Bharatiya Shiksha Ka Swaroop by Dinanath Batra

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नानाथ बत्राजी भारतीय शिक्षा के लिए एक समर्पित योद्धा की तरह आजीवन संघर्ष करते रहे हैं। इस लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए महान् चिंतक ही नहीं बल्कि देश के सम्मान की खातिर उन्होंने शिक्षा एक्टिविस्ट के रूप में सरकार द्वारा प्रायोजित पाठ्य-पुस्तकों एवं नीतियों में दरशाई गई मनोवृत्ति और विषयवस्तु पर सवाल उठाए।
एक चिंतक के रूप में उन्होंने सभी स्तरों पर तथा सभी आयामों में समसामयिक शिक्षा प्रणाली में मौजूद विसंगतियों के बारे में गहन विचार किया है। लंबे समय तक इनकी सोच, विचार-विमर्श महत्त्वपूर्ण देश की दीर्घ इतिहास, शैक्षिक विचारधारा, परंपरा एवं प्रक्रियाओं पर फोकस है, जिनकी जानबूझकर उपेक्षा की जाती रही है। बत्राजी भारतीय विचारधारा से शैक्षिक पहलू को पुन: जोड़ते हुए शिक्षा के स्वरूप को बदलने की दिशा में पूर्ण निष्ठा से प्रयासरत हैं।
यह पुस्तक विद्वान् लेखक के वर्षों की विचारणा शक्ति तथा अथक संघर्ष का दस्तावेज है। इस पुस्तक में भारत में शिक्षा के विभिन्न पहलुओं की पहचान करके विचार-विमर्श करने के साथ-साथ उनका विश्लेषण किया गया है। इनमें भारतीय शिक्षा के स्वरूप, चरित्र-निर्माण, लड़कियों की शिक्षा, व्यक्तित्व विकास, भारतीय विज्ञान, भारतीय गणित, प्रोफेशनल संस्थाओं में मूल्य-शिक्षण, विचारों का प्रदूषण, कुछ महान् शिक्षक, ब्रिटिश काल से पूर्व भारतीय शिक्षा, वैकल्पिक शिक्षा, मूल्यांकन और अत्यंत रोचक उपसंहार—शिक्षा की आत्मकथा जैसे विविध विषयों पर विचार व्यक्त किए गए हैं। आशा है, शिक्षा-प्रशासक, अध्यापक, विद्यार्थी तथा सामान्य जन यह पुस्तक पढ़ेंगे, क्योंकि जरूरी है कि व्यापक स्तर पर आम जनता की शिक्षा विषयक अनवरत एवं महत्त्वपूर्ण परिचर्चा में भागीदारी हो।

Bharatiya Videsh Neeti by J N Dixit

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प्रस्तुत पुस्तक में भारत के पूर्व विदेश सचिव श्री जे.एन. दीक्षित द्वारा पचास वर्षो की अवधि के विस्तृत फलक पर भारतीय विदेश नीति के विभिन्न चित्र सशक्‍त तथा प्रभावशाली ढंग से उकेरे गए हैं । लेखक ने 1947 को भारतीय विदेश नीति का आरंभ काल माना है । इन्होंने बताया है कि पं. जवाहरलाल नेहरू ने भारत की विदेश नीति का मूलाधार रखा तथा इसके बाद उनके उत्तराधिकारियों ने इस दिशा में किस प्रकार से व्यापक और महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

Bharatvarsh Ki Sarvang Swatantrata by Narender Sehgal

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परम वैभव के लिए
सर्वांग स्वतंत्रता
अखंड भारत भारतीयों के लिए भूमि का टुकड़ा न होकर एक चैतन्यमयी देवी भारतमाता है। जब तक भारत का भूगोल, संविधान, शिक्षाप्रणाली, आर्थिक नीति, संस्कृति, समाज-रचना, परसा एवं विदेशी विचारधारा से प्रभावित और पश्चिम के अंधानुकरण पर आधारित रहेंगे, तब तक भारत की पूर्ण स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगता रहेगा। स्वाधीन भारत में महात्मा गांधीजी के वैचारिक आधार स्वदेश, स्वदेशी, स्वधर्म, स्वभाषा, स्वसंस्कृति, रामराज्य, ग्राम स्वराज इत्यादि को तिलांजलि दे दी गई। स्वाधीन भारत में मानसिक पराधीनता का बोलबाला है। देश को बाँटने वाली विधर्मी/विदेशी मानसिकता के फलस्वरूप देश में अलगाववाद, अतंकवाद, भ्रष्टाचार, सामाजिक विषमता आदि पाँव पसार चुकी हैं। संघ जैसी संस्थाएँ सतर्क हैं। परिवर्तन की लहर चल पड़ी है। देश की सर्वांग स्वतंत्रता अवश्यंभावी है।
गांधीजी की इच्छा के विरुद्ध भारत-विभाजन के साथ खंडित राजनीतिक स्वाधीनता स्वीकार करके कांगे्रस का सारा नेतृत्व सासीन हो गया। दूसरी ओर संघ अपने जन्मकाल से आज तक ‘अखंड भारत’ की ‘सर्वांग स्वतंत्रता’ के ध्येय पर अटल रहकर निरंतर गतिशील है।

