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Shukriya by Sanjay Sinha
संजय सिन्हा की पुस्तक बहुत से लोगों की ज़िंदगी में उजाला भर सकती है। छोटे-छोटे प्रसंगों से बड़ी गहरी बातें संजय ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट की हैं। आज व्यक्ति संवेदना शून्य हो चुका है क्योंकि वो रिश्ते भूल गया है। रिश्ते नहीं हैं तो ज़िंदगी कैसे जी पाएँगे? इसलिए समय की कीमत पहचानिए और दिलों में उम्मीद का दीपक जलाइए।
—इंडिया टुडे
ये दास्तानें हैं हमारी-आपकी ज़िंदगी की, कुछ खट्टी, कुछ मीठी, तो कुछ हैरान-परेशान कर देने वाली। पर हैं सच। ऐसे ही सच से आपको रूबरू कराया है लेखक ने। आपसी रिश्तों और सामाजिक ताने-बाने को उजागर करती ये दास्तानें काफी दिलचस्प अंदाज़ में लिखी गई हैं और इनमें पाठकों को हद दर्जे का अपनापन नज़र आता है।
—नवभारत टाइम्स
अपनी पुस्तक में संजय सिन्हा ने तमाम अनुभवों को साझा किया है। उन्होंने रिश्तों की कई कहानयों को अपनी किताब में बहुत बारीक निगाहों से तराशा है। संजय ने अपने अनुभव की कहानियों को बहुत ही दिलचस्प अंदाज़ में लिखा है। कई मायनों में इनकी पुस्तक एक प्रयोग की तरह है।
—जनसत्ता
Shwet Patra by Viveki Rai
श्वेत पत्र’ सन् 1942 के जनांदोलन और बलियागाजीपुर जनपद तथा बिहार के सीमावर्ती भोजपुरी अंचल के तत्कालीन गुप्त आंदोलन के प्रामाणिक इतिहास पर आधारित, उद्वेलित मानसिकता की संपूर्ण पकड़ से परिपूर्ण ऐसी कलाकृति है, जिसमें व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन और गाँवों में फैले क्षेत्रीय आंदोलन का कहीं अभिन्न और कहीं समानांतर चित्रण है।
तत्कालीन स्थिति के कुछ सर्वथा नए तथ्यों को उजागर करता ‘श्वेतपत्र’ अर्थात् आजादी का ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत करता है। जयप्रकाश, लोहिया आदि के उन महत्त्वपूर्ण, प्रामाणिक बुलेटिनों, पैंफलेटों, पर्चों और गुप्त पत्रों को, जिनको सही मायने में अस्त्र बनाकर जनता स्वयं अपनी लड़ाई लड़ती है, गाँव के किसानमजदूर, अध्यापकविद्यार्थी और किसानसरदार लड़ते हैं।
लेखक का दावा है—उन पैंफलेटों आदि का मूल रूप उसके पास सुरक्षित है और इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम का एक सहीसही तथा रचनात्मक रूप उभर आता है ‘श्वेतपत्र’ में। अत्यंत रोचक, सनसनीखेज, प्रभावशाली, प्रेरणाप्रद और आज की राष्ट्रीय स्थितियों के पुनर्मूल्यांकन योग्य अनेक अछूते आयामों से परिपूर्ण।
Shyam Ki Maa by Sane Guruji
वर्ष 195060 के दशक में भारत की जिस पीढ़ी ने अपनी उम्र का पहला डेढ़ दशक पूरा किया था, उनमें से आज का कोई वरिष्ठ नागरिक ऐसा नहीं होगा, जिसने बचपन में साने गुरुजी की मराठी में लिखी ‘श्यामची आई’ पुस्तक पढ़ी नहीं होगी। साने गुरुजी के ‘श्यामची आई’और ‘मीरी’ जैसे मराठी में लिखे उपन्यास पढ़कर जिसकी आँखें नम न हुई हों, ऐसे व्यक्ति कम ही होंगे। बेहद सरल, मार्मिक, दिल को छू लेनेवाली भाषा साने गुरुजी की विशेषता है।
कहा जा सकता है कि माँ की प्रेममय और महान् सीख का सरल, सहज और सुंदर शब्दों में किया गया चित्रण, हमारी संस्कृति का एक अनुपमेय कथात्मक चित्र, एक कारुणिक कथावस्तु यानी ‘श्याम की माँ’! खुद गुरुजी कहते हैं कि मन का पूरा अपनापन मैंने इस कथा में उडे़ला है। ये कहानियाँ लिखते हुए सौ बार मेरी आँखें नम हुईं। दिल भर आया। मेरे हृदय में माँ के बारे में जो अपार प्रेम, भक्ति और कृतज्ञता का भाव है, वह ‘श्याम की माँ’ पढ़कर अगर पाठकों के मन में भी उत्पन्न हो तो कहा जा सकता है कि यह कृति लिखना सार्थक हुआ।
अपने बच्चों से अपार प्रेम करनेवाली, वे सुंसस्कारी बनें, इसलिए जीजान से कोशिश करनेवाली, लेकिन संस्कारों की अमिट छाप उपदेश रूपी दवा की खुराक के रूप में नहीं, बल्कि अपने बरताव से और रोजमर्रा के छोटेछोटे प्रसंगों के जरिए बच्चों के मन पर छोड़नेवाली, अनुशासन का महत्त्च बताते हुए प्रसंगानुसार कठोर बननेवाली यह आदर्श माँ आज की उदयोन्मुख पीढ़ी के लिए ही नहीं, वरन् उनके मातापिता के लिए भी निश्चित रूप से प्रेरक साबित होगी।
Shyam, Phir Ek Bar Tum Mil Jate! by Dinkar Joshi
दौड़कर उसने कृष्ण के पाँव से तीर खींचने के लिए हाथ बढ़ाया । कृष्ण उसकी व्यग्रता को निमिष- भर ताकते रहे, फिर निषेध में दाहिना हाथ उठाया ।
जरा ठिठक गया- ” क्यों, नाथ, क्यों?”
