Hindi Literature
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Azad Hind Fauz by Dinkar Kumar
‘आजाद हिंद फौज’ आज भी लाखों भारतवासियों के दिलों में अपना स्थान बनाए हुए है। आजाद हिंद फौज ने सन् 1944 में अंग्रेजों से आमने-सामने युद्ध किया और कोहिमा, पलेल आदि भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।
22 सितंबर, 1944 को ‘शहीदी दिवस’ मनाते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा, ‘‘हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’ किंतु दुर्भाग्यवश द्वितीय विश्वयुद्ध का पासा पलटा और जर्मनी ने हार मान ली, साथ ही जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में इन देशों ने आजाद हिंद फौज की मदद करने से इनकार कर दिया। इसी समय अंग्रेजों ने नेताजी पर नकेल कसने की रणनीति बनाई। इस वजह से नेताजी को टोक्यो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आजाद हिंद फौज भारत के गौरवशाली और क्रांतिकारी इतिहास को सुनहरे अक्षरों में कैद किए हुए है। देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के सच्चे इतिहास से रूबरू कराती है यह पुस्तक।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी आंदोलन और राष्ट्रभक्त हुतात्माओं के बलिदान की प्रेरणागाथा बताती अत्यंत पठनीय पुस्तक।
Azadi Banam Phansi Athva Kalapani by Raghunandan Sharma
संवेदनशील मन के राष्ट्रबोध की छटपटाहट जब अभिव्यक्त होने को मचलती है तब आती है ‘आजादी बनाम फाँसी अथवा कालापानी’ जैसी कृति। भारतीयों के लिए काला पानी केवल शब्द या भू-खंड की संज्ञा नहीं है। वह भारत के हुतात्माओं के बलिदानों की, ब्रिटिश साम्राज्यवाद की क्रूर यातनाओं की कहानी का जीवंत इतिहास है। निस्संदेह अहिंसक सत्याग्रह ने सामान्य जन के मन में स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रज्वलित रखा लेकिन उन हुतात्माओं के बलिदानों की अनदेखी नहीं की जा सकती, जो हँसते-हँसते भारतमाता को स्वतंत्र कराने का सपना लेकर फँसी के फंदों पर चढ़ गए और मरते-मरते भी ‘वंदे मातरम्’ का जयघोष करते रहे। इस रक्तरंजित इतिहास का बार-बार स्मरण वही कर सकते हैं जिनके हृदयों ने राष्ट्रबोध को आत्मसात कर लिया है।
इस कृति के रचनाकार श्री रघुनंदन शर्मा उस आत्मबोध को कहते ही नहीं, स्वयं जीते भी हैं।
देश की नई पीढ़ी स्वतंत्रता संघर्ष की अनेक गाथाओं से अपरिचित है। प्रस्तुत पुस्तक उस इतिहास को सीधी सरल भाषा में उन तक पहुँचा देगी। यह इसलिए भी आवश्यक है कि हम उस पराधीन मानसिकता से मुक्त हों, जिसके कारण यह भुला दिया गया है कि भारत राजनीतिक रूप से भले ही पराधीन रहा हो, पर उसने स्वतंत्रता के मूल्य को संरक्षित रखने के लिए बडे़-से-बड़ा बलिदान देने की आत्म सजगता को बनाए रखा।
—कैलाशचंद्र पंत
(मंत्री संचालक म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति)
Azadi Ke Tarane (Vol. Ii) by Rajendra Patoriya
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीय जन-मानस को उद्वेलित कर देनेवाले प्रेरक गीत, .गज़ल एवं कविताएँ रची गईं। ये गीत-.गज़लें-तराने आज़ादी के दीवानों ने स्वयं रचे। वीर हुतात्माओं ने कारावास की भीषण यातनाओं को सहते हुए, फाँसी के फंदे को चूमते हुए इन गीतों को गुनगुनाया और हँसते-हँसते मृत्यु का आलिंगन कर लिया।
प्रस्तुत संकलन में देशप्रेम और मातृभूमि के लिए सेवा-समर्पण-त्याग की तान छेड़नेवाले तराने हैं; ऐसे गीत भी संकलित हैं, जिन्हें भयभीत ब्रिटिश सरकार ने ज़ब्त कर लिया था। आज़ादी की लड़ाई के दौर में ये तराने संजीवनी शक्ति का काम करते रहे।
आज़ादी के ये अमर गीत देशाभिमानी एवं निर्भीक कवियों के हैं; स्वातंत्र्य समर में अपने आपको सहर्ष समर्पित कर देनेवाले वीरों के हैं। संघर्ष के दौरान देशवासियों तक स्वाधीनता का संदेश पहुँचाने के लिए, उन्हें चैतन्य करने के लिए रचनाकार इन्हें अखबारों, परचों और पत्रिकाओं आदि के माध्यम से जनता तक पहुँचाते रहे थे। इसीलिए आज ये इतिहास एवं राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। काल का ग्रास बनने से बची इन रचनाओं का ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह संरक्षण आवश्यक है। इसी दिशा में यह कृति एक स्तुत्य प्रयास है।
राष्ट्राभिमानियों-बलिदानियों की इस थाती के प्रकाशन का उद्देश्य तब ही सफल होगा जब प्रत्येक भारतीय इस पुस्तक को पढ़े और इससे राष्ट्र-प्रेम की प्रेरणा प्राप्त करे।
Baat Bolegi Hum Nahin by R.K. Sinha
यह पुस्तक ‘बात बोलेगी, हम नहीं’ समय से सहज, सार्थक और संदेशपरक संवाद ही नहीं है, इससे कहीं ज्यादा है। पुस्तक में 62 लेख संकलित किए गए हैं। ज्यादातर लेख स्वतंत्र हैं, यानी विषय और संदर्भ की दृष्टि से उनका दूसरे लेखों से संबंध नहीं है। इसी अर्थ में वे स्वतंत्र लेख की श्रेणी में आते हैं। लेकिन कुछ लेख अपवाद भी हैं; जैसे चीन से भारत का जो सीमा विवाद है, उस पर तीन लेख हैं। इनका संबंध सीमा विवाद की घटना के क्रम और उतार-चढ़ाव से है। इसी तरह हिंदी पर दो लेख हैं। दोनों का प्रसंग अलग है। बुजुर्गों की समस्याओं पर दो लेख हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश खबरों में इसलिए छाए रहे, क्योंकि एक अनहोनी घटना उनके साथ हुई। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में उनके साथ मार-पीट उन लोगों ने की, जो साफ-सुथरी राजनीति के वादे से सत्ता में आए थे। ऐसी घटना के केंद्र में बने हुए अंशु प्रकाश पर दो लेख स्वाभाविक ही हैं। वे घटनाक्रम पर आधारित तथा दृष्टिपरक हैं।
