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1000 Itihas Prashnottari by Sachin Singhal
1000 इतिहास प्रश्नोत्तरी
इतिहास का खेल न्यारा है; और इतिहास अपने को दुहराता भी है। इसीलिए इतिहास में लोगों की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है—चाहे वह परिवार का हो, राष्ट्र का हो या विश्व का। प्रस्तुत पुस्तक एक सामान्य पाठक और उसके इतिहास के ज्ञान के स्तर को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है। पुस्तक को बहुविकल्पीय प्रश्नों की शैली में लिखा गया है।
चार भागों में विभक्त पुस्तक को महत्त्वपूर्ण उपभागों में बाँटा गया है; जैसे—सिंधु घाटी सभ्यता के स्रोत, वैदिक सभ्यता, मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य, जैन एवं बौद्ध धर्मों का उदय, दक्षिण के साम्राज्य, मुगल काल, मराठा राज्य, अंग्रेजी शासन और भारत का स्वतंत्रता संघर्ष आदि।
प्रत्येक प्रश्न के चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें एक सही उत्तर है, जिससे पाठक प्रश्न का सही उत्तर ढूँढ़ने के लिए अपनी तर्कशक्ति का भी प्रयोग कर सकते हैं।
विश्वास है, पुस्तक पाठकों को अच्छी लगेगी तथा उनके इतिहास के ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगी।
1000 Hindi Sahitya Prashnottari by Kumud Sharma
वर्तमान युग में हर व्यक्ति को जीवन के विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता है । राज्य स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर विभिन्न महत्त्वपूर्ण संस्थानों के महत्त्वपूर्ण पदों के लिए ली जानेवाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अन्य विषयों के साथ- साथ हिंदी भाषा और साहित्य से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर आधारित प्रश्न भी सम्मिलित होते हैं ।
इस पुस्तक में 1000 प्रश्नों को अठारह महत्त्वपूर्ण अध्यायों – भाषा, हिंदी साहित्य का इतिहास, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध- आलोचना, रेखाचित्र- संस्मरण, आत्मकथा-जीवनी, यात्रा साहित्य, रिपोर्ताज, साक्षात्कार और पत्र साहित्य, काव्य शास्त्र, साहित्यिक पत्रकारिता, संस्थाएँ पुरस्कार, चित्रावली तथा विविध-में बाँटा गया है । प्रत्येक प्रश्न के लिए अध्याय का निर्धारण पाठकों की सुविधा के लिए किया गया है ।
समय की माँग और समय की कमी के कारण साहित्य के विराट् फलक में प्रवेश कर उसे आत्मसात् करने का अवसर बहुतों के पास नहीं है । यह पुस्तक बहुत सुगमता से ऐसे व्यक्तियों को हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं और वस्तुनिष्ठ तथ्यों से परिचित कराने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है ।
पुस्तक में हिंदी साहित्य के व्यापक परिदृश्य पर फैले केंद्रीय और महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को समेटने की कोशिश की गई है । भाषा संबंधी प्रश्नों के साथ-साथ हिंदी साहित्य का इतिहास, काव्य शास्त्र, साहित्यिक संस्थाओं, पुरस्कारों से संबंधित प्रश्न इसमें सम्मिलित हैं ।कुछ महत्त्वपूर्ण रचनाकारो की चित्रावली भी इसमें समाविष्ट है । यह पुस्तक अपने आपमें हिंदी साहित्य का इतिहास है ।
Issac Newton by Dr Preeti Srivastava
आइजक न्यूटन
सर आइजक न्यूटन अपने समय के बड़े एवं प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में थे। उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में कहा जाता था—
प्रकृति अँधेरे में थी,
प्रकृति के नियम अँधेरे में थे,
तब न्यूटन पैदा हुए
और चारों ओर उजाला हो गया।
गुरुत्वाकर्षण का प्रसिद्ध सिद्धांत, जिसके अनुसार पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है, न्यूटन ने स्थापित किया था। न्यूटन का महान् ग्रंथ ‘प्रिंसिपिया’ विश्वप्रसिद्ध है, जिसमें उनके गति-नियमों (Laws of Motion) की व्याख्या है। इसके अतिरिक्त उन्होंने और भी अनेक खोजें की थीं।
प्रस्तुत पुस्तक में न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक महत्त्वपूर्ण संदर्भों एवं घटनाओं तथा उनके स्वभाव, व्यवहार व प्रवृत्तियों का ब्योरेवार वर्णन है। विश्वास है, इसे पढ़कर पाठकगण सर आइजक न्यूटन के जीवन से संबंधित अनेक तथ्यों एवं संदर्भों को जान सकेंगे।
Albert Einstein by Vinod Kumar Mishra
अल्बर्ट आइंस्टाइन
महान् भौतिक विज्ञानी एवं ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित अल्बर्ट आइंस्टाइन का जीवन अत्यंत जटिल रहा, उनके जटिल समीकरणों से भी अधिक जटिल। लेकिन चौथे आयाम को ढूँढ़नेवाले आइंस्टाइन का जीवन बहुआयामी था।
दु:खों ने उनके जीवन को कुंदन की तरह दमकाया। वे अंतिम समय तक कल्याणकारी कार्यों में जुटे रहे। उन्हेंने ऐसे कार्य किए जिन पर आगे कार्य करके वैज्ञानिक डॉक्टरेट, फैलोशिप एवं अन्य पुरस्कार पाते रहे।
उन्हें बच्चों, छात्रों एवं गरीबों से बहुत प्यार था। वे उनके लिए कार्य करने के आविष्कारी तरीके ढूँढ़ते रहते थे। अपने हस्ताक्षरों, फोटो, शोधपत्र, संदेशों को बेचकर उन्हेंने उन लोगों के लिए आवश्यक साधन जुटाए। वे अत्यंत विनोदप्रिय थे।
आइंस्टाइन न्यूटन के समतुल्य वैज्ञानिक थे। ब्रूनो एवं गैलीलियो की तरह साहसिक, सादगी में महात्मा गांधी के जैसे, यहूदियों के मसीहा एवं श्रीकृष्ण की तरह कर्मयोगी थे। उनका एक-एक गुण उन्हें महान् बनाने के लिए पर्याप्त था।
प्रस्तुत पुस्तक में आइंस्टाइन के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर खोजपरक दृष्टि डाली गई है। विश्वास है, इस असाधारण व्यक्तित्व की जीवन-गाथा पाठकों के लिए रोचक, प्रेरक व उपयोगी साबित होगी।
Ramayana Ki Kahaniyan by Harish Sharma
रामायण की कहानियाँ
‘रामायण’ भारतीय पौराणिक ग्रंथों में सबसे पूज्य एवं जन-जन तक पहुँच रखनेवाला ग्रंथ है। रामकथा की पावन गंगा सदियों से हिंदू जन-मानस में प्रवाहित होती रही है। भारत ही नहीं, संसार भर में बसनेवाले हिंदू रामायण के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं।
रामकथा का प्रसार और प्रभाव इतना व्यापक है कि इससे संबंधित कथाओं-उपकथाओं की चर्चा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है। रामकथा इतनी रसात्मक है कि बार-बार सुनने-जानने को मन सदैव उत्सुक रहता है।
विद्वान् लेखक ने पुस्तक को इस उद्देश्य के साथ लिखा है कि हमारी नई पीढ़ी भारतीय संस्कार, आदर्श एवं जीवन-मूल्यों को आत्मसात् कर सके। इन कहानियों में पर्वतों, नदियों, नगरों, योद्धाओं के पराक्रम, शस्त्रास्त्रों एवं दिव्यास्त्रों, मायावी युद्धों के साथ-साथ ऋषियों, महर्षियों एवं राजर्षियों के पावन चरित्रों का वर्णन अत्यंत सरल भाषा में किया गया है।
विश्वास है, प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर इसके आदर्शों, सदाचारों एवं सद्गुणों का अपने जीवन में अनुकरण-अनुसरण करेंगे।
Field Marshal Sam Manekshaw by Shubhi Sood
