Hindi Literature
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Ekling Ka Deewan by Manu Sharma
एकलिंग का दीवान—मनु शर्मा
फिर वह राज सिंहासन के नीचे आकर छोटे सिंहासन पर बैठ गया। बंदी जन विरुदावली कहने लगे। ब्राह्मणों ने मंगल-पाठ पढ़ा। तब महारानी ने खड़ी होकर अपने पति का लिखा पत्र सुनाया। पत्र मार्मिक था। सबने इस समय अपने पुराने शासक मानमोरी की प्रशंसा ही की। फिर पुरोहित सत्यनारायण कुछ कहने के लिए खड़े हुए—“श्रद्धेय महारानी, मान्य अतिथिगण और प्रिय मित्रो, आज बड़े हर्ष का दिन है। पूज्य महाराज मानमोरी का स्वप्न आज पूरा हो रहा है, वह भी महारानी की उपस्थिति में। प्रिय भोज का पराक्रम, उसकी प्रतिभा, उसका शौर्य, उसकी प्रजाप्रियता आप से छिपी नहीं है। युद्ध से जीतकर लाया हुआ सारा धन उसने आप सब में बाँट दिया। इससे अधिक प्रजा के प्रति उसका प्रेम और क्या हो सकता है। मेरा पूरा विश्वास है, वह सदा अपनी प्रजा को पुत्र की भाँति मानेगा। उनका दु:ख दूर करेगा और प्रजा भी उसे अपना ‘बाप्पा’ (पिता) समझेगी।…हम इस पवित्र अवसर पर इसीलिए उसे ‘बाप्पा रावल’ की उपाधि से विभूषित करते हैं। आज से यह हमारा भोज नहीं, बल्कि हमारा पूज्य ‘बाप्पा रावल’ है।”
—इसी पुस्तक से
Ekta-Akhandata Ki Pratimoorti : Sardar Patel by Baldev Vanshi
सरदार वल्लभभाई पटेल को पहले से जानता था। जब वह भारतीय संविधान परिषद् के सदस्य थे तो मेरा उनसे परिचय बढ़ गया। वहाँ दिए हुए उनके भाषणों को मुझे अच्छी तरह स्मरण है। उनकी वाणी राष्ट्र की आवाज होती थी, जिसके संबंध में न तो कोई अशुद्धि कर सकता था और न भ्रांति हो सकती थी।
जब वह बंबई के बिड़ला भवन में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे तो मुझे स्मरण है कि मैं सोवियत संघ जाते समय उनसे विदा लेने गया था। उन्होंने मुझे चेतावनी दी थी कि यह कार्य बड़े-बड़े प्रसिद्ध व्यक्तियों को असफलता दे चुका है, किंतु साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ‘‘जहाँ अन्य व्यक्ति असफल हो चुके हैं, वहाँ आप सफल होंगे।’’ वास्तव में सरदार के उक्त शब्द मास्को में मेरे राजदूत काल भर मेरी स्मृति में रहे। मैं आपको यह बतला रहा हूँ कि वह किस प्रकार परिस्थिति के निर्णायक, भावी रूप के विधाता तथा सुदूर भविष्य को ठीक-ठीक देख लेने की क्षमता रखते थे। जब तक वर्तमान भारत जीवित है, उनका नाम वर्तमान भारत के ऐसे राष्ट्र-निर्माता के रूप में सदा स्मरण किया जाता रहेगा, जिन्होंने 600 भारतीय देशी राज्यों का एकमात्र संघ बनाया। उनका यह कार्य हमारे देश के एकीकरण की दिशा में अत्यधिक स्थायी कार्य था। इस विषय में उनके कार्य को हम कभी नहीं भूल सकते। जैसा कि मैंने कहा है, जब तक भारत जीवित है, वर्तमान भारत के निर्माता के रूप में उनका नाम सदा स्मरण किया जाता रहेगा।
—आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री की पुस्तक ‘राष्ट्रनिर्माता सरदार पटेल’ से
Elon Musk Ke Prerak Vichar by Mahesh Dutt Sharma
आपको जागने, भविष्य के बारे में उत्साहित होने और प्रेरित होकर जीने की आवश्यकता है।
यदि आप सुबह उठते हैं और सोचते हैं कि भविष्य बेहतर होगा, तो यह एक उज्ज्वल दिन है। अन्यथा यह नहीं है।
एक उद्यमी होना काँच खाने जैसा और मृत्यु के बाद अस्थियों को घूरने जैसा दुष्कर काम है।
जो दिख रही है, वह आधी लड़ाई है। आपको इसके लिए कड़ी मेहनत करनी है और विफलता से डरना नहीं है।
ज्यादातर लोग जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज्यादा सीख सकते हैं।
नतीजे पर ध्यान केंद्रित न करें, अपने काम पर पूरा ध्यान केंद्रित करें, ताकि प्रत्येक कार्य पूरा हो जाने पर आपको एक कदम आगे बढ़ा दे, भले ही यह एक छोटा कदम हो।
—इसी पुस्तक से
Emergency Ka Kahar Aur Censor Ka Zahar by Balbir Dutt
इस पुस्तक के पृष्ठों में आपातस्थिति के अँधेरे में किए गए काले कारनामों और करतूतों का विवरण दिया गया है। हमारे देश के इतिहास में आपातकाल एक ऐसा कालखंड है, जिसकी कालिख काल की धार से भी धुलकर साफ नहीं हुई है। इस दौरान विपक्ष के प्रायः सभी प्रमुख नेताओं और हजारों नागरिकों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया था। इनमें करीब 250 पत्रकार भी थे। लोगों को अनेक ज्यादतियों और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा था। अखबारों के समाचारों पर कठोर सेंसर लगा दिया गया था। यह इमरजेंसी का ब्रह्मास्त्र साबित हुआ। जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था, वह इंदिरा गांधी की सरकार ने कर दिखाया।
विडंबना यह कि करीब साढ़े चार दशक बाद आज की पीढ़ी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा है कि लोकतांत्रिक भारत में जनता की आजादी के विरुद्ध ऐसा भी तख्तापलट हुआ, जिसका विरोध-प्रतिरोध करने वालों को इसे ‘आजादी की दूसरी लड़ाई’ की संज्ञा देनी पड़ी।
आपातकाल का काला अध्याय एक ऐसा विषय है, जिसपर देश-विभाजन की तरह अनेक पुस्तकें आनी चाहिए। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में यह स्वतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। लोकशक्ति द्वारा लोकतंत्र को फिर पटरी पर ले आने की कहानी उन सबके लिए खास तौर पर पठनीय है, जिनका जन्म उस घटनाक्रम के बाद हुआ।
प्लेटो के विश्व प्रसिद्ध ‘रिपब्लिक’ ग्रंथ पर जो विशद विवेचन है उससे स्पष्ट है कि गणतंत्र को सबसे बड़ा खतरा भीतर से है, बाहर से नहीं। गणतंत्र सदैव अपने ही संक्रमण से पतित होता है।
Emergency Ki Inside Story by Kuldip Nayar
‘इन सबकी शुरुआत उड़ीसा में 1972 में हुए उप-चुनाव से हुई। लाखों रुपए खर्च कर नंदिनी को राज्य की विधानसभा के लिए चुना गया था। गांधीवादी जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के सामने उठाया। उन्होंने बचाव में कहा कि कांग्रेस के पास इतने भी पैसे नहीं कि वह पार्टी दफ्तर चला सके। जब उन्हें सही जवाब नहीं मिला, तब वे इस मुद्दे को देश के बीच ले गए। एक के बाद दूसरी घटना होती चली गई और जे.पी. ने ऐलान किया कि अब जंग जनता और सरकार के बीच है। जनता—जो सरकार से जवाबदेही चाहती थी और सरकार—जो बेदाग निकलने की इच्छुक नहीं थी।’
ख्यातिप्राप्त लेखक कुलदीप नैयर इमरजेंसी के पीछे की सच्ची कहानी बता रहे हैं। क्यों घोषित हुई इमरजेंसी और इसका मतलब क्या था, यह आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि तब प्रेरणा की शक्ति भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मिली थी और आज भी सबकी जबान पर भ्रष्टाचार का ही मुद्दा है। एक नई प्रस्तावना के साथ लेखक वर्तमान पाठकों को एक बार फिर तथ्य, मिथ्या और सत्य के साथ आसानी से समझ आनेवाली विश्लेषणात्मक शैली में परिचित करा रहे हैं। वह अनकही यातनाओं और मुख्य अधिकारियों के साथ ही उनके काम करने के तरीके से परदा उठाते हैं। भारत के लोकतंत्र में 19 महीने छाई रही अमावस पर रहस्योद्घाटन करनेवाली एक ऐसी पुस्तक, जिसे अवश्य पढ़ना चाहिए।