यह पुस्तक जहाँ राजनीतिक इतिहास को अपने में समेटे हुए है, वहीं जीवन के हर क्षेत्र पर एक दृष्टिपात कर स्थायी महत्त्व की टिप्पणियों से भरी-पूरी है। इस पुस्तक के हर लेख में प्रवहमान भाषा है। इसमें विचारों की रचना का एक संसार है; मानवीय भावनाओं का संयोग और संतुलन है। इससे पुस्तक में नैयायिक बुद्धि का प्रभाव परिलक्षित होता है, जो सत्य के एक पहलू को सामने लाता है। सामयिक विषयों पर लेखन की ऐसी विधा अनुकरणीय है।
Baba Shekh Farid Ratnawali by Jasvinder Kaur Bindra
बाबा शेख फरीद रचनावली
भारत में सूफी काव्य-परंपरा काफी समृद्ध रही है। मुसलमान कवियों ने पंजाब में सूफी काव्य की बुनियाद रखी, जिनमें शेख फरीद सर्वोपरि हैं। उनका पूरा नाम फरीदुद्दीन मसऊद शक्करगंज है। दरअसल, शेख फरीद से ही भारतीय सूफी काव्य का आरंभ माना जाता है। फरीद का जन्म हिजरी 569 अर्थात् 1173 ईसवी में हुआ। उस दिन मोहर्रम की पहली तारीख थी। फरीद के पिता उनकी बाल्यावस्था में ही गुजर गए थे। उनकी माता ने ही उनके पालन-पोषण व शिक्षा की जिम्मेदारी पूरे फकीरी तथा दरवेशी ढंग से निभाई। उन्होंने बचपन से ही बालक फरीद को खुदापरस्ती की शिक्षा दी। पवित्र तथा संत स्वभाववाली माता की देखरेख में फरीद बचपन से ही प्रभु-भक्त हो गए। किशोर अवस्था में फरीद अपने सूफियाना स्वभाव के कारण कोतवाल (खोतवाल) में प्रसिद्ध हो गए थे।
प्रस्तुत पुस्तक में उनके व्यक्तित्व एवं उनके द्वारा विविध भाषाओं में रचित साहित्य से परिचित कराया गया है। फरीद-वाणी के दोहों तथा महला को व्याख्या सहित दिया गया है। संत साहित्य में विशिष्ट स्थान रखनेवाले बाबा शेख फरीद की रचनाओं का अत्यंत महत्त्वपूर्ण व संग्रहणीय संकलन।
Bachchan Ke Patra : Umashankar Verma Ke Naam by Umashankar Verma
बच्चनजी हिंदी काव्याकाश के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र थे। कवि के रूप में तो वे सफल और सुख्यात थे ही, व्यक्ति के रूप में भी अत्यंत सहृदय और उदार थे।
अपने जीवन में उन्होंने ढेरों पत्र लिखे। बच्चनजी के द्वारा उमाशंकर वर्मा को लिखे गए इन पत्रों में अधिकतर निजी बातें ही हैं; किंतु कभी-कभी इनमें साहित्यिक, राजनीतिक एवं अन्य विषयों की भी चर्चा हुई है, जिससे बच्चनजी की रुचियों व मनोभावों पर प्रकाश पड़ता है और उनके व्यक्तित्व-कृतित्व के कुछ अन्य पहलू भी उजागर होते हैं।
इस संग्रह में वर्ष 1948 से 1992 तक की लगभग आधी सदी का उनका न सिर्फ अध्ययन, मनन-चिंतन वरन् जीवन ही सूक्ष्म रूप से प्रतिबिंबित है और इस दृष्टि से यह पत्र-संग्रह साहित्य-प्रेमियों तथा अनुसंधित्सुओं के लिए अवश्य ही महत्त्वपूर्ण व उपादेय सिद्ध होगा।
Bachchon Ke Liye Yoga by Anup Gaur
जैसे-जैसे भौतिकवाद की चकाचौंध में मानव मशीन बनता जा रहा है और अस्वस्थ एवं तनावमय जीवन जीने के लिए मजबूर हो रहा है वैसे-वैसे शांतिपूर्ण, स्वस्थ और तनावरहित जीवन जीने के लिए पूरा विश्व तेजी से योग की ओर आकृष्ट हो रहा है ।
व्यावहारिक जीवन में पति-पत्नी, पिता- पुत्र, भाई-बहन इत्यादि बाह्य संबंध व साधन हैं । इनके विपरीत शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार आदि अंतरंग साधन हैं । बाहरी साधनों की अपेक्षा आंतरिक साधन जीवन के अधिक निकट हैं । इन दोनों साधनों के संघर्ष में सदैव आंतरिक साधनों की विजय होती है । इन आंतरिक साधनों को वृत्तियों (विषयों) से दूर करने को ही ‘ योग ‘ कहा जाता है ।
शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए शिक्षार्थियों का योग मार्ग में उतरना अनिवार्य समझते हुए प्रस्तुत पुस्तक का लेखन किया गया है । इस पुस्तक को विशेष रूप से बच्चों के लिए तैयार किया गया है । योग क्या है, योग का मन व शरीर पर प्रभाव तथा योगासनों का परिचय, समयावधि एवं लाभादि को बहुत सरल व सुगमतापूर्वक बताया-समझाया गया है । पुस्तक की एक प्रमुख विशेषता है इसमें दिए गए चित्र । लेखक जो भी बताना चाहता है, वह सब चित्रों के माध्यम से साकार हो उठता है । हमें पूर्ण विश्वास है, यह पुस्तक पाठकों को नीरोग व प्रसन्न रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगी ।
Bachchon Ko Rogon Se Kaise Bachayen by Dr. Premchandra Swarnkar
बच्चों की बीमारियों के प्रति अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे अपनी तकलीफ बोलकर नहीं बता पाते। इसलिए लेखक ने बच्चों में कुपोषण और अकसर उनको होनेवाले रोगों के साथ ही विशेष खतरनाक रोगों, जैसे न्यूमोनिया, पोलियो, टिटेनस, डिप्थीरिया, मेनिनजाइटिस, डेंगू, मलेरिया, जापानी मस्तिष्क ज्वर, रोटा वाइरस जनित आंत्रशोथ इत्यादि की समस्त जानकारी के साथ-साथ कृमि रोग, रक्ताल्पता और खुजली आदि बच्चों को होनेवाले रोगों और उनसे सुरक्षा के लिए टीकाकरण, संतुलित भोजन एवं कुपोषण से बचाव के व्यावहारिक तरीके बताए हैं।
सरल-सुबोध भाषा में भरपूर उदाहरणों व चित्रों के साथ यह पुस्तक प्रत्येक घर और व्यक्ति के लिए अत्यंत उपयोगी है और एक आवश्यकता भी।
Bachchon Mein Leadership by Anuja Bhatt
बच्चों में लीडरशिप-डॉ. अनुजा भट्ट
बच्चों का सर्वांगीण विकास तभी संभव है, जब टीम-भावना से काम करने का गुण उनमें हो। टीम के बिना लीडरशिप संभव नहीं होती। बच्चों का साथ-साथ खेलना, उनकी क्लास, पिकनिक और दोस्तों से मिलना-जुलना इसी टीम-भावना का परिणाम है। यदि टीम-भावना का विकास हो तो बच्चे बड़े होकर काबिल बनते हैं। अकेले काम करने की आदत बच्चों के विकास में रुकावट डालती है। इसलिए जरूरी है कि बच्चे हर काम मिल-जुलकर करें।
