Hindi Literature
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Gudgudate Sawal-Jawab by J.P.S. Jolly
क्या आप भी अपने जीवन का हर पल हँसते-खेलते खुशी-खुशी गुजारना चाहते हैं? जीवन में खुश रहने के लिए केवल एक बात पर गौर करने की जरूरत होती है कि खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि हम कौन हैं या हमारे पास क्या कुछ है? हँसी-खुशी हमारे भीतर ही निवास करती है, सिर्फ जरूरत है इन्हें जानने और पहचानने की। अब तो डॉक्टर और विद्वान् लोग भी मानने लगे हैं कि हर दिन थोड़ा-बहुत हँसने से टेंशन, डिप्रेशन एवं अन्य कई घातक बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है। एक बार जो कोई खुद को खुश रखने की कला को जान लेता है, वह दूसरों के जीवन में भी आसानी से खुशियाँ महका सकता है। ज्ञानी लोग सच ही कहते हैं कि खुशी से बढ़कर कोई खुराक नहीं होती, इसलिए जहाँ तक हो सके, हमें सदा खुश रहने का स्वभाव बनाना चाहिए। प्रसिद्ध हास्य लेखक जौली अंकल हँसी-मजाक की अनेक पुस्तकें लिखने के बाद अब कुछ खास किस्म के गुदगुदाते सवाल-जवाब लेकर आए हैं, जिन्हें पढ़कर आप ठहाके लगाए बिना नहीं रह पाएँगे।
हास्य तथा व्यंग्य-विनोदपूर्ण गुदगुदाते सवाल-जवाबों का पठनीय संकलन।
Gujarati Ki Lokpriya Kahaniyan by Abid Surti
चुनी हुई इन रचनाओं को चाहे आप कालजयी कहें या सदाबहार, श्रेष्ठ कहें या अविस्मरणीय; हैं तो सदियों तक दिलो-दिमाग पर राज करनेवाली कहानियाँ।
इस संकलन को तैयार करने में पाँच वर्ष लग गए। इसके कई कारण हैं। पहला यह कि हम सब (यानी कि मैं, मेरे सलाहकार तथा मित्र) चाहते थे, यह संकलन न सिर्फ परिपूर्ण और त्रुटिहीन हो, बल्कि अद्वितीय भी हो।
और जब इरादे बुलंद हों तो अवरोध भी उतने ही बड़े होते हैं। सबसे पहले यह समस्या खड़ी हुई कि सैकड़ों कहानियों के ढेर में से किसे चुनें और किसे छोड़ें। काफी जद्दोजहद और धुआँधार बहसों के सिलसिले के बाद हल निकला तो संकलन का कद जरूरत से ज्यादा ही मोटा हो गया। फिर एक बार छँटाई करनी पड़ी।
कभी ऐसा भी हुआ कि प्रसिद्ध लेखक की रचना को त्यागकर किसी अन्य लेखक को तरजीह देनी पड़ी। कारण सिर्फ यही रहा कि हिंदी में बार-बार अनूदित हो चुकी रचना के बजाय क्यों न उतनी ही ठोस नई रचना पेश की जाए?
इसी तरह छँटते-छनते हुए संकलन तैयार हुआ और आज आपके हाथों में है।
—आबिद सुरती
Gumnaam Nayakon Ki Gauravshali Gathayen by Vishnu Sharma
यह पुस्तक भारतीय इतिहास की उन नींव के पत्थरों के बारे में है, जिनके योगदान को आज की पीढ़ी न के बराबर जानती है। उन गुमनाम नायकों में एक को भगतसिंह अपना गुरु मानते थे और उनकी फोटो हमेशा अपनी जेब में रखते थे और जो भगतसिंह से चार साल छोटी उम्र में ही फाँसी चढ़ गए थे। एक 18 साल की वह लड़की थी, जो बोर्ड टॉपर थी, उसने एक ऐसे क्लब पर धावा बोलकर अपनी जान दे दी, जिसके बाहर लिखा था—इंडियंस ऐंड डॉग्स आर नॉट एलाउड। एक ऐसा आदिवासी नायक, जिसने जल, जंगल और जमीन का नारा दिया था। एक ऐसा युवक, जिसने सबसे बड़े अंग्रेज अधिकारी का गला काट दिया, एक ऐसी विदेशी महिला, जिसने भारत का पहला झंडा डिजाइन किया, भारत की नंबर एक यूनिवर्सिटी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस शुरू करने में टाटा की मदद की। सन् 1857 का एक ऐसा नायक, जो 80 साल का था, कई बार अंगे्रजों को हराया, लेकिन जिंदा नहीं पकड़ा गया। एक ऐसा नायक, जिसे भारत के टाइटेनिक कांड के लिए जाना जाता है।
प्रेरणा और दिशा देनेवाले अनजान-गुमनाम नायकों की ये गाथाएँ हमारे अतीत से हमें जोड़ेंगी और भविष्य के लिए हमारा मार्ग प्रशस्त करेंगी।
Gunvattapoorna Shiksha Siddhant Aur Vyavahar by Ed. Vinodanand Jha
इस पुस्तक में प्रारंभिक स्तर पर गुणात्मक शिक्षा से संबंधित कुछ आलेख, प्रयोग एवं रचनाएँ शिक्षकों को समर्पित हैं। इन आलेखों के बहाने गुणात्मक शिक्षा के मुद्दे को उठाना इसका प्रयोजन है। इस पुस्तक के बहाने पढ़ने का, बहस करने का, विचार करने का और अंततः कुछ करने का सिलसिला प्रारंभ होगा। चिंतन, मनन अवश्य हो, परंतु अंतिम परिणति है—सपने को, सिद्धांत को, विचार को कार्यरूप देना।
कल तक शिक्षा के केंद्र में शिक्षक थे, परंतु अब विद्यार्थी हैं। अब शिक्षक दंड या सख्ती का प्रयोग कर चीजों को आगे नहीं ले जा सकते। आज उम्र से ज्ञान का संबंध पहले जैसा नहीं है। तथ्यों एवं सूचना विस्फोट के कारण कोई अब दावा नहीं कर सकता कि सिर्फ उम्र के कारण या पहले जन्म लेने के कारण वह अधिक जानता है। अब बातों को लादना कठिन है, इसलिए काम विनम्रता से बनेगा। अब नया शिक्षक विद्यार्थी पर अपना ज्ञान थोप नहीं सकता। वह बड़े भाई या मित्र की भूमिका में अपने को तैयार करे, जो छात्र को प्रोत्साहित करेगा, समझाएगा, उसके साथ दूरी तय करेगा। शिक्षक बच्चों के साथ मिलकर साझा समझ विकसित करेगा, ज्ञान का सृजन करेगा।
बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु एक आवश्यक पुस्तक, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सिद्धांतों, प्रयोगों एवं शिक्षण कौशल विकास के व्यावहारिक उपायों से हमें परिचित कराती है। यह पुस्तक प्रेरित करती है कि पढ़ने के स्थान पर सीखने को महत्त्व दिया जाए। यदि बच्चे नहीं सीख पाते और असफल होते हैं तो हमें अपने सिखाने के तौर-तरीके पर पुनर्विचार करना होगा।
Guru Dutt by Nasreen Munni Kabir
गुरु दत्त 1964 में दिवंगत हुए थे, पर गुजरते समय के साथ भारतीय सिनेमा पर गुरु दत्त की फिल्मों का प्रभाव एवं महत्त्व बढ़ता गया है। यह पुस्तक एक विलक्षण फिल्मकार और बेहतरीन सिने-कलाकार के जीवन तथा उसके कार्य को रेखांकित करती है, जिसने भारतीय सिने-जगत् को एक नया आयाम दिया, नए मायने दिए और एक नई लय-ताल दी।
प्रस्तुत पुस्तक में नसरीन मुन्नी कबीर ने इस गुणी और प्रतिभा-संपन्न कलाकार की फिल्मों का गहन अध्ययन करके तथा उनके परिवार, मित्रों और सह-कलाकारों के साथ साक्षात्कार करके उनके फिल्मी और निजी जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ तथा ‘साहिब, बीवी और गुलाम’ जैसी क्लासिक फिल्मों को बनाने की प्रक्रिया को बहुत बारीकी से उकेरा है, जिससे गुरु दत्त की फिल्मों की शानदार चमक उभरती है। तकनीशियन, संगीत निर्देशक, कलाकार और अन्य सहयोगियों, जिन्होंने गुरु दत्त के साथ निकटता से काम किया, ने अपने अनुभव और स्मृतियों को बाँटा है, जिससे गुरुदत्त के जीवन के अनेक अनजाने पहलू सामने आए हैं।
गुरु दत्त के अनेक दुर्लभ फोटोग्राफ और उनकी फिल्मोग्राफी से इस पुस्तक का महत्त्व और भी बढ़ गया है—न केवल फिल्मों में रुचि रखनेवालों के लिए, बल्कि एक सामान्य फिल्म-दर्शक के लिए भी।
Guru Ka Mahattva by Shashikant ‘Sadaiv’
भारत में गुरु-शिष्य-परंपरा सदियों नहीं, युगों पुरानी है, जो आज तक कायम है। गुरु हमेशा से सफल व्यक्तित्व, परिवार, समाज और राष्ट्र की नींव तथा रीढ़ रहे हैं।
आज भले ही कुछ ढोंगी बाबाओं के चलते गुरु-संतों को शक की दृष्टि से देखा जा रहा है, परंतु इससे जीवन में गुरु के महत्त्व और उनके योगदान को कम नहीं किया जा सकता; पर ऐसे में कई सवाल अवश्य उठते हैं, जैसे—गुरु कौन है? क्यों आवश्यक है गुरु? क्या पहचान है असली गुरु की? क्या हैं असली शिष्य के लक्षण, आदि?