Bhasha Ki Khadi by Om Nishchal

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भाषा अभिव्यक्ति का आयुध है, जिसके बिना हम न तो सार्थक बातचीत कर सकते हैं, न लिख-पढ़ सकते हैं। हिंदी-हिंदुस्तानी जिसकी नींव कभी महात्मा गांधी ने रखी, जिसे देश भर में प्रचारित-प्रसारित किया, स्वराज पाने का अचूक हथियार बनाया, वह भारत की राजभाषा बनने के बावजूद अपने हक से वंचित रही है। अरसे तक औपनिवेशिक गुलामी ने हमारे मनोविज्ञान को ऐसी भाषाई ग्र्रंथियों से भर दिया है, जिसमें हमने आजादी के बाद धीरे-धीरे अंग्रेजियत ओढ़ ली और भारतीय भाषाओं समेत हिंदी-हिंदुस्तानी से एक दूरी बनानी शुरू कर दी।
किंतु जब-जब हम में राष्ट्रप्रेम जागता है, हम स्वराज्य, हिंदी-हिंदुस्तानी व भारतीय संस्कृति के पन्ने उलटने लगते हैं। कहना न होगा कि भारतीय भाषाओं के बीच पुल बनाने वाली हिंदी आज देश में ही नहीं, पूरे विश्व में किसी-न-किसी रूप में बोली व समझी जाती है। एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्रफल हिंदीभाषियों का है, जो देश-देशांतर में फैला है। प्रवासी भारतवंशियों का समुदाय भी हिंदी का हितैषी रहा है तथा इस समुदाय ने विभिन्न देशों में न केवल भाषा का वाचिक स्वरूप बचाकर रखा है, भारतीय संस्कृति के ताने-बाने को भी सुरक्षित व संवर्धित किया है।
‘भाषा की खादी’ जहाँ हिंदी-हिंदुस्तानी के सहज स्वरूप की बात करती है, वहीं संस्कृति के उन धागों के बारे में भी बतियाती है, जिनसे हमारे पर्वों, त्योहारों, बसंत, फागुन व प्रणय के मौसमी अहसासों के ताने-बाने जुड़े हैं। नए बौर की गंध से मह-मह करता फागुन कभी-कभी शब्दों की पालकी पर आरूढ़ होकर आता है। ‘भाषा की खादी’ में यह मह-मह और मंद-मंद बहती पुरवैया के झकोरों की गूँज सुनाई देगी, इसमें संदेह नहीं।

Bhatkav Ke 67 Varsh by Satish Chandra Mittal

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प्रस्तुत ग्रंथ ‘भटकाव के 67 वर्ष : कुछ मुद्दे’ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् से 2014 ई. तक की कुछ प्रमुख घटनाओं तथा राष्ट्रीय समस्याओं का ऐतिहासिक संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक विवेचन है। इसमें भारतीय नेतृत्व तथा उसके विभिन्न क्रियाकलापों का वर्णन तथा उनकी सोच तथा उनके व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है।
ग्रंथ में कुछ प्रमुख मुद्दों की आलोचनात्मक समीक्षा की गई है। इसमें मजहब के आधार पर निर्मित भारत विभाजन से अपनी असीम पीड़ा तथा उससे उत्पन्न अनेक समस्याओं, भारतीय संस्कृति तथा अतीत से कटकर पाश्चात्य मॉडल पर आपा-धापा में बने भारतीय संविधान, भारतीय संविधान सभा में उस पर विशद विवाद तथा चर्चा, पाश्चात्य दृष्टि पर बनी शिक्षा-नीति, देशीय भाषा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व तथा पाठ्य पुस्तकों में विकृतियाँ, कश्मीर में की गई असभ्य भूलों के साथ, भारत-पाकिस्तान के चार प्रमुख युद्धों में भारतीय सेनाओं की शानदार विजयों के साथ, चीन के साथ युद्ध में शर्मनाक हार तथा भारतीय राजनीति के प्रमुख सूत्रों में भारतीय मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने की बजाय, चुनाव की वोट की राजनीति से वशीभूत हो, मुसलिम तुष्टीकरण की नीति तथा उसके विभिन्न स्वरूपों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। निश्चय ही यह ग्रंथ गत 67 वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में हुई हलचलों तथा भारत के राजनैतिक नेतृत्व के भटकाव, अलगाव, परस्पर टकराव तथा ठहराव की अनिर्णायक स्थिति की अवस्था, अवलोकन करने में सहायक होगा।

Bhautiki Ki Rochak Baaten   by Sheo Gopal Misra

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प्रसिद्ध साहित्यकार वैद्य गुरुदत्त ने अपने ‘ अंतरिक्ष में ‘ उपन्यास में कल्पना की है कि रात का अँधेरा दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा चंद्रमा बनाया, जो रात भर सूर्य जैसा, पर शीतल, उजाला देता है । यह कल्पना अभी तक तो फलीभूत नहीं हुई; लेकिन संभव है, अगले कुछ दशकों में आदमी चंद्रमा की सैर के लिए जा सकेगा । घर बैठे आप संसार-दर्शन कर सकते हैं, किसी देश में बसे अपने संबंधी से बात कर सकते हैं-टेलीविजन और टेलीफोन के माध्यम से । वर्षों में पूरी न होनेवाली दूरी को आप चंद घंटों में हवाई जहाज के माध्यम से तय कर सकते हैं ।
ये सभी चमत्कार या भौतिक उपलब्धि भौतिक विज्ञान की देन हैं । हमारे जीवन का प्रत्येक कार्यकलाप भौतिक विज्ञान की उपलब्धियों के माध्यम से नियंत्रित है ।
भौतिक विज्ञान ने ब्रह्मांड के जिन रहस्यों को जिस-जिस प्रकार से उद‍्घाटित किया है, उसका इतिहास अत्यंत रोचक है । भौतिक विज्ञानियों ने नाप-जोख से लेकर गुरुत्वाकर्षण, गति, ऊष्मा, प्रकाश, विद्युत् चुंबकत्व तथा ध्वनि आदि से संबंधित विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है । दैनिक जीवन में ऐसी अनेक घटनाएँ अनुभव में आती हैं, जिनके पीछे भौतिकी के नियम कार्यशील हैं । भौतिकी की ऐसी ही रोचक बातों का सचित्र वर्णन् प्रस्तुत किया गया है-‘ भौतिकी की रोचक बातें ‘ पुस्तक में । पुस्तक विद्यार्थियों, अध्यापकों के साथ-साथ जनसाधारण के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी ।