बच्चे उसी को रोल मॉडल समझने लगते हैं, जो उन्हें बार-बार दिखता है। ऐसे में बच्चे पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों प्रकार के रोल मॉडल्स से प्रभावित होते हैं। तब बड़ों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को सही-गलत का चुनाव करना सिखाएँ, उन्हें गाइड करें। आखिर हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्ïचा सफल नागरिक बने और जीवन में सफलता प्राप्त करे।
एक सफल लीडर के लिए सबसे जरूरी गुण है—सबको साथ लेकर चलने की क्षमता। इस गुण का विकास करने के लिए पुस्तक में अनेक व्यावहारिक उदाहरण दिए गए हैं, जिनसे प्रेरित होकर बालक अपनी क्षमताओं और प्रतिभा का विकास कर पाएँगे; उनका व्यक्तित्व निखरेगा और वे जीवन में सफल हो सकेंगे।
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक बिंदुओं की एक प्रैक्टिकल हैंडबुक है यह पुस्तक—
‘बच्चों को बनाएँ लीडर’ ।
Badlav Ke Bol by Kailash Satyarthi
विचार ही वह बीज है, जिससे बदलाव के वृक्ष उगते हैं। देश-दुनिया में जितनी क्रांतियाँ हुई हैं, उनकी कोंपलें विचारों से ही फूटी हैं। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी के क्रांतिकारी विचारों ने समाज के हाशिए पर खड़े और विकास की परिधि से बाहर उन करोड़ों उपेक्षित बच्चों को आज दुनिया के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ से उनकी आजादी और मुसकराहट का रास्ता खुलता है। श्री सत्यार्थी केवल एक बाल अधिकार कार्यकर्ता भर नहीं हैं, वे एक विचारक और दार्शनिक भी हैं। यह पुस्तक उनके ऐसे ही क्रांतिकारी विचारों और बदलाव के बोलों का संग्रह है।
Badlav Ke Real Hero by N. Raghuraman
किसी भी अच्छी पहल को बस शुरू करने की जरूरत होती है। कुछ समय बाद उससे जुड़ी चीजें अपने आप अपनी जगह लेने लगती हैं और पहल को आगे ले जाती हैं, क्योंकि ऐसी पहल का मूल चरित्र होता है ‘अच्छाई’।
आपके पास जो कभी था ही नहीं, उसे बनाने के लिए आप में जुनून होना आवश्यक है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए आप में प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए।
यदि आप अपने बच्चों को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तोहफा देना चाहते हैं तो उन्हें समझाइए कि पर्यावरण और इसकी प्रजातियों की रक्षा करें। एक थीम आत्मसात् कर लें—‘गो वाइल्ड फॉर लाइफ’, यानी जिंदगी के लिए वन्य जीवन को बढ़ावा दें। अगली पीढ़ी निश्चय ही आपके इस बेशकीमती तोहफे की कद्र करेगी।
बदलाव के लिए उम्र, शिक्षा और स्थान बाधा नहीं होते। बुरे हालातों में किसी समस्या को सुलझाने के लिए मदद का इंतजार करने से बेहतर है कि बदलाव लाया जाए।
अगली पीढ़ी में धरती को बचाने और खुद को शिक्षित करने जैसी एकदम नई संस्कृति विकसित करना भी दान उत्सव का हिस्सा है।
—इसी पुस्तक से
—1—
ये सूत्र हैं ऐसे 75 रियल हीरोज के प्रेरणाप्रद जीवन का निचोड़, जिन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ समाज को दिया। अपने कर्तृत्व में दूसरों को दिशा दी और सफलता का मार्ग प्रशस्त किया।
आज के निराशा भरे समय में पथ-प्रदर्शक नायकों की प्रेरणाप्रद कहानियाँ।
Bahaav by Himanshu Dwivedi
बहाव
वे दिन अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, जब किसी अगस्त्य को अपने विचार और वाणी को दिक्दिगंत तक फैलाने के लिए पूरा-का-पूरा समुद्र पी जाना पड़ता था। फाह्यान या अलबरूनी की तरह अब यात्राएँ करने और उन्हें लिपि में सँजोने के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ती। आप देख रहे हैं कि यह धरती एक ग्लोबल विलेज में तब्दील होती जा रही है और देशों की दूरियाँ हवाईजहाजों में सिमटकर रह गई हैं। ऐसे बहुत से लोग दिखाई पड़ते हैं, जो सुबह का नाश्ता एक देश में करते हैं और रात का भोजन दूसरे देश में। फिर भी यात्राओं ने अपना रोमांच नहीं खोया है और घुमक्कड़ी की इनसानी प्रवृत्ति कुछ नया देखने के लिए बेताब रहती है। युवा संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के यात्रा-संस्मरणों की यह पुस्तक ‘बहाव’ इसका जीता-जगता उदाहरण है।
इस पुस्तक में जापान, थाईलैंड, अमरीका, पाकिस्तान, ग्रीस, दक्षिण कोरिया, पोलैंड, जर्मनी, ब्राजील जैसे देशों की यात्रा के अनुभव हैं। इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें हिमांशु की आँखों से देखी हुई दुनिया के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के दो राजनेताओं की विदेश यात्राओं के अनुभव भी हैं। राजनेताओं ने जिस तरह अपनी विदेश यात्राओं का जिक्र हिमांशु से किया, उसे उन्होंने अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत किया। इस पुस्तक में ये दोनों अनुभव गुँथे हुए हैं।
यह पुस्तक सुधी पाठकों को दुनिया को देखने का एक नया नजरिया, दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत के रिश्तों को समझने की समझ तो देगी, साथ ही अपनी जीवंत भाषाशैली के कारण उन्हें उस देश में ही पहुँचा देगी।
Bahar Main Main Andar by Shri Amit Srivastava
अमित इधर कविता के इलाके में कदम रखनेवाले प्रतिभावान युवा हैं। ‘बाहर मैं…मैं अंदर…’ उनका पहला संग्रह है। दो हिस्से हैं इसके, जिसमें ‘मैं अंदर’ की शीर्षकविहीन कविताएँ हैं, वह कवि का आत्म है, उसका व्यक्तित्व ही उन कविताओं का शीर्षक हो सकता था। इस ‘अंदर’ में छटपटाहट बाहर के दबावों की भी है। इस अंदर में वह खुद अपना ईश्वर है। हमारे भीतर के कई हमों को व्यक्त करती ये कविताएँ सामाजिक बयानों से उतनी दूर भी नहीं, जितना कवि ने अपने आमुख में बताया है। वहाँ उसे हिचकियाँ आती हैं, वहाँ फूटती बिवाइयों को बिना किसी दया के आग्रह के वह न सिर्फ एक नमकीन निराशा के साथ रहने देना चाहता है, बल्कि चाकू लेकर छीलने भी बैठ जाता है।
