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Yugpurush Dr. Rajendra Prasad by Tara Sinha
डॉ.राजेंद्र प्रसाद की यह संक्षिप्त जीवनी बिहार के एक छोटे से गाँव के मध्यमवर्ग परिवार से आए एक ऐसे व्यक्ति के संघर्षों एवं उपलब्धियों की मोहक कहानी प्रस्तुत करती है, जिसकी असाधारण मेधा, तीक्ष्ण बुद्धि, विलक्षण प्रतिभा, कड़े परिश्रम और निःस्वार्थ सेवा-कार्यों ने उसे देश के शीर्ष नेताओं की पंक्ति में ला खड़ा किया।
देशरत्न राजेंद्र बाबू की पारिवारिक पृष्ठभूमि, गाँव में बीता बाल्यकाल, उपलब्धियों से भरा विलक्षण विद्यार्थी जीवन, अल्पकाल तक चला वकालत पेशा, चंपारन सत्याग्रह के दौरान गांधीजी के नेतृत्व में महत्त्वपूर्ण सेवा कार्य, तदनंतर वकालत त्याग देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का निर्णय, स्वतंत्रता सेनानी के कंटकाकीर्ण मार्ग का अनुसरण, कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपूर्व संगठन शक्ति का परिचय, फिर अंतरिम सरकार में खाद्य मंत्री के दायित्व का कुशल निर्वहन, संविधान-सभा अध्यक्ष की हैसियत से संविधान निर्माण में अहम भूमिका, भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में बारह वर्षों तक देश का योग्य मार्गदर्शन और अवकाश प्राप्ति उपरांत पूर्व कर्मभूमि पटना सदाकत आश्रम में बिताए गए अर्थपूर्ण अंतिम नौ महीने—तथ्यों, तारीखों सहित राजेंद्र बाबू के घटनापूर्ण जीवन का संपूर्ण समग्र ब्योरा संक्षेप में प्रस्तुत कर देना इस पुस्तक की विशेषता है।
देश के नवजागरण और नवनिर्माण में अहम भूमिका निभानेवाले भारत के एक सच्चे सपूत की पठनीय प्रामाणिक जीवन-गाथा।
Yugpurush Jaiprakash Narayan by Uma Shanker Verma
युगपुरुष जयप्रकाश नारायण—सं. उमाशंकर वर्मा
जयप्रकाश नायक स्वदेश की
करुणा भरी कहानी का,
वह प्रतीक है स्वतंत्रता-हित
व्याकुल बनी जवानी का;
पाठ पढ़ाया है उसने हमको
निर्भय हो जीने का,
दीन-दुखी संतप्त मनुजता के
घावों को सीने का;
—
हे जननायक!
तुम धन्य हो!
तुमने जो कुछ भी किया है,
जो कुछ भी दिया है,
उसे किसी कीमत पर
हम खोने नहीं देंगे।
अपने खून का एक-एक कतरा
देकर भी हम उसकी रक्षा करेंगे।
—
हे क्रांतिदूत, हे वज्र पुरुष,
हे स्वतंत्रता के सेनानी;
जय-जय जनता, जय-जय स्वदेश,
यह अडिग तुम्हारी ही बानी!
दे स्वतंत्रता को परिभाषा
मन वचन कर्म की, जीवन की;
तुमने जन-जन को सिखलाया
आहुति होती क्या तन-मन की!
