Mera Rasta Aasaan Nahin by Aacharya Jankivallabh Shastri

अराजक और अनास्था की विषम स्थिति में भी मूल्यों की तलाश करनेवाले बड़े आस्थावादी रचनाकार हैं आचार्यश्री जिन्हें हम सांसारिकता से विमुख हो संतुलित और समग्र संवेदनात्मक संसार की रचना करने की बेचैनी से भरे हुए देखते रहे हैं।
शास्त्रीजी गीतकार बड़े हैं या गद्यकार; यद्यपि कहना कठिन है, फिर भी उनके गद्य-सृजन की पड़ताल में साफ-साफ उनके कवि-व्यक्‍त‌ित्व की गहरी छाप दृष्‍ट‌िगोचर होती है। अभी उनकी गद्य-कृतियों का सम्यक् मूल्यांकन नहीं हुआ है। निराला, प्रसाद, महादेवी, बच्चन, दिनकर कवि तो बड़े थे ही गद्यकार भी बड़े और महत्त्वपूर्ण थे। इन विलक्षण और विशिष्‍टतम रचनाकारों की श्रृँखला में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री अन्यतम हैं। अनुपम और अतुलनीय है।
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की गद्य-विधाओं में आलोचना, ललित निबंध, कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, नाट्य-लेखन के साथ ही डायरी और संपादकीय भी साहित्यिक, सांस्कृतिक और वैचारिक ऊँचाइयों को छूते हैं। शास्त्रीजी की आलोचनात्मक दृ‌ष्‍ट‌ि के निराला भी कायल थे। निराला की प्रबंधात्मक कृति तुलसीदास की आलोचना शास्त्रीजी ने अपने यौवनकाल में की थी। वह आलोचना छपी तो निराला और आचार्य नंददुलारे वाजपेयी भी प्रभावित हुए थे।

Language

Hindi

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