Hindi Literature
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Kalpit Kathayen by Dr. Rekha Dwivedi
इस पुस्तक की असली हकदार तारावती की किसी ने हत्या कर दी। उसका हत्यारा पकड़ा भी नहीं गया। जब यह बात मुझे पता चली तो कई रातों तक मैं सो नहीं पाई। आज भी इस पुस्तक पर कार्य करते-करते मुझे तारावती की मीठी और अपने ही अंदाज में कहानी कहती आवाज बार-बार सुनाई पड़ती है।
तारावती को ढेरों कहानियाँ याद थीं। एक यात्रा के दौरान रात में वह कथाएँ सुना रही थी और मैं अपने फोन में उन्हें रिकॉर्ड करती जा रही थी। यह बात शायद तारा को क्या, तब मुझे भी पता नहीं थी कि मैं इन्हें प्रकाशित करवाऊँगी; परंतु तारावती के गुजरने के बाद मेरे लिए इन कहानियों को प्रकाशित करवाना बेहद महत्त्वपूर्ण हो गया, क्योंकि मुझे लग रहा है कि शायद वह इन कथाओं में ही थोड़ी जीवित रह जाएगी।
वह जितनी अच्छी कथावाचक थी, उतनी ही अच्छी गायिका भी। वह ढोलक पर गीत भी खूब गाती थी।
यह पुस्तक तारावती को ही समर्पित है।
Kalptaru by Gurudev Nandkishore Shrimali
अमृत मंथन से कल्पतरु वृक्ष उत्पन्न हुआ जिसे इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले आए, क्योंकि कल्पतरु सभी कामनाओं को पूर्ण कर सकता है। जहाँ कामनाएँ पूर्ण होती हैं, वही स्वर्ग है; और उसे पाने के लिए अनंत काल से संघर्ष चल रहा है। देवता और दानव आपस में युद्धरत हैं स्वर्ग पर अधिकार पाने के लिए; और पृथ्वी पर मनुष्य कोशिश में लगा है कि उसकी कामनाएँ कैसे पूर्ण होंगी?
कल्पतरु की सबको चाह है। इसके मिलने के बाद गालिब की तरह कहना नहीं पड़ेगा कि हजारों ख्वाहिशें ऐसी…क्योंकि ख्वाहिशें-कामनाएँ पूरी हो रही हैं।
वैसे भी, इंद्र इंद्रियजनित सुखों की पराकाष्ठा को निरूपित करते हैं; इसलिए उन्हें हमेशा ही तप से खतरा रहा है।
इंद्र की तरह आपने भी यही समझा है कि योग और भोग एक साथ नहीं रह सकते हैं। परंतु शक्ति इस नियम का अपवाद हैं। उन्होंने योगी शिव से विवाह कर उन्हें गृहस्थ बनाया है, सकल जगत् की कामनापूर्ति का उत्तरदायित्व लिया है, और फिर वही शक्ति क्षुधा, कामना रूप में हर प्राणी में स्थित है।
इसलिए कल्पतरु खास है। वह विश्वास दिलाता है कि जो माँगोगे, वही मिलेगा। यह विश्वास पुरुषार्थ को जीवंत, सक्रिय कर देता है। जीवन पूर्ण लगने लगता है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
आओ, साकार करें उपनिषद् की यह शांति प्रार्थना कल्पतरु के सान्निध्य में।
Kalyankari Shiv by Anand Payasi
गवान् शिव पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण संपूर्ण क्षेत्र में इसीलिए पूज्य हैं, क्योंकि वे सहज उपलब्ध हैं; और उनके पूजन के लिए किसी बड़े साधन या धन या ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। शिव प्रेम के भूखे हैं, आडंबर के नहीं। इसी कारण वे अमीर-गरीब सभी के आराध्य हैं। यदि ‘शिव’ का पूजन करना है तो जल सभी जगह उपलब्ध है; उनको अर्पित करने के लिए बेलपत्र, मदार का फूल, कनेर के फूल, धतूरे के फूल, धतूरे के फल भी सुगमता से मिल जाते हैं। यानी महादेव शिव का वंदन करना सर्वसुलभ है।
‘शिव’ का मतलब ही है—सबका कल्याण करनेवाला, पालक, नियंता और कल्याणकारी। इसी उद्देश्य को लेकर यह ‘कल्याणकारी शिव’ पुस्तक लिखी गई है। यह आपके अंदर की भक्ति को जाग्रत् करेगी और आप शिवमय हो उनके होने का अनुभव कर पाएँगे।
Kamar Dard: Karan Aur Bachav by Dr. Raju Vaishya
कमर दर्द : कारण और बचाव
आधुनिकता एवं विलासिता के कारण कमर दर्द ने आज भयानक महामारी का रूप ले लिया है। कमर दर्द की व्यापकता का सबसे बड़ा कारण अनुपयुक्त जीवन-शैली है, जिसमें वांछित सुधार करके हम इस कष्ट से बच सकते हैं। ऐसे अनेक उपाय हैं जिनकी मदद से कमर दर्द को नियंत्रण में रखकर सामान्य एवं सक्रिय जीवन का आनंद लिया जा सकता है। लेकिन जानकारियों के अभाव में लोग कमर दर्द के अभिशाप से मुक्त नहीं हो पाते।
इस पुस्तक का उद्देश्य कमर दर्द, उसकी रोकथाम और उसके इलाज के संपूर्ण पहलुओं की सही और वैज्ञानिक जानकारी देना है। पुस्तक में कमर दर्द से बचाव के तरीकों के अलावा उसके उपचार की विभिन्न पद्धतियों की विस्तार से व्याख्या की गई है।
विश्वास है, वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक्स सर्जन डॉ. राजू वैश्य द्वारा लिखित यह व्यावहारिक पुस्तक लोगों को कमर दर्द से निजात दिलाने में सहायक सिद्ध होगी।
Kamta Prasad Singh ‘Kaam’ Pratinidhi Rachnayen by Dr. Rashim Singh/ Dr. Vyas Mani Tripathi
साहित्य-सृजन, राजनीति और समाज-सेवा के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ दिग्दर्शन करानेवाले कामता प्रसाद सिंह ‘काम’ का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अनुपम है। स्वतंत्रता-संग्राम के दृढ़वती सैनिक के रूप में जहाँ उनका योगदान अविस्मरणीय है, वहीं स्वतंत्र भारत में राजनीतिक तथा सामाजिक सेवाओं के लिए भी उनका नाम श्रद्धास्पद है। इन्हीं के बीच उनकी साहित्य साधना का अमृत वरदान भी है, जो उनको साहित्य-जगत् में गौरव-गरिमा से अभिमंडित करता है।