England Ki Shreshtha Kahaniyan by Bhadra Sen Puri
हालाकि अंग्रेजी भाषा में कथा-साहित्य का इतिहास अधिक पुराना नहीं है, फिर भी यह काफी समृद्ध है । इस भाषा के अनेक बड़े कहानीकार हुए हैं और उनकी कहानियाँ भी काफी चर्चित-प्रशंसित रही हैं । संसार की अनेक भाषाओं, जिनमें हिंदी भी है, में उनका अनुवाद हुआ है । किंतु अंग्रेजी की कई श्रेष्ठ कहानियाँ अभी पाठकों, विशेषकर हिंदीभाषी पाठकों, के सम्मुख नहीं आ पाई हैं । निश्चय ही इस कारण पाठकगण न्यूनाधिक अतृप्त रह गए हैं ।
विदेशी कहानी अनुवाद श्रृंखला के अंतर्गत प्रस्तुत यह पुस्तक ऐसे पाठकों के साथ-साथ अन्य पाठकों को भी तृप्त करेगी, ऐसा विश्वास है; क्योंकि इसमें अंग्रेजी की अनेक श्रेष्ठ कहानियाँ, जो प्रसिद्ध और चर्चित रही हैं, दी गई हैं । इनका विशेष महत्त्व इसलिए भी है कि इनके आधार पर पाठकों को संपूर्ण अंग्रेजी कथा-साहित्य के साथ-साथ तत्कालीन आंग्ल समाज की सभ्यता और संस्कृति को भी समझने में काफी सुविधा होगी ।
English Mein Payen Adhiktam Marks by G.D. Pahinkar
अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय व्यवहार की भाषा है, फिर भी उससे डरने की कोई बात नहीं। इस पुस्तक की मदद से अंग्रेजी की परीक्षा में भरपूर मार्क्स प्राप्त करना बहुत आसान है। सभी कक्षा के विद्यार्थियों को परीक्षा की तैयारी करते समय और अंग्रेजी भाषा की मूलभूत जानकारी प्राप्त करने में इस पुस्तक से काफी मदद मिल सकती है।
पुस्तक के स्पष्ट वैशिष्ट्य
1. सभी कक्षा के लिए, हिंदी, अंग्रेजी और सेमी अंग्रेजी माध्यम के लिए उपयुक्त।
2. सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यावश्यक पायाभूत अभ्यास।
3. सभी कक्षाओं के लिए उपयुक्त एवं अत्यावश्यक सभी घटकों का समावेश।
4. आवश्यक जगहों पर दिए हुए उदाहरण और अभ्यास के लिए हर प्रकरण के बाद अभ्यास।
5. हिंदी और अंग्रेजी—ऐसी दोनों भाषाओं के इस्तेमाल की वजह से समझने में आसान।
अंग्रेजी पर प्रभुत्व चाहनेवाले हर एक विद्यार्थी के संग्रह में हो ऐसी संदर्भ पुस्तक।
English Seekhen Aur Safal Banen by Jagdish Narayan Singh
अंग्रेजी को विश्व में संपर्क भाषा के रूप में जाना जाता है। भारत में तो इस भाषा का महत्त्व बहुत अधिक है। ब्रिटिश राज खत्म होने के बाद भी अंग्रेजी भाषा के प्रभाव में बहुत कमी नहीं आई है। भारत के संविधान के तहत भी उच्चतम और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी को एक आधिकारिक भाषा में रखा गया है।
एक प्रश्न उठता है कि अंग्रेजी की शिक्षा किस उम्र से शुरू की जाए और एक विदेशी भाषा की सीख किस भाषा के द्वारा दी जाए। साथ ही व्याकरण (Grammar) की सहायता से विदेशी भाषा सीखी जाए या सिर्फ बोलचाल के आधार पर। इन प्रश्नों का उत्तर आवश्यक है। पाँचवीं कक्षा के पहले मातृभाषा को छोड़कर दूसरी भाषा का सीखना मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बच्चों के लिए घातक है। जब बच्चों को अपनी मातृभाषा का कुछ ज्ञान हो जाए तथा व्याकरण की थोड़ी समझ हो जाए, तभी विदेशी भाषा को सिखाया जाना चाहिए। दुर्भाग्यवश आजकल तथाकथित English Medium Schools में बच्चों की अंग्रेजी में पढ़ाई पहली कक्षा से ही शुरू हो जाती है; और व्याकरण का तो समावेश होता ही नहीं है। यही कारण है कि अंग्रेजी के बहुत से जाने-माने विद्वान् भी शुद्ध अंग्रेजी लिखने या बोलने में अक्षम पाए जाते हैं।
यह पुस्तक इसी बिंदु को ध्यान में रखकर तैयार की गई है कि ‘हिंदी’ मातृभाषा वाले लोग English सीख सकें, उसमें दक्ष हो सकें और सफल हो सकें।
Europe Ki Shreshtha Kahaniyan by Bhadra Sen Puri
जब हम विदेश की बात करते हैं तो उसमें सिर्फ बड़े-बड़े देश ही नहीं बल्कि कई छोटे देश भी शामिल होते हैं । विभिन्न देशों के साहित्य, विशेषकर कथा-साहित्य, के बारे में भी यही बात लागू होती है । इसीलिए इंग्लैंड (अंग्रेजी), रूस (रूसी), जर्मनी (जर्मन) तथा स्पेन (स्पेनिश) की श्रेष्ठ और प्रसिद्ध कहानियों के अतिरिक्त एक अलग अर्थात् प्रस्तुत पुस्तक में यूरोप के कई अन्य, जैसे-स्वीडन, नार्वे, फिनलैंड, हॉलैंड, डेनमार्क, हंगरी, रूमानिया, सर्बिया आदि देशों के साहित्य की प्रसिद्ध और चर्चित कहानियों के हिंदी अनुवाद दिए गए हैं । हिंदीभाषी साहित्यकारों, पत्रकारों, प्राध्यापकों तथा शोधकर्ताओं के अतिरिक्त सामान्य प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी इस पुष्प गुच्छ का विशिष्ट महत्व होगा, इसमें दो मत नहीं हो सकते; निश्चित रूप से इसलिए भी कि ये सभी एक साथ लगभग अप्राप्य हैं ।
Everest Ki Beti by Arunima Sinha
राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा के आगे उज्ज्वल भविष्य था। तभी एक दिन चलती ट्रेन में लुटेरों का मुकाबला करने पर लुटेरों ने उन्हें धकेलकर नीचे गिरा दिया। इस भयानक हादसे से इस चौबीस वर्षीय लड़की को अपना बायाँ पैर गँवाना पड़ा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। एक वर्ष बाद उन्होंने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लिया और माउंट एवरेस्ट पर पहुँचनेवाली पहली विकलांग महिला बनीं। आशा, साहस और पुनरुत्थान की अविस्मरणीय कहानी।
‘पद्मश्री’ और ‘तेनजिंग नोर्गे अवॉर्ड’ से सम्मानित अरुणिमा की कहानी हर छात्र को पढ़नी चाहिए।
Facebook Nirmata : Mark Zuckerberg by Sanjay Bhola ‘Dheer’
इंटरनेट ने हमारी दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। अब हर सूचना, हर जानकारी हमारी उँगलियों पर है। ऐसे में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों ने मीलों दूर बैठे लोगों को आपस में इस प्रकार जोड़ दिया है, मानो वे उनके परिवार के ही सदस्य हों। ये सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें अपने दोस्तों, परिचितों व संबंधियों से संपर्क बनाए रखने तथा अपनी रोजमर्रा की खुशियाँ आपस में बाँटने का सबसे बड़ा स्थान हैं, जहाँ हर कोई अपने दिल की बात कह सकता है।
मार्क जुकरबर्ग एक ऐसा नाम, जो विश्व भर के अरबों लोगों के दिलों पर ही नहीं, बल्कि दिमाग पर भी इस कदर छाया हुआ है कि लोग उन्हें अपना मित्र, अपना भाई, अपना पुत्र, अपना आदर्श, अपना सपना और न जाने क्या-क्या समझने लगे हैं। वही मार्क, जिन पर विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय हार्वर्ड से ‘ड्रॉप आउट’, यानी छोड़ देने का ठप्पा लगा और वह भी सिर्फ इसलिए कि वे समाज के लिए कुछ करना चाहते थे और उसी का नतीजा है—फेसबुक।
Facebook Success Story by Pradeep Thakur