Bhavishya Ka Bharat by Nitin Gadkari

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हमारे समाज के हर वर्ग की वैधानिक आकांक्षाएँ हैं; लेकिन इन्हें पूरा कर पाने के लिए एक ऐसी समग्र सोच की जरूरत है, जो राष्ट्रहित को ध्यान में रखती हो। व्यक्तियों का और समाज का सद्भावपूर्ण विकास पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का प्रमुख गुण है, जिसे भाजपा अपना मार्गदर्शक दर्शन मानती है।
भारत के वैकल्पिक आर्थिक मॉडल की पहली जरूरत के रूप में कृषि और ग्रामीण विकास की व्यवस्थित अनदेखी को बंद करना चाहिए। किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को कम लागत एवं आसान शर्तों पर पूँजी उपलब्ध करानी चाहिए।
जल संसाधनों का प्रबंध कर पाने की हमारी अयोग्यता से सूखा और बाढ़ की स्थिति गंभीर हो रही है। दूसरी ओर, पानी के फिर से इस्तेमाल कर पाने की योजनाओं की कमी के कारण हम औद्योगिक विकास और बिजली उत्पादन के अवसर खो रहे हैं। जल प्रबंधन के लिए आवश्यक है पानी के फिर से इस्तेमाल की नई विधियों की खोज।
बिजली उत्पादन के विकल्पों की गंभीरता से खोज आवश्यक है ताकि बिजली संकट खत्म हो सके। ऐसी दीर्घकालीन योजना बनानी चाहिए, जिसमें ऊर्जा वैकल्पिक स्रोतों को सही महत्त्व दिया जाए।
जमीन से जुड़े वरिष्ठ राजनेता श्री नितिन गडकरी के चिंतनपरक विचारों का संकलन जिसमें विकसित भारत के स्वप्न को यथार्थ में बदलने का एक व्यावहारिक ब्यूप्रिंट है। ग्रामीण और शहरी में समान रूप से विकास का इंजन गतिशील हो, प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रबंधन हो, हरित ऊर्जा का व्यापक प्रचार हो—इन सबका बहुत वस्तुपरक आकलन प्रस्तुत है ‘भविष्य का भारत’ में।

Bhavishya Mein Business Karne Ke Success Mantra by Ram Charan

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‘भविष्य में बिजनेस करने के सक्सेस मंत्र’ ऐसा गेम प्लान है, जिसके द्वारा आप इस अस्पष्टता, अस्थिरता व जटिलताओंवाले युग में भी, जहाँ प्रत्येक व्यापार व नेतृत्व नई व अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना कर रहा है, सफलता हासिल कर सकते हैं।
विश्वप्रसिद्ध मैनेजमेंट गुरु रामचरण ने विश्व भर की कंपनियों व प्रमुखों के साथ काम करने से मिले अगाध अनुभव द्वारा आपकी सहायता हेतु कुछ जाँचे-परखे व्यावहारिक नियम बनाए हैं—
● ऐसी अंतर्दृष्टि व सूक्ष्मदृष्टि तीक्ष्णता का निर्माण करें, जिससे आप इन शक्तियों को किसी भी अन्य व्यक्ति से पहले पहचान सकें, विशेष रूप से उन लोगों की पहचान करें, जो परिवर्तन के उत्प्रेरक बनकर कंपनी या उद्योग में आद्योपांत बदलाव लानेवाले हों।
●अनिश्चितता में अवसर को देखने की मानसिकता बनाएँ।
● कम जानकारी होने या न होने के बावजूद आगे बढ़ने के नए मार्ग पर डटे रहें, जिससे आप अपने प्रतिस्पर्धियों से पहले ही अपनी चाल चल सकें।
● अपनी कंपनी के विकास में अवरोध पैदा करनेवाली बाधाओं को दूर करें।
● ये समझें कि कब आगे बढ़ना है और कब अल्पावधिक व दीर्घावधिक संतुलन बनाए रखना है।
● लोगों, प्राथमिकताओं, निर्णायक शक्तियों, बजट व पूँजीगत बँटवारे तथा बाजार के नवीनतम हालात दरशानेवाले संकेतकों के बीच सामंजस्य बैठाकर अपनी संस्था को दक्ष व प्रगतिशील बनाएँ।
कुल मिलाकर यह पुस्तक आपके सामने स्पष्ट व सीधी चुनौती रखती है कि या तो आप वृद्धिशील लाभ या सुरक्षात्मक रहते हुए विरासती जगत् में शामिल रहें या आक्रामक होते हुए अपनी एक नई दुनिया बनाएँ और पारंपरिक खिलाडि़यों को पीछे छोड़ते हुए तेजी से आगे बढ़ जाएँ।

Bheegi Ret by Ravi Sharma

SKU: 9789353222178

हर लहर से पनपती
बनती-बिगड़ती परछाइयाँ
बहती हुई खुशियाँ
या फिर सिमटी हुई तनहाइयाँ
कभी लम्हों से झाँकते वो
हँसी के हसीं झरोखे
कभी खुद से ही छुपाते
खुद होंठों से आँसू रोके
कभी दिलरुबा का हाथ पकड़ा
तो कभी माँ की उँगली थामी
कभी दोस्तों से वो झगड़ा
तो कभी चुपके से भरी हामी
कभी सवाल बने समंदर
तो कभी जवाब हुआ आसमान
कभी दिल गया भँवर में
तो कभी चूर हुआ अभिमान
कभी सपने थे व़फा के
तो कभी ज़फा से थे काँटे
कभी कमज़र्फ हुई धड़कन
तो कभी सबकुछ ही अपना बाँटे
कभी बिन माँगे मिला सब
तो कभी माँग के भी झोली खाली
कभी भगवान् ही था सबकुछ
तो कभी आस्था को दी गाली
कभी सबकुछ था पास खुद के
पर दूसरों पर नज़र थी
कभी सबकुछ ही था खोया
फिर भी नींद बे़खबर थी
कभी ख्वाब ही थे दुनिया
तो कभी टूटे थे सारे सपने