—
जयप्रकाश का बिगुल बजा,
तो जाग उठी तरुणाई है,
तिलक लगाने, तुम्हें जगाने
क्रांति द्वार पर आई है।
कौन चलेगा आज देश में
भ्रष्टाचार मिटाने को
बर्बरता से लोहा लेने,
सत्ता से टकराने को
आज देख लें कौन रचाता
मौत के संग सगाई है।
—इसी पुस्तक से
जनक्रांति झुग्गियों से न हो जब तलक शुरू,
इस मुल्क पर उधार है इक बूढ़ा आदमी।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के क्रांतिकारी व्यक्तित्व की झलक देतीं सूर्यभानु गुप्त की उपरोक्त पंक्तियाँ बतलाती हैं कि आम जन में परिवर्तन के सपने को जयप्रकाश नारायण ने कैसे रूपाकार दिया था। युगपुरुष जयप्रकाश में प्रसिद्ध कवि, संपादक उमाशंकर वर्मा ने हिंदी के ऐसे सैकड़ों कवियों की कविताएँ संकलित की हैं, जिन्होंने जयप्रकाश के क्रांतिकारी उद्घोष को सुना और उससे उद्वेलित हुए।
भगीरथ, दधीचि, भीष्म, सुकरात, चंद्रगुप्त, गांधी, लेनिन और न जाने कैसे-कैसे संबोधन जे.पी. को दिए कवियों ने। उन्हें याद करते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सही कहा कि ‘इस देश की संस्कृति का जो कुछ भी उत्तम और वरेण्य है, वह उनके व्यक्तित्व में प्रतिफलित हुआ है।’
आरसी प्रसाद सिंह, इंदु जैन, उमाकांत मालवीय, कलक्टर सिंह केसरी, जगदीश गुप्त, जानकी वल्लभ शास्त्री, धर्मवीर भारती, पोद्दार रामावतार अरुण, बालकवि बैरागी, बुद्धिनाथ मिश्र, रामधारी सिंह दिनकर, कुमार विमल, नीरज आदि प्रसिद्ध कवियों-गीतकारों सहित सैकड़ों रचनाकारों की लोकनायक के प्रति काव्यांजलि को आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
—कुमार मुकुल
Yuva Bharat Ki Nayi Pahachaan by N. Raghuraman
अकसर सुनने को मिलता है—‘युवा भारत की नई पहचान’। अगर आप किसी ऐसे युवा के साथ अपने को शामिल नहीं करते, जो आपके परिवार का न हो या आपके मित्र का पुत्र न हो, पूरी तरह से अपरिचित हो, तो यह पंक्ति हमेशा एक तटस्थ लगाव पैदा करती है।
भारत विश्व का सबसे ज्यादा युवा शक्तिवाला देश है। वर्ष 2020 में विश्व के सर्वाधिक युवा भारत के निवासी होंगे। प्रस्तुत पुस्तक में बहुत से उदाहरणों के द्वारा बताया गया है कि वास्तव में युवा ही इस देश का भविष्य हैं। बस, उन्हें आपसे और हमसे थोड़ा सहयोग चाहिए होता है। इसके बाद वे बड़े-बड़े चमत्कार कर सकते हैं। यह पुस्तक जीवन के ऐसे ही विभिन्न पहलुओं से ली गई कहानियों का संग्रह है।
युवा शक्ति को दायित्व-बोध करवाकर उनकी क्षमताओं और प्रतिभा को विकसित करनेवाली एक प्रेरक पुस्तक।
Yuvavstha Mein Hi Retirement Planning by kshitij Patukale
‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब!’ यह उक्ति दूसरी अन्य चीजों की अपेक्षा जीवन के लिए आर्थिक नियोजन के संबंध में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। मूलतः नियोजन शब्द का अर्थ है—कल के उज्ज्वल भविष्य के लिए किए जानेवाले आज के यत्न! स्वाभाविक है—सेवानिवृत्ति के बाद जरूरी खर्चों का प्रावधान उन्हीं दिनों में करना चाहिए, जब हम कमाते हैं। ऐसे विचार यह कृति ‘युवावस्था में ही रिटायरमेंट प्लानिंग’ पढ़ते समय सरल, आसान और तर्कसंगत लगते हैं—वैसे हैं भी!