फेसबुक सबसे बड़ा सामाजिक जनसंचार माध्यम (सोशल मीडिया) ब्रांड है। फेसबुक संभवतः ऐसा ब्रांड है, जो सोशल मीडिया शब्दावली सुनते ही अधिकांश ग्राहकों के दिमाग में सबसे पहले आता है।
अपनी स्थापना के ठीक आठ वर्षों बाद, फेसबुक इंकॉरपोरेटेड ने 1 फरवरी, 2012 को प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (इनिशियल पब्लिक ऑफर/आई.पी.ओ.) दाखिल किया था। याद रहे कि 2012 में फेसबुक की आय 5 अरब डॉलर थी, लेकिन 17 मई को नैस्डेक में उसे 38 डॉलर प्रति शेयर मूल्य पर पर सूचीबद्ध किया गया था, अर्थात् फेसबुक इंकॉरपोरेटेड का बाजार मूल्य 105 अरब डॉलर आँका गया था, जो बिल्कुल नई सूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनी के लिए उस तिथि का सबसे बड़ा मूल्यांकन था। अगले दिन जब सार्वजनिक कारोबार शुरू हुआ था, तब शेयर भाव 45 डॉलर तक उछले थे, लेकिन बाजार बंद होने तक 38.23 डॉलर पर आ टिका था। कंपनी ने आई.पी.ओ. से 16 अरब डॉलर की पूँजी हासिल की थी और मार्क जुकेरबर्ग की व्यक्तिगत स्वामित्व-हिस्सेदारी का बाजार मूल्य 19 अरब डॉलर हो गया था।
Falon Aur Sabziyon Se Chikitsa by Dr. H.K. Bakhru
फलों एवं सब्जियों से चिकित्सा
विश्व की अधिकांश चिकित्सा पद्धतियों—आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, तिब्बती, एलोपैथी आदि—में अनेक प्रकार की वनस्पतियों यानी फलों-सब्जियों एवं उनके अवयवों आदि का उपयोग ही अधिक होता है। आयुर्वैदिक चिकित्सा में सबसे मुख्य बात यह होती है कि इसमें उपयुक्त दवाओं में रोग के मारक गुण कम और शोधक अधिक होते हैं। इनके उपचार से रोग दबता नहीं है, बल्कि हमेशा के लिए जड़ से समाप्त हो जाता है।
वैसे तो क्या गरीब, क्या अमीर—सभी लोग फलों एवं सब्जियों का उपयोग अपने सामर्थ्य के अनुसार करते ही हैं; लेकिन इनका उपयोग यदि चिकित्सा की दृष्टि से किया जाए तो अनेक छोटे-बड़े रोगों से छुटकारा मिल सकता है। फल एवं सब्जियाँ स्वास्थ्य के रक्षक हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में सर्वसुलभ फलों एवं सब्जियों से अनेक रोगों की चिकित्सा में इनका उपयोग बड़ी सीधी-सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। उपयोगिता की दृष्टि से यह पुस्तक प्रत्येक गृहस्थ, आयुर्वैदिक चिकित्सक एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।
Family Health Guide by Dr. Anil Chaturvedi
कहा गया है—एक सेहत हजार नियामत। अच्छा स्वास्थ्य किसी वरदान से कम नहीं है। स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जो हमें रोगी बनाए, अर्थात् हमें ‘इलाज से बेहतर बचाव’ की नीति का पालन करना चाहिए। लेकिन आज के विषम माहौल में कोई-न-कोई रोग, व्याधि हमें जब-तब आकर घेर लेती है—तब हम क्या करें?
तब इस पुस्तक की मदद लें, जिसमें पूरे परिवार को स्वस्थ रखने के सटीक उपाय दिए गए हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि हम सुदीर्घ-स्वस्थ जीवन कैसे पा सकते हैं। यह आपको ऐसे सरल घरेलू उपाय बताती है कि आप उन्हें स्वयं आजमाकर स्वस्थ परिवार, समाज और देश का निर्माण कर सकते हैं। सामान्य रोगों और उनके उपचार की पूरी जानकारी सरलता से समझी और अपनाई जा सकनेवाली विधि से बताई गई है। पूरे परिवार के सुदीर्घ-स्वस्थ जीवन के लिए एक प्रामाणिक और व्यावहारिक ‘फैमिली हैल्थ गाइड’।
Feature Lekhan by P.K. Arya
स्वतंत्र पत्रकारिता अथवा फीचर लेखन अब बाकायदा एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। जिस भी व्यक्ति को शब्दों को व्यवस्थित करने की कला आ गई, समझो वह फीचर लेखन की दुनिया में सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हो गया।
ऐसे बहुत से अवसर व मुद्दे सामने आए हैं जब विभिन्न स्तंभकारों ने अपने लेखों द्वारा एक ओर न सिर्फ जनता को जागरूक ही किया, अपितु दूसरी ओर सुप्तप्राय सरकारों को भी नींद से जगाया। बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जब स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा लिखे गए लेखों पर देश में भूचाल-सा आ गया। स्वतंत्र भारत में पर्दाफाश होनेवाले विभिन्न घोटाले, भ्रष्टाचार व राष्ट्रव्यापी गबन के मामलों में यह तथ्य और भी ज्यादा प्रभावी साबित हुआ।
इइस पुस्तक में दी गई समस्त जानकारियाँ पाठकों को एक ओर जहाँ विषय की ‘थ्योरी’ का ज्ञान कराती हैं, वहीं दूसरी ओर व्यावहारिक पक्ष को प्राथमिकता देने के कारण पुस्तक की उपयोगिता को भी बढ़ाती हैं। विभिन्न फीचर्स की परिभाषाएँ एवं उनके उदाहरण देने के पीछे यही उद्देश्य है। पुस्तक को तैयार करने में विविध शोध संदर्भों,
लेखों, विवरणों, पाठ्य सामग्रियों व अन्य जानकारियों को प्रयोग में लाया गया है।
पुस्तक को उपयोगी बनाने के लिए विविध प्रसंगों में उदाहरणस्वरूप फीचर्स के कुछ नमूने प्रस्तुत किए गए हैं, ताकि पाठकगण विषय-वस्तु को और भी बेहतर ढंग से समझ सकें।
Field Marshal Sam Manekshaw by Shubhi Sood
एयर मार्शल के.सी. करिअप्पा (से.नि.) ने सन् 1957 में भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त किया। उनकी तैनाती 20 नं. स्क्वाड्रन में हुई, जहाँ वह छह वर्ष तक रहे। नवंबर 1963 में वह चेन्नई के फ्लाइट इंस्ट्रक्टर्स स्कूल से स्नातक हुए। 22 सितंबर, 1965 को शत्रु के ठिकानों पर आक्रमण के दौरान दुश्मन ने उनका विमान मार गिराया। वह युद्धबंदी बना लिये गए और 22 जनवरी, 1966 को मुक्त हुए।
युद्ध में लगे घावों के कारण करिअप्पा कुछ अरसे तक लड़ाकू विमान उड़ाने में असमर्थ करार दिए गए। इस दौरान उन्होंने तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष के सहायक के रूप में कार्य किया। बँगलादेश के स्वाधीनता संग्राम के अंत तक वह इसी यूनिट में रहे। युद्ध में अदम्य वीरता के प्रदर्शन के लिए उन्हें वायुसेना मेडल से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1994 में उनकी पदोन्नति एयर मार्शल के पद पर हुई। इसी वर्ष जोधपुर के दक्षिण-पश्चिम वायु कमान के कमांडर-इन-चीफ नियुक्त हुए। भारतीय वायुसेना में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति ने जनवरी 1965 में ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’ से सम्मानित किया। जनवरी 1996 में सेवानिवृत्त।
करिअप्पा अंतरराष्ट्रीय व सैन्य मामलों के गहन अध्येता हैं और इन विषयों पर वह निरंतर लेख लिखते रहे हैं।
Filmen Aur Sanskrti by Dheeraj Sharma
