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Short Story Collection Vol. 098
This is the 98th edition of Librivox Short Stories. Each story is selected and read by a Librivox volunteer. The french author Guy de Maupassant and the Indian writer Rabindranath Tagore feature strongly in this selection.
Short Story Collection Vol. 099
A diverse collection of short stories selected and read in English by Librivox readers. This time, we delve into the works of Ernest Hemingway, O. Henry, Sewell Ford and Stephen Leacock and others to bring you tales of mystery, poignant romance, the quirky and the amusing. So sit back and enjoy the 99th Librivox Short Story Collection!
Short Story Collection Vol. 100
A milestone in Librivox short story collection history! It is edition 100 and to celebrate, we have some wonderful stories. Old favorites, such as W. Somerset Maugham, P. G. Wodehouse and Ernest Hemingway are joined by less familiar authors, such as Franklin P. Harry, W. H. H. Murray and Dick Purcell. As always, you are invited to sit back and enjoy!
Short Story Collection Vol. 102
Here we present the 102nd Short Story Collection, comprised of stories selected by Librivox readers. Algernon Blackwood, Saki and Anton Chekhov and others are represented, so sit back and enjoy!
Short Works on Sports Collection 01
A miscellany of poetry and short works of fact and fiction on the topic of sports from North America, Great Britain and Australasia. The collection includes pieces on baseball, cricket, lacrosse, cycling, athletics, fishing, polo, fencing, marbles and three kinds of football, by authors including Arnold Bennett, Zane Grey, Banjo Paterson, and P. G. Wodehouse. (Summary by Phil Benson)
Shoshone National Forest, Wyoming by United States. Forest Service
The Shoshone National Forest was set aside by proclamation of President Benjamin Harrison as the Yellowstone Park Timberland Reserve on March 30, 1891.
Show Business by Boyd Ellanby
“Except for old Dworken, Kotha’s bar was deserted when I dropped in shortly after midnight. The ship from Earth was still two days away, and the Martian flagship would get in next morning, with seven hundred passengers for Earth on it. Dworken must have been waiting in Luna City a whole week—at six thousand credits a day. That’s as steep to me as it is to you, but money never seemed to worry Dworken.” -an excerpt
Showman : Raj Kapoor by Ritu Nanda
राज कपूर भारतीय सिनेमा के एक दिग्गज अभिनेता थे। वे एक असाधारण शोमैन, एक प्रेमी, एक आदर्शवादी, एक संत और एक सुधारक भी थे। बेहतरीन निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, एडिटर, गीतकार और कहानीकार के रूप में, इस क्षेत्र पर उनका प्रभुत्व ऐसा था कि उन्होंने कुछ ऐसी फिल्में बनाईं, जिन्हें दुनिया में कहीं भी बनी फिल्मों से ज्यादा देखा गया—ऐसी फिल्में, जिन्होंने दर्शकों की कई पीढि़यों को मंत्रमुग्ध किया है।
राज कपूर में न केवल हास्य की उम्दा टाइमिंग थी, बल्कि इतिहास में उनकी अपनी टाइमिंग थी। उन्होंने न केवल फिल्में बनाईं, बल्कि मुख्यधारा के भारतीय फिल्मी दर्शक वर्ग को भी उस समय तैयार किया, जब बाजार में किसी ने बॉलीवुड का नाम तक नहीं सुना था। विरासत में मिली सिनेमाई परंपरा के साथ काम करते हुए उन्होंने उसमें बदलाव किए, नई-नई चीजों को जोड़ा, और एक अलग ही, मोहक रोमांस से भरपूर और जबरदस्त लोकप्रिय फिल्मों का निर्माण किया।
वह भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक दूत थे। कहा जाए तो उनकी फिल्में भावनाओं और मनोरंजन की एक विचारधारा थीं। अपनी सामाजिक चिंताओं और संदेशों को उन्होंने हास्य, संगीत, रोमांस और नाटकीयता का रूप दिया। उनमें दर्शकों की नब्ज को पहचानने की गजब की समझ थी। फिल्म-निर्माण में राज कपूर के वास्तविक योगदान पर अंतहीन बहस हो सकती है, लेकिन इस बात से कुछ ही लोग इनकार कर सकते हैं कि वह हिंदी सिनेमा के अब तक के सबसे बड़े एंटरटेनर थे।
