Hindi Literature
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Jo Kaha So Kiya Madhya Pradesh Ki Vikasa Gatha by Ed. Prabhat Jha
मध्य प्रदेश में जनकल्याण की योजनाएँ जन-जन की उपज हैं। जनता की आवाज को योजना के आकार में तब्दील करने का कार्य मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। वे स्वयं किसी योजना की सफलता का श्रेय नहीं लेते। हम सभी जानते हैं कि मध्य प्रदेश की जन-कल्याणकारी योजनाओं पर अनेक लोग शोध कर रहे हैं। सहसा लोगों को विश्वास नहीं होता कि इन सफलतम योजनाओं का जन्मदाता कौन है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं कहते हैं कि मैंने जो असीम पंचायतें बुलाईं, उन्हीं में से इन जनकल्याणकारी योजनाओं का जन्म हुआ है। पंचायतों का यह प्रयोग भारत में पहली बार मध्य प्रदेश में हुआ है। सामान्य व्यक्ति कभी नहीं सोचता था कि वह कभी मुख्यमंत्री निवास जाएगा। वहाँ पंचायत में बैठकर, उनसे उनकी पंचायतों के बारे में, उनकी कठिनाइयों के बारे में चर्चा होगी, ये बातें असामान्य और अविश्वसनीय लगती थीं, पर ये सपने साकार हुए। शासन-प्रशासन की उपस्थिति में पंचायतों में भाग लेनेवाले सामान्यजन का उत्साह देखते ही बनता था। वे बिना किसी भय के खुलकर चर्चा करते देखे गए। शासन-प्रशासन भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने मुस्तैद रहता था। समाज का कोई भी वर्ग नहीं छूटा इन पंचायतों से। ऐसा लग रहा था जैसे मुख्यमंत्री ने पंचायतों के माध्यम से चहुँमुखी विकास की गति बढ़ाने का अभियान सा ले लिया है। भारतीय राजनीति के इतिहास में पंचायतों का यह प्रयोग अविस्मरणीय एवं अकल्पनीय रहा, और इनसे एक ही स्वर प्रस्फुट हुआ—जो कहा, सो किया।
Jo Nahin Laute by Narottam Pandey
माता और मातृभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है । वस्तुत: इनसे वियोग सबके लिए दु:खदायी रहा है, चाहे वह उन्नीसवीं सदी का निपट गँवार, फुसलाकर भेजा गया अनपढ़ पतिराम हो या आधुनिक बुद्धिजीवी, जिन्होंने स्वेच्छा से देश-त्याग किया हो ।
पतिराम एक व्यक्ति नहीं, एक वर्ग है, जो बेहतरी की खोज में शोषण, उत्पीड़न का शिकार होता है; जो तत्कालीन युग- सत्य था ।
प्रस्तुत पुस्तक में उस अंचल के जीवन, सामाजिक और तत्कालीन मूल्यों को अभिव्यंजित किया गया है, जहाँ से अधिकांश बँधुआ मजदूर अनजाने में ही दुनिया की विभिन्न कर्मभूमियों में दूसरों की आर्थिक समृद्धि के लिए नियत हुए थे । कुछ लौट आए, ज्यादा वही हैं, जो नहीं लौटे ।
Jo Sahata Hai Wahi Rahata Hai by Acharya Mahaprajna
विचार के मैल दूर करने, विचार को निर्मल बनाने का एक ही उपाय है कि निर्विचार की आग में विचार को डाल दिया जाए, वह अपने आप निर्मल हो जाएगा। विचार के सारे मैल साफ हो जाने के बाद उसमें से सृजनात्मकता, विधायकता, ज्योति और आस्था निकलेगी।
किसी के कहने से कोई चोर नहीं बनता और किसी के कहने से कोई साधु नहीं बनता। आत्मा स्वयं को जानती है कि मैं चोर हूँ या साहूकार हूँ।
ग्रंथ या पंथ का धर्म बड़ा नहीं होता। धर्म वह बड़ा होता है, जो हमारे जीवन के व्यवहार में उपलब्ध होता है।
आधुनिक अर्थशास्त्र ने आसक्ति की चेतना को बहुत उभारा है। उससे भूख की समस्या का समाधान तो हुआ है, किंतु आर्थिक अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। अमीरों की अमीरी बढ़ी है, लेकिन उसी अनुपात में गरीबों को उतनी सुविधाएँ नहीं मिली हैं।
केवल अतीत के सुनहरे सपने दिखानेवाला धर्म चिरजीवी नहीं रह सकता। वही धर्म स्थायी आकर्षण पैदा कर सकता है, जो वर्तमान की समस्या को सुलझाता है।
—इसी पुस्तक से
विश्वप्रसिद्ध धर्मगुरु आचार्यश्री महाप्रज्ञ के विशद ज्ञान के कुछ रत्नदीप इस पुस्तक में सँजोए हैं, जो हमारे जीवन-पथ को आलोकित करेंगे।
आचार्य महाप्रज्ञ ने हर एक विषय पर अपनी लेखनी चलाई, विविध विषयों को प्रवचन का आधार बनाया। दस वर्ष की अवस्था में संसार को त्यागनेवाले एक धर्मगुरु सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत स्तर पर आनेवाली समस्याओं का स्टीक समाधान प्रस्तुत करें तो यह महान् आश्चर्य है। यह काम आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने अपनी प्रज्ञा जागरण से किया। लोगों के मानस में यह विश्वास जमा हुआ था कि जिस समस्या का समाधान अन्यत्र न मिले, वह समाधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ के पास अवश्य मिल जाएगा। बड़े-बड़े चिंतक, दार्शनिक, धर्मगुरु एवं राजनीतिज्ञ सब इस आशा से उनके पास आते थे कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ एक ऐसे शख्स हैं, महापुरुष हैं, जो संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ की प्रस्तुत पुस्तक ‘जो सहता है, वही रहता है’ युवा पीढ़ी को नई दिशा देनेवाले सूत्रों को सँजोए हुए है। ये सूत्र युवाओं के जीवन-निर्माण में चामत्कारिक ढंग से कार्य करेंगे, जिससे युवा जोश के साथ होश को कायम रख सकेंगे और अपने सोचने के तरीके को सम्यक् बना सकेंगे।
Jokhim Bhare Hastakshep by Hardeep Singh Puri
7 मार्च, 2011 को मैनहैटन के एक आला दर्जे के रेस्टोरेंट में विशेष लंच का आयोजन था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और उनकी पूरी ए-टीम मौजूद थी। जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि चर्चा का मुख्य विषय लीबिया था, जहाँ कथित रूप से मुअम्मर गद्दाफी की सेना विद्रोहियों के गढ़ बेंगाजी की ओर पूरे विपक्ष को कुचलने के लिए तेजी से बढ़ रही थी। प्रति व्यक्ति 80 डॉलर के इस लंच पर सुरक्षा परिषद् में प्रतिनिधित्व करनेवाले देशों के दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण कूटनीतिज्ञों का एक छोटा समूह बल प्रयोग पर चर्चा कर रहा था, जो कहने को तो नागरिकों की सुरक्षा के लिए था, लेकिन वास्तव में उसका मकसद सत्ता-परिवर्तन करना था। बात आगे बढ़ी और महज दस दिन बाद परिषद् की मंजूरी मिल गई, और फिर सबकुछ बेकाबू हो गया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन राजदूत, हरदीप पुरी परिषद् के मनमाने फैसले लेने के ढंग और इसके कुछ स्थायी सदस्यों में बिना सोचे-समझे दखलंदाजी की मची रहनेवाली बेचैनी का खुलासा करते हैं। संकटपूर्ण हस्तक्षेप दिखाता है कि केवल लीबिया और सीरिया ही नहीं, बल्कि यमन और क्रीमिया में बल प्रयोग के फैसले विनाशकारी रूप से गलत साबित हुए। वरिष्ठ राजनयिक हरदीप पुरी इस प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हैं, जिसके अंतर्गत हस्तक्षेप करनेवाले देश अपने हित को साध लेने के बाद मुँह मोड़ लेते हैं। वह हस्तक्षेपों और सत्ता-परिवर्तन के प्रयासों के विरुद्ध चेतावनी देने की भारत की भूमिका को भी स्पष्ट करते हैं।
संयम और सावधानी के पथ पर चलते हुए, संकटपूर्ण हस्तक्षेप दुनिया के ताकतवर देशों को उनके बुरे कर्मों की याद दिलाती है और वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की माँग करती है।
Jug Jannani Janki by Rajendra Arun
मानस के दोहों-चौपाइयों का अर्थ बताते समय धर्म-दर्शन के गूढ़ तत्त्वों और जीवन के सहज किन्तु विस्मृत सत्यों को अपनी मृदु-मधुर शैली में हमारे हृदय की गहराइयों तक उतारते जाना अरुणजी की प्रमुख विशेषता है।
सीता के पावन चरित्र को तुलसी ने बड़ी श्रद्धा और आस्था से सँवारा है। सीता के जीवन में दो कटु प्रसंग आते हैं—अग्नि-परीक्षा और निर्वासन। दोनों प्रसंगों को तुलसी ने अपनी कालजयी काव्य-प्रतिभा के बल पर निष्प्रभावी कर दिया है। उन्होंने लंकावासिनी सीता को छाया सीता बना दिया। लंका-विजय के बाद राम उन्हें पुन: पाने के लिए ‘कछुक दुर्वाद’ कहते हैं। छाया सीता अग्नि में प्रवेश करती हैं और उसमें से वास्तविक सीता निकलती हैं जो न लंका में गयी थीं, न कलंकित ही हुई थीं।
सीता के निर्वासन के प्रसंग को तुलसी ने छुआ तक नहीं है। रामराज्य के वर्णन में उन्होंने लिखा—
एक नारी ब्रत रत सब झारी।
ते मन बच क्रम पति हितकारी।।
ऐसे रामराज्य में धोबी का कलुषित प्रकरण कैसे स्थान पा सकता था!