‘काम’ जी की साहित्यिक प्रतिभा बहुमुखी थी। निबंधकार, कहानीकार और कवि होने के साथ-साथ वे डायरी लेखक तथा यात्रा-वृत्तांतकार भी थे। घर, गाँव और देहात पर लिखे गए उनके निबंधों में जहाँ व्यक्ति व्यंजकता है, वहीं दूसरी ओर वस्तुनिष्ठ निबंधों में चिंतन की गंभीरता है। ‘मेरा घर’, ‘मेरा गाँव’ तथा ‘हमारा देहात’ में ‘मैं’, ‘मेरा’ तथा ‘हमारा’ का जो घटाटोप है, उससे तो यही लगता है कि ‘स्व’ केंद्रित लेखन है और लेखक सिर्फ अपनी बात कहता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसमें निजता के साथ-साथ ‘लोक’ और ‘समाज’ की भी उपस्थिति है। मानवीय मूल्यों का बोध और सौंदर्य-चेतना को जाग्रत् रखने का विधान ‘काम’ जी के लगभग सभी निबंधों में है।
Kamyab Hona Hi Hai by pt. Vijay Shankar Mehta
‘कामयाब होना ही है’ विद्यार्थियों के लिए एक अत्यंत प्रेरक और मार्गदर्शक पुस्तक है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए केवल किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है; बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है क्योंकि इन्हीं में सारे सांसारिक ज्ञान निहित हैं। इनका अनुसरण और अनुपालन कर प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, व्यावहारिक—हर स्तर पर मनचाही सफलता हासिल कर सकता है।
इस पुस्तक में विद्यार्थियों के शैक्षिक विकास के साथ-साथ मानसिक व भावनात्मक विकास हेतु छोटे-छोटे रोचक व प्रेरक प्रसंग दिए गए हैं, जो कथा-किस्सों के माध्यम से उनके सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
विद्यार्थियों के लिए एक उपयोगी और संग्रहणीय पुस्तक, जो जीवन के प्रत्येक कदम पर उनकी सभी समस्याओं व कठिनाइयों का त्वरित हल प्रस्तुत करने को सदैव तत्पर रहेगी।
सफलता के नए सोपान खोलनेवाली पठनीय प्रेरक पुस्तक।
Kamyabi Unlimited by Brian Tracy
इस पुस्तक ‘कामयाबी Unlimited’ में विमान यात्रा के रूपक का इस्तेमाल किया गया है। इससे आप अधिक बड़ी उपलब्धि, आनंद तथा आत्म-तुष्टि के मार्ग की ओर अग्रसर होने के लिए नक्शा तैयार कर सकते हैं।
इन सिद्धांतों को अपनाकर ब्रायन स्वयं बेहद गरीबी से ऊपर उठकर अमीरी तक पहुँचे। निजी उपलब्धियों की बदौलत ब्रायन ने 46 देशों के 40 लाख लोगों को सफलता के गुर सिखाए और दुनिया के गिने-चुने ‘सफल गुरु’ की श्रेणी में आ गए। जिन लोगों ने ब्रायन का फॉर्मूला अपनाया, उनके जीवन में तत्काल बदलाव आया तथा जीवन के हर क्षेत्र में सतत विकास हुआ।
सबसे बड़ी खबर यह है कि सफलता कोई किस्मत, परिवर्तन या रहस्यमय शक्तियों का विषय ही नहीं है। बस, यों समझिए कि हवाई जहाज की उड़ान (फ्लाइट) की तरह है। अगर हवा की गति सामान्य और अनुकूल रहेगी तो विमान तेजी से उड़ेगा, अगर प्रतिकूल और तूफानी हवा रहेगी तो फिर देर होगी। लेकिन कुशल पायलट विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने कौशल से उन नियमों का इस्तेमाल करके गंतव्य तक पहुँच जाता है, जो उड़ान को सफलतापूर्वक सही दिशा में ले जाते हैं। सफलता इससे अलग नहीं है।
‘कामयाबी Unlimited’ में वर्णित नियमों और सिद्धांतों को सीखकर तथा उन्हें अपने जीवन में अपनाकर आप अपनी अंतर्निहित शक्ति एवं क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे आप जो कुछ भी हासिल करने में सक्षम हैं, उन क्षमताओं के इस्तेमाल का उपयोग करते हुए सफलता की उन सीढि़यों पर चढ़ने के काबिल बन सकते हैं, जिन्हें पाने की ललक आपके मन में है।
Kanch Vigyani Dr. Atmaram by Sheogopal Misra
डॉ. आत्माराम ने सैन्य उपयोग हेतु ‘ऑप्टिकल काँच’ का निर्माण करके यह दिखा दिया कि भारतीय वैज्ञानिकों में प्रतिभा की कमी नहीं है। सामान्य ग्रामीण परिवार में जन्म लेकर अपनी कुशाग्र बुद्धि के बल पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक रसायन के जनक डॉ. नीलरत्न धर के निर्देशन में उन्होंने उच्च स्तरीय शोध डिग्री, डी.एस-सी. प्राप्त की और कलकत्ता जाकर ग्लास एंड सेरैमिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक बने। आगे चलकर वे देश की सर्वोच्च वैज्ञानिक अनुसंधान संस्था सी.एस.आई.आर. के निदेशक बने।
डॉ. आत्माराम ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ के आदर्श व्यक्ति थे। उनकी सत्यनिष्ठा, कर्तव्य परायणता तथा सरलता बेजोड़ थी। वे एक तरह से गांधीवादी वैज्ञानिक थे। वे हिंदी के पुजारी थे। ‘वैल्थ ऑफ इंडिया’ का हिंदी अनुवाद उपलब्ध करानी की उनकी दूरदृष्टि के कारण ही कई खंडों वाले अंग्रेजी ग्रंथ का हिंदी संस्करण ‘भारत की संपदा’ का प्रकाशन उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
डॉ. आत्माराम अणुव्रत महासमिति द्वारा ‘अणुव्रत सम्मान’ प्रदान किया गया था। वे आर्यसमाजी थे तथा प्रयागराज स्थित शताधिक वर्षों पुरानी संस्था ‘विज्ञान परिषद्’ के उन्नायकों में से थे। उनका परिचय उनके तमाम व्याख्यानों से प्रकट होता है, जो इस पुस्तक में संगृहीत है।
विज्ञान में अभिरुचि रखनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए पठनीय पुस्तक।
Kannad Ki Lokpriya Kahaniyan by B.L. Lalitamba
कन्नड़ में कहानी साहित्य की अत्यंत पुरानी परंपरा है। कन्नड़ में आधुनिक कहानियों की परंपरा अन्य भारतीय भाषाओं के आधुनिक साहित्य की तरह उन्नीसवीं सदी के अंतिम भाग तथा बीसवीं सदी के आरंभकाल से शुरू होती है।
