Prasannata by P.K. Arya

SKU: 9789350484456

प्रसन्नता मनुष्य का एक ऐसा गुण है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी उसे सहज, सरल, सामान्य और रचनात्मक बनाए रखता है। चेहरे पर मौजूद प्रसन्नता व्यक्‍ति विशेष का तो दर्द कम करती ही है, उसके संपर्क में आनेवाले व्यक्‍ति के दुःख-दर्द भी हर लेती है।
जीवन की एक सचाई से सभी परिचित हैं कि मौजूदा परिस्थितियों का सामना हमें करना ही होगा—अब यह हम पर है कि हम हँसकर करें या रोकर। प्रस्तुत पुस्तक यही सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्न कैसे रहा जाए। जो महत्त्व भोजन में नमक का है, वही जीवन में प्रसन्नता का। प्रसन्नचित्तता से बड़ी-से-बड़ी समस्याओं का हल आसानी से निकाला जा सकता है।
तनामुक्‍त रहने, प्रसन्न और प्रफुल्लित रहने के व्यावहारिक सूत्र बताती एक जीवनोपयोगी पुस्तक।

Pratham Everest Vijeta Edmund Hillary by Sandeep Kumar

SKU: 9789384344306

विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर पर सबसे पहले कदम रखनेवाले सर एडमंड हिलेरी के अंदर इस साहसिक कार्य का जज्बा कूटकूटकर भरा था, लेकिन इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद भी उनका स्वभाव बहुत सहज और सरल रहा। सर एडमंड हिलेरी ने 29 मई, 1953 को केवल 33 साल की आयु में नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेनजिंग नार्गे के साथ माउंट एवरेस्ट पर पहली बार कदम रखा था।
न्यूजीलैंड में 20 जुलाई, 1919 को जनमे सर हिलेरी को स्कूल के दिनों से ही पर्वतारोहण का शौक था। उन्होंने एवरेस्ट यात्रा के बाद हिमालय ट्रस्ट के माध्यम से नेपाल के शेरपा लोगों के लिए कई सहायताकार्य भी किए। उन्होंने 1956, 1960, 1961, 1963 और 1965 में भी हिमालय की अन्य चोटियों पर पर्वतारोहण किया था।
भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया था। 1985 में हिलेरी को भारत में न्यूजीलैंड का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। वे बँगलादेश में न्यूजीलैंड के उच्चायुक्त और नेपाल में राजदूत भी रहे। नेपाल सहित कई अन्य देशों ने भी उन्हें अपने राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया।
इस पुस्तक में सर एडमंड हिलेरी की रोमांचक जीवनकथा का वर्णन है, जो रोमांचक तो है ही, साथ ही उत्साहितप्रोत्साहित करनेवाली है।

Pratham Vishwa Yuddh by Rajpal Singh

SKU: 9789351864240

औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे, जहाँ से वे कच्चा माल पा सकें तथा मशीनों से बनाई हुई वस्तुएँ बेच सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सैनिक शक्ति बढ़ाई गई और गुप्त कूटनीतिक संधियाँ की गईं। इससे राष्ट्रों में अविश्वास और वैमनस्य बढ़ा और युद्ध अनिवार्य हो गया। ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्क ड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया की। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया।
इस पुस्तक का उद्देश्य है कि विश्वयुद्धों की विभीषिका से सीख लेकर हम युद्धों से तौबा कर लें और ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न होने दें, जो युद्धों का जन्म दें। मानवीय संवेदना और मानवता को बचाए रखने का प्रयास है यह पुस्तक ।

Pratibimba by Ashutosh Chaturvedi

SKU: 9788194510994

आशुतोष चतुर्वेदी झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के अग्रणी समाचार-पत्र ‘प्रभात खबर’ के प्रधान संपादक हैं। हर सोमवार को उनका लेख संपादकीय पेज पर प्रकाशित होता है। यह पुस्तक उनके ऐसे प्रभावी लेखों का संकलन है, जिसमें उन्होंने खेल, आर्थिक व सामाजिक, भारत और पड़ोसी देशों की राजनीति तथा अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर अपनी कलम चलाई है। उनके लेखों में विषयों की विविधता और व्यापक अनुभव की झलक साफ नजर आती है।

Pratigya by Ramesh Pokhariyal Nishank

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‘अरे ब्वारी, क्या हुआ वीरू को?’ लरजता स्वर, भीगी हुई आँखें, कँपकँपाता शरीर।
‘कुछ नहीं बताते, माँजी।’ सुनीता ने आगे बढ़ थाम लिया उन्हें।
‘अरे, क्यों नहीं बताता? किसने किया तेरा ये हाल?’ और फिर साथ आए युवकों को भी ले लिया आड़े हाथ।
‘िकससे दुश्मनी है मेरे वीरू की? यह तो सबका भला ही कर रहा है।’
सब खामोश थे। जानते थे, किससे दुश्मनी है वीरू की। किसके आँख की किरकिरी बन गया है वीरू। लेकिन उसकी पत्नी और माँ कहीं घबरा न जाएँ, इसलिए चुप रहे।
‘कहीं उन शराबवाले गुंडों ने तो मारपीट नहीं की?’ आशंकित भगुली देवी ने साथ आए युवक से पूछा।
‘सुरू, तू बता। ये तो बताएगा नहीं। वही थे न? कितनी बार कहा इससे, मत ले उन लोगों से दुश्मनी।’ उसने झट दूसरे साथी से सवाल किया।
एक महिला का अपने ऊपर हो रहे अत्याचार-अनाचार के विरुद्ध खड़े होकर लोहा लेने की प्रतिज्ञा करने की संघ%ाZ-गाथा। समाज-िवरोधी तत्त्वों की बढ़ती धींगामस्ती, मनमानी, धनलोलुपता एवं व्यसनप्रियता को उजागर करता तथा सभ्य समाज की मूकदर्शक बने रहने की प्रवृत्ति को आईना दिखाता एक प्रेणादायी उपन्यास।