समस्या केवल यही है कि हम लोग यह विचार प्रत्यक्ष व्यवहार में नहीं लाते! यौवनकाल में जीवन का आनंद लूटना, कमाई के आरंभिक दिनों में उत्सव मनाना, इसमें गलत क्या है? लेकिन जीवन की शुरुआत में हमें स्वयं को शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक रूप से कार्यक्षम बनाने में 15-20 वर्ष खर्च करने पड़ते हैं। बीस वर्ष प्राप्त होते ही कमाई आरंभ कर, निवृत्त होने के समय तक अपनी आय में लगातार वृद्धि करना, वृद्धि में सातत्य रखने के लिए कला-कौशल्य में खुद को अद्यतन रखना जरूरी होता है, यह बात हम भूल जाते हैं।
रिटायरमेंट के बाद के जीवन की आर्थिक प्लानिंग बताती एक अत्यंत प्रैक्टिकल पुस्तक।
Yuvi Cricket Ka Yuvraj by Makrand Vegankar
पिछले एक दशक से युवराज सिंह के लिए क्रिकेट खेल-प्रेमियों का जो प्यार व दीवानगी देखने को मिली है, उसकी तुलना अन्य किसी खिलाड़ी के प्रशंसकों से नहीं की जा सकती। बात चाहे उनकी जोशीली बल्लेबाजी, बल्लेबाज को भ्रमित करनेवाली गेंदबाजी की हो या शानदार फील्डिंग की। युवराज सिंह सदा ही बल्ले और गेंद के साथ अपने कौशल, मैदान के बाहर अपनी ग्लैमरस जीवन-शैली और सबसे अधिक हाल ही में प्राणघातक बीमारी से अपनी साहस से भरपूर लड़ाई के कारण चर्चा का विषय बने रहे।
यहाँ पर उनके जीवन की सभी महत्त्वपूर्ण घटनाओं को कागज पर उतारने के पहले व अनूठे प्रयास का जिम्मा जाने-माने खेल पत्रकार व क्रिकेट प्रशासक मकरंद वैंगनकर ने सँभाला है। वैंगनकर युवराज सिंह को उनके जन्म के दिन से जानते हैं। इस पुस्तक में उन्होंने युवराज के एक अबोध बालक से लेकर युवा खिलाड़ी बनने तक की सभी महत्त्वपूर्ण घटनाओं को याद करने के साथ उनके प्रारंभिक खेल जीवन के उतार-चढ़ाव का भी उल्लेख किया है।
इस पुस्तक को तैयार करने में युवराज सिंह के अभिभावकों के अतिरिक्त उनके मित्रों, सहकर्मियों व वरिष्ठ खिलाडि़यों का भी भरपूर योगदान है। इस पुस्तक को वैंगनकर ने अपनी गहन अंतर्दृष्टि तथा इस विषय के साथ गहरे लगाव को आधार बनाते हुए लिखा है। एक युवा खिलाड़ी के जीवन को गहराई से जानने और शुरुआती दौर से लेकर उसके विश्व कप 2011 के विजेता बनने की सभी रोचक बातों को जानने के संदर्भ में यह पुस्तक किसी अनमोल खजाने से कम नहीं है। हमें पूर्ण विश्वास है कि पाठकों के बीच यह पुस्तक अपना विशेष स्थान बनाने में अवश्य ही सफल होगी।
Zanjeeren Aur Deewaren by Shriramvriksha Benipuri
जंजीरें फौलाद की होती हैं, दीवारें प्तत्थर की । किंतु पटना जेल में जो दीवारें देखी थीं, उनकी दीवारें भले ही पत्थर- सी लगी हों, थीं ईंट की ही ।
पत्थर की दीवारें तो सामने हैं – चट्टानों के ढोंकों से बनी ये दीवारें । ऊपर- नीचे, अगल-बगल, जहाँ देखिए पत्थर- ही-पत्थर । पत्थर-काले पत्थर, कठोर पत्थर, भयानक पत्थर, बदसूरत पत्थर ।
किंतु अच्छा हुआ कि भोर की सुनहली धूप में हजारीबाग सेंट्रल जेल की इन दीवारों का दर्शन किया । इन काली, कठोर, अलंघ्य, गुमसुम दीवारों की विभीषिका को सूर्य की रंगीन किरणों ने कुछ कम कर दिया था । संतरियों की किरचें भी सुनहली हो रही थीं । हाँ अच्छा हुआ, क्योंकि बाद के पंद्रह वर्षों में न जाने कितनी बार इन दीवारों के नीचे खड़ा होना पड़ेगा ।
किसीने कहा है, सब औरतें एक- सी । यह सच हो या झूठ, किंतु मैं कह चुका हूँ सब जेल एक-से होते हैं । सबकी दीवारें एक-सी होती हैं, सबके फाटक एक-से दुहरे होते हैं, सबमें एक ही ढंग के बड़े-चौड़े ताले लटकते होते हैं, सबको चाबियों के गुच्छे भी एक-से झनझनाते हैं और सबके वार्डर, जमादार, जेलर, सुपरिंटेंडेंट जैसे एक ही साँचे के ढले होते हैं-मनहूस, मुहर्रमी; जैसे सबने हँसने से कसम खा ली हो ।
किंतु हजारीबाग का जेल अपनी कुछ विशेषता भी रखता है । सब जेल बनाए जाते हैं अपराधियों को ध्यान में रखकर, हजारीबाग सेंट्रल जेल की रचना ही हुई थी देशभक्तों पर नजर रखकर ।
-इसी पुस्तक से
Zen Buddhism and Its Relation to Art by Arthur Waley
Chapters include: Zen Buddhism; Buddhist Sects; Buddhapriya; Later Development of Zen; The Zen Masters; Fashionable Zen; Obaku; Baso; Rinzai; Zen and Art; and, The Rokutsuji School.Books on the Far East often mention a sect of Buddhism called Zen. They say that it was a “school of abstract meditation” and that it exercised a profound influence upon art and literature; but they tell us very little about what Zen actually was, about its relation to ordinary Buddhism, its history, or the exact nature of its influence upon the arts.
