Hindi Literature
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Hindi Vyakaran by Kamta Prasad Guru
हिंदी तथा अन्यान्य भाषाओं के व्याकरणों से उचित सहायता लेने पर भी इस पुस्तक में जो विचार प्रकट किए गए हैं और जो सिद्धांत निश्चित किए गए हैं, वे साहित्यिक हिंदी से ही संबंध रखते हैं। यहाँ यह कह देना अनुचित न होगा कि हिंदी व्याकरण की छोटी-मोटी कई पुस्तकें उपलब्ध होते हुए भी हिंदी में, इस समय अपने विषय और ढंग की यही एक व्यापक और संभवतः मौलिक पुस्तक है। इसमें प्रसिद्ध वैयाकरण श्री कामताप्रसाद गुरु का कई गं्रथों का अध्ययन और कई वर्षों का परिश्रम तथा विषय का अनुराग एवं स्वार्थत्याग सम्मिलित है। इस व्याकरण में अन्यान्य विशेषताओं के साथ-साथ एक बड़ी विशेषता यह भी है कि नियमों के स्पष्टीकरण के लिए इसमें जो उदाहरण दिए गए हैं, वे अधिकतर हिंदी के भिन्न-भिन्न कालों के प्रतिष्ठित और प्रामाणिक लेखकों के ग्रंथों से लिये गए हैं। इस विशेषता के कारण पुस्तक में यथासंभव अंधपरंपरा अथवा कृत्रिमता का दोष नहीं आने पाया है।
अपने गुण-वैशिष्ट्य और प्रस्तुति के कारण हिंदी व्याकरण पर अब तक की सबसे प्रामाणिक और व्यावहारिक पुस्तक।
Hindu Charmkar Jati by Dr Bizay Sonkar Shastri
भारतीय सामाजिक व्यवस्था राजनीतिक दृष्टि से केवल भ्रमित है बल्कि उसकी चिंतन की दिशा भी त्रुटिपूर्ण है। हम राजनीतिक क्षेत्र में मात्र वोट की परिकल्पना से निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। जाति, वर्ग, पंथादि के भेद को आज देश में उच्च-निम्न की दृष्टि से देखा जा रहा है। ऐसे में अनावश्यक राजनीतिक दबाव के कारण इतिहास लेखन, सामाजिक विषयों की अभिव्यक्ति और कला एवं साहित्य का दूषित रूप उभर रहा है।
साढे़ छह हजार जातियों एवं पचास हजार से अधिक उपजातियों में बँटा हुआ आज का हिंदू समाज अपनी दुर्दशा पर आँसू बहा रहा है। हिंदू चर्मकार जाति उसमें से एक है। पूर्व में चार वर्ण, एक सौ सत्रह गोत्र और छत्तीस जातियों में संपूर्ण हिंदू समाज सुव्यवस्थित था।
विदेशी अरेबियन आक्रांताओं के आक्रमण के पूर्व भारत में मुसलिम, सिख एवं दलित नहीं थे। धर्म के मूल्य पर बलपूर्वक चर्मकर्म में लगाई गई हिंदू चर्मकार जाति के स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास की यह एक शोधपरक प्रस्तुति है।
हिंदू चर्मकार जाति की वर्तमान स्थिति का आकलन एवं उसके सशक्तीकरण हेतु समाज एवं सरकार से विकास के उपाय एवं अनुशंसा इस कृति का मूल है। विशेष रूप से इस जाति के वंश, गोत्र और उपनाम के विस्तृत विवेचन के साथ हिंदू चर्मकार जाति का भारत के लिए प्रदत्त योगदान का उल्लेख अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हिंदू चर्मकार जाति को अछूत, अपवित्र, अपमानित एवं तिरस्कृत जीवन के प्रत्येक तर्क को निराधार, निरर्थक एवं अतार्किक प्रमाणित करती यह कृति उनके गौरवशाली स्वर्णिम इतिहास को प्रकाशित करती है।
Hindu Darshan by Dr. S. Radhakrishnan
डॉ.एस. राधाकृष्णन ने हिंदू धर्म के केंद्रीय सिद्धांतों, इसके दार्शनिक और आध्यात्मिक सिद्धांत, धार्मिक अनुभव, नैतिक चरित्र और पारंपरिक धर्मों की व्याख्या की है। हिंदू धर्म परिणाम नहीं एक प्रक्रिया है, विकसित होती परंपरा है, न कि निश्चित रहस्योद्घाटन—जैसा कि अन्य धर्मों में होता है। उन्होंने ईसाई धर्म, इसलाम और बौद्ध धर्म की तुलना हिंदू धर्म के संदर्भ में की है और इस बात पर बल दिया है कि इन धर्मों का अंतिम उद्देश्य सार्वभौमिक स्वयं की प्राप्ति है। धर्म को लेकर राधाकृष्णन का विश्लेषण परम बौद्धिक और संतुलित है तथा उनके व्याख्यानों को विश्व भर में हार्दिक प्रतिक्रिया मिली है। इस पुस्तक के लेख इस महान् दार्शनिक के मन को प्रतिबिंबित करते हैं, जिनका अभिवादन एक और विवेकानंद के रूप में किया गया है।
हिंदू धर्म का विहंगम दिग्दर्शन करानेवाली पठनीय पुस्तक।
Hindu Devi-Devta by Kk Tripathi
हिंदू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। हिंदू धर्मग्रंथों—वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि ने संपूर्ण मानव जाति को दिशा दिखाई है तथा जीवन में आदर्श और नैतिकता का मार्ग प्रशस्त किया है।