यह पुस्तक आपको 44 विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरुओं के माध्यम से यह जानने में मदद तो करती ही है, साथ ही जिन्हें आप गुरु रूप में पूजते व मानते हैं, उनकी स्वयं की दृष्टि में गुरु कौन है तथा कैसे थे उनके अपने गुरु के साथ संबंध, इस विषय पर भी प्रकाश डालती है।
जीवन में आध्यात्मिक उत्थान करने का मार्ग प्रशस्त करनेवाली कृति।
Gurudev by Dinkar Joshi
गुरुदेव
उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से पूछा, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?”
“हाँ, जब मैं कविता लिखता हूँ, उस समय मुझे ईश्वर का साक्षात्कार होता है।” टैगोर ने उत्तर दिया।
“ईश्वर के अस्तित्व होने का यह कोई प्रमाण नहीं। ईश्वर के अस्तित्व का आप कोई प्रमाण दे सकते हैं?”
“इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है, जिसके बारे में हम कुछ जानते ही नहीं हैं; किंतु इसी कारण ये सब नहीं हैं, ऐसा नहीं कह सकते।”
“भारत के स्वातंत्र्य के लिए इस समय जो संघर्ष चल रहा है, उसके बारे में आपको क्या कहना है?”
“राजनीतिक स्वातंत्र्य के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है; लेकिन राजनीतिक स्वातंत्र्य से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बौद्धिक स्वातंत्र्य है। स्वतंत्र भारत यदि बौद्धिक गुलामी में पड़ा रहा तो राजनीतिक स्वातंत्र्य व्यर्थ हो जाएगा। सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक जागृति अधिक महत्त्वपूर्ण है।”
“राष्ट्रभाषा के विषय में आपके क्या विचार हैं?”
“राष्ट्र एक ऐसी यांत्रिक व्यवस्था है, जिससे राजनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हैं। इसकी बुनियाद संघर्ष और विजय हैं। इसमें सामाजिक सहयोग के लिए कोई स्थान नहीं है।”
—इसी उपन्यास से
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात विभूति और भारतीय साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र थे। वे मनीषी, कवि और अपने समय के अग्रगण्य रचनाकार थे। उनका जीवन अनेक त्रासदियों, विडंबनाओं, उपलब्धियों एवं सुख-दु:खों का मिला-जुला रूप था। प्रस्तुत उपन्यास उनके महान् जीवन की गाथा है।
Gurudev Rabindranath Tagore by Dinkar Kumar
रवींद्रनाथ ठाकुर
विश्व साहित्य जगत् में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का नाम अमर है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी टैगोर ने कविता, गान, कथा, नाटक, उपन्यास, प्रबंध, शिल्पकला इत्यादि विधाओं में साहित्य-सृजन किया। वे कुशल संगीतकार भी थे। उनका संगीत ‘रवींद्र संगीत’ के नाम से जाना जाता है। वे एक उच्च कोटि के चित्रकार भी थे।
हमारा राष्ट्रगान—‘जन गण मन’ और बँगलादेश का राष्ट्रीय गान—‘आमार सोनार बांग्ला’ उन्हीं की अमर रचनाएँ हैं। ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें सन् 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। इसका एक अनूदित काव्यांश देखिए—
‘स्वप्न मेरा किस गंध से हुआ सुवासित,
किस आनंद से काँप उठा घर का अँधेरा
धूल में पड़ी नीरव मेरी वीणा—
बज उठी अनाहत, पाकर कौन सा आघात।’
गुरुदेव ने शिक्षा को नई दिशा देने के लिए ‘शांतिनिकेतन’ की स्थापना की। गांधीजी को ‘महात्मा’ की उपमा दी, जो बापू के नाम का पर्याय बन गई। विश्वपटल पर अपनी अप्रतिम बहुमुखी प्रतिभा और क्षमताओं का लोहा मनवानेवाले गुरुदेव की प्रेरणादायी प्रामाणिक जीवनी।
Gurudutt Ki Lokpriya Kahaniyan by Devendra Satyarthi
राष्ट्रवादी लेखन के प्रमुख हस्ताक्षर गुरुदत्तजी ने ऐसे साहित्य की सृष्टि की है, जिसको पढ़कर इस देश की कोटिकोटि जनता ने सम्मान का जीवन जीना सीखा है। सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद गुरुदत्तजी ने लगभग सारा समय साहित्य के सृजन में लगाना शुरू किया और मृत्युपर्यंत जुटे रहे। उन्होंने 250 के लगभग पुस्तकें लिखीं, जिनमें प्रायः 200 उपन्यास हैं, कुछ पुस्तकें राजनीति पर हैं। जिनमें प्रमुख है—‘भारत गांधीनेहरू की छाया में’। कुछ संस्मरणात्मक पुस्तकें हैं और शेष भगवद्गीता, उपनिषदों तथा वेदों पर उनकी टीकाएँ व भाष्य हैं।
उनके उपन्यासों के विषय में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। उनके उपन्यासों की भाषा सरल है और कथानक अति रोचक। उनकी कहानियाँ चाहे राजनीतिक, ऐतिहासिक या सामाजिक हों, सबमें राष्ट्रवादी विचारधारा और भारत के भवितव्य के विषय में उनका चिंतन झलकता है। सामाजिक समरसता, मानवीय संवेदना, राष्ट्र के लिए समर्पण और जीवनमूल्य ही उनकी कहानियों का मूल स्वर रहे।
प्रस्तुत संग्रह में उनकी ऐसी ही बहुचर्चित कहानियाँ संकलित हैं, जो पाठकों को रुचिकर लगेंगी और उनमें सामाजिक चेतना जाग्रत् करेंगी।
Gusse Ka Software Aur Operating System by Shipra Mishra , Manoj Srivastava
अथॉरिटी में एंगर नहीं है। हमें अपना रोल, अपनी रिस्पोंसिबिलिटी निभानी है, लेकिन सभी कार्य बिना डिस्टर्ब होकर करने हैं।
हम अथॉरिटी का प्रयोग करें, लेकिन गुस्सा नहीं करें। गुस्से में हम अंदर से डिस्टर्ब होकर अपने ऊपर कंट्रोल खो देते हैं। हम ऊपर से नीचे तक पूरी तरह हिल जाते हैं, लेकिन अथॉरिटी में हम पूरी तरह शांत व स्थिर रहकर कार्य करते हैं। अथॉरिटी में रहकर हम एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलते जाते हैं। हम सकारात्मक रहते हैं।
सामान्य जीवन में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसे क्रोध न आता हो, लेकिन एक सीमा के बाद क्रोध हमारे जीवन को डिस्टर्ब करने लगता है। हमें इस सीमा की पहचान करनी आवश्यक है। हम क्रोध को नेचुरल कहकर अपने क्रोध का बचाव नहीं कर सकते हैं। हमें क्रोधित होने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी होगी। जिम्मेदारी लेने से हम मजबूत बनते हैं और बहाना बनाने से हम कमजोर हो जाते हैं। यदि हम अपने क्रोध की जिम्मेदारी लेते हैं, तब हमें क्रोध-मुक्ति का रास्ता भी मिलेगा।
यदि पुस्तक में दिए गए उपायों का पालन किया जाए, तो हमें क्रोध से शत-प्रतिशत मुक्ति मिल सकती है, परंतु यदि पुस्तक में दिए गए थोड़े भी उपाय का पालन किया जाए, तो हमारा गुस्सा न्यूनतम स्तर पर अवश्य आ जाएगा।
Gyanmarg Karmayogi Swami Vivekananda by Deokinandan Gautam
ज्ञानमार्ग कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद महान् स्वप्नद्रष्टा थे। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत का जो आधार विवेकानंद ने दिया, एक बौद्धिक आधार शायद ही ढ़ूँढ़ा जा सके।