Zen by Jerome Bixby
IT’S difficult, when you’re on one of the asteroids, to keep from tripping, because it’s almost impossible to keep your eyes on the ground. They never got around to putting portholes in spaceships, you know—unnecessary when you’re flying by GB, and psychologically inadvisable, besides—so an asteroid is about the only place, apart from Luna, where you can really see the stars.
Zimedari Ki Shakti by Suresh Mohan Semwal
यदि हम सभी अपनी सोचने की दिशा तथा अपनी आदतों में परिवर्तन करें तो हमारी जिंदगी की दशा और दिशा, दोनों में परिवर्तन हो सकता है। किसी ने सच ही कहा है, ‘ईश्वर चुनता है कि हम किन परिस्थितियों से गुजरेंगे, परंतु हम चुनते हैं कि हम इन परिस्थितियों से कैसे गुजरेंगे।’
जिस तरह एक अँधेरे कमरे में अँधेरा भगाने के लिए प्रकाश लाना आवश्यक है, उसी प्रकार जिंदगी से उदासी, दु:ख, जलन, क्रोध, तनाव आदि को दूर करने के लिए हमें अपना मानसिक स्विच ऑन करना होगा, जिससे हम अपनी सोच एवं आदतों में परिवर्तन करके अपने जीवन को सुखमय बना सकें; और हम व हमारा परिवार ईश्वर की बनाई इस खूबसूरत सृष्टि का भरपूर आनंद ले सकें।
अब सवाल यह है कि सोच में परिवर्तन कैसे लाया जाए? उसका एक तरीका, जो समझ में आता है, वह है—अपनी वर्तमान गतिविधियों, आदतों एवं सोच के प्रति जागरूकता पैदा करना; और इसी जागरूकता को पैदा करने की पहल इस पुस्तक में की गई है। इसे पढ़ें और आनंद के साथ वह सब हासिल करें, जो आप करना चाहते हैं।
Zimmedari Responsibility by P.K. Arya
अगर आपको ज्यादा-से-ज्यादा काम सौंपा जाता है तो यकीन मानिए, आप एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं, क्योंकि जिम्मेदारी उसी को मिलती है, जो उन्हें निभा सकता है। जिम्मेदारियों को अगर आप बोझ की तरह लेंगे तो ये आपको तोड़कर रख देंगी। इनसे मुँह मोड़ना आपको असफलताओं के गर्त में धकेल देगा।
जिम्मेदारियाँ मनुष्य के जन्म लेते ही उसके साथ जुड़ जाती हैं। परिवार, समाज और देश जिम्मेदारियों के सही निर्वहण से ही चल सकता है। एक की जिम्मेदारी दूसरे की ताकत और सफलता बनती है। दूसरे की जिम्मेदारी तीसरे की सफलता और ताकत बनती है। इस तरह यह श्रंखलाबद्ध ढंग से सफलता की सीढ़ियों का निर्माण करती है, जिन पर चढ़कर व्यक्ति, समाज और देश तरक्की करते हैं। अतः एक की जिम्मेदारी दूसरे से जुड़ी है और सबकी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहण ही व्यक्तिगत और सामूहिक सफलता की गारंटी है।
जिम्मेदार व्यक्ति ही महान् बनते हैं और जिम्मेदारियाँ ही व्यक्ति को महान् बनाती हैं। आप भी निश्चित ही महान् बनना चाहेंगे—प्रस्तुत पुस्तक आपका इसी दिशा में मार्गदर्शन करेगी।
Zindagi by Sanjay Sinha
जिस पहली महिला ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था, वो मेरी माँ ही थी। मैं माँ को कभी खुद से दूर नहीं होने देना चाहता था, इसलिए मैंने चारपाँच साल की उम्र में माँ से कहा था कि मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। माँ हँस पड़ी थी, कहने लगी कि मैं तुम्हारे लिए परीलोक की राजकुमारी लाऊँगी। मैं कह रहा था कि माँ, तुमसे सुंदर कोई और हो ही नहीं सकती।