इस उच्च धर्म के वाहक चौंसठ करोड़ देवी-देवता हैं। विद्या की देवी माँ सरस्वती हैं, धन-धान्य की देवी माँ लक्ष्मी हैं, शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा हैं। ब्रह्माजी जन्मदाता हैं, विष्णु पालक और शिवजी संहारक।
हिंदू धर्म उपासक अपनी श्रद्धा और भक्ति में सराबोर होकर अपने इष्ट देवी-देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। वही अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं, उनका कल्याण करते हैं।
इस ग्रंथ में विद्वान् लेखक ने हिंदू धर्म के कुछ प्रमुख देवी-देवताओं के अलौकिक जीवन की झाँकी प्रस्तुत की है, जो श्रद्धा और भक्ति के आकाश को नया क्षितिज प्रदान करेगी। आस्था, विश्वास और समर्पण का भाव जगानेवाली पठनीय व मननीय कृति।
Hindu Dharm Ke Solah Sanskar by Dr. Sachchidanand Shukla
‘संस्कार’ या ‘संस्कृति’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है—मनुष्य का वह कर्म, जो अलंकृत और सुसज्जित हो। प्रकारांतर से संस्कृति शब्द का अर्थ है—धर्म। संस्कृति और संस्कार में कोई अंतर नहीं है। दोनों का एक ही अर्थ है, मात्र ‘इकार’ की मात्रा का अंतर है। हिंदू धर्म में मुख्य रूप से सोलह संस्कार हैं, जो संस्कार मनुष्य की जाति और अवस्था के अनुसार किए जानेवाले धर्म कार्यों की प्रतिष्ठा करते हैं।
हिंदू धर्म-दर्शन की संस्कृति यज्ञमय है, क्योंकि सृष्टि ही यज्ञ का परिणाम है, उसका अंत (मनुष्य की अंत्येष्टि) भी यज्ञमय है (शव को चितारूपी हवन कुंड में आहुति के रूप में हवन करना)। इस यज्ञमय क्रिया (संस्कार) में गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि क्रिया तक सभी कृत्य (संस्कार) यज्ञमय संस्कार के रूप में जाने और माने जाते हैं।
हिंदू धर्म के ये सोलह संस्कार मात्र कर्मकांड नहीं हैं, जिन्हें यों ही ढोया जा रहा है अपितु पूर्णत: वैज्ञानिक एवं तथ्यपरक हैं। उनमें से कुछ का तो देश-काल-परिस्थिति के कारण लोप हो गया है और कुछ का एक से अधिक संस्कारों में समावेश, कुछ का अब भी प्रचलन है और कुछ प्रतीक मात्र रह गए हैं, जबकि सभी सोलह संस्कारों को करना प्रत्येक हिंदू के लिए आवश्यक है।
प्रस्तुत पुस्तक में सरल-सुबोध भाषा में इन्हीं संस्कारों के औचित्य को बताया गया है। विश्वास है सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से अपनी भुलाई हुई विरासत से जुड़कर लाभान्वित होंगे।
Hindu Dharm Vishwakosh by Mahesh Sharma
हिंदू धर्म को सर्वाधिक प्राचीन और शाश्वत धर्म होने का गौरव प्राप्त है। भारत की लगभग तीन-चौथाई आबादी हिंदू धर्मावलंबी है। दुनिया के दूसरे देशों में भी हजारों हिंदू मतावलंबी रहते हैं। हिंदू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है, न ही इसका प्रतिपादन किसी एक व्यक्ति अथवा ईश्वर द्वारा हुआ है—जैसा कि पहले ही कहा गया है—यह शाश्वत धर्म है। हिंदू धर्म में लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। यह इस धर्म की विविधता, उदारता और उदात्तता है कि इसमें नदियों, वृक्षों और पर्वतों को भी देवी-देवताओं की भाँति पूजा जाता है। पूजा, प्रार्थना, आराधना, स्तुति—मार्ग के अंतिम और सर्वोच्च पड़ाव हैं, इसलिए हिंदू धर्म ग्रंथ मोक्ष-प्राप्ति के उपायों से भरे पड़े हैं।
प्रस्तुत विश्वकोश हिंदू-धर्म के बारे में व्यापक रूप से प्रकाश डालता है। इससे हिंदू-धर्म के बारे में अब तक अज्ञात कई विषयों के बारे में जानकारी पाई जा सकती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस पुस्तक द्वारा हिंदू धर्म एवं उसकी संस्कृति को न केवल जाना जा सकता है वरन् उसे सीखा भी जा सकता है। हिंदू धर्म के गौरव और श्रेष्ठता को रेखांकित और पुनर्स्थापित करनेवाली पठनीय कृति।
Hindu Dharma Ke Mool Tattva by Sister Nivedita