प्रस्तुत पुस्तक में सीता के त्यागमय और प्रेरणादायी चरित्र का लुभावना अंकन किया गया है।
Jules Verne Ki Lokpriya Kahaniyan by Jules Verne
एक-से-एक सुंदर सजावटवाले हैट, खूबसूरत पेड़-पौधे, तरह-तरह के पक्षियों, साँपों और पशुओं की कलात्मक आकृतियाँ, जिन्हें ब्राजील के वनों का परिवेश देकर जीवंत बनाया गया था। कितने ही तरह के केश-विन्यास और जूड़े, सुरुचिपूर्ण और भव्य। उनमें भी ऐसी बारीक कलात्मकता, जिसमें कोई भूल खोजी ही नहीं जा सकती।…और पोलैंड में भी न देखी गई प्रस्तुतियों के उदाहरण यहाँ मौजूद थे, मनभावन रिबनों के फूल और लहराते हुए फीते…सबकुछ अभूतपूर्व था।
यह सारा वृत्तांत मेरे एक दिन के यादगार भरे अनुभव की तसवीर है। शायद मैंने एक बटेर मारी थी। शायद मैंने एक तीतर भी मार गिराया था। शायद मैंने एक किसान को भी घायल किया था…ये सारे वे वाकिए हैं, जिनके साथ ‘शायद’ शब्द जुड़ा हुआ है। लेकिन निस्संदेह मैंने एक पुलिसवाले के हैट पर गोली चलाई थी। मैं बिना लाइसेंस की बंदूक के साथ पकड़ा गया था। मेरा जुर्म किसी दूसरे के नाम चढ़ा दिया गया था। इससे ज्यादा एक नए सीखनेवाले शिकारी के साथ और क्या हो सकता है?
—इसी संग्रह से
प्रसिद्ध कथाकार जूल्स वर्न की रोचक-पठनीय-लोकप्रिय कहानियों का संकलन।
Jungle Ki Kahaniyan by Neelkanth Kundan
जंगल और जंगल के अनोखे जीव-जंतु कहानियाँ में आज भी बाल पाठकों की पहली पसंद होते हैं। शायद यही कारण रहा है कि ‘पंचतंत्र’ एवं ‘जातक कथाएँ’ जैसे ग्रंथ आज भी लोकप्रिय है। प्रस्तुत पुस्तक में बाल पाठकों की इसी रुचि को ध्यान में रखकर ‘जंगल’ और जंगल में रहनेवाले अनेक अद्भुत एवं विचित्र जीवों की कहानियों को संग्रहीत किया गया है। ये कहानियाँ मनोरंजक और रोचकता के साथ-साथ बच्चों को नैतिक ज्ञान, संस्कार, धर्म, प्रेम और त्याग का पाठ भी पढाएँगी।
प्रस्तुत पुस्तक के रोचक एवं सरल बनाने हेतु सरल भाषा एवं सुंदर चित्रों का प्रयोग किया गया है। अतः कहना अनुचित नहीं होगा कि पुस्तक आयु वर्ग के लिए उपयोगी होगी।
Jwalamukhi Bhayankartam Prakritik Aapda by Shyam Sunder Sharma
ज्वालामुखी भयंकरतम प्राकृतिक आपदा है। इसके कारण बड़े पैमाने पर जन और संपत्ति की हानि होती ही रहती है; परंतु न तो उसे रोका जा सकता है और न ही नियंत्रित किया जा सकता है। उससे बचने का कारगर उपाय है उद्गार के पूर्व-संकेत मिलते ही ज्वालामुखी से जितनी दूर और जितनी जल्दी संभव हो, भाग जाएँ। इसके लिए ज्वालामुखी के आस-पास रहनेवाले लोगों को समय रहते उद्गार की पूर्व-सूचना मिलना जरूरी है। यह पूर्व-सूचना उन ‘संकेतों’ और ‘चेतावनियों’ के आधार पर ही दी जा सकती है, जिन्हें ज्वालामुखी ‘अपनी विशेष भाषा’ में देता है। इस ‘भाषा’ को समझने के लिए ज्वालामुखियों की निर्माण प्रक्रिया, उनके उद्गरित होने के कारण, उद्गार के दौरान निकलनेवाले पदार्थों आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।
प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं सब का सरल भाषा और सुबोध शैली में वर्णन है। साथ ही ज्वालामुखी की किस्मों, कुछ ऐतिहासिक उद्गारों आदि का भी वर्णन है। इनके अतिरिक्त यह भी बताया गया है कि ज्वालामुखी उद्गारों के दौरान निकलनेवाले पदार्थों ने अतीत में जलवायु/मौसम को किस प्रकार प्रभावित किया है और अब भी कर रहे हैं। इन उद्गारों के फलस्वरूप हीरों का निर्माण किस प्रकार होता है, सोने और चाँदी जैसी धातुओं के अयस्क किस प्रकार सांद्रित होते हैं, लावा से उपजाऊ मिट्टी कैसे बनती है और ज्वालामुखी उद्गारों से ऊर्जा क्यों नहीं प्राप्त की जा सकती तथा उद्गार से पूर्व ज्वालामुखी क्या संकेत प्रदर्शित करते हैं।
Jyotipunj by Narendra Modi
ज्योतिपुंज—नरेंद्र मोदी
संसार में उन्हीं मनुष्यों का जन्म धन्य है, जो परोपकार और सेवा के लिए अपने जीवन का कुछ भाग अथवा संपूर्ण जीवन समर्पित कर पाते हैं। विश्व इतिहास का निर्माण करने में ऐसे ही सत्पुरुषों का विशेष योगदान रहा है। संसार के सभी देशों में सेवाभावी लोग हुए हैं; लेकिन भारतवर्ष की अपनी विशेषता रही है, जिसके कारण वह अपने दीर्घकाल के इतिहास को जीवित रख पाया है।
किसी ने समय दिया, किसी ने जवानी दी, किसी ने धन और वैभव छोड़ा, किसी ने कारावास की असह्य पीड़ा सही। भारतवर्ष की धरती धन्य है और धन्य हैं वे सत्पुरुष, जिन्होंने राष्ट्रोत्थान को अपना जीवन-धर्म व लक्ष्य बनाया और अनवरत राष्ट्रकार्य में लीन रहे। उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत को जीवंत रखा और सशक्त-समर्थ भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए अपने जीवन को होम कर दिया।
‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलमंत्र माननेवाले ऐसे ही तपस्वी मनीषियों का पुण्य-स्मरण किया है स्वयं राष्ट्रसाधक श्री नरेंद्र मोदी ने इस पुष्पांजलि ज्योतिपुंज में।
Jyotsna Milan Ki Lokpriya Kahaniya by Jyotsna Milan
ज्योत्स्ना मिलन की कहानियों का यह बहुवर्णी संकलन उनके रचना-संसार के सभी पहलुओं और विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है। इनसे गुजरते हुए पाठक न केवल अपने व्यक्तित्व और संवेदना में गहरे डूबकर स्वयं को नए सिरे से पहचानेंगे, बल्कि अपने से बाहर जीवन-विस्तार को भी सर्वथा नई दृष्टि से जाँचने-परखने की चुनौती और सामर्थ्य खुद में विकसित होते हुए पाएँगे।
घिसी-पिटी चालू मुद्राओं और मुहावरों से सर्वथा अछूती मौलिक दृष्टि और तदनुरूप भाषाशैली उन्हें यहाँ अनायास और स्वतःस्फूर्त ढंग से उजागर होती दिखाई देगी। जैसा कि उनके पहले ही कथा-संग्रह पर वरिष्ठ लेखक अर्चना वर्मा का कहना था—‘‘स्त्री चेतना में प्रतिबिंबित जगत् का वह रूप, जो पुरुष क्या, अकसर स्वयं स्त्रियों की दृष्टि से भी परे होता है, उसे ज्योत्स्ना मिलन के अलावा किसी और ने टटोलने की कोशिश नहीं की है।’’ इस संकलन के पाठक उस वैशिष्ट्य को यहाँ भी पूरी तरह चरितार्थ होते हुए पाएँगे। साथ ही वह तत्त्व भी, जिसे उनकी समानधर्मा कहानीकार राजी सेठ ने रेखांकित किया है— ‘‘जीवनानुभव यहाँ भाषा द्वारा रचा नहीं जाता, बल्कि भाषा के भीतर से स्वतः ही बनता जाता है।’’