कभी अपने बने पराये
तो कभी पराये बने थे अपने
धड़कता हुआ कोई दिल था
या फिर सोया हुआ ज़मीर
फाके था रोज ही का
या था बिगड़ा हुआ अमीर
आँखें पढ़ी थीं सबकी
और पढ़े थे सभी के चेहरे
कभी किनारे पे खड़े वो
कभी पाँव धँसे थे गहरे
हज़ारों को उसने देखा
ठहरते और गुज़रते
कभी मर-मर के जीते देखा
कभी जी-जी के देखा मरते
हर इनसान के कदमों के
गहरे या हलके निशान
हर निशान में महकती
किसी श़ख्स की पहचान
कभी ढलकते आँसू
तो कभी इश़्क की रवानी
कभी मासूमियत के लम्हे
तो कभी तबीयत वो रूहानी
कहीं नाराज़गी किसी से
तो कभी यादें वो सुहानी
बचपन था किसी का
था बुढ़ापा या थी जवानी
न मिटेगी कभी भी
किसी पल की भी निशानी
सहेजी है उन सभी की
भीगी रेत ने कहानी!

Bhojpuri Filmon Ka Safarnama by Raviraj Patel

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हिंदी के बाद शायद भोजपुरी ही एक ऐसी भाषा है, जो हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा बोली जाती है। इसलिए मैं अपनी ओर से विशेष बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि और लोग भी भोजपुरी सिनेमा को प्रोत्साहित करेंगे। भोजपुरी सिनेमा को सबसे ज्यादा प्रोत्साहन भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू डॉ. राजेंद्र प्रसादजी से मिला था। उसी क्रम में हमारे सिनेमा-जगत् के बहुत ही नामी हस्ती नजीर हुसैन साहब से भोजपुरी सिनेमा को विशेष और बहुमूल्य योगदान प्राप्त हुआ था। मैंने स्वयं भी भोजपुरी सिनेमा में काम किया है, उम्मीद करता हूँ कि मेरी तरह और भी कलाकार भोजपुरी सिनेमा में काम करेंगे। जैसा कि मैं मानता हूँ, सिनेमा की भाषा एक होती है, वह चाहे हिंदी में बने या भोजपुरी में—भावनाएँ तो एक ही होती हैं।
—अमिताभ बच्चन
बिहार बहुत ही सांस्कृतिक समृद्ध प्रदेश है, बावजूद इसके वहाँ के सिनेमा से कुछ खास निकलकर नहीं आ रहा है। भोजपुरी भाषी होने के नाते मैं भी चाहता हूँ कि भोजपुरी सिनेमा में काम करूँ, लेकिन अब तक वैसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला, जिसमें काम करके बहुत धन न सही, पर आत्मसंतुष्टि मिले।
—मनोज वाजपेयी

Bhookh Aur Bhoj Ke Beech Vivekananda by Sankar

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कभी राजभवन में सोने की थाली में राजसी भोजन, कभी झोंपड़ी में गरीबों का भोजन, कभी भूखे पेट, कभी सुनसान जंगल में आधे पेट खाकर भ्रमण करना स्वामी विवेकानंद के जीवन के अंतिम दो दशकों की आश्चर्यजनक जीवनगाथा। पिछले लगभग डेढ़ सौ वर्षों से कई देशों में स्वामीजी के पाककला प्रेम की चर्चा के साथ महासागर के उस पार अमेरिका में वेद, वेदांत के साथ-साथ बिरयानी-पुलाव-खिचड़ी से संबंधित कई अनजानी कहानियाँ प्रचलित हैं।
भारतीय पाककला के प्रचार में सर्वत्यागी संन्यासी के असीम उत्साह वर्तमान के समाजतत्त्वविद् के लिए आश्चर्य की बात है, फिर भी पाकशास्त्री महाराज विवेकानंद को लेकर कोई संपूर्ण पुस्तक किसी भी भाषा में क्यों नहीं लिखी गई है, यह समझ से परे है।
इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के आहार के विषय में हजारों लोगों के मुँह से कही गई अनमोल बातों पर खोजी लेखक शंकर की अद्भुत प्रस्तुति है।

Bhookh Mukta Vishva by M S Swaminathan

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प्रस्तुत पुस्तक में प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने जून 1992 में रियो डी जैनेइरो में हुए पर्यावरण व विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद की प्रगति की समीक्षा की है। साथ ही उन्होंने जोहांसबर्ग में तुरंत की जाने लायक काररवाई के लिए बहुत उपयोगी सुझाव भी दिए हैं।
भूख गरीबी का चरम स्वरूप है। संसार में इस समय एक अरब बच्चे व स्त्रा्-पुरुष कुपोषण के शिकार हैं। यह पुस्तक भूख को अतीत की एक कहानी बनाने के व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करती है। चूँकि भारत में कुपोषण की समस्या सर्वाधिक है, इसलिए इसमें लेखक ने अपने देश में कृषि-भूमि, जल, मौसम-प्रबंधन आदि पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने हमारी धरती को वर्तमान व आनेवाली पीढ़ियों के लिए एक खुशहाल व सुखी आवास बनाने के व्यावहारिक-वैज्ञानिक सुझाव प्रस्तुत किए हैं, जिन पर अमल करने में मानवता का कल्याण निहित है।
बेरोजगार युवाओं को ऐसे प्रयास शुरू करने का आत्मविश्वास और कौशल पाने में मदद करना, जो डिजिटल, जेनेटिक, लिंग और अन्य विभाजनों को पाटने में मदद कर सकें। पारंपरिक और नई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए युवाओं को सक्षम बनाना जैसे अनेक कार्यक्रम और सुझाव इस पुस्तक में समाहित हैं, जिनको अपनाकर संसार को सक्षम, खुशहाल और भूख-मुक्त बनाया जा सकता है।