” रहने दो, भाई! माता गांधारी के वचन में व्यवधान बनने का व्यर्थ प्रयत्न मत करो!” बड़ी धीरता से वे बोले ।
” मैंने महापातक किया है! मुझे क्षमा करो, नाथ! मैंने.. .मैंने आपको जंगली प्राणी समझकर आप पर तीर चलाया । यह मैंने क्या किया, नाथ!” जरा भूमि पर लोटकर करुण क्रंदन करने लगा ।
” उठो वत्स!” करुणार्द्र स्वर में कृष्ण बोले, ” तुम्हारा नाम क्या है?”
” मेरा नाम ?. .जरा ! ”
” जरा !. .ठीक!” कृष्ण का मधुर हास्य छलका । तलवे से बहकर रक्तधारा भूमि पर काफी दूर चली गई थी । ” जरा, तुम्हारा नाम सार्थक है, तात ! ‘ जरा ‘ कभी किसीको नहीं छोड़ती ! अमरत्व के अभिशाप ने जिसे घेरा हो, उसे भी महाकाल जरा समेट ही लेता है न! जरा, तू तो निमित्त मात्र है, वत्स!”
– इसी उपन्यास से
कोई भी भारतीय भाषा ऐसी नहीं है जिसमें श्रीकृष्ण को केंद्र में रखकर काव्य, कहानी, उपन्यास. नाटक, संदर्भ-ग्रंथ आदि साहित्य का सर्जन न किया गया हो । ‘ श्याम, फिर एक बार तुम मिल जाते ‘ (मूल गुजराती में लिखा) उपन्यास इन सबसे अनूठा इसलिए है कि यह सिर्फ उपन्यास नहीं है-यह तो उपनिषद् है! यथार्थ कहा जाए तो यह उपनिषदीय उपन्यास है ।
तत्कालीन आर्यावर्त्त में श्रीकृष्ण एक विराट् व्यक्तित्व था । जब यह व्यक्तित्व अनंत में विलीन हो गया तो जो सन्नाटा छा गया, उस सन्नाटे के चीत्कार का यह आलेखन है जब श्रीकृष्ण सम्मुख थे तब बात और थी जब वे विलीन हो गए तब वसुदेव-देवकी से लेकर अर्जुन, द्रौपदी, अश्वत्थामा, अक्रूर उद्धव और राधा पर्यंत पात्रों की संभ्रमिद मनोदशा को एक अनूठी ऊँचाई के ऊपर ले जाता है यह उपन्यास ।
SIB Security Assistant ( Executive ) Recruitment Test
SIB Security Assistant ( Executive ) Recruitment Test
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Siddha Sant Aur Yogi by Shambhuratna Tripathi
इतिहास पर दृष्टि डालने पर कुछ शक्तियाँ सहज ही लक्ष्य की जा सकती हैं। यथा, सामरिक शक्ति, आर्थिक शक्ति, जनसमूह के संगठन की शक्ति, लेकिन जो शक्तियाँ वस्तुतः पृथ्वी को धारण करती हैं, वे साधारणतः प्रत्यक्षगोचर नहीं होती हैं। परंतु ऐसा भी नहीं है कि वे कभी हमारे सामने आती ही नहीं हैं। करुणावश, वे हमारे क्रियाकलाप में इस प्रकार हस्तक्षेप करती हैं कि हम उनको इस धरातल पर देख सकें। तोटकाचार्य अपने स्तोत्र में लिखते हैं—जगतीमवितुं कलिताकृतयो विचरन्ति महामहसश्छलतः। जगती की रक्षा करने हेतु महान् विभूतियाँ छद्म-शरीर धारण करके विचरण करती हैं। इन विभूतियाँ का संपर्क, इनके स्पर्श, इनकी वाणी, व इनके कटाक्ष सभी अभ्युदय हेतु होते हैं।
‘सिद्ध संत और योगी’ ऐसी विभूतियों के चिंतन व जीवनचरित का परिचय प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक एक संकलन के रूप में जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत रोचक है, पर दूसरी ओर इसमें चर्चित अधिकांश महात्माओं की जीवंत शिष्य-परंपराएँ विद्यमान हैं, जहाँ आर्त्त व जिज्ञासु आश्रय अथवा मार्गदर्शन हेतु जा सकते हैं। आसन्न संकटों से निबटने के लिए मानवजाति के सम्मुख चेतना के उन्नयन के अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं है; इस पुस्तक में संकलित लेख कदाचित् इसी आशय से लिखे गए थे।