प्रारंभिक शताब्दी धार्मिक अध्ययनों की शताब्दी रही है, जिसमें हिंदुत्व ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें स्वामी विवेकानंद का प्रमुख योगदान है, जिनकी 1893 में शिकागो की धर्म-संसद् में उपस्थिति ने वेदांत के समर्थन में वास्तविक आंदोलन और इस पर आधारित संभावित विश्व धर्म का सृजन किया। उनकी कई पाश्चात्य महिला शिष्याएँ, जैसे मार्गेट ई. नोबल या सिस्टर निवेदिता उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने अपने जीवन को धर्म के हेतु और इससे संबंधित लोगों के उत्कर्ष के लिए समर्पित कर दिया तथा इतिहास के पृष्ठों पर अपने चिह्न छोड़े।
हिंदू धर्म और संस्कृति का महत्त्वपूर्ण लक्षण सर्वाधिक परिपूर्ण विचार, जो संसार ने कभी उत्पन्न किया। सन् 1893 में शिकागो धर्म-संसद् में अग्रणी संत विवेकानंद के विचारों से प्रेरित सिस्टर निवेदिता ने हिंदू धर्म और संस्कृति का जिस तरह से विश्लेषण किया, उसे समझा और निरूपित किया, उसे यहाँ इस पुस्तक में रोचक शैली में इतने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है, कि सदी गुजर जाने के बाद भी इससे प्रेरणा मिलती है, यह जनमानस को झकझोर देती है। आज भी कोई दूसरा इन ऊँचाइयों को नहीं छू पाया है। उनके अवलोकनों की मौलिकता, जैसे हिंदू धर्म की जाति-व्यवस्था के अत्यधिक उपहासपूर्ण मामले, हिंदू महिला, त्रिमूर्ति संश्लेषण, बौद्ध धर्म और शिव की संकल्पना अपनी अत्यावश्यकताओं में मस्तिष्क को हिला देनेवाले हैं। उनका विचार था— ‘भारत की गुम हो चुकी राष्ट्रीय क्षमता को पुनः प्राप्त करने के लिए संशोधित रूप में जाति-व्यवस्था को पुनर्जीवित करना है।’
Hindu Khatik Jati by Dr. Bizay Sonkar Shastri
हिंदू खटिक जाति की उत्पत्ति, उत्थान एवं पतन की ऐतिहासिक घटनाओं एवं विभिन्न कालखंडों का इस कृति में सजीव चित्रण है। वैदिक काल के बलि देने वाले खट्टिक (ब्राह्मण) त्रेता युग के पहले भगवान् श्रीराम के कुल के पूर्वज राजा खट्वाग (क्षत्रिय), द्वापर युग यानी महाभारत काल के पूर्व काशी अथवा मिथिलांचल में मांस का व्यवसाय करने वाले ऋषि व्याघ्र (वैश्य) और मुगलकाल में महाराष्ट्र के संत उपासराव एवं ब्रिटिश काल में राजस्थान के संत दुर्बल नाथ (दलित) को अपना पूर्वज मानने वाले हिंदू आज खटिक जाति के लगभग 1871 गोत्रों, उपनामों एवं उपजातियों के रूप में पहचाने जाते हैं। तैमूर लंग के लूटपाट एवं अत्याचार का मुहतोड़ प्रत्युत्तर कठोर राज्य के कठिकों (खटिक) ने दिया था। सिकंदर के विश्व विजय के स्वप्न को भी खटिक जाति ने ही चूर-चूर किया था। विदेशी मुगल, तुर्क एवं मुसलिम आक्रांता शासकों के हिंदू उत्पीड़न तथा हिंदुस्थान में हिंदुओं को हिंदू होने का यानी हिंदू टैक्स अथवा जजिया कर का खुलकर विरोध महान् हिंदू खटिक जाति ने किया था। विदेशी मुसलिम आक्रांताओं के हिंदुस्थान में प्रवेश से लेकर उनके शासन तक लगातार डटकर यदि किसी ने उनका विरोध किया तो खटिक जाति ने किया। अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक मेरठ के ‘तितौरिया’ भी खटिक ही थे।
सामाजिक समरसता दर्शन की दिशा में चिंतन के लिए बाध्य करती इस कृति से संपूर्ण हिंदू समाज को सकारात्मक चिंतन की एक दिशा प्राप्त होगी।
Hindu Rashtra Swapnadrashta : Banda Veer Bairagi by Rakesh Kumar Arya
वीर बंदा बैरागी भारतीय इतिहास का वह चमकता हुई नक्षत्र है, जिससे भारत के सोए हुए स्वाभिमान को जगाया जा सकता है। आज के युवाओं को वीर बंदा बैरागी के तप, त्याग व बलिदान से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। भाई परमानंद ने आजादी की क्रांति की लौ को ज्वालामुखी बनाने के लिए बंदा बैरागी का चरित्र इतिहास से निकालकर भारत के सामने रखा। भाई परमानंद वीर बंदा बैरागी को असाधारण पुरुष मानते थे। एक समय जब मुगलों की तलवार भारतीय संस्कृति को चीर रही थी, लोगों के जनेऊ उतारे जा रहे थे, चोटियाँ काटी जा रही थीं, सिरों को काटकर मीनारें बनाई जा रही थीं, बलपूर्वक हजारों-लाखों का धर्मभ्रष्ट किया जा रहा था, अनाथ बच्चे बिलख रहे थे, गौमाता मारी जा रही थी, मंदिर ध्वस्त हो रहे थे, किसान आत्महत्या कर रहे थे, उस समय गुरु गोविंद सिंहजी के आह्वान पर इस वीर महापुरुष ने भक्ति का मार्ग छोड़कर शक्ति का मार्ग अपनाया। योगी योद्धा बन गया, संत सिपाही बन गया; माला को फेंक भाला उठा लिया और सेना खड़ी कर अन्याय-अत्याचार का प्रतिकार करके अपने राज्य की स्थापना कर सिक्के जारी किए। किसान व मजदूरों पर अत्याचार की समाप्ति कर उनको जमीन का मालिक बनाया। ऐसा उज्ज्वल प्रेरक, वीर और शौर्यपूर्ण चरित्र जन-जन के सामने लाया जाना समय की आवश्यकता है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने इस अभाव को पूर्ण करने का सार्थक और सफल प्रयास किया है।