Shraddheya by Bhagwat Sharan Mathur
श्रद्धेय कुशाभाऊ ठाकरे भारतभूमि में मध्य प्रदेश के रत्नशीर्ष हैं। उनकी कुशाग्र मति और भ्रातृत्वशील स्वभाव सभी के लिए प्रेरणाशील रहा है। वे बाल्यकाल से ही आदर्श परिपालन के लिए उद्यत रहे और उत्कृष्ट बालसेवक के रूप में देश की सच्ची सेवा में रत हो गए। गुरु का एकल आह्वान और उनका संघ के लिए प्रचारण का आरंभ किया जाना प्रत्येक राष्ट्रवादी के लिए स्वयं प्रेरणा से कम नहीं है। अल्पकाल में ही उनका नाम श्रेष्ठ संघ-कार्यकर्ताओं में प्रगणित होना गर्व का विषय है। इसका प्रमाण है कि सन् 1956 में जैसे ही उनकी जन्मभूमि एक नवीन स्वतंत्र प्रदेश के रूप में उभरकर सामने आई तो वे मध्य प्रदेश के जनसंघ मोर्चे के संगठन मंत्री बने। कुशाभाऊ सर्वत्र सहज रहते थे। उन्होंने कारावास में भी इस प्रकार सहज पदार्पण किया, मानो वे स्वतंत्र भारत में भी आपातकाल की परतंत्रता का सहर्ष मौन विरोध कर रहे हों। उनकी यह सहिष्णुता एवं सहजता ही उनकी उदात्त छवि की प्रमुख आधारशिला थी।
प्रखर राष्ट्रभक्त, अप्रतिम संघनिष्ठ कार्यकर्ता, दूरद्रष्टा एवं कोटि-कोटि कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत श्रद्धेय कुशाभाऊ ठाकरे के त्यागमय जीवन का विस्तृत वर्णन करती शब्दांजलि।
Shramana Shabari Ke Ram by Mahakavi Avadhesh
जब न बेर कुछ बचे राम ने लखा निकट का कोना,
देखा क्षत-विक्षत बेरों का पड़ा दूसरा दोना।
बोले वह भी लाओ भद्रे! वे क्यों वहाँ छिपाए,
होंगे और अधिक मीठे वे लगते शुक के खाए।
उठा लिया था स्वयं राम ने अपना हाथ बढ़ाकर,
तभी राम का कर पकड़ा था श्रमणा ने अकुलाकर।
प्रभु! अनर्थ मत करो, लीक संस्कृति की मिट जाएगी,
जूठे बेर भीलनी के खाए, दुनिया गाएगी।
हुआ महा अघ यह मैंने ही चख-चखकर छोड़े थे,
जिस तरु के अति मधुर बेर थे, वही अलग जोड़े थे।
किंतु किसे था भान, प्रेम से तन-मन सभी रचा था,
कहते-कहते बेर राम के, मुख में जा पहुँचा था।
छुड़ा रही थी श्रमणा, दोना राम न छोड़ रहे थे,
हर्ष विभोर सारिका शुक ने तब यों वचन कहे थे।
जय हो प्रेम मूर्ति परमेश्वर, प्रेम बिहारी जय हो,
परम भाग्य शीला श्रमणा भगवती तुम्हारी जय हो।
—इसी महाकाव्य से
——1——
रामायण में प्रभु की भक्त-वत्सलता और भक्त की भक्ति की मार्मिक कथा की नायिका श्रमणा पर भावपूर्ण महाकाव्य।
Shravan Kumar Ki Prerak Kathayen by Kumar Praphull
प्रस्तुत पुस्तक माता-पिता के अनन्य भक्त श्रवण कुमार के जीवन पर आधारित है। श्रवण के जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी िशक्षाप्रद कहानियों में एक श्रेष्ठ, होनहार, कर्तव्यनिष्ठ तथा धर्मपालक पुत्र की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। श्रवण कुमार केवल मातृ-पितृभक्त ही नहीं अपितु एक संस्कारी, ज्ञानी, निष्ठावान, साधु, संत एवं गुरुओं का आदर-सत्कार करने में भी आगे रहता था। दयालुता तथा सेवा की भावना उसके मन में कूट-कूटकर भरी थी। अतः पुस्तक में ऐसी अनेक कहानियों को सरल भाषा एवं चित्रों के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जो एक बालक को संस्कारी, निष्ठावान, दयालु, माता-पिता तथा गुरुओं की सेवा के लिए प्रेरक रहेंगी।
Shreshtha Bal Kahaniyan by Sudha Murthy
बच्चों का मस्तिष्क कोरी स्लेट की तरह होता है। यह कहानियाँ उन बच्चों को लक्ष्य पर लिखी गयी हैं, जो अबोध आयु को पार कर किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे है। प्रस्त्तुत संकलन में संकलित कहानियाँ मानवीय स्वभाव के सदगुणों-अवगुणों और भावनाओं, जैसे – ईर्ष्या, छल, दूसरों की सहायता, कंजूसी आदि पर आधारित है।
Shreshtha Hasya Vyangya Geet by Prem Kishore ‘Patakha’
श्रेष्ïठ हास्य-व्यंग्य गीत
आज परिवार में, समाज में, देश में, विश्व में—अर्थात् हर तरफ इतनी विसंगतियाँ व विडंबनाएँ बिखरी हुई हैं कि मनुष्य का हँसना दूभर हो गया है। नाना प्रकार के तनाव, चिंताएँ आज इनसान को घेरे हुए हैं। अजीब भाग-दौड़ हो रही है। विकट आपा-धापी मची हुई है। सबकुछ बाजार हुआ जाता है। ऐसे माहौल में गीत में यह सामर्थ्य है कि वह उदास चेहरों पर ठहाकों के फूल खिला दे। और कटाक्ष करने पर उतरे तो क्या नाते-रिश्तेदार, क्या नेता-अभिनेता, क्या कर्मचारी-अधिकारी—यानी परिवार-समाज, देश-विश्व का कोई ऐसा सदस्य नहीं, जो गीत के व्यंग्य-बाणों से बच सके। बुराइयों पर बड़े सलीके से वार करते हैं ये श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य गीत।