प्रस्तुत है ज्योत्स्ना मिलन की जीवन के विविध रंगों से सज्जित मर्मस्पर्शी-संवेदनशील लोकप्रिय कहानियों का संकलन।
Kab Aaoge Mahamana by Rita Shukla
कब आओगे महामना
‘हिंदुत्व’ का विराट् स्वर उनकी आत्मा की पोर-पोर में निनादित था। वह हिंदुत्व, जो केवल नीति नहीं, जीवन-सत्य है। वह हिंदुत्व, जो आवरण मात्र नहीं, विशुद्घ अध्यात्म है, सचेतन भारतीय-दर्शन है।
मन हिमवान हो, आत्मा समुन्नत कैलास-शिखर हो, अनुभूतियाँ क्षीर सागर सी तरंगायित हों तो मनुष्य अपने उदात्त अभियान से कभी नहीं डिग सकता। संगम की माटी महामना की शक्ति थी, भारत का तप अक्षय कोष था और काशी उन्हें बुला रही थी।
मनुष्यता के संरक्षण की पहली शर्त है—आत्मा की पवित्रता! आज जब भारत के अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों का कोना-कोना अनगिनत विकारों से धुँधला चुका है, अंग्रेजियत के झूठे मोह ने ग्राम-संस्कृति से नाता तोड़ लिया है, अत्यधिक फैशनपरस्ती के चक्रवात में तिनके सा बेबस घिरा जीवन त्रिशंकु हुआ जा रहा है, तब मन के किसी कोने में मेघ-मंद्र गांभीर्य में रचा-बसा एक स्वर जागता है—
नव-शती के द्वार पर आस्था ही चिर-वरेण्या होगी, प्रखर मेधा ही शुभ-कर्मों की संवाहिका होगी, तुलसी-दल सा समर्पण ही ज्ञान, योग और भक्ति के त्रित्व से प्राणों का कोष भरेगा, निरभिमान तप ही भारत की सच्ची पहचान बनेगा।
—इसी उपन्यास से
प्रसिद्ध लेखिका ऋता शुक्ल की सशक्त कलम से महामना पं. मदनमोहन मालवीय के प्रेरणाप्रद जीवन की विहंगम झाँकी… एक अनुभूति
Kabeer Ke Management Sootra by Gurucharan Singh Gandhi
कबीर के विचार खुली हवा के झोंकों की तरह हैं, जो मन के कोने में छिपी गाँठों को खोलकर हमें खुली हवा में साँस लेकर खुशहाल जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। कबीर के विचार सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ही नहीं, वरन् कॉरपोरेट वर्ल्ड में भी कदम-कदम पर हमारे काम आते हैं। वे बताते हैं कि दर्शन का संतुलन कार्य से और सिद्धांत का संतुलन व्यवहार से किस प्रकार स्थापित किया जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक में कबीर के विचारों द्वारा सफलता और खुशी के बीच के संतुलन, तरीकों और नतीजों के बीच के तनाव, नेतृत्व नाम की पहेली को सुलझाने इत्यादि पर प्रकाश डाला गया है।
कबीर अपने विचारों में कर्मचारी के समक्ष मौजूदा चुनौतियों और संघर्षों की
चर्चा करते हैं। वे समाधान भी सुझाते हैं और कहते हैं—
—सिद्धांत और आडंबर छोड़ें तथा तथ्यात्मक बनें।
—अपने तार्किक प्रश्नों के उत्तर सक्षम व्यक्ति से पूछें।
—सही मार्गदर्शक चुनें और बनें।
—कार्यों को मनोयोग से निबटाएँ और इस दौरान अपना व्यवहार संयमित रखें।
कबीर का अपना निजी जीवन कर्तव्य-परायणता की मिसाल था। वे स्वयं एक चलते-फिरते कॉरपोरेट वर्ल्ड थे। प्रस्तुत पुस्तक में उनके कर्तव्यनिष्ठ जीवन और प्रेरक विचारों को इस प्रकार से प्रस्तुत किया गया है कि उन्हें जीवन में उतारकर हम अपने कामकाजी जीवन को सुदृढ, सुचारू, सरल, उर्वर और समाजोपयोगी बना सकते हैं, जो निश्चित ही सबके लिए फलकारी साबित हो सकता है। एक उपयोगी एवं संग्रहणीय पुस्तक।
Kabira Baitha Debate Mein by Piyush Pandey
मीडिया, बाजार, राजनीति, खेल, समाज और सोशल मीडिया, जिधर दृष्टि दौड़ाइए, विसंगतियाँ हैं, इसलिए व्यंग्य की भरपूर गुंजाइश है। इन विसंगतियों को देखने की लेखक की अपनी अलग दृष्टि है, जिनसे रोचक व्यंग्य पैदा हुए हैं। इस व्यंग्य-संग्रह की विशिष्टता है इसके विषय और भाषा-शैली। लेखक टिकटॉक के जरिए समाजवाद लाने की परिकल्पना करता है तो समाचार चैनल की प्राइम टाइम बहस में कबीरदासजी को बैठाकर वर्तमान टी.वी. बहस के स्तर का निर्मम पोस्टमार्टम करता है। दरअसल, इस व्यंग्य-संग्रह का हर आलेख विषय के स्तर पर पाठक को चौंकाता है।
व्यंग्य संकलन का हर व्यंग्य पाठक को आरंभ में गुदगुदाता है, कभी-कभार हँसाता है और फिर विसंगति पर कड़ा प्रहार करते हुए पाठक को सोचने के लिए विवश करता है। यह लेखक की अपनी एक विशिष्ट शैली है।
लेखक स्वयं टी.वी. पत्रकार, पटकथा लेखक और फिल्मकार हैं तो भाषा की सहजता-सरलता और संक्षिप्तता व्यंग्य संग्रह की यू.एस.पी. है। लेखक के ‘वन-लाइनर’ पाठकों को अतिरिक्त आनंद देते हैं। हाँ, बतौर व्यंग्यकार लेखक ने स्वयं को भी नहीं बख्शा है। कई जगह खुद को कठघरे में रखते हुए समाज को आईना दिखाने की कोशिश की है।
व्यंग्यकार की यही ईमानदारी शायद पाठकों को भाए भी।
Kafka Ki Lokpriya Kahaniya by Kafka
और तभी इस कारवाँ के मुखिया ने अपना चाबुक उनकी पीठ पर चलाया। अधूरे आनंद से अभिभूत अपना सिर उठाया तो सामने अरबी को खड़ा पाया। अपने नथुने पर चाबुक का प्रहार पड़ते ही वे पीछे की ओर भाग खड़े हुए। ऊँट का मृत शरीर कई जगहों पर खोल दिया था तथा उससे खून बह रहा था। लेकिन सियार बहुत देर तक वहाँ जाने से स्वयं को रोक नहीं सके, और एक बार फिर वे वहाँ पहुँच गए। एक बार फिर मुखिया ने अपना चाबुक उठाया, लेकिन इस बार मैंने उसका हाथ रोक दिया।
इस धरती पर हर जगह, यहाँ तक कि अब मैंने स्वयं को स्वतंत्र कर लिया था, अब तब भी जब ज्यादा कुछ आशा करने को था नहीं। किस प्रकार उन्होंने इस आदत को छोड़ने, अपनी हार मानने से मना कर दिया, बल्कि बहुत दूर से भी हमारे ऊपर नजर लगाए हुए थे और उनके साधन वही थे। वे हमारे सामने ही सारी योजनाएँ बनाते, जहाँ तक नजर जाती देखते, जहाँ हमारा लक्ष्य होता वहाँ हमें जाने से रोकते हैं, बल्कि अपने निकट ही हमारे ठहरने की व्यवस्था करते हैं और अंततः जब हम उनके व्यवहार का विरोध करते हैं तो वे सहज ही उसे स्वीकार करते हैं।
—इसी संग्रह से
प्रसिद्ध कथाकार काफ्का की रोचक-पठनीय-लोकप्रिय कहानियों का संकलन।
Kahani Delhi Metro Ki by Aditya Awasthi
कहानी दिल्ली मेट्रो की—आदित्य अवस्थी