भारतीय साहित्य में ही प्रमुख रूप से उभरकर दिखनेवाले वरिष्ठ साहित्यकारों के समकालीन होकर कई युवा लेखकों के परिश्रम के फलस्वरूप कन्नड़ साहित्य भारतीय साहित्य की अग्रपंति में खड़े होने की स्थिति में पहुँचा है। सार के दशक के बाद आगे बढ़कर महिला संवेदना से परिपूर्ण महिला जीवन के दु:ख-दर्द, शोषण, महिला-पुरुष के बीच सामाजिक दृष्टि, भू्रण हत्या, कामकाजी महिला की स्थिति को लेकर लिखी गई कहानियाँ; मुसलिम संवेदना—जैसे बोळुवार मोहम्मद कुभ, फकीर अहमद काटपाडी, रंजान, दर्गा, सारा अबूबकर जैसे लेखकों द्वारा रचित कहानियाँ कन्नड़ भाषा को भारतीय साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलवाती हैं।
कन्नड़ के मूर्धन्य कथाकारों के विशिष्ट लेखन की झलक है ‘कन्नड़ की लोकप्रिय कहानियाँ’।
Kar Vijay Har Shikhar by Premlata Agrawal
‘कर विजय हर शिखर’ पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए एक प्रेरक है। क्योंकि यह केवल आत्मकथा नहीं है, बल्कि एक आम घरेलू महिला के शिखर तक पहुँचने का एक बहुत ही अद्भुत व रोमांचकारी सफर है। पुस्तक में कई ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं का भी जिक्र है, जो काफी महत्त्व रखती हैं। यह पुस्तक सिलिगुड़ी की एक आम लड़की प्रेमलता के पद्मश्री प्रेमलता अग्रवाल बनने की कहानी है। पुस्तक में प्रेमलता अग्रवाल के बचपन के कई ऐसे प्रसंगों को बहुत खूबसूरती से पिरोया गया है, जो कहीं-न-कहीं प्रेमलता के भीतर की इच्छा, जिज्ञासा, आत्मविश्वास, एकाग्रता, ईमानदारी, अपने कर्तव्य का दृढता से पालन करने की इच्छाशक्ति, सबको साथ लेकर चलने की भावना
आदि कई ऐसे गुणों की ओर संकेत करती है, जिन्होंने प्रेमलता अग्रवाल को एक आम से खास महिला बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुस्तक यह भी बताती है कि यदि जीवन में सच्चा गुरु मिल जाए तो जीवन ही बदल जाता है।
अकसर कई लोगों को हम यह कहते सुनते हैं कि आखिर पहाड़ों पर चढ़कर मिलता क्या है? पहले चढ़ो और फिर उतर आओ। यह पुस्तक लोगों के मन में पर्वतारोहण से जुड़े कई छोटे-बड़े सवालों का जवाब भी है।
Kargil by Rachna Bisht Rawat
कारगिल युद्ध की बीसवीं वर्षगाँठ पर इसके वीर सैनिकों की कहानियों के जरिए बेहद ठंडे युद्धक्षेत्र का दोबारा अनुभव कीजिए।
असहाय पैराट्रूपर के एक समूह ने अपनी ही पोजीशन पर बोफोर्स गनों से फायर करने को क्यों कहा?
पालमपुर का एक वृद्ध व्यक्ति अपने शहीद फौजी बेटे को न्याय दिलाने के लिए आखिर क्यों लड़ रहा है?
एक शहीद जवान का पिता हर साल एक कश्मीरी युवती के घर क्यों जाता है?
‘कारगिल’ पर लिखी यह पुस्तक आपको ऐसे दुर्गम पर्वत शिखरों पर ले जाती है, जहाँ भारतीय सेना ने कुछ रक्तरंजित लड़ाइयाँ लड़ीं। इस युद्ध को लड़नेवाले जवानों और शहीदों के परिवारवालों से साक्षात्कार के बाद रचना बिष्ट रावत ने अदम्य मानवीय साहस दिखानेवाली ये कहानियाँ लिखी हैं, जिनका सरोकार केवल वर्दीधारियों से नहीं, बल्कि उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करनेवाले लोगों से भी है। अप्रतिम साहस की कहानियाँ सुनाती यह पुस्तक हमारे लिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले 527 युवा बहादुरों के अलावा उन शूरवीरों को भी एक श्रद्धांजलि है, जो इस आहुति को देने के लिए तैयार बैठे थे।
Kargil Girl by Flt Lt Gunjan Saxena
सन् 1994 में बीस साल की गुंजन सक्सेना पायलट कोर्स के लिए चौथे शॉर्ट सर्विस कमिशन (महिलाओं के लिए) की चयन प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मैसूर जानेवाली ट्रेन पर सवार होती है। चौहत्तर सप्ताह की कमरतोड़ ट्रेनिंग के बाद वह डिंडीगुल स्थित एयरफोर्स एकेडमी से पायलट ऑफिसर गुंजन सक्सेना के रूप में पास आउट होती है।
3 मई, 1999 को स्थानीय चरवाहों ने कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर दी। मध्य मई तक घुसपैठियों को खदेड़ने के मकसद से हजारों भारतीय सैनिक पहाड़ पर लड़े जानेवाले युद्ध में शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ का आगाज किया, जिसमें उसके सभी पायलट मोर्चे पर थे। महिला पायलटों को जहाँ अब तक युद्ध क्षेत्र में नहीं उतारा गया था, वहीं उन्हें घायलों के बचाव, रसद गिराने और टोह लेने के लिए भेजा गया।
गुंजन सक्सेना को अपनी क्षमता प्रमाणित करने का यह स्वर्णिम अवसर था। द्रास और बटालिक क्षेत्रों में बेहद जरूरी आपूर्ति को हवा से गिराने और लड़ाई के बीच से घायलों का बचाव करने से लेकर, पूरी सावधानी से दुश्मनों के ठिकानों की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों तक पहुँचाने और एक बार तो अपनी एक उड़ान के दौरान पाकिस्तानी रॉकेट मिसाइल से बाल-बाल बचने तक, सक्सेना ने निर्भीकतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाया, जिससे उन्होंने यह नाम अर्जित किया—कारगिल गर्ल।
महिलाओं की सामर्थ्य, क्षमताओं और अद्भुत जिजीविषा की कहानी है गुंजन सक्सेना की यह प्रेरणाप्रद पुस्तक
Kargil Ke Paramvir Captain Vikram Batra by G.L. Batra
‘मैं या तो जीत का भारतीय तिरंगा लहराकर लौटूँगा या उसमें लिपटा हुआ आऊँगा, पर इतना निश्चित है कि मैं आऊँगा जरूर।’
कैप्टन बत्रा ने अपने साथी को यह कहकर किनारे धकेल दिया कि तुम्हें अपने परिवार की देखभाल करनी है और अपने सीने पर गोलियाँ झेल गए। कैप्टन बत्रा 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। बेहद कठिन चुनौतियों और दुर्गम इलाके के बावजूद, विक्रम ने असाधारण व्यक्तिगत वीरता तथा नेतृत्व का परिचय देते हुए पॉइंट 5140 और 4875 पर फिर से कब्जा जमाया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। विक्रम मात्र 24 वर्ष के थे।