बीते कुछ दशकों के दौरान, भारत की छवि को बिगाड़ने में कुछ हद तक बॉलीवुड की फिल्मों का हाथ है जिनमें मंदिरों और पुजारियों की खिल्ली उड़ाई जाती है, दिखाया जाता है कि बड़े-बड़े संस्थानों के शिक्षकों को पढ़ाना नहीं आता, शिक्षकों को मूर्ख, राजनेताओं को दुष्ट, पुलिस को निर्दयी, अफसरों को संकीर्ण सोचवाला, जजों को अन्यायी, और हिंदी भाषा बोलनेवालों को हीन दृष्टि से देखा जाता है। क्या आपको आश्चर्य नहीं होता कि बॉलीवुड के फिल्मी गाने और डायलॉग उर्दू में ही क्यों लिखे जाते हैं जबकि बहुत कम ही लोग उर्दू को समझ पाते हैं? क्या आपको इस पर भी आश्चर्य नहीं होता कि हाल की बॉलीवुड की फिल्मों का हीरो कभी मंदिर क्यों नहीं जाता? आखिर क्यों बॉलीवुड की अधिकांश फिल्मों के हीरो अगर हिंदू हैं तो आम तौर पर धर्म का पालन नहीं करते जबकि सारे मुसलमानों को धर्मनिष्ठ दिखाया जाता है? आखिर क्यों कोर्ट-रूम वाली फिल्मों में भी अब भगवद्गीता पर हाथ रख कर किसी व्यक्ति के द्वारा कसम खाने वाले सीन गायब हो गए हैं? क्यों बॉलीवुड की फिल्मों की पृष्ठभूमि में भारतीय ध्वज भी नहीं दिखता? ये महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनकी तह तक जाने की आवश्यकता है। इस पुस्तक का प्रयास है कि इनमें से कुछ प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँ। समाज की सोच बनाने में फिल्मों की एक बड़ी भूमिका होती है और इस कारण परदे पर जो कुछ भी दिखाया जाता है, उसे लेकर बॉलीवुड को कहीं-न-कहीं अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है।
Fir Bhi Zindagi Khoobsurat Hai by N. Raghuraman
जीवन कभी हमारी सोच के हिसाब से नहीं चलता और इसमें समुद्र की तरह उतारचढ़ाव होते रहते हैं। यह तूफान का सामना करने और हमारे द्वारा अपनाए जानेवाले जीवनकौशल का नाम है। तीन महान् विभूतियों ने जीवन के बारे में समान बात कही है। नॉर्मन विन्सेंट पीएल ने कहा है, ‘खाली जेब से किसी का काम नहीं चलता। केवल खाली सिर और खाली हृदय ही यह काम कर सकते हैं।’ और बाद में जिग जिगलर ने सार्थक जीवन के बारे में कहा, ‘आपकी प्रतिष्ठा आपके दृष्टिकोण से तय होती है, न कि आपकी अभिरुचि से।’ और अंत में कार्ल जन ने कहा,‘मैं वो नहीं हूँ, जो मेरे साथ हुआ है। मैं वही हूँ, जो मैंने बनना चाहा था।’
जीवन में आप समस्याओं से निपटने में तभी अधिक सक्षम होते हैं, जब आपने खुद उनका अनुभव किया हो या उनके बारे में पढ़ा हो। यहाँ ऐसी ही कहानियों का संग्रह प्रस्तुत है, जिसमें बिना यह जाने कि वे विभूतियाँ कौन हैं और किसने क्या कहा था, फिर भी सैकड़ों लोगों ने जीवन को उनकी सोच के हिसाब से जीना पसंद किया और भाग्य में क्या लिखा है, इसकी परवाह नहीं की।
इस पुस्तक के अंत में आपको ऐसा अहसास होगा कि मेरी समस्याएँ कुछ भी नहीं हैं और मैं उनसे आसानी से निपट सकता हूँ। अगर आपको भी यही अहसास होता है तो इस पुस्तक का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
Football : Khel Aur Niyam by Surendra Shrivastava
कोई भी खेल आज मात्र खेल नहीं रह गया है। खेल को भी कॉरियर बनाकर धन और कीर्ति अर्जित की जा सकती है। भारत में अनेक खेल प्रचलित हैं। उनमें फुटबॉल भी एक है। फुटबॉल का सबसे अधिक विकास इंग्लैंड में हुआ। फुटबॉल का प्रथम क्लब ‘शेफील्ड फुटबॉल क्लब’ सन् 1857 में इंग्लैंड में स्थापित हुआ। सन् 1863 में ‘लंदन फुटबॉल एसोसिएशन’ की स्थापना हुई। भारत में फुटबॉल का प्रारंभ अंग्रेजों ने किया था। सन् 1948 में लंदन ओलंपिक में भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में फुटबॉल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग लिया।
फुटबॉल का जुनून खेल-प्रेमियों में देखने को मिलता है। जब इसके वर्ल्ड टूर्नामेंट होते हैं तो टीमें तो टीमें, इसके समर्थकों के भी हौसले आसमान छू रहे होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में फुटबॉल खेल के नियम, तैयारी तथा बुनियादी तथ्यों की सचित्र जानकारी दी गई है, जो खेल-प्रेमियों और फुटबॉल में रुचि रखनेवालों को समान रूप से उपयोगी प्रतीत होगी।
France Ki Shreshtha Kahaniyan by Smt. Pramila Gupta
‘‘हाँ, तो सर।’’ थोड़ा रुककर वह आदमी बोला, ‘‘उसके बाद मैंने जर्मनी, रूस, स्पेन की लड़ाइयों में हिस्सा लिया। मैं अपने शरीर को लेकर हर जगह घूमा, परंतु मरुस्थल जैसा स्थान कहीं नहीं देखा। वह स्थान सर्वोत्कृष्ट है। वहाँ पर भगवान् रहता है, इनसान नहीं।
—मरुस्थल में
हालात से मजबूर होकर चोर बननेवाला क्लाड ग्यूकस एक ईमानदार कारीगर था। उसका तेजस्वी चेहरा, ऊँचा माथा, मस्तक की गहरी रेखाएँ, काले बाल, जिनमें कहीं-कहीं सफेदी दिखाई देने लगी थी, सहृदयता से परिपूर्ण वे जगमग करती आँखें आप्त सम्मान से भरपूर दृढ निश्चय की परिचायक थीं। बहुत कम बोलता था। उस व्यक्ति में निश्चय ही आत्मगौरव था।
—चोरों का सरदार
सामंत तथा सेसिल के यहाँ एक प्यारी, नन्ही बिटिया ने जन्म लिया। आरंभ में माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, परंतु किस्मत में कष्टदायी संघर्ष लिखा था। जल्दी ही उन्हें पता चल गया था कि उनकी बेटी ‘कैमिल’ बहरी व गूँगी है।
—कैमिल
फ्रांस के प्रसिद्ध कथाकारों हानर-द-ब्लाजाक, विक्टर ह्यूगो, अल्फे्रड-द-मसेट, लूडोविक हेवेली, लियो लेपे, अल्फोंसे डाडेट, एमिल जोला इत्यादि की लोकप्रिय कहानियों का संकलन। ये पठनीय कहानियाँ मानवीय संबंधों, संवेदना और सरोकारों की झलक देती हैं।
Gaban by Premchand
प्रेमचंद आधुनिक हिंदी साहित्य के कालजयी कथाकार हैं। कथा-कुल की सभी विधाओं—कहानी, उपन्यास, लघुकथा आदि सभी में उन्होंने लिखा और अपनी लगभग पैंतीस वर्ष की साहित्य-साधना तथा लगभग चौदह उपन्यासों एवं तीन सौ कहानियों की रचना करके ‘प्रेमचंद युग’ के रूप में स्वीकृत होकर सदैव के लिए अमर हो गए।
प्रेमचंद का ‘सेवासदन’ उपन्यास इतना लोकप्रिय हुआ कि वह हिंदी का बेहतरीन उपन्यास माना गया। ‘सेवासदन’ में वेश्या-समस्या और उसके समाधान का चित्रण है, जो हिंदी मानस के लिए नई विषयवस्तु थी। ‘प्रेमाश्रम’ में जमींदार-किसान के संबंधों तथा पश्चिमी सभ्यता के पड़ते प्रभाव का उद्घाटन है। ‘रंगभूमि’ में सूरदास के माध्यम से गांधी के स्वाधीनता संग्राम का बड़ा व्यापक चित्रण है। ‘कायाकल्प’ में शारीरिक एवं मानसिक कायाकल्प की कथा है। ‘निर्मला’ में दहेज-प्रथा तथा बेमेल-विवाह के दुष्परिणामों की कथा है। ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास में पुनः ‘प्रेमा’ की कथा को कुछ परिवर्तन के साथ प्रस्तुत किया गया है। ‘गबन’ में युवा पीढ़ी की पतन-गाथा है और ‘कर्मभूमि’ में देश के राजनीति संघर्ष को रेखांकित किया गया है। ‘गोदान’ में कृषक और कृषि-जीवन के विध्वंस की त्रासद कहानी है।
उपन्यासकार के रूप में प्रेमचंद का महान् योगदान है। उन्होंने हिंदी उपन्यास को भारतीय मुहावरा दिया और उसे समाज और संस्कृति से जोड़ा तथा साधारण व्यक्ति को नायक बनाकर नया आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी भाषा को मानक रूप दिया और देश-विदेश में हिंदी उपन्यास को भारतीय रूप देकर सदैव के लिए अमर बना दिया।
—डॉ. कमल किशोर गोयनका