दिल्ली मेट्रो एक ऐसी परियोजना है, जिसने दिल्ली और दिल्लीवालों की दैनिक जिंदगी को बदल दिया है। इसने दिल्ली को वॉलसिटी से वर्ल्ड सिटी बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेट्रो के चलने से दिल्लीवाले परिवार के दूसरे सदस्यों से ही नहीं, दोस्तों और परिचितों से ज्यादा मिल-जुल पाते हैं। अब दिलशाद गार्डन में रहनेवाले परिवार इंडिया गेट पर आइसक्रीम खाने आते हैं। नई दिल्ली के सरकारी भवनों में काम करनेवाले चाट खाने और शॉपिंग करने के लिए लंच में चाँदनी चौक जाते हैं। द्वारका, रोहिणी, नोएडा और गाजियाबाद भी अब उतने दूर नहीं रह गए हैं।
मेट्रो रेल में वी.आई.पी. और आम आदमी के बीच कोई अंतर नहीं रह जाता। दुकान बढ़ाने के बाद लालाजी और उनकी दुकान पर काम करनेवाला ‘लड़का’ मेट्रो में साथ-साथ यात्रा करते हैं।
इस परियोजना ने देश और दिल्ली में निर्माण और तकनीक में नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। इससे यह भी साबित हुआ है कि इच्छा हो तो कंपनी सरकारी हो या गैर-सरकारी, निर्धारित समय से पहले और अनुमानित लागत पर भी योजनाएँ पूरी की जा सकती हैं।
इस परियोजना के चलते सैकड़ों वर्षों में बने और बसे इस महानगर के विभिन्न शहरों के बीच मिनटों में यात्रा की जा सकती है। लेखक ने मेट्रो रेल के माध्यम से इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के आगमन, विकास और उसके शहर पर पड़ रहे प्रभावों को देखने का, आकलन करने का प्रयास किया है। पुस्तक की भाषा-शैली कुछ ऐसी है कि बस आप मेट्रो से उसकी और दिल्ली की कहानी भी सुनते चले जाएँगे।
तो आइए, जानते हैं कैसे आई मेट्रो—दुनिया में, देश में और दिल्ली में। फिर चलते हैं मेट्रो के साथ दिल्ली देखने।
Kahani Do Boondon Ki by Dr. Harsh Vardhan
विश्व के बच्चे आजीवन पोलियो उन्मूलन के लिए ग्लोबल प्रयासों में शामिल सभी व्यक्तियों, संगठनों के आभारी रहेंगे। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व के किसी भी कोने में जब तक एक भी बच्चा इस रोग से ग्रस्त रहेगा, तब तक सभी देशों के बच्चों को पोलियो संक्रमण का जोखिम बना रहेगा। इन प्रयासों में शामिल प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह खबर चौंकानेवाली रहेगी कि 2009-10 में पोलियो मुक्त 23 देश वायरस के आने से इस रोग की चपेट में पुनः आ गए। इस खबर से हमें यह चेतावनी लेनी चाहिए कि हमें सतर्क होकर पोलियो उन्मूलन के लिए पहल के कुछ अंतिम उपाय अवश्य करने चाहिए।
आइए, एक बार फिर हम शपथ लेते हैं कि वर्ष 1995 की राष्ट्रीय भावना पुनः जाग्रत् करके पोलियो जैसे अन्य रोगों से लड़ेंगे तथा देश में बड़े सामाजिक आंदोलन के रूप में स्वास्थ्य के विकास के लिए एकसूत्र में बँधेंगे। यदि हम सभी के लिए स्वास्थ्य सुनिश्चित कर सकते हैं तो हम अपने देश का उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित कर पाएँगे। चेचक (small pox) के उन्मूलन के बाद, हमने एक बार फिर इतिहास रचा है। अब प्रत्येक देशवासी को सभी के लिए स्वास्थ्य अर्जित करने में इतिहास रचने का अवसर मिला है।
‘कहानी दो बूँदों की’ दिल्ली में पोलियो उन्मूलन हेतु चलाए गए उस अभियान की रोचक और प्रेरणादायी कहानी है, जो पूरे देश के लिए अनुकरणीय उदाहरण साबित हुआ है। वस्तुतः विकासशील देशों में फैले किसी भी रोग से जूझने के लिए इसका उपयोग मील के पत्थर के रूप में किया जा सकता है। जनहित में लगे चिकित्सा विशेषज्ञों, स्वास्थ्य अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों के लिए यह पुस्तक एक गाइड के रूप में काम आएगी।
इसमें रुचिकर तरीके से यह दरशाया गया है कि किस तरह विभिन्न क्षेत्रों—धार्मिक, खेल, फिल्म, कला व संस्कृति, सामाजिक, यहाँ तक कि राजनीति—में लगे लोगों व संगठनों को एक अभियान में सहभागिता के लिए प्रेरित और सक्रिय किया जा सकता है। त्वरित और प्रभावपूर्ण परिणामों को प्राप्त करने के लिए नव प्रवर्तनकारी और कल्पनाशील तकनीकों के साथ-साथ पुराने परंपरागत रीति-रिवाजों और आधुनिक प्रबंधकीय विधियों का उपयोग किया गया।
संक्षेप में कहें तो यह पुस्तक नीति-नियोजकों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए एक पथ-प्रदर्शक है। साथ ही जन-अभियानों के लिए एक अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जो सामान्य पाठकों को भी सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेगी।
Kahani Ek Ias Pareeksha Ki by K. Vijayakarthikeyan
यू. पी.एस.सी. सिविल सेवा परीक्षा में फेल हो जाने का विष्णु का सबसे बुरा सपना सच हो गया है। असुरक्षा, डर और संदेहों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया है। प्रतियोगिता परीक्षाओं में सबसे बड़ी परीक्षा ने उसे खारिज कर दिया है और उसे अब जीने के किसी मकसद की तलाश है। तो वह क्या करता है? वह अपनी सबसे अच्छी दोस्त शालिनी से कहता है, ‘आई लव यू…क्या तुम मुझसे शादी करोगी?’
‘कहानी एक आई.ए.एस. परीक्षा की’ में पच्चीस साल का विष्णु अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता और भ्रम से बाहर निकलने तथा शालिनी को शादी के लिए मनाने के तरीके ढूँढ़ता है। हालात तब और भी दिलचस्प, हास्यास्पद और भावुक हो जाते हैं, जब विष्णु ‘माउंट IAS’ पर विजय पाने निकल पड़ता है। अपनी पढ़ाई और अपने प्यार को जब वह सुरक्षित दिशा में ले जा रहा होता है, तब उसे IAS कोचिंग सेंटरों की दुनिया में छिपने का ठिकाना मिल जाता है।
चेन्नई में सिविल सेवा परीक्षा कोचिंग के चहल-पहल भरे केंद्र, अन्ना नगर की पृष्ठभूमि में लिखी गई यह पुस्तक वास्तविकता, तनाव और संघर्ष का हास्य से भरपूर वर्णन करती है, जिनका सामना भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक की तैयारी कर रहे लाखों उम्मीदवार करते हैं। आइए, विष्णु के साथ चलें जब वह इस दुनिया को, और खुद अपने आप को अपना दमखम दिखाने निकला है। क्या शालिनी अपने सबसे अच्छे दोस्त के प्यार को कबूल करेगी? क्या विष्णु असफलता की अपनी भावना से उबर पाएगा? क्या हमेशा के लिए सबकुछ ठीक हो जाएगा?