‘कारगिल के परमवीर : कैप्टन विक्रम बत्रा’ में उनके पिताजी जी.एल. बत्रा ने अपने बेटे के जीवन की प्रेरणाप्रद घटनाओं का वर्णन किया है और उनकी यादों को फिर से ताजा किया है। उन्होंने आनेवाली पीढि़यों में जोश भरने और वर्दी धारण करनेवाले पुरुषों के कठोर जीवन का उल्लेख भी किया है।
Kargil Ki Ankahi Kahani by Harinder Baweja
कारगिल, 1999 पाकिस्तानी सैनिकों की पूरी-की-पूरी दो ब्रिगेड भारतीय इलाके में घुस आई और भारतीय सेना को कानो-कान खबर मिलने तक अपनी मोर्चाबंदी कर ली। भारतीय सेना के आला अफसरों ने चेतावनियों की अनदेखी की और खतरे के साथ ही घुसपैठियों की संख्या को तब तक कम बताते रहे जब तक कि बहुत देर नहीं हो गई। पैदल सैनिकों को आधे-अधूरे नक्शों, कपड़ों, हथियारों के साथ आगे धकेल दिया गया, जबकि उन्हें न तो यह जानकारी थी कि दुश्मनों की संख्या कितनी है या उनके हथियार कितनी ताकत रखते हैं! वीरता के सर्वोच्च पुरस्कार, परमवीर चक्र विजेता, कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता श्री जी.एल. बत्रा के लिखे पूर्वकथन के साथ, यह कारगिल की सच्ची कहानी है। डायरी के प्रारूप में लिखी यह पुस्तक, पहली बार उन घटनाओं का सच्चा, विस्तृत तथा विशिष्ट वर्णन करती है, जिनके कारण आक्रमण किया गया; साथ ही घुसपैठियों के कब्जे से चोटियों को छुड़ाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में भारतीय वीरों की शूरवीरता को भी रेखांकित करती है।
मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति देनेवाले जाँबाज भारतीय सैनिकों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है यह पुस्तक।
Karma Hi Pooja Hai by Ram Sahay
प्रस्तुत पुस्तक ‘कर्म ही पूजा है’ में समाहित ज्ञान छोटे बच्चों से लेकर किसी भी आयु वर्ग के लिए उपादेय होगा। पुस्तक के पाठक, शिक्षक का भी कर्तव्य बनता है कि पुस्तक के छिपे ज्ञान के खजाने को बच्चों में पठन के प्रति रुचि उत्पन्न कर उन तक पहुँचाना एक श्रेयस्कर कदम होगा।
इस पुस्तक में प्रकाशित महापुरुषों के जीवन से जुड़ी घटनाएँ बच्चों को आदर्श भावी नागरिक बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस पुस्तक के अनेक प्रसंग जन-जागृति की दिशा में एक अच्छी पहल है यथा—गुरु-शिष्य संबंध, दंड-संत टॉलस्टाय की सरलता-प्रेम सर्वोपरि, शिरडी के साँई बाबा, कर्तव्य-निष्ठा, अनाशिक्त, गांधीजी द्वारा पशु-वध का विरोध, क्रांतिकारियों के आदर्श कृष्ण और जल संरक्षण जाति का ढोल सुख एवं दुःख स्वावलंबन, एकता, सेवा-धर्म, महान् दधीचि का त्याग, गौतमी का आत्मबोध गतिशीलता की प्रधानता जैसी इस पुस्तक की विषयवस्तु ज्ञानामृत की आधारिशला है। सच्चा ज्ञान ही हमारे जीवन का आधार बिंदु है। निसंदेह सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए यह एक प्रेरणादायी पुस्तक है।
Karmayoga by Swami Vivekananda
कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है; ‘कृ’ धातु का अर्थ है—करना। जो कुछ किया जाता है, वही कर्म है। इस शब्द का पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है। दार्शनिक दृष्टि से यदि देखा जाए, तो इसका अर्थ कभी-कभी वे फल होते हैं, जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं। परंतु कर्मयोग में कर्म शब्द से हमारा मतलब केवल कार्य ही है। मानवजाति का चरम लक्ष्य ज्ञानलाभ है। प्राच्य दर्शनशास्त्र हमारे सम्मुख एकमात्र यही लक्ष्य रखता है। मनुष्य का अंतिम ध्येय सुख नहीं वरन् ज्ञान है; क्योंकि सुख और आनंद का तो एक न एक दिन अंत हो ही जाता है। अतः यह मान लेना कि सुख ही चरम लक्ष्य है, मनुष्य की भारी भूल है। संसार में सब दुःखों का मूल यही है कि मनुष्य अज्ञानवश यह समझ बैठता है कि सुख ही उसका चरम लक्ष्य है।
Karmayogi Sannyasi Yogi Adityanath by Rahees Singh
यह पुस्तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथजी के जीवन, उनके विचारों और उनके राजनीतिक जीवन पर केंद्रित है। इस पुस्तक में उन पहलुओं को भी समेटने की कोशिश की गई है, जो किसी नैतिक, कर्तव्यनिष्ठ, सत्यभाषी और कर्मयोगी की प्रासंगिकता एवं उपादेयता का निर्माण करते हैं। इस पुस्तक में ऐसे
अध्याय को भी शामिल किया गया है, जो ‘करप्शन ऑफ कॉम्प्लेक्सिटी’, ‘स्प्रिचुअल कोशेंट’ (एस.क्यू), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वर्चुअल आइडेंटिटी पर चर्चा करते हुए भारत में पश्चिम के ‘ए.आई.’ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के बजाय भारत की ‘ए.क्यू.’ (एक्वायर्ड इंटेलिजेंस) पर जोर देता है। इसमें बताने की कोशिश की गई है कि इस विधा में भारत कैसे उतरे और कौन उसे राजनीतिक नेतृत्व प्रदान करे।
नेतृत्व में वैल्यू एडीशन, गाय और विज्ञान के साथ-साथ भारतीय जीवन व संस्कृति में गाय का महत्त्व, ऋषि और कृषि के पूरक संबंधों की चर्चा की गई है। पुस्तक में हिंदू युवा वाहिनी की सोशल केमिस्ट्री को जानने की कोशिश है और योगीजी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के बढ़ते कदमों के अतिरिक्त यह अन्वेषण करने का प्रयास किया गया है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ही क्यों? योगी आदित्य की रिकॉल वैल्यू में वैल्यू एडीशन हो रहा है या डेफिशिट? क्या योगी आदित्यनाथ भविष्य में राष्ट्र का राजनीतिक चेहरा बनेंगे? क्या योगी आदित्यनाथ के साथ एक राजनीतिक खोज पूरी हुई?