Gadar Andolan Ka Itihas by Bhairab Lal Das
सन् 1913 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को शहर से ‘गदर’ साप्ताहिक अखबार के रूप में शुरू हुआ था। इस पर लिखा गया था कि विदेशी धरती पर देशी भाषा में इसकी शुरुआत की जा रही है, लेकिन यह अंग्रेजी शासन के विरुद्ध युद्ध की शुरुआत है। बड़े एवं मोटे अक्षरों में लिखे गए गदर के साथ चार अक्षर लिखे गए–’अंग्रेजी राज का दुश्मन।’ बाएँ और दाएँ ‘वंदे मातरम्’ लिखा गया। इसके नीचे लिखा गया-‘भारत के नवयुवको, हथियार लेकर शीघ्र तैयार हो जाओ।’ 8 नवंबर, 1913 को गुरुमुखी (पंजाबी) में गदर अखबार का प्रकाशन आरंभ हुआ। अखबार के रूप में शुरू हुआ गदर पंजाबी श्रमिकों एवं बुद्धिजीवियों के लिए स्वतंत्रता आंदोलन की मशाल बन गया। पंजाबी आप्रवासियों द्वारा विश्व के विभिन्न देशों में बनाए गए संगठनों के निर्माण का इतिहास तथा अमेरिका में पंजाबी श्रमिकों की स्थिति का वर्णन इसमें है। पंजाबी श्रमिकों को कनाडा लेकर गए कामागाटा मारू जहाज की यात्रा-कथा के साथ गदरियों की पंजाब वापसी की चर्चा इसमें है। गदर पार्टी के क्रांतिकारियों द्वारा किए गए कार्यों का ऐतिहासिक विश्लेषण इस पुस्तक में है।
Galat Train Mein by Ashapurna Devi
‘ यह क्या, बाबूजी, आप खुद ही चले आए! मैं आपको बुलाने जा ही रहा था ।
” दिल खोलकर हँस पड़े निखिल हालदार । बोले, ” मैंने सोचा, देखूँ तो सही कि रास्ता ढूँढने में गलती करता हूँ या नहीं । लग रहा है, ईंट-पत्थर ही सबसे भरोसेमंद होते हैं । जरा भी नहीं बदलते । ”
फिर वही सेंटीमेंट ।
नहीं । ऐसे और कितनी देर तक काम चलेगा? उन्हें असली दुनिया में खींचकर न लाने से यही चलता रहेगा ।
” बाबूजी, यह है आपकी बहू । ”
” हाँ! ओह! रहने -दो, बहू । वाह! बहुत अच्छा । यह देखो बहू एक और बूढ़े बच्चे का झमेला तुम्हारे कंधे पर आ पड़ा । ”
” झमेला क्यों कहते हैं, बाबूजी? कितनी खुशी हो रही है हम लोगों को ।. .कल से. .कल आप आए नहीं । कल तो हम लोग एकदम.. .बाद में इतना बुरा लगा । ”
” मत पूछो, बहू । नसीब का लिखा कल जो झमेला गया, तुम लोग सुनोगे तो ‘ बाबूजी कितने बुद्धू हैं ‘ कहकर हँसोगे । कल गलत ट्रेन पर चढ़ गया था । इसी से यह गड़बड़ी हुई । ”
” गलत ट्रेन में!”
” वही तो । नसीब में भुगतना लिखा था । स्टेशन पहुँचा तो… ”
-इसी पुस्तक से
इस उपन्यास की नायिका सुचरिता, जो नायक निखिल की पत्नी है, एक स्वाभिमानी नारी है । वह अपने भाग्य की विडंबना को, अपने पति के गलत निर्णयों को जीवन भर सिर उठाकर झेलती है, पर अंत में उसका साहस साथ छोड़ जाता है; अपने पति की एक अंतिम गलती के लिए वह उसे क्षमा नहीं कर सकी और जीवन के आगे हार गई । प्रसिद्ध बँगला उपन्यासकार आशापूर्णा देवी की सशक्त लेखनी से निःसृत अत्यंत हृदयस्पर्शी कृति, जो पाठकों के मानस-पटल पर वर्षो छाई रहेगी ।
Galileo Galilei by Vinod Kumar Mishra
गैलीलियो के मन में बचपन से ही विज्ञान व प्रौद्योगिकी के प्रति गहन जिज्ञासा थी। यह जिज्ञासा उनके मन में जीवन के अंतिम पल तक बनी रही। उन्होंने ब्रह्मांड का एक नया स्वरूप दुनिया के समक्ष रखा।
वे न केवल श्रेष्ठ वैज्ञानिक और आविष्कारक थे, वरन् अपने धर्म में सच्ची आस्था रखते थे। उन्हें यह सहन नहीं था कि उनके धर्मग्रंथ में कोई अपूर्ण या असत्य विवरण हो।
वे अद्भुत साहसी थे। सत्य का पक्ष बड़ी निर्भीकता से रखते थे और इसके लिए अपना बहुत कुछ दाँव पर लगा देते थे। वे अपने पक्ष में लोगों को एकत्रित करने में कुशल थे। इसके अलावा वे बहुत चतुर भी थे। जब उन्हें लगा कि उनकी बात लोगों के मन में इस प्रकार उतर गई हैं कि अंतत: वे सत्य सिद्ध हो ही जाएँगी, तो वे पीछे हट गए। उन्होंने अनावश्यक रूप से जान देने या शहीद कहलाने की आवश्यकता नहीं समझी।
वे आधुनिक विज्ञान के जनक कहलाते हैं। उनके बाद वैज्ञानिकों ने उनके तौर-तरीकों का अनुकरण किया। ऐसे महान् वैज्ञानिक की जीवनी विद्यार्थियों, अध्यापकों एवं विज्ञान में रुचि रखनेवाले आम पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
Galiyon Ke Shahzade by Nasera Sharma
नासिरा शर्मा के उपन्यासों एवं कहानियों में बच्चों के चरित्र एक विशेष भूमिका के रूप में नज़र आते हैं, जो कभी आपकी उँगली पकड़कर तो कभी आप उनकी उँगली पकड़कर चलने लगते हैं और आप खुद से सवाल करने पर मजबूर हो जाते हैं कि इन बच्चों की दयनीय स्थिति का ज़िम्मेदार कौन है— परिस्थितियाँ, समाज या व्यवस्था या आप खुद? दरिद्रता और अपनों से लापरवाही तो अहम कारणों में से हैं, परंतु रिश्तों में सहृदयता व सरोकार जैसे चुकते जा रहे हों और ये कहानियाँ अपने बाल-चरित्रों द्वारा हमें झिंझोड़ने का काम करती हैं।
बच्चे किसी भी नस्ल, धर्म एवं जाति के हों, वे मानव समाज का विस्तार और मानवीय मूल्यों की अमूल्य संपदा हैं, जो किसी भी देश का भविष्य निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाने में अपना योगदान देंगे। आज अनेक तरह की विपदाएँ हमारे सामने हैं, जिनमें प्राकृतिक एवं युद्ध की विषमताएँ भी शामिल हैं और परिवार के टूटने एवं रिश्तों के प्रति संवेदनहीन होने की समस्या भी। इन सारी कठिनाइयों को एक मासूम बच्चा कैसे सहता है और उसके मन-मस्तिष्क में अटके उन दृश्यों का मनोविज्ञान क्या होता है—इन कहानियों द्वारा पाठक बहुत कुछ महसूस करेंगे।
Gandagi Ke Maharathi by Manish Sharma
एक सवाल जो मुझसे बार-बार पूछा गया ‘किताब में या है?’ जैसे फिशन है या नॉन फिशन है, कहानी है, व्यंग्य है? एक शद में कहूँ तो किताब ‘रोचक’ है। नदी की तरह सभी को समेटकर बहती है। इसमें व्यंग्यात्मक कहानियों के जरिए गंदगी के महारथियों का परिचय कराया गया है। ये महारथी हमारे आसपास हैं, कुछ के अंश हमारे अंदर भी होंगे, उन्हीं से आधिकारिक परिचय कराना जरूरी था, योंकि बदलाव की पहली शर्त होती है जागरूकता।
दूसरा सवाल जिसे आपको जरूर पूछना चाहिए कि ‘किताब से मुझे या मिलेगा?’ हास्य मिलेगा, अच्छी कहानी मिलेगी या कुछ और? ये किताब आपको इन दोनों चीजों के साथ पैसे बचाने में मदद करेगी। ये आपको, आपके परिवार को और समाज को स्वस्थ रहने में मदद करेगी। बीमारियों पर होनेवाले खर्च को कम करेगी। गंदगी के महारथियों का मजाक उड़ाकर हास्य पैदा करना मकसद नहीं है, बल्कि किताब में समाधान भी है।
व्यंग्य का सत्य तभी सुंदर हो सकता है, जब उसमें समाज के लिए शिव की भावना हो। यह किताब सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया: की हमारी सनातन परंपरा की आधुनिक कड़ी है। किताब इस उम्मीद में लिखी गई है कि आप स्वस्थ रहें, आप खुश रहें।
—मनीश शर्मा
Gandhari Ki Atmakatha by Manu Sharma
गांधारी, अपने पुत्रों को समझाओ । द्वारकाधीश की माँग बहुत कम है । अब पाँच गाँव से और कम क्या हो सकता है?”