Prayag Mahakumbh-2013 by Pankaj Vishesh

SKU: 9789350483084

प्राचीन काल से ही भारत में मेलों का प्रचलन रहा है। देश के कोने-कोने में विभिन्न प्रकार के मेलों का आयोजन आज भी होता है। इनमें कुछ सामाजिक मेले, कुछ धार्मिक मेले तथा कुछ मात्र वस्तुओं और पशु-पक्षियों के क्रय विक्रय तक ही सीमित हैं। परंतु कुंभ मेला उच्च स्तर की आस्‍था वाला आध्यात्मिक मेला है। इसका प्रभाव विश्‍वव्यापी है।
कुंभ मेले के आयोजन की परंपरा हजारों साल से चली आ रही है। यह वेदों के समय से ही प्रचलित है। लाखों की संख्या में वृद्ध, युवा, स्‍‍त्री-पुरुष, स्वस्‍थ, अपंग, कमजोर, सशक्‍त बेझिझक इस समागम में अध्यात्म एवं पुण्य लाभ उठाने आते हैं। कुंभ पर्व एक ऐसा अमूल्य अवसर है, जहाँ भारत के सभी बड़े धार्मिक आचार्यों, संत-महात्माओं के ज्ञान और विचारों का ज्ञान लाभ हमें मिलता है। अधिकतर श्रद्धालु यहाँ कर्म और मोक्ष के सिद्धांतों को जानने, गंगास्नान कर अपने जीवन को सार्थक करने आते हैं। कुंभ की महिमा वर्णनातीत है।
भारतीय संस्कृति एवं आध्या‌त्‍म‌िकता का कल्याणकारी संदेश देनेवाले कुंभ महापर्व की विस्‍तृत जानकारी देनेवाली एक उपयोगी पुस्तक।

Prayagraj Kumbh-Katha by Dr. Rajendra Tripathi ‘Rasraj’

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गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर प्रतिवर्ष लगनेवाले माघमेले, छह वर्ष पर होनेवाले अर्धकुंभ और बारह वर्ष पर पड़नेवाले पूर्ण कुंभ पर्वोत्सव को लक्ष्य कर तीर्थराज प्रयाग की पौराणिकता, गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों नदियों की पावनता, यहाँ के पुण्यप्रदायक प्रमुख तीर्थस्थलों, उपतीर्थस्थलों, द्वादशमाधव, परमपुण्यदायक अक्षयवट, पातालपुरी मंदिर, सरस्वती कूप, समुद्रकूप, हंसप्रपत्तन, वासुकि मंदिर, तक्षकेश्वर मंदिर जैसे प्रसिद्ध तीर्थ-कुंडों की पौराणिकता और उनके प्राचीनतम माहात्म्य पर आधारित प्रस्तुत पुस्तक ‘प्रयागराज-कुंभ-कथा’ एक ऐसी दिग्दर्शिका है, जिसमें प्रयागराज की गौरव-गाथा का मात्र स्मरण किया गया है।
यहाँ की पावन भूमि पर अवतरित होनेवाले अन्यान्य देवताओं, तपश्चर्या करनेवाले असंख्य ऋषियों, महर्षियों, मुनियों, साधु, संत, महात्माओं और आस्थावान् श्रद्धालुओं की भक्तिभावना को समुद्धृत करने का उपक्रम किया गया है, जिनकी महिमा का गुणगान पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध है।
तीर्थराज प्रयाग में कुंभपर्व पर आनेवाले शंकराचार्यों, महंतों, मठाधीशों, साधु, संतों, स्नानार्थियों और कल्पवासियों की परंपरा, उनकी दिनचर्या और उनके आकर्षक आयोजनों का दर्शनीय वर्णन भी प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन में प्रमुख रूप से प्रतिपाद्य बनाने का प्रयास किया गया है।
महाकुंभ पर एक संपूर्ण पुस्तक।

Prayog Ki Kahani Prabhat Khabar by Anuj Kumar Sinha

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इस पुस्तक के जरिए यह बताने का प्रयास किया गया है कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। अगर टीमवर्क हो, वर्क कल्चर हो, विजन हो, बेहतर लीडरशिप हो और लोगों में काम करने का जज्बा हो तो मृतप्राय संस्था को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है, उसे एक बेहतरीन संस्था बनाया जा सकता है। ‘प्रभातखबर’अखबार की 30 वर्षों की यात्रा के संदर्भ में लिखी इस पुस्तक में इसी बात का उल्लेख है कि वे कौन से कारण हैं, जिनके बल पर एक समय बंद होता प्रभात खबर (स्थानीय/क्षेत्रीय अखबार) देश के शीर्ष हिंदी अखबारों में शामिल हो गया। पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि कैसे एक संस्था को खड़ा किया जा सकता है। इसके लिए प्रभात खबर में क्याक्या प्रयोग किए गए। चाहे वह संपादकीय प्रयोग हो या गैरसंपादकीय प्रयोग। प्रभात खबर की यात्रा में साधन के अभाव में अनेक मौके आए, जब लगा कि अखबार आज बंद हो गया कल, लेकिन ये सभी आशंकाएँ गलत निकलीं। पूरी किताब में उदाहरणों के बल पर यह बताने का प्रयास किया गया है कि एक स्थानीय और क्षेत्रीय अखबार भी अपने कंटेंट और अनूठे प्रयोग केबल पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो सकता है।

Prayojan Mulak Hindi Vyakaran by Bn Pandey

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यह पुस्तक हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण है। भाषा प्रयोग की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई वाक्य होते हैं। किसी भाषा पर अधिकार के लिए उस भाषा के विविध प्रकार के वाक्यों के गठन के आधारभूत अंतर्निहित नियमों को सम्यक् रूप में समझना आवश्यक है। इस पुस्तक में हिंदी में प्रचलित सभी प्रकार के वाक्यों के गठन के आधारभूत नियमों का विभिन्न प्रकार से विवेचन-विश्लेषण कर उन्हें अधिकाधिक बोधगम्य बनाने का प्रयास किया गया है। साथ ही प्रत्येक वाक्य साँचों पर आधारित प्रचुर उदाहरण वाक्य दिए गए हैं, ताकि प्रशिक्षार्थी उन वाक्यों को बार-बार पढें, बोलें, समझें, लिखें एवं उन्हें अपने भाषा-संस्कार का अंग बना लेने का प्रयास करें। समस्त सामग्री हिंदी-अंग्रेजी दोनों में दी गई है, इसलिए यह पुस्तक निश्चित रूप से प्रशिक्षार्थियों में हिंदी भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा की वाक्य संरचनाओं की तुलनात्मक समझ विकसित करने में भी सहायक होगी। इस पुस्तक का उद्देश्य हिंदी के सभी वाक्य साँचों पर आधारित अधिक-से-अधिक वाक्यों का अभ्यास कराना है। इसलिए इस पुस्तक में भाषा ज्ञान या व्याकरण के अन्य आधारभूत पहलू, यथा—वर्णमाला, ध्वनि, उच्चारण, अक्षर, संयुक्ताक्षर, बलाघात, संगम, अनुतान, शब्द-भेद, लिंग, वचन, उपसर्ग, प्रत्यय, संधि, समास, संयुक्त क्रिया, संज्ञार्थक क्रिया, कृदंत आदि सम्मिलित नहीं किए गए हैं। उनके लिए लेखक की ‘अद्यतन हिंदी व्याकरण’ नामक दूसरी पुस्तक देखी जा सकती है।