समाजोत्थान में सतत संलग्न कर्मयोगी संन्यासी योगी आदित्यनाथ पर एक संपूर्ण पुस्तक।
Karmbhoomi by Premchand
प्रेमचंद आधुनिक हिंदी साहित्य के कालजयी कथाकार हैं। कथा-कुल की सभी विधाओं—कहानी, उपन्यास, लघुकथा आदि सभी में उन्होंने लिखा और अपनी लगभग पैंतीस वर्ष की साहित्य-साधना तथा लगभग चौदह उपन्यासों एवं तीन सौ कहानियों की रचना करके ‘प्रेमचंद युग’ के रूप में स्वीकृत होकर सदैव के लिए अमर हो गए।
प्रेमचंद का ‘सेवासदन’ उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि वह हिंदी का बेहतरीन उपन्यास माना गया। ‘सेवासदन’ में वेश्या-समस्या और उसके समाधान का चित्रण है, जो हिंदी मानस के लिए नई विषयवस्तु थी। ‘प्रेमाश्रम’ में जमींदार-किसान के संबंधों तथा पश्चिमी सभ्यता के पड़ते प्रभाव का उद्घाटन है। ‘रंगभूमि’ में सूरदास के माध्यम से गांधी के स्वाधीनता संग्राम का बड़ा व्यापक चित्रण है। ‘कायाकल्प’ में शारीरिक एवं मानसिक कायाकल्प की कथा है। ‘निर्मला’ में दहेज-प्रथा तथा बेमेल-विवाह के दुष्परिणामों की कथा है। ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास में पुनः ‘प्रेमा’ की कथा को कुछ परिवर्तन के साथ प्रस्तुत किया गया है। ‘गबन’ में युवा पीढ़ी की पतन-गाथा है और ‘कर्मभूमि’ में देश के राजनीति संघर्ष को रेखांकित किया गया है। ‘गोदान’ में कृषक और कृषि-जीवन के विध्वंस की त्रासद कहानी है।
उपन्यासकार के रूप में प्रेमचंद का महान् योगदान है। उन्होंने हिंदी उपन्यास को भारतीय मुहावरा दिया और उसे समाज और संस्कृति से जोड़ा तथा साधारण व्यक्ति को नायक बनाकर नया आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी भाषा को मानक रूप दिया और देश-विदेश में हिंदी उपन्यास को भारतीय रूप देकर सदैव के लिए अमर बना दिया।
—डॉ. कमल किशोर गोयनका
Karn Tum Kaha Ho by Pralay Bhattacharya
छ मानवीय संवेग है, जो देशकाल की परिधि से हटकर अनादिकाल से एक अनबूझी पहेली है। इनसान पहले प्राकृतिक और फिर उस पर लागू हुआ है सामाजिक संबंधों का अनुबंध। जबजब मनुष्य, विशेषकर नारी, प्राकृतिक और स्वाभाविक हुई, तबतब अनुबंध का न्याय अन्याय बनकर उसके सामने अचलायतन हुआ है। स्वाभाविक और प्रकृति जबजब मुखर हुई है, अप्राकृतिक विधिनिषेधों ने उसके सामने गति अवरोधक की भूमिका निभाई है।
पितृतांत्रिक समाज ने नारी से आनुगत्य की कामना की है और वैसा करते समय हर देश का पुरुष यह भूला है कि नारी प्राथमिक रूप से माँ है, बाद में पत्नी है। जीवन की इन पहेलियों को सुलझाने का या एक संगत उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास है यह उपन्यास ‘कर्ण तुम कहाँ हो’। बिंबों के माध्यम से उन संवेदनशील तारों को छूने का एक प्रयास है, जिनके सुर से हमें लगाव है, लेकिन जिन्हें हम सुनना नहीं चाहते।
Karna Ki Atmakatha by Manu Sharma
‘यही तो विडंबना है कि तू सूर्यपुत्र होकर भी स्वयं को सूतपुत्र समझता है, राधेय समझता है; किंतु तू है वास्तव में कौंतेय। तेरी मां कुंती है।” इतना कहकर वह रहस्यमय हंसी हंसने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कुछ संकेतों और कुछ शब्दों के माध्यम से मेरे जन्म की कथा बताई।
”मुझे विस्वास नहीं होता, माधव!” मैंने कहा। ”मैं समझ रहा था कि तुम विस्वास नहीं कसेगे। किंतु यह भलीभाति जानी कि कृष्ण राजनीतिक हो सकता है, पर अविश्वस्त नहीं। ”उसने अपनी मायत्वी हँसी में घोलकर एक रहस्यमय पहेली मुझे पिलानी चाही, चो सरलता से मेरे गले के नीचे उतर नहीं रही थी। वह अपने प्रभावी स्वर में बोलता गया, ”तुम कुंतीपुत्र हो। यह उतना ही सत्य है जितना यह कहना कि इस समय दिन है, जितना यह कहना कि मनुष्य मरणधर्मा है, जितना यह कहना कि विजय अन्याय की नहीं बल्कि न्याय की होती है।”
”तो क्या मैं क्षत्रिय हूँ?” एक संशय मेरे मन में अँगड़ाई लेने लगा, ‘आचार्य परशुराम ने भी तो कहा था कि भगवान् भूल नहीं कर सकता। तू कहीं-न- कहीं मूल में क्षत्रिय है। जब लोगों ने सूतपुत्र कहकर मेरा अपमान क्यों किया?’ मेरा मनस्ताप मुखरित हुआ, ”जब मैं कुंतीपुत्र था तो संसार ने मुझे सूतपुत्र कहकर मेरी भर्त्सना क्यों की?”
”यह तुम संसार से पूछो। ”हँसते हुए कृष्ण ने उत्तर दिया।
”और जब संसार मेरी भर्त्सना कर रहा था तब कुंती ने उसका विरोध क्यों नहीं किया?”