स्वामीजी की दृष्टि में स्पष्ट हो चुका था कि भारत के अध्यात्म से पश्चिम की आत्मा को पुष्ट करना होगा और पश्चिम की वैज्ञानिक समृद्धि से भारत के तन का पोषण करना होगा। दोनों एक-दूसरे की प्रतिपूर्ति करेंगे, पूरक बनेंगे, तब मानवता का कल्याण होगा और इसके लिए स्वामी विवेकानंद को अमेरिका जाना होगा।
पवित्रता को नरेंद्रनाथ आध्यात्मिक जीवन की आधारशिला मानते हैं। उनके लिए यह विधा दूषण का प्रतिरोध न होकर सर्व स्वस्ति से प्रगाढ़ प्रेम है। यह स्वस्ति कामना अपने व्यापकतम अर्थ में है, जो एक आध्यात्मिक शक्ति के रूप में सभी प्रकार के जीवन को अपने आगोश में लेती है।
परमहंस ने द्वैत-अद्वैत के प्रतीयमान विरोधाभास में एकता स्थापित की। इस बराबरी (धार्मिक बराबरी) का वैचारिक आधार भी एकमात्र अद्वैत ही प्रदान कर सकता है, क्योंकि इसमें किसी अन्य को अपने से अभिन्न ही माना जाता है और इसी आधार पर नैतिक आचरण का निर्माण होता है।
स्वामीजी को युवकों से बड़ी आशाएँ हैं। लेखक ने आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्वी संन्यासी का जीवन-वृत्त उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है।
Gyanvardhak Laghukathayen by Mukti Nath Singh
गीता का कथन है कि ज्ञान के समान पवित्र इस संसार में और कुछ नहीं। ज्ञान एक प्रकार का प्रकाश है, जिसकी छत्रच्छाया में हम समीपवर्ती वस्तुओं के संबंध में यथार्थता से अवगत होते और उनका सही उपयोग कर सकने की स्थिति में होते हैं। महामानवों द्वारा इतनी मात्रा में सद्ज्ञान छोड़ा गया कि उसे मात्र बटोरने की आवश्यकता है।
ज्ञान का प्रचार-प्रसार कथा रूप में सरलता से होता है, अस्तु हमारे प्राचीन काल से ही कथाओं का विशेष स्थान रहा है। मानवता, नैतिकता, सदाचार, त्याग, प्रेम, समर्पण, राष्ट्रनिष्ठा आदि तत्त्वों को केंद्र में रखकर समाज-जीवन के सभी विषयों को समेटे लघुकथाओं ने हमारे विशद ज्ञानभंडार को समृद्ध किया है।
‘ज्ञानवर्धक लघुकथाएँ’ कृति अपने अंदर 174 ऐसी ही कथाओं को समेटे हुए है, जिसकी हर कथा कोई-न-कोई अपने अनुकूल सद्ज्ञान छोड़ती गई है, जिसे अपनाकर व्यक्ति सुविधापूर्वक, सुरक्षापूर्वक इच्छित लक्ष्य तक पहुँच सकता है।
Gyanyoga by Swami Vivekananda
मानव-जाति के भाग-निर्माण में जितनी शक्तियों ने योगदान दिया है और दे रही हैं, उन सब में धर्म के रूप में प्रगट होनेवाली शक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है। सभी सामाजिक संगठनों के मूल में कहीं-न-कहीं यही अद्भुत शक्ति काम करती रही है तथा अब तक मानवता की विविध इकाइयों को संगठित करनेवाली सर्वश्रेष्ठ प्रेरणा इसी शक्ति से प्राप्त हुई है। हम सभी जानते हैं कि धार्मिक एकता का संबंध प्रायः जातिगत, जलवायुगत तथा वंशानुगत एकता के संबंधों से भी दृढ़तर सिद्ध होता है।
Halke-Phulke by Pradeep Choubey
हल्के-फुल्के में दीर्घकाय रचनाएँ चंद ही हैं, ये मजाक की संजीदगी को परत-दर-परत, आहिस्ता-आहिस्ता उघाड़ती हैं। इनमें ‘भुखमरे’ और ‘साठवाँ’ खास तवज्जुह की डिमांड करती हैं। व्यक्तिगत त्रासदी किस तरह अनुभूति की गहराई में उमड़-घुमड़कर सामुदायिक विडंबना को रूपाकर दे सकती है, इसका उम्दा नमूना।
और अंत में, दो बिल्कुल अलग तरह की रचनाओं का जिक्र न करना नाइनसाफी होगी। ये दोनों हिंदुस्तानी सिनेमा के प्रति उनके गहरे लगाव और समझ की नायाब मिसाल हैं। एक, हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णकालीन जादूगर ओ.पी. नैयर का इंटरव्यू यह ‘अहा! जिंदगी’ के अक्तूबर 2006 के अंक में प्रकाशित हुआ था। संयोग की विडंबना कि जनवरी 2007 में नैयर साहब का इंतकाल हुआ। यह उनकी जिंदगी का आखिरी इंटरव्यू है, जो उनकी पर्सनैलिटी के मानिंद ही बिंदास है। सिने-संगीत का वह करिश्मासाज संगीतकार, जिसने सार्वकालिक मानी जानेवाली गायिका भारत-रत्न लता मंगेशकर की आवाज का कभी इस्तेमाल नहीं किया। तब भी स्वर्ण युग में अपनी यश-पताका फहराकर दिखाई। दूसरी रचना है छह दशक पूर्व प्रदर्शित हुई राजकपूर निर्मित विलक्षण कृति ‘जागते रहो’ की रसमय मीमांसा। यह रचना ‘प्रगतिशील वसुधा’ के फिल्म-विशेषांक हेतु उनसे लिखवाने का सुयोग मुझे ही हासिल हुआ था। वहाँ वे कृति के मार्मिक विश्लेषण के साथ ही कृतिकार और समूचे सिनेमा से अपने अंतरंग लगाव का बेहद दिलचस्प, बेबाक बयान करने से भी नहीं चूकते। मुझे यकीन है कि रसिक पाठक इस पुरकशिश किताब का भरपूर लुत्फ उठाएँगे।
—प्रह्लाद अग्रवाल
सतना, 15 अगस्त, 2017
Hamara Sanskritik Chintan by Suresh Bhayyaji Joshi
मृत्युंजय भारत क्या होता है? मृत्युंजय भारत वह वास्तविक रूप से सारे दुनिया को सही दिशा देनेवाला, कभी भी समाप्त न होनेवाला, ऐसा अगर कोई राष्ट्र है तो वह भारत राष्ट्र है। इसका कई प्रकार के शब्दों में वर्णन किया गया है।
भारत का चिंतन क्या है, विकास के संदर्भ में हमारी सोच क्या है, एक बात ध्यान में आती है कि सभी ने केंद्र में किसे रखा है? विकास का विचार करते हैं तो सभी ने मनुष्य को केंद्र में रखा है। जब हम सुख-समृद्धि, समाधान की बात करते हैं, तो उसमें व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह, यह उसके केंद्र में, उसके चिंतन में मौजूद है। उसके विकास की कोई सीमा ही नहीं है, वह असीमित है।
हम भूमि की पूजा करते हैं, हम नदियों की पूजा करते हैं, हम भवायु के रूप में भगवान् की पूजा करते हैं, हम पेड़-पौधों की पूजा करते हैं। यह क्या है सब। पागलपन नहीं है। इस पूजा भाव के साथ हमारे यहाँ संस्कार देने की बात आती है कि इनकी बड़ी कृपा है हमारे ऊपर।
Hamara Saur Parivar by A.W. Joshi
सूर्य, ग्रह, उपग्रह, लघु ग्रह, धूमकेतु, उल्का तथा अपनी सूर्यमाला के अन्य कई कंकड़-पत्थर आदि के बारे में बच्चों के साथ संवाद रूप में सचित्र जानकारी । इस पुस्तक में आप पढ़ेंगे-पृथ्वी, चंद्रमा, ग्रह आदि पिंडों की कक्षाएँ; उनका अवलोकन कैसे करें; उनका द्रव्यमान, आकार, वातावरण; सूर्य का पर्यावरण तथा किरीट; शनि तथा अन्य ग्रहों के वलय; वॉयजर, गैलीलियो तथा यूलिसिस अंतरिक्ष यानों के बारे में जानकारी । वक्री ग्रह क्या होता है? पृथ्वी तथा सूर्य के अंतरंग का शोध कैसे लिया जाता है? अन्य ग्रहों के बारे में जानकारी कैसे प्राप्त होती है? पूर्व रात्रि की अपेक्षा उत्तर रात्रि में अधिक ‘ टूटे तारे ‘ क्यों नजर आते हैं? रेडियो खगोल विज्ञान क्या होता है? इस क्षेत्र में आगे शोधकार्य की दिशा क्या होगी? ये तथा ऐसे अन्य कई प्रश्नों के उत्तर । युति, प्रतियुति, वसंत संपात, सौर दिवस, सौर मास, तारों के सापेक्ष दिन तथा मास, क्रांतिवृत्त, संक्रमण आदि कई तांत्रिक शब्दों का सरल अर्थ ।
Hamare Ashok Singhalji by Rajeev Gupta