एयर मार्शल के.सी. करिअप्पा (से.नि.) ने सन् 1957 में भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त किया। उनकी तैनाती 20 नं. स्क्वाड्रन में हुई, जहाँ वह छह वर्ष तक रहे। नवंबर 1963 में वह चेन्नई के फ्लाइट इंस्ट्रक्टर्स स्कूल से स्नातक हुए। 22 सितंबर, 1965 को शत्रु के ठिकानों पर आक्रमण के दौरान दुश्मन ने उनका विमान मार गिराया। वह युद्धबंदी बना लिये गए और 22 जनवरी, 1966 को मुक्त हुए।
युद्ध में लगे घावों के कारण करिअप्पा कुछ अरसे तक लड़ाकू विमान उड़ाने में असमर्थ करार दिए गए। इस दौरान उन्होंने तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष के सहायक के रूप में कार्य किया। बँगलादेश के स्वाधीनता संग्राम के अंत तक वह इसी यूनिट में रहे। युद्ध में अदम्य वीरता के प्रदर्शन के लिए उन्हें वायुसेना मेडल से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1994 में उनकी पदोन्नति एयर मार्शल के पद पर हुई। इसी वर्ष जोधपुर के दक्षिण-पश्चिम वायु कमान के कमांडर-इन-चीफ नियुक्त हुए। भारतीय वायुसेना में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति ने जनवरी 1965 में ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’ से सम्मानित किया। जनवरी 1996 में सेवानिवृत्त।
करिअप्पा अंतरराष्ट्रीय व सैन्य मामलों के गहन अध्येता हैं और इन विषयों पर वह निरंतर लेख लिखते रहे हैं।
Bindas Bandar Aur Batuni Baraat by Indu Ranchan
बिंदास बंदर और बातूनी बारात
बचपन से ही हम—मैं, मेरी बड़ी बहन और छोटा भाई—अपने नाना से, यानी अपने बाईजी से उनकी अपनी शैली में और विशेष भावुकता से बताई अकबर-बीरबल की प्रचलित कहानियों को बहुत उत्सुकता से सुनते थे। इनके अलावा उनके हुक्के की गुड़गुड़ाहट भरे कशों के साथ कई तात्कालिक मन-गढ़ी कथाओं में हम हर शाम लालसा और कशिश से लीन हो जाते। मुझे लगता है कि कहानियों की रचना में मेरी रुचि मेरे नाना की देन है।
ग्यारह साल की उमर से जब मैंने अपनी बहन और भाई को बिना पूर्व कल्पना के धारावाही ढंग से खुद-ब-खुद बहती जाती कहानियाँ बतानी शुरू कीं, तब वे हर रोज़ कहानी की अगली कड़ी का बेकली से इंतज़ार करते—ऐसा चसका लग गया था हम तीनों को! मेरी स्वाभाविक ही प्रमुख वृत्ति हँसी और दिल्लगी में थी।
अभी हाल ही में बच्चों की माँग पर मुझे खड़े पैर कहानी बुनते पा, मेरी बेटी रन्नए ने मुझे बच्चों के लिए हिंदी में कहानियाँ लिखने का सुझाव दिया। इसीलिए उसकी प्रेरणा से उपजी ‘बिंदास बंदर और बातूनी बारात’ की झाँकी साक्षात् आपके सामने है।
Kaise Sanwaren Bachchon Ka Bhavishya by Shyama Chona
बचपन और अभिभावकता एक सिक्के के दो पहलू हैं, एक-दूसरे के पूरक हैं । जिस प्रकार श्रेष्ठ और आदर्श अभिभावकता के बिना बच्चों के सुखद व उज्ज्वल भविष्य की नींव नहीं डाली जा सकती उसी प्रकार बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने व उनके उज्ज्वल भविष्य की चिंता किए बिना अभिभावता की सार्थकता नहीं । बच्चों के बहुमुखी विकास व उत्थान के लिए अभिभावकों को प्रेम और व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता है, जिनसे उनके नन्हे भविष्य को अपना व्यक्तित्व निखारने में सहायता मिलती है । सही अभिभावकता के लिए समय का उचित प्रयोग और निरंतर प्रयास नितांत आवश्यक है । माता-पिता के सुखद व सामंजस्यपूर्ण व्यवहार और आचार-विचार से बच्चों में अनोखे व्यक्तित्व का विकास होता है ।
इस पुस्तक में अभिभावकों, छात्र- छात्राओं की समस्या, मार्गदर्शन, शिक्षकों की अहम भूमिका तथा पारिवारिक वातावरण से संबंधित अनुभवों का रोचक वर्णन है । इसमें नकारात्मक स्वभाव, अपने साथी से ईर्ष्या एवं द्वेष- भावना और अनुशासनहीनता आदि बच्चों के स्वाभाविक विकारों को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए तथा साथ ही किस अनावश्यक नियंत्रण का त्याग करना चाहिए-इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है ।
यह पुस्तक युवा अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है ।
Dollar Bahoo by Sudha Murthy
श्रीमती सुधा मूर्ति जी कन्नड़ भाषा की लोकप्रिय और प्रतिष्ठित लेखिका हैं । हिंदी में प्रकाशित आपका पहला उपन्यास ‘ महाश्वेता ‘ काफी लोकप्रिय सिद्ध हुआ है । दूसरा उपन्यास ‘ डॉलर बहू ‘ भी इसी प्रकार हिंदी का कंठाभरण बनेगा, ऐसी आशा है ।
शामण्णा जी शिक्षक हैं, जो साधारण परिवार के हैं । गौरम्मा उनकी धर्मप्राण धर्मपत्नी हैं । इनके दो पुत्र हुए-चंद्रशेखर और गिरीश । एक पुत्री भी है सुरभि । चंद्रशेखर को विनुता से प्रेम हो गया, पर उसे अमेरिका जाना पड़ा । इसी बीच छोटे भाई गिरीश से विनुता का विवाह हो जाता है । चंद्रशेखर का विवाह धनाढ्य घर की बेटी जमुना से हुआ । वे दोनों अमेरिका में ही रहने लगे । जमुना को डॉलर से प्रेम था । गौरम्मा भी सर्वगुण- संपन्न विनुता की अपेक्षा जमुना को डॉलर के कारण अधिक चाहती थी ।
फिर गौरम्मा अपने बेटे और बहू के पास अमेरिका चली जाती है । बहुत दिनों तक वहाँ रहने पर गौरम्मा को अपनी डॉलर बहू और डॉलर-प्रेम से नफरत हो जाती है और वह भारत लौट आती है । अब वह विनुता को महत्त्व देना चाहती है, पर गिरीश और विनुता, दोनों घर छोड़कर अलग शहर में रहने लगे थे । इस प्रकार गौरम्मा के लिए यह कहावत चरितार्थ होती है-‘ माया मिली, न राम ‘ ।
भारत लौटकर गौरम्मा कहती है, ‘ मुझे न वह स्वर्ग चाहिए न वह सुख! हमारा वतन सुंदर है; हमारा गाँव है अच्छा !’. .मुझे तो विनुता की याद सता रही है । ‘
इस उपन्यास में भारतीय अस्मिता और स्वाभिमान का पुनरुत्थान है । अमेरिका और डॉलर के चाकचिक्य से निभ्रांति इस उपन्यास का केंद्रीय बिंदु है । चरित्रांकण की मार्मिकता और शिल्प का सौष्ठव इस उपन्यास के अतिरिक्त आकर्षण हैं ।
1000 Gandhi Prashnottari by A.N. Agrawal
1000 गांधी प्रश्नोत्तरी
महात्मा गांधी विश्व के श्रेष्ठ और महान् व्यक्तित्वों में से एक थे। वे जीवन के प्रति संघर्ष करनेवाले महान् योद्धा थे। उनका जीवन-दर्शन अपने में विशिष्टता लिये हुए अनुकरणीय और पाथेय है। गांधी स्वयं में एक इतिहास हैं। उनका विराट् व्यक्तित्व, उनके जीवन-संदर्भ, उनके विचारों, आदर्शों व सिद्धांतों की व्यापकता—इन सबको आसानी से पढ़कर उन्हें आत्मसात् कर लेना आसान काम नहीं। इसके लिए गांधी के जीवन-वृत्तांत और उनके वाङ्मय की आवश्यकता होगी। किंतु प्रस्तुत पुस्तक अपने 1000 प्रश्नों के माध्यम से अत्यंत रोचकता व सुगमता से गांधीजी के जीवनेतिहास एवं जीवन-संदर्भों को उद्घाटित करती है।
इसमें गांधीजी के पारिवारिक व व्यक्तिगत इतिहास, दक्षिण अफ्रीका में उनके प्रवास-संदर्भों, राष्ट्रीय व सामाजिक आंदोलनों में उनकी भूमिका, उनके विचार व दर्शन, उनके साहित्य, उनसे संबद्ध संगठनों व संस्थाओं, समकालीन व्यक्तित्वों तथा विभिन्न जीवन-संदर्भों की जानकारी दी गई है।
1000 Khel Kood Prashnottari by Narottam Puri