Shreshthata Ki Ore Bharat by Nimisha Gaur
मेरा देश बदल रहा है भारत वर्ष के युगांतकारी परिवर्तनों से ओतप्रोत ज्वलंत मुद्दों का संकलन है, जिसमें भारत के सर्वसमावेशी विकास की समकालीन परिस्थितियों का तथ्यात्मक विश्लेषण किया गया है। दुनिया के विशालतम लोकतंत्र में मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित शोषित गरीब-मध्यम वर्ग कृषि प्रधान देश और लोकतंत्र में हावी तंत्र से पीडि़त देश को 30 वर्षों बाद 2014 में संपूर्ण बहुमत मिला। आजादी के सात दशकों बाद वर्तमान सरकार ने सबको साथ लेकर चलनेवाली विकास की मूल भावना से ‘सबका साथ सबका विकास’ को धरातल पर चरितार्थ किया है।
गाँवों के देश भारत के पुनर्निर्माण में अंत्योदय की आवाज का महत्त्व बिना ऊँच-नीच के भेदभाव से किया जाने लगा है, जिसमें सामाजिक न्याय व आर्थिक मापदंडों को सार्थक करते हुए योग्यता के आधार पर शिक्षा और रोजगार के अवसर हर जन को उपलब्ध कराए गए। उक्त पुस्तक में विभिन्न विषयों पर लिखे गए लेख यू.पी.ए. के 55 वर्ष के शासनकाल का एन.डी.ए. के 5 वर्ष के शासनकाल में लिये गए मजबूत निर्णयों के परिणामों का विश्लेषण है।
आज देशवासियों की लोकतंत्र के प्रति आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में विकासशील से विकसित भारत के निर्माण की यात्रा में महत्त्वपूर्ण पड़ाव पर हम पहुँच चुके हैं, जिसमें एन.डी.ए. के शासनकाल में डिजिटल अभियान को सामाजिक आंदोलन बनाने से गरीबी उन्मूलन के निर्णायक दौर पर करोड़ों भारतीयों के गरीबी में जीवन व्यतीत करना अब अंतिम पड़ाव की ओर है।
Shrewsbury: A Romance by Stanley John Weyman
First published in the year 1898, the present historical romantic novel ‘Shrewsbury: A Romance’ by Stanley John Weyman is set in the region of England. It puts Stanley Weyman’s literary prowess as a master of historic romance on full display. Packed with plenty of romance and adventure, this novel is sure to please even the most discriminating fans of the genre.
Shri Guru Nanak Devji by Dr. Kuldeep Chand Agnihotri
प्रस्तुत पुस्तक में दशगुरु परंपरा के प्रथम गुरु श्री नानक देवजी के बहुपक्षीय व्यक्तित्व का सारगर्भित अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। नानक देवजी की कर्मसाधना, भक्तिसाधना और ज्ञानसाधना का फलक अत्यंत विशाल है। नानक को जानने के लिए, नानक को अपने भीतर अनुभव करना होगा। उन वीरान बियावानों की मानसिक यात्रा करनी होगी जिनकी नानक देवजी ने यथार्थ में यात्रा की थी। सुदूर दक्षिण में धनुषकोटि के किनारे विशाल सागर की उत्ताल लहरों को देखते हुए, उनमें श्रीलंका को जा रहे नानक देव की छवि को अपने मुँदे नेत्रों से देखना होगा। नानक को जानने का यही अमर नानक-मार्ग है। इस पुस्तक में लेखक ने यही करने का प्रयास किया है। नानक देवजी को समझने-बूझने के लिए, उस कालखंड की सभी परतों को उन्होंने एक-एक कर अनावृत्त किया है। यह पुस्तक किसी एक ढर्रे से बँधी हुई नहीं है, बल्कि नानक देवजी के विविधपक्षीय जीवन के ताजा स्नैप्स हैं। इसलिए इस अध्ययन में एक ताजगी है; ताजा हवा के एक झोंके का अहसास। गुरु नानक देवजी से शुरू हुई इस यात्रा के अंतिम अध्याय तक पहुँचते-पहुँचते, रास्ते के सभी पड़ावों की अविछिन्नता एवं वैचारिक निरंतरता को पुस्तक के अंतिम अध्याय में इंगित किया गया है। पुस्तक की उपादेयता विविध प्रसंगों की नवीन युगानुकूल व्याख्या में है।
Shri Guruji : Prerak Vichar by Sandeep Dev
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे।
सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया। इस दौरान देश-विभाजन, भारत की आजादी, गांधी-हत्या, भारत व पाकिस्तान के बीच तीन-तीन युद्ध (कश्मीर सहित) एवं चीन का भारत पर आक्रमण जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के भी साक्षी बने और उस इतिहास-निर्माण में लगातार हस्तक्षेप भी किया।
श्रीगुरुजी सही मायने में न केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सारथि थे, बल्कि बँटवारे के समय वे पाकिस्तानी हिस्से के उस हिंदू समाज के उद्घाटक की भूमिका में भी थे, जिसे बँटवारे से उपजे सांप्रदायिक उन्माद से जूझने के लिए तत्कालीन सरकार ने बेबस छोड़ दिया था।