श्री अशोक सिंहल जी ने जीवन के अंतिम दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत को अपने जीवन के दो प्रकल्पों के बारे में बताया; एक—अयोध्या में भगवान् श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण और वेदों का प्रचार। इससे माननीय अशोक सिंहलजी के स्पष्ट उद्देश्य और उनके जीवन के उद्देश्य-प्राप्ति की जीवटता का पता चलता है। उन्होंने अपने जीवन से यह प्रेरणा दी कि ‘एक जीवन, एक उद्देश्य’ को भलीभाँति कैसे जिया जाता है। अशोकजी नवयुवकों के पुरुषार्थ पर बहुत अधिक विश्वास करते थे और उनका मार्गदर्शन करते थे।
वह व्यक्ति, जिसने एक इतिहास बनाया। डरे-सहमे हिंदू समाज में आत्मविश्वास जगाया। विश्व के हिंदू मन को आलोडि़त कर दिया। अपने बारे में वे कम बताते थे, यानी आत्मश्लाघा से परे थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र-कार्य के लिए समर्पित कर दिया और अंगीकार किया माँ भारती की अनवरत साधना का महाव्रत।
हिंदू हृदयसम्राट् अशोक सिंहलजी जैसे इतिहास-पुरुष का प्रेरणाप्रद जीवन वर्तमान की एवं भविष्य की पीढि़यों के लिए पाथेय है कि कैसे सर्वसंपन्न होने के बावजूद एक ध्येय के लिए अपने जीवन को राष्ट्रयज्ञ में होम कर दो।
Hamare Atalji by Prabhat Jha
पिछले सात दशक की राजनीति में भारत में एक व्यक्तित्व उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया। जिस तरह इतिहास घटता है, रचा नहीं जाता; उसी तरह नेता प्रकृति प्रदत्त प्रसाद होता है, वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। प्रकृति की ऐसी ही एक रचना का नाम है पं. अटल बिहारी वाजपेयी।
अटलजी के जीवन पर, विचार पर, कार्यपद्धति पर, विपक्ष के नेता के रूप में, भारत के जननेता के रूप में, विदेश नीति पर, संसदीय जीवन पर, उनकी वक्तृत्व कला पर, उनके कवित्व रूपी व्यक्तित्व पर, उनके रसभरे जीवन पर, उनकी वासंती भावभंगिमा पर, जनमानस के मानस पर अमिट छाप, उनके कर्तृत्व पर एक नहीं अनेक लोग शोध कर रहे हैं। आज जो राजनीतिज्ञ देश में हैं, उनमें अगर किसी भी दल के किसी भी नेता से किसी भी समय अगर सामान्य सा सवाल किया जाए कि उन्हें अटलजी कैसे लगते हैं? तो सर्वदलीय भाव से एक ही उत्तर आएगा—‘उन जैसा कोई नहीं!’
इस पुस्तक में अटलजी की मस्ती हमारी और आपकी सुस्ती को सहज भगा देगी। इन अनछुए पहलू में प्रेरणा, प्रयोग, प्रकाश, परिणाम, परिश्रम, परमानंद, प्रमोद, प्रकल्प, प्रकृति, प्रश्न, प्रवास और साथ ही साथ जीवन कैसे जिया जाता है, कितने प्रकार से जीया जाता है? आनंद को भी आनंद से आनंदित करने के लिए कितने प्रकार के आनंद की आवश्यकता होती है, इस संस्मरणों में उसका भी आनंद लिया जा सकता है।
अटलजी के संपूर्ण जीवन का दिग्दर्शन कराती प्रेरणाप्रद पुस्तक ‘हमारे अटलजी’।
Hamare Bahadur Bachche by Rajnikant Shukla
बहादुर बच्चों की ये सच्ची कहानियाँ खुद में एक दस्तावेज हैं व इतिहास भी, और वे मानो घोषणा करती हैं कि आज जब हमारा देश और समाज नैतिक मूल्यों के क्षरण की समस्या से जूझ रहा है, तब हमारे देश के ये दिलेर और बहादुर बच्चे ही हैं, जिनसे बच्चे तो सीख लेंगे ही, बड़ों को भी सीख लेनी चाहिए, तभी हमारा देश सच में उज्ज्वल और महान् देश बने।
—प्रकाश मनु
राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित इन बच्चों में समान रूप से मौजूद है, और वह है उनके अप्रतिम साहस, सूझबूझ और अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरों के प्राण बचाने का तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता, जिसे देख-सुनकर बड़े भी हैरान रह जाते हैं।
—रमेश तैलंग
ये कहानियाँ हमारे आज के बच्चों की हिम्मत एवं अदम्य साहस की कीर्ति-कथाएँ हैं। दास्तान हैं उस वीरता की, जो उन्होंने विषम परिस्थितियों में दिखाई, जिन्हें पढ़ते हुए हमें यह विश्वास हो जाता है कि बहादुरी की भारतीय परंपरा मरी नहीं, वह हमारे नौनिहालों में कूट-कूटकर भरी हुई है।
—ओमप्रकाश कश्यप
आज बच्चों के पाठ्यक्रम से अभिमन्यु, एकलव्य, चंद्रगुप्त मौर्य, लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, अदुल हमीद जैसे बहादुरों के साहस और वीरता की कहानियाँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। ऐसे समय में बच्चों को हिम्मत और बहादुरी की प्रेरणा देने में ये सच्ची कहानियाँ सहायक सिद्ध होंगी।
—हरिश्चंद मेहरा
प्रथम राष्ट्रीय बाल वीरता
पुरस्कार विजेता, 1957
Hamare Balasahab Devras by Ram Bahadur Rai , Rajeev Gupta
बालासाहब देवरसजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक थे। उनका जीवन अत्यंत सरल था तथा वे मिलनसार प्रवृत्ति के थे, परंतु प्रसिद्धि से कोसों दूर रहने के साथ-साथ वे कुशल संगठक और दूरदृष्टा थे। बालासाहबजी के जीवन को समझने हेतु पाठकों के लिए इस पुस्तक में बाबू राव चौथाई वालेजी का संस्मरण उल्लेखनीय है। पुणे में चलनेवाली बसंत व्याख्यानमाला में हुए बालासाहबजी के ऐतिहासिक भाषण ने इस बात को प्रमाणित किया कि वे सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था, ‘‘यदि छुआछूत पाप नहीं है तो इस संसार में कुछ भी पाप नहीं है। वर्तमान दलित समुदाय जो अभी भी हिंदू है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, किंतु विदेशी शासकों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं किया।’’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर शासन द्वारा लगाए गए तीनों प्रतिबंधों (वर्ष 1948, 1975 और 1992) के बालासाहबजी साक्षी रहे थे। उनके कार्यकाल में ही देश के अंदर कई ऐतिहासिक घटनाएँ घटित हुईं—ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ, पंजाब की समस्या, आरक्षण विवाद, शाहबानो प्रकरण, अयोध्या आंदोलन चला इत्यादि।
ऐतिहासिक पुरुष बालासाहब देवरसजी के प्रेरणाप्रद जीवन का दिग्दर्शन कराती पठनीय पुस्तक।
Hamare Dr. Hedgewarji by Shyam Bahadur Verma
विश्व के सबसे बड़े व विलक्षण सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् 1946 विक्रमी को हुआ था।
घोर निर्धनता में भी किशोर केशव का मन कभी धन-संग्रही बनने का इच्छुक नहीं हुआ और न उसकी तेजस्विता में कोई कमी आई। राष्ट्र के सौभाग्य से केशव का विकास राष्ट्रवादी, ध्येयनिष्ठ, तेजस्वी और स्वाभिमानी व्यक्ति के रूप में निरंतर होता चला गया। केशवराव ने डॉक्टरी शिक्षा तो प्राप्त की, पर उसे कभी अपना पेशा नहीं बनाया। राष्ट्र-चिंतन करते हुए डॉक्टरजी निरंतर अपने मित्र-मंडल का विस्तार करते रहे।