सूर्य, चंद्रमा, तारे, ग्रह. नक्षत्र आदि हमेशा से हमारे लिए कौतूहल का केंद्र रहे हैं ब्रह्मांड के रहस्य प्राचीनकाल से गए वेज्ञानिकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं । कॉपरनिकस, टोलेमी, आर्यभट्ट, टाइको ब्राहे, गैलीलियो आदि आरंभिक दौर के ऐसे वैज्ञानिक हैं जिनकी ग्लैंगाहें इम खगोल को समझने के लिए आकाश पर लगी रहती थीं ।
रात्रि में जब हम आकाश की ओर देखते हैं तो प्राय : अनेक छोटे -छोटे पिंड पृथ्वी की ओर गिरते हुए दृष्टिगोचर होते हैं और ऐसा प्रतीत होता है मानो तारों की वर्षा हो रही है । मगर यह खूबसूरत दृश्य तारों की वर्षा का नहीं बल्कि उल्कापिंडों की वर्षा का होता है ।
जब चंद्रमा के धरातल पर मानव के कदम पड़े तो उसपर घर बनाने के सपने का जन्म हुआ, जिसको साकार करने के लिए कोशिशें जारी हैं । वैज्ञानिकों ने ऐसी अंतरिक्ष बस्तियों की कल्पना की है जिनमें खेत, मकान, फैक्टरी, अस्पताल, दफ्तर और मनोरंजन केंद्र होंगे- और यहाँ तक कि कृत्रिम जंगल और जलप्रपात भी ।
खगोल व अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित इसी प्रकार की रोचक और ज्ञानवर्द्धक जानकारियों को पाठकों तक पहुँचाना इस पुस्तक का उद्देश्य है ।
Ekling Ka Deewan by Manu Sharma
एकलिंग का दीवान—मनु शर्मा
फिर वह राज सिंहासन के नीचे आकर छोटे सिंहासन पर बैठ गया। बंदी जन विरुदावली कहने लगे। ब्राह्मणों ने मंगल-पाठ पढ़ा। तब महारानी ने खड़ी होकर अपने पति का लिखा पत्र सुनाया। पत्र मार्मिक था। सबने इस समय अपने पुराने शासक मानमोरी की प्रशंसा ही की। फिर पुरोहित सत्यनारायण कुछ कहने के लिए खड़े हुए—“श्रद्धेय महारानी, मान्य अतिथिगण और प्रिय मित्रो, आज बड़े हर्ष का दिन है। पूज्य महाराज मानमोरी का स्वप्न आज पूरा हो रहा है, वह भी महारानी की उपस्थिति में। प्रिय भोज का पराक्रम, उसकी प्रतिभा, उसका शौर्य, उसकी प्रजाप्रियता आप से छिपी नहीं है। युद्ध से जीतकर लाया हुआ सारा धन उसने आप सब में बाँट दिया। इससे अधिक प्रजा के प्रति उसका प्रेम और क्या हो सकता है। मेरा पूरा विश्वास है, वह सदा अपनी प्रजा को पुत्र की भाँति मानेगा। उनका दु:ख दूर करेगा और प्रजा भी उसे अपना ‘बाप्पा’ (पिता) समझेगी।…हम इस पवित्र अवसर पर इसीलिए उसे ‘बाप्पा रावल’ की उपाधि से विभूषित करते हैं। आज से यह हमारा भोज नहीं, बल्कि हमारा पूज्य ‘बाप्पा रावल’ है।”
—इसी पुस्तक से
Hamare Path Pradarshak by A P J Abdul Kalam
हमारे पथ-प्रदर्शक
मैं क्या हूँ और क्या बन सकता हूँ? वे कौन लोग थे जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपना-अपना विशिष्ट योगदान देकर मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा की? कैसे मैं इस मायावी संसार में दिग्भ्रमित हुए बिना अग्रसर हो सकता हूँ? कैसे मैं दैनिक जीवन में होनेवाले तनाव पर काबू पा सकता हूँ?
ऐसे अनेक प्रश्न छात्र तथा विभिन्न व्यवसायों से जुड़ी युवाशक्ति भारत के दूरदर्शी राष्ट्रपति से उनकी यात्राओं में अकसर पूछते हैं। राष्ट्रपति डॉ. कलाम की यह नवीनतम कृति ‘हमारे पथ-प्रदर्शक’ इन सभी प्रश्नों का उत्तर बखूबी देती है।
छात्रों एवं युवाओं हेतु प्रेरणा की स्रोत महान् विभूतियों के कृतित्व का भावपूर्ण वर्णन। कैसे वे महान् बने और वे कौन से कारक एवं तथ्य थे जिन्होंने उन्हें महान् बनाया।
अभी तक पाठकों को राष्ट्रपति डॉ. कलाम के वैज्ञानिक स्वरूप एवं प्रगतिशील चिंतन की ही जानकारी रही है, जो उनके महान् व्यक्तित्व का एक पक्ष रहा है। उनके व्यक्तित्व का दूसरा प्रबल पक्ष उनका आध्यात्मिक चिंतन है। प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. कलाम की आध्यात्मिक चिंतन-प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन है।
यह पुस्तक प्रत्येक भारतीय को प्रेरित कर मानवता का मार्ग प्रशस्त करेगी, ऐसा विश्वास है।
Krantikari Kosh – V by Shrikrishna Saral
इस श्रमसिद्ध व प्रज्ञापुष्ट ग्रंथ क्रांतिकारी कोश में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । सामान्यतया भारतीय स्वातंत्र्य आदोलन का काल 1857 से 1942 ई. तक माना जाता है; किंतु प्रस्तुत ग्रंथ में इसकी काल- सीमा 1757 ई. (प्लासी युद्ध) से लेकर 1961 ई. (गोवा मुक्ति) तक निर्धारित की गई है । लगभग दो सौ वर्ष की इस क्रांति- यात्रा में उद्भट प्रतिभा, अदम्य साहस और त्याग-तपस्या की हजारों प्रतिमाएँ साकार हुईं । इनके अलावा राष्ट्रभक्त कवि, लेखक, कलाकार, :विद्वान् और साधक भी इसी के परिणाम-पुष्प हैं ।
पाँच खंडों में विभक्त पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठों का यह ग्रंथ क्रांतिकारियों का प्रामाणिक इतिवृत्त प्रस्तुत करता है । क्रांतिकारियों का परिचय अकारादि क्रम से रखा गया है । लेखक को जिन लगभग साढ़े चार सौ क्रांतिकारियों के फोटो मिल सके, उनके रेखाचित्र दिए गए हैं । किसी भी क्रांतिकारी का परिचय ढूँढने की सुविधा हेतु पाँचवें खंड के अंत में विस्तृत एवं संयुक्त सूची (सभी खंडों की) भी दी गई है ।
भविष्य में इस विषय पर कोई भी लेखन इस प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ की सहायता के बिना अधूरा ही रहेगा ।
Krantikari Kosh – Iv by Shrikrishna Saral
इस श्रमसिद्ध व प्रज्ञापुष्ट ग्रंथ क्रांतिकारी कोश में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । सामान्यतया भारतीय स्वातंत्र्य आदोलन का काल 1857 से 1942 ई. तक माना जाता है; किंतु प्रस्तुत ग्रंथ में इसकी काल- सीमा 1757 ई. (प्लासी युद्ध) से लेकर 1961 ई. (गोवा मुक्ति) तक निर्धारित की गई है । लगभग दो सौ वर्ष की इस क्रांति- यात्रा में उद्भट प्रतिभा, अदम्य साहस और त्याग-तपस्या की हजारों प्रतिमाएँ साकार हुईं । इनके अलावा राष्ट्रभक्त कवि, लेखक, कलाकार, :विद्वान् और साधक भी इसी के परिणाम-पुष्प हैं ।
पाँच खंडों में विभक्त पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठों का यह ग्रंथ क्रांतिकारियों का प्रामाणिक इतिवृत्त प्रस्तुत करता है । क्रांतिकारियों का परिचय अकारादि क्रम से रखा गया है । लेखक को जिन लगभग साढ़े चार सौ क्रांतिकारियों के फोटो मिल सके, उनके रेखाचित्र दिए गए हैं । किसी भी क्रांतिकारी का परिचय ढूँढने की सुविधा हेतु पाँचवें खंड के अंत में विस्तृत एवं संयुक्त सूची (सभी खंडों की) भी दी गई है ।
भविष्य में इस विषय पर कोई भी लेखन इस प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ की सहायता के बिना अधूरा ही रहेगा ।
Krantikari Kosh – Ii by Shrikrishna Saral
इस श्रमसिद्ध व प्रज्ञापुष्ट ग्रंथ क्रांतिकारी कोश में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । सामान्यतया भारतीय स्वातंत्र्य आदोलन का काल 1857 से 1942 ई. तक माना जाता है; किंतु प्रस्तुत ग्रंथ में इसकी काल- सीमा 1757 ई. (प्लासी युद्ध) से लेकर 1961 ई. (गोवा मुक्ति) तक निर्धारित की गई है । लगभग दो सौ वर्ष की इस क्रांति- यात्रा में उद्भट प्रतिभा, अदम्य साहस और त्याग-तपस्या की हजारों प्रतिमाएँ साकार हुईं । इनके अलावा राष्ट्रभक्त कवि, लेखक, कलाकार, :विद्वान् और साधक भी इसी के परिणाम-पुष्प हैं ।