Predictive Homoeopathy by Prafull Vijayakar

SKU: 9788173159466

‘Predictive होम्योपैथी: रोगों के दब जाने के सिद्धांत’ से संबंधित यह पुस्तक प्रतिरक्षा विज्ञान, जनन विज्ञान, भ्रूण विज्ञान, मानवीय जीव-रसायन विज्ञान और तांत्रिकीय-अंत:स्रावी विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है। यह प्रयास होम्योपैथी को बहुत पुराने लक्षण-आधारित यंत्रवत् विज्ञान अथवा रहस्यमय विज्ञान की परिसीमा से बाहर निकालने का है और इसे अत्याधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा-पद्धति के रूप में संसार से परिचित कराना है। इसमें होम्योपैथिक संसार के समक्ष ‘रोगों के दब जाने से संबंधित एक चार्ट’ और ‘रोगों के निरोग होने की दिशा’ को प्रस्तुत किया गया है, जिसे यदि अच्छी तरह समझ लिया जाए तो होम्योपैथिक प्रैक्टिस में सदियों से चली आ रही अनिश्चितता और चिकित्सा में होनेवाली विफलता समाप्त हो जाएगी।
ऐसा नहीं है कि इस सिद्धांत में कमियाँ नहीं हैं। इस पुस्तक को पढ़नेवाले होम्यो-चिकित्सकों को सलाह है कि इसे ध्यान में रखते हुए वे इसमें दिए चार्ट को अपनी दैनिक प्रैक्टिस में इस्तेमाल करें और अपने व्यक्तिगत अनुभवों से इन जाँच परिणामों की पुष्टि करें अथवा इनमें सुधार करें।
होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की कमियों को दूर करके रोगियों को शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ करानेवाली अत्यंत उपयोगी पुस्तक।

Prem Aur Shanti Ka Marg by Dadi Janki

SKU: 9789351866985

एक आध्यात्मिक गुरु या नेता वही होता है, जिसका एक रूपांतरणपरक मान हो। आप उन लोगों को पहचान सकते हैं, क्योंकि वे केवल अपने अस्तित्व द्वारा आपके जीवन में बदलाव ला पाए हैं।
दादी जानकी आत्म-ज्ञानी हैं। वे किसी के साथ झगड़ा या विवाद नहीं करतीं; वे तो चलती-फिरती शांति हैं। उनकी विशिष्टता यही है कि वे परम तत्त्व की अवस्था में रहती हैं। उस अवस्था से कोई बाहर नहीं आ सकता है, क्योंकि तब उसके पास कोई विकल्प नहीं रहता है। हम जब इस परम अवस्था में पहुँच जाते हैं, तब सबकुछ बदल जाता है।
प्रेम और शांति का मार्ग हमारे सोचने के लिए एक अनूठा रास्ता बताती है, जिसने दादी जानकी को इस लक्ष्य तक पहुँचाया है। यह एक ऐसा दर्पण है, जो हमें यह दिखाता है कि हम क्या हैं और क्या बन सकते हैं। यह सबको आगे बढ़ने में मदद करेगी।
जीवन के सत्य को उद्घाटित कर आध्यात्मिक प्रेम और शांति का मार्ग प्रशस्त करती एक विशिष्ट पुस्तक।

Prema by Premchand

SKU: 9789384344108

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी साहित्य के कालजयी कथाकार हैं। कथा-कुल की सभी विधाओं—कहानी, उपन्यास, लघुकथा आदि सभी में उन्होंने लिखा और अपनी लगभग पैंतीस वर्ष की साहित्य-साधना तथा लगभग चौदह उपन्यासों एवं तीन सौ कहानियों की रचना करके ‘प्रेमचंद युग’ के रूप में स्वीकृत होकर सदैव के लिए अमर हो गए।
प्रेमचंद का ‘सेवासदन’ उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि वह हिंदी का बेहतरीन उपन्यास माना गया। ‘सेवासदन’ में वेश्या-समस्या और उसके समाधान का चित्रण है, जो हिंदी मानस के लिए नई विषयवस्तु थी। ‘प्रेमाश्रम’ में जमींदार-किसान के संबंधों तथा पश्चिमी सभ्यता के पड़ते प्रभाव का उद्घाटन है। ‘रंगभूमि’ में सूरदास के माध्यम से गांधी के स्वाधीनता संग्राम का बड़ा व्यापक चित्रण है। ‘कायाकल्प’ में शारीरिक एवं मानसिक कायाकल्प की कथा है। ‘निर्मला’ में दहेज-प्रथा तथा बेमेल-विवाह के दुष्परिणामों की कथा है। ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास में पुनः ‘प्रेमा’ की कथा को कुछ परिवर्तन के साथ प्रस्तुत किया गया है। ‘गबन’ में युवा पीढ़ी की पतन-गाथा है और ‘कर्मभूमि’ में देश के राजनीति संघर्ष को रेखांकित किया गया है। ‘गोदान’ में कृषक और कृषि-जीवन के विध्वंस की त्रासद कहानी है।
उपन्यासकार के रूप में प्रेमचंद का महान् योगदान है। उन्होंने हिंदी उपन्यास को भारतीय मुहावरा दिया और उसे समाज और संस्कृति से जोड़ा तथा साधारण व्यक्ति को नायक बनाकर नया आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी भाषा को मानक रूप दिया और देश-विदेश में हिंदी उपन्यास को भारतीय रूप देकर सदैव के लिए अमर बना दिया।
—डॉ. कमल किशोर गोयनका