अंग्रेजी राजाज्ञा का उल्लंघन करने पर 1 मई, 1921 को डॉक्टरजी पर नागपुर में अंग्रेज सरकार ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया। स्वतंत्रता आज नहीं तो कल मिलनी है, इसे दीर्घजीवी कैसे बनाया जाए, इसी के समाधान स्वरूप विजयादशमी के पवित्र दिन, यानी 27 सितंबर, 1925 को उन्होंने अपने घनिष्ठ एवं प्रखर राष्ट्रवादी चिंतनशील मित्रों तथा राष्ट्रभक्त तरुणों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
जब संघ कार्य अपनी शैशवावस्था में ही था, तभी 21 जून, 1940 को डॉक्टर हेडगेवार का स्वर्गवास हो गया।
प्रस्तुत पुस्तक अखंड भारत के अनन्य सेवक, प्रखर राष्ट्रभक्त एवं समस्त हिंदू समाज को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करानेवाले और नई पीढ़ी को संस्कारित करनेवाले महान् तपस्वी की जीवन-गाथा है।
Hamare Path Pradarshak by A P J Abdul Kalam
हमारे पथ-प्रदर्शक
मैं क्या हूँ और क्या बन सकता हूँ? वे कौन लोग थे जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपना-अपना विशिष्ट योगदान देकर मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा की? कैसे मैं इस मायावी संसार में दिग्भ्रमित हुए बिना अग्रसर हो सकता हूँ? कैसे मैं दैनिक जीवन में होनेवाले तनाव पर काबू पा सकता हूँ?
ऐसे अनेक प्रश्न छात्र तथा विभिन्न व्यवसायों से जुड़ी युवाशक्ति भारत के दूरदर्शी राष्ट्रपति से उनकी यात्राओं में अकसर पूछते हैं। राष्ट्रपति डॉ. कलाम की यह नवीनतम कृति ‘हमारे पथ-प्रदर्शक’ इन सभी प्रश्नों का उत्तर बखूबी देती है।
छात्रों एवं युवाओं हेतु प्रेरणा की स्रोत महान् विभूतियों के कृतित्व का भावपूर्ण वर्णन। कैसे वे महान् बने और वे कौन से कारक एवं तथ्य थे जिन्होंने उन्हें महान् बनाया।
अभी तक पाठकों को राष्ट्रपति डॉ. कलाम के वैज्ञानिक स्वरूप एवं प्रगतिशील चिंतन की ही जानकारी रही है, जो उनके महान् व्यक्तित्व का एक पक्ष रहा है। उनके व्यक्तित्व का दूसरा प्रबल पक्ष उनका आध्यात्मिक चिंतन है। प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. कलाम की आध्यात्मिक चिंतन-प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन है।
यह पुस्तक प्रत्येक भारतीय को प्रेरित कर मानवता का मार्ग प्रशस्त करेगी, ऐसा विश्वास है।
Hamare Rajju Bhaiya by Devendra Swarup/Brij Kishore Sharma
याग विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध अक्तूबर 1942 में आरंभ हुआ। विश्वविद्यालय के मेधावी छात्रों में उनकी गणना होती थी। विश्वविद्यालय ने उन्हें शिक्षक के रूप में अपनाया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें प्रयाग नगर का दायित्व सौंप दिया।
1994 में जब संघ के तीसरे सरसंघचालक श्री बालासाहेब देवरस ने अपने जीवनकाल में ही रज्जू भैया का सरसंघचालक पद पर अभिषेक किया तो यह घटना भारत के सार्वजनिक जीवन में एक बड़ा धमाका बन गई थी।
रज्जू भैया का परिचय-क्षेत्र बहुत व्यापक था। विभिन्न दलों और विचारधाराओं के राजनेताओं से उनके सहज संबंध थे, सभी संप्रदायों के आचार्यों व संतों के प्रति उनके मन में श्रद्धा थी और अनेकों का स्नेह और आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ था। देश-विदेश के वैज्ञानिकों, विशेषकर सर सी.वी. रमण जैसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक का उनके प्रति आकर्षण था। ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व को, उसकी समग्रता को एक छोटे से संकलन में बटोर पाना संभव नहीं है।
यह कृति रज्जू भैया के प्रेरणाप्रद-सार्थक-राष्ट्रसमर्पित जीवन की एक झाँकी मात्र है, जो उनकी विराटता का दिग्दर्शन कराएगी। एक तपस्वी और महान् राष्ट्रसेवी की स्मृति को पुनीत स्मरणांजलि है यह ग्रंथ।
Hamare Shri Guruji by Sandeep Dev
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन् 1925 में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी, लेकिन इसे वैचारिक आधार द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने प्रदान किया था।
संघ निर्माण के मात्र पंद्रह साल बाद ही डॉ. हेडगेवार गुजर गए, लेकिन अवसान से पहले उन्होंने श्रीगुरुजी को संघ का द्वितीय सरसंघचालक नियुक्त कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध, भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज और नेताजी का देश की आजादी में योगदान, भारत विभाजन, देश की आजादी, कश्मीर विलय, गांधी हत्या, देश का पहला आम चुनाव, चीन से भारत की हार, पाकिस्तान के साथ 1965 व 1971 की लड़ाई—भारत का इतिहास बदलने और बनाने वाली इन घटनाओं के महत्त्वपूर्ण काल में न केवल श्रीगुरुजी संघ के प्रमुख थे, बल्कि अपनी सक्रियता और विचारधारा से उन्होंने इन सबको प्रभावित भी किया था।
तत्कालीन भारतवर्ष के इतिहास में समादृत एक आध्यात्मिक पुरुष ही नहीं, सामाजिक, सांस्कृतिक, जीवन-मूल्यों के प्रसारक के रूप में ख्यात ‘श्रीगुरुजी’ की प्रामाणिक जीवन-गाथा।
Hamare Sudarshanji by Baldev Bhai Sharma
संघ के पंचम सरसंघचालक पूज्य सुदर्शनजी का ऋषितुल्य जीवन भौगोलिक व मत-पंथ की सीमाएँ लाँघकर देश-विदेश के लक्षावधि अंतःकरणों में एक प्रेरणापुंज के रूप में बसा है। हमारे ऋषियों ने कहा, ‘यानि अस्माकं सुचरितानि तानि त्वया सेवितम्’ यानी उनके जीवन के जो आदर्श हैं, सुचरितरूप श्रेष्ठ जीवन-मूल्य जिन्हें उन्होंने जिया, वह सद्मार्ग जिस पर चलकर उन्होंने मानवता के उच्च मानदंड स्थापित किए, उन्हें उनकी आनेवाली पीढ़ी यानी हम अपने जीवन के आचरण में ढालें, ताकि हम उन सद्गुण-सदाचार से युक्त उदात्त जीवन-मूल्यों और संस्कारों से युक्त जीवन जी सकें। पूज्य सुदर्शनजी के ऐसे तपोनिष्ठ व संकल्पवान् राष्ट्रसेवी जीवन का सान्निध्य जिन असंख्य लोगों को मिला, वे स्मृतियाँ उनके हृदय को सुवासित किए हुए हैं। एक बालक से लेकर स्वयंसेवक बनने, कार्यकर्ता के रूप में ढलकर प्रचारक जीवन का असिधारा व्रत स्वीकारने और विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए पूज्य सरसंघचालक के रूप में प्रतिष्ठित होने की उनकी यात्रा बड़ी प्रेरणास्पद है।
पूज्य सुदर्शनजी के जीवन की यह विविध पक्षीय प्रेरणा आनेवाले समय में राष्ट्र व समाज के सर्वतोमुखी उन्नयन हेतु लक्षावधि स्वयंसेवकों के लिए तो जीवंत रहे ही, समाज के अन्य वर्गों में भी उस जीवन-दृष्टि का विस्तार हो, यह महत् उद्देश्य ही इस ग्रंथ की रचना का आधार है।
विश्वास है कि यह ग्रंथ पूज्य सुदर्शनजी की यश-काया को अक्षुण्ण रखेगा और सबके लिए राष्ट्रभक्ति व समाजसेवा का पाथेय बनेगा।
Hamari Adhoori Kahani… by Arpit Vageria
हर कहानी सुखांत नहीं होती, पर सुखद अंत ही क्या सबकुछ होता है?