पाँच खंडों में विभक्त पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठों का यह ग्रंथ क्रांतिकारियों का प्रामाणिक इतिवृत्त प्रस्तुत करता है । क्रांतिकारियों का परिचय अकारादि क्रम से रखा गया है । लेखक को जिन लगभग साढ़े चार सौ क्रांतिकारियों के फोटो मिल सके, उनके रेखाचित्र दिए गए हैं । किसी भी क्रांतिकारी का परिचय ढूँढने की सुविधा हेतु पाँचवें खंड के अंत में विस्तृत एवं संयुक्त सूची (सभी खंडों की) भी दी गई है ।
भविष्य में इस विषय पर कोई भी लेखन इस प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ की सहायता के बिना अधूरा ही रहेगा ।
Krantikari Kosh -Iii by Shrikrishna Saral
इस श्रमसिद्ध व प्रज्ञापुष्ट ग्रंथ क्रांतिकारी कोश में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । सामान्यतया भारतीय स्वातंत्र्य आदोलन का काल 1857 से 1942 ई. तक माना जाता है; किंतु प्रस्तुत ग्रंथ में इसकी काल- सीमा 1757 ई. (प्लासी युद्ध) से लेकर 1961 ई. (गोवा मुक्ति) तक निर्धारित की गई है । लगभग दो सौ वर्ष की इस क्रांति- यात्रा में उद्भट प्रतिभा, अदम्य साहस और त्याग-तपस्या की हजारों प्रतिमाएँ साकार हुईं । इनके अलावा राष्ट्रभक्त कवि, लेखक, कलाकार, :विद्वान् और साधक भी इसी के परिणाम-पुष्प हैं ।
पाँच खंडों में विभक्त पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठों का यह ग्रंथ क्रांतिकारियों का प्रामाणिक इतिवृत्त प्रस्तुत करता है । क्रांतिकारियों का परिचय अकारादि क्रम से रखा गया है । लेखक को जिन लगभग साढ़े चार सौ क्रांतिकारियों के फोटो मिल सके, उनके रेखाचित्र दिए गए हैं । किसी भी क्रांतिकारी का परिचय ढूँढने की सुविधा हेतु पाँचवें खंड के अंत में विस्तृत एवं संयुक्त सूची (सभी खंडों की) भी दी गई है ।
भविष्य में इस विषय पर कोई भी लेखन इस प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ की सहायता के बिना अधूरा ही रहेगा ।
Krantikari Kosh – I by Shrikrishna Saral
इस श्रमसिद्ध व प्रज्ञापुष्ट ग्रंथ क्रांतिकारी कोश में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । सामान्यतया भारतीय स्वातंत्र्य आदोलन का काल 1857 से 1942 ई. तक माना जाता है; किंतु प्रस्तुत ग्रंथ में इसकी काल- सीमा 1757 ई. (प्लासी युद्ध) से लेकर 1961 ई. (गोवा मुक्ति) तक निर्धारित की गई है । लगभग दो सौ वर्ष की इस क्रांति- यात्रा में उद्भट प्रतिभा, अदम्य साहस और त्याग-तपस्या की हजारों प्रतिमाएँ साकार हुईं । इनके अलावा राष्ट्रभक्त कवि, लेखक, कलाकार, :विद्वान् और साधक भी इसी के परिणाम-पुष्प हैं ।
पाँच खंडों में विभक्त पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठों का यह ग्रंथ क्रांतिकारियों का प्रामाणिक इतिवृत्त प्रस्तुत करता है । क्रांतिकारियों का परिचय अकारादि क्रम से रखा गया है । लेखक को जिन लगभग साढ़े चार सौ क्रांतिकारियों के फोटो मिल सके, उनके रेखाचित्र दिए गए हैं । किसी भी क्रांतिकारी का परिचय ढूँढने की सुविधा हेतु पाँचवें खंड के अंत में विस्तृत एवं संयुक्त सूची (सभी खंडों की) भी दी गई है ।
भविष्य में इस विषय पर कोई भी लेखन इस प्रामाणिक संदर्भ ग्रंथ की सहायता के बिना अधूरा ही रहेगा ।
Feature Lekhan by P.K. Arya
स्वतंत्र पत्रकारिता अथवा फीचर लेखन अब बाकायदा एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। जिस भी व्यक्ति को शब्दों को व्यवस्थित करने की कला आ गई, समझो वह फीचर लेखन की दुनिया में सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हो गया।
ऐसे बहुत से अवसर व मुद्दे सामने आए हैं जब विभिन्न स्तंभकारों ने अपने लेखों द्वारा एक ओर न सिर्फ जनता को जागरूक ही किया, अपितु दूसरी ओर सुप्तप्राय सरकारों को भी नींद से जगाया। बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जब स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा लिखे गए लेखों पर देश में भूचाल-सा आ गया। स्वतंत्र भारत में पर्दाफाश होनेवाले विभिन्न घोटाले, भ्रष्टाचार व राष्ट्रव्यापी गबन के मामलों में यह तथ्य और भी ज्यादा प्रभावी साबित हुआ।
इइस पुस्तक में दी गई समस्त जानकारियाँ पाठकों को एक ओर जहाँ विषय की ‘थ्योरी’ का ज्ञान कराती हैं, वहीं दूसरी ओर व्यावहारिक पक्ष को प्राथमिकता देने के कारण पुस्तक की उपयोगिता को भी बढ़ाती हैं। विभिन्न फीचर्स की परिभाषाएँ एवं उनके उदाहरण देने के पीछे यही उद्देश्य है। पुस्तक को तैयार करने में विविध शोध संदर्भों,
लेखों, विवरणों, पाठ्य सामग्रियों व अन्य जानकारियों को प्रयोग में लाया गया है।
पुस्तक को उपयोगी बनाने के लिए विविध प्रसंगों में उदाहरणस्वरूप फीचर्स के कुछ नमूने प्रस्तुत किए गए हैं, ताकि पाठकगण विषय-वस्तु को और भी बेहतर ढंग से समझ सकें।
Bharatiya Parva Evam Tyohar by Rajeshwari Shandilya
भारत अनेकता में एकता का देश है। इसमें दुनिया के प्राय: सभी धर्म एवं संप्रदाय मौजूद हैं, जिन्हें हर तरह की धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है और वे अपने-अपने पर्व-त्योहार अपनी परंपरा के अनुसार मनाने के लिए स्वतंत्र हैं। हमारे पर्व या त्योहार मात्र एक उत्सव नहीं होते, जिन्हें उल्लास और उमंग के साथ मनाकर एक औपचारिकता पूरी कर दी जाती है, बल्कि अधिकांश पर्वों में एक संस्कृति, एक इतिहास और एक परंपरा निहित है।
कुछ पर्व ऐसे हैं जो अनेक स्थानों पर कई दिनों तक उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं, जैसे—मैसूर का दशहरा, कुल्लू का दशहरा या तिरुपति उत्सव आदि। पर्व एवं त्योहारों की जो अविभाज्य परिकल्पना हिंदुओं में है, वह अन्य पंथों व संप्रदायों में कदाचित् ही मिले। वास्तव में हमारी संस्कृति ही उत्सवप्रिय रही है। यह हमारे समृद्ध सांस्कृतिक जीवन एवं गहन आध्यात्मिक चिंतन का प्रतिबिंब है।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न पर्वों एवं त्योहारों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। यह अत्यंत सुगमता से विभिन्न पर्वों एवं त्योहारों से संबंधित महत्त्वपूर्ण संदर्भों व तथ्यों की जानकारी प्रदान करती है।
Garbhawati Ki Dekhbhal by Parvesh Handa
आमतौर पर यह देखा जाता है कि गर्भावस्था में गर्भवती की उचित और आवश्यक देखभाल न हो पाने के कारण अनेक ऐसी शारीरिक परेशानियाँ आ खड़ी होती हैं, जो जच्चा-बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को कुप्रभावित करती हैं। गर्भवती की आवश्यक देखभाल न हो पाने का कारण इस संबंध में जानकारी का अभाव है। यह पुस्तक इस अभाव की पूर्ति करती है। इसमें गर्भवती के स्वास्थ्य की दृष्टि से उसके खान-पान, रहन-सहन, वातावरण आदि पर बड़ी ही कुशलता से अनुभवपरक जानकारियाँ दी गई हैं। गर्भवती का आहार-विहार कैसा हो, शारीरिक परिवर्तनों की स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, साधारण और विशेष परिस्थिति में क्या करें तथा स्त्रा् जननांगों एवं स्त्रा् रोगों से संबंधित ढेरों व्यावहारिक जानकारियाँ ‘स्वस्थ माता, स्वस्थ शिशु’ की परिकल्पना को साकार करने में मदद करेंगी।