Premchand Kahani Kosh by Kamal Kishore Goenka

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प्रेमचंद जन्म-शताब्दी’ (1980-81) के अवसर पर कई राष्ट्रीय महत्त्व के कार्य हुए। इनमें मेरे द्वारा स्थापित ‘प्रेमचंद जन्म-शताब्दी राष्ट्रीय समिति’, दिल्ली के गठन के साथ ‘प्रेमचंद: विश्वकोश’ (खंड एक व दो) का प्रकाशन तथा अमृतराय द्वारा इसका लोकार्पण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस शताब्दी-वर्ष में मैंने लगभग 50 हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांक निकलवाए और मॉरीशस में शताब्दी-समारोह में जैनेंद्र के साथ मैंने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। ‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ के खंडों का हिंदी-समाज में व्यापक रूप से स्वागत किया। इसके दूसरे खंड में प्रेमचंद साहित्य का तथ्यात्मक परिचय और सारांश दिया गया था, अर्थात् उनके उपन्यासों, कहानियों, नाटकों, अनुवादों, पत्र-संग्रहों, बाल-पुस्तकों आदि की पूर्ण तथ्यात्मक जानकारी दी गई थी, जिससे पाठक उनकी प्रत्येक रचना से, चाहे वह छोटा हो या बड़ा अथवा उच्चकोटि की हो या साधारण, सभी के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकें और उनका सारांश भी वह कृति/रचना को मूल रूप में पढ़े बिना जान सकें। ‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ का हिंदी-संसार ने बड़ा स्वागत किया और आज भी उसकी माँग बराबर बनी हुई है।
‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ के दूसरे खंड में, जिसे ‘प्रेमचंद के साहित्य’ के रूप में प्रस्तुत किया था, प्रेमचंद की उपलब्ध कहानियों का तथा मेरे द्वारा खोजी गई कुछ कहानियों का भी तथ्यात्मक परिचय एवं सारांश दिया गया था, परंतु उसके बाद मुझे प्रेमचंद की कुछ और लुप्त एवं दुर्लभ कहानियाँ मिलती रहीं और वे सब ‘पे्रमचंद का अप्राप्य साहित्य’ (1988) में प्रकाशित की गईं। इस प्रकार ‘मानसरोवर’ की 203 कहानियाँ तथा अमृतराय के ‘गुप्तधन’ में प्रकाशित 56 कहानियों के बाद कुल उपलब्ध कहानियों की संख्या 299 हो गई।

Premchand Ki Lokpriya Kahaniyan by Premchand

SKU: 9789380823386

प्रेमचंद की श्रेष्‍ठ कहानियाँ-मुकेश नादान

दस-बारह रोज और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पाँवों में पीनस की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आई और आँगन में खड़ी हो गई। उसके वस्‍‍त्र फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुंदर औरत थी। उसने मुझसे पूछा, ‘‘भैया, बहूजी कहाँ हैं?’’
मैंने उसके निकट जाकर मुँह देखते हुए कहा, ‘‘तुम कौन हो, क्या बेचती हो?’’
औरत-‘‘कुछ बेचती नहीं हूँ, बस तुम्हारे लिए ये कमलगट्टे लाई हूँ। भैया, तुम्हें तो कमलगट्टे बड़े अच्छे लगते हैं न?’’
मैंने उसके हाथ में लटकती हुई पोटली को उत्सुक आँखों से देखकर पूछा, ‘‘कहाँ से लाई हो? देखें।’’
स्‍‍त्री, ‘‘तुम्हारे हरकारे ने भेजा है, भैया!’’
मैंने उछलकर कहा, ‘‘कजाकी ने?’’
स्‍‍त्री ने सिर हिलाकर ‘हाँ’ कहा और पोटली खोलने लगी। इतने में अम्माजी भी चौके से निकलकर आइऔ। उसने अम्मा के पैरों का स्पर्श किया। अम्मा ने पूछा, ‘‘तू कजाकी की पत्‍नी है?’’
औरत ने अपना सिर झुका लिया।
-इसी पुस्तक से

उपन्यास सम्राट् मुंशी पेमचंद के कथा साहित्य से चुनी हुई मार्मिक व हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह।

Premchand Ki Shreshtha Kahaniyan by Mahesh Dutt Sharma

SKU: 9789386054845

“रात को तो मैंने नहीं पहचाना, पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया। एक बार मैंने यह एक मरीज को लेकर आया था। मुझे अब याद आता है कि मैं खेलने जा रहा था और मरीज को देखने से इनकार कर दिया था। आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे अब खोज निकालूँगा और उसके पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा। वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ, उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो अब से जीवनपर्यंत मेरे सामने रहेगा।”
—इसी पुस्तक से

Premvallari by Malik Rajkumar

SKU: 9789386871961

‘‘हाँ…कर दिया माफ, माफ न करती तो क्या करती, प्रकृति ने ही मुझे तुम्हारे पास बुला भेजा है। अब मुझे ऑफिस से हफ्ते भर की छुट्टी मिल गई हैं। अपना अरुणाचल मुझे घुमाओगे न।’’ दीपेश की पत्नी ने उसे बाँहों में लेकर सहला दिया। फिर पलंग पर सहारा देकर बैठा दिया।
ओई बड़े ध्यान से दोनों का मिलन देख रही थी। दीपेश ने उससे कहा…‘‘दे मेरी पत्नी के सारे प्रश्नों का जवाब। मेरी बात सुनने की तो इसने जहमत ही नहीं उठाई।’’
दीपेश की पत्नी ने जवाब दे दिया, ‘‘नहीं, मुझे किसी से कोई जवाब नहीं चाहिए। किसी से कोई प्रश्न भी नहीं करना।’’
ओई बोल पड़ी, ‘‘मैं सिर्फ प्रेम-वल्लरी हूँ। दीपेश के सहारे फली-फूली हूँ। आप इस तरह समझें कि हमारा संबंध लिवइन रिलेशन जैसा ही था। अब मैं वह भी खत्म करती हूँ। दीपेश आपके थे, आपके हैं, आपके ही रहेंगे। प्रकृति हमसे यही चाहती थी तो मिला दिया, अब उसका हित पूर्ण हुआ तो दीपेश आपके हैं।’’
दीपेश की पत्नी ओई को इस तरह बोलता देखकर मंत्र-मुग्ध सी खड़ी रह गई। फिर बोली, ‘थैक्स ओई।’
—इसी उपन्यास से

प्रेम-समर्पण-त्याग के भावात्मक रागों की अभिव्यक्ति है यह औपन्यासिक कृति, जो पाठक के मन को झंकृत कर देगी।

Premyog by Swami Vivekananda

SKU: 9789384343026

हम देखते हैं कि वे लोग, जो इंद्रिय-भोग के पदार्थों से बढ़कर और किसी वस्तु को नहीं जानते, धन-धान्य, कपड़े-लत्ते, पुत्र-कलत्र, बंधु-बांधव तथा अन्यान्य सामग्रियों पर कैसी दृढ़ प्रीति रखते हैं; इन वस्तुओं के प्रति उनकी कैसी घोर आसक्ति रहती है! इसीलिए इस परिभाषा में वे भक्त ऋषिराज कहते हैं, ‘‘वैसी ही प्रबल आसक्ति, वैसी ही दृढ़ संलग्नता मुझमें केवल तेरे प्रति रहे।’’ ऐसी ही प्रीति जब ईश्वर के प्रति की जाती है, तब वह भक्ति कहलाती है!