यह पुस्तक श्रीगुरुजी के त्यागपूर्ण प्रेरणाप्रद जीवनी के साथ ही उनके ओजस्वी विचारों का नवनीत भी है।
Shri Nanda Devi Rajjat by Kanti Ballabh Kuniyal
कान्ति बल्लम कुनियाल
जन्म : 7 जनवरी, 1964 को ग्राम -मल्ला, पो. ऑ. -ल्वाणी वाया देवाल तहसील- थराली, जिला-चमोली ( उत्तराखण्ड) में ।
कृतित्व : उत्तराखण्ड शोध संस्थान, दिल्ली इकाई के संयोजक ( अवैतनिक); शोध एवं पटकथा पर वृत्तचित्र ‘ उत्तराखण्ड का जनान्दोलन ‘ का निर्माण; हिमालयी संस्कृति एवं पर्यावरण के उन्नयन संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए निरन्तर प्रयत्नशील । ट्रेकिंग एवं प्रकृति भ्रमण को बढ़ावा देने के लिए रूपकुण्ड गाइड एवं पोर्टर्स सोसाइटी, लोहाजंग (चमोली) के अवैतनिक सचिव के रूप में सक्रिय । हिन्दी, संस्कृत, गढ़वाली, कुमाऊँनी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए संघर्षरत ।
सम्मान : 1997 में ‘ आगे बढ़ो-रेल जवान ‘ ( कविता) के लिए क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र चन्दौसी द्वारा प्रशस्ति पत्र; साहित्य एवं संस्कृति क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए सन् 2006 में ‘ हिमालय और हिन्दुस्तान अवार्ड ‘ । उत्तराखण्ड आन्दोलन पर पहले वृत्तचित्र उत्कृष्ट शोध एवं लेखन के लिए सम्मानित ।
सम्प्रति : भारतीय रेलवे में सेवारत ।
Shriguruji Kavyanjali by Shri Yogesh Chandra Verma ‘Yogi’
‘श्रीगुरुजी-काव्यामृत’ विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रचलित नाम ‘आर.एस.एस.’, लघु नाम ‘संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य ‘श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर’ उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ के जीवनवृत्त को खंडकाव्य में वर्णित करने का एक लघु प्रयास है।
संघ की स्थापना परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सन् 1925 में नागपुर प्रांत में की थी। सन् 1940 में प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के देहावसान के पश्चात् श्रीगुरुजी द्वितीय सर संघचालक बने।
संघ के अंकुरित पौधे को अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व की खाद-पानी देकर उसे वटवृक्ष के समान उसकी जड़ों और शाखाओं का विस्तार करनेवाले महनीय ‘श्रीगुरुजी’ ही थे। सरसंघचालक का दायित्व ग्रहण करने से लेकर जून 1973 में मृत्युपर्यंत उन्होंने संघ में अनेक सोपान जोड़े। आधुनिक भारत के इतिहास में यह कालखंड निर्णायक रहा है, जब बँटवारे की विभीषिका के बीच सन् 1947 में यह देश स्वतंत्र हुआ, किंतु कुछ समय पश्चात् ही गांधी-हत्या का जघन्य अपराध भी हो गया। इसके पश्चात् संघ को बलि का बकरा बनाते हुए प्रतिबंधित कर कुचलने का प्रयास भी किया गया। परंतु जिस प्रकार संघ को इस भीषण कुठाराघात व घृणित दोषारोपण से निकालते हुए ‘श्रीगुरुजी’ ने समाज के विविध क्षेत्रों में अपने अनेक आनुषांगिक संगठन खड़े किए, वह उनकी अद्भुत अद्वितीय संगठन क्षमता को प्रकट करता है। ऐसे विराट् संगठनकर्ता के व्यक्तित्व व कृतित्व का वर्णन सरल, सुगम्य, सुबोध खंडकाव्य में कर पाने जैसे दुष्कर कार्य में रचयिता कितना सफल हुआ है, इसकी समीक्षा आप सुधी पाठकों को करनी है।
Shuddha Jeevan Jeene Ke Mantra by Brahma Kumaris
आध्यात्मिक मूल्यों से रहित जीवन कुछ ऐसा ही है, मानो हम कोई अनाथ बालक हों; हम स्वयं को असुरक्षित, प्रेम से रहित तथा अवांछित मान बैठते हैं। मूल्य हमारे ‘माता-पिता’ हैं। मनुष्य की आत्मा इसके द्वारा पोषित मूल्यों से सिंचित होती है। जब हम अपने मूल्यों के अनुसार जीते हैं तो इससे एक सुरक्षा व सहजता का भाव उपस्थित होता है। मूल्य हमें स्वतंत्रता और आजादी देते हैं, आत्मनिर्भर बनने की क्षमता प्रदान करते हुए बाहरी प्रभावों से मुक्त करते हैं। आत्मा के भीतर सत्य को जानने तथा सत्य के पथ का अनुसरण करने की योग्यता विकसित होती है।
मूल्य व्यक्ति के हृदय के बंद द्वार खोलकर मनुष्य की प्रकृति को रूपांतरित कर देते हैं, ताकि उसका जीवन करुणा एवं विनय से ओत-प्रोत हो जाए।
जब व्यक्ति अपने भीतर मूल्यों को विकसित कर लेता है तो अपने आसपास के संसारों में भी उन मूल्यों की महक फैला देता है, ताकि सभी एक बेहतर जगत् की ओर आगे बढ़ सकें। शुद्ध-सात्विक भाव से जनकल्याण एवं मानवहितार्थ सेवारत ब्रह्माकुमारियों के प्रेरक जीवन से उपजे ‘शुद्ध जीवन जीने के मंत्र’ जो हर पाठक के हृदय को आध्यात्मिक आनंद से समृद्ध कर देंगे।