अरमान एक युवा टेलीविजन राइटर है और ऐसा लगता है, जैसे जीवन में उसने सबकुछ पा लिया है—मनचाही नौकरी, पर्याप्त पैसा और मुंबई में रहने के लिए अच्छी सी जगह। इन सबके बावजूद उसका दिल कहीं-न-कहीं उसके अपने शहर इंदौर में ही बसा है। जीवन के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच खुशियाँ मनाती चुलबुली सी सारा, आजकल थोड़ी तनहा सी है और मुंबई में एक जाने-माने टेलीविजन चैनल को ज्वॉइन करने के बाद उसे अपनी जिंदगी को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है।
अरमान और सारा की मुलाकात फिल्मी अंदाज में होती है और जैसा कि अकसर होता है, दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है। मोहब्बत के इस खुशनुमा अहसास से अरमान की जिंदगी में बाकी सबकुछ पीछे छूट गया है, लेकिन उसे क्या मालूम था कि एक तूफान उनकी तरफ बढ़ रहा है।
साथ चलते-चलते, उनका सामना बरसों पहले दफन सच्चाइयों, चौंकाने वाले मोड़ और कठोर फैसलों से होता है।
‘हमारी अधूरी कहानी’ प्यार की एक ऐसी कहानी है, जिसकी कोई सीमा नहीं, जिसका अंत सामान्य से कोसों दूर है, और जो नई शुरुआतों से भरी है, जिसमें प्यार की उम्मीद है।
Hamari Gaurav Gathayen by Madan Gopal Sinhal
सुविख्यात साहित्यकार श्री मदनगोपाल सिंहल एक सिद्धहस्त एवं कर्मठ व्यक्ति हैं। उन्होंने समाज को अपनी अनेकों प्रसिद्ध पुस्तकों के माध्यम से राष्ट्रीय प्रेरणा दी है। मुझे श्री सिंहलजी की नवीनतम कृति ‘हमारी गौरव गाथाएँ’ देखने का अवसर मिला। मैं रुग्ण हूँ तथा अस्वस्थ होने के कारण मुझ पर अधिक पढ़ने पर भी प्रतिबंध है, किंतु जब मैंने ‘हमारी गौरव गाथाएँ’ पुस्तक की स्वर्णिम गाथाओं को पढ़ना प्रारंभ किया तो बीच में न छोड़ सका।
भारत के इतिहास की एक-एक पंक्ति में हमारा स्वर्णिम अतीत छिपा हुआ है। हमारे इतिहास में समस्त विश्व को प्रेरणा देने की महान् सामर्थ्य विद्यमान है। जगद्गुरु भारत से ही समस्त विश्व के कोने-कोने में ज्ञान, बलिदान एवं शौर्य की ज्योतिर्मय किरणें पहुँच पाई हैं। श्री सिंहलजी ने भारत के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों की कुछ गाथाओं को इस पुस्तक में सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
1857 वीरांगना लक्ष्मीबाई, क्रांतिकारी बालक एवं ‘हिंदू एशिया’ जैसी महान् पुस्तकों के रचयिता श्री सिंहलजी की यह नवीन कृति भी आदर पाने योग्य है। अपनी सभ्यता-संस्कृति की उपेक्षा करके पाश्चात्य-संस्कृति पर गर्व करनेवाले तथाकथित भारतीयों को यह गाथाएँ प्रेरणा प्रदान करेंगी, ऐसी मुझे पूर्ण आशा है।
—वि.दा. सावरकर
Hamari Prarthna by Jagram Singh
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में स्वयंसेवक जो प्रार्थना करते हैं, वह तो मंत्र है। सभी इस मंत्र का सामूहिक रूप से गान करते हैं। प्रार्थना तो संस्कृत में है। इस कारण प्रार्थना के शब्द समझ में नहीं आने के कारण उच्चारण में कठिनाई होती है। कई बार तो अशुद्ध उच्चारण भी होता है। प्रार्थना का शुद्ध उच्चारण होना चाहिए। इसके लिए एक-एक स्वयंसेवक का उच्चारण सुनना और उसे ठीक करवाना यह पद्धति ही उत्तम है। एक-एक पंक्ति के शब्द समझ में आएँ, इसलिए जहाँ संयुक्ताक्षर हैं, उनको संधि विच्छेद करके उनका उच्चारण करवाना और उन शब्दों का अर्थ भी बताना आवश्यक है। बाद में इन शब्दों को गद्य के रूप में व्यवस्थित करके वाक्य बनाना सरल हो जाता है।
सभी स्वयंसेवकों को सरल पद्धति और सरल भाषा में समझने लायक प्रार्थना का शब्दशः उच्चारण, संधि विच्छेद, अन्वय, भावार्थ आदि संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री जगरामजी ने परिश्रमपूर्वक इस पुस्तक में प्रस्तुत करने का अच्छा प्रयास किया है। इस पुस्तक के माध्यम से शाखाओं, अभ्यास वर्गों आदि में प्रार्थना पर अच्छी प्रकार से चर्चा लेने वालों को भी सुगमता होगी।
विश्वास है, सभी स्वयंसेवक ही नहीं, संघ के प्रति जिज्ञासु सुधी पाठक भी इसका लाभ उठाएँगे।
Hansti Hui Kahaniyan by Subhash Chander
आजकल के इस टेंशन-युग में हर कोई परेशान है। लोग मानो हँसना-मुसकराना भूलते जा रहे हैं, अपनी जिंदगी के दबाव को कम करने के लिए लोग कुछ ऐसा पढ़ना या देखना चाहते हैं, जो उनके तनाव को कम करके उन्हें कुछ देर हँसा सके। हमारे यहाँ हास्य फिल्में तो बनती हैं और हास्य के नाम पर लाफ्टर शो भी होते हैं, पर इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि साहित्य में हास्य को दोयम दर्जे का मान कर उसमें न के बराबर लिखा जाता है।
ऐसे में यह संग्रह उन लोगों के लिए संजीवनी से कम नहीं होगा, जो शुद्ध हास्य पढ़ना चाहते हैं, उसे खोज-खोजकर पढ़ते हैं, क्योंकि यह बात तो पक्की है कि इसमें शामिल कहानियाँ पढ़नेवाला दिल खोलकर हँसेगा ही नहीं बल्कि बार-बार उन्हें याद करके बाद में भी मुसकराएगा। सुभाष चंदरजी हमारे समय के बड़े व्यंग्यकार एवं आलोचक हैं। हिंदी व्यंग्य के इतिहास के लेखक के रूप में उनकी अलग ख्याति है। इससे अलग सुभाषजी बेहतरीन हास्य लेखक भी हैं। उनकी हास्य कहानियाँ बहुत ही शानदार होती हैं। उनके पास गजब का शिल्प और भाषा है, जो पाठक को सम्मोहित करने का काम करती है। एक बार पढ़ना शुरू करें तो खुद को रोकना मुश्किल हो जाता है। सुभाषजी किस्सागोई शैली के मास्टर हैं; पढ़ते समय उनकी कहानियों के पात्र मानो जीवंत हो उठते हैं, पढ़ते-पढ़ते सारी घटनाएँ आँखों के सामने गुजरने लगती हैं। मेरा मानना है कि जो भी पाठक इस पुस्तक को पढ़ेंगे, वे कभी इसे भुला नहीं पाएँगे। तो हो जाइए तैयार, मुसकराने के लिए, खिलखिलाने के लिए, ठहाके लगाने के लिए।
—अर्चना चतुर्वेदी
Hanumanji Ke Jeevan Ki Kahaniyan by Mukti Nath Singh