असाधारण वीर और योद्धा बंदा वीर बैरागी की प्रेरणाप्रद जीवनी।
Hindu Valmiki Jati by Dr. Bizay Sonkar Shastri
वास्तव में वाल्मीकि समाज के राजवंशीय एवं गौरवशाली इतिहास को बलपूर्वक कमरे में बंद तो कर दिया गया किंतु कमरे की खिड़कियों एवं झरोखों से आज भी वह दिख रहा है। डिप्रेस्ड क्लास यानी दलित शब्द 1931 की जनगणना में सर्वप्रथम प्रयुक्त हुआ, तत्पश्चात् यह सामान्य रूप से प्रयोग होता रहा। दलित संवर्गीय वाल्मीकि, सुदर्शन, रुखी, मखियार, मजहबी सिख इत्यादि समाज में कुल 624 उप-जातियाँ हैं। विदेशी मुगल, तुर्क एवं मुसलिम आक्रांता शासकों के भारी दबाव के बाद भी इसलाम स्वीकार न करने के कारण कट्टर हिंदुओं के हिंदू धर्माभिमान एवं स्वाभिमान को ध्वस्त करने के लिए उन्हें बलपूर्वक तलवार की नोक पर अस्वच्छ (सफाई एवं मैला ढोने) जैसे कार्यों में लगा दिया गया था। उन स्वाभिमानी लोगों ने मैला ढोना स्वीकार किया, किंतु इसलाम को ठुकरा दिया।
धर्म एवं राष्ट्रहित के समक्ष स्वहित का बलिदान करने वाली वर्तमान हिंदू वाल्मीकि, सुदर्शन, मजहबी इत्यादि जातियों का मध्यकालीन काली रात्रि के पहले की हृदय विदारक एवं मर्मस्पर्शी घटनाएँ इस पुस्तक का सार हैं। वास्तव में यह पुस्तक सारगर्भित इतिहास लेखन के मानदंड के अनुरूप लिखे इतिहास का एक उदाहरण है। इस पुस्तक से हिंदू वाल्मीकि, सुदर्शन, रुखी, मखियार, मजहबी सिख इत्यादि जातियों के साथ-साथ दलित संवर्गीय हजारों जातियों को धर्म एवं देश के नाम पर मर-मिटने का विराट् गौरव -बोध होगा।
Hindu-Padpadshahi by Vinayak Damodar Savarkar
शिवाजी महाराज ने एक पत्र में लिखा था—‘‘स्वयं भगवान् के ही मन में है कि हिंदवी-स्वराज्य निर्मित हो।’’
उस युवा वीरपुरुष ने क्रांतियुद्ध की पहल की। शिवाजी महाराज ने शालिवाहन संवत् 156७ (ई.स. 16४5) में अपने एक साथी के पास भेजे हुए पत्र में—स्वयं पर लगे इस आरोप का निषेध किया कि बीजापुर के शाह का प्रतिरोध कर उन्होंने राजद्रोह का पाप किया है। उन्होंने इस बात का स्मरण कराते हुए उच्च आदर्शों की भावना भी जाग्रत् की कि अपना एकनिष्ठ बंधन यदि किसी से है तो वह भगवान् से है, न कि किसी शाह- बादशाह से। उन्होंने उस पत्र में लिखा है— ‘‘आचार्य दादाजी कोंडदेव और अपने साथियों के साथ सह्याद्रि पर्वत के शृंग पर ईश्वर को साक्षी मानकर लक्ष्य प्राप्ति तक लड़ाई जारी रखने और हिंदुस्थान में ‘हिंदवी-स्वराज्य’ यानी हिंदू-पदपादशाही स्थापित करने की क्या आपने शपथ नहीं ली थी? स्वयं ईश्वर ने हमें यह यश प्रदान किया है और हिंदवी-स्वराज्य के निर्माण के रूप में वह हमारी मनीषा पूरी करनेवाला है। स्वयं भगवान् के ही मन में है कि यह राज्य प्रस्थापित हो।’’ शिवाजी महाराज की कलम से उतरे ‘हिंदवी-स्वराज’—इस शब्द मात्र से एक शताब्दी से भी अधिक समय तक जिस बेचैनी से महाराष्ट्र का जीवन तथा कर्तव्य निर्देशित हुआ और उसका आत्मस्वरूप जिस तरह से प्रकट हुआ, वैसा किसी अन्य से संभव नहीं था। मराठों की लड़ाई आरंभ से ही वैयक्तिक या विशिष्ट वर्ग की सीमित लड़ाई नहीं थी। हिंदूधर्म की रक्षा हेतु, विदेशी मुसलिम सत्ता का नामोनिशान मिटाने के लिए तथा स्वतंत्र और समर्थ हिंदवी-स्वराज्य स्थापित करने के लिए लड़ी गई वह संपूर्ण लड़ाई हिंदू लड़ाई थी।
Hinduon Ki Sangharsh Gatha by Laxmi Narain Agarwal
वास्तव में पाकिस्तान न कोई देश है और न राष्ट्र; यह केवल हिंदू विरोधी उग्र इस्लामी मानसिकता का गढ़ है। सन् 1947 में हुआ बँटवारा कोई दो भाइयों के बीच हुआ जमीन का बँटवारा नहीं था, यह हिंदुओं के प्रति इस्लाम के अनुयायी कट्टरपंथी मुल्लाओं की तीव्र घृणा का परिणाम था।