Shukriya by Sanjay Sinha
संजय सिन्हा की पुस्तक बहुत से लोगों की ज़िंदगी में उजाला भर सकती है। छोटे-छोटे प्रसंगों से बड़ी गहरी बातें संजय ने अपनी पुस्तक में स्पष्ट की हैं। आज व्यक्ति संवेदना शून्य हो चुका है क्योंकि वो रिश्ते भूल गया है। रिश्ते नहीं हैं तो ज़िंदगी कैसे जी पाएँगे? इसलिए समय की कीमत पहचानिए और दिलों में उम्मीद का दीपक जलाइए।
—इंडिया टुडे
ये दास्तानें हैं हमारी-आपकी ज़िंदगी की, कुछ खट्टी, कुछ मीठी, तो कुछ हैरान-परेशान कर देने वाली। पर हैं सच। ऐसे ही सच से आपको रूबरू कराया है लेखक ने। आपसी रिश्तों और सामाजिक ताने-बाने को उजागर करती ये दास्तानें काफी दिलचस्प अंदाज़ में लिखी गई हैं और इनमें पाठकों को हद दर्जे का अपनापन नज़र आता है।
—नवभारत टाइम्स
अपनी पुस्तक में संजय सिन्हा ने तमाम अनुभवों को साझा किया है। उन्होंने रिश्तों की कई कहानयों को अपनी किताब में बहुत बारीक निगाहों से तराशा है। संजय ने अपने अनुभव की कहानियों को बहुत ही दिलचस्प अंदाज़ में लिखा है। कई मायनों में इनकी पुस्तक एक प्रयोग की तरह है।
—जनसत्ता
Shwet Patra by Viveki Rai
श्वेत पत्र’ सन् 1942 के जनांदोलन और बलियागाजीपुर जनपद तथा बिहार के सीमावर्ती भोजपुरी अंचल के तत्कालीन गुप्त आंदोलन के प्रामाणिक इतिहास पर आधारित, उद्वेलित मानसिकता की संपूर्ण पकड़ से परिपूर्ण ऐसी कलाकृति है, जिसमें व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन और गाँवों में फैले क्षेत्रीय आंदोलन का कहीं अभिन्न और कहीं समानांतर चित्रण है।
तत्कालीन स्थिति के कुछ सर्वथा नए तथ्यों को उजागर करता ‘श्वेतपत्र’ अर्थात् आजादी का ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत करता है। जयप्रकाश, लोहिया आदि के उन महत्त्वपूर्ण, प्रामाणिक बुलेटिनों, पैंफलेटों, पर्चों और गुप्त पत्रों को, जिनको सही मायने में अस्त्र बनाकर जनता स्वयं अपनी लड़ाई लड़ती है, गाँव के किसानमजदूर, अध्यापकविद्यार्थी और किसानसरदार लड़ते हैं।
लेखक का दावा है—उन पैंफलेटों आदि का मूल रूप उसके पास सुरक्षित है और इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम का एक सहीसही तथा रचनात्मक रूप उभर आता है ‘श्वेतपत्र’ में। अत्यंत रोचक, सनसनीखेज, प्रभावशाली, प्रेरणाप्रद और आज की राष्ट्रीय स्थितियों के पुनर्मूल्यांकन योग्य अनेक अछूते आयामों से परिपूर्ण।
Shyam Ki Maa by Sane Guruji
वर्ष 195060 के दशक में भारत की जिस पीढ़ी ने अपनी उम्र का पहला डेढ़ दशक पूरा किया था, उनमें से आज का कोई वरिष्ठ नागरिक ऐसा नहीं होगा, जिसने बचपन में साने गुरुजी की मराठी में लिखी ‘श्यामची आई’ पुस्तक पढ़ी नहीं होगी। साने गुरुजी के ‘श्यामची आई’और ‘मीरी’ जैसे मराठी में लिखे उपन्यास पढ़कर जिसकी आँखें नम न हुई हों, ऐसे व्यक्ति कम ही होंगे। बेहद सरल, मार्मिक, दिल को छू लेनेवाली भाषा साने गुरुजी की विशेषता है।
कहा जा सकता है कि माँ की प्रेममय और महान् सीख का सरल, सहज और सुंदर शब्दों में किया गया चित्रण, हमारी संस्कृति का एक अनुपमेय कथात्मक चित्र, एक कारुणिक कथावस्तु यानी ‘श्याम की माँ’! खुद गुरुजी कहते हैं कि मन का पूरा अपनापन मैंने इस कथा में उडे़ला है। ये कहानियाँ लिखते हुए सौ बार मेरी आँखें नम हुईं। दिल भर आया। मेरे हृदय में माँ के बारे में जो अपार प्रेम, भक्ति और कृतज्ञता का भाव है, वह ‘श्याम की माँ’ पढ़कर अगर पाठकों के मन में भी उत्पन्न हो तो कहा जा सकता है कि यह कृति लिखना सार्थक हुआ।
अपने बच्चों से अपार प्रेम करनेवाली, वे सुंसस्कारी बनें, इसलिए जीजान से कोशिश करनेवाली, लेकिन संस्कारों की अमिट छाप उपदेश रूपी दवा की खुराक के रूप में नहीं, बल्कि अपने बरताव से और रोजमर्रा के छोटेछोटे प्रसंगों के जरिए बच्चों के मन पर छोड़नेवाली, अनुशासन का महत्त्च बताते हुए प्रसंगानुसार कठोर बननेवाली यह आदर्श माँ आज की उदयोन्मुख पीढ़ी के लिए ही नहीं, वरन् उनके मातापिता के लिए भी निश्चित रूप से प्रेरक साबित होगी।
Shyam, Phir Ek Bar Tum Mil Jate! by Dinkar Joshi
दौड़कर उसने कृष्ण के पाँव से तीर खींचने के लिए हाथ बढ़ाया । कृष्ण उसकी व्यग्रता को निमिष- भर ताकते रहे, फिर निषेध में दाहिना हाथ उठाया ।
जरा ठिठक गया- ” क्यों, नाथ, क्यों?”