‘बाहर’ की कविता में अमरीका की दादागिरी के नाम एक क्षोभ पत्र है। कश्मीर से एक हालिया मुलाकात का ब्योरा है, जिसमें कश्मीरियों की गरीबी, झील की झल्लाहट और उस सुंदर प्रकृति की बेबसी के कई दुःखद बिंब हैं—यहाँ कश्मीर एक बेवा है, जो पानी के पन्ने पर तारीखें काढ़ा करती है और एक नाव वाला पूछता है कि अपने बच्चों को खाना किसे अच्छा लगता है…संग्रह में ऐसी और कितनी ही कविताएँ हैं, जो बताती हैं कि कवि जब बाहर होता है तो उसका तआल्लुक वैचारिक संघर्ष के किस संसार से है—पाठक स्वयं उनमें
प्रवेश करेंगे।
अमित की कविताओं में दर्ज अनुभव और विचार भरोसा दिलाते हैं कि यह युवा लंबे सफर पर निकला है। अमित की कविता कहीं से भी समतल में चलने की हामी नहीं लगती, वह भरपूर जोखिम उठाती है।
—शिरीष कुमार मौर्य
Bahata Pani by Aabid Surti
मुसलमान पछता रहे थे। गुमनाम अजनबी बेगम शबाना की खोज होते हुए भी काफिरों ने उस पर हिंदू नाम थोप अपना अधिकार जता दिया था। क्या कोई ऐसी तरकीब नहीं सोची जा सकती कि आनंदीलाल अवतार घोषित हो, उससे पहले मोमिन घोषित हो जाए? गाँव के पुरोहित माखनलाल ने जरी के किनारेवाली धोती के पल्लू से चेहरे को हवा देते हुए सोचा, अब अधिक देर भली नहीं। यही अवसर है उसे कृष्णावतार घोषित कर बरगद तले के जमघट से उड़ा ले जाने का, मगर उनकी मुराद उनके मन में ही जलभुनकर राख हो गई। स्याह चोगे पर सुनहरी हरी पगड़ी बाँधे मुसलमानों के रहबर जनाब रब्बानी ‘मुल्ला’ ने ऐसी टाँग अड़ा दी कि चौराहेचौपाल पर फुसफुसाहट शुरू हो गई—‘मूलत : आनंदीलाल मुसलमान है।’ अब करो तहकीकात और उतारो ससुरे का पायजामा!
वह कुलियों और रिक्शा चालकों की मंडली में बैठ चरसगाँजे के दम लगाता था, शराब के नशे में धुत् होकर शोरशराबा करता, ऊधम मचाता और पिटता था। उसने एक साल की सजा भी काटी थी। ये सब जानकर यकीनन आपके मनमस्तिष्क में किसी लुच्चेलफंगे, आवारा, भ्रष्ट, पाखंडी शख्स की छवि उभरी होगी। क्षमा करें, वह इस दौर का मसीहा है। उसका नाम है आनंदीलाल ‘मौजूद’। ‘बहता पानी’ उसी रमता जोगी के रंगीन जीवन की दास्तान है।
Bahuaayami Jeevan Ke Dhani : Pt. Gopal Prasad Vyas by Dr. Santosh Matta
स्वनिर्मित व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी पंडित गोपाल प्रसाद सच्चे अर्थों में हिंदीसेवी थे। व्यासजी महात्मा गांधी के आदेश से ही स्वाधीनता आंदोलन में न कूदकर ‘कलम के धनी’ बने और दिल्ली में ‘हिंदी भवन’ निर्माण के लिए राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडनजी से की गई प्रतिज्ञा को पूर्णता तक पहुँचाया।
ब्रजभाषा के सीमित प्रदेश से निकल खड़ी बोली में भी गद्य और पद्य विधाओं में सिद्धहस्त व्यासजी ने खूब लिखा। इतना ही नहीं, हिंदी भाषा, साहित्य, समस्त भारतीय भाषाओं तथा शिक्षासंस्कृति के बहुआयामी विकास हेतु साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों के कार्यान्वयन हेतु विशाल सभागार तथा साहित्यकार सदन का सपना साकार कर ‘हिंदी भवन’ निर्माण के केंद्रबिंदु बने। राजधानी दिल्ली में हिंदी की पताका फहरानेवाले वे हिंदीभवन की नींव बन सर्वदा के लिए हिंदी का पथ प्रशस्त कर गए। सच ही तो है—‘जयन्ति ते सुकृतिनः येषां यशःकाये जरामरणजं भयं नास्ति’। निश्चित ही उनकी यशकाया सभी भारतीय भाषाओं को उन्नति के शिखर पर पहुँचाती रहेगी।
सच्चे देशभक्त, कलम के सिपाही, निस्स्वार्थी, दृढ़संकल्प के धनी, प्रतिभासंपन्न और मनीषी पंडित गोपाल प्रसादजी का जीवनचरित इस लघु पुस्तक के माध्यम से सदैव गतिशील रहने की प्रेरणा देता है।
Bal Ganesh by Mukesh Nadan
भगवान् गणेश की पूजा सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले की जाती है। यह तो तुम सभी जानते ही होगे, यदि नहीं तो इस पुस्तक में अवश्य पढ़ोगे। भगवान् गणेश अपने अनेक रूपों में पूजे जाते है, जैसे—वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर आदि। इन्हीं रूपों से संबंधित उनकी अनेक कथाएँ प्रचालित हैं। उन्होंने अपनी बाल्यावस्था में अनेक चमत्कारी कार्य भी किए हैं। उन्हीं के बाल जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाएँ सरल भाषा एवं चित्रों के द्वारा हम इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि बाल पाठकों के अतिरिक्त प्रत्येक पाठक-वर्ग के लिए पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।
‘इसी पुस्तक से’
Bal Hanuman by Mukesh Nadan
किसी-न-किसी से तुमने ‘रामायण’ की कहानियाँ तो अवश्य ही सुनी होंगी। इन कहानियाँ में राम, सीता, रावण, विभीषण जैसे अनेक पात्रों ने अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। इसी ‘रामायण’ में एक मुख्य पात्र ‘हनुमान’ ने ही माता सीता का पता लगाकर श्रीराम को लंका पर विजय दिलाई थी। इतना ही नहीं, भक्त हनुमान अपने स्वामी श्रीराम की भक्ति में हमेशा ही दृढ़ संकल्प रहे। ‘रामायण’ में इनके बाल रूप का वर्णन बडे़ ही सुंदर ढंग से किया गया है। इनके बचपन से जुड़ी अनेक कथाएँ आज भी हनुमान-भक्तों द्वारा सुनी जा सकती हैं। ऐसी ही कुछ कथाओं को सरल भाषा एवं सुंदर चित्रों सहित हमने इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। ये कथाएँ अवश्य ही बाल पाठकों के लिए रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी।
‘इसी पुस्तक से’
Bal Krishna by Nirupama