आमतौर पर यह देखा जाता है कि गर्भावस्था में गर्भवती की उचित और आवश्यक देखभाल न हो पाने के कारण अनेक ऐसी शारीरिक परेशानियाँ आ खड़ी होती हैं, जो जच्चा-बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को कुप्रभावित करती हैं। गर्भवती की आवश्यक देखभाल न हो पाने का कारण इस संबंध में जानकारी का अभाव है। यह पुस्तक इस अभाव की पूर्ति करती है। इसमें गर्भवती के स्वास्थ्य की दृष्टि से उसके खान-पान, रहन-सहन, वातावरण आदि पर बड़ी ही कुशलता से अनुभवपरक जानकारियाँ दी गई हैं। गर्भवती का आहार-विहार कैसा हो, शारीरिक परिवर्तनों की स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, साधारण और विशेष परिस्थिति में क्या करें तथा स्त्रा् जननांगों एवं स्त्रा् रोगों से संबंधित ढेरों व्यावहारिक जानकारियाँ ‘स्वस्थ माता, स्वस्थ शिशु’ की परिकल्पना को साकार करने में मदद करेंगी।
Hindu Dharm Ke Solah Sanskar by Dr. Sachchidanand Shukla
‘संस्कार’ या ‘संस्कृति’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है—मनुष्य का वह कर्म, जो अलंकृत और सुसज्जित हो। प्रकारांतर से संस्कृति शब्द का अर्थ है—धर्म। संस्कृति और संस्कार में कोई अंतर नहीं है। दोनों का एक ही अर्थ है, मात्र ‘इकार’ की मात्रा का अंतर है। हिंदू धर्म में मुख्य रूप से सोलह संस्कार हैं, जो संस्कार मनुष्य की जाति और अवस्था के अनुसार किए जानेवाले धर्म कार्यों की प्रतिष्ठा करते हैं।
हिंदू धर्म-दर्शन की संस्कृति यज्ञमय है, क्योंकि सृष्टि ही यज्ञ का परिणाम है, उसका अंत (मनुष्य की अंत्येष्टि) भी यज्ञमय है (शव को चितारूपी हवन कुंड में आहुति के रूप में हवन करना)। इस यज्ञमय क्रिया (संस्कार) में गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि क्रिया तक सभी कृत्य (संस्कार) यज्ञमय संस्कार के रूप में जाने और माने जाते हैं।
हिंदू धर्म के ये सोलह संस्कार मात्र कर्मकांड नहीं हैं, जिन्हें यों ही ढोया जा रहा है अपितु पूर्णत: वैज्ञानिक एवं तथ्यपरक हैं। उनमें से कुछ का तो देश-काल-परिस्थिति के कारण लोप हो गया है और कुछ का एक से अधिक संस्कारों में समावेश, कुछ का अब भी प्रचलन है और कुछ प्रतीक मात्र रह गए हैं, जबकि सभी सोलह संस्कारों को करना प्रत्येक हिंदू के लिए आवश्यक है।
प्रस्तुत पुस्तक में सरल-सुबोध भाषा में इन्हीं संस्कारों के औचित्य को बताया गया है। विश्वास है सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से अपनी भुलाई हुई विरासत से जुड़कर लाभान्वित होंगे।
Bharat Cheen Sambandh by Arun Shourie
भारत-चीन संबंध—अरुण शौरी
भारत-चीन संबंधों में आरोहों-अवरोहों का एक लंबा इतिहास रहा है। ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाते हुए भी सन् 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। इसके बाद भी चीन भारत के अनेक क्षेत्रों में लगातार अतिक्रमण करता रहा है। चीन के प्रति आत्मसमर्पण की स्थिति हमारी नीतियों के कारण ही है।
चीन के अतिक्रमण के लिए केवल सरकारी नीतियाँ ही जिम्मेदार नहीं रही हैं, अपितु इसके लिए अन्य कारक भी उत्तरदायी रहे हैं, जैसे—हमारे देश की पूर्णरूप से ध्वस्त हो चुकी राजनीतिक व्यवस्था; सरकारी निकायों की अत्यधिक दुर्गति, जिसके कारण इनकी क्षमता खत्म होती जा रही है। लोगों में भौतिक साधनों के प्रति आकर्षण मीडिया और उसकी ‘जीवन-शैली पत्रकारिता’ द्वारा उत्पन्न किया जाता है—तब कौन सा देश इन परिस्थितियों में अवसर तलाश नहीं करेगा? क्या चीन नहीं करेगा?
यह पुस्तक उन भ्रांतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है, जिसने पंडित नेहरू को भी भ्रमित कर दिया और जिसके फलस्वरूप देश को भारी क्षति उठानी पड़ी।
सन् 1962 की पराजय पर अब तक बहुत सा साहित्य लिखा जा चुका है; परंतु यह पुस्तक उन सबसे अलग हटकर है। इसमें केवल पंडितजी के लेखों व भाषणों के आधार पर उनकी चीन संबंधी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है।
चीनियों द्वारा हमें सिखाए गए सबक, जो हमने नहीं सीखे, उन्हें उद्घाटित कर अंतर्मंथन और पुनर्विचार करने का मार्ग प्रशस्त करती है विद्वान् पत्रकार-अरुण शौरी की पुस्तक भारत-चीन संबंध।
Safal Manager Kaise Banen by Promod Batra
सफल मैनेजर कैसे बनें—प्रमोद बत्रा
एक कुशल मैनेजर का काम किसी भी कार्य को व्यवस्थित ढंग से पूर्णता की परिणति तक पहुँचाना तथा उपलब्ध साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए अधिकाधिक उत्पाद तैयार कराना है।
एक अच्छे और सफल मैनेजर में अपने काम में निरंतर निखार तथा नई-नई प्रणालियाँ लागू करने की ललक होनी चाहिए। उसमें योग्यता और प्रतिभा के साथ-साथ धैर्य, संयम, सहन-शक्ति, वाक्चातुर्य, प्रत्युत्पन्नमति तथा दूरदर्शिता जैसे गुण भी होने चाहिए, ताकि विपरीत परिस्थितियों में भी वह उद्यमशीलता का परिचय देते हुए संस्थान की उत्तरोत्तर उन्नति कर सके।
लेखक स्वयं भारत की एक बड़ी कंपनी में लगभग चालीस वर्षों तक सफल मैनेजर रहे हैं। उन्होंने अपने उन्हीं अनुभवों को यहाँ प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत पुस्तक में एक मैनेजर के उत्तरदायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहण करने के कुछ सूत्र सँजोए गए हैं, जैसे—एक मैनेजर को दूसरों की गलतियों को नजरअंदाज करना चाहिए, उसमें क्षमाशीलता होनी चाहिए तथा अपने साथियों पर विश्वास और भरोसा होना चाहिए।
सुधी पाठक इस पुस्तक को अपनी यात्रा के दौरान, सोने से पूर्व, नाश्ते की मेज पर—कभी भी पढ़ें, बल्कि इसे अपने दैनिक कार्यों में शामिल करें तो निश्चय ही एक सफल मैनेजर बनकर सफलता के सोपान चढ़ते जाएँगे।
Bharat Ki Rashtriya Ekta by Lakshmimalla Singhvi
वि
‘भारत की राष्ट्रीय एकता’
मनुष्यता की जय-यात्रा के लिए; न्याय, स्वातंत्र्य और बंधुता के लिए मनुष्यता के सकरुण संवेदन को आत्मसात् करते हुए राष्ट्रीय एकता की आराधना करना हमारा परम कर्तव्य है। वह कर्तव्य आज हमारा राष्ट्रीय वेदवाक्य हो, अणुव्रत हो, धर्म का शासन माना जाए। न्याय के पथ से प्रविचलित हुए बिना मनुष्यता और राष्ट्रीयता के प्रति हम निष्ठा से विचार करें और तदनुरूप सच्चाई के साथ आचरण करें।
यह अद्भुत है देश जहाँ संदेश एक,
भाषा अनेक हैं,
हर भाषा में यहाँ पुरातन-अधुनातन
का होता संगम;
यह सतरंगी इंद्रधनुष का देश,
भारत की राष्ट्रीय एकता
यहाँ रंगों का उत्सव,
गूँज रहा उत्सव में जीवन के
सारे तारों पर सरगम,
वेदों-उपनिषदों का सरगम,
तीर्थंकर अरिहंत बुद्ध का,
यह आँगन नानक, फरीद, तुलसी,
कबीर का अनुपम उद्गम!
