Roshni by Naushad Ali

‘‘अबे सालो! तुम गरीबों की भी कोई इज्जत होवे है। इज्जत है पैस्सा, जिसके पास पैस्सा है, उसकी इज्जत है। तेरे पास रैने कू घर नहीं, पहनने कू ढंग का कपड़ा नहीं, सेठजी ऐसान कर रये तुझ पे। एक रात में तेरी लुगाई दस हज्जार कमाकर लाएगी, फिर साले उसे रानी बनाकर रखियो तू।’’ कहकर ठेकेदार जोर से हँसा।
—मर गई वो लज्जो

मेरी बेचैनी और कुढ़न कम नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई। मौलाना की कार मुझे कुछ ऐसे अखर रही थी जैसे किसी औरत को उसकी सौतन शादी की पहली रात को अखरती है।
मैं सोच रहा था कि काश! हमें भी शादी में कार मिली होती। बीवी हमारी चाहे इतनी सुंदर न होकर काली-कलूटी होती।
—दहेज की कार

‘‘इन सैक्युलरों को धर्मांध होने में कितनी देर लगती है नेताजी, बस एक चिनगारी की जरूरत है।’’
‘‘तो फिर देर किस बात की है, डालो न चिनगारी, वरना नुकसान दोनों पार्टियों का होगा।’’
‘‘ठीक कह रहे हैं आप नेताजी, जिस दिन इस देश के लोगों ने धर्म-जाति की राजनीति से हटकर सोचना शुरू कर दिया, हमारी और आपकी पार्टी के तो दफ्तर ही बंद हो जाएँगे।’’
—फसाद
—इसी संग्रह से

Language

Hindi

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