” रहने दो, भाई! माता गांधारी के वचन में व्यवधान बनने का व्यर्थ प्रयत्न मत करो!” बड़ी धीरता से वे बोले ।
” मैंने महापातक किया है! मुझे क्षमा करो, नाथ! मैंने.. .मैंने आपको जंगली प्राणी समझकर आप पर तीर चलाया । यह मैंने क्या किया, नाथ!” जरा भूमि पर लोटकर करुण क्रंदन करने लगा ।
” उठो वत्स!” करुणार्द्र स्वर में कृष्ण बोले, ” तुम्हारा नाम क्या है?”
” मेरा नाम ?. .जरा ! ”
” जरा !. .ठीक!” कृष्ण का मधुर हास्य छलका । तलवे से बहकर रक्तधारा भूमि पर काफी दूर चली गई थी । ” जरा, तुम्हारा नाम सार्थक है, तात ! ‘ जरा ‘ कभी किसीको नहीं छोड़ती ! अमरत्व के अभिशाप ने जिसे घेरा हो, उसे भी महाकाल जरा समेट ही लेता है न! जरा, तू तो निमित्त मात्र है, वत्स!”
– इसी उपन्यास से
कोई भी भारतीय भाषा ऐसी नहीं है जिसमें श्रीकृष्ण को केंद्र में रखकर काव्य, कहानी, उपन्यास. नाटक, संदर्भ-ग्रंथ आदि साहित्य का सर्जन न किया गया हो । ‘ श्याम, फिर एक बार तुम मिल जाते ‘ (मूल गुजराती में लिखा) उपन्यास इन सबसे अनूठा इसलिए है कि यह सिर्फ उपन्यास नहीं है-यह तो उपनिषद् है! यथार्थ कहा जाए तो यह उपनिषदीय उपन्यास है ।
तत्कालीन आर्यावर्त्त में श्रीकृष्ण एक विराट् व्यक्तित्व था । जब यह व्यक्तित्व अनंत में विलीन हो गया तो जो सन्नाटा छा गया, उस सन्नाटे के चीत्कार का यह आलेखन है जब श्रीकृष्ण सम्मुख थे तब बात और थी जब वे विलीन हो गए तब वसुदेव-देवकी से लेकर अर्जुन, द्रौपदी, अश्वत्थामा, अक्रूर उद्धव और राधा पर्यंत पात्रों की संभ्रमिद मनोदशा को एक अनूठी ऊँचाई के ऊपर ले जाता है यह उपन्यास ।
Siddha Sant Aur Yogi by Shambhuratna Tripathi
इतिहास पर दृष्टि डालने पर कुछ शक्तियाँ सहज ही लक्ष्य की जा सकती हैं। यथा, सामरिक शक्ति, आर्थिक शक्ति, जनसमूह के संगठन की शक्ति, लेकिन जो शक्तियाँ वस्तुतः पृथ्वी को धारण करती हैं, वे साधारणतः प्रत्यक्षगोचर नहीं होती हैं। परंतु ऐसा भी नहीं है कि वे कभी हमारे सामने आती ही नहीं हैं। करुणावश, वे हमारे क्रियाकलाप में इस प्रकार हस्तक्षेप करती हैं कि हम उनको इस धरातल पर देख सकें। तोटकाचार्य अपने स्तोत्र में लिखते हैं—जगतीमवितुं कलिताकृतयो विचरन्ति महामहसश्छलतः। जगती की रक्षा करने हेतु महान् विभूतियाँ छद्म-शरीर धारण करके विचरण करती हैं। इन विभूतियाँ का संपर्क, इनके स्पर्श, इनकी वाणी, व इनके कटाक्ष सभी अभ्युदय हेतु होते हैं।
‘सिद्ध संत और योगी’ ऐसी विभूतियों के चिंतन व जीवनचरित का परिचय प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक एक संकलन के रूप में जिज्ञासुओं के लिए अत्यंत रोचक है, पर दूसरी ओर इसमें चर्चित अधिकांश महात्माओं की जीवंत शिष्य-परंपराएँ विद्यमान हैं, जहाँ आर्त्त व जिज्ञासु आश्रय अथवा मार्गदर्शन हेतु जा सकते हैं। आसन्न संकटों से निबटने के लिए मानवजाति के सम्मुख चेतना के उन्नयन के अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं है; इस पुस्तक में संकलित लेख कदाचित् इसी आशय से लिखे गए थे।
Siddhartha by Hemann Hesse
Siddhartha’ is the story of a young man who achieved Nirvana and to be known as Mahatma Buddh after great struggle in life. In order to explore and find the meaning of life he renounced everything and became an ascetic. He faced hardships starving himself to near death. At last, he realised that no one could teach him but himself. He has to look within and search for the answers to the riddle of life and unravel it himself.
This all time popular world classic narrates the story of one who found the meaning of life through his own efforts after undergoing great tribulations. It takes the reader through the life’s journey of this great man and highlights the meaning of life.