भगवान् कृष्ण से तो तुम भली प्रकार परिचित होगे। उनकी लीलाएँ तथा उनके अनेक चमत्कार हमें सुनने और पढ़ने को अकसर मिल ही जाते हैं। भगवान् कृष्ण ने अपनी बाल्यवास्था में जहाँ माखन चुराया तथा गोपियों को सताया, वहीं उन्होंने अनेक असुरों का संहार भी किया। इसी के साथ ‘महाभारत’ में द्रौपद्री की लाज बचाई और अर्जुन को ‘गीता’ का उपदेश भी दिया। इस पुस्तक में हम उन्हीं भगवान् श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कर रहे हैं। सरल भाषा तथा चित्रों द्वारा पुस्तक को रोचक व ज्ञानवर्धक बनाने का पूर्ण प्रयास किया है। हमें आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक केवल बाल पाठकों के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक वर्ग के पाठकों के लिए उपयोगी होगी।
‘इसी पुस्तक से’
Balram Ki Lokpriya Kahaniyan by Balram
बलराम की कहानियों में एक तरफ प्रेमचंद जैसी आम बोलचाल की सहज-सरल भाषा है तो दूसरी तरफ फणीश्वनाथ रेणु जैसी आंचलिकता। उनके बीच से उन्होंने अपनी नई राह बनाई। भारतीय जनजीवन को समग्रता में अंकित करनेवाले बलराम ऐसे कथाकार हैं, जिनकी कहानियाँ एक तरफ दूरदर्शन के इंडियन क्लासिक का हिस्सा बनीं तो दूसरी तरफ साहित्य अकादेमी के लिए कमलेश्वर ने उन्हें कालजयी कहानी के रूप में चुना। लगभग सभी वरिष्ठ कथाकारों-समालोचकों ने अपने कहानी-संचयनों में इनकी कहानियाँ शामिल की हैं। बलराम जितने अच्छे कहानीकार हैं, उतने ही अच्छे समीक्षक और संपादक भी हैं। ‘लोकायत’ के स्तंभ ‘आखिरी पन्ना’ ने इन्हें साहित्यिक पत्रकारिता के शिखर पर पहुँचा दिया, जो हर आम और खास की पहली पसंद बन गया, जिसकी वजह से पाठक ‘लोकायत’ को उसके पहले पन्ने से नहीं, ‘आखिरी पन्ने’ से पढ़ने लगे। ऐसे चर्चित लेखक की दो दर्जन कहानियों का यह संचयन सुधी पाठकों को रुचेगा, ऐसी उम्मीद हमें है।
Band Mutthiyon Ke Sapne by Shyam Sunder Bhatt
बंद मुट्ठियों के सपने—श्याम सुंदर भट्ट
”डीकरा! तुम्हारे सिर पर गांधी की टोपी है, इसलिए तू कैसा भी हो, बेईमान नहीं हो सकता।’ ’ इससे पूर्व कि मैं उससे कुछ कहूँ, वह जा चुकी थी। उसके गहनों का थैला मेरे हाथ में अटका हुआ था। कुछ क्षणों पूर्व घायल बहनों के हाथों में झंडे देखे थे। गिरते- पड़ते भी उनके मुँह से ‘भारतमाता की जय’ के स्वर फूट रहे थे। लाठियाँ खाने के बावजूद जुलूस आगे जा चुका था। और अभी-अभी वह महिला मुझे बेईमान न होने का सबक सिखाकर जा चुकी थी। गांधी पर भाषण देना और गांधीजी को इस रूप में देखना बड़ा ही अद्भुतअनुभव था। जीवन में पहली बार समझा कि गांधी क्या है? गांधी भावराज्य के तंतुओं का एक मकडज़ाल है, जो व्यक्ति के मन को बाँधता है। जो भी एक बार इस परिधि में आ जाता है, उसका निकल पाना कठिन हो जाता है। गांधी मानव के मन की उस सीमा तक पहुँच गया था, जो ईमानदारी को गांधी टोपी जैसे प्रतीक से जोड़ रहा था।
(इसी उपन्यास से)
Banda Singh Bahadur by Maj Gen Suraj Bhatia
बंदा बहादुर ने अपना प्रारंभिक जीवन एक वैरागी के रूप में बिताया। यह लगभग सत्रह वर्ष चला। अधिकांश समय उन्होंने दक्षिण भारत में गोदावरी नदी पर स्थित नंदेड़ नामक नगर में अपने आश्रम में तपश्चर्या करते बिताया। उन्होंने हिंदू शास्त्रों तथा योग एवं प्राणायाम विद्याओं का गहन अध्ययन किया। कुछ लोग मानते हैं कि वे तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे।
गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें गले से लगाया, उन्हें अमृत छकाकर सिख बनाया, उनका नाम बंदा सिंह बहादुर रखा और उन्हें पंजाब से मुगल राज्य की जड़ें उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी सौंपी।
इसके बाद उन्होंने पंजाब में मुगलों के शहर, गढ़ और किले आक्रमण करके अपने अधीन करने का कार्यक्रम शुरू किया। बंदा ने ऐलान किया कि वे जमींदारों को हटाकर सभी जमीन खेतिहर गरीब किसानों में बाँटेंगे।
महमूद गजनी और मुहम्मद गौरी के दिनों के बाद इतनी सदियाँ बीत जाने के बाद पहली बार उत्तर भारत में किसी गैर-मुसलमानी शक्ति ने एक बड़े और बेशकीमती भू-भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। अंततः मुगलों ने बंदा बहादुर को पकड़कर बेडि़यों में डाल लोहे के पिंजड़े में बंद कर दिया गया। हथकडि़यों और पाँव की साँकलों में बंदा को महीनों तक जेल में बंद रख, मुसलमान जल्लादों के हाथों जो अमानवीय यातनाएँ दी गईं, वे अनुमान और कल्पना से परे हैं।
वीर, क्रांतिकारी, हुतात्मा, धर्मपारायण, राष्ट्रनिष्ठ वीर बंदा सिंह बहादुर की जाँबाजी और पराक्रम का गौरवगान करती यह पुस्तक हर राष्ट्राभिमानी के लिए पढ़नी आवश्यक है।
Bandhu Bihari by Sankarshan Thakur
लालू यादव और नीतीश कुमार यानी चूना और पनीर। एक करिश्माई लेकिन दागी लोकप्रिय नेता, और दूसरा चालाक और अंतर्मुखी। दोनों को मिला दें तो आकर्षक जोड़ी बनती है। कुछ के लिए नायक, तो कुछ के लिए खलनायक; वंचितों के समर्थक, लेकिन स्वभाव से अभिमानी; युवाओं के मित्र लेकिन अधेड़ों के शत्रु। एक चौथाई शताब्दी से ये दोनों ही बिहार का भाग्य बना-बिगाड़ रहे हैं।
बिहार के लिए लालू और नीतीश का मतलब क्या है? इस पुस्तक में पहली बार संकर्षण ठाकुर की इन दोनों की व्यापक रूप से प्रशंसित जीवनियों की पुनर्लिखित और नवीन तथा विस्तृत जीवनियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं। देश के सर्वश्रेष्ठ पत्रकारों में से एक संकर्षण ठाकुर ने यह शानदार लेखन किया है। इसमें जहाँ कुछ व्यक्तिगत स्मृतियाँ शामिल हैं, तो कुछ राजनीतिक चित्रण और कुछ कठोर विचार भी हैं, जिस वजह से बिहार को समझने के लिए यह पुस्तक पढ़ना अनिवार्य हो जाता है।
Bansuri Samrat Hariprasad Chaurasia by Surjit Singh
बाँसुरी सम्राट हरिप्रसाद चौरसिया—सुरजीत सिंह