मृत्यु से एक रात पहले माँ ने मुझे बताया था कि वो कल चली जाएगी। मैंने माँ से पूछा था, तुम चली जाओगी, फिर मैं अकेला कैसे रहूँगा। माँ ने कहा था, मैं तुम्हारे आसपास रहूँगी। हर पल।
कहते हैं रामकृष्ण परमहंस को पत्नी में माँ दिखने लगी थी। एक औरत में माँ का दिखना ही चेतना का सबसे बड़ा सागर होता है। संसार की हर औरत को इस बात के लिए गौरवान्वित होने का हक है कि वो माँ बन सकती है। उसके पास अपने भीतर से एक मनुष्य को जन्म देने का माद्दा है। उसे बहुधा इस काम के लिए किसी पुरुष की भी दरकार नहीं।
शादी के बाद जो भी मेरी पत्नी से मिला, सबने कहा ये तुम्हारी माँ का पुनर्जन्म है।
विरोधाभासों और कल्पनाओं के अथाह समंदर का नाम जिंदगी है।
Zindagi Ka Bonus by Sachchidanand Joshi
‘जिंदगी का बोनस’ जीवन के कुछ ऐसे अनोखे पलों का दस्तावेज है जो अनायास आपकी झोली में आ गिरते हैं, लेकिन फिर आपकी स्थायी निधि बन जाते हैं। ये पल आपको हँसाते भी हैं, गुदगुदाते भी हैं और वक्त पड़ने पर आपको चिकोटी भी काटते हैं। कभी आँखें नम कर जाते, तो कभी आह्लाद की अनुभूति कराते हैं। ‘कुछ अल्प विराम’ और ‘पलभर की पहचान’ के बाद रम्य रचनाओं की ये तीसरी प्रस्तुति है जो अपनी तरह का एक अनूठा प्रयोग है। जीवन का कौन सा पल कब आपके लिए क्या संदेश लाएगा, कहा नहीं जा सकता। इन पलों को सँजोकर रखना इसलिए जरूरी है। ‘जिंदगी का बोनस’ एक धरोहर बनकर जीवन के आनंद को तो बढ़ाएगा ही, साथ ही मानवीय संबंधों की अमूल्य निधि भी साथ दे जाएगा।
Zindagi Ke 78 Kohinoor by Mrityunjay Kumar Singh
जीवन में होने वाली घटनाएँ हमेशा हमें कुछ-न-कुछ सिखाकर हमारा ज्ञान, अच्छाई और तजुर्बा बढ़ाती हैं। जीवन में कभी-कभी अच्छाई के लिए मनुष्य को कुछ-न-कुछ त्याग करना पड़ता है। जीवन में अच्छाई की यह शिक्षा इनसान को प्रकृति से मिली है। प्रकृति के प्रत्येक कार्य में सदैव भलाई की भावना निहित दिखाई पड़ती है। नदियाँ अपना जल स्वयं न पीकर दूसरों की प्यास बुझाती हैं। वृक्ष अपने फल दूसरों को अर्पित करते हैं। बादल पानी बरसाकर धरती की प्यास बुझाते हैं। सूर्य तथा चंद्र भी अपने प्रकाश को दूसरों में बाँट देते हैं। इसी प्रकार अच्छे इनसान का जीवन भलाई में ही लगा रहता है। जीवन में हर इनसान छोटे-छोटे कार्य करके अनेक प्रकार की अच्छाई संसार में कर सकता है। भूखे को रोटी खिलाकर, अशिक्षितों को शिक्षा देकर, जरूरतमंद को दान देकर, प्यासे को पानी पिलाकर व अबलाओं तथा कमजोरों की रक्षा कर अच्छाई की जा सकती है।
—इसी पुस्तक से
भारत के सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास से गहरे लगाव के कारण कोरोना काल में फुर्सत के पलों में तैयार पुस्तक ‘जिंदगी के 78 कोहिनूर’ में घटनाओं और प्राप्त अनुभवों के आधार पर जिंदगी की वास्तविकता को जैसा लेखक ने समझा है, उन्हें दृढ़ संकल्प, साफ नीयत और अटल निष्ठा के साथ स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
मेरा यह पहला प्रयास आपके सामने है। यह कैसी बन पड़ी है, इसका निर्णय आपको करना है।
Zindagi Ki Pathshala by N. Raghuraman
चमचमाती इमारतों और अन्य सुविधाओं की बजाय संवेदनशील लोग ही दुनिया को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाते हैं।