Kailas Mansarovar by Subhadra Rathore
पश्चिमी तिब्बत के नितांत एकांत में संपूर्ण उच्चता, धवलता एवं दिव्यता के साथ धरा पर अवतरित है अप्रतिम कैलास! अलौकिक ईश्वरीय सत्ता का यों मर्त्यलोक में पदार्पण चकित करता है। नेत्रों पर सहज विश्वास नहीं होता, समक्ष उपस्थत कर्णिकाकार हिमशैल स्वप्न है अथवा यथार्थ? इस पावन भूम पर दैवीय तथा प्राकृतिक शक्ति की अद्भुत-अनुपम अनुभूति हुआ करती है; कुछ तो है यहाँ…। हजारों वषोर्ं से भक्त, पर्यटक एवं अनुसंधित्सु यहाँ आते रहे हैं। हिंदू, तिब्बती तथा बौद्ध के अलावा अन्यान्य कई धमर्ावलंबियों के लिए यह चुंबकीय क्षेत्र श्रद्धाजनित आकर्षण का केंद्र रहा है। हिंदुओं के लिए कैलास शिवलोक भी है और साक्षात् शिव का स्वरूप भी। कैलास की ही छत्रच्छाया में लहराती हुई पवित्र झील है मानसरोवर, जिसे ब्रह्म्ा के मानस की उत्पत्ति माना जाता है। नीरव-जनशून्य मरुभूम पर स्थत कैलास-मानसरोवर सर्वोच्च्ा तीर्थ मात्र नहीं, यहाँ सर्वत्र छिटका है परिवर्तनधमर्ा प्रकृति का अनोखा इंद्रधनुषी रंग; बेहद मोहक, अतीव सुंदर। क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर यहाँ अलग ही रूप धरते हैं। नन्हे रजकण, माणिक्य-सी झलकती जलराशि, श्वेताभ कैलास के लिए कैनवास बनता स्वच्छ-निष्कलंक चट नीला आकाश, बर्फीली हवाएँ, सूरज की सीधी पड़ती प्र र किरणें, चाँद-तारों की दूधिया छटा और बेजोड़ जलपक्षी—सबकुछ निराले, उपमाएँ यहाँ सर्वथा असमर्थ हैं।
कैलास-मानसरोवर का चित्रण-वर्णन असंभव है, नेति-नेति। फिर भी, प्रस्तुत रचना में कैलास-मानसरोवर को शब्दों में सहेजने की ईमानदार कोशिश की गई है। इसमें यात्रा का आनंद है, गंतव्य का यथातथ्य विवरण है तो जानकारियों का अभूतपूर्व संकलन भी। कैलास-मानसरोवर दुर्गम स्थल है, अस्तु इस पर साहित्य का अभाव भी बना हुआ है। इसकी पूर्ति की दृष्ट से यह ग्रंथ विशेष महत्त्व र ता है। पाठक आस्तक हों अथवा नास्तक, भक्त हों अथवा जिज्ञासु पर्यटक, यह कृति उन्हें उनकी भाव-दृष्ट के अनुसार अवश्य तृप्ति प्रदान करेगी।
Kaise Banen Crorepati by Anil Kumar Sinha
दोस्तो, KBC एक गेम शो ही नहीं है, बल्कि एक इम्तहान भी है, जो परीक्षा लेता है हमारे हौसलों, आत्मविश्वास, ज्ञान एवं सबसे बढ़कर हमारे व्यक्तित्व की; क्योंकि KBC के हर सवाल की तरह ही जिंदगी भी हर दिन एक नया सवाल ही तो है। मेरी यह पुस्तक KBC के प्रति मेरे पिछले ग्यारह सालों के जुनून, लगन एवं लगातार मेहनत का परिणाम है। मैंने जितनी परेशानियाँ इन ग्यारह सालों में उठाईं उस दौरान ही मैंने निश्चय किया कि अगर मुझे कामयाबी मिली तो मैं यह पुस्तक जरूर लिखूँगा, ताकि बाकी लोगों को भी मेरी तरह परेशानियाँ न झेलनी पड़ें और उनका रास्ता आसान हो जाए।
इस पुस्तक को तीन खंडों में बाँटा गया है—पहला, KBC के बारे में जानकारी, इतिहास एवं भाग लेने की प्रक्रिया। दूसरा, अब तक के करोड़पतियों से साक्षात्कार। इस खंड से आप यह जान पाएँगे कि सफलता एक रात में नहीं मिलती, बल्कि यह काफी कठिन संघर्ष का परिणाम होती है।
पाठको, ऐसा नहीं है कि मेरी इस पुस्तक ‘कैसे बनें करोड़पति’ को पढ़कर हर आदमी करोड़पति बन जाएगा, पर यदि एक भी आदमी को इससे फायदा हुआ तो मैं समझूँगा कि मेरी मेहनत सफल हुई। यही नहीं, यह पुस्तक आप सिर्फ KBC में जाने के नजरिए से ही न पढ़ें, बल्कि इसके अलावा भी यह पुस्तक आपके ज्ञान को बढ़ाने, पिछले प्रतिभागियों के बारे में जानने और आपको KBC से जोड़े रखने में काफी सहायक सिद्ध होगी।
—भूमिका से
Kaise Bhoolen Aapatkal Ka Dansh by Dr. Chandra Trikha , Dr. Ashok Garg , Subhash Ahuja
1971 के भारत-पाक युद्ध एवं बांग्लादेश के नाम से नए राष्ट्र के निर्माण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की छवि को एक नया शिखर प्रदान किया था। एक ऐसा शिखर, जहाँ पहुँचकर, संतुलन बनाए रखना आसान नहीं होता। ये वे दिन थे, जब सरकारी तंत्र एवं सत्ता तंत्र भ्रष्टाचार के मामले में निरंकुश हो चुका था। सामान्य जनों का धैर्य जवाब देने लगा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री उन दिनों भ्रष्टाचार की संरक्षक समझी जा रही थीं। वह अपने संगठन में फैले भीतरी असंतोष को भी कुचल रही थीं और प्रतिपक्षी आवाजों की भी घोर उपेक्षा कर रही थीं।
इसके विरुद्ध संघर्ष में सर्वोदय समाज व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कुछ पुराने निष्ठावान एवं गांधीवादी कांग्रेसियों और समाजवादियों की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण रही। अपने समर्पित नेताओं व कार्यकर्ताओं के बल पर संघ ने देश भर में भूमिगत आंदोलन, जन-जागरण एवं अहिंसक सत्याग्रह की जो इबारत दर्ज की, वह ऐतिहासिक थी।
उस समय की सरकार के खिलाफ समाज में गंभीर वैचारिक आक्रोश जाग्रत् करने और बाद में चुनाव की सारी व्यवस्था सँभालने में भी संघ के स्वयंसेवकों ने प्रमुख भूमिका निभाई। इस सारे घटनाक्रम में कई ऐसे गुमनाम कार्यकर्ताओं को अपने जीवन तक गँवाने पड़े। उनके अमूल्य बलिदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। यह शुभ्र ज्योत्स्ना उन सब हुतात्माओं को विनम्र श्रद्धासुमन अर्पित करती है। आपातकाल के काले दिनों का सिलसिलेवार देखा-भोगा जीवंत सच है यह पुस्तक।
Kaise Payen Jeevan Mein Aseem Safalata by Mahesh Dutt Sharma
याद रखें, सफलता पाने के लिए अमीरी-गरीबी, ऊँच-नीच, जाति-धर्म आदि कोई मायने नहीं रखते। हाशिए पर खड़ा एक सबसे गरीब आदमी भी बड़ी आसानी से वांछित सफलता हासिल कर सकता है और वहीं पहुँच सकता है, जहाँ एक अमीर आदमी बहुत कुछ करके भी इससे वंचित रह जाए।
दरअसल, सफलता एक सरल-सहज, समर्पित जीवन-पद्धति द्वारा सहज ही अर्जित की जा सकती है।
प्रस्तुत पुस्तक में बिना पैसे खर्च किए सफलता पाने के सहज, अनुभूत और कारगर तरीके बताए गए हैं। हर व्यक्ति इन सरल तरीकों को जीवन में उतारकर न केवल गारंटीड सफलता पा सकता है वरन् अपने समाज, देश और दुनिया के लिए एक मिसाल भी बन सकता है।
सफलता के उत्कर्ष को पाने की एक व्यावहारिक पुस्तक, जो आपका संपूर्ण विकास कर जीवन के नए अध्याय लिखेगी।
Kaise Sanwaren Bachchon Ka Bhavishya by Shyama Chona
बचपन और अभिभावकता एक सिक्के के दो पहलू हैं, एक-दूसरे के पूरक हैं । जिस प्रकार श्रेष्ठ और आदर्श अभिभावकता के बिना बच्चों के सुखद व उज्ज्वल भविष्य की नींव नहीं डाली जा सकती उसी प्रकार बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने व उनके उज्ज्वल भविष्य की चिंता किए बिना अभिभावता की सार्थकता नहीं । बच्चों के बहुमुखी विकास व उत्थान के लिए अभिभावकों को प्रेम और व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता है, जिनसे उनके नन्हे भविष्य को अपना व्यक्तित्व निखारने में सहायता मिलती है । सही अभिभावकता के लिए समय का उचित प्रयोग और निरंतर प्रयास नितांत आवश्यक है । माता-पिता के सुखद व सामंजस्यपूर्ण व्यवहार और आचार-विचार से बच्चों में अनोखे व्यक्तित्व का विकास होता है ।
इस पुस्तक में अभिभावकों, छात्र- छात्राओं की समस्या, मार्गदर्शन, शिक्षकों की अहम भूमिका तथा पारिवारिक वातावरण से संबंधित अनुभवों का रोचक वर्णन है । इसमें नकारात्मक स्वभाव, अपने साथी से ईर्ष्या एवं द्वेष- भावना और अनुशासनहीनता आदि बच्चों के स्वाभाविक विकारों को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए तथा साथ ही किस अनावश्यक नियंत्रण का त्याग करना चाहिए-इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है ।