हनुमानजी के जीवन की महागाथाओं को वैसे तो शब्दों में पिरोना लगभग असंभव ही है, क्योंकि उनकी वीरता की गाथाएँ पृथ्वी से लेकर आकाश और पाताल तक—तीनों लोकों में फैली हैं। उन्होंने ‘सब संभव है’ को अपने जीवन में चरितार्थ किया। भूख लगी तो सूर्य देवता को ही फल समझ उनकी ओर छलाँग लगा दी, तब देवराज इंद्र को अपना वज्र चलाकर उन्हें रोकना पड़ा। रावण की स्वर्ण लंका को उन्होंने जलाकर राख कर दिया और तीनों लोकों को दहलानेवाला रावण भी असहाय बना बैठा रहा। पाताल लोक में जाकर उन्होंने न केवल भगवान् श्रीराम और लक्ष्मण को बचाया, वरन् वहाँ के दुष्ट राजा अहिरावण का वध भी किया। हनुमानजी भगवान् श्रीराम के परम भक्त हैं। उनकी भक्ति की शक्ति से ही वे स्वयं को शक्तिसंपन्न मानते हैं। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया है कि अनन्य और समर्पित भक्ति से सबकुछ हासिल किया जा सकता है। राम-रावण युद्ध के दौरान वे एक केंद्रीय पात्र रहे और हर अवसर पर भगवान् राम के अटूट सहयोगी के रूप में सामने आए—चाहे वह लक्ष्मणजी को लगी शक्ति का विपरीत काल हो, चाहे नागपाश वाली घटना। हनुमानजी को सीता माता द्वारा अजर-अमर होने का वरदान प्राप्त है—अजर-अमर गुणनिधि सुत होऊ—वे त्रेता से लेकर द्वापर में भगवान् राम के श्रीकृष्ण अवतार में भी उनके सहयोगी बने और महाभारत संग्राम के दौरान अनेक बार उभरे। आज कलियुग में भी वे अपने भक्तों की पुकार सुनकर उनकी मदद को दौडे़ चले आते हैं।
अपूर्व भक्ति, निष्ठा, समर्पण, साहस, पराक्रम और त्याग की कथाओं का ज्ञानपुंज है हनुमानजी का प्रेरक जीवन।
Happiness@Success by Ravindra Sahu
लेखक 19 वर्ष की आयु में बी.टेक. की पढ़ाई बीच में छोड़ सफल वेबसाइट www.iitkhabar.com और Wave of Education जैसी हृत्रहृ बना चुके हैं। साथ ही डेढ़ लाख से भी अधिक विद्यार्थियों को जीवन में सफलता और असफलता का फर्क पहचानने का मंत्र देने के लिए सैंकड़ों निःशुल्क सेमिनार आयोजित कर चुके हैं। इनके सेमिनार के कारण छात्रों का जिंदगी के प्रति नजरिया सकारात्मक रूप से बदला है। अनेक राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के अनुसार आज वे देश के सबसे कम उम्र के सफल मोटिवेशनल गुरु हैं।
कम उम्र में अपार लोकप्रियता और सफलता पाने के बाद उनके इस उपन्यास पर शीघ्र ही हिंदी फिल्म बननेवाली है। उनकी यह पुस्तक ‘Happiness ञ्च सक्सेस’ अंग्रेजी के अलावा शीघ्र ही विश्व की अनेक भाषाओं में भी प्रकाशित होगी।
संपर्क : www.ravindrasahu.com
इ-मेल : info@ravindrasahu.com
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Har Pal Sukha Aur Khushi Payen by Stephen Knapp
यह पुस्तक खुशी की राह दिखाती है, जो जीवन के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। स्वाभाविक रूप से सभी खुश रहना चाहते हैं। नहीं तो हमारे जीने और काम करने का मतलब क्या है? कई लोग खुशी को सुख-सुविधाओं में वृद्धि के तौर पर देखते हैं। कुछ लोग पद, या जीने में आसानी, रोमांच, या अधिक पैसा और उसके कुछ भी खरीदने की ताकत से इसका अंदाजा लगाते हैं। हालाँकि, पूरब से मिले ज्ञान का इस्तेमाल करने और इसमें जो कहा गया है, उसके अनुसार वैकल्पिक दृष्टिकोण को अपनाने से हमें अपनी सच्ची स्थिति और उस खुशी तक पहुँचने के आवश्यक साधनों की जानकारी मिलती है जिसके लिए हम हमेशा तरसते रहते हैं। यह जानकारी निश्चित रूप से आपको अधिक-से-अधिक संभावनाओं का एहसास करा देगी। इससे आप उस स्वाभाविक प्रसन्नता की अनुभूति करेंगे, जो सदैव आपकी आत्मा में ही रहती है।
जीवन के सच्चे सुख को परिभाषित करने की व्यावहारिक जानकारी और दृष्टि देनेवाली अनुपम पुस्तक।
Har Path Vijay Path by Napoleon Hill & Judith Williamson
किसी भी स्वप्न को साकार करने के लिए मनुष्य को यह विश्वास करना पड़ेगा कि असंभव को पार किया जा सकता है। श्रद्धा उपलब्धि की पहली आवश्यकता है और उस श्रद्धा को अटल बनाए रखना दूसरी आवश्यकता। जब आप श्रद्धा से आगे बढ़ते हैं तो आप भविष्य में कदम रख देते हैं। यह सिद्धांत अत्यंत प्रभावकारी है, यदि मनुष्य उद्देश्य व योजना से अपने कार्य में आगे बढ़े।
यदि हमारा भरोसा उत्तम आकार लेगा तो कार्य का निष्पादन निस्संदेह अच्छा ही होगा। ऐसा करने पर हमारे द्वारा कल्पित स्वप्न की ओर बढ़ना निश्चित है। विश्वास वह अक्सीर है, जो हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप ही कार्य करती है। वह ऐसी सुगंध है, जो विश्वास रूपी बोतल खोलने पर चारों तरफ फैलकर वातावरण को सुगंधित कर देती है और हमारे प्रयासों के नतीजों से स्वप्न साकार कर देती है।
जीवन में विजय पथ पर अग्रसर होने के लिए आवश्यक और व्यावहारिक गुरुमंत्र बताती पठनीय एवं रोचक पुस्तक।
Har-Har Gange by Shyamla Kant Verma
हर-हर गंगे
यह कलियुग है। मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है और दानवीय लीला का विकास। दुर्गुणों का बोलबाला है और सद्गुणों का लोप। चोरी, डकैती, हत्या आदि से मनुष्य संत्रस्त है। अनेक सामाजिक कुरीतियों—बाल-विवाह, विधवा-समस्या, दहेज प्रथा, भ्रूण-हत्या, बड़ा परिवार आदि ने मानव-मूल्यों को नष्ट कर रखा है। नैतिकता से कोई संबंध शेष नहीं रह गया है। समलैंगिक विवाह के पक्ष में भी लोग खड़े हो रहे हैं। प्रस्तुत सामाजिक उपन्यास ‘हर हर गंगे’ उपर्युक्त समस्याओं पर विमर्श प्रस्तुत करने के साथ ही निष्कर्ष भी उपस्थित करता है।
पात्रों के बीच सामाजिक समस्याओं पर विचार-विनिमय का ताना-बाना उपन्यास के कथ्य को बुनने में सहायक रहा है। पौराणिक कहानियों ने जरी के रूप में इस बनावट में चमक उत्पन्न की है। इस उपन्यास में हर व्यक्ति के जीवन की कहानी कही गई है। इसके सभी पात्र काल्पनिक हैं और सामाजिक औपचारिकताओं से बँधे हुए हैं। पौराणिक कहानियों का बोध कराने और विविध सामाजिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने में यह कृति सहायक सिद्ध होगी। अत्यंत रोचक, मनोरंजक और प्रेरणाप्रद उपन्यास।
Haripriya by Krishna Agnihotri
हरि की प्रिया मीरा वर्षों पूर्व एक साधारण स्त्रा् से एक विशिष्ट महिला बन जाती है। सदियों से नारी कभी परदे में तो कभी बहुपत्नीत्व तो कभी पति प्रताड़ना तो कभी सास, ननद के विचारों तले दबी अपने अस्तित्व की खोज करती रही है। वो प्राणी है—उसे भी सामान्य रूप से जीवन की साँस लेने का अधिकार तो है, पर वंचित रह स्वयं को जीवित रखने हेतु भक्ति मार्ग ही सुरक्षित कवच होता है। संयम, नम्रता, बुद्धि व व्यवहार में स्त्रा् को पुरुष का सहयोग चाहिए, परंतु समाज को यह रास नहीं।
