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Satya Ki Khoj by Praveen Tiwari
सत्य की खोज इसलिए आवश्यक है, क्योंकि सत्य ही जीवन है। आप सत्य की खोज की आवश्यकता महसूस नहीं करते तो आप जीवन से ही विमुख हैं। मानव जीवन बहुमूल्य है, क्योंकि उसमें विवेक का प्रकाश है। मानव और पशु में भोग के विषय में तो समानता दिखाई देती है, लेकिन ज्ञान के विषय में वह पशु से बेहतर है। जो मनुष्य सिर्फ भोग का जीवन जी रहा है, वह इस अंतर को समझ नहीं पाया है। जो विवेक की शक्ति को समझ गया है, वह सत्य की खोज में है, और सत्य उसे अवश्य मिलेगा।
वर्तमान में ही जीवन है और सत्य है। हम जीवन भर विचारों के बोझ के तले दबकर एक कल्पनाजगत् में जीते रहते हैं। इस असत्य संसार का अभ्यास हमें सत्य की खोज से दूर रखता है। आप अपनी असीमित शक्तियों को भूल जाते हैं। आप में सचमुच समंदर को लाँघ जाने की शक्ति है, बस सत्य को पहचानना होगा। सत्य को पहचानना और असत्य से दूरी कठिन कार्य नहीं है। आपको कुछ अभ्यासों को अपने दैनिक जीवन में आजमाना होगा। एकाग्रता, इच्छाशक्ति, आत्मबल को बढ़ाना होगा। कैसे आप अपने इन स्वाभाविक गुणों को पा सकते हैं? सही अभ्यास क्या है?सत्य की राह की बाधाओं को दूर करने के कौनकौन से अस्त्र आपके पास मौजूद हैं? इन सारे सवालों के जवाब आपको सत्य की खोज करते हुए मिल जाएँगे। सत्य की प्राप्ति के बाद आपके सभी प्रश्नों और भटकाव का अंत हो जाता है।
Satya Nadella : Microsoft Ka Badalta Chehra by Jagmohan S. Bhanver
हैदराबाद के सत्या नडेला 4 फरवरी, 2014 को विश्वविख्यात टेक्नोलॉजी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के तीसरे मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) नियुक्त किए गए। तभी से उनके बारे में जानने की बेहद जिज्ञासा है, अनुमान है और अपेक्षा है। हो भी क्यों नहीं, आखिरकार उन्हें दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कंपनी का नेतृत्व करने का दायित्व जो सौंपा गया है।
नडेला विरले ही सार्वजनिक शख्सियत रहे और हाल तक उन्होंने नेतृत्व करने की क्षमता का प्रदर्शन भी नहीं किया था। दरअसल, अभी भी लोग उनके बारे में बहुत कम जानते हैं। उस शख्स को क्या चीज प्रेरित करती है, जिसे विशालकाय माइक्रोसॉफ्ट को भविष्य की राह पर आगे ले जाने का जिम्मा दिया गया है? माइक्रोसॉफ्ट के हाल के इतिहास के मद्देनजर उनकी नियुक्ति के पीछे क्या कारण थे? नडेला की नियुक्ति माइक्रोसॉफ्ट के लिए और पूरे तकनीकी उद्योग के लिए क्या उद्घोष करती है?
यह पुस्तक सत्या नडेला के व्यक्तित्व और उनके पेशेवर अंदाज को समझने का प्रयास करती है और तकनीकी तरक्की के भविष्य के लिए उनकी नियुक्ति के क्या मायने हैं, इसे भी रेखांकित करने की कोशिश करती है।
Satyagraha in Champaran by Dr. Rajendra Prasad
An honest and authentic account of Mahatma Gandhi’s first major work in the country after his return from South Africa, ‘Satyagraha in Champaran’ is a well documented book that narrates in graphic details the entire Champaran story—geography and history of the region, the non-violent crusade against the injustice perpetrated by the indigo planters, emancipation of ryots from the age-long tyranny, and the constructive work begun to improve the lot of the villagers. It is also an effective delineation of Mahatmaji’s method of work—the technique of Satyagraha, which, later organised through the length and breadth of the country, won India freedom from foreign rule.
Coming from the pen of an active participant in the Champaran Satyagraha and later the Freedom Movement, this book acquires the significance of an important document in the history of Indian nationalism.
Satyajeet Ray Ki Lokpriya Kahaniyan by Satyajeet Ray
“अरे हाँ, क्षमा करें। भूमिका एक पादचारी (अर्थात् पैदल यात्री) की है। एक अन्यमनस्क, गुस्सैल पैदल यात्री। वैसे, क्या आपके पास कोई जाकेट है, जो गरदन तक बंद हो जाए?’
‘शायद एक है। क्या पुराने रिवाज की?’
‘हाँ। आप वही पहनेंगे। किस रंग की है?’
‘बादामी रंग की। लेकिन गरम है।’
‘वह चलेगी। कहानी जाड़ों के समय की है, इसलिए वह गरम जाकेट ठीक रहेगी। कल ठीक 8.30 बजे सुबह, फेराडे हाउस।’
पतोल बाबू के मन में अचानक एक महत्त्वपूर्ण सवाल उठा।
‘मैं समझता हूँ, इस भूमिका में कुछ संवाद भी होंगे?’
‘निश्चित रूप से। बोलनेवाली भूमिका है। आप पहले अभिनय कर चुके हैं, क्या यह सच नहीं है?’
‘खैर, वास्तव में, हाँ…’
—इसी संग्रह से
अधिकतर लोग सत्यजित रे को एक फिल्म निर्देशक के रूप में ही जानते हैं, पर वे उच्चकोटि के कथाकार भी थे। उनकी कहानियों में भारतीय समाज के सभी रूप उभरकर आए हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि पाठकों के मन को उद्वेलित करनेवाली हैं।
Satyavadi Raja Harishchandra by Gopi Krishna Kunwar
सत्य, शाश्वत धर्म और सदाचार ऐसे गुण हैं, जिन्हें सहज भाव से अपनानेवाला मानव भी देवताओं की श्रेणी से उत्तम स्थान प्राप्त कर सकता है।
जब राजा हरिश्चंद्र के नाम-यश की चर्चा होती है और उनके साथ यदि ‘सत्यवादी’ शब्द का प्रयोग न किया जाए तो प्रतीत होता है कि इतिहास के किसी अन्य राजा का वर्णन किया जा रहा है। इसके विपरीत यदि केवल ‘सत्यवादी’ राजा का वर्णन हो तो स्पष्ट संकेत सतयुग के राजा सत्यवादी हरिश्चंद्र की ओर ही होता है। यहाँ तक कि सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र और शब्द ‘सत्यवादी’ एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। ऐसा हुआ राजा हरिश्चंद्र के द्वारा सत्य, शाश्वत धर्म और सदाचरण जैसे गुणों को अपने जीवन में उतारने से।
इस पुस्तक में राजा हरिश्चंद्र के चरित्र के विशिष्ट एवं प्रेरणाप्रद गुणों को सरल एवं सरस भाषा में सहज भाव से प्रस्तुत किया गया है।
इसे पढ़कर पाठक सत्य, निष्ठा, कर्तव्यबोध आदि गुण अपने जीवन में उतार सकें, तो पुस्तक का लेखन व प्रकाशन सफल माना जाएगा।