—इसी पुस्तक से
डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी बहुमुखी तथा बहुविध व्यक्तित्व के धनी थे। एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता एवं संविधानविद् होने के साथ-साथ वे एक कुशल राजनयिक, समर्पित संस्कृतिधर्मी, सहृदय मानवताप्रेमी तथा सफल लेखक-रचनाकार थे। उनका चिंतन, विचार और रचनाकर्म राष्ट्रनिष्ठ था। राष्ट्रवाद के गहरे रस में पगे उनके गद्य और पद्य के कुछ बिंब प्रस्तुत करती है भारत की राष्ट्रीय एकता।
Sampoorna Laghu Kathayen by Vishnu Prabhakar
संपूर्ण लघु कथाएँ—विष्णु प्रभाकर
उस दिन उनके घर में हर्षोल्लास का माहौल था। उन्होंने गत वर्ष जो मकान खरीदा था, उसको तोड़ने पर दीवारों में से अपार अनर्जित संपदा उन्हें प्राप्त हुई थी।
उस मकान का पूर्वकालिक स्वामी, कभी जिसके ऐश्वर्य और विलास की सीमा नहीं थी, सरकारी अस्तपाल के छोटे से कमरे में पड़ा था। वह अभी-अभी मृत्यु के मुँह से लौटा था। सभी मित्र-परिजन, यहाँ तक कि उसके पुत्र भी, उसे छोड़ गए थे। केवल उसकी पत्नी किसी स्कूल में पढ़ाकर किसी तरह उसकी देखभाल कर रही थी। घर लौटते समय उसने अपार संपदा पाए जाने का यह समाचार सुना और पति से कहा, “दीवारों में संपदा छिपी है—काश, यह बात हम जान पाते!”
पति ने धीरे से कहा, “अच्छा हुआ, जो मैं न जान पाया। मैं अब जान पाया हूँ कि मैंने मकान बेचकर सुख पाया है। उसने मकान खरीदकर सुख खोया है। पसीना बहाकर जो तुम कमाकर लाती हो, उसी ने मुझे जीवन दिया है। इससे बड़ा ऐश्वर्य कुछ हो सकता है, मैं नहीं जानता।”
मंद-मंद मुसकराते हुए पत्नी ने पति की आँखों में झाँका और उनका माथा सहलाते हुए प्यार भरे स्वर में कहा, “मैं यही सुनना चाहती थी।”
—इसी पुस्तक से
मसिजीवी रचनाकार विष्णु प्रभाकरजी ने कहानियाँ, उपन्यास, नाटक आदि ही नहीं लिखे, बल्कि विपुल मात्रा में लघुकथाएँ भी लिखी हैं। ‘देखन में छोटी लगें, घाव करें गंभीर’ को चरितार्थ करनेवाली ये लघु कथाएँ मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करती हैं और रोचक, मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद हैं।
Narega (National Rural Employment Guarantee Act) by Mahesh Sharma
नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) भारत सरकार का एक प्रमुख बेरोजगारी-उन्मूलन अधिनियम है, जो सीधे-सीधे गरीबों की ज्ंिादगी से जुड़ा है और स्थायी ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन देता है। यह विश्व में अपनी तरह का पहला अधिनियम है, जिसके तहत ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार की गारंटी दी गई है।
इस अधिनियम के अंतर्गत जो योजनाएँ बनाई जाती हैं, वे स्थायी ग्राम-िवकास से जुड़ी होती हैं, जिससे कि ग्राम-िवकास के साथ-साथ स्थानीय वयस्क बेरोजगारों को रोजगार भी सतत मिलता रहे। अधिनियम के बेजोड़ पहलुओं में समयबद्ध रोजगार गारंटी और 15 दिन के भीतर मजदूरी का भुगतान जैसी विशेषताएँ शामिल हैं। इसके अलावा इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि रोजगार शारीरिक श्रम (मजदूरी) पर आधारित हो, जिसमें ठेकेदारों और मशीनों का कोई हस्तक्षेप न हो।
प्रस्तुत पुस्तक में नरेगा के बारे में व्यापक जानकारी दी गई है; जैसे—बेरोजगार ग्रामीणजन पंजीकरण कैसे कराएँ? जॉब कार्ड कैसे बनवाएँ? बेरोजगारी भत्ता कैसे पाएँ? कोई अधिकारी परेशान करे तो शिकायत कहाँ और कैसे करें? आवेदक के क्या-क्या अधिकार हैं? पुस्तक में इसी तरह के अनेक सवालों के जवाब भी दिए गए हैं और इस अधिनियम की पूरी जानकारी सरल शब्दों में दी गई है। इस दृष्टि से यह पुस्तक न केवल ग्रामीणजन के लिए, बल्कि जिज्ञासु पाठकों के लिए भी उपयोगी एवं जानकारीपरक है।
Best Of Gemini Haryanvi by Gemini Haryanvi
बेस्ट ऑफ जैमिनी हरियाणवी
चुके नहीं इतना उधार है
महँगाई की अलग मार है
तुम पर बैठे हैं गणेशजी
हम पर तो कर्जा सवार है।
चूहे, तुमको नमस्कार है।।
भक्तजनों की भीड़ लगी है
खाने की क्या तुम्हें कमी है
कोई देवे लड्डू, पेड़े
भेंट करे कोई अनार है।
चूहे, तुमको नमस्कार है।।
परेशान जो मुझको करती
पत्नी केवल तुमसे डरती
तुम्हें देखकर हे चूहेजी
चढ़ जाता उसको बुखार है।
चूहे, तुमको नमस्कार है।।
कुरसी है नेता का वाहन
जिस पर बैठ करे वह शासन
वहाँ भीड़ है तुमसे ज्यादा
यह कुरसी का चमत्कार है।
चूहे, तुमको नमस्कार है।।
—इसी संकलन से
प्रस्तुत संकलन में हिंदी व्यंग्य-कविता के स्थापित हस्ताक्षर श्री जैमिनी हरियाणवी के रचना-संसार की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का रसास्वादन कर सुधी पाठक सोचेंगे-विचारेंगे, गुनगुनाएँगे और फिर हँसी से लोट-पोट हो जाएँगे।
Safalta Ke 400 Sutra by Y. Sunder Rajan
सफलता के 400 सूत्र
भारत में अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को अति आदर्शवादी पाठ पढ़ाते हैं, सीख देते हैं। ऐसे पाठ और सीख, जिन पर वे स्वयं विश्वास नहीं करते हैं या जो हमारे वास्तविक जीवनानुभवों पर आधारित नहीं होते। इन सब से युवाओं को अपने व्यावहारिक जीवन में कोई लाभ नहीं होता।
प्रतियोगी परीक्षाओं का दबाव, फिर रोजगार की तलाश, रोजगार मिलने पर उसमें बने रहने का दबाव और अपने वरिष्ठों से तालमेल बैठाने का दबाव अकसर युवाओं को इतना निचोड़ लेता है, दिग्भ्रमित कर देता है कि वे गंभीरतापूर्वक कुछ सोच नहीं पाते।