Karyakshetra Mein Safalta Ke Sootra by Ashwini Lohani
कोई व्यक्ति, जो अपने घर में खूब सफाई और व्यवस्था बनाए रखता है, वह अपने कार्य-स्थल पर जाकर सबकुछ भूल क्यों जाता है? क्या इसका कारण आलस्य है? या फिर वह अपने कार्य-स्थल पर सफाई रखना पसंद ही नहीं करता? या ज्यादा काम के कारण उसे सफाई का समय ही नहीं मिल पाता? या फिर उदासीनता इसका कारण है? लेकिन क्यों? दरअसल, हम अपनी गतिविधियों— जिसमें सफाई भी शामिल है—को अपने कार्य-संपादन से जोड़कर नहीं देख पाते। इससे हम अपने आस-पास के परिवेश के प्रति उदासीन ही बने रहते हैं। आज कार्यालय संबंधी कार्य एक बोझ की तरह हो गए हैं, जिसे ढोना मजबूरी समझा जाता है। ‘कुछ भी कर लो, कोई फर्क नहीं पड़ता,’—जी हाँ, नौकरशाही वर्ग की यह एक आम धारणा बन गई है। यदि हम अपने देश को उत्कर्ष की ओर ले जाना चाहते हैं तो इस धारणा को बदलने की जरूरत है।
प्रबंधन पर आधारित यह पुस्तक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री अश्विनी लोहानी के स्वयं के जीवन से जुड़ी कहानी है। पच्चीस वर्षों के सेवाकाल में विभिन्न पदों पर सफलतापूर्वक कार्य करते हुए उन्होंने जो अनुभव प्राप्त किए, उन्हें शब्दबद्ध किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्र-प्रेम, सिद्धांतप्रियता, देश-निष्ठा, कार्य-प्रतिबद्धता एवं दायित्व-निर्वहण की अनेक अंतःकथाएँ पढ़ने को मिलेंगी, जिनसे प्रेरणा तो मिलती ही है, मार्गदर्शन भी होता है।
प्रत्येक पाठक के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय पुस्तक।
Karyalayeeya Hindi by Kailash Nath Pandey
कार्यालयीय हिंदी
’70 के दशक के बाद की नवउदारवादी नीतियों, वृहद् नव-पूँजीवाद और बदलते बाजारूपन ने हिंदी को कई तरह की ‘करणत्रयी’ का शिकार बना दिया। एक ओर हिंदी भूमंडलीकरण, वैश्वीकरण तथा बाजारीकरण की गिरफ्त में आई तो दूसरी तरफ सत्ता और स्वार्थ के खेल ने इसे अंग्रेजीकरण, अरबीकरण तथा फारसीकरण में जकड़ दिया। परिणाम हुआ—हिंदी में कई तरह की विकृतियाँ व विकार पैदा हो गए। इस नए डिजिटल युग में ये सारे संकट हिंदी के सामने गैर-जमानती वारंट की तरह खड़े हो गए। भूमंडलीकरण अर्थात् पश्चिमीकरण एवं औपनिवेशिक प्रभाव के चलते हिंदी में ढेरों खामियाँ पसर गईं। इसके वाक्य-विन्यास, मुहावरे, हिज्जे, अंदाज और आवाज ने हिंदी को भ्रष्ट बना दिया। कुल मिलाकर हिंदी का पारंपरिक अनुशासन टूट रहा है। मोबाइल फोन और फेसबुक आदि यांत्रिक संचार साधनों पर भेजे जाने वाले संदेशों ने हिंदी व्याकरण और वाक्य-संरचना आदि को फिलहाल छिन्न-भिन्न कर ही दिया है, कार्यालयों में भी हिंदी-प्रयोग के प्रति अन्यमनस्कता-उदासीनता देखी जा रही है।
अतः इन सब समस्याओं को दृष्टि में रखते हुए विशिष्ट भाषा और शिल्प-शैली में लिखी गई इस पुस्तक में कार्यालयों में हिंदी प्रयोग एवं राजभाषा के उपयोग को विश्वस्त, समृद्ध तथा सुगम-सरल बनाया गया है। विश्वास है, हिंदी जगत् इससे लाभान्वित होगा।
Kasheer by Sahana Vijayakumar
यह एक त्रासदी है कि कुछ कहानियाँ अनकही रह जाती हैं, प्रमुख कथाओं और जटिल वास्तविकताओं के कोलाहल में खो जाती हैं। कश्मीरी हिंदुओं की कहानी ऐसी ही एक कहानी है। जब यह उपन्यास जुलाई 2018 में मूल रूप से कन्नड़ में प्रकाशित हुआ था, तब धारा 370 लागू थी। अब, इसके निरस्त होने के बाद भी, उपन्यास बहुत प्रासंगिक है। कश्मीर की सृष्टि और प्रगति का परिचय, उसके सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आयामों से कराते हुए, यह उपन्यास न केवल कश्मीर के समकालीन और ऐतिहासिक दोनों चित्रों की कल्पना करता है, बल्कि सनातन धर्म और सेमेटिक मतों के अंतर्निहित दर्शन की भी छानबीन करता है।
यह आवश्यक है कि आनेवाले दिन कश्मीर के लिए आशावाद से भरे हों। साथ ही कश्मीरी हिंदुओं की दुर्भाग्यपूर्ण कहानी को जानना भी उतना ही आवश्यक है, जो अपनी मातृभूमि से बेदखल किए गए हैं। यह उनकी कहानी है। यह कश्मीर की कहानी है।
Kashi Kabhi Na Chodiye by Shyamla Kant Verma
काशी कभी न छोड़िए
अब न तो नौटंकियों के प्रति उत्साह रह गया है, न कठपुतली नाटकों के प्रति। मनोरंजन के नए साधनों ने लोकगीत और लोक-नृत्य की समृद्ध परंपरा को आहत किया है। स्वतंत्रता पूर्व के कई प्रचलित सिक्कों से वर्तमान पीढ़ी अपरिचित हो चुकी है। नए खेलों ने पुराने खेलों का स्थान ले लिया है। धर्म और संस्कृति के प्रति भी लोग उदासीन दिखाई पड़ते हैं। न धर्मस्थलों को जानने-पहचानने में रुचि है, न कुंडों और कूपों को—और तो और, धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी की जनता भी काशी के इन महत्त्वपूर्ण स्थानों से अपरिचित होती जा रही है। देश की विभिन्न समस्याओं को उजागर करने तथा काशी की महिमा का बोध कराने के उद्देश्य से लिखा गया उपन्यास ‘काशी कभी न छोड़िए’ एक महत्त्वपूर्ण कृति है।
ससाहित्यकार डॉ. श्यामला कांत वर्मा ने व्यक्तिपरक इस सामाजिक उपन्यास में काशी के गौरव को चिह्नित करने में सफलता अर्जित की है। निश्चय ही वाराणसी अपने आपमें एक लघु हिंदुस्तान है। काशी की गंगा-जमुनी संस्कृति अनुकरणीय है। निश्चय ही इसे पढ़कर पाठकगण काशी के वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य की रोचक व ज्ञानपरक जानकारी प्राप्त कर पाएँगे।
Kashmir Mein Aatankwad by Major Saras Tripathi
कश्मीर का आतंकवाद और विद्रोह जो अस्सी के दशक में प्रारंभ हुआ और अभी तक चल रहा है मूलतः पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित किया गया है, ताकि ‘भारत को हजारों घावों से आहत कर लहूलुहान’ (जुल्फिकार अली भुट्टो के शब्दों में ‘टु ब्लीड इंडिया थ्रू थाउसैंड कट्स’) किया जा सके और भारत को दारुल-इसलाम में परिवर्तित किया जा सके। इस घृणित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान ने कश्मीर के नौजवानों को प्रलोभन देकर आकर्षित किया, आतंकवादी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित किया और हथियार देकर वापस कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह के लिए धकेल दिया, ताकि वे चुन-चुनकर हिंदुओं (कश्मीर पंडितों) की हत्या कर सकें और दारुल-इसलाम का स्वप्न साकार कर सकें। परंतु यह हत्याएँ हिंदुओं तक सीमित नहीं रह सकीं।
लेखक ने कश्मीर घाटी में 1992 से 1994 तक ‘सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम’ के अंतर्गत आतंकवाद विरोधी सैन्य अभियान में तथा 1997 से 1999 तक नियंत्रण रेखा पर रहकर देश की सेवा की। यह पुस्तक उन परिदृश्यों, घटनाओं और मानवीय प्रतिक्रियाओं का विवरण है, जो अत्यंत अच्छी या अत्यंत बुरी होने के कारण लेखक के मन-मस्तिष्क में रच-बस गई थीं। ये वे घटनाएँ हैं, जिन्होंने लेखक के हृदय को छुआ तथा चिरकाल तक अवस्थापित रहीं। प्रत्येक घटना, कश्मीर के हालात को, किसी विश्लेषणात्मक पुस्तक से अधिक प्रकट करती हैं।
Kashmiri Kissago by Ruskin Bond
कोई चालीस साल पहले जब मैंने ये लोक और परी कथाएँ लिखी थीं तो मैंने एक वृद्ध कश्मीरी किस्सागो का उपयोग किया था, जो सर्दियों की शाम को अपनी अँगीठी जलाकर बैठ जाता था और लंढौर बाजार में अपनी दुकान पर आनेवाले बच्चों का मनोरंजन किया करता था।
इस प्रकार ये सब आपके सामने हैं। इन कहानियों में वर्णित कश्मीर कभी का जा चुका है, लेकिन बच्चे अभी भी आस-पास हैं और मैं उनके बारे में समय-समय पर सुनता रहता हूँ। ‘नन्हा विजय’ अब पचास के करीब है, जबकि चुटियावाली शशि दादी बन चुकी है। मैं सोचता हूँ, क्या वे अपने बच्चों और पोते-पोतियों को कहानियाँ सुनाते होंगे या बस, उन्हें अपने लैपटॉप और टी.वी. सेटों के हवाले छोड़ देते होंगे?
कहानी सुनाने की मौखिक परंपरा तो अब समाप्त ही हो चुकी है, लेकिन लिखे हुए शब्द अभी भी बने हुए हैं। ये इतनी आसानी से लुप्त नहीं होंगे। इनके माध्यम से हम अतीत की समीक्षा कर सकते हैं, बहुत पहले की दुनिया में विचरण कर सकते हैं और उसके प्राचीन जादू के कुछ अंश को प्राप्त कर सकते हैं।
—रस्किन बॉण्ड (भूमिका से)
बेहतरीन कहानीकार रस्किन बॉण्ड की ये लोक-परी कथाएँ आपको अपने बचपन में ले जाएँगी और आपको सोचने पर मजबूर करेंगी कि अब के बच्चों के बचपन से किस्सागोई कहाँ खो गई!
Kasmai Devaya by Arun Mishra
‘‘…हमारे कवियों की कविता से प्रकृति के विविध अवयव धीरेधीरे गायब हो गए हैं। ऐसे समय में मिश्रजी की कविताएँ सुखद अनुभूति प्रदान करती हैं। उनके पास भाषा, शिल्प और शब्दों का अद्भुत भंडार है।’’
‘‘श्री मिश्र प्रकृति से गहराई से जुड़े हैं, वे काव्य सृजन के लिए बारबार प्रकृति के पास जाते हैं। प्रकृति उनके साथ पूरा सहयोग भी करती है। वे लोप होती हुई संवेदनाओं के कवि हैं।’’
—प्रो. कुँवर पाल सिंह
Katha Puratani Drishti Adhuniki by Kusum Patoria
कथा पुरातनी, दृष्टि आधुनिकी
प्रस्तुत पुस्तक की कथाओं में लोककथा के तत्त्व सन्निविष्ट हैं। इनमें एक ओर समाज का निरावरण चित्र है तो दूसरी ओर अस्वाभाविकता की सीमा तक अतिरंजना है।
वेद शिष्ट जनों का साहित्य है, तो पुराण लोक-साहित्य। परंपरानुसार दीर्घकालीन सत्रों में पुरोहित पुराणों की कथाएँ सुनाकर यजमान व इतर अभ्यागतों का मनोरंजन किया करते थे।
‘कथा पुरातनी : दृष्टि आधुनिकी’ इन्हीं पुराणों की कुछ चुनी हुई कथाओं की आधुनिक संदर्भ में व्याख्या है। प्रश्न हो सकता है कि क्या ये कथाएँ आज के पाठक का मनोरंजन करने में समर्थ हैं? तो भले ही इनके प्रतीकात्मक अर्थ कुछ भी हों, पर इन कथाओं की प्रासंगिकता आधुनिक संदर्भ में और भी आवश्यक है।
यद्यपि इस संग्रह की अधिकांश कथाएँ वैदिक पुराणों से हैं, फिर भी कुछ कथाएँ बौद्ध जातकों व जैन पुराणों व जैनागमों के टीका ग्रंथों से भी ली गई हैं। इनमें नीति व सदाचार की कथाएँ मुख्य हैं। सांप्रदायिक सद्भाव को इंगित करती हुई भी अनेक कथाएँ हैं, अनेक कथाएँ सदाचार व नैतिकता का संदेश देती हैं।
कथाएँ पौराणिक हैं, उनकी व्याख्या की चेष्टा आधुनिकी है।
Katha Yatra by Ramesh Nayyar
छत्तीसगढ़ की संस्कृति का स्थायी भाव समन्वय और औदार्य रहा है । यहाँ के कहानीकारों की रचनाओं में ये भाव मुखर होते हैं । श्रीमती शशि तिवारी, श्री जगन्नाथ प्रसाद चौबे ‘ वनमाली ‘, श्री प्यारेलाल गुप्त, श्री केशव प्रसाद वर्मा, श्री मधुकर खेर, श्री टिकेंद्र टिकरिया और श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सहित पुरानी पीढ़ी के साहित्यकारों की कहानियों से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विशिष्टता पूरी भव्यता के साथ झाँकती है । उन्हीं दिनों सर्वश्री यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी, घनश्याम, विश्वेंद्र ठाकुर, नरेंद्र श्रीवास्तव, नारायणलाल परमार, शरद कोठारी, हनुमंत लाल बख्शी, श्याम व्यास, प्रदीप कुमार ‘ प्रदीप ‘, भारत चंद्र काबरा, प्रमोद वर्मा, चंद्रिका प्रसाद सक्सेना और देवी प्रसाद वर्मा सहित अनेक कथाकारों की कहानियाँ प्रकाश में आईं ।