Bhoole- Bisare Krantikari by Dr. Shyam Singh Tanwar/Smt. Mradulatar

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इस कसौटी पर 21वीं सदी के दूसरे दशक में पहला यक्षप्रश्न यह है— गांधी के स्वराज को सुराज बनाना है, भारत को महान् बनाकर इतिहास लिखना है, मानसिकता बदलनी है, सेक्युलर भारत को वैदिक भारत बनाना है?
सन् 1962 के चीन-भारत युद्ध में हुए शहीदों की दासता तो अभी भी हेंडरसन रिपोर्ट के अंदर ठंडे बस्ते में बंद पड़ी है, उन्हीं शहीदों की व्यथा-गाथा का एक प्रामाणिक तथ्य सन् 1962 के युद्ध के 48 साल बाद 2010 में उजागर होकर हमारे स्वतंत्र भारत के शासन व सा पर एक प्रश्नचिह्न लगा दिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपनी व्यवस्थागत सात्मक प्रणाली देशभतों और शहीदों के क्रियाकलापों से कितनी अनभिज्ञ तथा उनके बलिदान के प्रति कितनी उदासीन एवं निष्क्रिय है।
वस्तुत: इस पुस्तक के संकलन करने में यही मुय बिंदु है कि जिनको जो देय है, उचित है, उनको दिया जाए। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर लेखकद्वय ने दो वर्षों तक शोधकार्य कर इस पुस्तक का संयोजन किया। अत: आशा है कि आखिर कोई तो है, जो इन हुतात्माओं को राष्ट्रीय स्तर पर मान-सम्मान देकर इनकी धूमिल छवि को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करेगा।
अतीत के गहरे नेपथ्य में सायास धकेल दिए गए माँ भारती के वीर सपूतों, राष्ट्राभिमानी देशभतों, हुतात्माओं, बलिदानियों का पुण्यस्मरण है यह पुस्तक।

Bhoomikamal by Rita Shukla

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भूमिकमल
नीलेंदु का वह भयावह प्रलाप, ‘देख लूँगा! तुम सब बदमाशों को एक-एक करके सबक नहीं सिखाया तो मेरा नाम नहीं!’
सुरम्या मौसी के नवरात्र व्रत का अंतिम दिन था वह। बुझी हुई हवन-वेदिका सी वह काया उपासना कक्ष के बीच निश्‍चेष्‍ट पड़ी थी।
शेफाली ने बड़े यत्‍न से अंतिम प्रसाधन किया था—‘गौरांग बाबू, बड़ी दीदी की विदाई हो रही है। उनके लिए एक लाल रेशमी साड़ी और…’
गौरांग ने यंत्रचालित भाव से सभी औपचारिकताएँ पूरी की थीं। विश्‍वास बाबू और अन्य बुजुर्ग संजीदा थे—प्रतिमा-विसर्जन का जुलूस आगे बढ़े, मार्ग अवरुद्ध हो जाए, इसके पहले ही…
हलके गुलाबी रंग का भूमिकमल सुरम्या मौसी के पैरों के पास रखकर गौरांग शर्मा चुपचाप बाहर चले गए थे। सुनंदा चतुर्वेदी के करुण क्रंदन में ‘शारदा-सदन’ की आर्त मनुहार सिमट आई थी, ‘एक बार आँखें खोल बिटिया, तेरे विसर्जन का यही मुहूर्त तय था, सुरम्या…?’
—इसी पुस्तक से

पारिवारिक रिश्तों, समाज और सामाजिक संबंधों की सूक्ष्मातिसूक्ष्म उथल-पुथल की पड़ताल करता और मानवीय सरोकारों को दिग्दर्शित करता एक भावप्रधान व झकझोर देनेवाला कहानी-संग्रह।

Bhopal Gas Trasadi Ka Sach by Moti Singh

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भोपाल गैस त्रासदी का सच

सन् 1984 में घटी भोपाल गैस त्रासदी को आज कौन नहीं जानता। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली गैस ने अर्धरात्रि में सो रहे हजारों लोगों की जान ले ली थी। उस हत्यारी गैस ने सैकड़ों मासूम बच्चों, स्‍‍त्रियों और निर्दोष युवक-वृद्धों को सदैव के लिए मौत की नींद सुला दिया था। उस दुर्घटना में मानव ही नहीं, हजारों पशुओं—भैंसों, गायों, बकरियों, कुत्तों एवं अन्य जीवों—को भी अपने प्राणों से हाथ धोने पड़े थे।
जब वह त्रासदी हुई, मानवता चार-चार आँसू रो रही थी। उस समय आम लोगों, अनेक सामाजिक संस्थाओं एवं स्वयंसेवी संगठनों ने भी राहत-कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान दिया था। यही मानवता का तकाजा भी था। किंतु वहीं दूसरी ओर कुछ प्रभावशाली अधिकारियों व डॉक्टरों के नाकारापन और गुनहगारों को बचाने के एक सूत्रीय कार्यक्रम एवं स्वार्थी तत्त्वों ने कर्मठ व ईमानदार प्रशासनिक अधिकारियों, डॉक्टरों तथा सरकारी अमले की मानवीयता व कर्तव्यपरायणता तथा गैस-पीड़ितों को झिंझोड़कर रख दिया। उस समय यूनियन कार्बाइड कारखाने के कर्ता-धर्ताओं से लेकर इन सरकारी आला अफसरों ने पीड़ित जनों के प्रति जो बेरुखी दिखाई, उस घटना के अपराधियों को बचाने के लिए जो तिकड़में भिड़ाईं—वह अपने आप में अलग ही दास्तान है।
आज बहुत से लोग भोपाल गैस त्रासदी के सच को नहीं जानते। इस पुस्तक में उस कड़वे सच से रू-बरू कराया गया है तथा अनेक अजाने रहस्यों का उद‍्घाटन किया गया है। विश्‍वास है, प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर पाठकगण एक बहुत बड़ी सच्चाई से अवगत होंगे।