प्रस्तुत पुस्तक मूल रूप से सभी आयुवर्ग के पाठकों, विशेषकर युवाओं, के लिए है कि वे अपने जीवन के बारे में सोच सकें, समस्याओं एवं चुनौतियों का सामना कर सकें, अपने लिए बेहतर भविष्य निर्माण कर सकें तथा अपने इच्छित कार्यों में अधिकाधिक सफलता पा सकें। इसमें जीवन के यथार्थों एवं वास्तविकताओं को व्याख्यायित किया गया है।
अत्यंत सरल-सुबोध भाषा में लिखी व्यावहारिक पुस्तक सूत्र बताकर सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगी। व्यक्तित्व विकास पर एक संपूर्ण पुस्तक।
Katha Puratani Drishti Adhuniki by Kusum Patoria
कथा पुरातनी, दृष्टि आधुनिकी
प्रस्तुत पुस्तक की कथाओं में लोककथा के तत्त्व सन्निविष्ट हैं। इनमें एक ओर समाज का निरावरण चित्र है तो दूसरी ओर अस्वाभाविकता की सीमा तक अतिरंजना है।
वेद शिष्ट जनों का साहित्य है, तो पुराण लोक-साहित्य। परंपरानुसार दीर्घकालीन सत्रों में पुरोहित पुराणों की कथाएँ सुनाकर यजमान व इतर अभ्यागतों का मनोरंजन किया करते थे।
‘कथा पुरातनी : दृष्टि आधुनिकी’ इन्हीं पुराणों की कुछ चुनी हुई कथाओं की आधुनिक संदर्भ में व्याख्या है। प्रश्न हो सकता है कि क्या ये कथाएँ आज के पाठक का मनोरंजन करने में समर्थ हैं? तो भले ही इनके प्रतीकात्मक अर्थ कुछ भी हों, पर इन कथाओं की प्रासंगिकता आधुनिक संदर्भ में और भी आवश्यक है।
यद्यपि इस संग्रह की अधिकांश कथाएँ वैदिक पुराणों से हैं, फिर भी कुछ कथाएँ बौद्ध जातकों व जैन पुराणों व जैनागमों के टीका ग्रंथों से भी ली गई हैं। इनमें नीति व सदाचार की कथाएँ मुख्य हैं। सांप्रदायिक सद्भाव को इंगित करती हुई भी अनेक कथाएँ हैं, अनेक कथाएँ सदाचार व नैतिकता का संदेश देती हैं।
कथाएँ पौराणिक हैं, उनकी व्याख्या की चेष्टा आधुनिकी है।
Safalata Ke 501 Gurumantra by Pramod Batra
सफलता के 501 गुरुमंत्र—प्रमोद बत्रा
इस तरह तय की हैं हमने मंजिलें,
गिर गए, गिरकर उठे, उठकर चले।
हम में से प्रत्येक महान् कार्य कर सकता है। सफलता की राह में मुश्किलें आती हैं, गिर-गिरकर सँभलना होता है और एक दिन मंजिल हमारे निकट होती है। परंतु सफलता का पहला सिद्धांत है काम—अनवरत काम। जीवन में सफलता पाने के लिए धैर्य को अपना घनिष्ठ मित्र, अनुभव को अपना बुद्धिमान परामर्शदाता तथा सावधानता को अपना बड़ा भाई बना लो—और आशा को अपना संरक्षक बनाना न भूलो।
सफल मनुष्य वही है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने ऊपर फेंकी गई ईंटों से सुदृढ़ नींव और भवन खड़ा करता है। हम सबको अपने लक्ष्यों को सामने रखकर अपनी स्वयं की सफलताओं-विफलताओं पर ध्यान देना चाहिए और अपनी गलतियों को सुधारकर पुन:-पुन: आगे बढ़ना चाहिए।
विद्वान् लेखकद्वय ने प्रस्तुत पुस्तक में जीवन की सफलता के 501 गुरुमंत्रों को सँजोया है। जैसे—
â जो भी करना है, अभी करें।
â अपने समय का धन की तरह प्रबंधन करें।
â समस्याओं को दबाएँ, अवसरों को उभारें।
â प्रशंसा सार्वजनिक रूप से करें, निंदा अकेले में करें।
â जरूरतें खत्म हो सकती हैं, लालच नहीं।
आशा है, सुधी पाठक इन गुरुमंत्रों का अध्ययन-चिंतन कर अपने जीवन को नई दिशा प्रदान करेंगे।
Apna Deepak Swayam Banen by Sudha Murthy
प्रख्यात कन्नड़ लेखिका श्रीमती सुधा मूर्ति साहित्य एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में अपने अनुपम योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपने बचपन में सुनी कहानियों में से कुछ कहानियों में निहित आदर्शों को अपने अनुभव के आधार पर इस पुस्तक की कहानियों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अपने कार्य के दौरान वे अनेक बच्चों से मिली हैं, जो अपने मन में कई सपने, कई आकांक्षाएँ सँजोए रहते हैं।
हमारे देश में विभिन्न धर्मों, भाषाओं, बोलियों एवं संस्कृति को विशाल और बृहत् रूप में देखा जा सकता है। ये सभी आपस में एकसूत्र में गुँथे हुए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘अपना दीपक स्वयं बनें’ में सदाचार, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता आदि शिष्टाचार सिखानेवाली अनुभवजन्य कहानियाँ संकलित हैं। लेखिका ने अपने अध्यापकीय जीवन के सच्चे एवं जीवंत अनुभवों को इसमें उड़ेलने का महती प्रयास किया है।
हमें विश्वास है, यह पुस्तक बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी सच्चरित्र, निर्णय-सक्षम, उदार बनाने एवं जीवन-पथ पर प्रगति की राह में अग्रसर रहने में उनका मार्गदर्शन करेगी।
Dwandwa by Sudha Murthy
मुकेश का सगा भाई जिंदा है क्या ? अगर है तो कहाँ है? उसे ढूँढना चाहिए । अपने जीवन की गाथा उसे सुनानी है । इस विशाल संसार में सिर्फ वे ही दोनों एक-दूसरे से रक्त से जुड़े हैं ।
जीवन की घटनाएँ विचित्र रूप ले रही थीं । तीन दिन पहले वह रूपिंदर-सुरिंदर का पंजाबी मुंडा था । बीस दिन पहले वह त्रिवेदीजी -सुमन का इकलौता बेटा था । लक्ष्मीपुत्र था । भारतीय था । आज वह भारत का भी नहीं है । इस भूमि का, इस देश का, इस संस्कृति का नहीं है । अब वह अमेरिकी है!
– द्वंद्व’ से
” मुझे आपसे कुछ पूछना है । अच्छा, पहले यह बताइए कि शंकर मेरा कुछ नहीं लगता, फिर हम दोनों हमशक्ल कैसे हैं ?
” माँजी, एक सवाल पूछूँ? बुरा तो नहीं मानेंगी? शंकर के पिता का देहांत हुआ कैसे? उनके मरण में बहुत राज छिपे हैं । जहाँ तक मेरी समझ है, मेरे पिताजी का कोई रिश्तेदार इस इलाके में नहीं रहा । न पहले थे, न अब हैं । हम लोग शुरू से ही दिल्ली में रहे ।..
