाता है। धर्म-अध्यात्म की कथा के वाचकों-उपदेशकों के आयोजनों में समृद्ध, संभ्रांत और शिक्षित वर्ग भी खिंचा चला आता है। स्वाध्याय परिवार, गायत्री परिवार, स्वामीनारायण संप्रदाय, राधास्वामी, निरंकारी समागम के समारोहों में लाखों की संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं। इसका कारण यह है कि हमने धर्म को सर्वोपरि माना, उपासना पद्धति की एकरूपता का आग्रह कभी नहीं रखा; उपासना की विविधता को शिरोधार्य किया। भारतीय समाज जीवन में कभी कोई एक मजहबी केंद्र या चर्च नहीं रहा। ऐसा वैविध्यपूर्ण समाज 1300 वर्ष तक इसलाम व ईसाइयत की एकरूपतावादी विचारधारा से जूझता रहा है। इसके बावजूद उसने अपना मूल चरित्र बनाए रखा है।
भारतीय संस्कृति का माहात्म्य स्थापित करनेवाली चिंतनपरक पुस्तक।

Sanskrtik Virasat Ke Dhani : Bharat Aur Japan by Shila Jhunjhunwala

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जापान में भी ईश्वर की पूजा-अर्चना, सेवा, देवों का आह्वान करने की रीतियाँ भारतीय जीवन से बहुत कुछ मिलती-जुलती हैं। भारत की तरह जापान में भी मकान बनाने से पहले भूमि-पूजन करते हैं। परिवार के मंगल के लिए पितरों से आशीर्वाद लेते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा का दर्शन वहाँ भी होता है।
जापान की पौराणिक कहानियों में पत्थर में परिवर्तित हुई लड़की अपने श्रीरामचरितमानस की अहल्या जैसी ही लगती है और जापान की सूर्य उपासना की पद्धति भारत के सूर्य नमस्कार के जैसी ही है। जिस प्रकार हिंदू कोई धर्म नहीं है, एक जीवन पद्धति है, उसी प्रकार शिंतो भी प्रकृति और मनुष्य के साहचर्य की जीवन पद्धति है, जिसका किसी दर्शन, धर्म, ग्रंथ अथवा उपदेश से साम्य नहीं है, बस वह रहन-सहन का एक तरीका भर है।
जापान में भी दीपावली की तरह जगमगाहट है; होली की तरह रंगों की फुहार है; पतंगों के उत्सव में भिन्न-भिन्न प्रकार के पतंगों से रँगा हुआ पूरा आसमान है; शादी-विवाह के मौकों पर संगीत से सजी हुई महफिलें हैं तो साकुरा के बागों तले फूलों की अल्हड़ बरसात है; कठपुतलियों के नृत्य हैं। काबुकी के रंग-मंच में अभिनय के रंगों में रँगी हुई कोमल भावनाएँ हैं और भारत से मिलता-जुलता हर जगह बहुत कुछ है।
यह पुस्तक इन्हीं अनुभवों पर आधारित एक प्रतिबिंब है, जिसमें जापान के अनेक रंगों को समेटने का प्रयास किया गया है।

Sant Kathayen Marg Dikhayen by Renu Saini

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समाज में व्यभिचार, हिंसा, ईर्ष्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसा नहीं है कि मनुष्यों के अंदर पलनेवाले इन दुर्भावों को नहीं रोका जा सकता, अवश्य रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यकता है ऐसी कथाओं की, जो व्यक्तियों को कम समय में एक बड़ी शिक्षा दें और उन्हें भँवर से बाहर निकालें।
संत हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते हैं, वे हमें सही राह दिखाते हैं। इस पुस्तक में अनेक संतों की ऐसी कथाएँ हैं, जो व्यक्ति को न सिर्फ प्रभावित करेंगी, बल्कि उसके कदम गलत मार्ग पर पड़ने से भी बचाएँगी। कई व्यक्तियों के पास इतना समय नहीं होता कि वे पुस्तकों के बड़े अध्याय या कहानियों को पढ़ पाएँ, इसलिए इस पुस्तक में सरल भाषा में हर कहानी को केवल एक पृष्ठ तक ही समेटने का प्रयास किया गया है। जीवन में सद्गुणों का विकास करने का मार्ग दिखाती संत कथाएँ।