सत्तर की देहरी पर कदम रखने से बेहतर अपनी जिंदगी पर मुड़कर देखने का समय और क्या होगा! इस पुस्तक में पं. हरिप्रसाद चौरसिया अपनी जीवन-कथा अपने चिर-प्रशंसक व संगीत अनुरागी सुरजीत सिंह को जैसी है, जैसी थी, वैसी ही सुनाते हैं। संस्मरणों और घटना-वृत्तांतों से भरपूर इस पुस्तक में उनके एक पहलवान के पुत्र से संगीतज्ञ होने तक की यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक शैली में है। आगे जारी रहते हुए यह वृत्तांत बताता है कि कैसे वह आकाशवाणी के स्टाफ आर्टिस्ट से फिल्म स्टूडियो के वाद्य-संगीतज्ञ, संगीत निर्देशक और फिर अंतरराष्ट्रीय गुरु बने। बाँसुरी जैसे मामूली साज को शास्त्रा्य संगीत समारोहों का अनुपम वाद्य बनानेवाले कलाकार की जीवन-यात्रा का सर्वथा पठनीय वृत्तांत। संगीत-इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण अंश का मूल्यवान् दस्तावेज।
Bapu Ke Kadamon Mein by Dr Rajendra Prasad
बापू के कदमों में
भारतवासियों का एक बड़ा कर्तव्य यह है कि महात्माजी के अधूरे काम को वे पूरा करें। इसीलिए महात्माजी ने ग्यारह व्रतों का प्रतिपादन किया था, जिन्हें प्रार्थना के समय वह बराबर दोहराया करते थे। वे व्रत हैं—अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, आत्मनिर्भरता, शरीर-श्रम, अस्वाद, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी, स्पर्श-भावना। ये सब वे ही धर्म और नियम हैं, जो हमारे शास्त्रों में बताए गए हैं।
बापू ने हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय स्वतंत्रता दिलाने का प्रयत्न किया। हमको सिखाया कि व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में कोई अंतर नहीं है। इसलिए जो कुछ व्यक्ति के लिए अहितकर है अथवा निषिद्ध है, वह समाज और राष्ट्र के लिए भी।
आज हम अपने जीवन को तभी सार्थक बना सकते हैं, जब अपने हृदय के हर कोने को टटोलकर देख लें कि उसमें कहीं गांधीजी की शिक्षा के विरुद्ध कोई छिपी हुई कुवृत्ति तो काम नहीं कर रही है!
जिन्होंने गांधीजी के आदर्शों और सिद्धांतों को सही मायने में आत्मसात् किया, ऐसे देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखित बापू के अमिट पदचिह्नों का अद्भुत वर्णन है बापू के कदमों में।
Bargad Baba Ka Dard by Anuj Kumar Sinha
बरगद बाबा का दर्द एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें कहानी के माध्यम से पर्यावरण की महत्ता को बताने का प्रयास किया गया है। बरगद बाबा इसके मुख्य पात्र हैं, जो कि एक यात्री को कहानी सुनाते हैं। वे बताते हैं कि कैसे पेड़ काटे जा रहे हैं, कैसे जंगल नष्ट हो रहे हैं, कैसे पहाड़ों को खत्म किया जा रहा है, कैसे जंगली जानवरों और पक्षियों का जीवन खतरे में है, कैसे नदियाँ प्रदूषित हो गई हैं। लेकिन किसी को चिंता नहीं है।
बाबा बताते हैं कि कैसे ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और दुनिया के कई शहरों का अस्तित्व भी खतरे में है। पुस्तक में बरगद बाबा ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र करते हैं। महापुरुषों के बारे में बताते हैं। लोगों के ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। वे यह संदेश देना चाहते हैं कि कैसे जल, जंगल, जानवर, पहाड़, नदी का मनुष्य से गहरा रिश्ता है, कैसे ये सब मनुष्यों के लिए आवश्यक हैं, इनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
पुस्तक में बरगद बाबा वही भूमिका अदा करते हैं जो आम घरों में एक बुजुर्ग निभाता है। वे अपनी पीड़ा का बखान करते हैं। साथ ही पर्यावरण की उपेक्षा न करने के लिए आग्रह करते हैं। बरगद बाबा उदाहरण देते हैं, कहानी कहते हैं, घटनाओं का जिक्र करते हैं और उसे समाज की मूल समस्या से जोड़ते हैं। बाबा समस्या के साथ-साथ उसका समाधान भी बताते हैं कि कैसे पानी बचाएँ, कैसे खेती करें, कैसे पर्यावरण की रक्षा करें। पर्यावरण के बारे में मानव मात्र को जागरूक करनेवाली उपयोगी पुस्तक।
Bargad Ke Saaye Mein by Acharya Janaki Vallabh Shastri
हिंदी गीत के शिखरपुरुष् आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री बडे़ गद्य-लेखक भी हैं। उनके द्वारा विरचित आलोचना, ललित निबंध, संस्मरण, नाटक, उपन्यास की कई पुस्तकें आईं और हिंदी-जगत् में ख्यात हुईं। रवींद्र, निराला, प्रसाद की श्रृँखला में एक विलक्षण गद्यकार के रूप में शास्त्रीजी को जो सम्मान मिलना चाहिए, वह हद तक मलकर भी नहीं मिल पाया।
हिंदी समाज का बड़ा पाठक वर्ग जानकीवल्लभ शास्त्री के गद्य-लेखन का स्वाद लेता रहा है। उनके बीच कथा साहित्य की विशेष चर्चाएँ भी जमकर हुईं। शास्त्रीजी अपनी कथात्मक संघटना और काव्यात्मक संरचना में ऐसा गहरा तालमेल बनाते हैं, जिसमें कहानी भी नहीं छूटती है और शिल्प का नया कौशल सौंदर्य-आलोक से उद्दीप्त हो निखर उठता है।
कवि का भावावेश मर्मस्पर्शी दृश्यों से उभरता है, मगर समाज-संवेद्य चिंतक उसे व्यापकता देने में लिजलिजी संवेदना का नहीं, अपितु संयमित विचारों का संतुलित आधार प्रदान करता है। ‘बरगद के साये में’ जानकीवल्लभ शास्त्री के कहानी संग्रहों ‘कानन, अपर्णा, बाँसों का झुरमुट’ की कहानियों का एकत्र संग्रह है।
ये कहानियाँ परिवार, समाज और व्यक्ति की त्रासद, संघर्षमयी तथा चारित्रिक विभिन्न मनोदशाओं को उद्घाटित करती हैं। निरंतर बिगड़ते और विघटित होते मूल्यों के बीच साहित्य के यथार्थ को प्रस्थापित करती, स्वाद का अनचखा बोध करानेवाली इन कहानियों में आज का समय प्रतिबिंबित है। बाँकपन और निजता के कारण इनकी अनुभूतियाँ सर्वथा अलग हैं।
—संजय पंकज
Basketball : Khel Aur Niyam by Surendra Shrivastava
बास्केटबॉल
बास्केटबॉल एक टीम खेल है, जिसमें 5 सक्रिय खिलाड़ियों वाली दो टीमें होती हैं, जो एक-दूसरे के खिलाफ एक 10 फीट (3.048 मीटर) ऊँचे घेरे (गोल) में संगठित नियमों के तहत एक गेंद डालकर अंक अर्जित करने की कोशिश करती हैं। यह विश्व के सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से देखे जानेवाले खेलों में से एक है।