दृढ संकल्पित व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे लोगों की ईश्वर भी मदद करता है।
अगली पीढ़ी को समग्र रूप से मजबूत बनाने के लिए स्कूल, माता-पिता और नीति-निर्माताओं को पूरी शिक्षा प्रणाली में शारीरिक शिक्षा को भी शामिल करना होगा। संतुलित विकास से ही हम सक्षम नई पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं।
कोई भी व्यक्ति इनोवेटर बन सकता है, यदि उसकी बुनियाद मजबूत है और आधारभूत चीजों के बारे में उसे पूरी स्पष्टता है।
जिंदगी में लंबी रेस का घोड़ा बनना है
तो पहले कॅरियर बनाइए, पैसा अपने आप
आ जाएगा।
पेड़ तो आपको लगाना ही चाहिए, लेकिन युवा मनों में शिक्षा के बीज भी बोइए; क्योंकि इनसे मिला फल पेड़ों से मिलनेवाले फलों से ज्यादा मीठा होता है।
—इसी संग्रह से
प्रसिद्ध मोटिवेशन गुरु एवं शिक्षक श्री एन. रघुरामन के दीर्घकालीन अनुभव का निचोड़ हैं ये सूत्र, जो ‘जिंदगी की पाठशाला’ में आपको सफल होने और अभीष्ट पाने में मदद करेंगे।
Zindagi Na Milegi Dobara by N. Raghuraman
मानव के रूप में हम न केवल अपनी संतानों की देखभाल करते हैं, बल्कि एक यंत्र ‘बुद्धि’ हमारे अंदर समूचे ग्रह, समूची पारिस्थितिकी, प्रकृति की समूची भेंट की देखभाल करने की शक्ति के रूप में विद्यमान है। और यही यंत्र ‘बुद्धि’ मशीनें बना सकती है, जो किसी को बचा सकती हैं तथा किसी को भी नष्ट कर सकती हैं।
ईश्वर की बनाई कोई अन्य प्रजाति इतनी शक्तिशाली, इतनी दयालु और इतनी चामत्कारिक नहीं है। जीवन निश्चित रूप से एक ही बार मिलता है। और हम में से हर कोई किसी खास उद्देश्य के लिए ईश्वर का दूत बनकर इस पृथ्वी पर आया है। हमारा कार्य उस उद्देश्य का पता लगाना और अपने जीवन को उसकी प्राप्ति में लगाना है।
इस पुस्तक में उन लोगों के बारे में बताया गया है, जो उस उद्देश्य का पता लगा पाए और जीवन को उसी दिशा में मोड़ पाए, जिससे उन्हें ही नहीं बल्कि उनके आसपास के सारे जगत् को प्रसन्नता मिली। अत: जो कुछ करना है, वह इसी जन्म में करना है। जीवन की वास्तविकता और उसके अस्तित्व मात्र का ज्ञान करानेवाली पुस्तक, जो हमें कर्मशील बनाएगी।
Zindagi Unlimited by Zeenat Ara
वह कोई साधारण लड़की नहीं थी, बल्कि बहुत अलग और दिलचस्प लड़की थी। वह आज भी जिंदगी को पूरी तरह से जीने में यकीन करती है और एक भी पल ऐसा नहीं जाने देती, जिसका वह मजा न लेती हो। वह विकलांगता (एस.एम.ए.) से पीडि़त तो थी, लेकिन इसमें वह कुछ नहीं कर सकती थी और सोचने तथा बोलने के अलावा, वह उन बच्चों की तरह थी, जो अपनी सारी जरूरतों के लिए अपनी माताओं पर निर्भर होते हैं। वह भी दूसरों पर निर्भर थी, लेकिन उसने अपनी विकलांगता को अपनी खुशी की राह में कभी आड़े नहीं आने दिया।
उसे खुद नहीं पता था कि खुदा ने आखिरकार उसे बनाने में और उसे सुंदर लड़की के रूप में बड़ा करने में कुछ समय लगाया होगा। उसने कभी अपनी खूबसूरती पर ध्यान नहीं दिया। हालाँकि बाद में, उसे दूसरों से ही यह पता लगा। लोग उसकी तारीफ करते थे और उसे सराहते थे, जिससे उसे यकीन हुआ कि वह सबसे खूबसूरत इनसानों में से एक है। वह एक लाल गुलाब की तरह है, जिसमें खुदा ने सुंदर सुगंध भर दी है।