‘ तर्पण ‘ से
सुप्रसिद्ध कन्नड़ लेखिका श्रीमती सुधा मूर्ति के ये दोनों पठनीय सामाजिक उपन्यास पाठकों की संवेदनशीलता और मर्म को भीतर तक छू जाएँगे ।
Punya Bhoomi Bharat by Sudha Murthy
पुण्यभूमि भारत
सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती सुधा मूर्ति के ये प्रेरक संस्मरण भारतीय संस्कृति, जीवन-मूल्यों और संस्कारों से हमारा परिचय कराते हैं। भावपूर्ण शैली और बेहद पठनीय ये अनुकरणीय प्रसंग जहाँ हमें अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण कराते हैं, वहीं उज्ज्वल भविष्य की ओर हमें उन्मुख करते हैं। यही वे मूल्य हैं जो भारत को ‘पुण्यभूमि’ बनाते हैं।
Cancer Par Vijay Kaise Prapta Karen by Vrinda Sitaram
कैंसर का नाम सुनते ही साक्षात् मृत्यु नजर आने लगती है। यह एक ऐसा रोग माना जाता है, जो लाइलाज और अत्यंत कष्टकर होता है। इसके संबंध में फैली तमाम भ्रांतियों से न केवल रोगी बल्कि उसके परिजन, मित्रजन व संबंधी भी अज्ञात भय में जीते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में कैंसर विशेषज्ञ लेखिका डॉ. वृंदा सीताराम ने लीक से हटकर कैंसर से जूझने, उसे पराजित करने के लिए कुछ अलग ही तथ्य, व्यवहार एवं विधियाँ सुझाई हैं। पुस्तक कैंसर के मरीजों, उनके परिजनों व मित्रों को इस रोग को सहज और खेल-भावना से लेने की सोच अपनाने तथा विकसित करने की सलाह देती है—एकदम व्यावहारिक व वस्तुपरक।
अत्यंत उपयोगी पुस्तक जो कैंसर-पीड़ितों के लिए सच्चा साथी और मित्र साबित होगी।
Dene Ka Anand by bill Clinton
देने का आनंद
प्रस्तुत पुस्तक ‘देने का आनंद’ बिल क्लिंटन का विश्व समुदाय के प्रति मानव-सेवा का आह्वान है। यह एक प्रेरणादायी पुस्तक है, जो विश्व में बदलाव लाने के लिए हर क्षेत्र के व्यक्ति को प्रेरणा देती है—चाहे वह विशिष्ट व्यक्ति हो या आम। सर्वप्रथम, इस पुस्तक में कंपनियों, संगठनों तथा व्यक्तियों द्वारा समस्याओं के समाधान और अपने आस-पास से लेकर समूचे विश्व तक लोगों का जीवन बचाने की दिशा में किए जा रहे असाधारण और नवीन प्रयासों की जानकारी दी गई है।
इस पुस्तक में श्री क्लिंटन ने कुछ गंभीर एवं जटिल विषयों पर अपनी गहन व व्यापक दृष्टि डाली है। उन्होंने उस नन्ही लड़की की भूरि-भूरि प्रशंसा की है, जिसने ‘बीच’ से गंदगी, कूड़ा-करकट हटाया। वहीं ऐसे अरब-खरबपतियों की भी सराहना की है, जो छात्रवृत्ति के लिए धनराशि देते हैं तथा गरीब देशों को माइक्रो-क्रेडिट ऋण देते हैं। इस पुस्तक में दान के विभिन्न स्वरूपों को उजागर किया गया है। इनमें क्लिंटन ने परोपकार एवं मानव-सेवा की अनेक कथाओं को वर्णित किया है। अधिकांश कथाओं को सुखांत दरशाया गया है। यदि प्रत्येक व्यक्ति समय या धन का दान दे, मदद करे, तो हम एक शानदार और खुशहाल दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।
क्लिंटन कहते हैं—“हर किसी में कुछ-न-कुछ देने की क्षमता होती है। मुझे आशा है कि इस पुस्तक में वर्णित चरित्रों तथा कथाओं-उपकथाओं से जन-मानस की अंतरात्मा का विकास होगा। इसकी विषय-वस्तु पाठकों के हृदयों को छू लेगी।”
पुस्तक का सार है कि नागरिकों की सक्रियता और सेवाभाव द्वारा विश्व को सहजता से बदला जा सकता है।
Vijayi Bhav by Dr.A.P.J. Abdul Kalam/Arun Tiwari
विजयी भव
हम भारतीयों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी जरूरी संसाधन पर्याप्त मात्रा में देश में उपलब्ध हैं। हमारे यहाँ बहुत सी नीतियाँ और संस्थाएँ हैं। चुनौती है तो बस शिक्षकों, विद्यार्थियों और तकनीक-विज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर एक दिशा में चिंतन करने की।
प्रस्तुत पुस्तक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में चिंतन के विविध आयामों को खोलती है, अनेक व्यावहारिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है और कई महत्त्वपूर्ण प्रश्न पाठकों के सामने रखती है। डॉ. कलाम देश के छात्र व युवा-शक्ति को भावनात्मक, नैतिक एवं बौद्धिक विकास की ओर प्रवृत्त होने का संदेश देते हैं। वैज्ञानिक और तकनीकी खोजों को सही ढंग से मनुष्य के विकास में उपयोग करने के विचार को बल देते हैं।
विजयी भव डॉ. कलाम के भारत को महाशक्ति बनाने के स्वप्न को दिशा देनेवाली कृति है। इसमें शिक्षा व शिक्षण की पृष्ठभूमि, मानव जीवन-चक्र, परिवारों के सदस्यों के बीच पारस्परिक संबंध, कार्य की उपयोगिता, नेतृत्व के गुण, विज्ञान की प्रकृति, अध्यात्म तथा नैतिकता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।
यह कृति डॉ. कलाम की पूर्व प्रकाशित पुस्तकों की श्रृंखला की महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जो हमें सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में अपनी प्रवीणताओं और कुशलताओं के साथ विजयी होने की प्रेरणा देती है।
Jeevan Leela by Renu Rajvanshi Gupta
जीवन लीला
मैं उनकी निगाहों में जीवन का नाप-तौल देख रही थी। क्या कहीं कोई लगाव, मोह, आसक्ति बची है? इतनी पीड़ा के बाद प्राण कहीं अटके हुए हैं। जब भी आंटी की बेचैनी बढ़ती, आंटी पापा-मम्मी को बुला भेजतीं—और मम्मी-पापा का हाथ कसकर पकड़े रहतीं। पापा मन बहलाने के लिए मजाक करते या उनका मनोबल बढ़ाते तो आंटी बस मुसकराकर रह जातीं। डॉक्टर, हकीम, वैद्य सब जवाब दे चुके हैं। आंटी की तड़प जब घर के लोगों से देखी नहीं गई तो उन्हें अस्पताल में रखा गया। मम्मी बार-बार उनसे पूछतीं, ‘प्रीति, मन कहाँ अटक गया है? सेवा कर रहे बेटे-बेटी का जीवन बीच जंगल में खड़ी रेलगाड़ी की तरह ठहर गया है। भाई साहब जा ही चुके हैं। कौन सा ऐसा सूत्र है जिसे तुम छोड़ नहीं पा रही हो?’
उत्तर में आंटी अपने निरीह, भोले-भाले बेटे आनंद की ओर देखतीं, जो धन-लोलुप भेड़ियों के बीच खड़ा है। आंटी का होना मानो आनंद के लिए ढाल है। चूँकि संपत्ति आंटी के नाम है, अत: कोई कुछ कर नहीं सकता है। यदि वे चली गईं तो बेटे को तो लोग जीते-जी मार देंगे। न पत्नी इसकी, न ही बेटा पास और माँ भी चली गई तो?…
—इसी पुस्तक से
अमेरिका में रह रहे भारतवंशियों की सामाजिक व्यथा-कथा का ऐसा मार्मिक प्रस्तुतीकरण, जो भुलाए न भूले। वहाँ की पारिवारिक-सामाजिक विसंगतियों व विद्रूपताओं को दरशाती हृदयस्पर्शी कहानियाँ।
Gurudev by Dinkar Joshi
गुरुदेव
उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से पूछा, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?”
“हाँ, जब मैं कविता लिखता हूँ, उस समय मुझे ईश्वर का साक्षात्कार होता है।” टैगोर ने उत्तर दिया।
“ईश्वर के अस्तित्व होने का यह कोई प्रमाण नहीं। ईश्वर के अस्तित्व का आप कोई प्रमाण दे सकते हैं?”
“इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है, जिसके बारे में हम कुछ जानते ही नहीं हैं; किंतु इसी कारण ये सब नहीं हैं, ऐसा नहीं कह सकते।”
“भारत के स्वातंत्र्य के लिए इस समय जो संघर्ष चल रहा है, उसके बारे में आपको क्या कहना है?”
“राजनीतिक स्वातंत्र्य के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है; लेकिन राजनीतिक स्वातंत्र्य से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बौद्धिक स्वातंत्र्य है। स्वतंत्र भारत यदि बौद्धिक गुलामी में पड़ा रहा तो राजनीतिक स्वातंत्र्य व्यर्थ हो जाएगा। सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक जागृति अधिक महत्त्वपूर्ण है।”
“राष्ट्रभाषा के विषय में आपके क्या विचार हैं?”
“राष्ट्र एक ऐसी यांत्रिक व्यवस्था है, जिससे राजनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हैं। इसकी बुनियाद संघर्ष और विजय हैं। इसमें सामाजिक सहयोग के लिए कोई स्थान नहीं है।”
—इसी उपन्यास से
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात विभूति और भारतीय साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र थे। वे मनीषी, कवि और अपने समय के अग्रगण्य रचनाकार थे। उनका जीवन अनेक त्रासदियों, विडंबनाओं, उपलब्धियों एवं सुख-दु:खों का मिला-जुला रूप था। प्रस्तुत उपन्यास उनके महान् जीवन की गाथा है।
Gandhi Laute by Manu Sharma
गांधी लौटे
अध्ययन और आस्था के साथ आकर्षक शैली में लिखी गई यह पुस्तक ‘गांधी लौटे’ जब हमारे जैसे गांधी-सेवकों के पास पहुँचती है तो विशेष प्रसन्नता होती है। लेखक श्री मनु शर्मा ने ‘फैंटेसी’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इस विधा का प्रयोग इस पुस्तक को अधिक रुचिकर बना देता है, जिसके कारण गंभीर दार्शनिक विषय भी सहज पठनीय बन जाता है। इसके लिए लेखक विशेष सराहना के पात्र हैं।
वाराणसी के ‘आज’ समाचार-पत्र के लिए स्तंभ के रूप में लिखे गए इन लेखों में स्वाभाविक ही उस समय की घटनाओं का जिक्र आ जाता है, जो उस समय की राष्ट्रीय व सामाजिक गतिविधियों को प्रस्तुत करता है। गांधी-विचार के विविध पहलुओं को लेखक ने इतने सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है कि हर कोई इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहेगा।
—निर्मला देशपांडे
(प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक)