Hindi Literature
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Kumarsambhav by Mool Chandra Pathak
प्रस्तुत कृति संस्कृत के अमर कवि कालिदास के ‘कुमारसंभव’ महाकाव्य के काव्यानुवाद का एक अभिनव प्रयास है।
‘कुमारसंभव’ का शाब्दिक अर्थ
है—‘कुमार का जन्म’। यहाँ ‘कुमार’ से आशय शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय से है। इस कृति के पीछे कवि का उद्देश्य
है—शिव-पार्वती की तपस्या, प्रेम, विवाह और उनके पुत्र कुमार कार्तिकेय के जन्म की पौराणिक कथा को एक महाकाव्य का रूप देना।
‘कुमारसंभव’ महाकाव्य में यों तो सत्रह सर्ग मिलते हैं, पर उनमें से प्रारंभिक आठ सर्ग ही कालिदास-रचित स्वीकार किए जाते हैं। अत: प्रस्तुत काव्यानुवाद में विद्वानों की लगभग निर्विवाद मान्यता को ध्यान में रखते हुए केवल प्रारंभिक आठ सर्गों को ही आधार बनाया गया है।
कवित्व व काव्य-कला के हर प्रतिमान की कसौटी पर ‘कुमारसंभव’ एक श्रेष्ठ महाकाव्य सिद्ध होता है। मानव-मन में कवि की विलक्षण पैठ हमें हर पृष्ठ पर दृष्टिगोचर होती है। पार्वती, शिव, ब्रह्मचारी आदि सभी पात्र मौलिक व्यक्तित्व व जीवंतता से संपन्न हैं। प्रकृति-चित्रण में कवि का असाधारण नैपुण्य दर्शनीय है। काम-दहन तथा कठोर तपस्या के फलस्वरूप पार्वती को शिव की प्राप्ति सांस्कृतिक महत्त्व के प्रसंग हैं। कवि ने दिव्य दंपती को साधारण मानव प्रेमी-प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत कर मानवीय प्रणय व गार्हस्थ्य जीवन को गरिमा-मंडित किया है।
Kumbh Aastha Ka Prateek by Sanjay Chaturvedi
कुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं—लघु भारत एक स्थान पर आकर जुटता है और हम सगर्व कहते हैं कि महाकुंभ विश्व का सबसे विशाल पर्व है। कुंभ की ऐतिहासिक परंपरा में देश व समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए ऋषियों, महर्षियों के विचार सदैव आदरणीय और उपयोगी रहे हैं। आर्यावर्त के पुराने नक्शे में शामिल देश भी तब महाकुंभों में एकत्र होकर समाज के जरूरी नीतिनियमों को, तत्कालीन शासकों को जानने के लिए ऋषियों की ओर देखते थे और उसके पालन के लिए प्रेरित होते थे। हर बारह वर्ष बाद देश के विभिन्न स्थलों पर शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम को तय कर समाज संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथसाथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे। आज मानव समाज के सामने जो समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं, उनमें आतंकवाद, भ्रष्टाचार, हिंसा और देशद्रोह के समान मानव को जर्जर कर देनेवाली समस्या है पर्यावरण प्रदूषण। प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है, कभीकभी तो श्वास लेना भी कठिन जान पड़ता है। कुंभ का सबसे बड़ा संदेश पर्यावरण का संरक्षण करना है।
ज्ञान, भक्ति, आस्था, श्रद्धा के साथसाथ जनमानस में सामाजिकनैतिक चेतना जाग्रत् करनेवाले सांस्कृतिक अनुष्ठान ‘कुंभ’ पर एक संपूर्ण सांगोपांग विमर्श है यह पुस्तक।
Kumbha Manthan Ka Mahaparva by Sanjay Chaturvedi
कुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं—लघु भारत एक स्थान पर आकर जुटता है और हम सगर्व कहते हैं कि महाकुंभ विश्व का सबसे विशाल पर्व है। कुंभ की ऐतिहासिक परंपरा में देश व समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए ऋषियों, महर्षियों के विचार सदैव आदरणीय और उपयोगी रहे हैं। आर्यावर्त के पुराने नक्शे में शामिल देश भी तब महाकुंभों में एकत्र होकर समाज के जरूरी नीति-नियमों को, तत्कालीन शासकों को जानने के लिए ऋषियों की ओर देखते थे और उसके पालन के लिए प्रेरित होते थे। हर बारह वर्ष बाद देश के विभिन्न स्थलों पर शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम को तय कर समाज संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे।
आज मानव समाज के सामने जो समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं, उनमें आतंकवाद, भ्रष्टाचार, हिंसा और देशद्रोह के समान मानव को जर्जर कर देनेवाली समस्या है पर्यावरण प्रदूषण। प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है, कभी-कभी तो श्वास लेना भी कठिन जान पड़ता है। कुंभ का सबसे बड़ा संदेश पर्यावरण का संरक्षण करना है।
ज्ञान, भक्ति, आस्था, श्रद्धा के साथ-साथ जनमानस में सामाजिक-नैतिक चेतना जाग्रत् करनेवाले सांस्कृतिक अनुष्ठान ‘कुंभ’ पर एक संपूर्ण सांगोपांग विमर्श है। यह पुस्तक।
Kunwarvarti Kaise Bahe by Dr. Rakesh Kabeer
इस संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए पता चलता है कि कवि राकेश का रचना-संसार अत्यंत समृद्ध एवं विस्तृत है। सामाजिक यथार्थों और विसंगतियों को समेटने और भेदने में उनकी काव्यदृष्टि सक्षम है। विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के विभिन्न उपादानों और नदियों के विनाश से कवि का मन तकलीफ से भर उठता है। प्रकृति की लोकतांत्रिक मोहकता बेशक सबको आकर्षित करती है, परंतु हमारी उपेक्षा से उसमें निरंतर हृस हो रहा है। ‘कुँवरवर्ती’, ‘वापसी’ और ‘शहरी मेढक’ जैसी कविताओं में यही चिंता साफ दिखती है। संग्रह की कविताओं में जो सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि है, वह समकालीन घटनाओं की सख्ती से छानबीन करती है। संविधान और लोकतंत्र में गहरा विश्वास, सामाजिक न्याय का प्रबल समर्थन, जातीय भेदभाव के विरोध के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के सवालों से भी बड़ी संजीदगी से इस संग्रह की कविताएँ मुठभेड़ करती हैं। किसानों की रोजमर्रा की समस्याएँ, उनकी फसलों के वाजिब मूल्य, गरीबी और आत्महत्या के मुद्दों के बीच जीवन में हरियाली बोने की जिदवाली उम्मीद हमें आश्वस्त करती है कि अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। लोकतंत्र की संस्थाओं पर भरोसा एवं सभी के अधिकारों का सम्मान करके ही हमारा विविधतापूर्ण देश एक सशक्त राष्ट्र बन सकता है।
हमें अपने जीवन से अनेक तरह के अनुभव प्राप्त होते हैं। कवि मन ऐसे अनुभवों, और स्मृतियों को भी अपनी कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करता है।
Kushti : Khel Aur Niyam by Surendra Shrivastava
कुश्ती एक ऐसा खेल है, जहाँ मात्र शरीर ही हथियार होता है। यदि आप प्रोफेशनल पहलवान बनना चाहते हैं अथवा इसके प्रति वास्तव में गंभीर हैं तो लगातार व नियमित रूप से अपनी शारीरिक ऊर्जा शक्ति को सक्रिय रखने तथा उसे बनाए रखने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत होती है। एक पहलवान को हर समय शारीरिक रूप से फिट व चुस्त-दुरुस्त रहना चाहिए। चाहे वह डुअल मीट्स तथा कुश्ती टूर्नामेंट्स में भाग नहीं भी ले रहा हो, लेकिन उसे स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करनी ही चाहिए। एकमात्र वर्कआउट के जरिए ही आपका वेट तथा स्ट्रेंथ मेंटेन रहेगा।
कुश्ती के विविध स्वरूप हैं। इनमें आर.ए.डब्ल्यू., स्मैक डॉउन, नो वे आउट, एस.एन. मेन इवेंट्स, रेसल मैनिया, हीट, डब्ल्यू. डब्ल्यू. ई., डब्ल्यू. डब्ल्यू. डब्ल्यू. एफ., वेलोसिटी, जूनियर, सीनियर टैग टीम आदि उल्लेखनीय हैं।
इस पुस्तक में खेल के सभी तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की है। कुश्ती को अपना कॉरियर बनानेवालों, इसमें दिलचस्पी रखनेवाले छात्र-छात्राओं को खेल से जुड़े बुनियादी नियमों व तथ्यों की जानकारी भी दी गई है। निश्चित ही यह पुस्तक खेल-प्रेमियों को पसंद आएगी।
Kya Aap Iit Crack Karna Chahate Hain? by Vivek Pandey & Paras Arora
दो आईआईटियन आई.आई.टी. में सफलता दिलानेवाले 100 टिप्स और ट्रिक्स का जादू लेकर आए हैं। उनका एक ही मंत्र है ‘होशियारी भरा काम कड़ी मेहनत को पीछे छोड़ देगा।’ यह न केवल फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स के सवालों के बारे में सबकुछ बताता है, बल्कि उन समस्याओं को भी दूर करता है, जिन्हें लेकर छात्र चिंता में डूबे रहते हैं और समझ नहीं पाते कि किससे पूछें—
• रात को देर तक जागनेवाले बनाम सुबह जल्दी उठनेवाले
• 11वीं क्लास में आपको क्या करना है?
• किसी फॉर्मूले को याद करने के लिए 84 बार लिखना
• डब्लू.डब्लू.ई.-स्टाइल वाले कार्ड के इस्तेमाल से पढ़ाई को मजेदार बनाना
• कलर-कोड वाले नोटबुक
• लैब के प्रयोगों से ज्यादा-से-ज्यादा फायदा उठाना
अगर ट्यूटोरियल और टेक्स्टबुक प्रोफेसर हैं, तो यह पुस्तक ऐसा चालाक दोस्त है, जो आपको क्लासरूम के बाहर मिलता है और आप उससे अपने सारे सवाल पूछ लेते हैं।
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Kya Aap Ameer Banna Chahte Hain? by Napoleon Hill
विश्वप्रसिद्ध मोटिवेटर और सैल्फ-हैल्प एक्सपर्ट नेपोलियन हिल की इस पुस्तक से आपको नए लक्ष्य व स्वप्न देखने की भी प्रेरणा मिलेगी, क्योंकि समृद्धि केवल सौभाग्य व यश के संकुचित पैमाने तक ही सीमित नहीं होती। आपको भी निजी, आध्यात्मिक व आर्थिक—हर पैमाने पर अमीर बनने का पूरा अधिकार है। डॉ. हिल ने देखा कि जीवन में केवल आर्थिक समृद्धि हासिल करनेवाले लोगों के पास चाहे कितने ही पैसे हों, फिर भी वे दुनिया के सबसे दुःखी व असंतुष्ट लोग होते हैं। सही मायने में अमीर होने के लिए जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि होना आवश्यक है।
जीवन में समृद्धि पाने और अमीर बनने के लिए डॉ. हिल ने ये ग्यारह सिद्धांत बताए हैं—
• निश्चित उद्देश्य • मास्टरमाइंड • अनुप्रयुक्त आस्था • कुछ अधिक करना • आंतरिक दीवार • व्यक्तिगत पहल • सकारात्मक मानसिक अभिवृत्ति • आत्मानुशासन • रचनात्मक दृष्टिकोण या कल्पना-शक्ति • उत्तम स्वास्थ्य • ब्रह्मांडीय नियमितता शक्ति का नियम।
साथ ही डॉ. हिल ने अमीरी के बारह महान् व चिरस्थायी लक्षण बताए हैं—
• सकारात्मक मानसिक अभिवृत्ति • अच्छा स्वास्थ्य • मानवीय रिश्तों में समरसता • हर प्रकार के भय से मुक्ति • भविष्य में उपलब्धियों के प्रति आशा • अनुप्रयुक्त आस्था • अपनी सुविधाओं को दूसरे के साथ बाँटने की इच्छा रखना • श्रम से प्रेम करना • हर विषय पर उदार रहना, लोगों के प्रति सहिष्णु होना • पूर्ण आत्मानुशासन • लोगों को समझने का विवेक होना • पैसा।
Kya Aapka Bachcha Surakshit Hai? by K. Sanjay Kumar Gurudin
यह पुस्तक माता-पिता को अपने बच्चों को ऑनलाइन खतरों से सुरक्षित रखने के लिए उपयोगी सूचना और सलाह देनेवाली गाइड से कहीं अधिक है। इसमें इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े खतरों और संभावित जोखिमों के बारे में विस्तार से बताया गया है। पुस्तक पाठकों को यह भी बताती है कि कैसे तकनीक-प्रेमी बच्चे भी खतरनाक साइबर-जगत् को खँगालने के दौरान चूक कर जाते हैं।
लेखक ने चेतावनी के उन संकेतों और लक्षणों को भी पूरी बारीकी से गिनाया है, जो उन बच्चों में दिखते हैं, जिनका सामना ऑनलाइन खतरों से होता है। साथ ही उनसे उबरने के व्यावहारिक उपाय भी सुझाए हैं। यह पुस्तक बच्चों को पर्याप्त कौशल देने, डिजिटल दृढ़ता और दबावों को झेलने की क्षमता विकसित करने पर अधिक जोर देती है। बहुत सरल-सुबोध भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में कुछ भी काल्पनिक नहीं है। यह वास्तविक घटनाओं और समर्पित पुलिस अधिकारी के रूप में लेखक द्वारा 12 साल के अपने कॉरियर के दौरान मिले अनुभवों पर आधारित है।
बच्चों को इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खतरों तथा इनके यथोचित उपयोग से परिचित कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।
Kya Hain Kalam by R Ramanathan
डॉ. कलाम क्या हैं, कौन हैं? वह सभी के प्रेम, सम्मान तथा प्रशंसा के पात्र क्यों हैं? वे कौन सी बातें हैं, जो उन्हें लोकप्रिय बनाती हैं? कौन सी विशेषताएँ उन्हें दूसरों से भिन्न बनाती हैं?
यह पुस्तक इन प्रश्नों का सर्वथा सही, उचित और सार्थक उत्तर देने का प्रयास करती है । यह न तो पारंपरिक अर्थों में जीवनी है, न ही आलोचनात्मक विश्लेषण । यह पुस्तक सामान्य रूप से पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पीजे. अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व को उनके साथ निकट रूप से काम कर चुके व्यक्ति की नजरों से देखने का प्रयास करती है । यह डॉ. कलाम के व्यक्तित्व तथा जीवन के अप्रकट पहलुओं पर प्रकाश डालती है और पाठक को उनके व्यक्तित्व के बारे में एक गहरी समझ विकसित करने में मदद करती है । इस पुस्तक के माध्यम से डॉ. कलाम का बहुपक्षीय दूरद्रष्टा व्यक्तित्व हमारे सामने आता है, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा राष्ट्र के विकास के अलावा संगीत, साहित्य एवं पर्यावरण में भी रुचि रखते हैं । उनके व्यक्तित्व की जो विशेषता सबसे अधिक प्रेरक है, वह है उनकी मानवीय संवेदना ।
Kya Mujhe Pyar Hai? by Arvind Parashar
‘‘तो नील, कल्पना करो कि कोई है, जिससे मैं प्यार करती हूँ, इकतरफा और मैं उससे पिछले सात वर्षों से प्यार करती हूँ। सदा से इकतरफा और मैंने उसे आज तक नहीं बताया है।’’
‘‘तुम वाकई अद्भुत हो, है न?’’
‘‘और तुम कितने लोगों को जानते हो, जो किसी को सात वर्षों से चाहते हों और वह भी एकतरफा?’’
‘‘मेरे खयाल से यह एकतरफा प्यार है, इसीलिए सात वर्षों से चला आ रहा है। अगर यह दोनों तरफ से होता तो शायद इसकी भी नियति मेरी जैसी ही होती।’’
‘‘जब तक ऐसा कुछ होता नहीं, कोई नहीं जानता।’’
‘‘मगर तुमने उसे इसके बारे में बताया क्यों नहीं?’’
‘‘मेरी माँ ने कहा था, अगर मैं किसी से प्यार करती हूँ तो उसे बताने से पहले मुझे अठारह वर्ष पूरे करने होंगे। उसने कहा, उस लड़के से मिलने से पहले मुझे बालिग होना चाहिए।’’
—इसी उपन्यास से
प्रेम और अंतरंगता के ताने-बाने में बुना अत्यंत रोचक और पठनीय उपन्यास। एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद पाठक इसे खत्म करके ही रुकेंगे।
Kyon Papa Kyon? by Chitra Manglik Kumar
‘क्यों पापा क्यों?’ एक कहानी-संग्रह है। यह पुस्तक मनगढ़ंत कल्पनाओं पर आधारित अथवा मात्र मनोरंजन के लिए लिखी गई हो, ऐसा नहीं है। वास्तविक लोग, संयुक्त परिवार, प्रामाणिक जीवन, भूतकाल से वर्तमान समय की कड़ी-से-कड़ी जोड़ती हुई स्वतंत्र नदिया की बहती धारा के रूप में सबको लेकर,समेटते निरंतर आगे बढ़ती जीवंत सदस्यों की जीवनी में बद्ध कहानियाँ हैं ।
परिवर्तन संसार का नियम है। समाज में निरंतर परिवर्तन होता रहता है। इन कहानियों में समाज का बदलता रूप, पारिवारिक संबंधों में तनाव, अलगाव, आधुनिक जीवन-शैली, व्यक्तिगत अहं वाली मानसिकता के साथ-साथ परंपरागत संगठित परिवारों का जीवन झलकता है।
इन कहानियों में पुरानी पीढ़ी और वर्तमान पीढ़ी, दोनों का चित्रण है, जो समय और समाज के बदलते दौर पर मंथन करने के लिए प्रेरित करती हैं। दोनों पीढ़ी की सार्थक सोच के समन्वय से संभवतः समाज को अधिक सशक्त, सुखद और सभ्य बनाया जा सकता है।
Kyunki Jeena Isi Ka Naam Hai by N. Raghuraman
मुंबई में एयरपोर्ट के पास भीख माँगने की इजाजत नहीं है। यदि कोई इस नियम को तोड़ता है, उसे पुलिस के डंडे की मार झेलनी पड़ती है। क्या हम ऐसे घुमक्कड़ लोगों की पहचान करके, उनकी क्षमताओं के अनुरूप प्रशिक्षण देकर उन्हें गली-गली में कला-प्रदर्शक के रूप में तैयार नहीं कर सकते? दुनिया भर के विरासत विशेषज्ञ तथा टाउन प्लानर इन बेघर लोगों को गलियों में वाद्ययंत्र बजाने या कला-प्रदर्शन करने में प्रशिक्षण दे चुके हैं।
अमेरिका में यात्री और पर्यटक अकसर ऐसे कलाकारों को पहचान सकते हैं। सब-वे, स्टेशन तथा सैदूल-पार्क जैसे गार्डन में ऐसे प्रदर्शन किए जा सकते हैं। एक प्राचीन चीनी कहावत है—‘बच्चे नकलची होते हैं, इसलिए उन्हें नकल करने के लिए कुछ भी विषय दिया जा सकता है।’ भारत के आई.टी. हब बेंगलुरु में भी केस स्टडी किए जा सकते हैं तथा यहाँ भी गलियों में कला-प्रदर्शन किए जा सकते हैं। जो बच्चे भीख माँगते हैं, वे आसानी से यह रोजगार अपना सकते हैं। इससे उनका आत्म-सम्मान बढ़ेगा। पूरे बेंगलुरु में नहीं तो कम-से-कम लालबाग व कब्बन पार्क में यह प्रयोग किया जा सकता है।
मोटिवेशन गुरु एन. रघुरामन की समाज को एक अनूठी दृष्टि से देखने की क्षमता का परिणाम है यह पुस्तक, जो जीवन को रूपांतरित करने का संदेश देती है।
Ladki Anjani Si by Ajay K. Pandey
हर फरिश्ते में, एक शैतान छिपा होता है,
और हर शैतान के भीतर, एक फरिश्ता पलता है।
पहली बार जब उसने अपनी नई मकान-मालिकन पर नजर गड़ाई, जो एक विधवा और उससे ग्यारह साल बड़ी है, तो उसे एक मौका दिखाई पड़ा। उसके पास अमीर बनने का एक प्लान है और वह उसे पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करता है, जब तक कि उसकी मुलाकात पीहू से नहीं होती। वह एक अपरिपक्व टीनएजर है, जो नील को चाहती है, और आँख मूँदकर मान लेती है कि वह एक फरिश्ता है, जो उसकी जिंदगी की सारी मुश्किलें दूर कर देगा।
बेवजह की इस चाहत और प्लान का काँटा बनती पीहू से नील नफरत करता है, लेकिन नील को बेहतर इनसान बनाने की पीहू की जिद नील को अंदर तक झकझोर देती है।
क्या पीहू उसे बदल पाएगी? क्या जो इनसान सारी हदों को पार कर चुका है, उसका हृदय बदला?
‘लड़की अनजानी सी’ भावनाओं का ऐसा उफान है, जो आपको यकीन दिला देगा कि कबूलनाम सबसे बड़ी सजा होती है।
अजय कुमार पांडे ने अपने लेखन से कई लोगों की जिंदगी को छूआ है, और वे लगातार प्रेम कहानियाँ लिख रहे हैं। उनकी पुस्तकें कई बेस्टसेलर चार्ट का हिस्सा हैं, और उन गहराइयों को टटोलती हैं, जहाँ तक दिल उतर सकता है।
प्रेम की नई परिभाषा रचनेवाली पठनीय कृति।
Ladkiyon Ke Liye Self Defence by Ranjana Kumari
एक श्लोक है—‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवताः’ यानी जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है। इसलिए भारत में स्त्रीशक्ति का सबसे अधिक सम्मान रहा और नारी की अस्मिता की रक्षा के लिए अनके निर्णायक युद्ध हुए। स्वयं नारी ने अपनी लाज की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। पर युग बदल गया है, नारी अब अपने स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए अपनी आहुति नहीं देगी वरन् स्वयं को अपनी रक्षा के लिए समर्थ बनाएगी और उसे स्पर्श करने का प्रयास करनेवाले का प्रतिकार करेगी।
इस पुस्तक में महिलाओं या लड़कियों की आत्मरक्षा से संबंधित विभिन्न उपायों की चर्चा की गई है, जिन्हें जानकर कोई लड़की या महिला खुद में अपराधी से लड़ने का आत्मविश्वास पैदा कर सकती है। साथ ही इसकी सहायता से खुद को मजबूत, सजग, सेहतमंद, चुस्तदुरुस्त बना सकती है, वहीं आत्मरक्षा के अचूक सूत्रों को सीख सकती है; आत्मरक्षा से संबंधित सारी जानकारियाँ प्राप्त कर सकती है।
यह पुस्तक किसी भी खतरनाक परिस्थिति में अपना बचाव करने और उससे उबरने में लगभग सभी आयुवर्ग की महिलाओं के लिए मददगार साबित हो सकती है।
लड़कियों को सेल्फ डिफेंस यानी आत्मरक्षा के व्यावहारिक गुण बताती जनोपयोगी पुस्तक।
Lady Susan by Jane Austen
‘‘आपको लंबे जूते पहनने चाहिए।’’ कुछ पल रुककर वह फिर बोले, ‘‘लंबे जूते पहनने से एडि़याँ एकदम साफ रहती हैं। काले के साथ लंबे जूते बहुत अच्छे लगते हैं। या आपको लंबे जूते पसंद नहीं हैं?’’
‘‘हाँ, पर अगर वे इतने मजबूत हों कि वे आपके पैरों के सौंदर्य को नष्ट न होने दें। वे इस तरह देहात में घूमने के लिए उपयुत नहीं हैं।’’
‘‘खराब मौसम में महिलाओं को घुड़सवारी करनी चाहिए। या आप घुड़सवारी करती हैं?’’
‘‘नहीं, लॉर्ड।’’
‘‘मैं सोचता हूँ, आखिर प्रत्येक महिला यों नहीं करती? औरत घोड़े की पीठ पर बैठी सबसे अच्छी लगती है।’’
‘‘पर हो सकता है कि प्रत्येक महिला की रुचि या उसके पास साधन न हों।’’
‘‘अगर उन्हें यह पता हो कि वह उन्हें या बना देगा तो उनकी रुचि भी पैदा हो जाएगी और मैं सोचता हूँ, मिस वॉटसन, एक बार जब उनका झुकाव हो जाएगा तो साधन अपने आप बन जाएँगे।’’
—इसी उपन्यास से
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विश्ववियात लेखिका जेन ऑस्टन की प्रसिद्ध कृति, जिसमें पाठक स्त्री-पुरुष संबंध और मानवीय संवेदना की झलक पाएँगे।
Lakshagrah (Krishna Ki Atmakatha -Iv) by Manu Sharma
मैं नियति के तेज वाहन पर सवार था। सबकुछ मुझसे पीछे छूटता जा रहा था। वृंदावन और मथुरा, राधा और कुब्जा-सबकुछ मार्ग के वृक्ष की तरह छूट गए थे। केवल उनकी स्मृतियाँ मेरे मन से लिपटी रह गई थीं। कभी-कभी वर्तमान की धूल उन्हें ऐसा घेर लेती है कि वे उनसे निकल नहीं पाती थीं। मैं अतीत से कटा हुआ केवल वर्तमान का भोक्ता रह जाता।
माना कि भविष्य कुछ नहीं है; वह वर्तमान की कल्पना है, मेरी अकांक्षाओं का चित्र है—और यह वह है, जिसे मैंने अभी तक पाया नहीं है, इसलिए मैं उसे एक आदर्श मानता हूँ। आदर्श कभी पाया नहीं जाता। जब तक मैँ उसके निकट पहुँचता हूँ, हाथ मारता हूँ तब तक हाथ में आने के पहले ही झटककर और आगे चला जाता है। एक लुभावनी मरीचिका के पीछे दौड़ना भर रह जाता है।
कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है।
यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है।
‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’
नारद की भविष्यवाणी
दुरभिसंधि
द्वारका की स्थापना
लाक्षागृह
खांडव दाह
राजसूय यज्ञ
संघर्ष
प्रलय
Lakshya Prapti Ke Funde by N. Raghuraman
जीवन में बड़े लक्ष्य निर्धारित करना, फिर उन्हें पाने के लिए अथक परिश्रम करना सबसे जरूरी है। बिना लक्ष्य तय किए कोई भी काम किया जाए, उसकी सफलता में संदेह हमेशा बना रहता है। इसलिए लक्ष्य तय करें और फिर प्राणपण से उनकों सिद्ध करने के लिए अपनी सारी क्षमता और ताकत लगा दें। लक्ष्य-निर्धारण और लक्ष्य-प्राप्ति के बीच के सफर को ठीक तरह से तय करने का मार्ग प्रशस्त करनेवाले प्रैक्टिकल फंडों का संकलन है यह पुस्तक।
चाहे स्टीव जॉब्स हों, थामस अल्वा एडिसन या नारायण मूर्ति हों, इनमें से किसी ने औसत विचार नहीं अपनाए, किसी ने भी अपने लक्ष्य के बारे में चर्चा नहीं की, न कभी अपने प्रयासों के बारे में बताया। लेकिन इन सभी ने आखिरकार अपनी उपलब्धियाँ सबको दिखाईं और यही कारण है कि वे वास्तविक सफल लोग माने जाते हैं।
इसलिए अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कीजिए, सफलता आपको जरूर हासिल होगी। आपकी लक्ष्य-प्राप्ति को सुनिश्चित करनेवाली एक बेहद उपयोगी पुस्तक।
Lakshya(Aim) by P.K. Arya
लक्ष्य एक छोटा सा बिंदु है, जिसके केंद्र में जीवन की सारी सफलताओं का स्रोत मौजूद है। इस बिंदु को लक्ष्य करके हर व्यक्ति अर्जुन की भाँति चिड़िया की आँख भेद सकता है। लक्ष्य का पथ बेशक कंटकपूर्ण है, लेकिन गंतव्य फूलों भरा और स्वागतपूर्ण है। जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को पा लेता है, वही पूजित होता है वही मान्य होता है और वही इतिहास में अपना नाम दर्ज कराता है।
अगर आपका लक्ष्य माउंट एवरेस्ट फतेह करना है तो बीच रास्ते से लौटने पर आपका स्वागत नहीं होगा। इसके लिए लक्ष्य भेदना ही जीवन का उद्देश्य बनाना होगा। याद रखें, जब कोई लक्ष्य निर्धारित किया जाता है तो बाधाओं का आना स्वाभाविक है, लेकिन जो व्यक्ति इन बाधाओं पर विजय पा लेता है, वही सफल होता है। यह भी जान लें कि बाधाएँ तभी उपस्थित होती हैं, जब हम लक्ष्य के प्रति एकाग्र और स्थिर नहीं होते—तभी बाधाएँ हमें भटका पाती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘लक्ष्य’ की ओर बढ़ते और बढ़ने के जिज्ञासुओं के लिए एक गाइड के रूप में काम आ सकती है। एक अनमोल व लक्ष्य-नियंता पुस्तक!
Lal Bahadur Shastri by Sunil Shastri
लाल बहादुर शास्त्री भारत माँ के उन महान् सपूतों में से एक हैं, जिनके आह्वान पर देश उनकी उँगली की दिशा में चल पड़ता था। उनके सुपुत्र सुनील शास्त्री ने इस पुस्तक के जरिए देश के उन लाखों युवक-युवतियों को संबोधित किया है, जिन्हें सादगीपूर्ण जीवन की विशेषताओं के बारे में नहीं मालूम। गांधीजी ने खुद सादगीपूर्ण जीवन जिया और अपने अनुयायियों को इस तरह का जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। शास्त्रीजी ने भी वैसा ही जीवन जिया, जैसाकि वे अपने साथी भारतीयों से उम्मीद करते थे। वे उपदेश नहीं देते थे, बल्कि एक सच्चे मनुष्य की तरह ऐसा सीधा-सादा जीवन जीते थे, जिसे उनके संपर्क में आनेवाला व्यक्ति आसानी से अपना सकता था। निस्स्वार्थ समाज-सेवक, प्रतिबद्ध एवं संवेदनशील नेता, सशक्त, दृढ़ एवं भद्र प्रधानमंत्री की अपनी भूमिकाओं में उन्होंने साबित कर दिखाया कि वे महान् व्यक्ति थे।
‘जय जवान, जय किसान’ के उद्घोषक शास्त्रीजी के विचारों, मूल्यों और आदर्शों का परिचय देनेवाली यह प्रेरक जीवनी हर भारतीय का समुचित मार्गदर्शन करेगी।
Lalu Leela by Sushil Kumar Modi
लालू प्रसाद ने विधायक, पार्षद, सांसद और मंत्री बनाने के एवज में जहाँ रघुनाथ झा, कांति सिंह जैसे अनेक नेताओं से जमीन-मकान दान में लिखवा लिये, वहीं भ्रष्टाचार से कमाए काले धन को सफेद करने के लिए बीपीएल श्रेणी के ललन चौधरी, रेलवे के खलासी हृदयानंद चौधरी तथा भूमिहीन प्रभुनाथ यादव, चंद्रकांता देवी, सुभाष चौधरी तक से नौकरी, ठेका या अन्य लाभ पहुँचाने के एवज में कीमती जमीन-मकान दान के जरिए हासिल कर लिये।
लालू परिवार ने अपने रिश्तेदारों को भी बेनामी संपत्ति हासिल करने का माध्यम बनाया। भाई के समधियाने, अपनी ससुराल, बेटी के ससुराल के रिश्तेदारों के नाम से पहले अपने काले धन से जमीन-मकान खरीदे और बाद में पत्नी, बेटों व बेटियों के नाम गिफ्ट करवा लिये। ऐसे करीब एक दर्जन मामले उजागर हुए हैं, जिनमें लालू परिवार ने करोड़ों की संपत्ति कौडि़यों के दाम पर राजनेताओं, अपने कारिंदों या रिश्तेदारों से दान करवा ली। इसके अलावा लालू प्रसाद ने संपत्ति हथियाने में आधा दर्जन से ज्यादा मुखौटा कंपनियों (shell companies) का इस्तेमाल करने में राबर्ट वाड्रा को भी मात कर दिया।
पत्नी, बेटों, बेटियों के लिए ही नहीं आनेवाली तीन-तीन पीढि़यों के लिए संपत्ति बटोरने की हवस का नाम है लालू प्रसाद।
Lauhpurush Sardar Patel Ke Prerak Prasang by Renu Saini
देश को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक नेताओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। अंग्रेजों के अत्याचारों का डटकर सामना किया। अपनी निर्भीकता से देश के वीर सपूतों एवं वीरांगनाओं ने अंग्रेजों की मनमानियों को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार वल्लभभाई पटेल भी उनमें से एक हैं। उन्हें उनकी निर्भीकता, कठिनाइयों का डटकर सामना करने, कार्य के प्रति लगन एवं व्यवहारकुशलता के कारण ‘लौहपुरुष’ का सम्मान दिया गया। सरदार पटेल ने अपना सर्वस्व देश को समर्पित कर दिया, यहाँ तक कि उनका व्यक्तिगत जीवन भी देश के सामने कुछ नहीं रहा। उन्होंने जन्म लिया ही था देश के लिए कुछ कर गुजरने के लिए। देश के छोटे-छोटे राज्यों का एकीकरण उन्हीं के द्वारा किया गया। वे अपनी वाक्पटुता से बचपन से ही विरोधियों को पराजित करते रहे और अपने मार्ग पर बढ़ते रहे।
उनका जीवन बेहद संघर्षमय रहा। यदि यह कहा जाए कि वे अपने जीवन में तलवार की धार पर चलते रहे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से राज-रजवाड़ों में बँटे देश को अखंड बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस पुस्तक में उनके जीवन की कुछ घटनाओं को यहाँ कथाओं के रूप में समेटने का एक विनम्र प्रयास किया गया है। इन कथाओं के माध्यम से पाठकों को लौहपुरुष सरदार पटेल के तपस्वी, त्यागपूर्ण, कर्तव्यनिष्ठ व अपार देशभक्ति की झलक मिलेगी।
Leader In You by Dale Carnegie
सफल नेता बनने के लिए किसी को न केवल अच्छे काम करने होंगे, बल्कि एक ओजस्वी वक्ता की तरह अपने विचारों को प्रभावी ढंग से पेश भी करना होगा। महान् नेता हमेशा अपने कामों और फैसलों पर भरोसा रखते हैं। वे अपने शब्दों की कीमत और उनकी ताकत को समझते हैं। मानव मनोविज्ञान की गहरी समझ के कारण व्यक्तित्व विकास के विश्वविख्यात लेखक डेल कारनेगी अपने पाठकों को जीवन में सही और फलदायी विकल्पों को चुनने की राह दिखाते हैं। यह पुस्तक, ‘लीडर इन यू’ पाठकों को प्रभावशाली और जोशीले भाषण देने के कौशल से समृद्ध करती है और उन्हें महान् नेता बनाने की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
आपके संपूर्ण व्यक्तित्व को रूपांतरित कर छुपी वक्तृत्वकला को जाग्रत् करके आत्मविश्वास के साथ प्रभावी भाषण देने की सामर्थ्य देनेवाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
Leadership Ke Funde by N. Raghuraman
जब कोई टीम जीतती है तो श्रेय पूरी टीम को मिलता है, पर उसमें विशेष योगदान उस टीम के लीडर का होता है। वह भिन्न-भिन्न सोच, क्षमता और प्रकृति के लोगों में एक ऐसे भाव का सूत्रपात करता है कि सबका एक ही लक्ष्य बन जाता है—जीत और सफलता।
कंपनी के उत्कर्ष के सफर में जहाँ लीडरशिप की मुख्य भूमिका होती है, वहीं अक्षम और अकुशल नेतृत्व किसी भी कंपनी को धराशायी करने के लिए काफी है। यह कुशल नेतृत्व का ही परिणाम है कि रिलायंस, इंफोसिस और टाटा जैसी कंपनियों ने वैश्विक स्तर पर सफलता का परचम लहराया और प्रसिद्धि पाई। दूरदर्शी सोच, रचनात्मक क्षमता और प्रबंधन कौशल—ये सभी कुशल नेतृत्व के विभिन्न पहलू हैं।
मैनेजमेंट के छोटे-छोटे सूत्रों की महत्ता को एक महत्त्वपूर्ण फंडा बनाने में सिद्धहस्त सुप्रसिद्ध स्तंभकार श्री एन. रघुरामन के व्यापक अनुभव से उपजे ये फंडे नेतृत्वकला को एक नई परिभाषा देते हैं। ये अपने सहयोगियों के साथ व्यवहार, उनकी क्षमताओं, उनके सुख-दु:ख में सहभागिता को ध्यान में रखने की याद दिलाते हैं। ये फंडे अहसास कराते हैं कि बेशक कोई व्यक्ति टीम लीडर हो, पर उसकी सफलता टीम वर्क पर ही निर्भर करती है।
आइए, इन फंडों से नेतृत्व कौशल के लिए आवश्यक गुणों में श्रीवृद्धि कर एक सफल लीडर बनें।
Leo Tolstoy by Ramesh Ranjan
रूस के महान् लेखक लियो टाल्सटॉय 19वीं सदी के एक सम्मानित लेखक थे। युवावस्था में कुछ समय उन्होंने रूसी सेना में नौकरी की और इसी दौरान क्रीमियन युद्ध (1855) में भाग लिया। अगले वर्ष ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और लेखन आरंभ कर दिया, जिसकी नींव उनके बचपन में ही पड़ चुकी थी। उनके उपन्यास ‘वॉर ऐंड पीस’ (1865-69) तथा ‘एना कैरनीना’ (1875-77) विश्व साहित्य की महान् रचनाओं में शामिल हैं।
आर्थिक दृष्टि से अति संपन्न और सम्मानित होने के बावजूद वे आंतरिक शांति के लिए तरसते रहे। आखिरकार सन् 1890 में घर-बार और धन-संपत्ति त्यागकर वे गरीबों की सेवा करने लगे और 20 नवंबर, 1910 को कंगाली की हालत में गुमनाम वृद्ध के रूप में मृत्यु को प्राप्त हुए।
मानव मन को छूनेवाली सामाजिक समदर्शिता और पारस्परिकता का बोध करानेवाली अगणित पठनीय रचनाओं के महान् लेखक की प्रेरणादायी जीवनी।
Leo Tolstoy Ki Lokpriya Kahaniyan by Leo Tolstoy
‘‘क्या वे लोग खेत जोत रहे हैं? क्या उन लोगों ने अपना काम खत्म कर लिया?’’
‘‘उन लोगों ने आधे से अधिक खेत जोत लिये हैं।’’
‘‘क्या कुछ भी काम बचा नहीं है?’’
‘‘मुझे तो नहीं दिखा; पर उन्होंने जुताई अच्छी तरह से की है। वे सभी डरे हुए हैं।’’
‘‘ठीक है। अब तो जमीन ठीक हो गई है न?’’
‘‘हाँ, अब खेत तैयार हैं और उनमें अफीम के पौधों के बीज डाले जा सकते हैं।’’
मैनेजर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला, ‘‘वे लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं? क्या वे मुझे गाली देते हैं?’’
बूढ़ा कुछ हकलाने लगा, पर माइकल ने उसे सच बोलने के लिए कहा, ‘‘तुम मुझे सच बताओ। तुम अपने शब्द नहीं, बल्कि किसी और के शब्द बोल रहे हो। यदि तुम मुझे सच-सच बताओगे, तब मैं तुमको इनाम दूँगा; और अगर तुम मुझे धोखा दोगे तो ध्यान रखना, मैं तुम्हें बहुत मारूँगा। कर्तुशा! इसे एक गिलास वोदका दो, ताकि इसमें साहस पैदा हो।’’
—इसी संग्रह से
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सुप्रसिद्ध रूसी कथाकार लियो टॉलस्टॉय ने जीवन के सभी पक्षों पर प्रभावी रचनाएँ की हैं। उन्होंने धर्म में व्याप्त पाखंड तथा तत्कालीन कुरीतियों को अनावृत किया। मनोरंजन के साथ-साथ मन को उद्वेलित करनेवाली सरस टॉलस्टॉय की लोकप्रिय कहानियों का संग्रह।
Leonardo Da Vinchi by Vinod Kumar Mishra
लियोनार्डो दा विंची
कोई व्यक्ति एक अच्छा चित्रकार हो सकता है, वैज्ञानिक हो सकता है, इंजीनियर और गणितज्ञ हो सकता है; पर एक ही व्यक्ति उत्कृष्ट चित्रकार, अच्छा वैज्ञानिक, श्रेष्ठ इंजीनियर, कुशल गणितज्ञ, अद्भुत चिंतक, गजब का वास्तुविद्, योजनाकार, संगीतज्ञ, वाद्ययंत्र डिजाइनर आदि सबकुछ हो— विश्वास करना कठिन है, लेकिन ऐसा ही एक अद्भुत व्यक्ति था—लियोनार्डो दा विंची।
लियोनार्डो युद्ध के घोर विरोधी थे, पर विडंबना यह कि उन्हें हिंसक अस्त्र-शस्त्र, युक्तियाँ, उपकरण आदि तैयार करने पड़े। परिस्थितियाँ इतनी प्रतिकूल थीं कि उनके तमाम चित्र, मूर्तियाँ, मॉडल आदि अधूरे ही रह गए। उनके डिजाइन किए हुए शहर, नहरें, बाँध आदि कागजों पर ही चिपके रह गए। बाद के वैज्ञानिकों, कलाकारों, दार्शनिकों ने उन्हें अपना आदर्श माना और उनके बनाए स्कैचों, डिजाइनों, मॉडलों आदि को मूर्त रूप दिया। उस काल में की गई उनकी कल्पनाएँ—जैसे पनडुब्बी, हेलीकॉप्टर, टैंक, सर्पिल सीड़ियाँ, साफ-सुथरे शहर, अद्भुत खिलौने—आज साकार हो चुकी हैं।
आजीवन गरीबी और बदहाली झेलनेवाले लियोनार्डो की एक कूटबद्ध नोटबुक ‘कोडेक्स लिसेक्टर’ हाल ही में तीन करोड़ में बिकी। खरीदनेवाले हैं—विश्व के सबसे धनी व्यक्ति एवं माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स। ऐसा करके बिल गेट्स ने अपने बचपन के आदर्श के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रस्तुत पुस्तक ‘लियोनार्डो दा विंची’ में सुधी पाठक इस अद्भुत चरित्र के बारे में पढ़कर जहाँ आश्चर्यचकित होंगे, वहीं ज्ञान के अथाह सागर में जी भरकर ज्ञान का आचमन करेंगे।
Lockdown Ki Reporter by Indiwar
माइकेला और रित न्यूयॉर्क और दिल्ली में डॉक्टर। कर्तव्य और भावना के द्वंद्व पर झूलते प्रेमी। एक नदी के दो किनारे। बीच में बहता कोरोना कालखंड। जोखिम उठाते ये डॉक्टर, इनके सपने और पत्रकार साबिया का प्रेम त्रिकोण। एक दुर्निवार प्रेम का विक्षोभ और मृत्यु का संत्रास…।
मृत्यु शाश्वत सत्य। मृत्यु की प्रकृति को जीतने और खतरनाक वायरस बनाने का राक्षसी प्रयोग। इसी ने कोविड-19 को जन्म दिया। इससे होनेवाली मौतें अस्वाभाविक और दुनिया को हादसे में झोंकने वाली। ये मौतें जीवन का अपमान हैं। इनसे लाभ का प्रयास जीवन और मृत्यु, दोनों का अपमान। कोरोना कालखंड ऐसी ही त्रासदी है। रिश्तों और प्यार के पाँवों में जकड़ी बेडि़याँ, दुनिया विशाल कैदखाना—सब बंद। खुली रहीं कब्रगाहें। उनकी खुदाई का काम चलता रहा। महाशक्तियाँ विवश, लॉकडाउन की मोहताज। फिर माइकेला और रित का प्यार…?
राक्षसी वृत्तियाँ इस त्रासदी में भी विस्तारवाद की ओर बढ़ीं। चीन ने अमेरिका को चुनौती दी। दक्षिणी सागर से विश्व युद्ध का खतरा उठा। गलवान की घटना और मोदी के सख्त रुख से चीन-भारत युद्ध आसन्न लगा। इसी कालखंड में शाहीन बाग, दिल्ली दंगा, निजामुद्दीन जमात और श्रीराममंदिर का शिलान्यास हुआ। विपक्ष की ओछी राजनीति दिखी। मोदी की वैश्विक नेता की छवि निखरी और राहुल का बौनापन उभरा।
ये सारे परिदृश्य इसी उपन्यास के हैं, जो राजनीतिक कुटिलता, बौद्धिकता, भावना, संवेदना, प्रेम, करुणा, घृणा के द्वंद्व की मार्मिक कथा कहते हैं।
Lok Vyavahar by Surya Sinha
जीवन मै जिन छोटी-छोटी बातों को महत्त्वहीन समझकर हम नजरअंदाज करते रहते हैं, वही आगे चलकर हमारी सफलता- असफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।
प्रसिद्ध लेखक सूर्या सिन्हा का कहना है कि हमारी असफलता का मुख्य कारण यह है कि हम लोगों को अपना नहीं बना पाते और न ही किसी के बन पाते हैं । जीवन की भागमभाग में हम खुलकर किसी से अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं कर पाते अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते, जिससे हमारे अपने जीवन में, घर में, मित्रों में, रिश्तेदारों में और समाज में पारस्परिक दूरियाँ बढ़ रही हैं ।
मानवीय व्यवहारों पर आधारित यह एक उत्कृष्ट पुस्तक है, जो मौन को तोड़ती है और समता, ममता एवं प्यार से हमें एक-दूसरे से जोड़ती है । आज के वातावरण में जीवन में सफलता पाने का एकमात्र उपाय है कि हम लोगों को अपना बनाना सीखें ।
प्रस्तुत पुस्तक ‘ लोगों को अपना कैसे बनाएँ ‘ आपसी दूरियों और अकेलेपन को मिटाकर नई भावना, नई सोच और सबको अपना बनाने के द्वार खोलने में अत्यंत सहायक सिद्ध होगी, जिससे हम जीवन में सुख- सफलता अवश्य प्राप्त कर सकेंगे ।
Loknayak Jai Prakash Narayan by Pankaj Kishor
लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में हुआ। पढ़ाई में वे शुरू से ही कुशाग्र थे, इसलिए राजनीतिशात्र और समाजशात्र में बी.ए. एवं एम.ए. अमेरिका से किए।
सन् 1929 में पं. नेहरू के आमंत्रण पर वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। इस दौरान महात्मा गांधी उनके गुरु और पथ-प्रदर्शक बने।
स्वतंत्रता और गांधीजी के निधन के बाद जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव और बसावन सिंह ने पहली विपक्षी सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। बाद में उसका नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी कर दिया गया।
जयप्रकाश नारायण का कहना था कि सिर्फ शासक बदलने से समस्या का हल नहीं होता, जब तक कि सारी व्यवस्था में आमूल परिवर्तन न हो। चंबल के चार सौ डाकुओं का समर्पण; बिहार में अराजक सत्ता व्यवस्था, कुशिक्षा, अपराध व अराजकता के खिलाफ ऐतिहासिक छात्र आंदोलन; व्यवस्था में बदलाव के लिए संपूर्ण क्रांति के आह्वान से लेकर केंद्र में इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार को सत्ता से उखाड़कर लोकतंत्र की बहाली तक जयप्रकाश नारायण ने विविध सत्याग्रही भूमिकाओं का निर्वहण किया।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इस देश में सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए एक संपूर्ण क्रांति का सपना देखा और देश के सम्मुख उसे प्रस्तुत किया।
प्रस्तुत है स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के क्रांतिकारी विचारक, दूरद्रष्टा और समाज में चेतना जगानेवाले लोकनायक की पठनीय एवं प्रेरणादायी जीवनी।
Lokpriya Aadivasi Kahaniyan by Vandna Tete
आदिवासियों का ‘कहना’ बिखरा हुआ है, बेचारगी और क्रांति, ये दो ही स्थितियाँ हैं, जिसकी परिधि में लोग आदिवासियों के ‘कहन’ को देखते हैं। चूँकि गैर-आदिवासी समाज में उनका बड़ा तबका, जो भूमिहीन और अन्य संसाधनों से स्वामित्व विहीन है, ‘बेचारा’ है, इसलिए वे सोच भी नहीं पाते कि इससे इतर आदिवासी समाज, जिसके पास संपत्ति की कोई निजी अवधारणा नहीं है, वह बेचारा नहीं है। वे समझ ही नहीं पाते कि उसका नकार ‘क्रांति (सत्ता) के लिए किया जानेवाला प्रतिकार’ नहीं बल्कि समष्टि के बचाव और सहअस्तित्व के लिए है। जो सृष्टि ने उसे इस विश्वास के साथ दिया है कि वह उसका संरक्षक है, स्वामी नहीं।
इस संग्रह की कहानियाँ आदिवासी दर्शन के इस मूल सरोकार को पूरी सहजता के साथ रखती हैं। क्रांति का बिना कोई शोर किए, बगैर उन प्रचलित मुहावरों के जो स्थापित हिंदी साहित्य व विश्व साहित्य के ‘अलंकार’ और प्राण तत्त्व’ हैं।
एलिस एक्का, राम दयाल मुंडा, वाल्टर भेंगरा ‘तरुण’, मंगल सिंह मुंडा, प्यारा केरकेट्टा, कृष्ण चंद्र टुडू, नारायण, येसे दरजे थोंगशी, लक्ष्मण गायकवाड़, रोज केरकेट्टा, पीटर पौल एक्का, फांसिस्का कुजूर, ज्योति लकड़ा, सिकरा दास तिर्की, रूपलाल बेदिया, कृष्ण मोहन सिंह मुंडा, राजेंद्र मुंडा, जनार्दन गोंड, सुंदर मनोज हेम्ब्रम, तेमसुला आओ, गंगा सहाय मीणा और शिशिर टुडू की कहानियाँ।
Lokpriya Aadivasi Kavitayen by Vandna Tete
देश के चुनिंदा आदिवासी कवियों का यह संग्रह सामुदायिक प्रतिनिधियों के आदिवासी अभिव्यक्ति के सिलसिले की शुरुआत भर है। हिंदी कविता में पहली आदिवासी दस्तक सुशीला सामद हैं, जिनका पहला हिंदी काव्य-संकलन ‘प्रलान’ 1934 में प्रकाशित हुआ। आदिवासी लोग ‘होड़’ (इनसान) हैं और नैसर्गिक रूप से गेय हैं। अभी तक उनका मानस प्रकृति की ध्वनियों और उससे उत्पन्न सांगीतिक विरासत से विलग नहीं हुआ है। ‘होड़’ आदिवासी लोग गेयता और लयात्मकता में जीते हैं जो उन्होंने प्रकृति और श्रम के साहचर्य से सीखा है। प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ ‘गीत’ रचनाएँ नहीं हैं, जो सामूहिक तौर पर रची, गाई, नाची और बजाई जाती हैं। लेकिन आदिवासी कविताओं की मूल प्रकृति ‘गीत’ की ही है, जिसका रचयिता कोई एक नहीं बल्कि पूरा समुदाय हुआ करता है; जिसमें संगीत और नृत्य की अनिवार्य मौजूदगी होती है और जिनके बिना गीतों का कोई अस्तित्व नहीं रहता। संग्रह में शामिल कविताएँ ‘गीत’ सृजन की इस सांगीतिक परंपरा को अपने साथ लेकर चलती हैं और ‘गीत’ नहीं होने के बावजूद ध्वनि-संगीत की विशिष्टता से खुद को गीतात्मक परंपरा से बाहर नहीं जाने देतीं।
दुलाय चंद्र मंडा, तेमसुला आओ, ग्रेस कुजूर, वाहरू सोनवणे, रामदयाल मुंडा, उज्ज्वला ज्योति तिग्गा, महादेव टोप्पो, इरोम चानू शर्मिला, हरिराम मीणा, कमल कुमार तांती, निर्मला पुतुल, अनुज लुगुन, वंदना टेटे और जनार्दन गोंड की कविताओं का संकलन।
Lokpriya Jasoosi Kahaniyan by Bhavishya Kumar Sinha
‘दीवारों के भी कान होते हैं’, हिंदी में इस कहावत का क्या आधार है? इसकी परिभाषा या व्याख्या की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि एक अनपढ़ भी इसका मतलब समझता है। जासूसी का इतिहास बहुत लंबा है। पाँच हजार साल पीछे जाएँ तो महाभारत में भी कई मिसाल मिल जाएँगी। पांडवों का अज्ञातवास भंग करने का प्रयास एक जासूसी प्रकरण नहीं तो और क्या है! जासूसी कहानी में एक जबरदस्त कौतूहल, जिज्ञासा और उत्कंठा होती है, जो पाठक की दिलचस्पी को आगे आनेवाली घटनाओं के बारे में मजबूती से पकड़कर रखती है। पाठक के सभी अनुमान विफल हो जाते हैं, जब घटनाक्रम अकस्मात् नए-नए मोड़ लेता है। इस रुचि को बाँधे रखना ही जासूसी कहानियों के लेखक की लेखन-निपुणता की कसौटी है। बड़े-बड़े तिलिस्मी उपन्यासों, जैसे कि चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, सफेद शैतान आदि से कौन परिचित नहीं है।
इस संग्रह में अंग्रेजी की कुछ प्रमुख और लोकप्रिय जासूसी कहानियों का संकलन है, जो रहस्य-रोमांच से भरपूर हैं और पाठकों को बाँधकर रखने की अद्भुत क्षमता रखती हैं।
Lokpriya Jatak Kathayen by Mahesh Dutt Sharma
भगवान् बुद्ध के अनुयायी बुद्ध घोष ने लगभग दो हजार वर्ष पहले जातक कथाएँ लिखीं। जातक कथाएँ बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के सुत्त पिटक के खुद्दकनिकाय का हिस्सा हैं।
जातक कथाओं में भगवान् बुद्ध के 547 जन्मों का वर्णन है। कथाओं की विविधता, शैक्षिकता, रोचकता और उपयोगिता को बढ़ाने के लिए इस पुस्तक में भगवान् बुद्ध के पे्ररक प्रसंगों को भी स्थान दिया गया है। कथाओं में पात्रों के रूप में पशु-पक्षियों, मनुष्य, सामाजिक परिवेश, भावनाओं इत्यादि सभी का समावेश भगवान् बुद्ध के विराट् व्यक्तित्व को दरशाता है।
इतने सालों बाद आज भी इन अमरकथाओं की प्रासंगिकता जस-की-तस बनी हुई है। इनके अध्ययन और अनुकरण द्वारा कोई भी नीति-निपुण तथा नैतिक ज्ञान-संपन्न हो सकता है, इसमें जरा भी संदेह नहीं है।
हर आयु वर्ग में पाठकों के लिए पठनीय, संग्रहणीय और अनुकरणीय पुस्तक।
Loktantra by Brahma Dutt Awasthi
‘लोकतंत्र’ लोक के जिस हिमालयी शिखर से निकला था, उसका प्रवाह पश्चिम की भोगवादी स्वार्थपरक दृष्टि में इतना छितराया कि उसका मूल-प्रवाह कौन सा है—पहचानना मुश्किल हो गया है, जो अब नाम लेने को तो लोकतंत्र है, पर वास्तव में यह उस गंदी नाली से भी बदतर है, जो प्रवाहहीन होकर सड़ाँध मार रही है।
प्रवाहहीन-लोक लोकतंत्र को गति कैसे प्रदान करे? इसके लिए तो लोक को स्वतःस्फूर्त होकर स्वयं सिद्धमना बन भागीरथ प्रयास करना होगा।
‘लोकतंत्र’ शीर्षक यह पुस्तक भूमि, जन और संस्कृति के भोगे हुए यथार्थ और वर्तमान लोकतंत्र के पड़े हुए कुठाराघातों से आंदोलित मन की पीड़ा का वह ज्वालामुखी विस्फोट है, जिससे निकले शब्द रूपी प्रक्षिप्त-पदार्थ (Pyroclast) देखने में तो बिना लय, ताल, आकार, क्रम के प्रतीत होते हैं परंतु उनका संगीत शुद्ध प्राकृतिक दैवजनित है, जिसको सुनना-समझना सृष्टि की आत्मा को आत्मसात् करने जैसा होता है, जहाँ कुछ भी अव्यवस्थित नहीं, सब प्राकृतिक रूप से लयबद्ध और तालबद्ध।
लोकतंत्र के इस संगीत को हम सभी महसूस कर आत्मसात् करें, जिससे लोक के आँगन में सृजन और स्व-विकास की स्वर-लहरियाँ फिर से गूँज उठें और हम विजयी हो ‘पाञ्चजन्य’ का नाद कर सकें।
Loktantra Ka Sipahi Kj Rao by Devipriya
जे. राव ने उन सभी भारतीयों पर गहरा असर छोड़ा, जो लोकतंत्र की सही कार्यप्रणाली के लिए स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों को आवश्यक मानते हैं। उनकी विशिष्ट योग्यताओं तथा साहस के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन उनके आरंभिक जीवन, पालन-पोषण तथा विकास के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। इस पुस्तक में के.जे. राव के जीवन के अनछुए पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की है।
राष्ट्र को ऐसे विलक्षण व्यक्ति के बारे में जानने की जरूरत है, जिसने हमेशा नियम के अनुसार काम किया और अवकाश ग्रहण करने के पहले तक चुनाव आयोग के कार्यालय में हमेशा सिर ऊँचा करके काम किया।
आखिर यह लौहपुरुष आया कहाँ से? इतने प्रलोभनोंवाले पदों पर रहकर उसने ऐसी अकूत नैतिक शक्ति कहाँ से पाई? उसके सहज बरताव का रहस्य क्या है? रणनीति से भरपूर, लेकिन राजनीति से दूर रहनेवाले आम मतदाता आखिर उनके प्रति इतना अधिक भक्ति-भाव क्यों रखते हैं? क्या इसलिए कि राव ने उन्हें बूथ लुटेरों की गिरफ्त से निकालकर वोट डालने का साहस दिया? गुमनाम और गरीब कलिंग-आंध्र के एक गाँव का यह सामान्य व्यक्ति दिल्ली के शिखर तक कैसे पहुँचा?
इन्हीं सब जिज्ञासाओं का समाधान है इस बेहद प्रेरणादायी पुस्तक में।
Loktantra Ke Paye by Manohar Puri
लोकतंत्र के पाये
अनूठा व्यंग्य शिल्पी
मनोहर पुरी में वैचारिक संप्रेषण संसार रचने की अपूर्व विशेषता है। वे दुखती रग को पहचानते हैं। वे उपदेष्टा नहीं हैं, किंतु एक उपदेशकीय दृष्टि की सृष्टि अवश्य ही रच देते हैं। उनके व्यंग्य का कैनवास बहुआयामी तथा सर्वग्राही है। उनकी व्यंग्य-क्षुधा किसी भी विद्रूपता या विडंबना को वर्ज्य नहीं मानती।
—बालेंदु शेखर तिवारी
स्पष्ट दृष्टिकोण का व्यंग्यकर्मी
मनोहर पुरी एक ऐसे सजग, चिंतनशील रचनाकार हैं जो अपने स्पष्ट दृष्टिकोण एवं विचारधारा के तहत राजनीतिक क्षेत्र में व्याप्त विसंगतियों की व्यंग्यात्मक आलोचना कर रहे हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य के नए शिल्प की पकड़ दिखाई देती है। गद्यात्मक व्यंग्य रचनाओं में पद्य की एक अलग लय है, जो पाठक को कविता का आनंद देती है।
—प्रेम जनमेजय
विशिष्ट शैली के रचनाकार
मनोहर पुरी का व्यंग्य-संसार बहुत विस्तृत है। उन्होंने राजनीति, समाज, संस्कृति, प्रशासन, धर्म आदि क्षेत्रों की विसंगतियों की बहुत गहरे तक जाकर पड़ताल की है। उनकी शैली में एक अलग किस्म का चुटीलापन है।
—सुभाष चंदर
तेजाबधर्मी व्यंग्य हस्ताक्षर
मनोहर पुरी के व्यंग्य में एक पत्रकार की खोजी ‘दीठ’ है, जो उनके लेखकीय कैनवास को विराट् आयाम देती है। उनकी व्यंग्य भाषा में एक निश्चित ‘राग’ है, जो उसे काव्यमय बना देता है। इसीलिए इनका व्यंग्य-शूल तुकांत शैली की पंखुड़ियों में छुपकर चुभन का दंश देता है।
—नंदलाल कल्ला
Loktantra Ki Kasauti by Anant Vijay
लेखक अनंत विजय का कहना है कि बिहार के कस्बाई शहर जमालपुर में स्कूल के दिनों से ही मुझे राजनीति में गहरी रुचि हो गई थी। पता नहीं कैसे और क्यों? राजन इकबाल सीरीज के उपन्यास पढ़ते-पढ़ते मैं कब ‘माया’, ‘रविवार’, ‘दिनमान’ के पन्ने पलटने लग गया, अब ठीक से याद नहीं। मुझे राजनीतिक रिपोर्ट्स और लेख पढ़ना अच्छा लगता था। जमालपुर के रेलवे स्टेशन पर पत्र-पत्रिकाओं की दुकान थी, उसका जो भी मालिक होता था, वह मेरा दोस्त हो जाता था। इससे फायदा यह होता था कि जो पत्रिकाएँ मैं खरीद नहीं पाता था, उसको वहीं खडे़ होकर पढ़ लेता था। बाद में जब ‘टीएनबी कॉलेज’, भागलपुर पहुँचा और हॉस्टल में रहने लगा तो छात्र राजनीति को नजदीक से देखने का मौका मिला। मैंने राजनीति तो कभी की नहीं, लेकिन राजनीतिक विषयों पर पढ़ना अच्छा लगता था। वैसे तो मैं इतिहास का विद्यार्थी था, लेकिन राजनीति की किताबें मुझे सदैव अपनी ओर खींचती रहीं।
बाद में जब मैं दिल्ली आया तो लेखन का आकाश खुला। अखबारों में टिप्पणियाँ लिखने लगा, फिर यह सिलसिला चल निकला। साहित्य में गहरी रुचि होने के कारण पहले तो मैंने जमकर साहित्यिक पत्रकारिता की, बाद में राजनीतिक लेखन की ओर मुड़ा। पिछले एक दशक में भारत की राजनीति में कई बदलाव आए, जिसको रेखांकित करना मुझे आवश्यक लगा और मैंने किया भी। प्रस्तुत पुस्तक में उन्हीं सब का लेखा-जोखा है, जो पाठकों को रुचिकर लगेगा।
Loktantra Ki Maya by Arvind Mohan
मंडल, कमंडल और भूमंडलीकरण ने पिछले ढाई-तीन दशकों में मुल्क की राजनीति और समाज में तेज बदलाव किए हैं। ये बदलाव धनात्मक हैं और ऋणात्मक भी। इनसे शायद ही कोई अछूता बचा हो। राजनीति में पिछड़ों का निर्णयात्मक बढ़त लेना, दलितों और आदिवासियों का दमदार ढंग से उभरना, महिला शक्ति का अपनी उपस्थिति दर्ज कराना, हिंदी का बिना सरकारी समर्थन के उभरना, क्षेत्रीय राजनीति का सत्ता के विमर्श में प्रभावी होना जैसी अनेक प्रवृत्तियाँ अगर हमारे लोकतंत्र की ताकत को बढ़ाती हैं तो जाति, संप्रदाय, व्यक्तिवाद, परिवारवाद और राजनीति में धन तथा बाहुबल का जोर बढ़ना काफी नुकसान पहुँचा रहा है।
इस दौर की राजनीति और समाज पर पैनी नजर रखनेवाले एक पत्रकार के आलेखों से बनी यह पुस्तक इन्हीं प्रवृत्तियों को समझने-समझाने के साथ इस बात को रेखांकित करती है कि इन सबमें जीत लोकतंत्र की हुई है और उसमें बाकी बुराइयों को स्वयं दूर करने की क्षमता भी है। अगर देश के सबसे कमजोर और पिछड़ी जमातों की आस्था लोकतंत्र में बढ़ी है तो यह सरकार बदलने से लेकर बाकी कमजोरियों को दूर करने के लिए आवश्यक ताकत और ऊर्जा भी जुटा लेगी।
Loktantra Mein Lok by Devdas Apte
वरिष्ठ समाजधर्मी श्री देवदास आपटे के सामाजिक दृष्टिकोण को दरशाते लेखों का पठनीय संकलन। उन्होंने ‘लोक’ के बीच अपना जीवन बिताया है। उनके सुख-दु:ख को देखा, सुना और आत्मसात् किया है। वह ‘लोक’ जिसका जीवन खुली किताब के रूप में होता है। ऐसा ‘लोक’ ग्रामीण जीवन का ही है। अत्यंत सहृदय और संवेदनशील, तो दूसरी तरफ हृदयहीन और कठोर भी। अज्ञान और ज्ञान से भरा हुआ। वह लोक, जो साफ-साफ बोलता है, सबको समझता है।
पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं की गहरी जानकारी, उनके निदान की प्रबल व्यावहारिक सोच और अपनी राजनैतिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देश के कोने-कोने में घूमते रहना आपटेजी के शौक हैं। अतीव संवेदनशील होने के कारण समस्याओं की जड़ तक जाना और उनका समाधान ढूँढ़ना, बेबाकी से बोलना और लिखना इनकी विशेषता रही है।
नेता और जनता, शहर और गाँव, करणीय और अकरणीय में बना फासला दिनानुदिन बढ़ता गया है, इसके साथ समस्याएँ भी। देवदासजी के ये आलेख फासला पाटने की कोशिश करनेवालों के लिए जहाँ मार्गदर्शक हैं, वहीं नीतियाँ और कार्यक्रम बनानेवालों के लिए जानकारियाँ भी।
Long March : Bapu Ki Ba – Ba Ke Bapu by Hemant
सत्याग्रह के बारे में गांधीजी की व्याख्या और टिप्पणियों के अनगिनत दस्तावेज हैं। उनकी कही कई-कई बातें हैं। कुछ बातें ऐसी हैं, जो बच्चों की निर्दोष मुस्कान जैसी सरल दिखती हैं, लेकिन बड़े-बड़ों तक को रहस्यमय लगती हैं। उनकी एक बात तो सौ साल बाद भी, बड़ेबुजुर्गों तक को चौंकाती है। वे कहते हैं-प्रकृति का नियम है कि कोई भी वस्तु उन्हीं साधनों से अक्षुण्ण रखी जा सकती है, जिनसे उसे प्राप्त किया गया है। हिंसा से प्राप्त वस्तु को सिर्फ हिंसापूर्वक ही बचाया जा सकता है। सत्य से प्राप्त की गई वस्तु को सत्य से ही अक्षुण्ण रखा जा सकता है। सत्याग्रह में ऐसा कोई चमत्कारी तत्त्व नहीं है कि सत्य द्वारा प्राप्त वस्तु को सत्य का साथ छोड़कर अक्षुण्ण रखा जा सके। यदि ऐसा संभव हो, तो भी ऐसा नहीं होना चाहिए। आखिर इसके क्या मायने हैं?
प्रस्तुत कथा ‘लॉन्ग मार्च’ (बापू की बा : बा के बापू) पढ़कर आपको शायद लगेगा कि गांधी के लिए सत्याग्रह की सीमा-संभावना से जुड़ी उक्त बात प्रयोगसिद्ध हुई, इसलिए अनुभव सिद्ध हुई।
लेकिन आज भी अधिसंय अनुभवी लोग इस बात से सहमत नहीं नजर आते । युवा पीढ़ी के कई लोग तो इसे हर समय और स्थिति के लिए प्रयोजनसिद्ध भी नहीं मानते।
-इसी पुस्तक से
Lopamudra by Mahendra Madhukar
भारत की वैदिक ऋषिकाओं में महर्षि अगस्त्य की पत्नी ‘लोपामुद्रा’ का चरित्र एक क्रियाशील और रचनात्मक स्त्रीशक्ति के रूप में प्रकट हुआ है। राजसी वातावरण से वन के आश्रम-जीवन में प्रवेश करना, महात्रिपुरसुंदरी की शक्ति के रूप में भोग और योग को समान भाव से स्वीकार करना, धन, वन और मन–तीनों भूमिकाओं में सहज रहना, कई बदलती मुद्राओं में भील, कोल-किरात आदि वन्य-जीवों को प्रशिक्षित कर मनुष्यता की सीख देना और अंत में महर्षि अगस्त्य के साथ भारत के दक्षिण भाग को समुन्नत करना उनके ऋषिधर्म की विराटता को सूचित करता और बताता है कि समूची सृष्टि को ध्यान में रखना ही असली ध्यान है, जीवन की विविधता का परिचय ही ज्ञान है और श्रम-साधना ही वास्तविक तप है।
लोपामुद्रा का चरित्र अत्यंत कोमल, वत्सल और करुणा भाव से युक्त मातृशक्ति का उदाहरण है। वे वेदमंत्रों का दर्शन करती हैं, उसकी दिव्यता को सबके जीवन में उतारना चाहती हैं। वे त्रिपुरसुंदरी की श्रीविद्या और हादि विद्या की द्रष्टा हैं तो वे सर्वसाधारण और सर्वहारा वर्ग के विकास की भी चिंता करती हैं। दोनों तत्त्वों का विरल सामंजस्य ही उनकी विशेषता है।
‘लोपामुद्रा’ एक दिव्य सशक्त नारी भाव की कुंजी है, जो केवल अपने पति महर्षि अगस्त्य को ही महान् नहीं बनातीं, अपितु दमित, दलित और असहाय मानववर्ग को अपनी छिपी हुई क्षमता से परिचित कराकर संपूर्ण समाज और राष्ट्र को उन्नत धरातल पर प्रतिष्ठित करती हैं।
Lord Of Records by Dr. Harish Chandra Burnwal
‘लॉर्ड ऑफ रिकॉर्ड्स’ पुस्तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल का तथ्यात्मक दस्तावेज है। इसमें न्यू इंडिया की उपलब्धियों का लेखा-जोखा है। इसका प्रत्येक रिकॉर्ड एक भारतवासी होने के नाते आपके गौरव और स्वाभिमान को बढ़ाएगा। प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल पर लेखक डॉ. हरीश चंद्र बर्णवाल की बहुत ही बारीक नजर रही है। ‘लॉर्ड ऑफ रिकॉर्ड्स’ में लेखक ने 26 मई, 2014 से 30 मई, 2019 तक के 243 ऐसे रिकॉर्डों को संकलित किया है, जो वैश्विक स्तर पर या फिर भारत में पहली बार किसी प्रधानमंत्री के नाम दर्ज हुए हैं।
जब भी आजादी के बाद की भारत की विकासयात्रा इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी तो दो ही कालखंडों की चर्चा होगी, प्रधानमंत्री मोदी से पहले और प्रधानमंत्री मोदी के बाद। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत की विकासयात्रा को प्रधानमंत्री मोदी ने न सिर्फ नई गति दी, बल्कि उसे नए सिरे से परिभाषित किया, नया नजरिया दिया, नई दिशा दी और नए अंदाज में आगे बढ़ाने का संकल्पपैदा किया।
नरेंद्र मोदी भारतीय इतिहास के ऐसे इकलौते शख्स हैं, जिन पर मीडिया ने सबसे ज्यादा प्रहार किया है, जिनका विपक्ष ने सबसे अधिक विरोध किया है और जिन्हें तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने बार-बार कठघरे में खड़ा किया है, लेकिन हर बार नरेंद्र मोदी परिश्रम की पराकाष्ठा करके जनता की अदालत से उतना ही अधिक तप कर, खरा सोना बनकर निकले हैं। ‘लॉर्ड ऑफ रिकॉर्ड्स’ पुस्तक की अहमियत इसी संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है।
भारत के सामान्य ज्ञान की जिज्ञासा रखने वाले विश्व के सभी प्रबुद्ध जनों के लिए यह पुस्तक मील का एक पत्थर साबित होगी।
Louis Braille by pratyush Kumar
दो साल का एक बालक सुई से खेलते-खेलते अचानक अपनी बाईं आँख फुड़वा लेता है। उसकी एक आँख चली जाती है और संक्रमण के कारण चार साल की उम्र में उसकी दूसरी आँख भी चली जाती है और वह पूरी तरह नेत्रहीन हो जाता है। यह दर्दनाक कहानी सन् 1809 में फ्रांस में जनमे लुई ब्रेल की है।
नेत्र ज्योति खोने के बावजूद ब्रेल हताश नहीं हुआ। वह होशियार छात्र था। दस साल की आयु में उसे नेत्रहीन बच्चों के लिए स्थापित विश्व के पहले स्कूल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रन, पेरिस में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली। 1821 में इंस्टीट्यूट में एक पूर्व सैनिक का भाषण हुआ। उसने बताया कि वे डॉट तकनीक से अँधेरे में भी संचार कर लेते थे। उसके इस भाषण से ब्रेल को नेत्रहीनों के लिए एक लिपि विकसित करने का आइडिया मिला। उसने जो लिपि ईजाद की, वह ‘ब्रेल लिपि’ के नाम से जानी जाती है और दुनिया भर में नेत्रहीनों की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। इस लिपि में अनेक प्रसिद्ध पुस्तकें अनूदित हुई हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि ब्रेल का नेत्रहीन होना दुनिया भर के नेत्रहीनों के लिए वरदान बना।
अद्भुत परोपकारी और मानवता के अनन्य सेवक तथा दृष्टिहीनों की दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाले लुई ब्रेल की प्रामाणिक जीवन-कथा।
Maa by Jagram Singh
माँ सृष्टि का बीज मंत्र है। इसमें समस्त दैवीय शक्तियाँ व्यक्त और अव्यक्त रूप में प्राण प्रतिष्ठित हैं। माँ शब्द का श्रवण नवधा भक्ति का स्रोत, संकेत मात्र का आचमन निर्विघ्न जीवन का महाप्रसाद, क्षणिक का स्पर्श परमगति का आलिंगन है। यह विविध रूपों में जन्म से लेकर मरण तक अविभाज्य परछाईं बनकर अनुगामी, सहगामी होता है। फिर चाहे जन्म देनेवाली कोख का निस्स्वार्थ संबल और ममता का सावनमय आँचल हो, धारण करनेवाली के विस्तीर्ण वक्ष का अमिययुक्त क्षुधा की पूर्ति का साधन हो, सीपमुख में पड़े स्वाति बूँदरूपी अनमोल मोती हो, त्रिताप हरनेवाली प्राणदायिनी महासंजीवनी हो, सुमन पालना सदृश कुटुंब, गाँव, समाज का अक्षुण्ण आनंदमयी सान्निध्य हो, निराशा भरी विजन डगर में निरा संभ्रमित पथिक को पाषाण स्तंभ का मूक दिशा-दर्शन और समस्त पापों से मुक्ति का यज्ञानुष्ठान हो, माँ की आदि शक्ति सी महत्ता, गगन सी उच्चता, सर्वेश्वर सी श्रेष्ठता, धरित्री सी विशालता, हिमगिरि सी गुरुता, महोदधि सी गहनता आदि के पावन कर्णप्रिय संबोधन पल-पल मातृत्व, कर्तव्य, नेतृत्व का आभास कराकर जीवन को सार्थक्य पथ की ओर प्रेरित, मार्गदर्शित करते हैं। जिसमें धन्यता का अनियमय आनंद जीवनदीप को प्रदीप्त कर मुक्ति का अधिकारी बनाता है और मातृत्व का साक्षात्कार कर पग-पग पर सुमन शय्या बनकर बिछ जाना ही अंततः अंतकरण को भाता है।
माँ की महत्ता, उसके ममत्व, त्याग, समर्पण और सर्वस्व बालक पर न्योछावर करने की अतुलनीय और अप्रतिम प्रकृति का नमन-वंदन करने हेतु कृतज्ञता स्वरूप लिखी यह पुस्तक हर पाठक के लिए पठनीय है।