आज समय की आवश्यकता तो यह है कि स्वयं मुस्लिम भी इस्लाम की गिरफ्त से बाहर निकलें, लेकिन यह मुस्लिम समुदाय में बहुत बड़ी क्रांति से ही संभव है, पर जब तक यह नहीं होता, तब तक हिंदुओं को समझ लेना चाहिए कि इस्लाम के सीधे निशाने पर केवल हिंदू हैं।
आज यह बात ठीक से समझ लेने की जरूरत है कि इस्लाम का जन्म ही मूर्तिपूजा और बहुदेववाद को नष्ट करने के लिए हुआ है। उसके धर्मांध अनुयायियों ने भी मूर्तिपूजकों को जड़ से समाप्त करने का बीड़ा उठा रखा है। दुनिया में ईसाई और मुसलिम एक ही परंपरा की उपज हैं, इसलिए लाख शत्रुता के बाद भी एक-दूसरे के लिए उनके दिल में स्थान है। इसीलिए हिंदू दोनों के ही निशाने पर है।
प्रस्तुत पुस्तक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इस्लाम का परिचय कराने के साथ-साथ हिंदुओं के संघर्ष को इस तरह पेश करती है कि सामान्य पाठक भी उसे सहज ही समझ ले। इस्लाम का यथातथ्य पूरी बेबाकी के साथ परिचय करानेवाली हिंदी की यह शायद पहली पुस्तक है। इसमें काफी साहसपूर्ण ढंग से अनेक ऐसे सत्य उद्घाटित किए गए हैं, जिनको जानना किसी भी जागरूक भारतीय के लिए आवश्यक है।
Hindutva : Ek Jeevan Shaili by Ed. Kalraj Mishra
आज भारत के राजनीतिक परिवेश में चारों ओर संकट दिखाई दे रहा है। देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। धर्म-जाति के नाम पर वोट पाने हेतु राष्ट्रीय हितों को तिलांजलि दी जा रही है। छद्म धर्म-निरपेक्षता के नाम पर संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आज के इस कलुषित वातावरण में हिंदुत्व की अप्रतिम जीवन-शैली को अपनाकर ही समाज में एक जन-जागरण पैदा किया जा सकता है, जिससे अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सके।
जीवनपर्यंत राष्ट्रवाद की राजनीति के आदर्शों पर चलनेवाले वरिष्ठ राजनेता पं. कलराज मिश्र ने हिंदुत्व की परंपराओं, वेद, पुराणों और स्मृतियों के माध्यम से सभी समस्याओं का हल खोजने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में सम्मिलित अनेक आध्यात्मिक गुरुओं, राजनेताओं, लेखकों के मर्मस्पर्शी लेख बालविवाह, जातिप्रथा, टूटते परिवार, भ्रष्टाचार, महिलाओं के प्रति दुराचार जैसी बुराइयों को दूर करने में अवश्य सफल होंगे।
हिंदुत्व की व्यापक अवधारणा, उसकी अप्रतिम जीवन-शैली, उसकी संस्कृति का दिग्दर्शन कराती एक श्रेष्ठ कृति।
Hindutva by Vinayak Damodar Savarkar
‘हिंदुत्व’ एक ऐसा शब्द है, जो संपूर्ण मानवजाति के लिए आज भी अपूर्व स्फूर्ति तथा चैतन्य का स्रोत बना हुआ है। इस शब्द से संबद्ध विचार, महान् ध्येय, रीति-रिवाज तथा भावनाएँ कितनी विविध तथा श्रेष्ठ हैं। ‘हिंदुत्व’ कोई सामान्य शब्द नहीं है। यह एक परंपरा है। एक इतिहास है। यह इतिहास केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक इतिहास नहीं है। अनेक बार ‘हिंदुत्व’ शब्द को उसी के समान किसी अन्य शब्द के समतुल्य मानकर बड़ी भूल की जाती है। वैसे यह इतिहास मात्र नहीं है, वरन् एक सर्वसंग्रही इतिहास है। ‘हिंदू धर्म’, यह शब्द ‘हिंदुत्व’ से ही उपजा उसी का एक रूप है, उसी का एक अंश है।
‘हिंदुत्व’ शब्द में एक राष्ट्र, हिंदूजाति के अस्तित्व तथा पराक्रम के सम्मिलित होने का बोध होता है। इसीलिए ‘हिंदुत्व’ शब्द का निश्चित आशय ज्ञात करने के लिए पहले हम लोगों को यह समझना आवश्यक है कि ‘हिंदू’ किसे कहते हैं। इस शब्द ने लाखों लोगों के मानस को किस प्रकार प्रभावित किया है तथा समाज के उत्तमोत्तम पुरुषों ने, शूर तथा साहसी वीरों ने इसी नाम के लिए अपनी भक्तिपूर्ण निष्ठा क्यों अर्पित की, इसका रहस्य ज्ञात करना भी आवश्यक है।
प्रखर राष्ट्रचिंतक एवं ध्येयनिष्ठ क्रांतिधर्मा वीर सावरकर की लेखनी से निःसृत ‘हिंदुत्व’ को संपूर्णता में परिभाषित करती अत्यंत चिंतनपरक एवं पठनीय पुस्तक।
Hindutva Evam Rashtriya Punarutthan by Subramaniam Swamy
हिंदुत्व एवं राष्ट्रीय पुनरुत्थान
भारतीय समाज में व्यक्ति का उत्तरोत्तर अमानवीयकरण ही विगत साठ वर्षों के वैचारिक इतिहास का केंद्रीय तत्त्व रहा है। किसी भी समाज में यदि व्यक्ति का निरंतर अमानवीयकरण होता रहे, तो वह समाज कभी भी मजबूत नहीं हो सकता, चाहे कितना भी बड़ा भौतिक ढाँचा क्यों न खड़ा कर ले।