मीरा भी समाज से टक्कर ले स्वयं को कृष्ण प्रेम में समर्पित कर देती है। कृष्ण-प्रेम मीरा के लिए ढोंग नहीं, एक सुलझी भक्ति साधना है, जिसे गुरु ने शक्तिवान बनाया है। ऐसी ही नारी व प्राणी ईश्वर का प्रिय होता है, जो कर्म, धर्म व मन से ईश्वर में लीन होता है। निर्मल मन, दृढ़ निश्चय व संयम व्यक्ति को भक्ति में डुबो देता है। मीरा अद्भुत शक्तिसंपन्न स्वामीजी के मार्ग-सहयोग से स्वयं को सशक्त नारी बना इतिहास में उल्लेखनीय बनाती है।
कृष्णभक्त मीरा की समर्पित भक्ति का जयघोष करती पठनीय औपन्यासिक कृति।
Hashiye Par Hasrat by Bhim Singh Bhavesh
‘हाशिए पर हसरत’ एक ऐसे कटु यथार्थ का दस्तावेज है, जो हमारे समाज के लिए आज भी शर्म का बायस है। भारतीय समाज की संरचना में जाति-वर्ण की विभाजक रेखा इतनी प्रतिगामी और अमानवीय साबित हुई है कि एक सभ्य समाज उससे जितनी जल्द मुक्त होगा, उसका उतना ही भला होगा।
यह पुस्तक उसी परिप्रेक्ष्य में भारतीय समाज की जाति-व्यवस्था में अस्पृश्य जातियों की अंतिम पंक्ति में खड़े मुसहर जाति की स्थिति से रू-ब-रू कराने की कोशिश है।
भीम सिंह भवेश की यह पुस्तक वस्तुतः समाज विज्ञान में एक शोध है। यह पुस्तक मुसहरों के जीवन, उनकी जीवन-दृष्टि, आपसी संबंधों, दशा-दिशा, भविष्य और समाज की मुख्यधारा के प्रति उनकी धारणाओं का प्रामाणिक दस्तावेज है। मुसहर-टोलों के जीवन को जिस संवेदना के साथ भवेश ने उकेरा है, उसका एहसास इसे पढ़ने पर होता है। उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, मान्यताओं और जटिलताओं को लेखक ने बहुत करीब से देखा है।
ग्रामीण जीवन के अमर चितेरे फणीश्वर नाथ रेणु के जन्म शताब्दी वर्ष में ‘हाशिए पर हसरत’ का प्रकाशन ‘मैला आँचल’ के लेखक को सबसे अच्छी श्रद्धांजलि भी है।
भवेश ने जानकारियाँ जुटाने में मेहनत तो की ही है, उन्हें प्रस्तुत भी रोचक शैली में किया है। इसीलिए यह शुष्क शोध नहीं, बल्कि पठनीय कथ्य के माध्यम से संवेदनशील विषय के प्रति हमारे अंदर संवेदना जगाती है। यही इस पुस्तक की विशेषता है।
यह पुस्तक मुसहर जाति को समझने, उनके दारुण दुःखों को महसूस करने और उन्हें उच्च मानवीय गरिमा प्रदान करने के प्रयासों को बल देगी।
—अवधेश प्रीत
Hathyoga : Swaroop Evam Sadhna by Yogi Adityanath
योग-साधना के संबंध में आज भी बहुत सी भ्रांत धारणाएँ जन-साधारण के बीच प्रचलित हैं। आम जन-मानस योग का संबंध विरक्त साधु-संन्यासियों के उपयोग तक ही सीमित मानता है। इसी प्रकार हठयोग के संबंध में भी जन-साधारण में यही भ्रांत धारणा है कि ‘हठयोग’ का अर्थ हठात् अर्थात् हठ (विशेष आग्रह) पूर्वक योगाभ्यास करने से है। योग तथा हठयोग से संबंधित इन सभी भ्रांत धाराणाओं को निर्मूल सिद्ध करने तथा इनसे संबंधित सभी आवश्यक तथ्यों और तत्त्वों से जन-साधारण को अवगत कराने की दृष्टि से इस पुस्तक का विशेष महत्त्व है।
आशा है कि योग-जिज्ञासु गण इस कृति के माध्यम से हठयोग साधना के विभिन्न विषयों को आसानी से समझ सकेंगे। योग-साधना संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए हमारे ऋषियों-महर्षियों और महान् योगियों द्वारा प्रचारित विशिष्ट रसायन है, जिसका सेवन हर देश, काल, जाति, लिंग, वर्ण, समुदाय, संप्रदाय एवं पंथ के लोगों के लिए सुलभ और उपादेय है।
Hausale Ki Oonchi Udaan by Surendra Mohan
‘हौसले की ऊँची उड़ान’ सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने की गौरवगाथा भर नहीं है, यह सलाम है उस जीवटता को, जो मनुष्य को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ जीव बनाती है। ‘हौसले की ऊँची उड़ान’ वह दृढ़ता है, जो मनुष्य को असाध्य चुनौती को साधने की प्रेरणा और हिम्मत देती है। ‘हौसले की ऊँची उड़ान’ साहित्य से भी पहले एक भोगा हुआ यथार्थ है। इसमें प्रेम भी है और तड़प भी। संघर्ष भी है तो रस भी, कुटिलता भी है तो जिजीविषा भी, कमल और गुलाब है तो कीचड़ भी। इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष का महिमामंडन नहीं है, उद्देश्य है युवाओं को कर्तव्यपथ पर पूरी लगन के साथ चलने के लिए प्रेरित करना। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद यदि एक युवा भी अपने धुँधले पड़ गए लक्ष्य की ओर चलने के लिए प्रेरित होता है तो पुस्तक का लेखन और प्रकाशन सफल होगा।
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारियों, परीक्षा व उसके बाद की पूरी प्रक्रिया की सजीव कहानी जो हर अभ्यर्थी को लगभग अपनी लगेगी क्योंकि सबसे संघर्ष, परिश्रम, सपने और भविष्य एक से होते हैं। सफलता के लिए आवश्यक सूत्रों को भी रेखांकित करता अत्यंत पठनीय उपन्यास।
Hawker Se Hakim by Vijay Singh
इस पुस्तक को तीन विषयों से सँजोया गया है, जिसमें लेखक की जीवनगाथा है कि कैसे एक हॉकर से अपनी यात्रा प्रारंभ करके अखबारी सेल्स की दुनिया के सर्वोच्च शिखर प्रसिद्ध हिंदी दैनिक ‘हिंदुस्तान’ के ‘नेशनल सेल्स हेड’ पद पर पहुँचा। इसके साथ ही अखबारी दुनिया में बिताए शानदार 38 वर्षों के उल्लेख के साथ अखबारी दुनिया के उतार-चढ़ाव पर प्रकाश डाला गया है। यह पूर्णतः सत्य है कि अखबारी सेल्स अन्य सेल्स के मुकाबले पूर्णतया भिन्न है। जब सारी दुनिया सोती है, तब अखबारी सेल्स के लोग सेल्स का काम करते हैं तथा यह पूरी तरह असंगठित एवं अपने आप में अजूबा पेशा है। इस पर कोई पुस्तक अभी तक नहीं लिखी गई है; न ही अखबारी सेल्स के बारे में—जैसे अखबारों में चलाई जानेवाली पाठक एवं वितरक स्कीम, ऑडिट ब्यूरो ऑफ सरकुलेशन, डी.ए.वी.पी., आर.एन.आई., आई.आर.एस. आदि के विषय में कोई पुस्तक उपलब्ध
नहीं है।
यह पुस्तक सरकुलेशन-सेल्स में काम करनेवाले सहयोगियों एवं भविष्य में इस क्षेत्र में आनेवाले साथियों के लिए बहुत ही उपयोगी पुस्तक होगी। वहीं अखबारी दुनिया के किसी भी विभाग में काम करनेवालों के लिए भी यह पुस्तक प्रेरणादायी एवं उपयोगी साबित होगी।
आज के युवा वर्ग के लिए यह पुस्तक एक प्रेरणा के रूप में होगी कि बिना उच्च शिक्षा पाए एवं नितांत अभाव में भी संघर्ष करके जिंदगी में तथा अपने कॅरियर में कैसे आगे बढ़ सकते हैं।