Prerak Laghukathayen by Manish Khatri

SKU: 8188267430

लघुकथा गागर में सागर भर देने का कौशल है। ये लघुकथाएँ मानवीय सरोकारों व संवेदनाओं के साथ अपने लघु स्वरूप में पाठकों के हृदय तक पहुँचने का सामर्थ्य रखती हैं तथा ‘देखन में छोटे लगैं, घाव करें गंभीर’ की उक्ति को चरितार्थ करती हैं। ये कथाएँ पाठकों को न केवल पढ़ने का ही सुख देंगी बल्कि बहुत कुछ सोचने को भी विवश करेंगी। देश की युवा पीढ़ी को सदाचार व नैतिकतापूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देनेवाली ये लघुकथाएँ सांस्कृतिक आतंकवाद के अंधकारमय वर्तमान सामाजिक वातावरण में नई रोशनी का काम करती हैं।
एक पठनीय व संग्रहणीय लघुकथा-संग्रह, जो निश्चय ही पाठकों को रोचक व मनोरंजक लगेगा।

Prerak Prasang by Rashtra Bandhu

SKU: 9789380823638

प्रेरक प्रसंग—डॉ. राष्‍ट्रबंधु

जानते हो लुई पास्चर ने कैसे सफलता पाई? रोग फैलानेवाले कीटाणुओं के इंजेक्शन रोगी कीड़ों को लगाए गए। इससे माइक्रोवेव नष्‍ट किए गए। जहर-से-जहर को निष्प्रभावी बनाया गया।
राष्‍ट्र के लिए मरनेवालों का आकलन यत् किंचित‍् ही सही, लेकिन किया गया है, किंतु राष्‍ट्र के लिए जीनेवालों का आकलन हुआ ही नहीं। जब यह दुरूह, किंतु आवश्यक काम हाथ में लिया जाएगा तो हमें पता चलेगा कि साहित्य के क्षेत्र में दूसरा वल्लभ भाई पटेल कोई है तो वह है संतराम, जिसके बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी होते हुए भी कम लोगों की दिलचस्पी उसमें थी।
साख्यभाव की भक्‍ति, शत्रुओं को भी जीवित रहने की कामना, पूर्ण सुख न देने की प्रार्थना और क्षमाभाव की प्रकृति, चुटीली बात कहनेवाला, धैर्य की पराकाष्‍ठा तक निर्धनता झेलनेवाला, जिसने कभी चाकरी नहीं की, स्वदेश-प्रेमी; यह विद्वान् अगरबत्ती की तरह मात्र बयालीस वर्ष जिया, लेकिन उसकी सुवास आज भी हमें उसके बारे में अधिक जानने की प्रेरणा देती है।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रसंग अपनी सरलता, सरसता, कर्तव्य-परायणता एवं उच्चकोटि की देशभक्‍ति के रस में पगे हुए हैं। अत: विद्यार्थी, अध्यापक ही नहीं, हर आम और खास के लिए एक पठनीय पुस्तक।

Prerak Vachan Dadi Janki Ke  by Neville Hodgkinson

SKU: 9789351867807

यह पुस्तक सन् 1930 के दशक के मध्य में भारत में एक महिला के नेतृत्व में स्थापित किए गए ‘ब्रह्माकुमारी’ नामक एक आध्यात्मिक प्रशिक्षण संगठन के उपदेशों पर आधारित है। इस पुस्तक में, विशेषकर दादी जानकी के जीवन संबंधी पहलुओं और उनके विचारों का वर्णन है। दादी जानकी इस संगठन की एक संस्थापक सदस्य हैं तथा वर्तमान में विश्व स्तर पर इस संगठन का नेतृत्व कर रही हैं। एक अत्यंत कुशल एवं सुसंस्कृत ‘योगी’ दादी ने अनेक लोगों को आध्यात्मिक विकास एवं जागरूकता को समर्पित एक जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
यह पुस्तक बतलाती है कि दादी जानकी ने किस प्रकार आत्मज्ञान को अपने जीवन का आधार बनाया और कार्य में तथा दूसरों के संबंध में शांति, प्रेम, समझदारी तथा प्रसन्नता बनाए रखने के बारे में उन्होंने क्या सीखा है; और लगभग एक शताब्दी के अभ्यास के बाद अभी तक सीख रही हैं।
उनका कहना है कि ऐसा जीवन पाकर, जिसमें उन्होंने अपनी श्वास, अपने विचारों, समय और शक्ति का सदुपयोग किया है, मृत्यु का उन्हें कोई भय नहीं है। मानव जीवनमूल्यों—सदाचार, समर्पण, भक्ति, प्रेम, क्षमा आदि की प्रतिमूर्ति दादी जानकी के प्रेरक जीवन की झाँकी देनेवाली पुस्तक, जो पाठकों का भी आध्यात्मिक उन्नयन करेगी।

Prerna : Nai Soch Nai Manzil by Rajesh Aggarwal

SKU: 9789352668236

‘प्रेरणा’ पुस्तक के बारे में कुछ सोच-समझकर लिखना असंभव सा लगता है, क्योंकि इस पुस्तक में जो कविताएँ तथा विचार लिखे गए हैं, वे अकस्मात् ही घटित हुए हैं, जैसे बिन मौसम के बारिश का होना। जीवन के सफर से गुजरते हुए जो अनुभव दिल को छूते चले गए, यह पुस्तक उन्हीं विचारों की कृति है।
मैं हर पल इस प्रयास में रहता हूँ कि दूसरों को अपने संगीत से खुश करूँ और मेरे गुरु हर वक्त इतने खुश रहते हैं कि उनका संगीत उसी खुशी का विस्तार है। इसलिए फर्क तो होना ही है।
मुझे यह कहानी बहुत प्रीतिकर लगती है। जब भी हम किसी कार्य को देने की भावना से करेंगे तो उसकी खुशी कुछ और ही होगी।

Prernapunj Kiran Bedi by Tejpal Singh Dhama

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अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानेवाली, असहाय और निर्बल का संरक्षण करनेवाली, सामाजिक कुरीतियों को ध्वस्त करनेवाली, भ्रष्टाचार के विरुद्ध शंखनाद करनेवाली, किसी एक भारतीय महिला का नाम लें, तो वह होगा—वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डॉ. किरण बेदी।
अपने सेवाकाल और उसके बाद भी जो निरंतर सामाजिक उत्थान के लिए कृतसंकल्प रहीं और तनमनधन से सकारात्मक कार्य करके समाज में आदर्श और अनुकरणीय बनीं, उन डॉ. किरण बेदी की प्रेरणाप्रद जीवनगाथा है यह पुस्तक।
हमारा विश्वास है कि यह पुस्तक समाज में चेतना जाग्रत् करने, महिलाओं में सुरक्षा का भाव पैदा करने, निर्बलों में साहस पैदा करने और भ्रष्टाचारियों के दिलों में डर पैदा करने में सफल होगी।

Prithvi Ki Rochak Baaten by Sheo Gopal Misra

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फारसी लोककथा के अनुसार पृथ्वी की आयु 12,000 वर्ष; बैबीलोन ज्योतिषियों के अनुसार 20 लाख वर्ष; बाइबल के अनुसार 6,000 वर्ष बताई गई है । आर्क बिशप उशर का मत था कि पृथ्वी का जन्म 4004 ई. पू प्रात: 9.00 बजे हुआ! आधुनिक अनुसंधानों से सिद्ध हो चुका है कि हमारे ग्रह पृथ्वी की आयु 40,000 लाख वर्ष है ।
पृथ्वी को प्रारंभिक दिनों में अपनी धुरी पर चक्कर लगाने में केवल 4 घंटे लगते थे; यानि कि उस समय 2 घंटे का दिन तथा 2 घंटे की रात होती थी! धीरे- धीरे पृथ्वी का परिभ्रमण धीमा पड़ता जा रहा है । अब पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने में 24 घंटे का समय लगता है; लेकिन एक समय ऐसा होगा जब 1 ,200 घंटे का दिन होगा!
तो क्या एक समय ऐसा भी आएगा जब पृथ्वी घूमना बंद कर देगी और पृथ्वी के आधे हिस्से में दिन तथा आधे में सदैव रात ही रहेगी?
परंतु पृथ्वी पर आज भी एक स्थान ऐसा है जहाँ कम-से-कम एक दिन अंधकार (रात) नहीं रहता!
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक समय चंद्रमा अपनी कील पर घूमना बंद कर देगा । उस स्थिति में समुद्र में ज्वार उठने बंद हो जाएँगे! यह तो आप जानते हैं कि समुद्र में ज्वार- भाटे आते हैं; पर शायद आपको यह न ज्ञात हो कि पृथ्वी में भी इस प्रकार के ज्वार उत्पन्न होते हैं!
पृथ्वी की ऐसी ही रोचक तथा वैज्ञानिक जानकारी के लिए प्रस्तुत है पुस्तक ‘ पृथ्वी की रोचक बातें ‘ ।

Prof. Bal Apte : Vyaktitva Evam Vichar by Bal Apte

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‘प्रो. बाल आपटे : व्यक्तित्व एवं विचार’ पुस्तक के निमित्त से उनकी स्मृतियों को हृदयगत करने का सुअवसर पाकर संपादक मंडल धन्यता का अनुभव कर रहा है। दीर्घकाल तक उनके साथ रहते हुए जिस रूप में हम उन्हें देख पाए, बिल्कुल उसी रूप में सभी आप्त-मित्रों ने भी उन्हें पाया है। वही अपनापन, वही निष्ठा, वही लगन सभी ने बालासाहब की कृतियों में महसूस की। कठिन प्रसंगों में, संघर्ष के क्षणों में उन्होंने जिस प्रकार अपने समस्त सहयोगियों को बल प्रदान किया, यह भाव उनके संपर्क में आए प्रायः सभी का रहा है।
प्रो. आपटेजी चार दशकों तक छात्रों के सामाजिक दायित्व के बारे में विशुद्ध वैचारिक मार्गदर्शन लगातार करते रहे, किंतु बदलती युवा मानसिकता तथा समसामयिक राष्ट्रीय तथा वैश्विक वायुमंडल को उन्होंने कभी नजरअंदाज नहीं किया। उसी दायित्व की भूमिका को संगठनात्मक प्रखर व्यवहार देने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया। नई पीढ़ी के मानस को ठीक पहचानते हुए उसके नवीन प्रयोगों को प्रोत्साहन देने की उदारता बालासाहब में थी। इतना ही नहीं, उन प्रयोगों की सार्थक यशस्विता के लिए कठोर परिश्रम करने का धैर्य भी उनमें था। यही प्रो. बाल आपटे के व्यक्तित्व एवं विचार की महानता थी।

Pt. Deendayalji : Prerak Vichar by Dr. Ravindra Agarwal

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महात्मा गांधी ने भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के संघर्ष के साथ ही देश की सामाजिक स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता पर गहन चिंतन और मनन प्रारंभ कर दिया था। इस संबंध में उन्होंने अपने आश्रमों में निरंतर प्रयोग किए और उनके परिणामों के आधार पर जन-सामान्य को इन्हें अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनके सब प्रयोग स्वदेशी संसाधनों व तकनीक पर आधारित थे। उनका मानना था कि स्वदेशी के बल पर ही देश का जनमानस आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार से यह अपेक्षा थी कि वह सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता के लिए गांधीजी के विचारों को केंद्र में रखकर अपनी नीतियाँ बनाएगी। परंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो न सका। स्वतंत्रता के बाद इस विषय पर पं. दीनदयाल उपाध्याय ने गहन चिंतन व मनन कर ‘एकात्म मानववाद’ का कालजयी आर्थिक दर्शन दिया। उन्होंने समय-समय पर देश के सम्मुख उपस्थित सामाजिक, राजनीतिक व विदेश नीति संबंधी विषयों पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उनके इन विचारों को सूत्र रूप में संकलित कर ‘पं. दीनदयालजी : प्रेरक विचार’ पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

Pt. Suryanarayan Vyas : Pratinidhi Rachnayen by Rajshekhar Vyas , Prabhakar Shrotriya

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साहित्य, संस्कृत, ज्योतिष, इतिहास, पुरातत्त्व और व्यंग्य के अंतर-राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् पद्मभूषण
पं. सूर्यनारायण व्यास ने उज्जयिनी के गौरवशाली अतीत को पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए अपने जीवन की साँस-साँस समर्पित कर दी। विक्रम के शौर्य और कालिदास की सौंदर्य कल्पना को युग की नई चेतना से संयोजित करने के लिए उन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया। विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्तिमंदिर और कालिदास स्मृतिमंदिर उनके सपनों के साकार ज्योतिर्बिंब हैं।
पंडितजी के चुने हुए निबंधों का यह संकलन उनकी साधना, शोध-प्रवृत्ति, संघर्ष, उल्लास और सर्जनात्मक प्रतिभा का संपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है। इन निबंधों में एक साधक की सात दशक की सांस्कृतिक यात्रा के पद-चिह्न अंकित हैं। भारतीय संस्कृति, इतिहास, साहित्य, ज्योतिष आदि विभिन्न आयामों का व्यासजी ने मौलिक ढंग से, नई सूझ-बूझ के साथ पर्यवेक्षण किया है। वे एक साथ ज्योतिर्विद् तत्त्व-चिंतक, इतिहास-संशोधक, साहित्यकार, पत्रकार, कर्मठ कार्यकर्ता, उग्र क्रांतिकारी, हिमशीतल मनुष्य और आत्मानुशासित व्यक्ति थे।
अखिल भारतीय कालिदास समारोह के जनक और विक्रम विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. व्यास अनेक विधाओं के विदग्ध विद्वान् थे। उनकी रचनावली आए तो एक-दो नहीं 25 खंड भी कम पड़ें, मगर गागर में सागर उनकी सभी विधाओं का रसास्वादन है—उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का यह संचयन।

Pul Tootane Se Pahle by Vishnu Prabhakar

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हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवृत्त हुए बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध ‘ उन्होंने पढ़ डाली थीं ।
उनकी प्रथम कहानी नवंबर 1931 के ‘हिंदी मिलाप ‘ में छपी । इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं-‘ परिवार का स्वामी जुआ खेलता है, शराब पीता है, उस दिन दिवाली का दिन था । घर का मालिक जुए में सबकुछ लुटाकर शराब के नशे में धुत्त दरवाजे पर आकर गिरता है । घर के भीतर अंधकार है । बच्चे तरस रहे हैं कि पिताजी आएँ और मिठाई लाएँ । माँ एक ओर असहाय मूकदर्शक बनकर सबकुछ देख रही है । यही कुछ थी वह मेरी पहली कहानी ।

सन् 1954 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘ धरती अब भी घूम रही है ‘ काफी लोकप्रिय हुई । लेखक का मानना है कि जितनी प्रसिद्धि उन्हें इस कहानी से मिली, उतनी चर्चित पुस्तक ‘ आवारा मसीहा ‘ से भी नहीं मिली ।
श्री विष्णुजी की कहानियों पर आर्यसमाज, प्रगतिवाद और समाजवाद का गहरा प्रभाव है । पर अपनी कहानियों के व्यापक फलक के मद‍्देनजर उनका मानना है कि ‘ मैं न आदर्शों से बँधा हूँ न सिद्धांतों से । बस, भोगे हुए यथार्थ की पृष्‍ठभूमि में उस उदात्त की खोज में चलता आ रहा हूँ । .झूठ का सहारा मैंने कभी नहीं लिया । ‘
उदात्त, यथार्थ और सच के धरातल पर उकेरी उनकी संपूर्ण कहानियों हम पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं । ये कहानियाँ मनोरंजक तो हैं ही, नव पीढ़ी को आशावादी बनानेवाली, प्रेरणादायी और जीवनोन्मुख भी हैं ।

Pulwama Attack by Vikas Trivedi & Smita Agarwal

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बीते सात वर्षों में हमारे देश में जो बड़ी घटनाएँ घटीं, उन्होंने न सिर्फ देश के लोगों का, बल्कि दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा है। राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीति से जुड़ी घटनाओं और तमाम हलचलों के दौर में शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा हो, जिसकी बात जनसामान्य ने अपनी दैनिक वार्त्ताओं में न की हो। इन घटनाओं में दुश्मन देश की क्रूरता भी दिखी तो देश के जाँबाज वीरों की वीरता भी; शूरवीरों के बलिदान ने देश को झकझोरा भी और बदले में हुई काररवाई ने गर्व करने के क्षण भी दिए।
पुलवामा में हमारी सेना के 40 जवानों पर हुए हमले ने देश को झकझोरकर रख दिया था। विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी के लिए हर देशवासी प्रार्थना कर रहा था। देश की सीमाओं पर आए दिन पाकिस्तान की ओर से कोई कायराना हरकत की जाती थी और भारत की ओर से उसका कड़ा जवाब भी बराबर दिया जाता रहा है।
पुलवामा और उसके इर्द-गिर्द हुई घटनाओं के बाद भारत ने जवाबी काररवाई में बालाकोट में आतंकियों के बेस को नेस्तनाबूत कर दिया और उसके बाद जम्मू-कश्मीर को संवैधानिक राज्य का दर्जा देते हुए धारा 370 को हटाया। ये सभी वे बड़ी घटनाएँ थीं जिनकी उम्मीद देशवासियों को भारत सरकार से थी।
ऐसी ही तमाम घटनाओं का संकलन है ‘पुलवामा अटैक’, जिसे विकास त्रिवेदी और स्मिता अग्रवाल ने वास्तविक घटनाओं को काल्पनिक आधार पर प्रस्तुत किया है।

Punarjanma by Dr. Walter Semkiw, M.D.

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पुनर्जन्म से संबंधित मामलों में दुनिया भर में डॉ. वाल्टर सेम्किव को निर्विवादित रूप से सर्वोच्च विशेषज्ञ माना जाता है। इस पुस्तक में पुनर्जन्म से संबंधित बेशुमार लोकप्रिय मामलों को बेहद सरल सारांशों के साथ संकलित किया गया है। पुस्तक में लेखक ने पुनर्जन्म के सिद्धांतों की भी बहुत सरल ढंग से समीक्षा की है। बताया गया है मुखाकृति, व्यक्तिगत गुणावगुण, पसंद-नापसंद, प्रतिभा और आदतें भी आश्चर्यजनक ढंग से एक जीवन के बाद दूसरे जीवन में भी साथ नहीं छोड़तीं। डॉ. सेम्किव ने विश्वविख्यात परा-मनोवैज्ञानिक और पुनर्जन्म विज्ञान के दिग्गज इयान स्टीवेंसन द्वारा किए गए शोध का जिक्र करते हुए यह भी बताया है कि जीवन भर साथ निभानेवाली अनेक आत्माएँ एक साथ पुनर्जन्म हासिल कर लेती हैं। कई मामलों में स्त्रियाँ पुरुष बन जाती हैं और पुरुष स्त्री। इस पुस्तक में क्सेनोग्लॉसी (परा-भाषा) मामलों का भी जिक्र है, जिनमें पाया गया कि मरने के बाद भी पिछले व्यक्तित्व का नाश नहीं होता और कई लोगों में ऐसी अद्भुत क्षमताएँ आ जाती हैं, जो उन्होंने कहीं सीखीं ही नहीं। देश, जातियाँ और धर्म भी पुनर्जन्मों के समय बदलते रहते हैं। डॉ. सेम्किव कहते हैं कि पुनर्जन्म मामलों की इस जानकारी से मानवता को संकीर्ण सोच से ऊपर उठने की प्रेरणा मिलेगी।
हमेशा कौतूहल और उत्सुकता का विषय रहे ‘पुनर्जन्म’ पर एक व्यावहारिक और प्रामाणिक पठनीय पुस्तक।