सन् 1956 के बाद नई कहानी के दौर में शरद देवड़ा और शानी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई । कहानी के सचेतनवादी आदोलन में मनहर चौहान सक्रियता के साथ सामने आए । ‘ झाड़ी ‘ और कुछ अन्य कहानियों के प्रकाशन के साथ श्रीकांत वर्मा ने महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया । श्रीमती कुंतल गोयल और श्रीमती शांति यदु की कहानियाँ भी चर्चित रहीं । इनके अलावा छत्तीसगढ़ कें दूरस्थ कस्बों में रहकर कुछ रचनाकारों ने अच्छी कहानियों लिखीं, जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहीं ।
मुद्रित कहानियों के इतिहास में छत्तीसगढ की उपस्थिति कम-से-कम एक शताब्दी पुरानी है । पं. माधवराव सप्रे की कहानी ‘ एक टोकरी भर मिट्टी ‘ सन् 1901 में ‘ छत्तीसगढ मित्र ‘ में प्रकाशित हुई थी । छत्तीसगढ़ हिंदी कथा-साहित्य के सृजन का केंद्र बना रहा है । पं. लोचन प्रसाद पांडेय द्वारा छद्म नाम से कुछ कहानियाँ लिखे जाने का उल्लेख मिलता है। पं. मुकुटधर पांडेय बाबू कुलदीप है । सहाय की कहानियाँ बीसवीं सदी के दूसरे दशक में प्रकाशित हुईं । सन् 1915 में श्री प्यारेलाल गुप्त का भी एक कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ । हिंदी कहानी की प्राय : सभी लहरों और आदोलनों में छत्तीसगढ़ की उपस्थिति रही है ।
इस कथा संकलन में छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित व विख्यात कथाकारों की रचनाएँ संकलित हैं, जिन्होंने हिंदी कथा- क्षेत्र में अपनी विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान बनाई है । इनमें से अनेक हिंदी के बहुख्यात नाम हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जो लिक्खाड़ न होने पर भी रचना की अपनी विशिष्ट मौलिकता और पहचान के कारण उल्लेखनीय हैं । अलग- अलग कथाकारों के अपने अलग रंग और अंदाज हैं । अंचल और उसके लोक लोक-संस्कृति और संघर्ष की छाप, मनुष्य और समाज के संबंधों, उसकी संवेदनाओं के अक्स, अधुनातन समाज की जटिलताओं और उसके दबावों की छाप प्राय : इनमें है ।
इन कहानियों में पाठकों को मिलेगा संवेदना का घनत्व, शिल्प का वैभिन्न्य तथा हृदय को छू जानेवाली मार्मिकता । कहानियों के रंग और लय भिन्न-भिन्न हैं, जो कथा- रस का संपूर्ण आनंद देते हैं ।
Kathakram by Dr. Badrinath Kapoor
प्रस्तुत पुस्तक में सुप्रसिद्ध वैयाकरण एवं कोशकार डॉ. बदरीनाथ कपूर द्वारा लिखित रोचक कथाएँ संकलित हैं। इनमें दो पौराणिक वृत्तांत हैं—‘शकुंतला’ और ‘गौतम बुद्ध’। ये बँगला के प्रसिद्ध कथाकार तथा चित्रकार अवींद्र कुमार ठाकुर की अनूठी कृतियाँ हैं, जो अपनी चित्रमयता के लिए जानी जाती हैं। इनका छायानुवाद इस पुस्तक में है। दो यात्रा-वृत्तांत हैं—‘उत्तराखंड की ओर’ और ‘सूर्योदय के देश में’। जीवन के कथा-क्रम से जुड़ी कथाओं और यात्रा-वृत्तों का रोचक-पठनीय संकलन।
Kautilya Arthshastra by Anil Mishra
‘अर्थशास्त्र’ कौटिल्य यानी चाणक्य द्वारा रचित संस्कृत वाड्.मय का एक अद्भुत ग्रंथ है। इसका पूरा नाम ‘कौटिलीय अर्थशास्त्र’ है।
चाणक्य सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। उन्होंने चंद्रगुप्त के प्रशासकीय उपयोग के लिए इस ग्रंथ की रचना की थी। यह मुख्यतः सूत्र-शैली में लिखा हुआ है। यह शास्त्र अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने योग्य सरल शब्दों में रचा गया है।
‘अर्थशास्त्र’ में समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। अभी तक इस विषय के जितने भी ग्रंथ उपलब्ध हैं, वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण उनमें यह सबसे अधिक मूल्यवान् है। इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन तथा पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है।
राजनीतिक, आर्थिक, विधि आदि सिद्धांतों को जानने-समझने और व्यवहार में लाने के लिए एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति।
Kavya Bhautiki by Dr. Rishi Kumar Singhal
साहित्य और विशेष रूप से कविताएँ मनुष्य की कोमल भावनाओं की प्रतिबिंब हैं। इस पुस्तक में भौतिक विज्ञान की जटिल अवधारणाओं का हिंदी कविताओं के माध्यम से एक अभिनव प्रस्तुतीकरण है। पुस्तक में विषयों का वर्णक्रम बहुत विस्तृत है, जिसमें चिरसम्मत भौतिकी से लेकर आधुनिक भौतिकी के विषयों एवं कतिपय शोध स्तरीय विषयों को सरल, सरस और इंद्रधनुषी कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। भौतिक विज्ञान के अध्यात्म और जीवन-दर्शन के साथ संबंधों की भी कई कविताओं में सशक्त प्रस्तुति है।
पुस्तक में भौतिक विज्ञान की विभिन्न अवधारणाओं पर कुल 63 कविताएँ हैं, जिनमें भौतिकी की विभिन्न शाखाओं, यथा—ऊष्मागतिकी, प्रकाशिकी, स्पेक्ट्रममिति, क्वांटम यांत्रिकी, लेजर कूलिंग, अतिचालकता, ऊर्जा-द्रव्य संबंध, अनिश्चितता सिद्धांत, प्रकाश और द्रव्य के द्वैतवाद पर रोचक छंदोबद्ध कविताएँ समाहित की गई हैं।
काव्य रूप में भौतिक विज्ञान की
यह अपनी तरह की पहली एवं विलक्षण कृति है।