आज के दौर में जब नैतिक मूल्यों का पतन तथा चारित्रिक ह्रास हमारे राष्ट्रीय संकट का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है, समाज में धर्म की पुनर्स्थापना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो राष्ट्र धीरे-धीरे इस पतन के जहर से समाप्त हो जाएगा। यह पतन समाज में चारों ओर दिखाई दे रहा है। अधिकारी रिश्वत में पकड़े जा रहे हैं, राजनेता धन व पद के लिए दल-बदलने में लगे हैं, अध्यापक प्रश्न-पत्र बेच रहे हैं, छात्र नकल करके परीक्षा पास करना चाहते हैं, चिकित्सक अपने मरीजों से धोखाधड़ी करके पैसा कमा रहे हैं आदि। कमोबेश यह पतन प्रत्येक समाज में होता दिखता है, लेकिन जितना गहरा व जिस गति से यह भारतीय समाज में हो रहा है, वह खतरे की घंटी है। इस चारित्रिक पतन के कारण युवा वर्ग में गहरा रोष व कुंठा जन्म लेती जा रही है।
इस नैतिक पतन को रोकना अत्यावश्यक है। प्रश्न है कि यह कैसे होगा, इसे करने हेतु कौन नेता आगे आएगा? यह कार्य वही नेता कर सकता है, जिसके पास पुनरुत्थान की एक कार्यसूची (एजेंडा) हो तथा वह इसके प्रति समर्पित भी हो। इस कार्यसूची में कौन-कौन से कार्य शामिल किए जाने चाहिए।
इस पुस्तक में मैंने राष्ट्र पुनरुत्थान के लिए जो तत्त्व आवश्यक हैं, उनका प्रतिपादन मैंने यहाँ किया है, ताकि भारत की शान को पुनर्प्रतिष्ठित किया जा सके। हिंदुत्व के सहारे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू किया जा सकता है, जिससे हिंदू अपने संकीर्ण मतभेदों—स्थान, भाषा, जाति आदि से ऊपर उठकर स्वयं को विराट्-अखंड हिंदुस्तानी समाज के रूप में संगठित करें, ताकि भारत को पुनः एक महान् राष्ट्र बनाया जा सके।
Hiranyagarbha by Vidya Vindo Singh
भारत का स्त्री विमर्श चूँकि पश्चिम के वूमेन लिव का प्रतिफलन है, अतः स्वाभाविक ही था कि भारतीय स्त्रीवादी चिंतन को उस पश्चिमी नजरिए से देखा गया, जहाँ औरत की आजादी का मतलब है—पुरुष की बराबरी। इस सोच को हवा देने में हमारे यहाँ के बुद्धिजीवी भी पीछे नहीं रहे। उनका कहना है, ‘‘स्त्रीमुक्ति की हर यात्रा उसकी देह से शुरू होती है।’’
इस प्रकार के बोल्ड बयानों ने स्त्रीमुक्ति के अर्थ को विकृत किया है और अपने ‘वस्तु’ होने का विरोध करनेवाली स्त्री के लिए खुद ही वस्तु बनाए जाने के खतरों को बढ़ा दिया है। भारतीय संस्कृति से कटे ऐसे वक्तव्यों ने स्त्री स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की विभाजक रेखा को मिटाकर दोनों में किस प्रकार घालमेल किया है, इसका प्रमाण हैं स्त्रीविमर्श के नाम पर परोसी गई ऐसी कहानियाँ, जिनमें स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता की दुहाई दी गई है।
कथाकार डॉ. विद्या विंदु सिंह का यह उपन्यास संग्रह नारीविमर्श के विभिन्न आयामों का स्पर्श करता है—यौन हिंसा, यौन शोषण, अविवाहित मातृत्व, अशिक्षा, दहेज, यौनिक भेदभाव, विधवा पुनर्विवाह, घरेलू हिंसा, विवाह विच्छेद, परित्यक्ता नारी और पहचान का संकट आदि। इन समस्याओं के निरूपण के साथ लेखिका ने खाँटी भारतीय तरीके से समस्या का समाधान भी प्रस्तुत किया है।
—निशा गहलौत
Hitopadesh Ki Kahaniyan by Shyamji Verma
मित्र-लाभ, सुहृद्भेद, विग्रह, संधि चार प्रकरणों का संग्रह किया गया है। इसका नाम हितोपदेश है। भागीरथी नदी के तीर पर पाटलिपुत्र नाम का एक शहर था। वहाँ सुदर्शन नाम का राजा राज्य करता था। राजा सुदर्शन सब गुणों से संपन्न था। उस राजा ने किसी व्यक्ति से दो श्लोक सुने।
प्रथम श्लोक था—विद्यारूपी नेत्र मनुष्य का वह नेत्र है, जो विविध प्रकार के संदेहों को दूर करता है और भूत तथा भविष्य का दर्शन कराता है। जिसके पास विद्यारूपी नेत्र नहीं है, उसे अंधे के समान ही समझना चाहिए।
दूसरा श्लोक था—यौवन, धन-संपत्ति, सत्ता और विवेकहीनता—इनमें से यदि किसी भी मानव में एक दोष भी हो तो वह उस मानव का सत्यानास कर देता है; और जिसमें ये चारों ही दोष विद्यमान हों तो उसके विषय में क्या कहना!