यह पुस्तक युवा अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है ।
Kaka Ke Golgappe by Kaka Hatharasi
काका संचयन के इस खंड में काका हाथरसी द्वारा लिखे गए गद्य और एकांकियों की इंद्रधनुषी छटा है। महामूर्ख सम्मेलन, भोगा एंड योगा, लव लैटर्स काका-काकी के, काका-काकी की नोक-झोंक तथा काका के प्रहसन जैसे महत्त्वपूर्ण अंश इस पुस्तक में पढ़ने को मिलेंगे। वस्तुतः काका की प्रवृत्ति कवि की है, इसलिए उनका गद्य भी काव्यात्मकता से प्रयोग गद्य को काव्य में बदलते हुए दिखाई देते हैं। साथ ही काका के गद्य में कथा साहित्य का पूरा आनंद भी पाठक प्राप्त कर सकेंगे। ‘भोगा एंड योगा’ तथा ‘लव लैटर्स’ तो उपन्यासिकाओं के समीप की रचनाएँ हैं।
जिस प्रकार काका ने अपने काव्य द्वारा अनेकानेक विसंगतियों पर तीव्र और मारक व्यंग्य प्रहार किए हैं, उस क्रम में उनका गद्य भी व्यंग्य से अछूता नहीं रहा है। हास्य तो उसमें है ही, यह बात दुहराने की आवश्यकता नहीं। ‘भोगा एंड योगा’ में एक ढोंगी आश्रम की विलक्षण गाथा प्रस्तुत की गई है। देश में हजारों योगाश्रम हैं, जिनमें कुछ तो वास्तव में जन-गण की सेवा कर रहे हैं, किंतु योग के खोल में भोग की मेवा चरनेवाले आश्रम भी कम नहीं हैं। ‘महामूर्ख सम्मेलन’ नाम से काका ने अनेक कथात्मक लेख लिखे थे, उनमें कुछ विशिष्ट लेख यहाँ प्रस्तुत हैं। ‘काका के प्रहसन’ तथा ‘लव लैटर्स’ का आनंद भी आप उठाएँगे।
निश्चय ही काका की कविताओं की तरह उनकी गद्य रचनाएँ भी आपको हँसाएँगी, गुदगुदाएँगी और सोचने पर विवश भी करेंगी।
Kaka Ke Thahake by Kaka Hatharasi
काका हाथरसी हास्यरस के सच्चे कवि ही नहीं, काव्य-ऋषि थे। उनकी कविताओं के तीन रंग हैं—सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक। इन तीनों रंगों में काका हाथरसी ने कभी साहित्यिक शालीनता और शिष्टता की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उनका हास्य गुदगुदाता है, मन में आह्लाद पैदा करता है, समाज की विसंगतियों और विकृतियों का पर्दाफाश भी करता है, लेकिन कभी किसी को दुःख अथवा पीड़ा नहीं पहुँचाता। उनका हास्य चाँदनी की ऐसी रजत-शीतल छटा है, जो निराशा, कुंठा और उदासी के अंधकार को बरबस भगा देती है। इन सब विशेषताओं के साथ उनके हास्य में ऐसी मौलिकता, सहजता, सामाजिक चेतना और साहित्यिक गरिमा है, जो उन्हें अन्य हास्य-कवियों से अलग करके हिंदी के आधुनिक हास्य-व्यंग्य साहित्य में सर्वोच्च स्थान का अधिकारी बनाती है।
काका की कलम का कमाल कार से लेकर बेकार तक, शिष्टाचार से लेकर भ्रष्टाचार तक, परिवार से पत्रकार तक, विद्वान् से गँवार तक, फैशन से राशन तक, रिश्वत से त्याग तक और कमाई से महँगाई तक देखने को मिलता है।
काका हाथरसी के इस संचयन ‘फुलझडि़याँ’ में उनकी ऐसी शिष्ट-विशिष्ट हास्य-व्यंग्य कविताओं का संकलन किया गया है, जो पाठकों को गुदगुदाएँगी, हँसाएँगी भी और सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर सोचने पर विवश भी करेंगी।
Kala Aur Sanskriti by Dr. Vasudeva Sharan Agrawala
‘संस्कृति क्या है’ और ‘कला क्या है’, इन दो प्रश्नों के उत्तर अनेक हो सकते हैं। संस्कृति मनुष्य के भूत, वर्तमान और भावी जीवन का सर्वांगीण प्रकार है। विचार और कर्म के क्षेत्र में राष्ट्र का जो सृजन है, वही उसकी संस्कृति है। संस्कृति मानवीय जीवन की प्रेरक शक्ति है। वह जीवन की प्राणवायु है, जो उसके चैतन्य भाव की साक्षी है। संस्कृति विश्व के प्रति अनंत मैत्री की भावना है। संस्कृति के द्वारा हम दूसरों के साथ संतुलित स्थिति प्राप्त करते हैं। विश्वात्मा के साथ अद्रोह की स्थिति और संप्रीति का भाव उच्च संस्कृति का सर्वोत्तम लक्षण है।
स्थूल जीवन में संस्कृति की अभिव्यक्ति कला को जन्म देती है। कला का संबंध जीवन के मूर्त रूप से है। संस्कृति को मन और प्राण कहा जाए तो कला उसका शरीर है। कला मानवीय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।
भारतीय कला का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत था। प्राचीन काल से आनेवाले अनेक सूत्र नगर और गाँवों के जीवन में अब भी बिखरे हुए हैं। बंगाल की अल्पना, राजस्थान के मेहँदी-माँडने, बिहार के ऐपन, उत्तर प्रदेश के चौक, गुजरात-महाराष्ट्र की रंगोली और दक्षिण-भारत के कोलम—इनके वल्लरी-प्रधान तथा आकृति-प्रधान अलंकरणों में कला की एक अति प्राचीन लोकव्यापी परंपरा आज भी सुरक्षित है।
अत्यंत रोचक शैली में लिखी भारतीय कला और संस्कृति का सांगोपांग दिग्दर्शन कराने वाली पठनीय पुस्तक।
Kala Pani by Vinayak Damodar Savarkar
काला पानी की भयंकरता का अनुमान इसी एक बात से लगाया जा सकता है कि इसका नाम सुनते ही आदमी सिहर उठता है। काला पानी की विभीषिका, यातना एवं त्रासदी किसी नरक से कम नहीं थी। विनायक दामोदर सावरकर चूँकि वहाँ आजीवन कारावास भोग रहे थे, अतः उनके द्वारा लिखित यह उपन्यास आँखों-देखे वर्णन का-सा पठन-सुख देता है।
इस उपन्यास में मुख्य रूप से उन राजबंदियों के जीवन का वर्णन है, जो ब्रिटिश राज में अंडमान अथवा ‘काला पानी’ में सश्रम कारावास का भयानक दंड भुगत रहे थे। काला पानी के कैदियों पर कैसे-कैसे नृशंस अत्याचार एवं क्रूरतापूर्ण व्यवहार किए जाते थे, उनका तथ वहाँ की नारकीय स्थितियों का इसमें त्रासद वर्णन है। इसमें हत्यारों, लुटेरों, डाकुओं तथा क्रूर, स्वार्थी, व्यसनाधीन अपराधियों का जीवन-चित्र भी उकेरा गया है।
उपन्यास में काला पानी के ऐसे-ऐसे सत्यों एवं तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, जिन्हें पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
Kalam Ka Bachpan by Srijan Pal Singh
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जाने-माने वैज्ञानिकों में से थे; परंतु वे एक व्यक्ति, भारत के राष्ट्रपति तथा एक अध्यापक के रूप में और भी अधिक उल्लेखनीय रहे हैं। वे अपने शब्दों और कर्मों से लोगों को इस तरह मंत्रमुग्ध करते आए थे कि सबके प्रिय पात्र बन गए। उनके महान् व्यक्तित्व को जितना सराहा जाता है, शायद ही कोई और ऐसा व्यक्तित्व होगा, जिसे इतना स्नेह और प्रशंसा मिली होगी।
यह पुस्तक उनके प्रेरक व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धासुमन स्वरूप समर्पित है। इसमें उनके बाल्यकाल और युवावस्था से जुड़े अनेक रोचक व प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत हैं, जिनमें से अनेक बिल्कुल अनजाने हैं और इन्होंने उनके महान् व्यक्तित्व को गढ़ने में सहायता की।
इस पुस्तक में दिए चित्रों के माध्यम से पाठक उनके जीवन और कार्यों का जीवंत अनुभव पा सकते हैं। इन प्रसंगों को जिस तरह पुस्तक के आकार में पिरोया है, वह निश्चित रूप से सबके लिए पे्ररणादायी है।
डॉ. कलाम के प्रेरणाप्रद यशस्वी जीवन का दिग्दर्शन कराती अत्यंत पठनीय पुस्तक।
Kalam Ki Atmakatha by Dr. Rashmi
मेरे भाई-बहन पलकें बिछाकर मेरा स्वागत कर रहे थे। मेरे रामेश्वरम पहुँचने पर आस-पड़ोस के सभी लोग ऐसे प्रसन्न हो रहे थे मानो मैं पूरे रामेश्वरम का बेटा हूँ। वैसे, सच तो यह है कि मैं पूरे रामेश्वरम का बेटा था भी।
‘‘अरे कलाम, तू आ गया?’’