Bhrashtachaar Ka Kadva Sach by Shanta Kumar

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भ्रष्टाचार का कड़वा सच—शांता कुमार
देश में बहुत सी स्वैच्छिक संस्थाएँ भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए एक प्रबल जनमत खड़ा करने की आवश्यकता है। किसी भी स्तर पर रत्ती भर भी भ्रष्टाचार सहन न करने की एक कठोर प्रवृत्ति की आवश्यकता है, तभी हमारे समाज से भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है।

आज की सारी व्यवस्था राजनैतिक है। शिखर पर बैठे राजनेताओं के जीवन का अवमूल्यन हुआ है। धीरे-धीरे सबकुछ व्यवसाय और धंधा बनने लग पड़ा। दुर्भाग्य तो यह है कि धर्म भी धंधा बन रहा है। राजनीति का व्यवसायीकरण ही नहीं अपितु अपराधीकरण हो रहा है। राजनीति प्रधान व्यवस्था में अवमूल्यन और भ्रष्टाचार का यह प्रदूषण ऊपर से नीचे तक फैलता जा रहा है। सेवा और कल्याण की सभी योजनाएँ भ्रष्टाचार में ध्वस्त होती जा रही हैं।

एक विचारक ने कहा है कि कोई भी देश बुरे लोगों की बुराई के कारण नष्ट नहीं होता, अपितु अच्छे लोगों की तटस्थता के कारण नष्ट होता है। आज भी भारत में बुरे लोग कम संख्या में हैं, पर वे सक्रिय हैं, शैतान हैं और संगठित हैं। अच्छे लोग संख्या में अधिक हैं, पर वे बिलकुल निष्क्रिय हैं, असंगठित हैं और चुपचाप तमाशा देखने वाले हैं। बहुत कम संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बुराई के सामने सीना तानकर उसे समाप्त करने में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।

देश इस गलती को फिर न दुहराए। गरीबी के कलंक को मिटाने के लिए सरकार, समाज, मंदिर सब जुट जाएँ। यही भगवान् की सच्ची पूजा है। नहीं तो मंदिरों की घंटियाँ बजती रहेंगी, आरती भी होती रहेगी, पर भ्रष्टाचार से देश और भी खोखला हो जाएगा तथा गरीबी से निकली आतंक व नक्सलवाद की लपटें देश को झुलसाती रहेंगी।

Bhrashtachar Bharat Chhodho by Kiran Bedi

SKU: 9789350487341

भ्रष्‍टाचार भारत की शासन प्रणाली में इस हद तक समाया हुआ है कि आम आदमी का प्रत्येक प्रशासनिक कार्य से विश्‍वास उठ चुका है। व्यापक तौर पर फैल चुकी इस भ्रष्‍टाचार रूपी बीमारी का इलाज केवल संपूर्ण तौर पर इस देश की राजनीति, जाँच व न्यायिक प्रणाली की कायापलट के द्वारा ही किया जा सकता है।
हम अपने आस-पास आज जो कुछ भी देख रहे हैं, वह और कुछ नहीं, मात्र लूट—बहुत बड़े स्तर पर मची हुई लूट—है। यह लूट इस सीमा तक है कि हम इसमें शामिल शून्यों की संख्या की गिनती भी नहीं कर सकते।
और इस लूट का खुलासा कॉमनवैल्थ गेम्स में हुए घोटाले के खुलासे के साथ हुआ। इसने मेरे मन को भी विचलित कर दिया। मैंने भी सामूहिक तौर पर उठी उस आवाज का हिस्सा बनना आरंभ कर दिया, जो दिनोदिन बुलंद होती गई। कभी-कभी यह बिना दबाव के सम्मोहन व परिस्थितियों के वश में होकर बहुत तीखी भी हो गई। लेकिन इन सबका एकमात्र कारण था कि हमें सुचारु रूप से संचालित शासन प्राप्त हो, एक बेहतर भारत बने, जो हम सभी को समृद्ध और हमारी आनेवाली पीढ़ी को सुरक्षित बनाए।
इस संकलन के पीछे भी यही मंशा है।
यदि भ्रष्‍ट लोग अपने निहित स्वार्थ के लिए एकजुट हो सकते हैं तो हम, जो उनके सताए हुए हैं, भ्रष्टाचार के इस सूर्य को अस्त करने के लिए एकजुट क्यों नहीं हो सकते?
इसलिए, बदलाव लाएँ।

Bhrashtachar Ka Ant by N. Vittal

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वर्ष 2010 में हुए बडे़ और भयंकर घोटालों ने शासन और नेतृत्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। ऐसी विषम परिस्थितियों में एन. विट्ठल ने भ्रष्टाचार के अंत के लिए कुछ आशावाद जाग्रत् किया। उन्होंने स्थापित किया कि सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही की कमी इस रोग की जड़ है। साथ ही शासन में पारदर्शिता की कमी, लालच और नैतिकता की कमी इस रोग को नासूर बना रहे हैं।
सरकार में चार दशक से अधिक समय तक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले विट्ठल का मानना है कि केवल और केवल आर्थिक पारदर्शिता एवं टेक्नोलॉजी के बेहतर उपयोग से ही भ्रष्टाचार के भयंकर विकार से मुक्ति मिल सकती है। वर्ष 2010 के विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में धनबल के ऊपर लगे अंकुश और पी.जे. थॉमस को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाने के महत्त्वपूर्ण निर्णय ऐसे कुछ प्रभावी कदम हैं। श्री एन. विट्ठल का मानना है कि सूचना के अधिकार के व्यापक उपयोग से न्यायपालिका एवं चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को और सुदृढ़ करने से पूरे समाज और मीडिया में इस विषय को लेकर चेतना जाग्रत् करने से ही होगा भ्रष्टाचार का अंत।

Bhujia Ke Badshah    by  pavitra Kumar

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यह कहानी है साधारण से शहर बीकानेर के पारिवारिक व्यवसाय हल्दीराम की, जिसने स्वयं को एक अंतरराष्ट्रीय चहेते ब्रांड में बदल दिया। बीसवीं सदी की शुरुआत में, गंगा बिशन अग्रवाल उर्फ हल्दीराम नाम का युवक बीकानेर शहर में सबसे अच्छी भुजिया बनानेवाले के रूप में विख्यात हो गया। समय पंख लगाकर उड़ा और एक सदी के बाद हल्दीराम का साम्राज्य राजस्व के मामले में मैकडॉनल्ड्स और डोमिनोज के साझा राजस्व से भी बहुत आगे पहुँच गया।
‘भुजिया के बादशाह’ में पवित्रा कुमार अग्रवाल परिवार की बाँधकर रखनेवाली कहानी को उसकी समग्रता में सुनाती हैं। यह एक ऐसा असाधारण कार्य है, जिसे पहले किसी ने नहीं किया था। इसकी शुरुआत, धूल-धूसरित, उदारमना बीकानेर से होती है और यह इस स्वदेशी लेबल के उदीयमान होने और निरंतर उदित होने का वर्णन करती है, जो दुनिया भर में आज सबसे जाने-माने भारतीय ब्रांडों में से एक बन गया है।
हल्दीराम्स की यह कहानी किसी सामान्य कारोबार की कहानी नहीं है। इसमें भरपूर फैमिली ड्रामा है, कोर्ट के मुकदमे हैं, ईर्ष्या की अग्नि में जलकर किया गया क्षेत्रीय विस्तार है, एक दशक से भी अधिक समय से चली आ रही ट्रेडमार्क की लड़ाई है, और घर-घर में प्रसिद्ध व लोकप्रिय भुजिया बनाने का वह रहस्य है जिसे एक परिवार ने सीने से लगाकर रखा है। तेज रफ्तार और बाँधकर रखनेवाली यह पुस्तक, परिवार के कारोबार के विभिन्न आयामों तथा कारोबार करने के भारतीय तौर-तरीकों पर सुस्वादु और मधुर नजर डालती है।

Bihar Ek Khoj by Hemant

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बिहार भारत का एक प्राचीन एवं उज्ज्वल संस्कृतिवाला राज्य है। प्राचीन दुनिया में सबसे पहले लोकतंत्र व्यवस्था वैशाली में स्थापित थी। सारी दुनिया को ज्ञान का आलोक देनेवाला बिहार ही है, जहाँ नालंदा जैसे विश्‍वविद्यालय स्थापित थे और जहाँ दुनिया भर के ज्ञान-पिपासु अपनी ज्ञान-तृषा शांत करने आया करते थे। खनिज-संपदा में बिहार की बराबरी कोई राज्य नहीं कर सकता।
सांस्कृतिक-संपन्नता की दृष्‍टि से बिहार का कोई सानी नहीं। यहाँ अनेक भाषा-बोलियाँ प्रचलन में हैं। बिहार विषम चरित्रवाला राज्य है, जहाँ ऐसे 241 समुदाय हैं, जिनके गोत्र या विजातीय विभाजन मौजूद हैं। बिहार में 89 प्रतिशत जनता गाँवों में निवास करती है, जिनका मुख्य पेशा खेती-बाड़ी है। यहाँ पर सर्वाधिक मेले आयोजित होते हैं, कुछ मेले तो अंतरराष्‍ट्रीय और राष्‍ट्रीय ख्याति प्राप्‍त कर चुके हैं।
हिंदुस्तान में गंगा-जमुनी संस्कृति की नींव रखनेवाले अकबर ने 1580 में इस भू-भाग को ‘सूबा बिहार’ नाम दिया। अंग्रेजी शासन में लंबे संघर्ष के बाद 22 मार्च, 1912 को बिहार को भारत के अलग प्रांत का दरजा मिला। बाद में विकास की दृष्‍टि से बिहार के भाग को झारखंड नाम से अलग राज्य बना दिया गया।
सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक ही नहीं संपूर्ण रूप में जानने-समझने के लिए ‘बिहार एक खोज’ अपने आप में एक संपूर्ण पुस्तक है।

Bihar Ke Aitihasik Gurudware by Subodh Kumar Nandan

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बिहार प्राचीनकाल से ही संतों की कर्मभूमि रहा है। यही कारण है कि हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देवजी (1506 ई.) तथा गुरु तेग बहादुरजी (1666 ई.) बिहार आए। जहाँ-जहाँ गुरुजी ने प्रवास किया, वहाँ बाद के वर्षों में अनुयायियों ने उनकी स्मृति में गुरुद्वारे या संगत का निर्माण कराया, जो सिखों के लिए आस्था के केंद्र बने, वहीं पटना में पौष सुदी सप्तमी संवत् 1723 तदनुसार 26 दिसंबर, 1666 ई. को गुरु गोबिंद सिंह का आविर्भाव हुआ। लेखक को यह पुस्तक लिखने के दौरान जानकारी मिली कि केवल पटना में ही ऐतिहासिक गुरुद्वारे नहीं हैं, बल्कि सासाराम, औरंगाबाद, गया, नवादा, मुँगेर, भागलपुर, कटिहार, पूर्णिया, वैशाली तथा राजगीर में भी अत्यंत प्राचीन व ऐतिहासिक गुरुद्वारे और संगतें हैं।
इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य बिहार के ऐतिहासिक गुरुद्वारों की जानकारी समाज को देना है, ताकि अपनी समृद्ध परंपरा और मान्यताओं को हम जान सकें; उनके संरक्षण-संवर्धन के लिए जाग्रत् हो। बिहार राज्य में सिक्ख गुरुद्वारों एवं संगतों का प्रामाणिक तथा जानकारीपरक वर्णन इस पुस्तक में है।
श्रद्धा-आस्था और विश्वास के केंद्र गुरुद्वारों का अत्यंत रोचक और विस्तृत विवरण।

Bihar Ke Male by Subodh Kumar Nandan

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बिहार के मेले-सुबोध कुमार नंदन

बिहार को मेलों का राज्य कहें तो अचरज नहीं होना चाहिए। यहाँ के त्योहारों, पर्वों तथा मेलों की अनूठी सांस्कृतिक परंपरा का उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलता है। कहा जाता है कि बिहार को नजदीक से जानने-समझने के लिए मेले में आना सबसे अच्छा साधन है। यहाँ एक साथ सभी चीजों की झलक देखने को मिल जाती है।
सोनपुर, मधेपुरा, मधुबनी, गया, राजगीर, सीतामढ़ी, वैशाली, बक्सर, खगडिय़ा, पूर्णिया आदि स्थानों पर लगने वाले मेलों में स्थानीय संस्कृति की झाँकी दिखाई पड़ती है। इन मेलों से जीवन की नीरसता तो दूर होती ही है, रोजमर्रा की चक्की में पिसनेवाला इनसान मेला घूमकर आत्मिक सुकून भी पाता है। दूसरे शब्दों में, इन मेले में आकर जिंदगी खिल उठती है। साथ ही नई पीढ़ी अपनी संस्कृति से परिचित भी होती है।
बिहार में कुछ ऐसे मेले हैं, जो विश्‍व स्तर पर विख्यात हैं। सोनपुर-मेला, पितृपक्ष-मेला, पंचकोसी-मेला, मलमास-मेला, कल्पवास-मेला आदि को प्रमुख मेले ही नहीं, राष्‍ट्रीय व अतंरराष्‍ट्रीय स्तर पर विशेष मेलों की संज्ञा दी जाती है। सांस्कृतिक व व्यापारिक महत्त्व के साथ-साथ हर मेले का अपना एक इतिहास है, संस्कृति और परंपराएँ हैं।
बिहार को सम्यक् रूप में जानने-समझने के लिए ‘बिहार के मेले’ पुस्तक बहूपयोगी है।

Bihar Mein Patrakarita Ka Itihas by Vijay Bhaskar

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बिहार में पत्रकारिता के इतिहास की कहानी इस पुस्तक में विस्तार से वर्णित है। इसमें ‘स्याह से स्याही का संघर्ष’ (इमरजेंसी के दौरान की पत्रकारिता), आनंद पटवर्धन का जेपी आंदोलन पर बना वृत्तचित्र ‘वेव्स ऑफ रिवोल्यूशन’ (क्रांति की लहरें) का विशद विवरण, ‘धनबाद पत्रकार उत्पीड़न कांड’ और ‘मुट्ठी से सरकती रेत’ (विनोदजी के साथ ‘प्रभात खबर’ की यात्रा) पहली बार प्रकाश में आ रहे हैं।
परिशिष्‍ट को संदर्भ की दृष्‍टि से समृद्ध किया गया है, जिससे आम आदमी के साथ पत्रकारों और शोधार्थियों को समझने के लिए व्यापक संदर्भ मिलें। पिछले दो दशक में मीडिया में आए बदलाव की चर्चा भी इसमें हैं और ईस्ट इंडिया कंपनी पर नई सामग्री भी है। यथासंभव जरूरी आँकड़े और सूचियाँ भी इसमें शामिल की गई हैं।
मीडियाकर्मियों के साथ-साथ पत्रकारिता के विद्यार्थी, शोधार्थी एवं पत्रकारिता के इतिहास में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए एक जानकारीपरक पुस्तक।

Bihar Shatabdi Ke 100 Nayak by Dhruv Kumar

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बिहार अति प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक एवं राजनीतिक पुनर्जागरण के प्रस्फुटन का पावन स्थल रहा है। सदियों से भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए बिहार की अपनी अलग पहचान रही है।
आधुनिक बिहार के निर्माण को एक सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन सौ वर्ष़ों में बिहार की धरती प्राचीन युग की तरह अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, साहित्यिक क्रांति, बदलाव और पुनःस्थापन की गवाह बनी। इस दौरान यहाँ अनेक विभूतियों ने जन्म लिया जिनके ज्ञान, त्याग, समर्पण, बुद्धि, बल, तप, संघर्ष और नेतृत्व का लाभ बिहार के साथ-साथ भारत समेत पूरी दुनिया को मिला। पिछले सौ वर्ष़ों के इतिहास में बिहार की माटी में पैदा हुए, पले और बड़े हुए वैसे लोगों की फेहरिश्त बहुत लंबी है, जिनके योगदान से देश और दुनिया की चमक निखरी, वर्तमान गौरवशाली हुआ और भविष्य की लौ सुरक्षित और सुनहरी हुई। विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करनेवाले ऐसी विभूतियों में से सौ लोगों को चुनना कठिन दौर से गुजरना है। ऐसे महान् लोगों के जीवन उनके कृतित्व और योगदान को महज दो-तीन पन्नों में समेटना और भी दुरूह कार्य था।