” अब वे मेरे समझाने की सीमा में नहीं रहे । जब पानी सिर से ऊपर बहने लगा तब आप उसे बाँधने के लिए कहते हैं! आपसे अनेक अवसरों पर ओंर अनेक बार मैंने कहा है कि यह दुर्योधन बिना लगाम का घोड़ा हो गया है, उसपर नियंत्रण करिए; पर उस समय आपने बिलकुल ध्यान ही नहीं दिया । आज वह बात इस हद तक बढ़ गई कि यह घोड़ा जिस रथ में जुता है उसीको उलट देना चाहता है, तब आप मुझसे कहते हैं कि घोड़े की लगाम कसो!
” आपके पुत्रों ने पांडवों पर क्या-क्या विपत्ति नहीं ढाई! हर बार उन्हें समाप्त करने का प्रयत्न करते रहे । मैं हर बार तिलमिलाती रही और हर बार आपका मौन उन्हें प्रोत्साहन देता रहा । किसलिए? इस सिंहासन के लिए, जो न किसीका हुआ है और न किसीका होगा? इस धरती के लिए, जो आज तक न किसीके साथ गई है और न जाएगी? इस राजसी वैभव के लिए, जिसने हमें अहंकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिया है ?’. .इसे आप अच्छी तरह जान लीजिए कि यदि कोई वस्तु हमारे साथ अंत तक रहेगी और इस संसार को छोड़ देने के बाद भी हमारे साथ जाएगी तो वह होगा हमारा धर्म, हमारा कर्म ।..
” आपने उसीकी उपेक्षा की । मोह-माया, ममता, पुत्र-प्रेम और लोभ से ही घिरे रहे । इसी लोभ ने आपके पुत्रों को पांडवों के प्रति ईर्ष्यालु बनाया । अब जो कुछ हो रहा है, वह उसी ईर्ष्या का शिशु है । अब आप ही उसे अपने गोद में खिलाइए । मैं उसका जिम्मा नहीं लेती । मैंने कई बार कहा है कि हमारे दुर्भाग्य ने हमें संतति के रूप में नागपुत्र दिए हैं । वे जब भी उगलेंगे, विष ही उगलेंगे । इसलिए नागधर्म के अनुसार समय रहते हुए उनका त्याग कर दीजिए । ”
-इसी पुस्तक में
Gandhi : Rise Of A Mahatma And Diaspora by Dr. Ruchi Verma, Narayan Kumar, Amb. Anup Mudgal
The year 2019-2020 marked the 150 birth anniversary of Mahatma Gandhi that was widely commemorated in India and in many parts of the world remembering Gandhiji’s philosophy and teachings.
During his education of law in the UK, Gandhiji developed firm faith in the principles and merits of the rule of law. Ironically, this faith was severely challenged when he moved as a lawyer to assist some Indian origin businessmen in South Africa. There, Gandhiji came face to face not only with violations of the sacrosanct principles of the rule of law but also the discrimination built in the laws themselves. This shock laid the foundation of barrister Gandhi’s journey in the process of making of a mahatma. Though Gandhiji’s commitment to Swaraj through Satyagraha has a much wider global appeal, his path to sainthood was inseparably intertwined with his experiences with the Indian diaspora.
In keeping with Antar Rashtriya Sahayog Parishad (ARSP’s) pioneering work with Indian diaspora, Diaspora Research and Resource Centre of ARSP, in collaboration with Gandhi Smriti and Darshan Samiti, New Delhi organised a series of conferences on the theme ‘Gandhi and diaspora’, which were attended by over 100 experts from India and abroad.
This book is a compilation of the proceedings, presentations and the outcomes of these important events. We hope, this publication would be useful to academics and scholars dealing with Gandhian teachings, ideology and diaspora studies.
Gandhi Aur Ambedkar by Ganesh Mantri
गांधी और आंबेडकर पर अनेक छोटे-बडे़ अध्ययन हुए हैं; किंतु अस्पृश्यों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन की दृष्टि से उनके विचारों और कार्यों का अध्ययन आंशिक रूप से ही हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य अस्पृश्यता के परिप्रेक्ष्य में गांधी और आंबेडकर का समग्र रूप से तुलनात्मक विवेचन करना है।
इस पुस्तक में इन दोनों महान् व्यक्तियों के जीवन-संदर्भों, विचारधाराओं, स्वतंत्रता-संग्राम के समय की सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण करते हुए, भारत की वर्तमान परिस्थितियों में दोनों के विचार और कर्म की भूमिका तथा दलितों की वर्तमान स्थिति में इनकी प्रासंगिकता की खोज की गई है।
लेखक का यह विश्वास है कि ऐतिहासिक स्थिति जो भी रही हो, किंतु वर्तमान संदर्भ में गांधी और आंबेडकर एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं वरन् पूरक हैं। इन दोनों से एक साथ प्रेरणा लेकर
ही ऐसी सामाजिक-राजनीतिक शक्ति उभारी जा सकती है, जो भारतीय समाज में फैली जातिप्रथा और उससे जुड़ी सामाजिक विषमताओं से जूझने तथा जीतने में समर्थ होगी।
Gandhi Banam Bhagat : Ek Sant, Ek Sainik by Navin Gulia
‘गांधी बनाम भगत : एक संत, एक सैनिक’ उस ऊहापोह के समाधान की ओर एक विनम्र लघु प्रयास है, जो महात्मा गांधी और शहीद भगतसिंह के व्यक्तित्वों की तुलना से उत्पन्न होता है। दोनों भारतीय स्वाधीनता संग्राम के चमकते सितारे और माँ भारती के अमर सपूत हैं, जिन्होंने देश के लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया था, पर प्रकारांतर में इन दोनों विभूतियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा।
यह पुस्तक तटस्थ भाव से इन दोनों के अतुलनीय योगदान से परिचित कराती है कि कैसे एक ने सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर और दूसरे ने संघर्ष करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया।
महात्मा गांधी और सरदार भगतसिंह के जीवन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर विहंगम दृष्टि डालती एक पठनीय पुस्तक।
Gandhi Darshan Ke 5 Sootra by Renu Kumari Kushwaha
महात्मा गांधी के पाँच सूत्र—डॉ. रेणु कुमारी कुशवाह
आज आम समाज गरीबी व बेरोजगारी की परेशानी से त्रस्त है। धन का असमान वितरण तथा मानवाधिकारों का उल्लंघन नित नई समस्या पैदा करता जा रहा है। आतंकवाद की समस्या से न केवल भारत बल्कि पूरा विश्व ही प्रभावित हो रहा है। ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान ‘गांधी दर्शन’ में ढूँढ़ा जा सकता है।
इस धरा पर अमन-चैन कायम हो—पूरी दुनिया एक ऐसे विकल्प की तलाश में है। अत: गांधीवाद इसका उत्तर और एक विकल्प देता है।
गांधी दर्शन के सिद्धांत और सूत्र इस युग की सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना करने में पूर्ण सक्षम हैं। आज दुनिया भर की आवाजें गांधी की बातों को दोहरा रही हैं, जो उन्होंने औद्योगिकीकरण, मशीनीकरण, आर्थिक विकास, स्त्रा् सशक्तीकरण, पर्यावरण सुरक्षा, सामाजिक न्याय आदि के बारे में कही थीं। गांधी के ये पाँच सूत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस काल में थे।