‘‘हाँ चाची, कल शाम ही आया।’’
‘‘तेरी पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है, बेटा?’’
‘‘बहुत अच्छी।’’ मैंने हँसते हुए जवाब दिया। ऐसे ही अनेक प्यार भरे सवाल और आत्मीय बातें मेरे धनुषकोटि के लोग मुझसे रोक-रोककर कर रहे थे।
‘‘बेटा, तुम कमजोर हो गए हो। अपने खाने-पीने का ध्यान रखा करो।’’
‘‘न तो! कमजोर कहाँ हुआ हूँ, चच्चा! पहले जैसा ही तो हूँ। थोड़ा लंबा हो गया हूँ, इसलिए आपको कमजोर लग रहा होऊँगा।’’ मैंने हँसकर कहा।
‘‘बड़े भाई की दुकान पर जा रहे हो?’’
‘‘जी।’’
मेरे बड़े भाई मुस्तफा कलाम रेलवे स्टेशन रोड पर परचून की एक दुकान चलाते थे। मैं जब भी घर लौटता तो वे अकसर मुझे अपनी दुकान पर बुला लेते और कुछ देर के लिए दुकान मेरे जिम्मे छोड़ देते।
—इसी पुस्तक से
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भविष्यद्रष्टा, राष्ट्रसेवी, युगप्रवर्तक, प्रेरणापुरुष, युवाओं के लिए अनुकरणीय व्यक्तित्व भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का संपूर्ण जीवन अत्यंत रोचक एवं पठनीय उपन्यास के रूप में, जो हर पाठक के लिए अनुपम धरोहर है।
Kalam Ko Salam by renu Saini
डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसी विभूतियाँ पृथ्वी पर सदियों में कभी-कभी ही जन्म लेती हैं और अपने विलक्षण कार्यों एवं व्यवहार से पूरे विश्व को प्रभावित कर जाती हैं। डॉ. कलाम एक कर्मयोगी व तपस्वी थे। उन्हें प्रकृति व मानवीयता से प्रेम था। विनम्रता, कठोर परिश्रम एवं सादगी उनकी पहचान थी। डॉ. कलाम धन या कुल से नहीं, बल्कि अपने दिव्य स्वभाव और अनुकरणीय आचरण से महान् बने थे।
डॉ. कलाम एक विकसित भारत की कल्पना करते थे। उनका स्वप्न था कि विश्वपटल पर भारत की विशिष्ट पहचान बने और उसकी सुसंपन्नता और समर्थता औरों के लिए उदाहरण बने। वे युवा-शक्ति पर विश्वास रखते थे। इसलिए उन्होंने सदैव उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित करने के प्रयास किए।
इस पुस्तक में उनके प्रेरक जीवन को कहानियों में समेटने का प्रयास किया गया है, ताकि बच्चे, युवा एवं अन्य सभी पाठक उनसे प्रेरणा लेकर राष्ट्रकार्य के लिए समर्पित हों।
Kalam Sir Ke Success Path by Surekha Bhargava
कलाम सर प्रेरणा और सम्मान की प्रतिमूर्ति थे। इस पुस्तक में शिक्षाओं व उनकी प्रार्थनाओं को शब्दों में पिरोने की कोशिश की गई है। एक ऐसी माला बनाई गई है, जिसके मन के आपके मन को अंदर से छूने की कोशिश करेंगे। और अगर आप इजाजत देंगे, तो ये आपके मन-मस्तिष्क में ऐसा मंथन शुरू करेंगे, जिसके अंत में आप अपनी पसंद की सफलता का माखन चख ही लेंगे।
कलाम सर के ये पाठ हर उस व्यक्ति के लिए हैं, जो सपने देखता है, उन सपनों के लिए कुछ करना चाहता है, कठिनाइयों से ऊपर उठना चाहता है, कुछ बनना चाहता है और कुछ कर गुजरना चाहता है। ये कविताएँ उसी मन को उठाने का प्रयास है, जो सक्षम है, और ‘जो’सिर्फ ‘जो’ कलाम सर के भारत को विकसित देशब नाने के स्वप्न को पूरा कर सकता है।
ये कविताएँ आह्वान हैं कि आइए, कलाम सर के इस सपने को हम सब व्यक्तिगत रूप से लें और न केवल अपनी सफलता के लिए सतत प्रयास करें बल्कि यदि अपने आस-पास किसी को कोई भी सपना बुनते देखें और उसको कुछ करते देखें तो उसको प्रोत्साहित करें, उसका साथ दें। कुछ ऐसा करें कि हर दिल में तिरंगा लहराने की बात, कलाम सर जिस शान से किया करते थे, उसका मान रह जाए।
सफलता पर जब हमारा ध्यान हो तो हमें कैसा बनना है, कैसे अपने मूल्यों से कोई समझौता नहीं करना है और कैसे कठिन परिस्थितियों व परिश्रम के बीच भी खुद को कोमल बनाए रखना है, ये सब बातें ही डॉ. कलाम लगातार सिखाते थे। इसके अंदर आई कविताएँ संक्षेप में उनके नजरिए को पेश करने की छोटी सी कोशिश है।
आइए, इसी अग्नि को हम भी अपने-अपने दिलों में प्रज्वलित करें और अपने आपसे यह वादा करें कि इन पाठों को सीखकर, सिखाकर और सफलता का जिम्मा उठाकर हम भी अपने जीवन को सार्थक करेंगे और देश को एक विकसित देश बनाने में योगदान देंगे।
Kalam, Tum Laut Aao by Dr. Rashmi
भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. कलाम अपनी पुस्तकों और व्याख्यानों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर प्रेरक टिप्पणियाँ किया करते थे। हमने बहुत विनम्रतापूर्वक और आभार के साथ इस महान् शख्सियत की कुछ चुनिंदा टिप्पणियों-कथनों को इस पुस्तक में संकलित किया है। आज भले ही डॉ. कलाम तन से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन ज्ञान और प्रेरणा के रूप में वे हमारे दिल और दिमाग में हमेशा जीवित रहेंगे। आनेवाले युग-युगों तक उनके शब्द हमें झंकृत करते रहेंगे, प्रेरित करते रहेंगे। उनका हृदय इतना विशाल था कि वे मनुष्यमात्र के हित की बात सोचते थे। यदि हम उन्हें संत की संज्ञा दंि तो अतिशयोक्ति न होगी।
डॉ. कलाम जैसी विभूति युगों-युगों में जन्म लेती है और समूचे मानव जगत् को अपने ज्ञान व प्रेम के माध्यम से विकास का मार्ग दिखाती है। इसलिए, हमें उन जैसे महान् व्यक्ति की आवश्यकता हमेशा रहती है और रहेगी। यही कारण है कि हम आज भी अपने हृदय की गहराइयों से पुकारते हैं कि कलाम, तुम लौट आओ…देश को तुम्हारी बहुत जरूरत है…कलाम, तुम लौट आओ!