इनको सुनकर राजा को अपने राजकुमारों का ध्यान हो आया। राजकुमार न केवल विद्याविहीन थे अपितु वे कुमार्ग पर भी चल पड़े थे। राजा विचार करने लगा—ऐेसे पुत्र से क्या लाभ, जो न तो विद्वान् हो और न ही धार्मिक हो। जिस प्रकार कानी आँख पीड़ा ही देती है, यही दशा ऐसे पुत्र के होने से है।
Hitopadesh Ki Lokpriya Kahaniyan by Mahesh Dutt Sharma
हितोपदेश की कहानियाँ भारतीय परिवेश को ध्यान में रखकर लिखी गई उपदेशात्मक कथाएँ हैं, जिसके रचनाकार नारायण पंडित हैं। हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल, रोचक, प्रेरक और सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु-पक्षियों पर आधारित तार्किक कहानियाँ इसकी खास विशेषता है, जिनकी समाप्ति किसी शिक्षाप्रद बात से होती है।
इस पुस्तक में हितोपदेश की मूल लोकप्रिय कहानियों को स्थान दिया गया है। कहानियों को रोचक और पठनीय बनाने के लिए इनके मूल शीर्षक, क्रम, कथानक और विस्तार को यथोचित संपादित कर दिया गया है, लेकिन कथा की मूल भावना को जीवंत रखा गया है, जिससे पाठक पारंपरिक आस्वादन पाने से वंचित न हों।
अपनी रचना के कई सौ साल बाद भी इन कथाओं की लोकप्रियता में जरा भी कमी नहीं आई है तो केवल इनमें निहित संदेश के कारण। इनका कथानक पाठकों को अपने आस-पास घटित हुआ जान पड़ता है। यही कारण है कि वे सहज ही इनसे अपने आप को जोड़ लेते हैं। यही इन कथाओं की सबसे बड़ी खूबी है, जिसके कारण ये सदाबहार बनी हुई हैं।
मनोरंजन तथा नैतिक ज्ञान से भरपूर कहानियों की पठनीय पुस्तक।
Hockey : Khel Aur Niyam by Surendra Shrivastava
हॉकी एक ऐसा खेल है, जिसमें दो टीमें लकड़ी या कठोर धातु या फाइबर से बनी विशेष लाठी (हॉकी-स्टिक) की सहायता से रबर या कठोर प्लास्टिक की गेंद को अपनी विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने की कोशिश करती हैं।
हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। हॉकी का प्रारंभ 4,000 वर्ष पूर्व ईरान में हुआ माना जाता है। इसके बाद बहुत से देशों में इसका आगमन हुआ, पर उचित स्थान न मिल सका। अंत में इसे भारत में विशेष सम्मान मिला और यह राष्ट्रीय खेल बन गया।
11 खिलाड़ियों के दो विरोधी दलों के बीच मैदान में खेले जानेवाले इस खेल में प्रत्येक खिलाड़ी मारक बिंदु पर हॉकी का इस्तेमाल एक छोटी व कठोर गेंद को विरोधी दल के गोल में मारने के लिए करता है। बर्फ में खेले जानेवाले इसी तरह के एक खेल आइस हॉकी से भिन्नता दरशाने के लिए इसे मैदानी हॉकी कहते हैं। भारतीय हॉकी टीम प्रथम बार ओलंपिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। 1932 में लॉस एंजेल्स ओलंपिक में जब भारतीयों ने मेजबान टीम को 24-1 से हराया, जो अब तक सर्वाधिक अंतर से जीत का कीर्तिमान है। 24 में से 9 गोल दो भाइयों ने किए, रूपसिंह ने 11 और शेष गोल ध्यानचंद ने।
प्रस्तुत पुस्तक में हॉकी खेल के नियम, उपनियम, तैयारी, क्षेत्र-रक्षण, गोल दागने की तकनीक आदि की विस्तृत जानकारी दी गई। हॉकी के खिलाड़ियों तथा खेल-प्रेमियों के लिए एक उपयोगी पुस्तक।
क्रिकेट को अपना कॉरियर बनाने के इच्छुक युवाओं, खिलाड़ियों एवं खेल-प्रेमियों के लिए एक उपयोगी और मार्गदर्शक पुस्तक।
Hockey Ke Jadugar Major Dhyanchand by Rachna Bhola ‘Yamini’
हॉकी सम्राट्’ और ‘हॉकी के जादूगर’ जैसे विशेष्णों से विभूष्त मेजर ध्यानचंद का नाम किसी के लिए भी अपरिचित नहीं है। बचपन में उनमें एक खिलाड़ी के कोई लक्षण नहीं थे, इसलिए कह सकते हैं कि उनमें के खेल की प्रतिभा जन्म जात नहीं थी।उन्होंने अपनी सतत साधना, लगन, अभ्यास, संकल्प व संघर्ष के माध्यम से इस खेल में दक्षता अर्जित की और विश्व के सर्वोत्तम हॉकी खिलाडि़यों की सूची में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा लिया।