शाश्वत गांधी दर्शन के मूल सूत्रों का दिग्दर्शन कराती महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
इस पुस्तक में एक सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता डॉ. रेणु कुमारी द्वारा विश्व के महानतम राजनीतिक कार्यकर्ता महात्मा गांधी के मूल दर्शन को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सरल एवं सूक्ष्म रूप से प्रस्तुत किया गया है।
—डॉ. अनिल दत्त मिश्रा
लेखक एवं गांधीवादी विचारक
भूमंडलीकरण, उदारीकरण व निजीकरण के दौर में डॉ. रेणु कुमारी की महात्मा गांधी की प्रासंगिकता पर पुस्तक उचित समय पर लिखा गया अद्वितीय साहित्यिक योगदान है।
—प्रो. आर.पी. द्विवेदी,
अध्यक्ष गांधी भवन,
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,बनारस
आधुनिकता के युग में गांधी को पुन: स्थापित करने का डॉ. रेणु कुमारी द्वारा एक सार्थक प्रयास हुआ है। आनेवाले समय में हिंदी में लिखित यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी।
—डॉ. प्रवीण कुमार
एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
Gandhi Ke Management Sootra by Mamta Jha
गांधीजी जिज्ञासु स्वभाव के व्यक्ति थे। यही नहीं, उनमें सीखने की ललक थी। इन प्रवृत्तियों ने उनमें अवलोकन का वरदान सहज ही उत्पन्न कर दिया था। वे हर दृष्टि से बात को परखते थे। कार्यकुशल व सफल व्यवस्थापक बनने की पात्रता के लिए दक्ष संगठक, प्रभावी वक्ता, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, सच्चाई आदि गुण नितांत आवश्यक हैं। गांधीजी के जीवन का प्रमुख उद्देश्य देश की स्वतंत्रता था। उनमें मनुष्य के मनोविज्ञान को समझने की असीम क्षमता थी। वे इस बात से भलीभाँति परिचित थे कि किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय जन हिंसा का मार्ग कदापि नहीं अपनाएँगे। इस कारण उन्होंने स्वयं को बदला और ऐसे काम किए, जो पहले कभी नहीं हुए थे। उनकी जीवनगाथा ने एक बार फिर मार्केटिंग में सफल होने के गुरों को उजागर किया।
गांधीजी का मैनेजमेंट जरा भी कठिन नहीं है, इसे सहज ही अपनाया, आत्मसात् कर व्यवहार में लाया जा सकता है। सरलता से, समयबद्ध ढंग से सभी काम करना, परस्पर मानसम्मान बाँटना, किसी का हक नहीं छीनना इत्यादि नैतिक गुण मैनेजमेंट के आधारस्तंभ हैं।
इस पुस्तक में महात्मा गांधी के जीवन से प्रतिबिंबित होनेवाले मैनेजमेंट सूत्रों का चित्रण किया गया है, जो हर पाठक को जीवन की चुनौतियों से जूझने की शक्ति प्रदान करेंगे।
Gandhi Ke Sapno Ka Bharat by Mahesh Prasad Singh
राष्ट्रीय संदर्भ में तो आज गांधी की शिक्षाओं तथा प्रयोगों की जरूरत काफी बढ़ गई है। खेद की बात यह है कि जिस देश के महान् मनीषी ने विश्व को अनेक उच्च विचार दिए, विश्व मानवता को संकटों से मुक्ति का मार्ग बताया, उसी के महान् भारत में स्वाभिमान, राष्ट्रीयता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, सहनशीलता आदि गुणों का ह्रास हो रहा है और देश के चारों तरफ समस्याओं के काले बादल छाने लगे हैं।
हमें आज की परिस्थितियों में यह देखकर निश्चित रूप से प्रसन्नता हुई है कि देश और विदेश सभी जगह लोगों ने कुछ हद तक गांधी के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है और वह दिन अब अधिक दूर नहीं जब दुनिया का हर व्यक्ति गांधीवादी पद्धति का अवलंबन शुरू कर दे। ऐसा होगा, तभी मानवता को जीवित रखा जा सकता है। अमेरिका, इंग्लैंड, पश्चिम जर्मनी, जापान और अन्य दूसरे विकसित देशों के लोग आज गांधी द्वारा बताए गए अहिंसात्मक प्रतिरोध के द्वारा अपनी- अपनी सरकारों पर दवाब डाल रहे हैं कि वे मानवता का संहार करनेवाले हथियारों पर प्रतिबंध संबंधी बातचीत में तेजी लाएँ।
महात्मा गांधी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कार्यों में अंतर करने को तैयार नहीं थे। वे मानते थे कि मनुष्य के सभी कार्य एवं समस्याएँ मूल रूप में नैतिक हैं, अत: उनका समाधान भी नैतिक उपायों से ही संभव है।
गांधी के सपनों का भारत में विद्वान् लेखक ने गांधीजी के सिद्धांतों और जीवन-मूल्यों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि हम सब अगर गांधीजी के बताए रास्ते पर चलें तो एक सशक्त, लोककल्याणकारी और गांधीजी के सपनों के भारत का निर्माण कर सकते हैं। आओ, हम सब भारतवासी इस पुनीत कार्य में भागीदार बनें ।
Gandhi Laute by Manu Sharma
गांधी लौटे
अध्ययन और आस्था के साथ आकर्षक शैली में लिखी गई यह पुस्तक ‘गांधी लौटे’ जब हमारे जैसे गांधी-सेवकों के पास पहुँचती है तो विशेष प्रसन्नता होती है। लेखक श्री मनु शर्मा ने ‘फैंटेसी’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इस विधा का प्रयोग इस पुस्तक को अधिक रुचिकर बना देता है, जिसके कारण गंभीर दार्शनिक विषय भी सहज पठनीय बन जाता है। इसके लिए लेखक विशेष सराहना के पात्र हैं।
वाराणसी के ‘आज’ समाचार-पत्र के लिए स्तंभ के रूप में लिखे गए इन लेखों में स्वाभाविक ही उस समय की घटनाओं का जिक्र आ जाता है, जो उस समय की राष्ट्रीय व सामाजिक गतिविधियों को प्रस्तुत करता है। गांधी-विचार के विविध पहलुओं को लेखक ने इतने सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है कि हर कोई इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहेगा।
—निर्मला देशपांडे
(प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक)
Gandhiji Hind Swaraj Se Nehru Tak by Devendra Swarup
अनेक राजनेता, इतिहासकार और जिज्ञासु एक प्रश्न उठाते रहे हैं। आखिर गांधीजी ने 1946 में सरदार पटेल का नाम वापस करवाकर नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष क्यों बनाया? जबकि 15 में से 13 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया था और नेहरू का नाम कहीं से नहीं आया था। गांधीजी जानते थे कि जो अभी कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा, वही देश का प्रधानमंत्री भी बनेगा। तब उन्होंने अपने ‘हिंद स्वराज’ के सिद्धांतों से असहमति जतानेवाले नेहरू के हाथों देश की बागडोर सौंपने का निर्णय क्यों लिया? यह भी विचारणीय है कि गांधीजी अपने जीवनकाल में ‘हिंद स्वराज’ में प्रस्तुत अपने सपने को कितनी मात्रा में साकार कर पाए? यदि गांधीजी जैसा महान् व्यक्तित्व वह नहीं कर पाया तो क्या उनके बाद नेहरू से उसकी अपेक्षा की जा सकती थी? इस पुस्तक में इन प्रश्नों के आलोक में गांधीजी के जीवन-दर्शन और उनकी मूल निष्ठाओं को समझने का प्रयास किया गया है।
Gandhiji Ki Swadesh Wapsi Ke 100 Varsh by Razi Ahmed