Kalidas Chintan by Pt. Suryanarayan Vyas, Rajsekhar Vyas
संसार के सर्वश्रेष्ठ नाटककार और विश्वकवि कालिदास की असाधारण प्रतिभा का लोहा पाश्चात्य विद्वानों ने भी माना। सर विलियम जोंस हों या गेटे या फिर शेक्सपीयर ही क्यों न हों, सब कालिदास की लेखनी के अनन्य प्रशंसक थे। उन भारतीय राजनेताओं और तथाकथित पंडितों को क्या कहें, जो पाश्चात्य मत से प्रभावित होकर कालिदास को केवल संस्कृत साहित्य तक ही सीमित रखते हैं। सारे संसार में कालिदास के नाम को पुनर्जीवन देनेवाले महान् विद्वान् पं. सूर्यनारायण व्यास ने आधुनिक भारत के सांस्कृतिक रंगमंच की आधारशिला रख उज्जयिनी में अखिल भारतीय कालिदास समारोह वर्ष 1928 में आरंभ किया। कालिदास साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान्, कालिदास अकादेमी के संस्थापक पं. व्यास की रससिद्ध लेखनी से निःसृत कालिदास के काल, जन्म, कला, रस और अन्य पक्षों पर उनके निबंधों का यह संग्रह गागर में सागर है। कालिदास और विक्रम, भास और भर्तृहरि, भवभूति और भरत, वात्स्यायन और कालिदास पर अद्भुत शोधपूर्ण दृष्टि—जिन विषयों पर विश्व के विद्वानों में अब चर्चा हो रही है, मसलन कालिदास के पूर्ववर्ती, कालिदास के समकालीन और बाद के काल के कवियों पर एक विलक्षण विद्वान् की ओजस्वी कलम से, विश्वकवि कालिदास पर प्रस्तुत है अनुपम कृति—‘कालिदास चिंतन’। कालिदास और विक्रम पर उनकी अन्यान्य रचनाओं के चयन, संयोजन, संपादन और प्रकाशन के लिए प्राणपण से संलग्न महान् पिता के सुयोग्य सुपुत्र श्री राजशेखर व्यास के विलक्षण संपादन और मार्मिक लेखों से युक्त कृति ‘कालिदास चिंतन’ आपको मुग्ध किए बिना नहीं रहेगी।
Kaliyug Sarvashreshtha Hai by Mahayogi Swami Buddha Puri
सृष्टि के विकास क्रम में चार युगों का चक्र चलता है—सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग। प्रत्येक युग में धर्म का कुछ हृस होते-होते कलियुग में अधर्म अपने चरम पर पहुँच जाता है। कलियुग के बाद सतयुग का प्रादुर्भाव होता है, पर कैसे? क्या रहस्य है? अधर्म की वृद्धि से एकदम धर्मयुक्त सतयुग का कैसे प्रादुर्भाव होता है? इसमें क्या रहस्य है? कौन सा ईश्वरीय विधान छुपा हुआ है और उसका कलियुग में रहते हुए ही किन साधनाओं द्वारा प्रकट होना संभव है?
शास्त्र कहते हैं कि कलियुग के बाद पुनः धर्मयुग अर्थात् सतयुग आएगा ही। इतना ही नहीं, महाभारत तथा अनेक पुराणों में लिखा है कि कलियुग सर्वश्रेष्ठ है। यह पुस्तक एक ओर शास्त्रों के इन गंभीर रहस्यों को अत्यंत सरल भाषा में और उपयुक्त प्रमाणों तथा युक्तियों के माध्यम से स्पष्ट करती है तो दूसरी ओर बताती है कि
कलियुग के अवगुणों से कैसे बचना है और गुणों को कैसे धारण करना है?
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र—इन वर्णों का क्या महत्त्व है?
जीवन का लक्ष्य क्या है और उसकी प्राप्ति हेतु किन स्तरों को पार करना होता है?
धर्म का वास्तविक स्वरूप क्या है? उत्तरोत्तर धर्म की व्यापकता में साधक की चेतना का प्रवेश कैसे संभव है?
Kalki : Dasaven Avatar Ka Udaya by Ashutosh Garg And Atri Garg
संभल गाँव का निवासी और फौज में सूबेदार बिंदेश्वरनाथ त्रिवेदी, प्रथम विश्व-युद्ध के लिए यूरोप जाता है लेकिन युद्ध खत्म होने पर भी घर नहीं लौटता। इस बीच उसके बेटे रमानाथ को संभल का एक रहस्यमयी व्यक्ति मिलता है जो रमानाथ के लापता पिता के बारे में सब जानता है। वह रमानाथ को यूरोप में फैली स्पैनिश फीवर नामक महामारी और उसका वायरस तैयार करने वाले के बारे में भी बताता है! इस घटना के सौ वर्ष बाद, सन् 2020 में म्यूविड-20 नामक एक नई महामारी फैलती है, तो वही रहस्यमयी व्यक्ति फिर प्रकट होता है। इस बार उसकी मुलाकात रमानाथ के पोते गौरव त्रिवेदी से होती है। गौरव को जब उस व्यक्ति की असलियत का पता लगता है तो उसके होश उड़ जाते हैं!
कौन है संभल का वह रहस्यमयी व्यक्ति? त्रिवेदी परिवार से उसका क्या संबंध है? क्या स्पैनिश फीवर और म्यूविड-20 महामारियाँ सिर्फ संयोग हैं? या 100 साल के भीतर मानव-समाज पर आई इन दो भयानक विपदाओं के पीछे कोई अज्ञात शक्ति है? क्या भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का जन्म हो चुका है? यदि हाँ, तो कल्कि, आधुनिक समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
यह पुस्तक, कल्कि और कलियुग के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसमें आशुतोष ने जहाँ अपनी परिपक्व कलम से विश्व-इतिहास, उच्च जीवन-दर्शन और पौराणिक पृष्ठभूमि के जीवंत चित्र खींचे हैं, वहीं अत्रि ने अपनी जबर्दस्त कल्पना-शक्ति से साइंस फिक्शन का रोमांचक और अनूठा संसार रचा है।
Kalpana Chawla : Sitaron Se Aage by Anil Padmanabhan
कर्मवीर कभी विघ्न-बाधाओं से विचलित नहीं होते । ध्येयनिष्ठ कर्तव्य- परायण व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं । भाग्य के आश्रित रहनेवाले कभी कुछ नया नहीं कर सकते । इतिहास साक्षी है-संसार में जिन्होंने संकटों को पार कर कुछ नया कर दिखाया, यश और सम्मान के चरमोत्कर्ष को प्राप्त किया । ऐसा ही इतिहास रचा हरियाणा के एक छोटे से नगर करनाल के मध्य वर्गीय परिवार में जनमी कल्पना चावला ने ।
बाल्यकाल से ही वह सितारों के सपने देखा करती थी । देश-विभाजन की त्रासदी के बाद विस्थापित परिवार की जर्जर आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति, तीक्ष्या बुद्धिमत्ता, अटूट आत्मविश्वास तथा सतत कठोर परिश्रम जैसे गुणों के कारण ही वह अंतरिक्ष में जानेवाली प्रथम भारतीय महिला बनी । अधिक उल्लेखनीय तो यह है कि उसे दो- दो बार अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया ।
सभी आयु वर्ग, विशेषकर युवाओं एवं जीवन में कुछ विशेष कर दिखाने में प्रयत्नरत मेधाओं के लिए असीम प्रेरणास्पद इस जीवनी में प्रसिद्ध पत्रकार श्री अनिल पद्मनाभन ने करनाल और नासा के उसके मित्रों तथा सहयोगियों से बातचीत कर एक ऐसी महिला का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है, जो हम सबके लिए मार्गदर्शक- प्रेरणादायी उदाहरण है कि सतत पुरुषार्थ करें और ध्येयनिष्ठ रहें तो अपने-अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं ।