Sikandar Mahan by Rasik Bihari

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अलेक्जेंडर थर्ड ऑफ मकदूनिया को अलेक्जेंडर द ग्रेट या सिकंदर महान् के नाम से जाना जाता है। उसने दस साल के अंदर दुनिया का नक्शा बदलकर रख दिया और यूनान से एशिया तक के एक बडे़ भू-भाग का राजा बन गया।
जुलाई 356 ईसा पूर्व में जनमे सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय मकदूनिया के राजा थे। 336 ईसा पूर्व में फिलिप की हत्या के बाद 20 साल के सिकंदर को एक अशांत राज्य वसीयत में मिला। उसने जल्दी ही अपने सभी दुश्मनों को ठिकाने लगा दिया और ग्रीस में अपना एक प्रभुतासंपन्न राज्य स्थापित किया। इसके बाद उसकी राज्य-विस्तार की भूख बढ़ गई।
अगले आठ सालों में सिकंदर ने 11,000 मील आगे तक अपनी सेना का नेतृत्व किया और 70 बडे़ शहरों और तीन महाद्वीपों को पार करते हुए उत्तर भारत में पंजाब तक आ पहुँचा।
अरस्तू का यह महान् शिष्य तूफान की तरह बड़ी-से-बड़ी बाधा को पार करता रहा, लेकिन मामूली से बुखार से पार नहीं पा सका और इसने बेबीलोन में 323 ईसा पूर्व में उसकी जान ले ली। अपने 33 साल के जीवन में सिकंदर ने कभी आराम नहीं किया। आराम और सुस्ती उसके शब्दकोश में नहीं थे। शूरवीर और नीतिज्ञ सिकंदर महान् का जीवन सदा कर्मकरने की प्रेरणा देता है।

Sikh Guru Gatha by Jagjeet Singh

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भारत की सामाजिक एकता, उत्थान तथा राष्‍ट्रीय निर्माण में सिख गुरुओं का अमूल्य योगदान रहा है। प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव से लेकर दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह तक सभी दस गुरुओं का जीवनकाल कुल 239 वर्षों का रहा। इस दौरान सिख गुरुओं ने पंजाब तथा पंजाब से बाहर व्यापक भ्रमण किया और अपने उपदेश तथा व्यावहारिक जीवन द्वारा समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर उसकी दशा और दिशा ही बदल दी। आधुनिक युग का कोई भी ऐसा ज्वलंत मुद‍्दा नहीं, जिस पर सिख गुरुओं ने मानवमात्र को संदेश अथवा उपदेश न दिया हो। पंजाब में नए शहरों तथा जलस्रोतों आदि का निर्माण करके गुरुओं ने धर्म को विकास के साथ जोड़ा। राष्‍ट्र के गौरव और धर्म की रक्षा का प्रश्‍न आया तो छठे एवं दसवें गुरुओं ने न केवल शस्‍‍त्र धारण किए और अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़े बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे।
प्रस्तुत कृति ‘सिख गुरु गाथा’ सिख गुरुओं के त्याग-तपस्यामय, बलिदानी, आदर्श व प्रेरक जीवन पर प्रकाश डालने के साथ ही उनका संपूर्ण जीवन-वृत्त प्रस्तुत करती है।

Silas Marner (Class Xii) by George Eliot

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Silas Marner : The Weaver of Raveloe is a novel by George Eliot, published in 1861. An outwardly simple tale of a linen weaver, it is notable for its strong realism and its sophisticated treatment of a variety of issues ranging from religion to industrialisation to community. The novel is set in the early years of the 19th century. Silas Marner, a weaver, is a member of a small Calvinist congregation in Lantern Yard, a slum street in an unnamed city in Northern England. He is falsely accused of stealing the congregation’s funds while watching over the very ill deacon. Two clues are given against Silas: a pocket-knife and the discovery in his own house of the bag formerly containing the money. There is the strong suggestion that Silas’ best friend, William Dane, has framed him, since Silas had lent his pocket-knife to William shortly before the crime was committed. Silas is proclaimed guilty.