ध्यानचंद हॉकी के खेल में एक सेंटर फॉरवर्ड के रूप में जाने जाते थे और उनकी इस अद्भुत खेल प्रतिभा ने भारत को एक अलग ही मुकाम पर पहुँचा दिया था। वे तीनों बार उस भारतीय ओलंपिक टीम के सदस्य थे, जो अपने देश के लिए स्वर्ण पदक जीतकर लाई। विदेशी जब उन्हें खेलते देखते तो वाहवाह कर उठते। वे लगभग 25 वर्षों तक विश्व हॉकी के शिखर पर छाए रहे।
मेजर ध्यानचंद की प्रेरक जीवनगाथा, जो हर खेलप्रेमी और खिलाड़ी को समान रूप से प्रेरित करेगी और उनमें खेलों के प्रति जुनून पैदा करेगी।
Homoeopathy Chikitsa by M B L Saxena
होम्योपैथी चिकित्सा
ऐलोपैथी चिकित्सा पद्धति से होनेवाले साइड इफेक्ट्स के कारण बड़ी संख्या में लोग होम्योपैथी चिकित्सा की ओर आकर्षित होने लगे हैं। प्रतिष्ठित एवं विख्यात होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. एम.बी.एल. सक्सेना के गहन अध्ययन और अनुभवों का परिणाम है यह पुस्तक। चूँकि आम आदमी रोगों को उनकी प्रकृति से ही समझता है, इसलिए पुस्तक में रोगों के नाम भी दिए गए हैं। उपचार पूरी तरह से रोगों की विशेषताओं और विचित्र लक्षणों पर आधारित हैं, जिनमें होम्योपैथी के सिद्धांतों का ध्यान रखा गया है। दवाओं की उपयुक्त पोटेंसी का भी सुझाव दिया गया है।
पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य होम्योपैथी चिकित्सा के संबंध में पाठकों को विस्तृत एवं व्यावहारिक जानकारी देने के साथ ही रोगियों को आसान और सस्ता उपचार उपलब्ध कराना है। यह पुस्तक होम्योपैथी चिकित्सकों के लिए भी संदर्भ पुस्तक के रूप में उपयोगी सिद्ध होगी।
Hridaya Rog: Karan Aur Bachav by Dr. Purushottam Lal
हृदय रोग : कारण और बचाव
आज के समय में हृदय रोग और दिल के दौरे असामयिक मृत्यु के सबसे बड़े कारण हैं। विकासशील देशों में हृदय की बीमारियाँ महामारी बनकर उभर रही हैं।
कुछ साल पहले तक अधेड़ों और प्रौढ़ों का रोग माने जानेवाले हृदय रोग अब नौजवानों को भी अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। अब 35 से 44 वर्ष की उम्र से ही लोग इसके चंगुल में आने लगे हैं और 55 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए तो हृदय रोग मौत का पर्याय ही बन गया है। भारत में भी प्रतिवर्ष लगभग 25 लाख लोग दिल के दौरे के कारण असामयिक मृत्यु के ग्रास बन रहे हैं।
प्रतिष्ठित व अनुभवी हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. पुरुषोत्तम लाल ने प्रस्तुत पुस्तक में व्यावहारिक दृष्टि से हृदय रोग होने के कारणों पर उपयोगी चर्चा की है। साथ ही इस घातक रोग से बचाव के संबंध में बड़ी ही सरल, सुविधाजनक और सटीक जानकारी दी है।
Hum Hain Rahi Pyar Ke by Partha Sarthi Sen Sharma
‘‘कौन जानता है, भविष्य में हमारे लिए क्या लिखा है!’’ रिया ने कहा।
मैं उसके अंतिम वाक्य से कुछ हैरान हो गया था। मुझे तो लगा था, हमने अपने भविष्य के बारे में निर्णय पहले ही ले
लिया है।
एक मध्य वर्गीय परिवार से आया पंकज समझता है कि उसके जीवन की दिशा निर्धारित हो चुकी है—इंजीनियरिंग की डिग्री लेना, अपने प्यार—रिया—से शादी करना और दिल्ली में चैन से जीवन बिताना। लेकिन जब रिया उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने का निर्णय लेती है तो उसकी योजना में बाधा आ जाती है। फिर भी, अपनी प्रतिबद्धता को निभाते हुए वह रिया का इंतजार करने का वादा करता है।
लेकिन जमशेदपुर में नौकरी करने के दौरान, वह अपने बॉस की बेटी काजल के निकट आ जाता है और उसके समाज सेवा के काम में उसकी सहायता करने लगता है। 1990 के दशक में भारत के बदलते आर्थिक व धार्मिक माहौल के बीच वह एक यात्रा पर जाता है, जो न सिर्फ उसे ग्रामीण जीवन की झाँकी दिखाती है, बल्कि प्यार और जीवन
के प्रति एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करती है।
‘हम हैं राही प्यार के’ न सिर्फ 1990 के दशक के भारत की झलक दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कभी-कभी बहुत सोच-समझकर बनाई गई योजना की असफलता जीवन की सबसे खूबसूरत घटना बन जाती है।