Sikandar Mahan by Rasik Bihari
अलेक्जेंडर थर्ड ऑफ मकदूनिया को अलेक्जेंडर द ग्रेट या सिकंदर महान् के नाम से जाना जाता है। उसने दस साल के अंदर दुनिया का नक्शा बदलकर रख दिया और यूनान से एशिया तक के एक बडे़ भू-भाग का राजा बन गया।
जुलाई 356 ईसा पूर्व में जनमे सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय मकदूनिया के राजा थे। 336 ईसा पूर्व में फिलिप की हत्या के बाद 20 साल के सिकंदर को एक अशांत राज्य वसीयत में मिला। उसने जल्दी ही अपने सभी दुश्मनों को ठिकाने लगा दिया और ग्रीस में अपना एक प्रभुतासंपन्न राज्य स्थापित किया। इसके बाद उसकी राज्य-विस्तार की भूख बढ़ गई।
अगले आठ सालों में सिकंदर ने 11,000 मील आगे तक अपनी सेना का नेतृत्व किया और 70 बडे़ शहरों और तीन महाद्वीपों को पार करते हुए उत्तर भारत में पंजाब तक आ पहुँचा।
अरस्तू का यह महान् शिष्य तूफान की तरह बड़ी-से-बड़ी बाधा को पार करता रहा, लेकिन मामूली से बुखार से पार नहीं पा सका और इसने बेबीलोन में 323 ईसा पूर्व में उसकी जान ले ली। अपने 33 साल के जीवन में सिकंदर ने कभी आराम नहीं किया। आराम और सुस्ती उसके शब्दकोश में नहीं थे। शूरवीर और नीतिज्ञ सिकंदर महान् का जीवन सदा कर्मकरने की प्रेरणा देता है।
Sikh Guru Gatha by Jagjeet Singh
भारत की सामाजिक एकता, उत्थान तथा राष्ट्रीय निर्माण में सिख गुरुओं का अमूल्य योगदान रहा है। प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव से लेकर दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह तक सभी दस गुरुओं का जीवनकाल कुल 239 वर्षों का रहा। इस दौरान सिख गुरुओं ने पंजाब तथा पंजाब से बाहर व्यापक भ्रमण किया और अपने उपदेश तथा व्यावहारिक जीवन द्वारा समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर उसकी दशा और दिशा ही बदल दी। आधुनिक युग का कोई भी ऐसा ज्वलंत मुद्दा नहीं, जिस पर सिख गुरुओं ने मानवमात्र को संदेश अथवा उपदेश न दिया हो। पंजाब में नए शहरों तथा जलस्रोतों आदि का निर्माण करके गुरुओं ने धर्म को विकास के साथ जोड़ा। राष्ट्र के गौरव और धर्म की रक्षा का प्रश्न आया तो छठे एवं दसवें गुरुओं ने न केवल शस्त्र धारण किए और अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़े बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे।
प्रस्तुत कृति ‘सिख गुरु गाथा’ सिख गुरुओं के त्याग-तपस्यामय, बलिदानी, आदर्श व प्रेरक जीवन पर प्रकाश डालने के साथ ही उनका संपूर्ण जीवन-वृत्त प्रस्तुत करती है।
Silas Marner (Class Xii) by George Eliot
Silas Marner : The Weaver of Raveloe is a novel by George Eliot, published in 1861. An outwardly simple tale of a linen weaver, it is notable for its strong realism and its sophisticated treatment of a variety of issues ranging from religion to industrialisation to community. The novel is set in the early years of the 19th century. Silas Marner, a weaver, is a member of a small Calvinist congregation in Lantern Yard, a slum street in an unnamed city in Northern England. He is falsely accused of stealing the congregation’s funds while watching over the very ill deacon. Two clues are given against Silas: a pocket-knife and the discovery in his own house of the bag formerly containing the money. There is the strong suggestion that Silas’ best friend, William Dane, has framed him, since Silas had lent his pocket-knife to William shortly before the crime was committed. Silas is proclaimed guilty.
