Hindi Literature
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Mann Ki Baat : Samajik Chetna Ka Agradoot by Siddhartha Shankar Gautam
लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित कर चुका भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ लोगों के हृदय में स्थान बनाने के साथ ही जन-चेतना जाग्रत् करने के सशक्त माध्यम के रूप में उभरकर आया है। ‘मन की बात’ मात्र एकपक्षीय कार्यक्रम नहीं है, वरन् इसके द्वारा आम लोगों की बात एवं मनोस्थिति को पूरा देश सुनता है। वैश्विक परिदृश्य में ‘मन की बात’ इकलौता ऐसा कार्यक्रम है, जिसके चलते देश का प्रधानसेवक अपनी जनता से सीधे जुड़ा हुआ है।
‘सामाजिक चेतना का अग्रदूत : मन की बात’ द्वारा कार्यक्रम से जुड़े जन-हितैषी मुद्दों की गहन पड़ताल की गई है कि कैसे उक्त मुद्दों ने सामाजिक-चेतना जाग्रत् करने का उपक्रम किया है। लेखक ने गहन शोध और अध्ययन करके इस कार्यक्रम के माध्यम से जो चेतना, और समझ विकसित की है, इसमें उसका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। हर माह प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में ऐसे विषयों को संबोधित करते हैं, जो राजनीति से परे परंतु आम आदमी के हितों से सीधे जुड़े होते हैं। निश्चित रूप से उनकी यह पहल अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के जीवन में बदलाव ला रही है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। पुस्तक द्वारा यह बताने की कोशिश की गई है कि कैसे राजनीति से इतर भी आम आदमी राष्ट्र की मुख्यधारा में जुड़कर अपने समाज व राष्ट्र की उन्नति में योगदान दे सकता है।
Mann Ki Baatein by Kiran Sharma
मन की बातें’ किरण शर्मा द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक है जिसकी भाषा अत्यंत सहज एवं सरल है। इस पुस्तक में बाल सुलभ सौंदर्य, युवावस्था की अनिश्चितता एवं नादानियाँ, परिपक्वता की प्रतिबद्धता एवं दुविधाएँ तथा जीवन के चरम लक्ष्य को पाने के लिए मन के द्वारा उद्गारित बातों को अत्यंत सरल ढंग से बताने का रोचक, मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक प्रयास किया गया है जिसके कारण यह पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए पठनीय है।
Mano To Thik Na Mano To Thik by Eng. Arun Kumar Jain
सदियों से हमारे देश में धर्मगुरुओं एवं आध्यात्मिक शक्तियों ने राजामहाराजाओं एवं शासन पद्धति को सही दिशा में ले जाने के लिए मार्गदर्शन किया है। राजनीति में धार्मिक आधार पर भावनाओं को भड़काकर लाभ उठाना किसी भी रूप में ठीक नहीं है, किंतु शासनप्रशासन में अपनी धर्मसंस्कृति की श्रेष्ठ परंपराओं से प्रेरणा लेकर कार्य करने को किसी भी रूप में अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
किसी भी पार्टी या संगठन में जब तक समग्र टीम का विकास नहीं होता है, तब तक उसे सफलता नहीं मिल सकती है। भारत के राजनैतिक दलों की यह जिम्मेदारी है कि वक्त के मुताबिक अपने को बदलें। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि यह वक्त देश को व्यक्तिवाद एवं परिवारवाद से निकालकर राष्ट्रवाद की तरफ ले जाने का है।
अपने राष्ट्र एवं समाज के बारे में युवा जिस प्रकार सोचेगा, वैसा ही देश का भविष्य होगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि युवाओं को अपनी गौरवमयी सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित कराया जाए। यदि युवा वर्ग ठीक से अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को जान एवं समझ गया तो वह पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति की तरफ आकर्षित नहीं होगा।
—इसी पुस्तक से
विचारक एवं मनीषी इंजीनियर अरुण कुमार जैन के प्रभावोत्पादक विचारों के कुछ सूत्र इस पुस्तक में संकलित हैं, जो राष्ट्रीय सरोकारों के प्रति सजग होने के लिए सचेत करते हैं। अत्यंत पठनीय एवं रोचक पुस्तक।
Manu Sharma Ki Lokpriya Kahaniyan by Manu Sharma
मनु शर्मा की कहानियाँ हमारे दौर के समाज का आईना हैं। हमारे रोजमर्रा के जीवन का प्रतिबिंब हैं। इनमें कुछ भी बनावटी नहीं है। न जबरन किसी ‘वाद’ की तरफदारी, न बेवजह की झंडाबरदारी। मनु शर्मा की रुचि मनुष्य में रही है। किसी ‘वाद’ में नहीं। ‘वाद’ या ‘इज्म’ मनुष्य से बड़े नहीं होते। कबीर या रसखान का कौन सा वाद था? लोकहित के पाले में खड़ा हो लोकचेतना को व्यक्त करना ही इस रचनाकार का धर्म है। उनकी कहानियों में जीवन की समस्याएँ हैं। बदलता परिवेश है। आधुनिकता की दौड़ में घुटती मान्यताएँ हैं। ‘जो जहाँ है जैसा है’ की शक्ल में। लेकिन सबकुछ सहज भाषा में।
मनु शर्मा के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता जीवन और समाज पर उनकी पैनी दृष्टि है। यह दृष्टि जहाँ पड़ती है, चरित्र, परिस्थितियों और माहौल का एक हूबहू एक्स-रे सा खिंच जाता है। उनकी कहानियाँ जीवन के कटु यथार्थ की जमीन पर रोपी हुई हैं। इनमें न दुःखांत का आग्रह है, न सुखांत का दुराग्रह। कहानी खुद तय करती है कि उसकी शक्ल क्या होगी। इन कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि मानो पाठक एक यात्रा पर निकला हो और उसके अनुभव जीवन के तमाम द्वीपों से गुजरते हुए समाज और काल में फैल गए हों। पाठक इसका गवाह बनता है। इस वृत्तांत का सम्मोहन इतना कि पाठक को पहले शब्द से लेकर अंतिम विराम तक एक अजीब किस्म के चुंबकत्व का बोध होता है। यही मनु शर्मा की कहानियों का यथार्थ है। उन्हें आलोचक भले न मिले हों, पर पाठक भरपूर मिले।
आलोचना के क्षेत्र में पराजित एक लेखक की ये अपराजित कहानियाँ हैं।
Manusmriti Aur Adhunik Samaj by Prof. Ram Gopal Gupt
‘मनुस्मृति’ सामाजिक व्यवस्था, विधि, न्याय एवं प्रशासन-तंत्र पर विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है, जो विद्वान् महर्षि मनु द्वारा संस्कृत की पद्यात्मक शैली (श्लोकों) में लिऌा गई है। इस ग्रंथ में मनु ने तत्कालीन समाज में प्रचलित कुरीतियों एवं मनुष्य के स्वभाव का अति सूक्ष्म परिवेक्षण कर मानव-समाज को सुव्यवस्थित, सुऌखी, स्वस्थ, संपन्न, वैभवशाली एवं सुरक्षित बनाने हेतु विविध नियमों का प्रावधान किया है, ताकि नारी व पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग, विद्वान् व अनपढ़, स्वस्थ व विकलांग, संपन्न व गरीब, सभी सऌमान एवं प्रतिष्ठा के साथ रह सकें तथा समाज और देश की चतुर्मुऌा उन्नति में अपना प्रशंसनीय योगदान करने में सफल हों।
मनुस्मृति किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है। यह वास्तव में मानव-धर्म की पुस्तक है तथा समाज की तत्कालीन स्थिति से परिचित कराती है। समाज की सुव्यवस्था हेतु मनुष्यों के लिए जो नियम अथवा अध्यादेश उपयुत समझे, मनु ने इस मानव-धर्म ग्रंथ में उनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इसमें मानवाधिकारों के संरक्षण पर अनेक श्लोक हैं। मनुस्मृति में व्यतियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, उनकी योग्यता एवं रुचि के अनुसार उनके कर्म निर्धारित किए गए हैं तथा कर्मानुसार ही प्रत्येक व्यति के अधिकारों, कर्तव्यों, उारदायित्वों एवं आचरणों के बारे में स्पष्ट मत व अध्यादेश अंकित हैं।
सरल-सुबोध भाषा में समर्थ-सशत-समरस समाज का मार्ग प्रशस्त करनेवाला ज्ञान-संपन्न ग्रंथ।
Marang Gomke Jaipal Singh Munda by Ashwini Kumar ‘Pankaj’
कौन थे जयपाल सिंह मुंडा? इनका भारतीय स्वतंत्रता और नए भारत के निर्माण में राजनीतिक-बौद्धिक योगदान क्या था? वे जिस आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उसकी आकांक्षाएँ क्या थीं? इस बारे में आजादी के सत्तर साल बाद भी इतिहास चुप है। एक तरफ गांधी-नेहरू, जिन्ना, अंबेडकर सहित अनेक राजनीतिज्ञों पर सैंकड़ों पुस्तकें हैं, पर जयपाल सिंह मुंडा पर एक भी नहीं है। यह कितनी हैरत की बात है कि झारखंड आंदोलन में कूदने से पहले और देश के संविधान निर्माण सभा में लाखों आदिवासियों के लिए निडरता से दहाड़नेवाले जिस आदिवासी ने देश के लिए आई.सी.एस. छोड़ी, जिसकी कप्तानी में भारत ने पहला हॉकी का ओलंपिक स्वर्ण जीता, जिसने अफ्रीका और भारत के कॉलेजों में अध्यापन के दौरान अपनी शिक्षकीय योग्यता से प्रभु वर्ग को प्रभावित किया, जो गुलाम भारत में किसी ब्रिटिश कंपनी में सर्वोच्च पद पर काम करनेवाला पहला भारतीय (वह भी आदिवासी) था, जिससे पढ़ने के लिए भारत के राजा-रजवाड़े लालायित रहते
थे, जो ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में गोल्डमेडलिस्ट था, हॉकी में एकमात्र भारतीय ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ खिलाड़ी था और जो कॉलेज के दिनों में विभिन्न सभा-सोसायटियों का नेतृत्वकर्ता संयोजक-अध्यक्ष था, उसे इस लायक भी नहीं समझा गया कि उसकी चर्चा हो।
—इसी पुस्तक से
Marathi Ki Lokpriya Kahaniyan by Dr. Damodar Khadse
समय की धारा में बहते व्यक्ति, समाज तथा देश से उठती लहरें, ध्वनियाँ हर काल में रचनाकारों को स्पंदित करती रही हैं। समसामयिक परिवर्तनों, चुनौतियों, दृश्यों, क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं की प्रतिध्वनियों को कहानियों में सुना जा सकता है। मराठी कहानियाँ भी अपने समय के साथ आगे बढ़ती रही हैं। सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक चेतना और परिवर्तनों को साहित्य अपने में समेटता चलता है। इन्हीं प्रभावों से कहानी का पर्यावरण बनता है। उसके संदर्भ, स्वरूप और सरोकारों से जीवन विषयक अनुभूतियों का अनुभव किया जा सकता है।
भूमंडलीकरण व व्यापार से मनुष्य-व्यवहार तक प्रभावित हो रहा है। दुनिया एक गाँव के रूप में तब्दील हो रही है। आकाश से ही सारा कारोबार, व्यापार, बाजार, लेन-देन है। देश, समाज, भाषा, प्रदेश, जाति, समुदाय से ऊपर उठकर नए मनुष्य की कल्पना समय कर रहा है। पर उसकी सोच उसके अस्तित्व के साथ अनायास ही उभरती है। अंतरराष्ट्रीय मनुष्य के जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी घटती हैं कि वह कहीं नहीं रह पाता।
‘मराठी की लोकप्रिय कहानियाँ’ में हर शैली, विशेषता, विशेष-परंपरा की कहानी को समेटने की कोशिश की गई है। हर कथाकार की अपनी एक शैली और खूबी होती है। प्रयास रहा है कि प्रातिनिधिक रूप में विविधता की छटा इस संग्रह से परिलक्षित हो। मराठी कथा-संसार का फलक इतना विस्तृत है कि बहुत कुछ छूट ही जाता है; इसलिए एक अधूरापन अनुभव होता रहता है। फिर भी, अधिकांश महत्त्वपूर्ण कथाकार शामिल हुए हैं। ये विशिष्ट भी हैं और लोकप्रिय भी।
Mark Twain Ki Lokpriya Kahaniyan by Mark Twain
किसी भी दर्शक के बैठने या खड़े होने की कोई जगह खाली न थी। जामुनी और सफेद रोएँवाले वस्त्रों में सजा कानराड प्रधानमंत्री की कुरसी पर बैठा था। उसके दोनों ओर राज्य के प्रधान न्यायाधीश बैठे थे। बूढ़े ड्यूक ने सख्त हिदायत दी थी कि उनकी बेटी का मुकदमा बिना किसी रियायत के सुना जाए। उसके बाद दिल टूट जाने की वजह से उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था। अब वह चंद दिनों के ही मेहमान थे। बेचारे कानराड ने बहुत मिन्नतें कीं कि उसे अपनी ही बहन के अपराध का मामला सुनने से मुक्त किया जाए, लेकिन उसकी बात नहीं मानी गई।
उसे यह देखकर बहुत दुःख पहुँचा कि लोगों को पहले उसमें जो दिलचस्पी थी, वह कितनी तेजी से खत्म हो गई थी। लेकिन उसे काम तो चाहिए था। लिहाजा अपमान का घूँट पीकर काम की तलाश में भटकता रहा। आखिरकार उसे ईंटें ढोने का काम मिल गया तो उसने अपने भाग्य को धन्यवाद दिया। अब न कोई उसका परिचित था, न उसकी परवाह करता था। वह जिन नैतिक संगठनों को चंदा दिया करता था, अब वहाँ अपना सहयोग निभाने लायक नहीं रहा था। अतः उसका नाम उन सूचियों में से भी हटा दिया गया और उसे यह पीड़ा भी सहन करनी पड़ी।
—इसी संग्रह से
प्रसिद्ध कथाकार मार्क ट्वेन की रोचक-पठनीय-लोकप्रिय कहानियों का संकलन।
Martial Arts Champion Bruce Lee by Abhishek Kumar
विश्वविख्यात मार्शल आर्ट एक्सपर्ट ब्रूस ली का जीवन संघर्षों की चादर में लिपटा हुआ था। बचपन में उन्हें बार-बार बीमारी से लड़ना पड़ा। शरीर दुर्बल था और राह दिखानेवाला भी कोई नहीं था। बाद के जीवन में उन्हें युद्ध-कला में एक अनिश्चित एवं अस्थिर जीविका से जूझना पड़ा। इसी अनिश्चितता के कारण उसके मन में एक पेशेवर नर्तक बनने का विचार आया। यहाँ तक कि उन्होंने हांगकांग की चा-चा चैंपियनशिप भी जीत ली। लेकिन उनका मन तो कुंगफू में ही रमता था। जीवन भर उन्होंने कुंगफू का ही अभ्यास किया था और जिस शांति की खोज में वह लगे हुए थे। वह शांति उन्हें इससे ही प्राप्त हुई।
अपने काम से उन्होंने दुनिया भर में युवा पीढ़ी को प्रेरित किया था और आज भी करते हैं। वे एक उत्तम अभिनेता थे और आज भी उनकी फिल्में बहुत शौक से देखी जाती हैं। पूरे विश्व में किशोरों के कमरों की दीवारें ली के पोस्टरों से सजी रहती हैं, जो उन्हें एक योद्धा, एक शिक्षक और एक अनुकरणीय व्यक्तित्व के रूप में देखते हैं।
उनके जीवन के हर पहलू से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उनमें शिक्षा है, बुद्धिमानी है और जीवन-दर्शन है। उनका जीवन कई मायनों में प्रेरणाप्रद और अनुकरणीय है।
Mary Kom Ki Jeevangatha by Anita Gaur
विश्वप्रसिद्ध बॉक्सर मैरी कॉम ने इतिहास रचते हुए इंचियोन एशियाड में महिला बॉक्सिंग का स्वर्ण पदक भारत को दिलाया और इस जीत के साथ ही मैरी कॉम एशियन गेम्स में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतनेवाली पहली महिला बॉक्सर बन गईं। आज भारत में महिला बॉक्सिंग का दूसरा नाम है मैरी कॉम। बॉक्सिंग उनकी जिंदगी बन चुकी है, जिसे वे एक जुनून की तरह जी रही हैं। वे सुपर मॉम के अपने पारिवारिक किरदार के साथ बॉक्सिंग में भी देश का नाम रोशन कर रही हैं।
सचमुच मैरी कॉम का जीवन संघर्ष करके अपना पथ स्वयं प्रशस्त करने की प्रेरणा देता है। मणिपुर के छोटे से गाँव में, विपन्न परिवार में जबरदस्त विरोध के बावजूद कड़ी मेहनत, सच्ची लगन और अदम्य इच्छाशक्ति का परिचय देकर मैरी कॉम ने बॉक्सिंग की राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त कर भारत का मान बढ़ाया है।
एक जाँबाज खिलाड़ी की प्रेरणाप्रद जीवनगाथा, जो न जाने कितनी अनजानीअपरिचित प्रतिभाओं को अपना लक्ष्य प्राप्त करने का द्वार खोलेगी।
Mashhoor Hue To Kya Hua? by Soha Ali Khan
मंसूर अली खान पटौदी की बेटी होना कैसा लगता है?
या शर्मिला टैगोर जैसी मशहूर माँ की बेटी होना कैसा लगता है?
या जब लोग सैफ अली खान की बहन के तौर पर जानते हैं?
या फिर करीना कपूर की ननद होना कैसा लगता है?
और उन सबके बीच मैं खुद को कहाँ पाती हूँ?
अभिनेत्री सोहा अली खान की यह पहली पुस्तक वास्तव में उन निजी लेखों का एक बेहतरीन संग्रह है, जिनमें वह अपनी खिल्ली उड़ाने के मजाकिया अंदाज में बताती हैं कि किस प्रकार वह देश के सबसे विख्यात परिवारों में से एक में जनमी-बढ़ीं।
लेखिका के पारिवारिक चित्रों के खजाने से पहली बार अनदेखी तसवीरों के साथ प्रकाशित यह किताब हमें उनके जीवन के दिल को छू लेनेवाले पलों से होकर ले जाती है, जिनमें आधुनिक युग की राजकुमारी से बल्लिओल कॉलेज के दिनों की उनकी जिंदगी और फिर सोशल मीडिया की संस्कृति वाले समय में एक हस्ती बनने तक की कहानी है, जिन्हें उन जगहों पर प्यार मिला जहाँ उम्मीद नहीं थी, और यह सबकुछ ताजगी भर देनेवाली बेबाकी और चुटीले अंदाज में बताया गया है।
एक शाही परिवार में जन्म लेने के बाद भी कैसे आप लोगों की संवेदना को कोई महसूस कर सकता है, यह इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपको जानना आसान होगा।
Mastermind Aur Safalta by Napoleon Hill
किसी भी व्यक्ति की सफलता निश्चित रूप से उसकी उस सोच के जैसी होती है, जिसके मुताबिक वह दूसरों से अपने आप को जोड़ता है। आप को जिस ज्ञान की इच्छा है, अगर उसके बदले में आप कुछ देने को तैयार हैं, तो आप बेशक दुनिया के लिए खुद को इतना उपयोगी बना देंगे कि वह आपकी मरजी के मुताबिक चीजें देने पर मजबूर हो जाएगा।
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अपनी रणनीति को पलटिए, अपनी चाल तेज कर दीजिए, सीधे और सामने देखिए तथा अपने चेहरे पर प्रतिबद्धता का भाव लेकर आइए। फिर देखिए, कितनी तेजी से लोग आपके रास्ते से किनारे हटकर आप को आगे जाने देते हैं।
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सबसे महान् बॉस वह व्यक्ति होता है, जो अपने आप को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बना लेता है, न कि वह व्यक्ति, जो निर्णय के समय और योजनाओं को चुने जाते समय आखिरी बात कहता है। प्रत्येक नेता का मूल मंत्र होना चाहिए—आप में से जो सबसे बड़ा है, उसे सभी का सेवक होना चाहिए।
—इसी पुस्तक से
विश्वप्रसिद्ध सैल्फ-हैल्प विशेषज्ञ नेपोलियन हिल ने व्यक्तित्व विकास के जो सूत्र दिए, वे आज भी प्रासंगिक हैं। हर किसी को प्रेरित करने की क्षमता रखनेवाले ये व्यावहारिक मंत्र आपके मास्टरमाइंड को नई दृष्टि और ऊँचाई प्रदान कर सफलता के द्वार खोलेंगे।
Mata Bhoomi by Dr. Vasudeva Sharan Agrawala
‘माता भूमि’ राष्ट्रीय स्वतंत्रता के संक्रमण काल में लिखे हुए आचार्य वासुदेवशरण अग्रवाल के कुछ लेखों का संग्रह है। इनमें राष्ट्र के उभरते हुए नए स्वरूप के प्रति तथ्यात्मक भावनाएँ हैं एवं उसके जीवन के जो बहुविध पहलू हैं, उनके प्रति ध्यान दिलाया गया है। भूमि, जन और संस्कृति—इन तीनों के मेल तथा विकास से राष्ट्र का स्वरूप बनता है। इन तीनों क्षेत्रों में भूतकाल का लंबा इतिहास भारत राष्ट्र के पीछे है। वह सब हमारे वर्तमान जीवन की रसायन-खाद बनकर उसे रस से सींच रहा है और भावी विकास के लिए पल्लवित कर रहा है। मानवीय विकास की यही सत्य विधि है। अतएव इन लेखों में बारंबार जीवन के प्राचीन सूत्रों की ओर ध्यान दिलाते हुए यह समझाने का प्रयत्न किया गया है कि उनसे हमारा राष्ट्र और जीवन किस प्रकार अधिक तेजस्वी, स्वावलंबी और अपने क्षेत्र में एवं विश्व के साथ समवाय तथा संप्रीति-संपन्न बन सकता है।
राष्ट्रभाव जाग्रत् करने वाले भावपूर्ण लेखों का पठनीय और संग्रहणीय संकलन।
Mata Vaishno Devi by Vidya Sagar Sharma
माता वैष्णो देवी—विद्या सागर शर्मा
जम्मू एवं कश्मीर की आध्यात्मिक गरिमा तथा इसके प्राकृतिक सौंदर्य के कारण ही संसार भर में इसे विशेष स्थान प्राप्त है।
जम्मू एवं कश्मीर में भगवान् शिव तथा माता भवानी के अनेक तीर्थस्थल हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ भगवान् शिव व माता पार्वती की तपस्या-स्थली बाबा अमरनाथ की गुफा कश्मीर के उत्तर में तथा माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा जम्मू के उत्तर की ओर शिवालिक पर्वत-शृंखला में त्रिकुटा पर्वत के मध्य चोटी की कंदराओं में अति-रोमांचकारी दिव्य पिंडियों के रूप में विराजमान है।
आज वैष्णो देवी का यह पवित्र तीर्थस्थल लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। वर्ष भर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ बनी रहती है। जम्मू एवं कश्मीर के जाने-माने लेखक श्री विद्या सागर शर्मा ने ‘माता वैष्णो देवी’ पुस्तक में विश्व प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी तीर्थ को नए प्रारूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें त्रिकुटा पर्वत की 13 कि.मी. की पग-यात्रा के विभिन्न पहलुओं को विस्तारपूर्वक उजागर किया है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि यह पुस्तक न केवल अन्य प्रदेशों से आने वाले यात्रियों अपितु यहाँ के स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए भी एक यात्रा गाइड का कार्य करेगी।
—ए.के. रैना
स्टेट प्रोजेक्ट डायरेक्टोरेट
एस.एस.ए. (शिक्षा विभाग)
जम्मू-कश्मीर (जम्मू)
Matantaran by Ram Swarop Agrawal , Madhukar Shyam Chaturvedi
मतान्तरण
राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान का मूल अधिष्ठान सांस्कृतिक है। विगत कुछ शताब्दियों से भारत की आन्तरिक क्षमता को कम करने, उसकी एकता-अखण्डता को छिन्न-भिन्न करने के उद्देश्य से हिन्दू मत पर लगातार प्रहार किये जा रहे हैं।
राष्ट्र के सांस्कृतिक विघटन तथा भौगोलिक अखण्डता को क्षति पहुँचाने के लिए मतान्तरण को सशक्त माध्यम बनाया गया है। मतान्तरण के माध्यम से ईसाइयत और इस्लाम के अनुयायियों की संख्या में वृद्धि की जा रही है, इससे देश में जनसंख्या-असन्तुलन पैदा हो गया है। सीमावर्ती प्रान्तों में यह असन्तुलन इतना बढ़ गया है कि वहाँ गम्भीर स्थिति पैदा हो गयी है।
हिन्दू मत पर आक्रमण करनेवालों ने हमारी दुर्बलताओं का भरपूर लाभ उठाया है। प्रस्तुत पुस्तक में मतान्तरण और उससे जुड़े सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैधानिक एवं व्यावहारिक पक्षों पर विभिन्न क्षेत्रोðं के विद्वानों ने अपने सारगर्भित विचार एवं अनुभव व्यक्त किए हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हिन्दू मत के समक्ष आन्तरिक व बाह्य, दोनों प्रकार की चुनौतियाँ हैं, जिनसे निपटने के लिए दोनों स्तरों पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
आशा है, सुधी जन पुस्तक का अध्ययन-मनन कर राष्ट्र के समक्ष विकराल रूप में खड़े मतान्तरण के खतरे की भयावहता को समझेंगे और इन चुनौतियों से निपटने के लिए किये जा रहे प्रयासों को बल देंगे। राष्ट्राभिमानी तथा चिन्तनशील प्रबुद्ध जनों के लिए एक उपयोगी—पुस्तक ‘मतान्तरण’।
Match Box 81 by Dr. Lata Kadambari Goel
फास्ट फूड तथा पाउच के जमाने में वक्त की कमी को देखते हुए कहानियाँ भी छोटी-छोटी होनी चाहिए न! बिल्कुल ऐसी कि माचिस की एक डिब्बी में समा जाएँ।
इस पुस्तक में लेखिका ने अपने समाजोपयोगी विचारों और भावों को ‘मैच बॉक्स 81’ में डाला है। जरा जलाइए न उसको। कैसी नीली, पीली, लाल, गुलाबी ‘लौ’ छोड़कर अचानक बुझ जाती है वो नन्हीं सी तीली। ऐसी ही नन्हीं-नन्हीं कहानियों की शक्ल लिये ये ‘तीलियाँ’ मतलब कि ये छोटी-छोटी कहानियाँ हैं, जो अपने ज्ञान की रोशनी से पाठकों के जीवन को प्रकाशमान करेंगी।
लेखिका ने इन कहानियों के माध्यम से जीवन की छोटी-छोटी, लेकिन महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए एक व्यावहारिक ताना-बाना बुनने का कुछ इस प्रकार से प्रयास किया है कि कहानी भीतर तक झकझोर देनेवाला एक सवाल उठाकर खत्म हो जाती है।
जीवन के अंधकार से निकलने का एक छोटा सा प्रयास है ये पठनीय कहानियाँ।
Matoshree by Smt. Sumitra Mahajan
अहिल्याबाई होलकर एक बेटे, एक परिवार की नहीं, समस्त प्राणिमात्र की माँ बन गईं और प्रजा ने उन्हें प्रातः स्मरणीय, पुण्यश्लोका, देवी, लोकमाता मान अपनी आत्मा में स्थान दे रखा है।
प्रस्तुत नाटक ‘मातोश्री’ उसी चरित्र की नाटकीय प्रस्तुति है। लेखिका ने इसे देवी की प्रेरणा से लिपिबद्ध किया है। नाटक पठनीयता के स्थान पर प्रभावी अभिनयता के कारण अधिक गहरा और लंबे समय तक प्रभाव कायम रखता है। सुमित्राजी लेखिका नहीं हैं, लेकिन देवी के प्रति श्रद्धा एवं पूजाभाव ने उनसे नाटक लिखवा सिद्धहस्त नाटककार बना दिया।
नाटक ‘मातोश्री’ देवी अहिल्याबाई के मातृत्व के श्रेष्ठ गुणों का परिचायक है। नाटक न केवल पठनीय है, वरन् मंचनीय भी है, क्योंकि इसमें नाटक एवं मंचन की दृष्टि से सारे तत्त्व मौजूद हैं।
स्वर, भाषा, संवाद पात्रानुकूल हैं। लेखिका ने नाटक के जरिए मातोश्री अहिल्याबाई की पारिवारिक त्रासद जिंदगी को अद्वितीय अभिव्यक्ति दी है।
एक सतत प्रेरणादायी नाटक।
Maun Ka Mahashankh by Bhavna Shekhar
हिंदी कविता के मौजूदा परिदृश्य में धीरे-धीरे जगह बनानेवाली भावना शेखर ने ‘मौन का महाशंख’ तक आते-आते एक पहचान बना ली है। भाव, संवेदना और कथ्य के उर्वर परिवेश में उम्मीद की हरी पत्तियों को अँजुरी में भींचे भावना शेखर के भीतर का कवि कल्पना की पगडंडियों पर चलते हुए हर बार मिट्टी के सच्चे रंग की तरह एक नया जन्म लेता है।
कवयित्री के कचनार-गंधी मन के दरवाज़े जब खुलते हैं तो जैसे जीवन की उदासियाँ किसी एक कोने में ठिठककर रह जाती हैं। मान-मनुहार और उद्दीप्त अनुराग के रंगों से रँगी भावना शेखर की कविताओं पर बेशक वक्त का चाबुक कम नज़र आता है, लेकिन कविताओं के पीछे एक सीधा-सच्चा, निर्मल मन अवश्य है, जो किसी प्रायोजित स्वाँग, दुःख या जद्दोजहद के अहसासों से परे है और परदुःख से कातर होकर किसी लाचार आँसू को अपने भाल पर रखने में अपना गौरव समझता है।
भावना शेखर हिंदुस्तानी ज़बान की कवयित्री हैं, जिनका शायराना अंदाज़ हौले-हौले अपना बना लेता है। वे अपनी कविताओं में पुरुष को प्रतिलोम के रूप में न खड़ा कर स्त्री को महाकविता के अनन्य छंद के रूप में देखे जाने का आग्रह करती हैं।
भावना शेखर की कविताओं में ‘काश’ की कशिश है तो यक्ष हुए जाते मन की विदग्ध चेतना भी। स्त्री की पीड़ा का संसार है तो पुरुष के साहचर्य पर एतबार जतानेवाला एक समावेशी मन भी। उसे भरोसा है, सुषुप्त वेदना की नदी को साँसों के रेशमी कंकड़ फेंककर कोई हौले से जगा दे तो अँगड़ाई लेकर नदी जी उठेगी और पत्थर का सीना भी बज उठेगा; जैसे मौन में महाशंख।
—ओम निश्चल
Maun Muskaan Ki Maar by Ashutosh Rana
मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प्रेरणा) की समाप्ति ही प्लतालना (प्रतारणा) है।’’ मैं आश्चर्यचकित था, लामचंद पुनः ‘र’ को ‘ल’ बोलने लगे थे। इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देखकर मैं दंग रह गया। वे अब बूढ़े भी दिखने लगे थे। बोले, ‘‘इनसान की इच्छा पूलती (पूर्ति) होना ही स्वल्ग (स्वर्ग) है, औल उसकी इच्छा का पूला (पूरा) न होना नलक (नरक)। स्वल्ग-नल्क मलने (मरने) के बाद नहीं, जीते जी ही मिलता है।’’
मैंने पूछा, ‘‘फिर देशभक्ति क्या है?’’ अरे भैया! जरा सोशल मीडिया पर आएँ, लाइक-डिस्लाइक (like-dislike) ठोकें, समर्थन, विरोध करें, थोड़ा गालीगुप्तार करें, आंदोलन का हिस्सा बनें, अपने राष्ट्रप्रेम का सबूत दें। तब देशभक्त कहलाएँगे। बदलाव कोई ठेले पर बिकनेवाली मूँगफली नहीं है कि अठन्नी दी और उठा लिया; बदलाव के लिए ऐसी-तैसी करनी पड़ती है और करवानी पड़ती है। वरना कोई मतलब नहीं है आपके इस स्मार्ट फोन का। और भाईसाहब, हम आपको बाहर निकलकर मोरचा निकालने के लिए नहीं कह रहे हैं; वहाँ खतरा है, आप पिट भी सकते हैं। यह काम आप घर बैठे ही कर सकते हैं, अभी हम लोगों ने इतनी बड़ी रैली निकाली कि तंत्र की नींव हिल गई, लाखों-लाख लोग थे, हाईकमान को बयान देना पड़ा। मैंने कहा कि यह सब कहाँ हुआ, बोले कि सोशल मीडिया पर इतनी बड़ी ‘थू-थू रैली’ थी कि उनको बदलना पड़ा।
प्रसिद्ध सिनेमा अभिनेता आशुतोष राणा के प्रथम व्यंग्य-संग्रह ‘मौन मुस्कान की मार’ के अंश।
Maupassan Ki Lokpriya Kahaniyan by Guy De Maupassant
“कितनी ही बार तो मैंने इस खुशी को तुममें देखा है! मैंने इसे तुम्हारी आँखों में देखा और अनुमान किया है। तुमने अपने बच्चों को अपनी जीत समझकर उनसे प्यार किया, इसलिए नहीं कि वे तुम्हारा अपना खून थे। वे तो मेरे ऊपर तुम्हारी जीत के प्रतीक थे। वे प्रतीक थे मेरी जवानी, मेरी खूबसूरती, मेरे आकर्षण, मेरी प्रशंसाओं के ऊपर और उन लोगों पर तुम्हारी जीत के जो मेरे आगे खुलकर मेरी प्रशंसा नहीं करते थे, बल्कि धीमे शब्दों में करते रहते थे। तुम उन पर घमंड करते हो, उनकी परेड लगाते हो, तुम उन्हें अपनी गाड़ी में ब्वा द बूलॉनी में घुमाने और मॉमॉराँसी में चड्डी गाँठने ले जाते हो। तुम उन्हें दोपहर का शो दिखाने थिएटर ले जाते हो, ताकि लोग तुम्हें उनके बीच देखें और कहें, ‘कितना रहमदिल बाप है!’
“औरत द्वारा अपने पति को धोखा देने की बात मैं कभी नहीं मान सकती। यदि मान भी लिया जाए कि वह उसे प्रेम नहीं करती, अपनी कसमों और वायदों की परवाह नहीं करती, फिर भी यह कैसे हो सकता है कि वह अपने आपको किसी दूसरे पुरुष के हवाले कर दे? वह दूसरों की आँखों से इस कटु-षड्यंत्र को कैसे छिपा सकती है? झूठ और विद्रोह की स्थिति में प्रेम करना कैसे संभव हो सकता है?”
—इसी पुस्तक से
विश्वप्रसिद्ध कथाकार गाय दी मोपासाँ की असंख्य कहानियों में से चुनी हुई कुछ लोकप्रिय कहानियाँ, जिनमें मानवीय संवेदना है, सामाजिक सरोकार हैं और जीवन के विविध रंगों की झाँकी है।
Mauritius Ki Swarnim Smritiyan by Ramesh Pokhariyal ‘Nishank’
मॉरीशस भारत से दूर ‘ एक और भारत ‘ की अनुभूति करानेवाली यात्रा है । माँ गंगा की एक और धरती का साक्षात् दर्शन- ‘ गंगोतरी से गंगा सागर ‘ जैसी ।
मॉरीशस उन पुरखों की जीवटता की कहानी है, जिन्होंने दासता की दारुण यंत्रणाओं के बीच भी अपनी संस्कृति व संस्कारों को बचाए रखा । नई पीढ़ियों ने इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए अपनी जन्मभूमि मॉरीशस को समृद्ध, सुसंस्कारित ही नहीं बल्कि मातृभूमि भारत का जीवंत प्रतिरूप ही बना दिया । यही नहीं, दास बनाकर लाए गए पुरखों की इन संततियों ने स्वयश से यशस्वी बनकर आज यहाँ की बागडोर भी सँभाल ली है ।
जो लोग कठिन-से-कठिन स्थितियों में भी हार माननेवाले नहीं होते, स्वयं यश अर्जित करनेवाले, सबके प्रति सरल होते हैं, और मन में जो ठान लिया, उसे कर दिखानेवाले होते हैं ऐसे कर्मठ लोग ही मनुष्यों में शिरोमणि होते हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक में मॉरीशस की सांस्कृतिक झाँकी, पर्व, त्योहार, वेश- भूषा, खान-पान तथा विकसित मॉरीशस की विकास-यात्रा सरसता से सँजोई गई है ।
मॉरीशस की स्वर्णिम स्मृतियों का झरोखा है यह पुस्तक ।
Mayamrig by Dr. Nilima Singh
कहानियाँ दो तरह की होती हैं। एक तो मन से निकलकर कागज पर अपना आकार ग्रहण करती हैं; जैसे पहाड़ के उद्गम से जो जलस्रोत निकलता है, वह अपना रास्ता स्वयं बनाता हुआ आगे बढ़ता जाता है, उस झरने की पहले से कोई निश्चित राह नहीं होती—उसी तरह मन के अंत:करण से जो कहानियाँ निकलती हैं, वे अपना आकार स्वयं गढ़ती हैं। अगर हम उसमें कुछ छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं तो कथ्य तो रह जाता है, भाव लुप्त हो जाता है।
दूसरे प्रकार की कहानी बुद्धि से प्रेरित होकर लिखी जाती हैं, जहाँ शिल्प, भाषा और वस्तु-विधान के साँचे में उसे ढाला जाता है। यह सही है, वैसी कहानी टेक्नीक और क्राफ्ट के मामले में उत्तम कोटि की होती है; लेकिन संवेदना के स्तर पर वह मन को छू नहीं पाती। वह हमारे मस्तिष्क में प्रश्नचिह्न खड़ा करती है, जिस विषय पर भी लिखा गया हो, उस पर चर्चा-परिचर्चा करने को बाध्य करती है। अंतर बस इतना ही है कि मन से या आत्मा से निकली कहानी मन को छूती है, बुद्धि से लिखी कहानी बौद्धिक स्तर पर छूती है।
‘मायामृग’ प्रतीक है जीवन के उन सुनहरे सपनों का, जिनके पीछे हम पूरी उम्र अनवरत भागते रहते हैं। लेकिन सत्य तो यही है न कि सुनहरा मृग होता ही नहीं! जिसने भी मायामृग को पाना चाहा, उसे दु:ख और दर्द के सिवा कुछ नहीं मिला। लेकिन लोग भी कहाँ जान पाते हैं कि जिस प्रेम और विश्वास की तलाश में हम भटक रहे हैं, वह कहीं है ही नहीं? कुछ ऐसा ही बोध कराती हैं इस संग्रह की रोचक एवं पठनीयता से भरपूर मर्मस्पर्शी कहानियाँ।
Mayan by Anand Prakash Maheshwari
‘मायण’ मात्र एक कथानक नहीं है। यथार्थ के तानों-बानों पर आधारित यह मार्मिक अभिव्यक्ति जहाँ एक ओर कैंसर के उपचार से जुड़े विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालती है, वहीं दूसरी ओर जीवन के उतार-चढ़ाव में निहित मानवीय एवं आध्यात्मिक दर्शन में अपनी पैठ बनाती है। बंधनों की अवस्था से गुजरती हुई यह कथा अपने मूल पात्र को उन्मुक्तता के उस मुकाम पर ले जाती है जहाँ सब अकथ हो जाता है।
कैंसर के साथ भी जीवन को सकारात्मक विचारों और बिना पीड़ा के जिया जा सकता है। यह पुस्तक कैंसर-पीडि़त के परिवार-जनों का भी भरपूर मार्गदर्शन करती है। चिकित्सा क्षेत्र में सक्रिय, स्वास्थ्य-सेवी ही नहीं, कैंसर के बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा रखनेवाले आम जन के लिए भी एक पठनीय उपन्यास।
Mba Meri Manzil by Rajiv R. Thakur
इस पुस्तक में लेखक डॉ. राजीव आर. ठाकुर ने बहुत ही सरलता से रूक्च्न से संबंधित सभी बारीकियों का विवरण दिया है, जो पाठकों के लिए काफी उपयोगी होगा। नामांकन से लेकर पाठ्यक्रम की पढ़ाई-लिखाई, व्यक्तित्व निर्माण एवं प्लेसमेंट की तैयारी, व्यक्तिगत मूल्यों तक की चर्चा की है। इस पुस्तक की एक विशेषता इसमें संकलित समाज के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की राय हैं, जो लेखक की अपनी राय और अनुभव से अलग प्रस्तुत की गई हैं। कुल मिलाकर ‘रूक्च्न मेरी मंजिल’ ने अपनी मंजिल पाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
छात्रों एवं अभिभावकों के अलावा यह पुस्तक कोचिंग इस्टीट्यूट, अंडर ग्रेजुएट कॉलेजों, प्लस टू स्कूलों में काफी उपयोगी सिद्ध होगी, खासकर उन छोटे शहरों में, जहाँ अब भी सूचना एवं अनुभव का खासा अभाव है। छात्रों में भी वैसे छात्र जो अभी मैनेजमेंट को कॅरियर बनाना चाहते हैं और वैसे छात्र, जो अभी 12वीं या अंडर ग्रेजुएशन में हैं और उन्हें अपना मार्ग चुनना है, दोनों के लिए ही यह पुस्तक लाभप्रद होगी।
पुस्तक में बताई गई बातें छात्रों को मैनेजमेंट क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाने में काफी मदद करेंगी और उन्हें सफल बनाएँगी। छात्रों के अलावा माता-पिता, अभिभावकों, शिक्षकों के लिए भी यह पुस्तक उपयोगी रहेगी।
Mcdonald’s Success Story by pradeep Thakur
मैकडोनाल्ड्स को सेवा (सर्विस) ब्रांड माना जाता है। जी हाँ, विश्व में चंद ब्रांड ही ऐसे हैं, जो मैकडोनाल्ड्स से अधिक पहचाने जाते हैं। सच तो यही है कि अब सलीब में टँगे ईसामसीह का चित्र की तुलना में मैकडोनाल्ड्स के सुनहरे मेहराव (गोल्डन आर्चेज) को ज्यादा लोग पहचानते हैं। ध्यान देने की बात यह भी है कि चाहे वे वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) का विरोध करनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता हों या सरकारी स्वास्थ्य अधिकारी या फिर बच्चों के मोटापे को लेकर चिंतित माता-पिता मैकडोनाल्ड्स सभी दिशाओं से विरोध को झेलता हुआ आगे बड़ा है। यही कारण है कि मैकडोनाल्ड्स को बहुधा विश्व का सबसे अधिक घृणा किए जानेवाला ब्रांड भी कहा जाता है, लेकिन इन विरोधों के बाद भी मैकडोनाल्ड्स विश्वव्यापी ब्रांड के रूप में अपने प्रभाव को कायम रख सका है, तो इसका प्रमुख कारण उसकी जनसंपर्क रणनीति रही है। रोनाल्ड मैकडोनाल्ड हाउस चैरिटीज (आर.एम.एस.सी.) के अंतर्गत दुनिया के 57 देशों में 322 घर से बाहर घर संचालित किए जा रहे थे, जिनमें नजदीकी अस्पतालों में अपने बच्चों का इलाज करा रहे जरूरतमंद परिवारों को हर रात कुल 7200 शयन-कक्षों की सुविधा प्रदान की जा रही थी। इसके अलावा भी मैकडोनाल्ड्स कंपनी स्तर पर व क्रोक फाउंडेशन के माध्यम से कई तरह के सेवाकार्यों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है।
Media Ka Vartman Paridrishya by Rakesh Praveer
मीडिया को चौथा स्तंभ यों ही नहीं कहा गया। जब न्याय के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब मीडिया ही एक माध्यम बचता है, किसी भी पीड़ित की मुक्ति का, उसके लिए न्याय का राजपथ मुहैया कराने में; लेकिन राकेशजी की मेधा सिक्के के दूसरे पहलू को नजरंदाज नहीं करती। वे हमारे देश में ही नहीं, दुनिया भर में मीडिया के दुरुपयोग और उससे समाज को होनेवाली क्षति से परिचित हैं। फेक न्यूज, पेड न्यूज, दलाली, ब्लैकमेलिंग, पीत-लेखन का जो कचरा मीडिया के धवल आसमान पर काले बादलों की तरह छाया हुआ दिखता है, वह उन्हें बहुत उद्वेलित करता है, क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता को बदलाव के एक उपकरण की तरह चुना था, न कि किसी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा के तहत।
प्रस्तुत पुस्तक पत्रकारिता की लंबी परंपरा के संदर्भ में आज उसकी चुनौतियों और खतरों पर विस्तार से प्रकाश डालने की कोशिश करती है। इस काम में उनकी पक्षधरता बिल्कुल स्पष्ट है। आज के जीवन में चारों ओर राजनीति है। उससे मुक्त होना संभव नहीं है, लेकिन यह साफ होना चाहिए कि आपकी राजनीति क्या है। मुक्तिबोध इसीलिए पूछते हैं, ‘पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ राकेश प्रवीर की पॉलिटिक्स बिल्कुल साफ है। वे एक पत्रकार या मीडियाकर्मी के रूप में हमेशा पीड़ित के पक्ष में खड़े रहने में यकीन करते हैं।
मीडिया के वर्तमान परिदृश्य को जानने-समझने में सहायक एक महत्त्वपूर्ण पठनीय पुस्तक।
-सुभाष राय प्रधान संपादक, जनसंदेश टाइम्स
Media Mein Career by Pushpendra Kumar Arya
मीडिया में कैरियर
मीडिया के क्षेत्र में बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में एक विषय और एक व्यवसाय दोनों ही दृष्टियों से अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। अब यह प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रसारण, जनसंपर्क, विज्ञापन तथा परंपरागत मीडिया जैसे प्रचलित रूपों में ही सीमित नहीं रहा है। उद्योग में दिन-दूनी रात-चौगुनी प्रगति के साथ ही कॉरपोरेट संचार तथा इंटरनेट पत्रकारिता के साथ-साथ कुछ नए मीडिया क्षेत्र भी अस्तित्व में आए हैं। परिणामस्वरूप कई ऐसे नए व्यवसायों का अभ्युदय हुआ है, जो पूर्व में नहीं थे।
वर्तमान दौर में भारतीय परिप्रेक्ष्य में मीडिया को लेकर आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह दौर मीडिया के क्षेत्र में क्रांति का दौर है।
मीडिया अथवा जनसंचार के क्षेत्र में इसके शैक्षिक पाठ्यक्रमों व इतिहास आदि विषयों पर तो कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, जबकि इस क्षेत्र में प्रवेश के इच्छुक नवागंतुकों हेतु पुस्तकों का नितांत अभाव है। इस अभाव को देखते हुए तथा पत्रकारिता (इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट दोनों) में अपने स्वर्णिम भविष्य की राह तलाश रहे युवक-युवतियों की जरूरतों को ध्यान में रखकर इस पुस्तक की रचना की गई है। इसमें प्रस्तुत अध्यायों को तीन खंडों में विभक्त किया गया है, ताकि विषय की तह तक पहुँचने में सुगमता रहे।
पुस्तक को अधिक उपयोगी व नयनाभिराम स्वरूप प्रदान करने के लिए सुंदर व कलात्मक चित्रों का उपयोग किया गया है, जिससे पाठकों को विषय को आत्मसात् करने में सुविधा हो।
Media Samrat Subhash Chandra by N. Chokkan
छोटी सी पूँजी लेकर बड़े सपने आँखों में सजाकर ‘जी’ नेटवर्क का साम्राज्य बनानेवाले सुभाष चंद्रा आज ‘मीडिया मुगल’ के नाम से जाने जाते हैं। टेलीविजन इंडस्ट्री में आने से पहले वे चावल निर्यात करने का काम करते थे। उन्होंने भारत के पहले निजी टेलीविजन चैनल ‘जी’ टेलीविजन की शुरुआत की।
उनकी जीवनगाथा परी कथाओं सी मनोहारी नहीं, वरन् अनथक मेहनत की स्याही से जीवन के कठोर धरातल पर लिखी गई, झंझावातों से ओतप्रोत एक ऐसी गाथा है, जो रोचक है और प्रेरक भी। प्रस्तुत पुस्तक सुभाष चंद्रा के आदर्शों और दूरदृष्टि की परिचायक है, जो निश्चय ही अनुसरण करने योग्य है।
कुशल प्रबंधन, सटीक विश्लेषण, लक्ष्यनिर्धारण, योजना बनाना, सटीक निर्णय लेना, वित्तव्यवस्थापन, विपणन व्यवस्था, अनुशासनप्रियता, जोखिम उठाना, नवप्रवर्तन, कल्पनाशीलता आदि ऐसे गुण हैं, जिन्होंने सुभाष चंद्रा को शून्य से शिखर पर पहुँचा दिया। ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व की जीवनगाथा, जो पाठक को सफलता के द्वार खोलने के लिए कठिन परिश्रम करने और उद्यमशीलता के लिए प्रेरित करेगी।
Media Vishwakosh (Encyclopaedia Of Media) by Anish Bhasin
वर्तमान में मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, एडवरटाइजमेंट, पब्लिक रिलेशन एवं ट्रेडिशनल मीडिया जैसे प्रचलित रूपों तक ही सीमित नहीं रहा है। आज उद्योग के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन होती प्रगति के साथ ही कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन तथा ऑनलाइन (इंटरनेट) जर्नलिज्म के साथ-साथ ‘सोशल मीडिया’ भी अस्तित्व में आ गया है।
मीडिया से संबंधित विषयों पर पिछले एक-दो दशकों में अनेक ग्रंथ अंग्रेजी में तो प्रकाशित हुए हैं परंतु पत्रकारिता (जर्नलिज्म) के विभिन्न माध्यमों पर विश्वकोश एवं शब्दकोश का अभाव रहा है। इसी अभाव की पूर्ति है यह ‘मीडिया विश्वकोश’।
पुस्तक में मीडिया एवं जनसंचार के विविध माध्यमों एवं नए आयामों, जैसे—रेडियो, टेलीविजन, टी.आर.पी, स्टिंग जर्नलिज्म, मल्टीमीडिया, इंटरनेट, सेटैलाइट टी.वी., न्यूज मीडिया, ऑनलाइन एडिटिंग, सोशल मीडिया, फेसबुक, ट्वीटर, ऑरकुट, लिंक्ड-इन, यू-ट्यूब, स्काइप, टेबलेट कंप्यूटर, आइ-पैड, आइ-फोन, विकिपीडिया आदि लगभग छह सौ पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक विवेचन किया गया है।
यह ‘मीडिया विश्वकोश’ पत्रकारिता के संदर्भ में सामान्य जानकारी की इच्छा रखनेवाले पाठक से लेकर संबंधित क्षेत्र के विद्यार्थियों एवं मीडिया विषयक विभिन्न प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होगा। इसके अतिरिक्त मीडिया कर्मियों, संपादक, उपसंपादक, रिपोर्टर एवं लेखक आदि के लिए भी समान रूप से उपादेय ग्रंथ।
Meditation Ke Naveen Aayam by Manoj Srivastava
आज के जीवन में हम इतने खो गए हैं कि ईश्वर या आस्था को भूलते जा रहे हैं। इसका मूल कारण है— हमारे ऊपर अस्तित्ववादी प्रभाव। अर्थात् मेरा ही अस्तित्व है एवं केवल मैं ही हूँ। केवल ‘मैं’ से अहं आता है। इस प्रभाव से हम एकांगी सोच में जीवन जीने लगते हैं। जब व्यक्ति के सामने चुनौतियाँ, कठिनाइयाँ आती हैं तो वह अपने को अकेला पाता है। जब व्यक्ति असफल होता है तो उसमें कुंठा, हताशा, निराशा व अवसाद जन्म लेते हैं। वह समाज, मित्र, सगे-संबंधी, ईश्वर को इसका दोष देता है। हमें अगर सही जीवन जीना है तो हमारे पास आस्था के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। व्यक्ति के पास आज सूचनाओं का अंबार है, परंतु ज्ञान नहीं है। जिनके पास ज्ञान है, उनके पास अहंकार भी है।
कहना न होगा कि जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए हमें विचारों का समुचित प्रबंधन करना होगा और पूर्वाभासी ज्ञान जाग्रत् करना होगा। यह हम मेडिटेशन व ध्यान द्वारा कर सकते हैं। इस पुस्तक में इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु अनेक विधियाँ दी गई हैं, लेकिन सहज राजयोग हमें वह विधि सिखाता है, जिससे हम कम समय में, कम परिश्रम से बेहतर रूप में ध्यान व मेडिटेशन कर सकते हैं।
जीवन को सहजता के साथ जीने का मार्ग दिखाती एक व्यावहारिक पुस्तक।
Meera Padavali by Nilotpal
सगुण भक्ति-धारा के कृष्ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्ठ स्थान है। वे श्रीकृष्ण को ईश्वर-तुल्य पूज्य ही नहीं, वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं। कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण का वरण कर लिया था।
माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया, लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्ट, अपने आराध्य, अपने वर श्रीकृष्ण को ढूँढ़ने लगीं। उन्होंने वृंदावन की गली-गली, घर-घर, बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा, अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं।
मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की। हालाँकि काव्य-रचना उनका उद्देश्य नहीं था। लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए। उनके पद राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर बजते सुने जा सकते हैं।
प्रेम-भक्ति में मग्न होकर गाए उनके पद-गीत यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनके भक्ति-रस में रचे-बसे पदों को संकलित किया गया है। आशा है, सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्ति-सागर में गोते लगाएँगे।
Meh Ki Saundh by Sweta Parmar
‘मेह की सौंध’ उन कहानियों का संकलन है, जो कथाकार स्वेता परमार ‘निक्की’ द्वारा वर्षों से लिखी गई कहानियों के संग्रह से चुनी गई हैं। इन कहानियों को पाठकवृंद अपनी जिंदगी से भी जोड़कर देख सकते हैं, क्योंकि लेखिका ने इन्हें अपने संपूर्ण दिल की भावनाओं से ओतप्रोत हो, आत्मा से शब्दों में बाँधा है।
लेखिका का मानना है कि हमें हमेशा एक बात पर यकीन रखना चाहिए कि जिंदगी में वक्त कब, कहाँ, कैसे, कौन सी करवट ले, यह कोई नहीं जानता; पर कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए, साथ नहीं छोड़ना चाहिए। तभी हमारे सपने एवं सोच साकार होते नजर आएँगे। बस जरूरत है एक साथ की, चाहे वह हमारी अपनी परछाई ही क्यों न हो!
लघुकथाओं का संग्रह ‘मेह की सौंध’ अपनी अलग-अलग कथावस्तु के चलते पाठकों को नई ताजगी का एहसास कराएगा, पाठकों के हृदय में स्थान बनाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
Mehrunnisa Parvez Ki Lokpriya Kahaniyan by Mehrunnisa Parvez
कहानीकार मेहरुन्निसा परवेज की लेखनी में वह जादू है, जिसके स्पर्श से उनकी प्रत्येक कहानी कुंदन बन गई है। कहानियों में चुंबकीय शक्ति है, जिसके कारण सामान्य-से-सामान्य जन उनकी प्रत्येक कहानी की ओर स्वतः खिंचा चला आता है। पढ़ने के उपरांत वे तहेदिल से भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। रचनाधर्मिता की ये ही विशेषताएँ एक कहानीकार को जनप्रिय एवं लोकप्रिय बनाती हैं, ख्याति प्रदान करती हैं। कथाकार मेहरुन्निसा परवेज ने कहानियों में आस-पास के जीवन में घटित घटनाओं को बीनकर, उन्हें कहानी का जामा पहना कर, उनमें प्राण फूँक दिए हैं; जिसके कारण उनकी कहानियों में घटित घटनाएँ आम जन को अपने आस-पास की प्रतीत होती हैं।
स्वातंत्र्योत्तर भारत में नए विचारों के आगमन के साथ नारी में परिवर्तन परिलक्षित होने लगा। उस परिवर्तन से नारी में विद्रोह के स्वर उभरकर आए हैं। इन नए स्वरों को लेखिका ने महसूस कर कहानियों में व्यक्त किया है।
कहानियों की भाषा बोधगम्य बनाने के लिए उन्होंने सहज-सरल, आम आदमी की भाषा का प्रयोग किया है। ध्वन्यात्मक शब्द, मुहावरे, लोकोक्तियाँ आदि भाषा को व्यंजक बनाते हैं। उनकी कहानी की भाषा चित्रात्मक भी है, जो वर्णित चित्र को नेत्रों में अंकित कर देती है। प्रस्तुत है मेहरुन्निसा जी की पठनीयता एवं रोचकता से भरपूर कहानियों का संकलन।
Mein Lohiya Bol Raha Hun by Ed. Rajaswi
भारत के महान् चिंतक एवं विचारक राममनोहर लोहिया गांधीजी के सिद्धांतों एवं मूल्यों से अत्यंत प्रभावित थे। जब वे दस वर्ष के थे, तब उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था। गांधीजी उनकी देशभक्ति से बहुत प्रभावित थे।
बी.ए. करने के बाद वे पी-एच.डी. करने के लिए जमर्नी चले गए और वहाँ बर्लिन विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया। 1932 में उन्होंने अपनी पी-एच.डी. पूरी की।
जब राममनोहर लोहिया भारत लौटे तो उस समय कांग्रेस में समाजवादी विचारधारावाले लोग एक पृथक् संगठन बनाने पर विचार-विमर्श कर रहे थे। इन समाजवादियों में आचार्य नरेंद्रदेव, जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, रामनंदन मिश्र और राममनोहर लोहिया आदि थे। 22 अक्टूबर, 1934 को बंबई में समाजवादियों के ‘स्थापना सम्मेलन’ में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया।
डॉक्टर लोहिया हालाँकि आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी भली प्रकार हमारा मार्गदर्शन करते हैं। इस पुस्तक में डॉक्टर लोहिया के विचारों और सिद्धांतों को क्रमवार एवं प्रभावी ढंग से संकलित किया गया है।
विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
Mera Aajeevan Karavas by Vinayak Damodar Savarkar
भारतीय क्रांतिकारी इतिहास में स्वातंत्रवीर विनायकदामोदर सावरकर का व्यक्तित्व अप्रतिम गुणों का द्योतक है। ‘सावरकर’ शब्द ही अपने आपमें पराक्रम, शौर्य औरउत्कट देशभक्ति का पर्याय है। अपनी आत्मकथा मेरा आजीवन कारावास में उन्होंने जेल-जीवन की भीषण यातनाओं- ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-दो आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अपनी मानसिक स्थिति, भारत की विभिन्न जेलों में भोगी गई यातनाओं और अपमान, फिर अंडमान भेजे जाने पर जहाज पर कैदियों की यातनामय नारकीय स्थिति, कालापानी पहुँचने पर सेलुलर जेल की विषम स्थितियों, वहाँ के जेलर बारी का कूरतम व्यवहार, छोटी-छोटी गलतियों पर दी जानेवाली अमानवीय शारीरिक यातनाएँ यथा-कोडे लगाना, बेंत से पिटाई करना, दंडी-बेड़ी लगाकर उलटा लटका देना आदि का वर्णन मन को उद्वेलित करदेनेवाला है। विषम परिस्थितियों में भी कैदियों में देशभक्ति और एकता की भावना कैसे भरी, अनपढ़ कैदियों को पड़ाने का अभियान कैसे चलाया, किस प्रकार दूसरे रचनात्मक कार्यो को जारी रखा तथा अपनी दृढ़ता और दूरदर्शिता से जेल के वातावरण को कैसे बदल डाला, कैसे उन्होंने अपनी खुफिया गतिविधियों चलाई आदि का सच्चा इतिहास वर्णित है।
इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक प्रसंग, जिनको पढ़कर पाठकउत्तेजित और रोमांचित हुए बिना न रहेंगे। विपरीत-से-विपरीत परिस्थिति में भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा प्राप्त करते हुए आप उनके प्रति श्रद्धानत हुएबिनान रहेंगे।
Mera Desh Badal Raha Hai by Dr. A.P.J. Abdul Kalam
आज बड़ी संख्या में भारतीय युवा क्षमतावान, समर्पित, दृढ-संकल्पित, आदर्शवादी और कड़ी मेहनत करनेवाले हैं। उनमें अद्भुत शक्ति, सामर्थ्य और क्षमता है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का युवाओं को प्रबुद्ध बनाने के प्रति विशेष आग्रह था। यद्यपि डॉ. कलाम का पूरा ध्यान बच्चों और किशोरों पर ही केंद्रित रहा, लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर वयस्कों के लिए भी खूब काम किया। उन्होंने सभी लोगों को अपनी कमियाँ और कमजोरियाँ पहचानकर उनसे पार पाने का मार्ग दिखाते हुए जीवन में सफल होने के लिए अगले उचित कदम उठाने के लिए आह्वान किया। डॉ. कलाम के प्रेरक विचारों ने समाज में एक नई चेतना, नए उत्साह और नई स्फूर्ति का संचार किया। भारत सशक्त-सबल-समर्थ बने और विश्व में अप्रतिम स्थान बनाए, ऐसी दृष्टि उन्होंने समाज को दी।
डॉ. कलाम के 25 भाषणों के माध्यम से यह पुस्तक जीवन के विविध पहलुओं के लिए अच्छी शिक्षक है, जैसे एक परिपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक आदर्श रिश्ते कैसे बनाएँ, जीवन के विविध पहलुओं में संतुलन कैसे कायम करें और कैसे एक संतुष्ट, सफल और उत्साहपूर्ण जीवन जिएँ, ताकि स्वस्थ समाज, समर्थ राष्ट्र का निर्माण हो सके।
Mera Desh Mera Jeevan by Lal Krishna Advani
मेरा देश मेरा जीवन — लालकृष्ण आडवाणी
मेरा देश मेरा जीवन अहर्निश राष्ट्र सेवा को समर्पित शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा है। वर्तमान भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में आडवाणी अपनी प्रतिबद्धता, प्रखर चिंतन, स्पष्ट विचार और दूरगामी सोच के लिए जाने जाते हैं। वे ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलमंत्र मानकर पिछले छह दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं।
1947 में सांप्रदायिक दुर्भाव से उपजे द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के आधार पर हुए भारत विभाजन के समय आडवाणी को अपने प्रियतम स्थान सिंध (अब पाकिस्तान का हिस्सा) को हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा। इस त्रासदी की पीड़ा और खुद भोगे हुए कष्टों को अपनी आत्मकथा में आडवाणी ने बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है। राष्ट्रसेवा की अपनी लंबी और गौरवपूर्ण यात्रा में आडवाणी ने स्वतंत्र भारत में घट रही प्राय: सभी राजनीतिक एवं सामाजिक घटनाओं पर सूक्ष्म दृष्टि रखी है, और इनमें सक्रिय भागीदारी की है। इस पुस्तक में आडवाणी ने इन्हीं घटनाओं और राष्ट्र-समाज के विभिन्न सरोकारों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।
अपने अग्रज एवं अभिन्न सहयोगी श्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कंधे-से-कंधा मिलाते हुए, सरकार बनाने के कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व को तोड़ते हुए, भारतीय जनता पार्टी को सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने में आडवाणी ने विशेष भूमिका निभाई, जिसका वर्णन पुस्तक में विस्तार से किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक आडवाणी द्वारा बड़े ही सशक्त व भावपूर्ण शब्दों में आपातकाल के समय लोकतंत्र के लिए किए गए उनके संघर्ष और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु की गई ‘राम रथयात्रा’—जो स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा जन-आंदोलन थी और जिसने पंथनिरपेक्षता के सही अर्थ और मायनों को लेकर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ी—का भी बड़ा ही सटीक विवेचन करती है। साथ ही वर्ष 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में गृहमंत्री, एवं फिर, उपप्रधानमंत्री पद पर आडवाणी द्वारा अपने दायित्व के सफल निर्वहन पर भी प्रकाश डालती है।
इस पुस्तक ने आडवाणी की राजनीतिक सूझ-बूझ, विचारों की स्पष्टता और अद्भुत जिजीविषा को और संपुष्ट कर दिया है, जिसे उनके प्रशंसक एवं आलोचक—सभी मानते हैं।
किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए सक्रिय राजनीति में अपने उत्तरदायित्वों को निभाते हुए अपनी आत्मकथा लिखना एक अदम्य साहस एवं जोखिम भरा कार्य है, जिसे आडवाणी ने न केवल कर दिखाया है, बल्कि उसके साथ पूरा न्याय भी किया है। अत: इस पुस्तक का महत्त्व एवं उपयोगिता और भी बढ़ जाती है।
Mera Rasta Aasaan Nahin by Aacharya Jankivallabh Shastri
अराजक और अनास्था की विषम स्थिति में भी मूल्यों की तलाश करनेवाले बड़े आस्थावादी रचनाकार हैं आचार्यश्री जिन्हें हम सांसारिकता से विमुख हो संतुलित और समग्र संवेदनात्मक संसार की रचना करने की बेचैनी से भरे हुए देखते रहे हैं।
शास्त्रीजी गीतकार बड़े हैं या गद्यकार; यद्यपि कहना कठिन है, फिर भी उनके गद्य-सृजन की पड़ताल में साफ-साफ उनके कवि-व्यक्तित्व की गहरी छाप दृष्टिगोचर होती है। अभी उनकी गद्य-कृतियों का सम्यक् मूल्यांकन नहीं हुआ है। निराला, प्रसाद, महादेवी, बच्चन, दिनकर कवि तो बड़े थे ही गद्यकार भी बड़े और महत्त्वपूर्ण थे। इन विलक्षण और विशिष्टतम रचनाकारों की श्रृँखला में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री अन्यतम हैं। अनुपम और अतुलनीय है।
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की गद्य-विधाओं में आलोचना, ललित निबंध, कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, नाट्य-लेखन के साथ ही डायरी और संपादकीय भी साहित्यिक, सांस्कृतिक और वैचारिक ऊँचाइयों को छूते हैं। शास्त्रीजी की आलोचनात्मक दृष्टि के निराला भी कायल थे। निराला की प्रबंधात्मक कृति तुलसीदास की आलोचना शास्त्रीजी ने अपने यौवनकाल में की थी। वह आलोचना छपी तो निराला और आचार्य नंददुलारे वाजपेयी भी प्रभावित हुए थे।
Mera Vatan by Vishnu Prabhakar
हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवृत्त हुए बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध ‘ उन्होंने पढ़ डाली थीं ।
उनकी प्रथम कहानी नवंबर 1931 के ‘हिंदी मिलाप ‘ में छपी । इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं-‘ परिवार का स्वामी जुआ खेलता है, शराब पीता है, उस दिन दिवाली का दिन था । घर का मालिक जुए में सबकुछ लुटाकर शराब के नशे में धुत्त दरवाजे पर आकर गिरता है । घर के भीतर अंधकार है । बच्चे तरस रहे हैं कि पिताजी आएँ और मिठाई लाएँ । माँ एक ओर असहाय मूकदर्शक बनकर सबकुछ देख रही है । यही कुछ थी वह मेरी पहली कहानी ।
सन् 1954 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘ धरती अब भी घूम रही है ‘ काफी लोकप्रिय हुई । लेखक का मानना है कि जितनी प्रसिद्धि उन्हें इस कहानी से मिली, उतनी चर्चित पुस्तक ‘ आवारा मसीहा ‘ से भी नहीं मिली ।
श्री विष्णुजी की कहानियों पर आर्यसमाज, प्रगतिवाद और समाजवाद का गहरा प्रभाव है । पर अपनी कहानियों के व्यापक फलक के मद्देनजर उनका मानना है कि ‘ मैं न आदर्शों से बँधा हूँ न सिद्धांतों से । बस, भोगे हुए यथार्थ की पृष्ठभूमि में उस उदात्त की खोज में चलता आ रहा हूँ । .झूठ का सहारा मैंने कभी नहीं लिया । ‘
उदात्त, यथार्थ और सच के धरातल पर उकेरी उनकी संपूर्ण कहानियों हम पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं । ये कहानियाँ मनोरंजक तो हैं ही, नव पीढ़ी को आशावादी बनानेवाली, प्रेरणादायी और जीवनोन्मुख भी हैं ।
Mere Business Mantra by Nr Narayana Murthy
संसार में यदाकदा ऐसे बुद्धिमान व धैर्यवान् व्यक्ति का उदय होता है, जिसे नजरअंदाज करना कठिन ही नहीं, नामुमकिन होता है। श्री एन.आर. नारायण मूर्ति ऐसे ही विनम्र व्यक्ति हैं। वे एक उद्यमी, उद्यमी-नेता, समाजसेवी व परिवार-प्रिय व्यक्ति हैं। अपार सफलता पाने के बाद भी उनके पाँव जमीन पर टिके हैं। शुरुआत से ही अपने मन-मुताबिक कार्य करके वे आज इस ऊँचाई तक पहुँच सके हैं। अपने कार्यों के लिए असंख्य पुरस्कार व सराहना प्राप्त करने के बाद अब समय आ गया है कि हम उनके मूल्यवान विचारों का लाभ उठाएँ।
इस पुस्तक से आपको ऐसा दृष्टिकोण, प्रोत्साहन व महत्त्वपूर्ण प्रेरणा प्राप्त होगी, जिसके बल पर आप सफलता के पथ पर आगे बढ़ते जाएँगे। पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर आपको नारायण मूर्तिजी के सीखे सबक और वर्षों के अनुभव का खजाना प्राप्त होगा। बुद्धिमत्ता से भरी इन सभी उक्तियों में प्रकट हुआ मूर्ति के जीवन का सार हर स्वप्नदर्शी एवं महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति के लिए पथ-प्रदर्शक सिद्ध होगा।
इसलिए अपनी असफलताओं के साँचे को तोडि़ए और इस पुस्तक को पढ़कर अपने जीवन को सफल, सुखद और उज्ज्वल बनाने के मार्ग पर आगे बढि़ए।
Mere Path Main Na Viraam Raha by Aacharya Jankivallabh Shastri
परंपरा और प्रगति का, चिंतन और व्यवहार का, संघटना और संरचना का, सिद्धांत और प्रेरणा का, अनुभूति और अभिव्यक्ति का, सौंदर्य और साधना का, शास्त्रीयता और रसमयता का अगर सहज और शक्तिपूर्ण सामंजस्य देखना हो तो आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के जीवन और सृजन की पड़ताल करनी होगी। मोटे तौर पर शिखर को देखकर अच्छी या बुरी अवधारणा बनाने-बिगाड़ने की जो हमारी प्रवृत्ति रही है, उसे छोड़कर ईमानदारी से शिखर-संधान करने पर शिखर का यथार्थ महत्त्व और शिखर होने की गरिमा को समझा जा सकता है। आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के शिखर होने के पीछे संपूर्ण समर्पण, दीर्घ-साधना, अटल-निष्ठा, अकूत विश्वास, अडिग आस्था और ज्योतिमर्यी प्रतिभा है। जिसने अपने संपूर्ण जीवन को होम कर दिया, तय है कि उसी का जीवन यज्ञ होगा।
जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी साहित्य के शिखर व्यक्तित्वों में परिगणित होते हैं तो अपनी विराट् सृजनशीलता, व्यापक जीवनानुभूतियों और गहरी संवदेनशीलता के कारण। मानवीय मूल्यों की पक्षधरता, लयात्मक अभिव्यंजना और आंतरिक राग तथा हार्दिक सहजता शास्त्रीजी की विशिष्ट और निजी पहचान है, जो उन्हें सबसे अलग और महत्त्वपूर्ण बनाए रखकर शिखर-समादर देती है।
शास्त्रीजी की गीतधर्मिता में रवींद्र और निराला की लयात्मक अनुभूतियाँ हैं तो मानसिक चेतना में वाल्मीकि और कालिदास का समाहार है। भावगत आध्यात्मिक गठन और चिंतन में रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का साधना-सान्निध्य है तो मनीषा में संर्घषशील पूर्णावतार कृष्ण का वैराट्य।
Mere Sapnon Ka Bharat by A.P.J. Abdul Kalam
पूर्व राष्ट्रपति महामहिम डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम का स्वप्न है कि वर्ष 2020 तक भारत एक विकसित राष्ट्र बने। प्रस्तुत पुस्तक में लेखकद्वय डॉ.कलाम व डॉ. शिवताणु पिल्लै ने इस स्वप्न को साकार करने की प्रक्रिया का बड़ी ही सूक्ष्मता और गहराई से विश्लेषण किया है। विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में छात्र, युवा, किसान, वैज्ञानिक, इंजीनियर, तकनीशियन, चिकित्सक, चिकित्सा कर्मी, शिक्षाविद्, उद्योगपति, सैन्य कर्मी, राजनेता, प्रशासक, अर्थशास्त्री, कलाकार और खिलाडि़यों की क्या-क्या भूमिका हो सकती है, इसके बारे में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
हाल के वर्षों में, जीवन-स्तर को बेहतर बनाने में प्रौद्योगिकी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रौद्योगिकी एक ऐसा इंजन है, जिसमें देश को विकास तथा संपन्नता की ओर ले जाने और राष्ट्रों के समूह में उसे आवश्यक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ उपलब्ध कराने की क्षमता है। इस प्रकार, भारत को एक विकसित देश में बदलने में प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
आज भारत के पास प्रक्षेपण यानों, मिसाइलों तथा वायुयानों के सिस्टम डिजाइन, सिस्टम इंजीनियरिंग, सिस्टम इंटीग्रेशन तथा सिस्टम मैनेजमेंट की योग्यता और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास की क्षमता है—इस पुस्तक में इन सभी पहलुओं पर अनुकरणीय प्रकाश डाला गया है।
Meri Asafaltayen by Babu Gulab Rai
हिंदी साहित्य में जीवनियाँ बहुत कम हैं, जीवनियों में आत्म जीवनियाँ बहुत कम, आत्म जीवनियों में हास्य मात्रा बहुत कम और हास्य में साहित्यिक अथवा बौद्धिक हास्य बहुत कम। इसलिए बाबू गुलाब राय की पुस्तक ‘मेरी असफलताएँ’ अपना एक विशेष महत्त्व रखती है, क्योंकि इसमें एक सुलझे हुए और सुपठित व्यक्ति का आत्मचरित विनोद के प्रकाश से आलोकित होकर सामने आया है। आत्मचरित लिखने की प्रेरणा अंततः एक प्रकार के परिष्कृत अहंकार से ही मिलती है। पर बाबू गुलाब राय की विनोदप्रियता स्वयं अपनी ओर उन्मुख होकर उस अहंकार को कहीं भी उभरने नहीं देती।
भूमिका में बाबू गुलाब रायजी ने बड़े संकोच से कहा है कि उनके जीवन में कुछ भी असाधारण नहीं था, पर उन्होंने जान-बूझकर अपने जीवन के ऐसे ही प्रकरण चुने हैं, जिन्हें साधारण कहा जा सकता है। ऐसा करके उन्होंने गहरे विवेक का परिचय दिया है, क्योंकि ऐसे प्रकरण हर किसी के जीवन में आते हैं तो व्यापकता (यूनिवर्सेलिटी) का आकर्षण हो सकता है, जो हास्य के आवरण में आकर्षक हो उठता है।
गुलाब रायजी के हास्य की विशेषता यह है कि उसमें सहज भाव का आभास होता है। पर जैसा कि कोई साहित्यिक घाघ कह गया है, कला कला को छिपाने में है। पुस्तक में ‘मेरी कलम का राज’ नामक परिच्छेद में गुलाब रायजी ने स्वयं अपनी टेक्नीक
की अत्यंत सुंदर और निरपेक्ष (ऑब्जेक्टिव) विवेचना की है।
‘मेरे जीवन की अव्यवस्था’ शीर्षक लेख अपने ढंग का मास्टर पीस है। गुलाब रायजी निर्जीव नहीं हैं, उनकी सजीवता स्रद्बद्घद्घह्वह्यद्गस्र है, जैसे धुंध में बसा हुआ आलोक। इसलिए जहाँ उनका हास्य किसी को अछूता नहीं छोड़ता, वहाँ वह द्वेषदूषित भी नहीं है।
—सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
Meri Jeevan Yatra by Dr A P J Abdul Kalam
रामेश्वरम में पैदा हुए एक बालक से लेकर भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति बनने तक का डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन असाधारण संकल्प शक्ति, साहस, लगन और श्रेष्ठता की चाह की प्रेरणाप्रद कहानी है। छोटी कहानियों और पार्श्व चित्रों की इस शृंखला में डॉ. कलाम अपने अतीत के छोटे-बड़े महत्त्वपूर्ण पलों को याद करते हैं और पाठकों को बताते हैं कि उन पलों ने उन्हें किस तरह प्रेरित किया। उनके प्रारंभिक जीवन पर गहरी छाप छोड़ने वाले लोगों और तदनंतर संपर्क में आए व्यक्तियों के बारे में वे उत्साह और प्रेम के साथ बताते हैं। वे अपने पिता और ईश्वर के प्रति उनके गहरे प्रेम, माता और उनकी सहृदयता, दयालुता, उनके विचारों और दृष्टिकोणों को आकार देनेवाले अपने गुरुओं समेत सर्वाधिक निकट रहे लोगों के बारे में भी उन्होंने बड़ी आत्मीयता से बताया है। बंगाल की खाड़ी के पास स्थित छोटे से गाँव में बिताए बचपन के बारे में तथा वैज्ञानिक बनने, फिर देश का राष्ट्रपति बनने तक के सफर में आई बाधाओं, संघर्ष, उनपर विजय पाने आदि अनेक तेजस्वी बातें उन्होंने बताई हैं।
‘मेरी जीवन-यात्रा’ अतीत की यादों से भरी, बेहद निजी अनुभवों की ईमानदार कहानी है, जो जितनी असाधारण है, उतनी ही अधिक प्रेरक, आनंददायक और उत्साह से भर देनेवाली है।
आभार
मेरी जीवन-यात्रा घटनाओं से भरे जीवन का विवरण है। मेरे मित्र हैरी शेरिडॉन करीब बाईस वर्षों से मेरे साथ रहे हैं और अनेक घटनाओं के भागीदार बने हैं। उन्होंने मेरे साथ सुख और दु:ख, दोनों झेले हैं। शेरिडॉन हर तरह के उतार-चढ़ावों में मेरे साथ रहे हैं और जब कभी मुझे जरूरत पड़ी, उन्होंने मेरी पूरी-पूरी सहायता की। ईश्वर उन्हें और उनके परिवार को सदैव सुखी रखे। मैं सुदेषणाशोम घोष को भी धन्यवाद देना चाहूँगा, जो पुस्तक की परिकल्पना से लेकर उसे आकार देने तक मेरे साथ रहीं। पुस्तक प्रकाशित होने तक वे धैर्य के साथ निरंतर मुझसे जुड़ी रहीं। मैं उनके प्रयासों को नमन करता हूँ।