Adarsh Balak-Balikayen by Madan Gopal Sinhal

पूत के पैर पालने में ही दीख जाते हैं, किंतु उन पैरों को देखने की क्षमता सभी में नहीं होती। बहुधा पैरों को बड़प्पन मिलने पर ही पालने की खोज होती है और फिर पालने के छोटे पैर भी बड़े हो जाते हैं; किंतु भारतीय इतिहास में उन सपूतों की भी कमी नहीं, जो पालने में ही अपने बड़प्पन को प्रकट करके राष्‍ट्र-जीवन पर स्थायी छाप लगा गए।
हँसते शैशव से राष्‍ट्र की आराधना करनेवालों का यह चरित्र-चित्रण है। बड़ों के बचपन की अपेक्षा बचपन का बड़प्पन अधिक महत्त्व का है, क्योंकि वह समाज के उच्च स्तर एवं अंतर्भूत शक्‍त‌ि का द्योतक है। खेलने और खाने की उम्र में त्याग और बलिदान, वीरता और धीरता, सेवा एवं तपस्या के इतने महान् उदाहरण समाज के संस्कारी जीवन में मिल सकते हैं। जिन संस्कारों ने ये बालवीर उत्पन्न किए उनकी ओर ध्यान दिया गया तो आज भी भारत के बच्चों में शतमन्यु और अभिमन्यु जन्म लेंगे।
श्री मदनगोपाल सिंहलजी की प्रस्तुत पुस्तक बाल जीवन पर प्रभावी संस्कार डालने के लिए ही लिखी गई है। इन अनमोल हीरों के जौहरी को जिस दिन आज के समाज-जीवन में से हीरे खरीदकर उनके समकक्ष बिठाने का अवसर मिलेगा, उस दिन लेखक का प्रयास सफल होगा।
—दीनदयाल उपाध्याय

Language

Hindi

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