एक दिव्यांग लड़की की प्रेरणाप्रद कहानी कि कैसे विषम परिस्थितियों में उसने हिम्मत न हारकर, अपनी अद्भुत जिजीविषा के बल पर जिंदगी को मजे से जीया और अपनी शारीरिक अक्षमताओं को बाधा नहीं बनने दिया।
Zindagi Xxl by Abhishek Manoharchanda
हमारे देश में दो चीजें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं—एक टेक्नोलॉजी का रोग और दूसरा मोटे लोग। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मोटे लोगों में हम भारतवासी तीसरे नंबर पर आ गए हैं। कहते हैं लगभग 135 करोड़ लोगों में 10 प्रतिशत लोग मोटे हैं, यानी 135 लाख लोग और ये कहानी इन 135 लाख लोगों में से ही एक ‘बकुर नारायण पांडे’ की है।
बकुर बेढोल शरीर और असाधारण रूप का एक ऐसा इनसान है, जिसके शरीर में कैल्शियम, आयरन से ज्यादा आत्मविश्वास की कमी है, वो समाज और संसार के नजरिए से बन चले आदर्शवादी जीवन में कहीं ठीक नहीं बैठ पाता। इन वजहों से बकुर की जिंदगी में हास्य से लेकर गंभीरता तक अनेक परिस्थितियाँ पैदा होती हैं। हर क्षेत्र में असफलताओं के झुंड में घिरे बकुर को, उसका परिवार, मोहल्ला, सब—एक बार सफलता की चौखट तक पहुँचता देखना चाहते हैं, जो बकुर के लिए लगभग असंभव है। कोई इनसान जब सामान्य इनसानों के आदर्शवादी ढाँचे से किसी भी मायने में अलग होता है तो या तो उसका मजाक बनता है या फिर वो इनसान आदर्श बनता है। इसी ऊँच-नीच से भरी बकुर की जिंदगी में पैदा होती अनेक परिस्थितियों की रोमांचक और अत्यंत पठनीय कहानी है ‘जिंदगी XXL’।
Zirahanama by Kanak Tiwari
आजादी के मूल्य युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ कुछ लोग गुलामों के नेता थे। उन्होंने शेर की माँद में घुसकर शेर को मारने के गुर सीखे थे। उन्हें विवेकानंद, गांधी, दयानंद सरस्वती, अरविंद, रवींद्रनाथ, तिलक, मौलाना आजाद, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष बोस, राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश, राजेंद्र प्रसाद वगैरह कहा जाता है। इनकी आँखों में उनके लिए आँसू के सपने थे, जिनके घरों के आस-पास मोरियाँ बजबजाती हैं; जिनकी बेटियाँ शोहदों द्वारा देश-विदेश में बेची जाती हैं; जिनकी देह में खून कम और पसीना ज्यादा झरता है; जो किसी सभ्य समाज की बैठक में शरीक होने के लायक नहीं समझे जाते; जो जंगलों में जानवरों की तरह व्यवस्था और विद्रोहियों—दोनों के द्वारा बोटी-बोटी काटे जाते हैं; जिन्हें आजादी ‘स्व-राज’ के अर्थ में मिलनी थी, उनमें ‘स्व’ ही नहीं बचा; जिन्हें विवेकानंद ‘सभ्य अजगर’ कहते थे, वे ही गांधी के अंतिम व्यक्ति को कीड़े-मकोड़े समझकर लील रहे हैं।
—इसी पुस्तक से
समाज की विद्रूपताओं के दंश को अपनी कलम से उकेरनेवाले वरिष्ठ कलमकार कनक तिवारी विगत पचास वर्षों से निरंतर लेखन में रत हैं। समाज, राजनीति, शिक्षा, प्रशासन, सरकार, संस्थान, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिस पर इन्होंने झकझोर देनेवाले विचार न व्यक्त किए हों। पाठक के अंतर्मन को स्पर्श करनेवाली पठनीय कृति।
Zuleika Dobson by Max Beerbohm
The passage of time has conferred a dark power upon Beerbohm’s ostensibly light and witty Edwardian satire.