गेंद को ऊपर से टोकरी के आर-पार फेंककर (शूटिंग) अंक बनाए जाते हैं; खेल के अंत में अधिक अंकोंवाली टीम जीत जाती है। गेंद को कोर्ट में उछालते हुए (ड्रिब्लिंग) या साथियों के बीच आदान-प्रदान करके आगे बढ़ाया जाता है। बाधित शारीरिक संपर्क (फाउल) को दंडित किया जाता है और गेंद को कैसे सँभाला जाए, इसके भी नियम हैं।
सन् 1932 में अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल महासंघ का गठन, आठ संस्थापक देशों, यथा—अर्जेंटीना, चेकोस्लोवाकिया, ग्रीक, इटली, लातविया, पुर्तगाल, रोमानिया और स्विट्जरलैंड द्वारा किया गया था। इस समय, संगठन केवल शौकिया खिलाड़ियों का निरीक्षण करता है।
पुरुषों के बास्केटबॉल को सर्वप्रथम 1936 में बर्लिन ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया। इस प्रकार की ढेरों जानकारियों से युक्त यह पुस्तक खेल-प्रेमियों को अवश्य पसंद आएगी।
Batte Se Dabi Taareekhen by Lata Kadambari
इस संकलन में जहाँ एक ओर शृंगार रस के संयोग और वियोग, दोनों रूप दिखाई देते हैं, वहीं जीवन के प्रति आशावादी दृष्टकोण भी दिखाई देता है। सामाजिक बुराइयाँ, जैसे—कन्याभ्रूण हत्या, नारी की अवमानना, सामाजिक विषमताएँ तथा पर्यावरण का विनाश जैसी बुराइयों से द्रवित मन की पीड़ा भी इन कविताओं में व्यक्त है।
यह नारी जीवन का दर्द ही तो है, जिसकी सारी प्रतिभाएँ—चौका-चूल्हा, रीति-रिवाज, रिश्ते-नाते तथा पूजापाठ में दबकर रह जाती हैं। शायद इसलिए मुझे इस कविता संकलन का शीष्र्ाक ‘बट्टे से दबी तारीखें’ विष्ायवस्तु को देखते हुए सटीक लगा।
Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan by Bhairab Lal Das
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य सहयोगी, विप्लवी बटुकेश्वर दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल के ओआड़ी नामक गाँव में हुआ था। सन् 1928 में गठित ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के वे सक्रिय सदस्य थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त जन-जन के नायक बन गए। यह बम विस्फोट औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करनेवाला साबित हुआ। कारावास में की गई लंबी भूख-हड़ताल भारत के इतिहास में नजीर बनकर सामने आई। अंडमान जेल में ‘कालापानी’ की सजा के बाद भी बटुकेश्वर दत्त ने किसान आंदोलन, 1942 क्रांति और उसके बाद के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 3 अक्तूबर, 1963 से 6 मई, 1964 तक वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे। उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार वहीं हो, जहाँ ‘सरदार’ (भगत सिंह) की समाधि है। 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में उनकी मृत्यु होने के बाद फिरोजपुर के हुसैनीवाला में सरदार भगत सिंह की समाधि के निकट ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। जीवन भर भगत सिंह के साथ रहनेवाले बटुकेश्वर दत्त मृत्यु के बाद भी भगत सिंह के साथ ही रहे।
Bauddha Dharma Aur Paryavaran by Dhrub Kumar
मनुष्य जन्म लेता है और एक दिन इस नश्वर शरीर को त्यागकर पंचतत्वों में स्वाभाविक रूप से विलीन हो जाता हैं। प्रत्येक जीव-जंतु की यही प्राकृतिक जोगन प्रक्रिया है, किंतु क्या यही पर्याप्त है? शायद नहीं ! अन्य जीव-जंतुओं को प्राकृतिक रूप से कुछ-न-कुछ ऐसा कार्य मिला हुआ है कि उसका जीवन अपना कार्य करते-करते अपने समय पर पूर्ण हो जाता है और वह अपनी सार्थकता सिद्ध कर जाता हैं, जैसे गाय को देखें तो वह मनुष्यों को अपना दूध पिलाकर अपने जीवन का औचित्य सिद्ध कर देती हैं, उसी प्रकार साँड़ खेतों में हल द्वारा उन्हें जोतकर अपनी उपयोगिता सिद्ध करता है। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक जीव जंतु को प्रकृति ने कोई न कोई कार्य ऐसा दे दिया है, जिससे उसके जीवन की सार्थकता सिद्ध होती हैं।
ढाई हजार वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध ने भौगोलिक प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण को शुद्ध रखने पर बल दिया और इसके साथ ही भवन निर्माण में पर्यावरण और परिस्थिति की शुद्धता पर भी बल दिया। यह अद्भुत है।
वर्तमान में जिस प्रकार पर्यावरण समस्या बढ़ती ही जा रही हैं, ऐसे में बौद्ध धर्म में अभिव्यक्त पर्यावरण संबंधी सुझावों पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है, तभी मनुष्य एवं प्रकृति स्वस्थ रह पाएगी। मनुष्य को चाहिए प्रकृति में पेड़, पौधों एवं तमाम जौव-जंतुओं के साथसाथ नदी-नहरों में बहते जल को स्वच्छ रखें और उनकी रक्षा करे, तभी मनुष्य स्वयं भी स्वस्थ रह सकेगा।
Bauddha Dharma Ki Kahaniyan by Mozej Michael
बौद्ध धर्म की कहानियाँ—मोजेज माइकेल
”ठहरो श्रमण, ठहर जाओ!’ ’
”मैं तो ठहरा हुआ हूँ, आवुसं। तुम्हीं अस्थिर हो। तुम भी ठहर जाओ और रोक दो अपना यह पाप-कर्म।’ ’
अंगुलिमाल विस्मित हो तथागत की ओर देखने लगा। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। अद्भुत था यह श्रमण, अद्भुत थी उसकी उपस्थिति! वह जैसे जड़ हो गया।
”अच्छा, ऐसा करो, मुझे उस पेड़ से एक पत्ती तोड़कर दो।’ ’
अंगुलिमाल ने तुरंत पत्ती तोड़ दी।
”अब इसे वापस उसी पेड़ पर लगा दो।’ ’
”क्या?’ ’
”हाँ, अब इसे वापस उसी पेड़ पर लगा दो।’ ’
”यह कैसे संभव है, भंते! यह नहीं हो सकता। भला डाल से टूटी पत्ती वापस कैसे लगाई जा सकती है!’ ’