Punashcha by L.M. Singhvi

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साहित्य अमृत ‘ में प्रकाशित डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के संपादकीय लेखों की अनन्यता, वैचारिक गहराई, ज्ञान का अपार विस्तार विश्‍लेषण की बारीकी और तटस्थ दृष्‍ट‌ि से अजस्र विषयों का विवेचन उनके भारत मन से हमारा परिचय कराता है । एक ओर विद्यानिवास मिश्र, अमृता प्रीतम, विष्णुकांत शास्त्री, के.आर नारायणन आदि के स्मृति चित्र हैं तो दूसरी ओर प्रेमचंद, माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि हिंदी के मूर्धन्य रचनाकारों का संक्षिप्‍त मगर बहुत ही सार्थक चित्रांकण है । डॉ. सिंघवी के इन संपादकीय लेखों में हमारी विरासत की अवहेलना की चिंता है; विश्‍व साहित्य की कल्पना है; भाषा, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता को हमारी अस्मिता की पहचान के रूप में स्वीकृति है और अमर्त्य सेन के हवाले से भारतीयता के विस्तृत विमर्श की स्वाधीन अभिव्यक्‍त‌ि है; मूल्यों के मूल्य को समझने की कोशिश है; हिंदी की संस्कृति का अभिज्ञान है; सगुण भक्‍त‌ि के व्याज से रति-विलास की आध्यात्मिकता का कथन है और आजादी के साठ वर्षो की हमारी साझी एकता के सपने की सस्पंदना का उल्लेख है । इन संपादकीयों में ज्ञान की विद्युत् छटा हमें चकाचौंध करती है और साथ ही एक स्थितप्रज्ञ के भारत-विषयक अद‍्भुत वैचारिक वैविध्यवाद की गहराई में जाने का निमंत्रण हमें अभिभूत करता है ।
पुनश्‍च पुन: -पुन: पढ़ने योग्य डी. सिंघवी के संपादकीय लेखों का एक ऐसा संकलन है, जो ज्ञान के क्षितिज की अपरिसीम विस्तृति से हमें जोड़ता है ।
-इंद्र नाथ चौधुरी

Punjabi Ki Lokpriya Kahaniyan by Phulchand Manav

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पंजाबी गीतों, कविताओं के साथ भारत से बाहर भी विदेशों तक पंजाबी संस्कृति-साहित्य की धूम है। कहानी के क्षेत्र में पंजाबी रचनाकार विदेशों में, पंजाब से बाहर अन्य कई प्रांतों में पाकिस्तान तक छाए हुए हैं। उपन्यास, कथा के लिए पंजाबी कहानीकारों में अमृता प्रीतम, करतारसिंह दुग्गल, बलवंत गार्गी, देवेंद्र सत्यार्थी, कुलवंत सिंह विर्क, महेंद्र सिंह सरना, विरदी, दलीप कौर टिवाणा और जगजीत वराड़ सरीखे प्रतिभा संपन्न हस्ताक्षरों ने अपने कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वहीं मोहन भंडारी, प्रेम प्रकाश, रघुबीर ढंड, जसवंतसिंह कँवल, सेखो, गुरमुखसिंह मुसाफिर और गुरबशसिंह प्रीतलड़ी के नाम की भी अच्छी-खासी धूम रही है। देहाती, शहराती पंजाबी संस्कृति, सभ्यता का सटीक, सजीव चित्रण इनकी कहानियाँ प्रस्तुत करती हैं तो भाषा, शैली और शिल्प के माध्यम से भी इन्हीं समर्थ कथा हस्ताक्षरों ने सफलता की बुलंदी को छुआ है।
पंजाबी कहानी ‘पिंजर’, ‘जुलूस’, ‘मंगो’, ‘साझा’, ‘हलवाहा’, ‘तोताराम’, हो अथवा ‘डैडलाइन’, ‘ओवर टाइम’, ‘कंचन माटी’, ‘सच मानना’ के साथ ‘हलवाहा’ पिछले एक सौ साल से ऊपर की निरंतर कथा यात्रा में लोकप्रियता के स्तर पर इन कहानियों ने अपने स्पेस का एहसास करवाया है। ‘रंग में भंग’, ‘बागी की बेटी’, ‘सोया हुआ साँप’, ‘शान-ए-पंजाब’ हो या ‘कहवाघर की सुंदरी’, इन पंजाबी कथाओं ने अपना अस्तित्व जतलाकर पाठकों को अपने हक में खड़ा किया है। ‘परी महल की चीखें’, ‘आवाज आवाज है’, हो या ‘जोगासिंह का चौबारा’, किसी भी अन्य भारतीय भाषा की टकर में ये इकीस सिद्ध हुई हैं। पाठक वर्ग युवा हो या प्रौढ़, किशोर अथवा वयोवृद्ध, हर आयु के रसज्ञ के लिए ये कहानियाँ पठनीय हैं।

Punya Bhoomi Bharat by Sudha Murthy

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पुण्यभूमि भारत
सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती सुधा मूर्ति के ये प्रेरक संस्मरण भारतीय संस्कृति, जीवन-मूल्यों और संस्कारों से हमारा परिचय कराते हैं। भावपूर्ण शैली और बेहद पठनीय ये अनुकरणीय प्रसंग जहाँ हमें अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण कराते हैं, वहीं उज्ज्वल भविष्य की ओर हमें उन्मुख करते हैं। यही वे मूल्य हैं जो भारत को ‘पुण्यभूमि’ बनाते हैं।