9 जनवरी, 1915 को हिंदुस्तान वापसी की ऐतिहासिक घटना के सौ वर्ष पूरा होने की अहमियत के मद्देनजर 9 जनवरी, 2015 को गांधी संग्रहालय, पटना में दो सत्रों में पूरे दिन का कार्यक्रम आयोजित हुआ। विचार गोष्ठी में जितने भी आलेख प्रस्तुत किए गए या विचार रखे गए, उनमें 9 जनवरी, 1915 का ऐतिहासिक दिन ही उनका केंद्रबिंदु रहा। इस क्रम में अपनी स्वदेश वापसी को गांधीजी ने खुद किस नजर से देखा है, वह भी दिलचस्प है। उन दिनों की गांधीजी की डायरी के पन्नों के अलावा हिंदुस्तान वापसी और हिंदुस्तान को देखने और समझने के सिलसिले में ‘आत्मकथा’ में गांधीजी के अपनी यात्राओं के अनुभवों के आधार पर जो विचार प्रस्तुत किए हैं, वे भी बडे़ रोचक हैं। अत: उसके कुछ पन्ने भी यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं। इसके साथ-साथ तत्कालीन प्रेस की उस वापसी पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी, उसकी मौलिक जानकारी के लिए उन्हें भी यहाँ प्रस्तुत करना उचित समझा गया है।
9 जनवरी, 2015, यानी गांधीजी की स्वदेश वापसी का शताब्दी समारोह पूरे देश में बड़ी संवेदनशील परिस्थिति में आयोजित हुआ है और यह पुस्तक गांधीजी की विदेश वापसी के 100 वर्षों के बाद उसी घटना संबंधी विचारों को प्रस्तुत करती है, जो पाठकों के लिए बेहद उपयोगी है।
Gandhivadi Kaka Kalelkar by Prakhar Kundan
काका कालेलकर का पूरा नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर था। उन्हें यायावर (घुमक्कड़) भी कहा जाता है। अगर हम काका के जीवनवृत्त का अध्ययन करें तो हमें उनके बहुत से रूप देखने को मिलते हैं—लेखक, शिक्षाविद्, पत्रकार, विद्वान्, समाज सुधारक और इतिहासकार।
काका कालेलकर प्रखर देशभक्त थे। महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के सदस्य थे। शिक्षाविद् के रूप में कालेलकर ने अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की और इसके उपकुलपति भी रहे। सन् 1885 में कर्नाटक के बेलगाँव के बेलगुंडी ग्राम में जनमे कालेलकर को घूमने का बहुत शौक था। उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की और गुजराती, मराठी और हिंदी में अपने यात्रावृत्तांत लिखे। उनके यात्रावृत्तांत इतने सटीक होते हैं कि पाठकों को एहसास होने लगता है, मानो वे भी उसी जगह पहुँचकर साक्षात् उस स्थान को देख रहे हों। उन्होंने गांधीजी पर काफी साहित्य लिखा, जो अब राष्ट्रसंपत्ति के रूप में संरक्षित है।
महान् देशभक्त और शिक्षाविद् काका कालेलकर की प्रेरणाप्रद और अनुकरणीय जीवनगाथा।
Ganga Dadi Zindabad by Prakash Manu
हिंदी के जाने-माने कवि-कथाकार प्रकाश मनु ने बच्चों और किशोर पाठकों के लिए भी खूब लिखा है। उनकी कहानियों में बच्चों की दुनिया का हर रंग, हर खुशबू है—उनकी शरारतें और नटखटपन, उनके शिकवे-शिकायतें, उनके सुख-दु:ख और छोटी-बड़ी परेशानियाँ; साथ ही उनके खेल-कूद, मस्ती, सपने और मिलकर कुछ करने का हौसला भी। यही वजह है कि बच्चे और किशोर पाठक मनुजी की कहानियाँ ढूँढ़-ढूँढ़कर पढ़ते और सराहते हैं। कोई पच्चीस वर्षों तक लोकप्रिय बाल पत्रिका ‘नंदन’ से जुड़े रहे प्रकाश मनु की कहानियों का यही जादू उनकी चुनिंदा किशोर कहानियों की पुस्तक ‘गंगा दादी जिंदाबाद’ में एकदम नए रूप और अंदाज में सामने आया है।
‘गंगा दादी जिंदाबाद’ संग्रह में ‘मास्टर जी’, ‘प्यारे अनुराग के लिए’, ‘जब चित्र बनाए पैरों ने’, ‘मेरे प्यारे नंदू भैया’ और ‘किस्सा घुमक्कड़राम का’ सरीखी मनुजी की बेहद चर्चित किशोर कहानियाँ शामिल हैं, जिन्हें एक साथ पढ़ना रोमांचक अनुभव है। इसी तरह ‘सरस्वती बाबू’, ‘रज्जो की सहेली’, ‘अंधा गायक’, ‘मैं जीत गया पापा’ और ‘तुम भी पढ़ोगे जस्सू’ ऐसी कहानियाँ हैं, जिनमें बचपन के दु:ख और अभावों की छाया है; पर इसके बावजूद जीवन के रास्ते कभी खत्म नहीं होते, और हर मुसीबत के बाद नई राहें निकलती हैं।
विश्वास है, साहित्य अकादेमी के पहले बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित प्रकाश मनु की चुनिंदा किशोर कहानियों का यह संग्रह बच्चे खूब रस लेकर पढ़ेंगे।
Gangaputra Bhishma by Ankur Mishra
देवव्रत से भीष्म की यात्रा मानव-मूल्यों की विस्तृत परंपरा का गान है। इस कृति में लेखक ने कालजयी योद्धा भीष्म के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को स्पर्श किया है। आप जब पुस्तक पढ़ते हैं तो प्रतिपल भीष्म के साथ उनके जीवन की मानसिक यात्रा के साथी बन जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक को सिर्फ महाभारत के आख्यान हेतु नहीं पढ़ा जाना चाहिए, बल्कि तत्कालीन गुप्तचर व्यवस्था एवं समाज व्यवस्था की भी झलक इसमें मिलती है। यही वह समय था, जब धरा को श्रीकृष्ण के रूप में नया नायक मिला था। भीष्म की धर्म-निष्ठा एवं श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त धर्म की सम्यक् व्याख्या हेतु भी पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए।
Ganit Aur Vigyan Ke 100 Sidhant by Rajesh Kumar Thakur
गणित और विज्ञान दोनों ही बड़े रोचक विषय हैं, पर प्राय: देखा गया है कि इनको लेकर छात्रों तथा सामान्य जन को भी मन में डर रहता है। पर थोड़ा परिश्रम करके इनमें हम दक्षता प्राप्त कर सकते हैं और इन्हें अपना मित्र बना सकते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ‘गणित और विज्ञान के 100 सिद्धांत’ गणित और विज्ञान के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को संक्षेप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। इस पुस्तक को लिखते समय यह ध्यान रखा गया है कि विषयवस्तु संक्षिप्त हो, पर सारगर्भित हो, जिससे सुधी पाठक गणित व विज्ञान के सभी महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को पढ़ते हुए आत्मसात् कर पाएँ। जहाँ तक संभव बन पड़ा, चित्र व सरल वाक्यों का प्रयोग किया गया है, जिससे कि विज्ञान और गणित की जटिलता का बोझ पाठकों के मस्तिष्क पर न पड़े।
Ganit Se Kar Lo Dosti by Rajesh Kumar Thakur
सवाल है—या गणित वास्तव में अरुचिकर है? शायद नहीं। यदि ऐसा होता तो गॉस गणित को ‘सभी विषयों की रानी’ कहकर संबोधित नहीं करते। रामानुजन इसके दीवाने नहीं बनते। गणित के प्रति अरुचि का कारण सीधा है। बच्चे इस विषय के साथ जुड़ पाने में असमर्थ हैं, उन्हें इसकी पूर्ण उपयोगिता और महा से अवगत कराने की जिम्मेदारी कोई निभा नहीं रहा है, नहीं तो आर्यभट्ट, भास्कर, रामानुजन की इस धरती पर आज गणित की जय-जयकार हो रही होती।
प्रस्तुत पुस्तक में गणित की इसी कठिनाई को दूर करने का एक प्रयास किया गया है। यह पुस्तक वैदिक गणित के सिद्धांतों के साथ-साथ कई ऐसी बातें अपने आप में सँजोए हुए है, जो गणना को सरल करने में कारगर साबित होंगी।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी खूबी एक अभिनव प्रयोग है, जिससे आप जमा, घटा बाईं ओर तथा दाईं ओर से आसानी से कर पाएँगे। इन सबके लिए आपको किसी सूत्र को याद रखने की आवश्यकता भी नहीं है।
पुस्तक की भाषा इतनी सरल है कि आप इसे खुद ही सीखकर आसानी से गणित में दक्षता हासिल कर सकते हैं।