”इसका यह अर्थ हुआ कि तुम जब पत्ती को वापस जोड़ नहीं सकते तो तुम्हें उसे तोडऩा भी नहीं चाहिए था। इसी प्रकार अंगुलिमाल, जब तुम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो तुम्हें किसी का जीवन लेने का भी अधिकार नहीं है। सन्मार्ग पर चलो।…’ ’
—इसी पुस्तक से
बौद्ध धर्म बल्कि यह कहें कि मानव-धर्म के विविध आदर्शों—क्षमा, शील, परोपकार, सदाचार, नैतिकता और सदï्गुणों का दिग्दर्शन करानेवाली प्रेरक पुस्तक, जिसे पढ़कर पाठक अपने जीवन को उच्ïच स्तर पर ले जा सकेंगे।
Beauty Tips by Reeta Grover
आज का समाज सौंदर्य सजग समाज है। इस समाज में प्रत्येक क्षेत्र में सर्वप्रथम महत्त्व सौंदर्य का है। प्रस्तुत पुस्तक में हमारे तन, मन और व्यक्तित्व के सभी पक्षों के सौंदर्य और उसके महत्त्व की चर्चा की गई है। इसमें सौंदर्य क्या है? सौंदर्य उपचार क्या और कौन से हैं? उनमें समय के साथ आई विविधताएँ क्या हैं? सौंदर्य को निखारने की विधियाँ, उसकी देखरेख, रखरखाव आदि सभी पक्षों की जानकारी दी गई है। यह जानकारी केवल चेहरे के सौंदर्य तक ही सीमित नहीं है अपितु नख से शिख तक शरीर के सभी भागों को लेकर है। शारीरिक सौंदर्य के साथ-साथ इसमें व्यक्तित्व, जो सौंदर्य का अभिन्न अंग है, जिसके निखार और तराश के बिना सर्वोत्तम सौंदर्य भी अधूरा रहता है, उस पर भी विस्तृत जानकारी दी गई है।
यह पुस्तक प्रत्येक आयु वर्ग, महिला-पुरुष आदि सभी के लिए उपयोगी है। कॉलेज के छात्र-छात्राएँ हों या नौकरीपेशा महिला-पुरुष, बच्चे हों या अधेड़, सामान्य जन हों अथवा सौंदर्य क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से कार्यरत, अथवा इसमें प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे छात्र-छात्राएँ—सभी के लिए यह पुस्तक लाभदायक है। सौंदर्य के महत्त्व व उपचार आदि से अनभिज्ञ लोग इससे ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और जानकार लोग अपनी जानकारी में वृद्धि कर सकते हैं। सौंदर्य शास्त्र पर एक संपूर्ण पुस्तक।
Bebaak Baat by Vijay Goyal
अपनी कलम के माध्यम से प्रशासन, शिक्षा, कला, संगीत, संस्कृति, रीति-रिवाज, तकनीकी, खेल, हैरिटेज और पर्यटन जैसे विभिन्न विषयों पर विजय गोयल ने नई नजर डाली है। उन्हेंने खुद को कभी राजनीति के दायरों में समेटकर नहीं रखा। नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, पंजाब केसरी, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा सहित प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने देश के करोड़ों पाठकों के बीच उन विषयों को उठाया है, जो अकसर आम पाठक के मन में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं, लेकिन उन्हें शब्द नहीं मिलते। इस पुस्तक में संगृहीत श्री गोयल के चुनिंदा लेख ऐसे ही विचारों और भावनाओं की बेबाकबयानी हैं। उनकी बेबाकी ही उनके लेखन की खूबी है, लिहाजा यही इस पुस्तक का शीर्षक है—‘बेबाक बात’।
मिसाल के तौर पर पुस्तक में शामिल ‘तो फिर सेंसर बोर्ड की जरूरत ही क्या?’ ऐसा ही लेख है। जब फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की भाषा को लेकर हर तरफ चर्चा चल रही थी, तब किसी ने इस विषय पर लिखने का साहस नहीं किया, लेकिन विजय गोयल ने इस पर बेबाक लिखा। उनका लेख ‘नेताओं का दर्द कौन समझेगा’ राजनेताओं के जीवन की अंदरूनी उलझनों, कशमकम और परेशानियों को सामने लाता है। इस लेख को 400 सांसदों ने एक साथ पढ़ा।
प्रसिद्ध पत्रिका बाल भारती में 12 साल की उम्र में उनका लेख ‘मेरी पहली कहानी’ छपा था, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने उसे कैसे लिखा। पिछले एक साल में उनके 100 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं। ये लेख समाज में नए सवाल भी पैदा करते हैं और उनके जवाब भी तलाशते हैं। लेखक का मानना है कि वाजिब कारण होने पर सवाल खड़े होने चाहिए, तभी जवाब निकलते हैं और यही सिलसिला जीवन और समाज को सही दिशा में ले जाता है।
Beech Samar Main by Sushil Kumar Modi
बिहार की राजनीति में 1974 के छात्र आंदोलन से उभरते नेताओं की जो पौध नब्बे का दशक शुरू होने के साथ पहली कतार में अपनी जगह सुरक्षित करने लगी थी, उनमें सुशील कुमार मोदी प्रमुख रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में, सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले सुशीलजी ने जेपी के नेतृत्व वाले छात्र आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल में इन्हें 19 महीने बिहार की कई जेलों में गुजारने पड़े। उस दौर के अनुभवों को उन्होंने ‘जेल डायरी’ के रूप में लिपिबद्ध किया है।
सन् 1990 में पहली बार बिहार विधान सभा के सदस्य निर्वाचित होकर उन्होंने अपना संसदीय जीवन आरंभ किया। फिर कभी लोकसभा और तो कभी विधान परिषद् के सदस्य भी चुने जाते रहे। वे आठ साल तक विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। ‘पशुपालन’ और ‘अलकतरा’ जैसे बड़े घोटाले उजागर किए। 2005 में एक बड़े सत्तापरिवर्तन के साथ बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। इसमें सुशील कुमार मोदी को उपमुख्यमंत्री के साथसाथ वित्त मंत्री का भी दायित्व सौंपा गया। वे देश भर के वित्त मंत्रियों की प्राधिकृत समिति के अध्यक्ष बनाए गए।
सुशील मोदी ने आरक्षण आंदोलन, उर्दू की राजनीति, आंबेडकर के अंतर्द्वंद्व, कश्मीर और असम में सुलगते अलगाववाद, सिक्ख गुरुओं के महान् बलिदान तथा आपातकाल में राजनीतिक बंदियों की प्रताड़ना जैसे कई संवेदनशील मुद्दों पर कलम चलाई।
इस पुस्तक में इनके आलेख, संस्मरण, जेल डायरी और विदेश यात्राओं के रोचक वृत्तांत भी संकलित हैं। यह बौद्धिक संपदा कई पीढि़यों का मार्गदर्शन करती रहेगी।