Sim Card by Usha Verma
एक हफ्ते बाद रात आठ बजे होंगे कि टेलीफोन की घंटी बजी, ‘‘क्या मैं मिसेज नारायन से बात कर सकती हूँ।’’ ‘‘जी हाँ, मैं मिसेज नारायन बोल रही हूँ। आप कौन हैं?’’ ‘‘मैं पुलिस स्टेशन से बोल रही हूँ। आप वसुधा खन्ना को जानती हैं। वह कह रही है कि वह आपके पास रह सकती है।’’ ‘‘जी हाँ, क्या बात है?’’ ‘‘वह अपने घर में नहीं रह सकती, उसे या तो पुलिस के किए इंतजाम में रहना होगा या वह आप के पास रह सकती है।’’ मैंने कहा, ‘‘मेरे पास रह सकती है, आप ले आइए।’’ वसुधा के आने के बाद पुलिस वुमन ने बताया कि वसुधा ने आज करीब तीन बजे सौरभ के एक-एक कपड़े, कमीज, पैंट, टाई, कैमरा, लैपटॉप, फोटो अलबम, तमाम सीडी, वीडियो, घड़ी, मोबाइल फोन सब कुछ गार्डन में फेंक दिए और सब में आग लगा दी।
—इसी संग्रह से
मानवीय संवेदना और सरोकारों के ताने-बाने में बुनी ये मर्मस्पर्शी कहानियाँ पाठकों को झकझोरेंगी और उन्हें ये अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं-पात्रों का सहसा स्मरण करा देंगी।
Simmi Harshita Ki Lokpriya Kahaniyan by Simmi Harshita
‘तुम्हारी भाषा अद्भुत है। तुम्हारी शैली अद्भुत है।’
—मन्नू भंडारी
सिम्मी हर्षिता की हर कहानी अपने आप में संपूर्णता का एहसास लेकर आती है। सुधी पाठक केवल कहानी पढ़ता ही नहीं है, उसकी हर स्थिति के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता है। सिम्मी हर्षिता की कहानी पढ़ना ऐसा है, जैसे ठंडे शर्बत को एक-एक घूँट पीना और हर घूँट के साथ उसका स्वाद लेना।
—डॉ. महीप सिंह
‘बनजारन हवा’ कहानी में तुमने भाषा का बहुत ही प्रभावी रूप प्रयोग किया है।
—राजेंद्र यादव
सिम्मी हर्षिता की कहानियाँ कथ्य की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण हैं ही किंतु वे कथन-भंगिमा की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण और आकर्षक हैं। वे इस कौशल से कहानी कहती हैं कि कहीं भी अति नहीं होती। इन कहानियों को उनकी कथन-भंगिमा और अच्छे गद्य के लिए भी पढ़ा जा सकता है। अच्छा गद्य लिखना आसान काम नहीं है। इसलिए तो ‘गद्यं कवीना निकषं’ कहा गया है। उनके गद्य में काव्यात्मकता है और यहाँ से वहाँ तक प्रसृत वाग्वैदग्ध्य है, जिसमें परिहास भी है और व्यंग्य भी। उनके गद्य में एक क्रीडा-भाव सर्वत्र विद्यमान है। यह क्रीडा-भाव कहानियों के पात्रों के प्रति भी है और भाषा के प्रति भी।
—डॉ. हरदयाल
Simon Dale by Anthony Hope
First published in the year 1898, the present historical novel ‘Simon Dale’ by Anthony Hope is a fictionalized version of a fascinating episode in English history: King Charles II’s long-time dalliance with Nell Gwyn, the most acclaimed comedic actress of the era, an affair that produced two sons. Hope treats the often sensationalized romance with sensitivity and nuance.
Simon the Jester by William John Locke
This is a reproduction of a book published before 1923. We believe this work is culturally important and have elected to bring it back into print as part of our continuing commitment to the preservation of printed works worldwide. We appreciate your understanding and hope you enjoy this valuable book.
Simple Sabotage Field Manual by United States. Office of Strategic Services
“Sabotage varies from highly technical coup de main acts that require detailed planning and the use of specially-trained operatives, to innumerable simple acts which the ordinary individual citizen-saboteur can perform. This paper is primarily concerned with the latter type. Simple sabotage does not require specially prepared tools or equipment; it is executed by an ordinary citizen who may or may not act individually and without the necessity for active connection with an organized group; and it is carried out in such a way as to involve a minimum danger of injury, detection, and reprisal.” -Introduction
Simple Simon by Anonymous
Great Stories and poems for children is a collection of most delightful childrens stories.
Sindbad the Sailor & Other Stories from the Arabian Nights by Edmund Dulac
In this edition they are retold especially for children. this collection includes the voyages of Sindbad the Sailor, Ali Baby and the Forty Thieves and the Tale of the Hunchback.
Sir Edwin Landseer by Frederick G. Stephens
So much of the family history of this artist as it is needful to repeat, or the reader will care to learn, may be briefly told: it begins with his grandfather, who was a jeweller settled in London, where, in 1761, his father, John Landseer, was born. The senior was on intimate terms with Peter, father of the lawyer and politician, Sir Samuel Romilly. Peter Romilly was descended from a distinguished French family, the first of whom known in this country settled near London after the revocation of the Edict of Nantes, and acquired a fortune as a wax-bleacher. This Peter was a jeweller of note and wealth, established in Frith Street, Soho, and it is probable that common interest in a craft which is so closely allied to art had much to do with directing the minds of John, and consequently those of his family, to design.
Sir Nigel by Arthur Conan Doyle
Sir Nigel’ is a historical novel set during the early phase of the Hundred Years’ War, spanning the years 1350 to 1356, by British author Sir Arthur Conan Doyle and written in 1906. It is the background story to Doyle’s earlier novel The White Company, and describes the early life of that book’s hero Nigel Loring, a knight in the service of King Edward III in the first phase of the Hundred Years’ War. The character is loosely based on the historical knight Neil Loring.
Sir Quixote of the Moors by John Buchan
“The narrative, now for the first time presented to the world, was written by the Sieur de Rohaine to while away the time during the long period and painful captivity, borne with heroic resolution, which preceded his death. He chose the English tongue, in which he was extraordinarily proficient, for two reasons: first, as an exercise in the language; second, because he desired to keep the passages here recorded from the knowledge of certain of his kins-folk in France. Few changes have been made in his work. Now and then an English idiom has been substituted for a French; certain tortuous expressions have been emended; and in general the portions in the Scots dialect have been rewritten, since the author’s knowledge of this manner of speech seems scarcely to have been so great as he himself thought.” -Preface
Sir Robert’s Fortune by Mrs. Oliphant
A late nineteenth century novel by Margaret Oliphant, ‘Sir Robert’s Fortune’ is a historical rework of domestic realistic fiction.
Sir Walter Raleigh by Henry David Thoreau
Sir Walter Raleigh is an essay by Henry David Thoreau that has been reconstructed from notes he wrote for an 1843 lecture and drafts of an article he was preparing for The Dial.